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‘क्या हम दूसरों के साथ खाना खा सकते हैं ? रिश्ते रख सकते हैं ?’

हर्पिज/विसर्पिका के निदान होने पे बहुत डर लग सकता है । पर ये बताए जाने के बाद कि मुझे हर्पिज है, मैंने ये सीखा ।

कुछ समय पहले जब मुझे 2-3 दिन के लिए मेरे गुप्तांग में जलन और खुजली हो रही थी तो मैं एक लेडीज़ डॉक्टर के पास गई। वो इतना खुजली कर रहा था कि मुझे तो शुरू में लगा खमीर हो गया है, जो खुजली करने से लाल हो गया होगा और थोड़ी बहुत दवा से ठीक हो जाएगा।

मेरे साथ मेरी मासी भी आईं। हमारे जैसे घरों में डॉक्टर के पास घर से कोई ले के जाए ये तो आम बात है। मासी ने बताया कि ये गुड़गांव में सबसे बेस्ट लेडीज़ डॉक्टर हैं और पास भी हैं तो हम लोग पहुंच गए। मैंने डॉक्टर से कुछ देर बात की, उनको समझाया कि क्या दिक्कत है और फिर जांच के लिए बगल के कमरे में पहुंच गई। उन्होंने पहने अपने दस्ताने और मास्क, नीचे मेरी ‘बिल्ली’ को देखा और फिर मुझे और पूछा कि क्या मैं सेक्स वेक्स करती हूं, ग़नीमत कि मासी के सामने नहीं पूछा, इस बात का ध्यान रखा ।

तो मैंने कहा करती तो हूं लेकिन अभी हफ़्तों हो गए होंगे, और अक्सर एक पार्टनर के साथ लगातार तो नहीं करती। कत्तई सिंगल थी उन दिनों। उन्होंने फिर से मेरी बिल्ली को देखा, फिर मेरे चेहरे को देखा, फिर मेरी आंखों में आंखें डालकर सीधे कहा, "ये तो हर्पीज़  का मामला लगता है।"

जैसे ही उन्होंने ये बोला मेरा तो सिर ही चकरा गया और दिमाग में सैकड़ों खयाल चूहे की तरह दौड़ने लगे। मुश्किल से मैंने कहा, "क्या?" और मुझे यकीन है मेरे मन में जो उलझन चल रही थी वो मेरे चेहरे पर साफ़ देख पा रही थीं। मुझे तो काटो तो खून नहीं, एकदम सिट्टी पिट्टी गुम थी।

उन्होंने कहा, "ये हर्पीज़  है, हर्पीज़  ऐसे ही दिखता है," और फिर उन्होंने मेरे ऊपर के होंठ पर आए 2- 3 दानों के बारे में पूछा। दरअसल, मुझे ध्यान आया कि, गुप्तांगों पे  लाली और होंठो पर दाने साथ में आए थे, और मैंने उन्हें भी ये बात बताई।

अब मुझे थोड़ा शांत होने की जरूरत थी क्योंकि मैं तो वहां अपनी पैंट खोले, खौफ़जदा होकर बैठे बैठे ये सोच रही थी कि ये आया कहां से, किसने मुझे ये संक्रमण दिया था? मुझे लगता है किसी को भी ऐसे संक्रमण होने का पता चले तो सबसे पहले वो यही सोचते होंगे।

हम लोग फिर वापस उनके केबिन में आए और उन्होंने दवा की पर्ची पर "हर्पीज़  जेनिटेलिया और हर्पीज़  लेबियालिस" लिखकर दवा लिखी। वो जो भी लिख रही थीं, मेरी मासी सब ध्यान से देख रही थीं लेकिन उन्होंने वहां कुछ कहा नहीं, एंटीवायरल गोली (एसीक्लोविर), एंटीवायरल मलहम (हरपेक्स 5%), और कौन सी वाली हर्पीज़  है ये पता करने के लिए टेस्ट (IgG और IgM HSV)।

मैं तुरंत वहां से निकलकर जल्द से जल्द घर जाना चाहती थी ताकि अपने आंसुओं के साथ अकेले में नाराज़, दुखी और शर्मिंदा हो सकूं और मासी को भी ये बात समझ आ रही थी।

घर जाने से पहले दवा लेने के लिए बाजार जाते हुए उन्होंने अहोमिया में पूछा, "तुक हर्पीज़  होइसे?" यानि, "तुम्हें हर्पीज़  हुआ है?" मैंने कहा, हां, लग तो वही रहा। उन्होंने फिर कहा, "कोई बात नहीं बाबू, सब ठीक हो जाएगा। कोई दिक्कत नहीं है। क्या ही कर सकते हैं, है ना?"

