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अगर किसी रिश्ते को टूटते हुए तारे की तरह बिखरने का कोई रंग देना होता, तो मैं उसको नारंगी /टैंजेरिन रंग देती।

छह महीने टेक्स्ट पे बात करने के बाद, ठीक एक साल पहले क्रिस्टमस के मौसम में, मैं उससे पहली बार मिली।  वो मुझसे मिलने आयी।  हम इधर उधर टहले, पार्क में झूले पे बैठे, हमने नपे -तुले ढंग से बातें की।  लेकिन जल्द ही हमारी पहली मुलाक़ात का वो अटपटापन दिसंबर की ढलते शाम के सूरज की आखिरी किरणों जैसा,  पिघल गया।  जब वो जा रही थी, तो मैं उसके पीछे-पीछे,  जीने तक गयी, फिर वो मुड़ी और उसने मेरे गाल चूम लिए।  मुझे थोड़ा झटका सा लगा और मैं सीढ़ियों पे लुड़क ही गयी।  उसने मुझे उठाते हुए माफ़ी मांगी, फिर अचानक, सर पे मंडराता हुआ मेरा कोविड का ख़ौफ़्र,  हवा हो गया ।  एक सेकंड के अंदर,  मेरा मास्क उतर चुका था और मैंने झट से कहा ' भाड़ में जाए ये सब, बस तुम मुझे किस करो ! ' छह महीने से दबी हुई चाह उन टेढ़ी मेढ़ी सीढ़ियों पे चुम्बन और एक दूसरे को टटोलते हुए निकली।  हम बस उन तीस सेकंडों का भरपूर इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे थे।  

अब फिर से क्रिसमस का टाइम है और इस बात को एक साल हो चुका है ।  हम अब बात नहीं करते।  दो दिन पहले, मैंने उसको ये सब ख़त्म करते हुए, एक टेक्स्ट भेजा । आसमान का रंग नारंगी रंग  था।  सूरज मायूसी भरे किन्हीं गड्ढों में डूब रहा था और जाड़े की ठंडी घनी शाम, मेरे अंदर घर कर रही थी ।  

क्वीयर लोगो की दास्ताँ, हमेशा इंस्टाग्राम से शुरू होती है - 

पैंडेमिक  की शुरुआत में, मैं न्यू यॉर्क से घर आयी।  क्या खबर थी कि घर पे रह के गुज़ारे गए वो डेढ़ साल मेरे ज़िन्दगी के सबसे खराब दिन बन जाएंगे। कई ऐसे लोग मर गए, जिनसे मैं प्यार थी।  कई जिनसे मैं प्यार करती थी, अपने गम में कहीं सिकुड़ गए।  और जो चार साल से मेरी गर्लफ्रेंड थी, उसने भी सब कुछ आखिर ख़त्म ही कर दिया।  

उस गम में मैं कहीं खो गयी और सारा समय इंटरनेट पे बिताने लगी।  मैंने एक क्वीयर राइटिंग ग्रुप  ज्वाइन कर लिया था और यही एक चीज़ थी जिसने मुझे खुद से बचाया।  मैं उससे मिली, एक क्वीयर इंस्टाग्राम पेज पे, जहाँ उसने अपनी पहचान के बारे में लिखा था।  फिर वहां से मैंने उसको उसके पर्सनल इंस्टाग्राम पेज पे फॉलो करना शुरू किया।  और फिर जो शुरू हुआ, वो एक तरफ़ा सिलसिला था, प्यास से भर ,अजीब सा , आस पास की कड़वी सच्चाई से कोसो दूर ले जाने वाला ।  मेरे अंदर उसको ले के ज़बरदस्त ठरक थी और मैं सारा टाइम उसके लिए मचलती रहती थी।  योगा  क्लास में साँस लेते और छोड़ते टाइम, मैं कल्पना करती कि वो झुक के, बिल्ली सा, मुझको नीचे चाट रही है ।  

एक दिन बेचैन हो के मैंने उसको DM यानि डायरेक्ट मैसेज कर डाला।  उसने बॉटम्स यानि सेक्स में जो ग्रहण करना, पहल करने से ज़्यादा पसंद करता  है , को ले के कोई पोस्ट किया था और मैंने अचानक बड़ी बेबाक़ होके, उस पोस्ट पे रिप्लाई मार दिया। ‘शक्तिशाली बॉटम्स इधर है ', मैंने लिखा, और उसने कुछ जवाब दिया।  उसका ध्यान पाने के लिए मैंने नाउम्मीद कोशिशें कीं, लेकिन उसने कोई खास ध्यान नहीं दिया।  और यह हमारी पहली एक तरफ़ा लड़ाई का कारण बना ।  मुझे उसका ध्यान न देना, काफी अखरता था।  लेकिन फिर भी मैंने उसका इंस्टाग्राम पेज ऐसे रट लिया, जैसे रात को पढ़ने वाली कोई किताब को ।  

'हर कामुक इच्छा विषमलैंगिक होती  है ' , एक पोस्ट पे उसने लिखा।  'मुझे ऐसे सज़ा दो जैसे मैं स्ट्रेट हूँ' मैंने जवाब में लिखा।  और फिर मैंने खुद को अपने हफ्ते में एक बार होने वाली  राइटिंग क्लास की मीटिंग में, उसके बारे में बात करते पाया। हम शहरों में रहने वाले क्वीयरों की दुनिया होती ही कितनी बड़ी है।  जल्द ही, एक उत्साह के पल में  , मेरी राइटिंग क्लास की दोस्त  Z ने  मुझे बताया, के मैं जिसका ज़िक्र कर रही थी,  उसका अभी अभी ब्रेकअप हुआ है और वो शायद सिंगल है।  

बस फिर क्या ! 

