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अय्ये! अपनी 'गन्दी' सिडनी शेल्डन की किताबों को बचाने के लिए मैंने जो विद्रोह रचा।

जिसको मैं पसंद करती थी , अम्मा ने उसके सामने मेरी बेइज़्ज़ती कर दी। तो मुझे भी बदला लेना ही था , वो भी सबके सामने।

मैं 12 साल की थी, जब मैंने पहली बार बवाल पहली बार क्रांति की तैयारी की ।   अम्मा ने मेरी स्कूल की लाइब्रेरी की किताबें छीन ली थीं, मेरे शेल्डन का कवर फाड़ दिया था, और फिर मेरे कानों में चिल्लाई: अय्ये .. क्या इसीलिए तू जल्दी उठती है? गंदी-गंदी किताबें पढ़ने के लिए? 

गंदगी तो वो मिट्टी थी, जिसे मेरे पापा काम से वापस आते समय पैरों में लगा के आते थे। पापा एक कंस्ट्रकशन साइट के सुपरवाइज़र थे, जिन्हें रोज़ ड्रिलिंग मशीन के सामने आना पड़ता था, और वो अपने कानों और बालों में तारीफ के साथ-साथ, धूल भी लेकर आते थे। इंजीनियर और साइट मैनेजर इस बात से जलते थे कि मेरे पापा बड़े मेहनती थे। वह धूल में सने हुए और गरमी में मुस्कुराते हुए भी काम पूरा कर लेते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि उन्होने एक और रियल एस्टेट डेवलपर को उसके काम की आख़िरी तारीख़ आने से पहले ही काम निपटाकर, बचा लिया है। 

पर जब पापा घर लौटते थे, तो पानी में सनी धूल और सफ़ाई बनाए रखने की उनकी छोटी-मोटी कोशिशें, अम्मा के लिए अझुक्कू (गंदगी) ही थी। जब अझुक्कू सोफे के कोनों, मेरी चादरों के कोनों और आखिर में मेरी माँ की झाड़ू के सिरे तक पहुँचती, तो अम्मा गला फाड़ कर अय्ये करके चिल्लाती। चिल्लाने से उनका गला बैठ जाता और सफाई करने की जल्दी में वह दीवारों को झाड़ू से पीटने लगती थी, जैसे कि हर चीज़ को बस एक दो कंटाप की ज़रूरत हो। सालों बाद, हम लोगों को पता चला कि अम्मा ने यह रोना-पीटना अपनी प्यारी सहेली लक्ष्मी सुब्रमण्यन से सीखा है, जो इस डर से हमारे घर के दरवाज़ा से अंदर नहीं आईं कि समुन्दर के किनारे की महक और ठीक से साफ-सफाई न होने की वजह से उन्हें ऊकानाम (उल्टी) होगी। तो कुल बात ये है कि अम्मा कहती थी कि ये जी मिचलाने से याद रहता है कि "अझुक्कू पेन्नुगल" (गंदी औरत) नहीं बनना है।

इसीलिए, जब अम्मा ‘अय्ये’ करके चिल्लाईं और मुझे चौखट से धक्का दे दिया जिस पर मैं बैठी पढ़ रही थी, तो मैं अंदर ही अंदर खड़बड़ा गई। अगर कोई पूछे कि किसकी वजह से मेरी जिंदगी में ये गंदी-गंदी किताबें आईं, तो मैं अपनी चेची (बहन) को बाल पकड़कर घसीट लाती। मुझे सिडनी शेल्डन की पहली जिल्द वाली कॉपी अपनी बहन के बिस्तर पर ही मिली थी उसकी पुरानी गुलाबी चूड़ीदार में लिपटी हुई, मेरी अम्मा की तेज बटन जैसी आँखों से छिपी हुई।

जब मुझे अपनी बहन के कढ़ाई वाले सफेद तकिए के नीचे उस दोपहर ये किताब मिली, तो मैंने किताब के नाम, टेल मी योर ड्रीम्स/ मुझे अपने सपने सुनाओ, के मोटे-मोटे अक्षरों को अपने हाथों से उकेरा और सोचने लगी कि सिडनी कितनी सुंदर होगी। क्या वो कवर पर छपी औरत की तरह सुनहरे बालों वाली होगी? क्या उसने अपनी बहन के टुच्चेपन से जीतने के लिए किताब लिखी थी? जिस उमर में मैंने शेल्डन और स्टील को पढ़ना शुरू किया था, तब मुझे सच में ये लगता था कि डेनिएल स्टील एक आदमी था और शेल्डन एक औरत। केवल औरतों के दिमाग ही रोमांच के ऐसे पन्ने पैदा कर सकते हैं, जो तुम्हें बैठे-बैठे किताबें चाट जाने पर मजबूर कर देंगे। अगर अम्मा चने की सब्जी के साथ एक घंटे में छे पुट्टू  बनाकर स्कूल की बस पकड़ने के लिए दौड़ सकती है, तो औरतें सब कुछ कर सकती हैं।