मुझे तो इसी बात से राहत थी कि उन्हें मुझपार गुस्सा नहीं आया, क्योंकि सेक्स रोग तो किसी भी भारतीय परिवार के सदस्य का पारा चढ़ा सकता है। लेकिन मुझसे उस समय कुछ बोला ही नहीं जा रहा था। बहुत मेहनत कर एक बात बार -बार कही, "मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा कि ये हुआ है। आखिर कैसे हो सकता है?"

उस रात तो मुझे नींद ही नहीं आई, जितनी बार आँख बंद करती, उतनी बार हाथ अपने आप ही फोन के इनकॉग्निटो मोड में चला जाता और मैं HSV (herpes simplex virus हर्पीज़  सिम्पलेक्स वायरस) के बारे में पढ़ने लगती। उस रात परेशानी, शर्म और पछतावे में मैंने HSV1 और HSV2 के बारे में जाना और ये भी समझा कि ये सेक्स वाले अंगों के हर्पीज़  और होंठ पे छोटी फुंसी वाली हर्पीज़  से कैसे अलग है।

दोनों तरह वाले ऐसे तो आम हैं, लेकिन कितना और कहां उछाल मारते हैं इससे दोनों में अंतर किया जा सकता है। टाइप 1 (HSV 1) मुँह से फैलता है और उसी के आस पास इसकी बीमारी भी लगती है (ओरल हर्पीज़ ़/होंठों पे छोटी फुंसियाँ ) , जबकि टाइप 2 (HSV 2) सेक्स से फैलता है और सेक्स वाले अंगों पर ही उससे हर्पीज़  होता है। HSV 2 साल में कई बार पनपता है लेकिन HSV 1 इससे कम ही होता है। और हाँ, ये सबके लिए अलग अलग होता है।

मुझे हर्पिज़ के फैलने के बारे में पता चला: आपको एक बार लग जाए तो दस दिन से दस साल तक लग सकते हैं उसके उभरने में । मुझे ये भी पता चला कि उसका पनप के बाहर आना/उछाल, होंठ पे वो छोटी फुंसियाँ, घाव, जो भी कहो, आता जाता रहता है, और ये बीमारी उम्र भर की है, इसका इलाज तो नहीं है लेकिन इसे क़ाबू में रख सकते हैं और जब ये उछाल मारे तो उसका इलाज किया जा सकता है। ये उछाल हफ़्ता दस दिन रहता है, लेकिन पंद्रह दिन मान के चलो तो बेहतर। सेक्स सुक्स करने से पहले उछाल को ग़ायब हुए कुछ दिन हो गए हों, तो बेहतर है। तब तुम्हें और तुम्हारे पार्टनर को और इत्मिनान रहेगा कि ये आगे नहीं फैला ।

बाथरूम में मैंने काफ़ी वक्त झुककर मैंने शीशा लगाकर अपनी योनी  देखी, फ़ोन का टॉर्च जलाकर मैं ये समझने की कोशिश कर रही थी कि मुझे क्या हुआ है। ये छिट पुट घाव जैसे क्या हैं जिनसे मेरी दिमाग़ी हालत और नींद की एकदम लगी पड़ी है। एक रात तो पढ़ते पढ़ते मैं काफ़ी डर गई, फिर कुछ चीजें मिली जिनसे काफ़ी मदद हुई:

1. बीमारी पर एक छोटी किताब जिससे बीमारे हो जाने के बाद नॉर्मल लाइफ़ कैसे जिएँ, इस बारे में पता चला।

2. ये कितने लोगों को होता है, इसकी सटीक जानकारी (और सुनो, ये काफ़ी सारे लोगों को होता है), और

3. अंत में सबसे मददगार, हीरो हीरोईनों की एक बज़फ़ीड वेबसाइट पर लिस्ट जिनको कभी ना कभी ये हुआ था। उसमें ब्रैड पिट्ट , लेडी गागा, विक्टोरिया बेकहम और जाने कितनों के नाम थे। 

इससे तो मुझे सबसे ज़्यादा राहत हुई, ये जानकर कि मशहूर लोगों को भी ये होता है और मैं एकदम भी अकेली नहीं हूँ।