क्वीयरों के लिए डेटिंग एप, हिन्ज, खुदा भी है, रखवाला भी 

उसके शहर से दूर, अपने कमरे में बैठे बैठे, मैंने तुक्का भिड़ाना शुरू किया।  वो अभी अभी सिंगल हुई थी।  सिंगल लोग तो डेटिंग ऍप्स पे जाते ही हैं, है न ? तो मैंने डेटिंग एप्प पे अपना लोकेशन ,उसके शहर का डाल दिया, हालाँकि  मैं महीनो तक वहाँ  कदम नहीं रखने वाली थी।  वो मुझे तुरंत ही दिख गयी ।  मैं उसके प्रोफाइल को निहारती रही।  मुझे पीछे हटना मंज़ूर नहीं था , और न ही पहल करना।  

'ओह हेलो, देखो कौन आया इधर,' उसका मेसेज आया।  और फिर कुछ दिनों तक हमारे बीच में  लगातार शब्दों की नदियां बहीं। '

वो  - मैं बहुत दिनों बाद यहाँ किसी रोमांचक इंसान से मिल रही हूँ।  

मैं:  मैं तुम्हारे शहर अगले कुछ महीनों तक तो नहीं आने वाली।  

वो -  कोई बात नहीं 

मैं : मैं डेट नहीं करती 

वो : मुझे इस बात से कोई दिक्कत नहीं।  मैं भी किसी को  डेट करने की खोज में नहीं हूँ ।  

हम पांच महीने तक टेक्स्ट पे बात करते रहे।  एक दिन वो सैक्स्ट करने लगी ( टेक्स्ट पे सेक्स वाली बातें ) पहले तो मुझे थोड़ा अजीब लगा क्यूंकि मैंने पहले कभी सैक्स्ट नहीं किया था।  लेकिन फिर मैं भी शुरू हो गयी ।  और फिर उस रात मैंने उसको बिना शर्ट के अपनी एक फोटो भेजी , जिसमे मेरे काले बाल मेरे कन्धों पे लहरा रहे थे।  वाक़ई, चाहत एक कभी न बुझने वाली प्यास होती है।  

कुछ महीनों तक हमने लगातार रोज़ बातें की।  कभी ज़बरदस्त सेक्सटिंग होती , कभी हम एक दूसरे का प्यार से हाल पूछते और अपने अतीत और जीवन से जुड़े किस्से और कहानियां सुनाते।  मैंने उसको बताया कि मैं पॉलीएमरस ( एक से ज़्यादा रिश्तें रखने वाली, जिसमें सभी की सहमति होती है ) हूँ और मैं अपने रिश्तों को रोमांटिक और बिना रोमैन्स वाले का नाम देके, नहीं बाँटती।  उसने कहा ये चीज़ तो उसके लिए एकदम नयी थी। वो तो बस एक टाइम पे एक पार्टनर के साथ ही रिश्ते में रहती थी और दोस्ती और प्यार को एक दूसरे से अलग देखती और रखती थी।  लेकिन हमें कौन सा एक दूसरे को डेट करना था।  तो हमारी अलग अलग विचारधरा से क्या ही फर्क पड़ना था, है न ?

जैसे जैसे दिन बीतते गए हम एक दूसरे की रोज़मर्रा की ज़िन्दगियों में शामिल होते गए।  हम अपने पैंडेमिक में बीते दिनों की बात करते, लेकिन ज़्यादातर हम एक दूसरे को वीडियो कॉल करते और चुप चाप अपना अपना काम करते और एक दूसरे से 1500 किलोमीटर दूर बैठे, नज़रें मिलाते और चुराते और मुस्कुराते।  

नीला आसमान , नारंगी रंग नहीं।  

क्वीयर लोगो के जीवन में अकेलापन ही लिखा है।  

मैं काम के लिए एक एकांत, सूनसान सी जगह पे शिफ्ट हो रही थी और वो भी शिफ्ट हो रही थी।  ऐसा होना ही था।  नयी नयी पायी आज़ादी से खुश, मैं उसके शहर आयी।  अपनी पहली डेट की रात हमने एक airbnb  ( रिसोर्ट ) में गुज़ारी।  उसने मुझे एक्वैक एमेज़ी नामक जानी माने लेखक की  किताब दी।  उसके नोट में लिखा कि उसके साथ हुई 2021 की सबसे बढ़िया चीज़ जो थी, वो मैं थी।  वो नहा के, आधी कपड़ो में खड़ी,  ठिठुर रही थी और मैंने उसपे तौलिया लपेटा और उसको थाम लिया और तब तक थामे रखा जब तक उसका कांपना बंद नहीं हुआ।  उसने कहा उसको एक अरसे बाद, गहरी ख़ुशी महसूस हुई ।  

हाँ यार, मुझे भी, मुझे भी।  

उस एकांत जगह पे मेरे घर की हमने दिन भर सफाई करी  और फिर रात भर हमने सेक्स किया।  दूसरे दिन पैसो को ले के हमारे साथ एक बहुत बड़ा फ्रॉड हो गया।  तीसरा दिन हमने पुलिस स्टेशन में फालतू की क्रिमिनल कम्प्लेन लिखाते हुए बिताया।  उसके जाते ही मैं उसका इंतज़ार करने लगी।  किसी के लिए तरसना एक ऐसा साज़ है जिसको बजाते बजाते उँगलियों से खून निकल आता है।  