लेकिन घंटेभर बाद, मैं सिडनी और उसके बाप-दादाओं को कोस रही थी, उस दिन को याद करके पछता रही थी जब मेरी बहन ने मुझे गंदी-गंदी बातों वाली यह गंदी किताब पढ़ने के लिए उकसाया था। मेरी अंतड़िया तो मेरी चड्ढी से चिपक गई थी और मेरे पेट में एक बड़ा सा पत्थर हिलोरे मार रहा था और मैं उस बेडरूम की तरफ गई, जहां मम्मी-पापा सोते थे। “तुमने मुझे ऐसे ही बनाया है?” मैंने मुंह चिढ़ाते हुए कहा, "तुम गंदे राक्षस लोग।" 

टेल मी योर ड्रीम्स में थ्रिलर का पूरा मसाला था। एक मनचले अजनबी की नजरों से बचकर भागती हुई एक अकेली औरत। मैंने जो नैन्सी ड्रू वग़ैरा को पढ़ा, तो उसकी शुरुआत धीरे-धीरे होती थी, नैन्सी नेड को चुम्मा लेती थी, अपनी सहेलियों के साथ मस्ती करती थी और फिर किसी राज़ का पर्दाफाश करती थी। 

बिस्तर पर शेल्डन के मिलने से पहले मेरे दिमाग में कहानी सुनाने वाली एक असेक्सुअल भरोसेमंद औरत थी, जो (शायद) चुम्मा लेती थी और राज़ का पर्दाफाश करती थी। किताब के ख़त्म होने तक वो केक खाती या अपनी कार विराजमान, शाम की लाली की ओर चल पड़ती । लेकिन शेल्डन की लिखी किताब की पात्रा!  एशली पैटरसन? एशली अल्हड़, डरी हुई और जवानी की गरमी से भरी हुई थी। एशली के साथ हर चुम्मे में एकदम जीभ में जीभ घुसाकर आदमी डुबकी लेते थे और उसके मुँह में लार मिलाते थे। और जिसे आजकल फ्रेंच किस कहते हैं उसे मैं समझ ही रही थी, कि मेरे मन में 'तना हुआ फूला लंड'! ऐसे शब्द छप जाते थे, और मुझे वो दिन याद आ जाता, जब मैंने अम्मे के चिपचिपे लसीले आटे में अपने हाथ डुबोए थे और फिर जैसे ही वो मवु मेरे नाखूनों में घुसा वैसे ही मैं चीखने लगी। निकालो इसे, निकालो इसे  मैं चिल्लाने लगी थी।

द गेटअवे कार में, ऐन पैचेट कहती है कि उसे बड़े लोगों का पहला उपन्यास, हम्बोल्ट्स गिफ्ट, पंद्रह साल की उमर में मिल गया था। किताब उसे ज़्यादा कुछ समझ में तो नहीं आई, लेकिन उस दिन उसके दिमाग में क्या-क्या तस्वीरें बन रहीं थीं और वो क्या-क्या महसूस कर रही थी, ये उसे बखूबी याद है। लेकिन दिमाग में बसी इस तस्वीर के साथ कैसे रहा जाये कि सेक्स में किसी के सुसु करने वाली चीज़ को दूसरे के सुसु करने वाले में डालना होता है? हर कोई कहता है कि तुम्हारा पहला बहुत खास होता है। अम्मा तो कहती हैं, कि मेरी बहन बहुत खास है क्योंकि वो पहले पैदा हुई। लेकिन जब सेक्स की पहली किताब में ही जीभ लगाके चुम्मा-चाटी करने, रिश्तेदारों के साथ सेक्स करने, सेक्स के हथियार काटने, मुंह में लेने के बारे में लिखा हो, तो क्या करें? जब सेक्सी कल्पना का पहला तजुरबा ऐसा गंदा सा हो, तो ये सेक्सी कहानी में जो रोमांचम लिखा है, उसकी फीलिंग कहाँ से आएगी ?  