और फिर उस रात मैं चैन से सो सकी।

कुछ ख़याल जो आने वाली बेचैन रातों में मुझे अक्सर परेशान करते रहे, सेक्स की बीमारियों को लेके लांछन को ही लेकर थे। दोस्तों और परिवार वालों के साथ खाना पानी, सिगरेट वग़ैरा कर सकती हूँ या नहीं? मुझे ये बीमारी है, ये जानने  के बाद कोई मे,रे साथ सोएगा या मुझे डेट भी करेगा (भले ही जब हेरपीज ने उछाल ना मारा हो तब ज़रूरी नहीं है कि ये फैलेगा )?

शुरुआत के कुछ हफ़्तों में तो मैं इसलिए परेशान थी कि ये आया किधर से मुझे ये मालूम ही नहीं था। मैंने अंदाज़ा लगाया कि जिस आख़िरी बंदे के साथ थी मैं, शायद उससे हुआ हो। उसकी शक्ल याद आती तो दिमाग़ ख़राब हो जाता था। मुझे याद ही नहीं आ रहा था कि मैंने उसके होंठों पर कुछ देखा था कि नहीं, जिस्पे मुझे ध्यान देना चाहिए था । उसके होंठ मेरे दिमाग़ में भले ही नहीं आ रहे थे  लेकिन मेरे माथे की लकीरें ज़रूर बढ़ा रहे थे ।

मैं ये भी सोच रही थी कि किसी को कैसे बताऊँ कि, एक बार दिन दहाड़े घबराहट में एक दोस्त को रोते हुए फ़ोन किया। उसने ध्यान से मेरी बात सुनी और बोली कि तुम पहले लड़की नहीं हो जो मुझे ये बता रही। ये तो बहुत आम है, इसमें क्या सिर फोड़ना। हाँ वो ये भी समझ रही थी, कि मैं परेशान क्यों थी। 

जब मैंने उस से पूछा कि जिन आदमियों के साथ सेक्स करना है, उन्हें ये कैसे बताऊँगी तो उसने एक ऐसी बात कही जो मैं कभी भूल नहीं सकती: “तुम ऐसी हो कि लोग तुम्हारे बारे में क्या सोचते हैं इससे तुम्हें घंटा फ़र्क़ नहीं पड़ा, तो अब क्यों लोड ले रही हो ?” और सच कहूँ तो मुझे उस टाइम वैसे ही कड़क प्यार की ज़रूरत थी। मुझे ऐसा झटका लगा कि छुईमुई से वापस, मैं अपने असली रूप में आ गई।

इस बातचीत के बाद मैं अपने दोस्तों को इस बारे में बताने लगी। जिनके साथ कोलेज में खाना खाती थी, उन्हें बोला कि देखो मुझे ये दिक़्क़त है तो थोड़ा ध्यान से। शुरू में तो मैं थोड़ी परेशान थी लेकिन बेकार में ही। मुझे उस समय समझ आया कि मेरे आस पास एकदम प्यारे और सुंदर दोस्त हैं। मुझे ऐसा लग रहा था कि शायद वो मेरा मज़ाक़ उड़ाएँ या सोचें कि ये सब घिनौना है। और शायद इन सब के चलते मुझसे दूर रहें। लेकिन जब मैंने उन्हें बताया तो उन्होंने मुझे प्यार ही दिया,  बिना किसी मज़ाक़, दया या राय के। और मुझे एक बार फिर बहुत आराम मिला और सुखद लगा।

मुश्किल तब हुई जब एक लड़के को बताना पड़ा, जिससे मैं पहले कई बार मिले चुकी थी, कि मुझे हर्पिज़ है। बात फ़ोन पे करनी थी लेकिन उसे कॉल लगाने में ही मुझे बहुत हिम्मत लगी।

मुझे उसके बाद बहुत भारी लगा और दुःख हुआ क्योंकि उसके बाद वो मेरे साथ कोई रिश्ता नहीं रखना चाहता था। मैंने उसे खुद को भी टेस्ट कराने को कहा, कि मान ही लो कुछ हुआ हो तो। इसी अनुभव के चलते मेरे दिमाग़ में ये ख़याल आने लगे कि कोई मेरे साथ नहीं होना चाहेगा। ये बात मानने में वक़्त लगता गया , और अब मुझे मालूम है क्यों-- क्योंकि ये सच ही नहीं है। 