जल्द ही वो अपनी एक सूनसान सी  जगह पे शिफ़्ट हो  गयी।  वो मुझसे मिलने आती और हम जेंडर , हमारे एक्स , दोस्तों , हमारे काम , ऐसी बातें जिन्होंने हमें तोड़ के रख दिया, और ऐसी, जिनसे हम सँवर गए, इन सब के बारे में बात करते।  हम प्यार -रोमांस को ले के एक दूसरे से टकराते हुए विचारों के बारे में खूब बातें करते।  वो बार बार चोट खाने के बाद भी प्यार -मोहब्बत  में विश्वास रखती थी और मुझे इन चीज़ों में ख़ास विश्वास नहीं था।  वो हमारे मिलने से पहले ही 'प्यार' शब्द का इस्तेमाल करने लगी।  मेरे लिए यह भारी शब्द था।  मेरे लिए इसका अर्थ था प्रतिबद्धता, काम , और धीरे धीरे समय के साथ प्यार करना सीखना।  मैंने भी इस शब्द का इस्तेमाल किया , बाद में ही सही।  हमने बदन और अपने ट्रांस ( वो लोग जिनकी जेंडर पहचान,  जन्म के समय तय किए गए जेंडर पहचान  से मेल नहीं खाती) होने के बारे में बातें कीं । मेरे लिए  ट्रांस होना, अभी नया था।  हमने खूब किस किया और खूब सेक्स किया।  हमने एक दूसरे को बताया कि हम उनसे कितना ज़्यादा प्यार करते हैं ।  

लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया, हमारे बीच हमारा काम आ गया और हमारा एक दूसरे को टेक्स्ट करना और उसका मेरे घर आना, दोनों ही कम हो गए।  इसमें किसी का दोष नहीं था, लेकिन क्या फर्क पड़ता है।  मुझे यह चीज़ परेशान करती थी।  और मैं उसको अक्सर टेक्स्ट करती थी।  उसको जब समय मिलता था , वो जवाब देती थी।  

मैं - क्या इस ब्रहस्पत की शाम को आ सकती हो ? 

वो - नहीं यार सब कुछ फैला हुआ है और मेरे पास बहुत काम है।  

मैं - ओके 

ओके ? ऐसा तो मैंने कभी सोचा ही नहीं था।  मेरी नयी  ज़िन्दगी में तो सब कुछ चकाचक होने वाला था।  और जब मैं अपनी बालकनी में बैठ के खाली मैदान को निहार रही थी, तो आसमान का रंग नारंगी रंग  था।  

पहला महीना ख़त्म होते होते मुझे सब कुछ बहुत ही बेकार लगने लगा।  मेरा जॉब, यह एकांत जगह, और जैसे धीरे- धीरे, हमारे रिश्ते का कायापलट हो रहा था।  मुझे अपने दोस्त याद आने लगे और वो सब कुछ, जो बड़े शहरों में होता है।  मेरी दिनचर्या का हिस्सा था अपने इस टूटे फूटे अप्पार्टमेन्ट में अकेले काम करना ,  घटिया सी बस में  बैठ के अपने ऑफिस जाना और वापिस आ के टॉयलेट सीट पे बैठ के सिगरेट पीना।  एक सिगरेट दो में बदल जाती, दो, तीन में।  और फिर तीन के बाद,  जितनी भी अपने ज़िन्दगी का खालीपन दूर करने के लिए ज़रुरत होतीं।  

ओलिविआ लांग ने अपनी किताब लोनली सिटी  में लिखा है ' अकेलापन भूखे होने जैसा है , वो भी तब, जब आपके आस पास के लोग, दावत के मज़े ले रहे हों '। मैं भूखी थी।  इस अकेलेपन के भूत को मैं जितना भगाने की कोशिश करती, उतना ही खुद को जैसे कोई और, अनजाना सा इंसान बनता हुआ पाती।  

राहत के लिए मैं उसी को ढूंढ़ती।  मैं उससे अक्सर मिलने की विनती करती।  उससे जितना हो पाता, वो करती। लेकिन कुछ बदल गया था।  वो आती, हम बात चीत करते , फिर सेक्स होता था और फिर वो वापिस अपने घर जा के एकदम गायब ही हो जाती थी।  मैं उसको रोज़ टेक्स्ट करती थी, लेकिन बदले में वही आधे अधूरे जवाब मिलते थे वो भी देर से।  मेरे फ़ोन में मेसेजेस की बरसात तभी होती थी जब हम सैक्स्ट करते थे।  वो आती थी , वो चली जाती थी और अचानक हमारा रिश्ता एक सौदा सा लगने लगा।  

मुझे एहसास हुआ कि मैं अपने अकेलेपन से भागने की कोशिश कर रही थी और वो मेरी मंज़िल थी।  मैंने उसको बड़े सोच विचार के एक मेल लिखा।  ' मुझे अच्छा लगता है जब हम साथ होते है ' , मैंने लिखा। ' लेकिन मुझे लगता है जब तुम जाती हो, तो एकदम चली ही जाती हो '। तो मैंने उसको दूरी बनाने को कहा ।ताकि मेरी जो आदत जो हो गयी थी, उसपे हमेशा निर्भर रहने की, उसे मैं सुधार सकूं।  ' और मुझे लगता है , हमे एक दूसरे के साथ सोना बंद कर देना चाहिए।  क्यूँकि मुझे कभी कभी लगता है मेरा बस इस्तेमाल हो रहा है', मैंने आगे लिखा ।

उसने उसी रात मुझे जवाब दिया।  उसने माफ़ी मांगी और अपनी अपनी कमियाँ पहचानीं।  उसने अपने काम को बहुत फैला लिया था और बहुत कुछ चल रहा था उसकी लाइफ में।  उसने अपने मेल में अपनी  कमियों को स्वीकारा था और बहुत प्यार और ईमानदारी से लिखा था कि वो मेरे लिए क्या कर सकती है और क्या नहीं।  ‘मैं इस बात की माफ़ी मांगती हूँ कि मेरे साथ सेक्स कर के तुम्हे लगा कि तुम्हारा इस्तेमाल हो रहा है।  लेकिन मेरी तरफ से सेक्स करते टाइम बस प्यार और चाहत थी' उसने लिखा।  

हमने तय किया कि अगले कुछ महीनो तक हम टेक्स्ट नहीं करेंगे ताकि मुझे जो उसपे  निर्भर रहने की गन्दी आदत लग चुकी थी , वो छूट जाए।  प्यार मोहब्बत और मोनोगैमी ( एक ही पार्टर्नर रखने की प्रथा ) के बारे में जो चीज़ें मुझे खराब लगती थीं , वो सब मैंने अपना अपना ली थीं ।  प्यार मोहब्बत और रिश्तों को ले के जो भी मेरी राजनीती थी ,वो टूटे हुए नल से बहते हुए पानी की तरह बहती चली गयी।  लेकिन एक ही दिन बाद उसका टेक्स्ट आ गया।  कहा कि उसने अपना पूरा दिन मुझपे से अपना ध्यान हटाने की कोशिश की थी , लेकिन उसका दिमाग मेरी ओर ही खींचा चला आया।  और फिर उस पल में मेरी नाज़ुक इक्छाशक्ति टूट के बिखर गयी।  'आयी लव यू ' ' आयी लव यू टू ‘।' 

मेरी सारी लेस्बीएन्स कहाँ हैं?