तो मैं थी बारह साल की। बायो की क्लास में अभी कुछ महीने पहले ही मिस नैना ने हमें इतना बता कर छोड़ दिया था, कि “स्पर्म और ओवा मिल कर जाईगोट बनाते हैं” ।  बिना असली सवाल का जवाब दिए कि “स्पर्म ओवा से आखिर मिलता कैसे है?” । वो जल्दी से पन्ने पलट कर गुप्त रोग पर आ गईं। डेढ़ साल तक सेक्स को लेकर माथा पच्ची करने के बाद, जब मैंने टीवी पर मोहनलाल और उर्वशी को अपनी पहली रात के लिए बेडरूम में गायब होते देखा, तब मुझे लगा कि मुझे इसका जवाब मिल गया है।.

"स्पर्म हवा में उड़ता है, ओवा से मिलता है और बच्चा बन जाता है!" मैंने लड़कियों की अपनी टोली को बोला। ये बताने के बाद मैंने एकदम पूरा-पूरा समझाया और मैंने मिस नैना से बेहतर बायोलॉजी पढ़ाई। और फटाफट सवाल जवाब के बाद भी. मैंने दोस्तों के बीच शानदार जीत हासिल की थी।

“लेकिन वो वयारू (पेट) क्यों मसलते हैं? वे नाभी से क्यों खेलते हैं?” 

"वो स्पर्म जाने के लिए छेद है।" 

“वे दूध क्यों पीते हैं?” 

“तुम्हें क्या लगता है, बच्चा पैदा करना आसान है? दूध जरूरी है।” 

मुझे वो दिन याद आता है, तो आज भी मुस्कुरा पड़ती हूँ। निमिषा का मेरी ओर आँख फाड़ के देखना। हर रात हमें परेशान करने वाले राज़ को सुलझाने के लिए बार-बार मेरी बांह दबाना। यहां तक कि जब संशयम रोगी/ परम शक्की अंजिता ने सुसु करने वाली चीज़ को अंदर डालने की बात की, तो मैंने उसे साफ-सफाई के बारे में फिर से पढ़ने के लिए बोल दिया। 

अब ऐसा नहीं है कि शेल्डन से पहले मैं कोई बहुत अच्छी लड़की थी। जब 6 साल की थी, तो मैंने चमकते दाँतों वाले रॉबिन को पहला लव लेटर लिखा था और उसे बोला था कि पी०टी० में मुझे चुम्मा दे । 11 साल में रंजीत को एक और लव लेटर। लेकिन ये सब इतना पाक-साफ़ था कि अगर अम्मा मुझे सफेद परदों से सजे उन सफेद कमरों में देखतीं जहां मैंने लाइज़ोल और सर्फ की खुशबू के बीच, रॉबी या रंजीत को प्यार किया था, तो अम्मा कहतीं नल्ला वृथिउल्ला मनासु (बहुत साफ मन है)। 

यहां तक कि जब दूसरी लड़कियाँ बाथरूम में नैपकिन ले कर जाती थीं, तब भी मैं ताक-झांक करने वाले लड़कों से उन्हें बचाने के लिए दरवाजे पर चौकीदारी करती थी। जब उन्होंने खून के साथ बैठना सीखा तो मुझे क्लास की लड़कियों के लिए की हुई चौकीदारी पे फक्र होता था। अपनी इस सपाट छाती, पीरियड्स शुरू होने से पहले वाले समय में, मैं क्लास के बाहर उड़ रही थी, छोटे लड़कों के ऊपर से कूद रही थी, अपना दुपट्टा लहरा रही थी और निमिषा पर हमला करने वाली लाल चींटियों को पकड़ने के लिए पेरायका पेड़ों पर चढ़ रही थी। तो  पैचेट क्या उस पल के बारे मे क्या कहेगी, जब छन्न से टूटे कोई सपना और दिखे उस तस्वीर की  गंदगी?