फिर मैं एक ऐसे इंसान के साथ रिश्ते में आ गई जिसे मेरे बारे में मालूम था; और वो पहले दोस्त भी था। उसने मुझे बताया कि वो मुझे प्यार करता है, हमने मज़ेदार और सुरक्षित सेक्स किया, लेकिन फिर मेरे होंठ के ऊपर उछाल आ गया और मैं दो हफ़्ते तक मैं उसके पास भी नहीं आ सकती थी, भले ही उसे रोज़ देख रही थी। जिस दिन उसे चूमना सुरक्षित हुआ, सोच लो फिर क्या क्या हुआ होगा!

सबसे ज़्यादा तो मुझे इस बात का डर था कि अम्मा को ना पता लग जाए। इसलिए नहीं कि वो मुझपर नाराज़ होंगी या उन्हें पता चल जाएगा कि मैं सेक्स करती हूँ। वो उन्हें पता है। बल्कि इसलिए कि मुझे उसके बाद उनके सैकड़ों सवालों के जवाब नहीं देने थे।

ये तो मैं इसलिए कह रही हूँ क्यूँकि मेरी माँ के साथ जैसे मेरे रिश्ते हैं, उनके चलते मुझे ऐसे लगा था । उन्हें आख़िर पता लग ही गया। उन्होंने कहीं से मेरी दवा की पर्ची देख ली। लेकिन जब मैंने उन्हें कहा कि मुझे इस बारे में बात नहीं करनी तो उन्होंने भी छोड़ दिया। बस उन्होंने मैसेज कर के इतना पूछा, “तुम ठीक तो हो ना?” और इससे मुझे समझ आया कि मेरे आस पास कितना प्यार है।

आज मैं हर्पिज़ के बारे में आराम से बात कर सकती हूँ। मुझे मालूम है कि ये आम है और कोई बड़ी बात नहीं, भले ही शुरू में लगे कि इससे दुनिया पलट जाएगी। हाँ, मैं अभी इतनी सहज नहीं हुई कि अपने नाम के साथ इस बारे में बात करूँ-- धीरे धीरे रे मना । लेकिन मुझे कई बार इसके उछाल आए हैं और मैं उन्हें सम्भालना सीख रही हूँ। एक बात कहूँ-- अगर तुम्हें हर्पिज़ है, या कभी हो जाए तो तुम जिनसे प्यार करते हो, उन्हें सुरक्षित रखना तुम्हारी ज़िम्मेदारी है, भले ही ये मानना मुश्किल हो। मेरे दोस्त बिना हिचकिचाहट मुझे अपनी सिगरेट का कैश या खाना दे देते हैं और मुझे उन्हें ध्यान दिलाना पड़ता है कि उन्हें कुछ दिन ये नहीं करना है।

तो सभी बातों की ये बात है कि सेक्स रोग का मतलब ये नहीं है कि दुनिया ख़त्म हो गई है। ऐसा भले ही लगे कि आस पास के लोग हुक्का पानी बंद कर देंगे और तुम्हें इसके लिए बहुत शर्मिंदा होना चाहिए क्योंकि ये सेक्स से हुआ है और सेक्स और मज़ा तो हमारे समाज में बहुत ख़राब चीज़ है। लेकिन ये दुनिया ख़त्म होने जैसी कोई बात नहीं है। शुरू में लगेगा थोड़ा बहुत बुरा, लेकिन ये बात जान लो कि सेक्स रोग से जुड़ी शर्म ख़त्म होगी। और ये होगा अपनाने और समझदारी से।

तुम यक़ीन मानोगे कि अब मैं इस बारे में हँस भी सकती हूँ?

अगर तुम्हें हाल ही में पता चला है कि तुम्हें कोई ज़िंदगी भर रहने वाला सेक्स रोग है, जैसे हर्पिज़ वैगरा तो याद रखो,  45% दुनिया तुम्हारे जैसी है। और उस 45% में बहुत ही कम लोगों को पता है कि उन्हें ये हुआ भी है। तुम अकेले या गंदे नहीं हो। दुनिया में किसी को भी तुम्हें ऐसा यक़ीन मत कराने देना!aa

ये रही वो किताब जिसने मेरी मदद की: http://herpeshandbook.com/ और मुझे उम्मीद है ये किसी और की भी मदद ज़रूर करेगी।

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