"थर्टीन वेज़ टू लव' किताब में एक कहानी है, जिसका नाम है "व्हेयर आर ऑल माई लेस्बियनस (यानि मेरी सारीलेस्बीएन्स कहाँ हैं)?"

यहां राइटर अपने ब्रेकअप की बात कर रही है। उसने लेस्बियन रिश्तों की नाज़ुकता, और क्वीयर होने के बेठिकानेपन के लिए जो शब्द इस्तेमाल किये, वो हैं- 'क्वीयर फ्रेज़ीलिटी/ नाज़ुकता। पहली बार जब मैंने इसे पढ़ा, मुझे तो कुछ खास लगा नहीं।  दूसरी बार जब पढ़ा, तब मैं न्यूयॉर्क की जानलेवा सर्दियों के बीच तनहा अकेली थी, क्योंकि क्वीयर डेटिंग की सारी कोशिशें नाकाम हो रही थीं। उस वक़्त भी मुझे उस राइटर की तड़प से चिढ़ हुई, लेकिन थोड़ी सहानुभूति भी हुई। आज की तारीख़ में तो मैं उसे पढ़ने से घबराती हूँ। कमबख़्त 'क्वीयर नाज़ुकता'।

और वैसे भी  मैं किस क़िस्म की लेस्बियन थी?  लेस्बियन होना एक पोलिटिकल पहचान है, जैसा तर्क कवि और निबंधकार एड्रिएन रिच ने ‘कंपल्सरी हेटेरोसेक्सयूएलिटी एंड लेस्बियन एगज़िस्टेंस’/अनिवार्य विषमलैंगिकता और समलैंगिक अस्तित्व  में दिया था। पॉप कल्चर में, लेस्बियनस ढीले दिमाग़ की होती हैं, एक दूसरे पर भयंकर रूप से निर्भर, पागलों जैसे रोमांटिक और देखा जाए तो काफ़ी दयनीय टाइप की होती हैं। तो हाँ, मैं एड्रिएन रिच वाली लेस्बियन थी। कम से कम मुझे तो यही लगता था।

"सारी फीलिंग्स सही हों, ऐसा ज़रूरी नहीं हैं" मैं उससे कहती।  "मुझे ये लेस्बियन वाला जुनून-पलक झपकते ही किसी के साथ कपल वाली फीलिंग- नहीं समझ में आता है। हमको इतना टिपिकल क्यूँ दिखाया जाता है ?"।  "दोस्ती होती है असली दम वाली चीज़। मुझे वो किसी को ऊपर, किसी को नीचे रखने वाली नज़दीकियां बिल्कुल पसन्द नहीं हैं। मुझे रोमांटिक प्यार से घृणा है। बिल्कुल ही खाली और खोखला है। मेरा दिमाग इसका साथ नहीं देता है।"  मैं मुंह बनाकर उसे कह दिया करती थी।

किस्मत का उलट फ़ेर- अब मैं भी एक पॉप कल्चर लेस्बियन हूं।

आग बबूला होने का हक़ 

मैंने और मेरे ज़्यादातर दोस्तों ने वकील की ट्रेनिंग ली है। हम मिलकर सिद्धांतआलोचनात्मक कानूनी पढ़ते हैं, जो क़ानून की कमज़ोरियों पे सही आवाज़ उठाते हैं । सबसे चर्चित टॉपिक अधिकारों की आलोचना ही होती है।

"क्या सेक्स मिल पाने का भी कोई अधिकार/राइट है?" एक फेमस निबंध में दार्शनिक अमिया श्रीनिवासन पूछ बैठती हैं।  रत्ना कपूर ने अपनी किताब ‘जेंडर, अल्टरिटी एंड ह्यूमन राइट्स ‘ में कुछ ऐसा तर्क दिया है, "देखा जाए तो, हमारे अधिकारों से संबंधित जितने भी उदार प्रोजेक्ट हैं, वो लाइफ पोर्ट पर हैं। उनकी जिंदगी। मौत के पहिये पे झूल रही होती है, बिना निदान, उनको केवल आराम देने की कोशिश, अब बेकार है ।" हमारी अदालतों में ऐसी याचिकाओं पर बहस होती है, कि क्वीयर लोगों  (ज्यादातर ये सिस-गे सवर्ण होते हैं)* को शादी के अधिकार से वंचित करना, सही मायनों में समानता की सोच का उल्लंघन करता है । 

*/सिस यानि वो जिनको जन्म के समय जो जेंडर मिले वही उनकी पहचान हो, और गे यानि समलैंगिक 

लेकिन इस सब पर मिट्टी पाओ। ये बताओ कि क्या हमें अपना आग बबूला गुस्सा दिखाने का हक़ है? मतलब कि हाँ, गुस्सा यक़ीनन एक राजनीतिक पैंतरा है। एक शक्तिशाली शस्त्र जो धौंस जमाने वाले साम्राज्यों को उखाड़ फेंक सकता है। लेकिन क्या हमें प्रेमियों के ख़िलाफ़ गुस्सा दिखाने का अधिकार है? ऐसा ग़ुस्सा जो हमारे प्रेमी के सिस्टम को यूँ झटका दे कि वो हमारी चाहतों को मानने (और देने ) पे उतर आए। यानी ग़ुस्से का इस्तेमाल, ना केवल  समझदारी की बातों और थेरेपी वाला रास्ता। तो क्या गुस्से का अधिकार (प्रेमियों के मामले में) गंदी ज़ुबान, मतलबीपन और हानि पहुंचाने के अधिकार के साथ ही आता है? और सबसे ज़रूरी बात तो ये, कि क्या तूफान शांत होने के बाद प्रेमी यक़ीनन हमको  माफ कर देगा, क्या वो अधिकार, इस गारंटी को भी साथ लेकर आता है?