लेकिन शरीर तेजी से जवाब देता है। यह मुझे तब पता चला, जब मैं शेल्डन को खोजने के लिए एक लोकल लाईब्रेरी जाने लगी। जब मुझे पता चला कि जब एशली ने सेक्स किया था, तो मेरे अंदर एक अजीब सा चिपचिपा लसीला कुछ हुआ था । तभी मुझे पता चला कि मुझे हमेशा ही थोड़ा सा अझुक्कू चाहिए था। हाँ, जो आटा मेरे नाखूनों से चिपक गया था, वो घिनौना था ।  लेकिन उस घिन के पहले वो एक मिनट का नशा भी तो था, उसे मैं कैसे भूल गई ? जब मैंने उसमें अपनी उँगलिया धँसाई, उसे मुट्ठी भर साना और उसे अलग-अलग रूप दिए? और मैंने केक की लप्सी को क्या प्यार किया था, जब मैंने उसे ऐसे चाटा कि बस चॉकलेट के हिस्से ही मेरे छोटे से मुँह में जमा हो पाएँ?

इसके बाद की मेरी कहानी कोका-कोला की बोतल से निकलने वाली गैस की तरह है। जब भी हफ्ता खतम होता, मैं शेल्डन को ढूँढने और गंदी बनने, उस सन्मार्गदर्शिनी लाइब्रेरी पहुँच जाती, जिसके नाम का मतलब होता है सही रास्ता दिखाने वाली लाइब्रेरी (अब क्या कहें ?)। कभी-कभी, मन की गंदी-गंदी बातें, मेरे स्कूल के काम में भी टपक पड़ती थीं और मेरी कॉपियाँ ख़राब हो जाती थीं। और कभी कभी जब मोइनुद्दीन, जिसपे मेरा दिल आया था, को अपनी तरफ आते देखती थी, तो वो सब बातें मेरे मन में चलने लगती थीं।

लेकिन फिर उस एक दिन मोइनुद्दीन मेरे मैथ्स के नोट्स मांगने आया था और उसके सामने अम्मा चिल्ला पड़ी, ‘ऐ’ और मेरी हालत पतली हो गई। उनकी ‘अय्ये’ में उनकी सहेली मीनाक्षी की चिढ़, अम्मा की शर्म और उनकी डाँट की वजह से हुई झुंझलाहट को देखकर मोइनुद्दीन की झेंप, उन सबकी चोट मुझे लगी । शेल्डन को पढ़ने और मोइनुद्दीन के बारे में सोचने की छुपी हुए खुशी में अब अम्मा की डांट और बर्दाश्त से एकदम बाहर झिड़कियों का भारी बोझ था। 

मैंने अम्मा से बदला लेने के बारे में तब तक नहीं सोचा था जब तक मैंने देखा नहीं था कि वो सेक्स के बारे में ज़ोर से बोलने से कतराती थीं। एक बार अम्मा एक फिल्म की कहानी सुना रही थीं जिसमें एक रेप सीन था, तो अम्मा ने कहा: और फिर... ग़लत चीज़ हो गई । जब भी अम्मा ग़लत चीज़ कहतीं तो मैं और चेची बार-बार पूछती, क्या हो गया। लेकिन वो कभी बोलती ही नहीं कि ग़लत चीज़ आखिर क्या थी। जैसे वो ये भी कभी नहीं बताएँगी कि वो हमें देवरागम का वो गाना क्यों नहीं देखने दे रही थीं जिसमें आहें भरती हुई श्रीदेवी घास पर लेटी हुई थीं और पसीने से तर-बतर अरविंद स्वामी उसे ऊपर से देख रहा था। 

फिर भी अपने चिट्ठी लिखने वाले दिनों को याद करते हुए, मैंने उन्हें पप्पा से चुप्पे-चुप्पे अँखियाँ लड़ाते देखा है। वो पहली दफा, जब अम्मा अपनी कमर पर से एकदम खिसक रही साड़ी में पापा के सामने आई थी, तो पापा तो एकदम फ़्लैट ही हो गए थे। जब हम पूछते कि उन्होंने एक दूसरे से शादी क्यों की तो मेरे पापा ठहाका लगाकर बोलते "तुम्हारी अम्मा का पेट एकदम सपाट था।" लेकिन ये बात-चीत गला खंखारते हुए भी, एक मिनट भर की ही होती थी। एक बार अम्मा ने ये बताना शुरू किया कि जब उनकी नई-नई शादी हुई थी, तो पापा ने कैसे उन्हें पांच पन्नों की लम्बी चिट्ठी लिखी थी लेकिन बार-बार गला खंखारने की आवाज़ और जल्दी-जल्दी इधर-उधर चिढ़ाने के चक्कर में कुछ समझ ही नहीं आया। "तुम्हारे पापा रोमेंटिक हैं।" इसके साथ ही अम्मा ने मुस्कुराकर सिर हिलाते हुए वो बात ही ख़त्म कर दी। 