एक ऐसी ही सोच में उलझी रात को, जब मैं दुःख के समुन्दर में डूबी हुई थी, मैंने  अपने इस गुस्से के ख़याली अधिकार को इस्तेमाल करने की ठान ली। तो दरअसल मैंने कभी असली सवाल का जवाब दिया ही नहीं - कि क्या वो मेरी प्रेमिका थी? या मैं उसकी? वैसे भी हम डेटिंग तो कर नहीं रहे थे। उससे कोई फर्क नहीं पड़ा । तो बस, अपने आवेग को मैंने हवा दी और बिना आगाह किये, गुस्से और इल्ज़ाम से भरे लंबे लंबे मैसेज उसे भेज दिए।

सब कुछ तुम्हारे हिसाब से होता है।  सब कुछ।  हम कब बात करेंगे, कैसे बात करेंगे, कितनी बार बात करेंगे। हम कब मिल सकते हैं, कब सेक्स कर सकते हैं। तुम सिर्फ तब लगातार जवाब देती हो, जब हम सेक्स चैट करते हैं। मेरी ज़रूरतें और उम्मीदें कोई मायने नहीं रखती हैं। तुम अपना काम निकलते ही ,हर बार गायब हो जाती हो।

तो अब हथियार खींचकर;  मैंने उस पर हमला कर दिया। जी हां, बात-बात में उस पर दिल तोड़ने का आरोप लगा दिया।

तो क्या हमें प्रेमी पर गुस्सा करने का हक़ है? अब ये तो इस पर निर्भर करता है कि आप ये सवाल किससे कर रहे हैं। एक दोस्त ने मेरे मैसेज पढ़े और एक नापा-तौला "हम्मम" भेज दिया।  "तो, तुम्हें क्या लगता है, इससे क्या होगा?" उसने कहा, "वो तो खुद का बचाव करने में लग जायेगी। तुमको उससे क्या हासिल होगा?"

मेरे दूसरे दोस्त को तो पूरा यकीन है कि हमें अपने प्रेमी पर गुस्सा करने का अधिकार है।  "हाँ, बिल्कुल!" वो बोल पड़ी। "पागल की तरह डांटो, दुष्ट बनो, गुस्सा करो, गंदी गालियां दो।" वैसे भी एक प्रेमी और क्या है? हमारे ग़म का पात्र ही तो है ?

तो इसलिए, मैंने अपने गुस्सा करने के अधिकार का इस्तेमाल किया। और उसने अपने पीछे हटने के अधिकार को। वो गुम हो गई। मुझसे बात करना बंद कर दिया। और हमारे बीच एक घने कोहरे सा जानलेवा सन्नाटा छा गया।  वही नारंगी रंग ।

ख़ुद की खोती शख़्सियत

हफ़्तों की चुप्पी के बाद, जैसे-जैसे मेरा गुस्सा शांत हुआ और बेचैनी बढ़ी, मैंने उसे मैसेज भेजा। मैंने लगातार माफी मांगी। एक और मौका देने की भीख मांगी। "मुझे तुम्हारी नज़दीकी चाहिए। मेरे लिए बस वही ज़रूरी है," मैंने कहा। "और इसके लिए मैं लड़ने को भी तैयार हूं"। उसने टाइम तो लिया, लेकिन फिर धीरे-धीरे हमारी बातचीत शुरू हो गई। हफ्ते भर में मैं होमटाउन जाने वाली थी, पूरे एक महीने के लिए। इसलिए मिलने का प्रोग्राम बना।

जिस रेस्टोरेंट में हम मिले, वो एकदम फूल-टू पहले डेट के लिए सही था। हमारे जैसे लोगों के लिए नहीं, जिनकी बातचीत खत्म होकर वापस शुरू हुई हो। खैर, मैंने माफी मांगी और आगे से बेहतर करने का वादा किया। खाने के बाद हम साथ घर गए, और फिर रातभर सेक्स का कार्यक्रम चला। मेरे ऊपर लेटी हुईं वो, अचानक रुक गई। घबराई हुई शक़्ल बनाई और बोली - "हे भगवान! मुझे तो तुमसे प्यार हो गया है।"

"मैं भी तुमसे प्यार करती हूँ।" मेरा ज़वाब दिया। "लेकिन मैं तो अक्सर अपने दोस्तों से भी प्यार कर बैठती हूँ।"  मैंने आगे बोला। सुनकर कुछ पल वो चुपचाप बैठी रही। फिर सेक्स की भूख... और वो मुझे वहाँ खा गयी। वैसे तो सारी चाहतें राजनीतिक होती हैं। लेकिन कभी-कभी, जब लोग आपसे कहते हैं कि वो आपसे प्यार करते हैं, तो उस पल को एक राजनीतिक प्रोजेक्ट बनाकर ख़राब करने की चाहत को दबा लेना चाहिए। "मैं भी तुमसे प्यार करती हूँ" बस इतना ही काफी था। खैर, फिर कुछ दिनों में, मैं उड़ चली, 1500 किलोमीटर दूर। एक बार फिर हम एक दूसरे से अलग हो गए। उसके दांतों के निशान मेरे कॉलरबोन्स पर, ठीक जैसे मन में घर कर गयी उसकी यादें... मैं उन यादों से चिपटी रही, हालाँकि वो धीरे धीरे, धुँधलाने लगी थीं ।

क्या लेबल से इसका स्वाद बेहतर हो जाता है?

अभी तक मेरे साथ हो क्या? तो ठीक है, वो डेढ़ महीने की दूरी की बोरिंग बातें छोड़ देते हैं। बस इतना कहना काफी होगा कि हमने एक-दूसरे को तोड़ दिया।  इस हद तक, जितना मैंने सोचा भी नहीं था। बहस हुई, दर्द मिला, गलत समझा गया। निराशा, गुस्से और थकावट का एक कभी ना खत्म होने वाला एक चक्र। एक दिन, ऐसी ही लड़ाई के बाद, मैंने उसे इंस्टाग्राम पर ब्लॉक कर दिया और अनफॉलो भी कर दिया। इस पड़ाव पर, मैं बिना किसी हिचकिचाहट के, इस रिश्ते को खराब करने की ज़िम्मेदारी लेती हूँ।  मैं बस अपना अकेलापन दूर करने के लिए उसे डेट नहीं करना चाहती थी। हालाँकि, देखा जाए तो जो दुनिया दो लोगों के लिए बनी है, उसमें अकेलापन दूर करने के लिए ही तो लोग डेट करते हैं, हैं ना ?

जो भी हुआ, वो उसके बारे में आमने-सामने बैठकर बात करना चाहती थी।  लेकिन जब मैं लौटी, तब वो उसके लिए तैयार नहीं थी। ऐसे हालात में, मैं कहीं की नहीं रही। डेढ़ महीने से भी ज्यादा हो गया, और उसकी तरफ से बात करने की कोई पहल नहीं हुई। उसके खोने के एहसास से मैं हर रोज़ थोड़ा-थोड़ा खुद में सिमटती चली गयी। ऐसा कुछ भी नहीं था जो मुझे काम करने को प्रेरित करे। मुझे इस मझधार से नफ़रत थी। मेरा हेल्थ बिगड़ने लगा। मेरा डिप्रेशन और मेरी बेचैनी, दोनों चारगुना होकर लौटे। एक टाइम था जब मैं अपने अकेलेपन से खुश थी। लेकिन अब, दबे सुर में ही सही पर मैं मानती हूँ कि मुझे किसी साथी के सहारे की ज़रूरत थी। "मैं तुमसे प्यार करती हूँ, और मैं सब कुछ वापस ठीक करने के लिए तैयार हूँ।" मैं यही कहना चाहती थी।  रोज़ सुबह उठते ही बाथरूम में जाकर उल्टी करती हूँ। फिर वही बोरिंग पीली बस लेकर काम पर जाती हूँ। फिर घर आने के बाद, सिगरेट के कश और उसके व्हाट्सएप्प मैसेज चेक करती । वो कभी ऑनलाइन, कभी ऑफ़लाइन, फिर ऑनलाइन, फिर ऑफ़लाइन। लेकिन बिल्कुल खामोश।

एक दिन, मैंने अपने फ़ोन से हमारे सारे व्हाट्सएप मैसेज उड़ा दिए। लेकिन उसकी एक कॉपी खुद को ईमेल कर दी। यानी आज मेरे ईमेल पर 100 पेज के ऊपर मैसेज आर्काइव में पड़े हैं। वो मैसेज जो दो समलैंगिकों ने एक दूसरे को लगभग एक साल के अंदर भेजे थे। वो टूटकर गिरने, हारने वाले मैसेज।

और फिर, एक दिन उसने अपनी चुप्पी तोड़ी। हमारे बीच कैसा रिश्ता हो सकता था, उसके शर्तों की बिसात पर ।  उन चीजों की एक चेकलिस्ट जो वो दे  सकती थी, और उनकी, जो वो नहीं दे सकती थी। और लंबा-चौड़ा लेख, ये बतलाते हुए कि मैंने किस किस तरह से उसे चोट पहुँचाई थी । मैंने उससे माफ़ी मांगी और बिना दूसरी बार सोचे, उसके चेकलिस्ट को हाँ कह दी।  मैं उसे वापस पाना चाहती थी, और हाँ, मैंने अपनी गलतियों को माना भी। लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में, मैं खुद को मानो खो गयी थी।  मेरी चोट कोई मायने नहीं रखती थी।  मेरी शिकायतें कहीं बंद, धूल फांक रही थीं।

आखिरकार, वो मुझसे मिलने आई और मेरे यहाँ ही रात बिताई। उसका बर्ताव ऐसा था जैसे हमारे बीच कुछ हुआ ही न हो। मेरी मांसपेशियों को पुराने दिन याद आ गए (जिसे आजकल मसल मेमोरी/ मासपेशियों की याद बोलते हैं) और वो उसकी ओर किस करने को बढ़े। बड़ी मुश्किल से मैंने उन्हें और अपने आप को रोका। वो मुझे गले लगाती रही, मेरा हाथ लेकर किस करने लगी। और भी इधर-उधर छुआ। बस, फिर मैं भी बह चली। और फिर वही पुराना पैटर्न दोहराया जाने लगा।

इस सब के बावज़ूद कुछ तो था जो बदल गया था। मानो उसका कोई एक हिस्सा कटकर अलग हो गया हो। लेकिन मैंने तो गुस्सा करने का अधिकार खो दिया था। उस दिन जोर से ये बोलकर कि 'मुझे तो कभी-कभी अपने दोस्तों से भी प्यार हो जाता है', मैं गलती कर बैठी थी। अब वापस वैसा कुछ नहीं होना चाहिए। इसलिए, उसके साथ मैं भी बहुत बचा-बचा कर चलने लगी। उसकी हर शर्त मानती गई। जब भी उसको मैसेज करती, लास्ट में एक बचाव वाली लाइन डालती- "तुमको जवाब देने की ज़रूरत नहीं है" / "इंटरनेट/ बैंडविड्थ या तुम्हारा मन करे, तभी जवाब दो" / "खुद पर पहले ध्यान दो फिर कुछ और"।