जब हम टी०वी० के सामने बैठते थे, तो ख़ुशी-ख़ुशी हमें अपने रोमांटिक पलों का ट्रेलर दिखाने वाले पापा भी हमें कल्ला (बेईमान) नज़रों से देखते थे। एक बार चैनल “कह दो ना, कह दो ना, यू आर माई सोनिया” गाने पर रुका तो पापा रितिक के साथ डांस करती करीना कपूर के कंधे से एकदम गिरने वाले स्ट्रैप को देखने लगे। जब मैंने स्ट्रैप के ढीलेपन की बात की, तो पापा ने बिल्कुल झपट कर रिमोट उठाया और चैनल बदलकर एशियानेट न्यूज़ लगा दिया। 

तो प्लान ये था कि इससे बड़ा नहीं तो कम से कम इतना मज़ाक तो बनाया ही जाये कि आस-पास के सब लोग मिलकर अम्मा को ऐ  करें। तो उस दिन जब हमारे चाचा लोग गल्फ से आए थे और पापा मेज पर बैठे मच्छी खा रहे थे, तभी मैंने पूछ लिया: अम्मा, पापा से तुम्हारी शादी 1981 में हुई थी, लेकिन चेची 1985 में हुई। तुम्हें और पप्पा को चार साल तक कोई बच्चा क्यों नहीं हुआ?

किसी भी अच्छे जासूस की तरह मुझे मालूम था कि अम्मा सबके सामने इस बिल्कुल नए सवाल का जवाब नहीं दे पाती थी । रसोई के अंदर सेक्स के बारे में उनसे पूछने-ताछने पर वो बड़ी सावधानी से कह देती दैवम थन्निला (भगवान ने हमें आशीर्वाद नहीं दिया) या अथिनोके अथिंतेथया समयम उंड (इसके लिए हमेशा एक समय होता है)। 

लेकिन अब चाचा लोग के सामने, अम्मा और पप्पा को समझ ही ना आया क्या बोलें। 

“अथु पिन्ने (वो ऐसा था..)” 

"तुम्हारे बच्चे नहीं हो सकते थे।" 

“नहीं, ये सब नहीं है,” पप्पा ने जोर देकर कहा। 

"तुम लोग बच्चे नहीं चाहते थे।" 

"नहीं, नहीं," अम्मा चाचा लोगों को देख कर बोलीं। 

"तुमने किया नहीं…"

"नहीं, रुको। हम, मेरा मतलब है हम... पप्पा शादी के तुरंत बाद गल्फ में थे न। और वो चार साल बाद छुट्टी पर वापस आये...'' 

अम्मा की आवाज़ धीमी हो गई और कमरा एकदम शांत हो गया। अब चाचा लोग जल्दी-जल्दी चावल खा रहे थे और पप्पा जानबूझकर सीढ़ियों को घूरे जा रहे थे। 

“तो, पप्पा 1985 में आए और चेची पैदा हुई और फिर वो 1987 में आए, तो मैं पैदा हुई..” 

"कुंजी," जैसे ही पापा को लगा कि बात हाथ से फिसलने वाली है, उन्होंने मुझे सावधान कर दिया। 

“अय्ये! तो तुम कह रही हो कि पप्पा और तुमने गर्मियों की छुट्टियों में सेक्स किया था..,” मैं आखिर में जो कहना चाह रही थी वो मेरी बहन की उंगलियों और मेरे चाचाओं के एक साथ गला खंखारने के नीचे दब गया। जब मैंने ऊपर देखा, तो अम्मा का हाथ उनके गले पर था और पापा अपनी प्लेट देख रहे थे। 

कुछ दिनों बाद, जब मैं उठी, तो शेल्डन पहले से ज़्यादा अच्छी जिल्द, और मेरी अम्मा के लिखे एक छोटे से नोट के साथ मेरी आलमारी पर वापस आ गई थी। नोट में लिखा था : जब एग्ज़ाम हो, तो इसे मत पढ़ना। 

दीप्ति एक उभरती हुई लेखिका हैं और पी०एच०डी० के मैदान में फिलहाल ज़िंदा हैं ।

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