चाहत खो चुकी थी।  भूख - मर चुकी थी। नज़दीकियां - नदारद थी।  कोशिशें - एकतरफा।  नंगी तस्वीरें - ज़वाब में शिष्टता से भरे मैसेज। मेरे लंबे-लंबे मैसेज के बदले एक दो लाइन के ज़वाब। सेक्स - के बाद, एक बार फिर, गायब हो जाने की आदत।

हम साथ नहीं हैं (We Ain’t Together, गाने में राजकुमारी पूछती है "हम कहते हैं, 'हम एक दूसरे से प्यार करते हैं', लेकिन हम एक साथ नहीं हैं।  क्या तुम्हें लगता है कि रिश्तों को लेबल देने से उनका स्वाद बेहतर हो जाता है?"।

वो बोलती है कि काश उस दिन मैंने प्यार के इज़हार के साथ आखिर में अपनी विशेष टिप्पणी ना दी होती। ये नहीं बोला होता कि मैं तो अपने दोस्तों को भी भी प्यार करती हूं। "मेरे लिए तो दोनों हालात एक जैसे नहीं हैं।" उसने कहा।  "मैं भी अपने दोस्तों से प्यार करती हूँ लेकिन वो वैसा प्यार नहीं है"।  "लेकिन इससे परेशान होने की ज़रूरत ही क्या है कि कभी-कभी मुझे अपने दोस्तों से प्यार हो जाता है," मैंने उससे पूछा।  "अगर मैं तुमको वो सब दे रही हूँ जो मेरे पार्टनर की हैसियत से तुमको मिलना चाहिए, तो फिर दिक्कत क्या है?"  "दिक्कत है।" वो बोली। मैंने मन ही मन सोचा- अगर ऐसा है तो फिर क्वीयर होने का मतलब ही क्या है! हमें तो स्ट्रेट्स से बेहतर होना चाहिए? क्या क्वीयर होने का ये मतलब नहीं कि हम अपनी नज़दीकी रिश्तों को और अच्छे से संभाल सकते हैं? क्वीयर्स चिल्ला- चिल्ला के कहते हैं, "जेंडर बाइनरी (बस २ खाँचों वाला मामला ) नहीं है, लेकिन प्यार है?"

"मुझे नहीं लगता हमारा डेटिंग करना सही रहेगा। मुझे नहीं लगता तुम मुझे देखते भी हो।” एक मैसेज में जब मैंने उसे हमारी डेटिंग के बारे में सोचने को कहा, तो उसने ये जवाब दिया। एक दूसरी बातचीत के दौरान उसने ऐलान किया, "मुझे नहीं लगता मैं तुम्हारी ज़रूरतें पूरी कर सकती हूँ।" फिर एक दूसरी रात, "मुझे लगता है अब तुम मुझे पहले से बेहतर देख पाती हो।"  अरे! बिल्कुल। क्योंकि तीन महीने तक मैंने इसी की प्रैक्टिस तो की थी। उसे उसी तरह प्यार करने की, जैसे वो चाहती थी। मैसेज भी उसकी शर्तों पर, उसके हिसाब से। मिलना भी उसके मन से। मैंने उससे रिश्ता बचाने के लिए सब किया, तब तक, जब तक कि मैं खुद गायब हो गई।

"मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा। तुम हमेशा अलग-अलग बातें करती हो।" एक दिन मैंने उसे ये कह डाला। “मैं ये नहीं कह रही हूँ कि हमें डेटिंग करनी ही चाहिए। लेकिन मुझे ये नहीं पता कि इन हालातों की असली वज़ह क्या है। क्या ये इसलिए है क्योंकि मैं तुमको 'देखती' नहीं हूँ। या इसलिए कि क्योंकि मुझे कभी-कभी अपने दोस्तों से प्यार हो जाता है? या इसलिए क्योंकि तुमको लगता है कि तुम मेरी ज़रूरतें पूरी नहीं कर सकती?" असल बात आख़िर है क्या? मैं अंदर ही अंदर चिल्ला रही थी । "ये सारी वजहें एक साथ भी सच हो सकती हैं।" उसका ये कहना है ।

और फिर एक रात वो मेरे पास आई, उसने बताया कि कैसे उसके और एक खूबसूरत क्वीयर ('टी') के बीच रोमांटिक फ़ीलिंग पनपने लगी थी। वो हमारी आखिरी मुलाकात थी। उसने बताया कि उन्होंने एक दूसरे से इस बारे में बात तो की, लेकिन डेट ना करने का फैसला किया। उनको लगा कि उससे उनकी दोस्ती को खतरा हो सकता है। वो मानसिक रूप से किसी रोमांटिक रिश्ते में उलझने के लिए तैयार नहीं थे।  मेरा एक हिस्सा मानो मर गया - "मुझे अपनाओ, मुझे चुनो" मैं भीख माँगना चाहती थी। लेकिन मैं चुप रही। वो रसोई के चारों और घूम-घूम के टी के बारे में बताती रही, और मैं सुनती रही। "मुझे खतरा महसूस हो रहा है।"  मैंने उससे बस इतना ही कहा।  लेकिन फिर वहीं रुक गई।

फिर जब हम एक दूसरे के बगल में लेटे थे, मैंने कहा, "मुझे तुम्हें छोड़ना पड़ेगा। लेकिन इससे पहले मुझे ये जानना है कि तुम मुझसे अब प्यार नहीं करती हो- सच है?"

"मुझे तुमसे प्यार हुआ जरूर था, लेकिन उस तरह नहीं। मैं हमेशा पीछे हटती रही क्योंकि तुमने साफ-साफ कह दिया था कि तुम डेट नहीं करना चाहती।" उसने कहा।

"ठीक है, तो इसे थोड़ा और साफ तरीके से बोलते हैं। तुम्हें अब मुझसे प्यार नहीं है, है ना?"। "मैं तुमसे प्यार करती हूँ, लेकिन मैं तुम्हारे प्यार में दीवानी नहीं हूँ।"

हम दोनों चुप हो गए। "मुझे लगता है मैं अब भी तुम्हारे लिए गमगीन हूँ।" उसने कहा। अब इसका क्या मतलब था भई! पूछना ज़रूरी था। वो अजीब से चुप्पी के बीच बेमतलब के जवाब दे रही थी। तो बस, मैंने खुद को आज़ाद कर दिया और उसके सामने रो पड़ी। "तो तुम आज भी मेरे साथ सोती क्यों हो?"  मैंने पूछा।  "क्योंकि मैं तुम्हें पसंद करती हूँ, और तुमसे आकर्षित भी हूं।" वो बोली।

"क्योंकि मैं तुम्हें पसंद करती हूँ, और तुमसे आकर्षित भी हूं।"

ये शब्द बार-बार मेरे सामने आ रहे थे। मुझे तोड़ रहे थे। मुझे ऐसा लगा जैसे मुझे इस्तेमाल करके फेंका जा रहा हो, बदलने और भूलने लायक समझा जा रहा हो।  इस सबके बावज़ूद, मैंने उस रात, उसपे सवार होके, उसके साथ पलंग तोड़ सेक्स किय। वो मुझे कभी टॉप में नहीं आने देती थी। और जबकि मुझे ऊपर और नीचे दोनों पोज़िशन पसंद थे, वो हमेशा ऊपर हो रहती थी। लेकिन उस रात उसकी पसंद से मुझे घंटा लेना-देना था। इसलिए मैंने उसे बैठने को कहा। फिर उसके ऊपर चढ़ी और तब तक उसको रगड़ा जब तक हांफ-हांफ कर उसका दम नहीं निकल गया।

वो चली गई और उसका इंस्टाग्राम, टी के साथ वाले पोस्ट से भर गया। मैं उन दोनों को फॉलो कर रही थी। और सच में दोनों सातवें आसमान पे थे। खुलकर पब्लिक में प्यार- मुहब्बत की बातें। "ये मेरी फ़ेवरेट तस्वीर है," टी ने उनके एक साथ वाले एक पोस्ट पर कमेंट किया था।  "अरे, तुम मेरी फ़ेवरेट हो!"  उसने जवाब दिया था। वैसे भी 2021 तो था नहीं कि उसकी फ़ेवरेट मैं ही बनी रहती। 2022 आ चुका था। उसकी पसंद बदल चुकी थी।

एक दुःख के दर्द भारी रात, उसने 1 बजे, टी की डेस्क पे बैठी एक फ़ोटो पोस्ट की। मेरा दिल भर आया। मैंने अपनी पुरानी गर्लफ़्रेंड को फ़ोन लगाया और रो पड़ी।  "वो इतनी जल्दी सब भूलकर आगे कैसे बढ़ सकती है?"  मैंने सिसकते-सिसकते कहा। "क्या मुझे भूलना इतना आसान है? क्या मेरे साथ रहना इतना मुश्किल है?"  क्या ये हमारी किस्मत में ख़ुद चुका है- कि हम पर उजड़ी हुई रियासत की बेबस कहानियां ही बनेंगी?

कुछ आख़िरी नोट्स

वैसे आपको बता दूं, मैंने अपनी नौकरी छोड़ दी और घर वापस जाने का फैसला किया ।

व्हाट्सएप;  12 दिसंबर, 2022

 मैं: “मुझे हां या ना में जवाब दो, ठीक है।  जब मैं (तुम्हारे शहर) वापस आऊंगी, तो क्या कोई उम्मीद है कि हम एक दूसरे को फिर से मौका दें?"

उसका जवाब: "..मुझे सच में नहीं पता। और मुझे लगता है कि फ़िलहाल मैं किसी रोमांटिक रिश्ते में उलझना या ऐसा कोई रिश्ता पाना नहीं चाहती हूं। यही सच है।"

टैंजेरिन

व्हाट्सएप;  14 दिसंबर, 2022

 मैं: "मेरी बात तुम्हें बुरी लग सकती है लेकिन अगर टी के साथ तुम्हारा रिश्ता आगे बढ़ रहा है, तो मुझे बता दो। मुश्किल है तुम्हें ऐसे आगे बढ़ते देखना, क्योंकि तुमसे दूरी का घाव मेरे लिए अभी भी भरा ही है।"  

उसका जवाब: "जहाँ तक टी का संबंध है, वो सबसे ज़्यादा एक अज़ीज़ दोस्त है।"

सबसे ज़्यादा …

टैंजेरिन

व्हाट्सएप;  23 दिसंबर, 2022;  दोपहर 12:09।

मेरे जाने से पहले एक बार मिलने की ख़्वाईश पर उसका ज़वाब, "मैं जल्दी नहीं निकल पाऊंगी, सच में। अभी भी काम बाकी है और थकान से ऐसा लग रहा जैसे फीवर होने वाला है ।।  मुझे अभी भी (काम) पूरा करना है और मुझे थकावट से बुखार आ रहा है।

 मैं: "तो क्या किसी और दिन?"

 टैंजेरिन।

व्हाट्सएप;  23 दिसंबर, 2022;  दोपहर 1:51

मैं: “मुझे ये रिश्ता खत्म करना है।  पिछले साल जो सब हुआ तो देखकर, मुझे नहीं लगता कि हमारा एक साथ कोई भविष्य है। यहां तक कि दोस्ती के मामले में भी नहीं।  इसलिए, मैं इसे खत्म करती हूँ।"

उसका ज़वाब, “ठीक है। मुझे इसपर कोई बहस नहीं करनी।"

टैंजेरिन।

27 दिसंबर, रात 8:00 बजे, एयरपोर्ट

फ्लाइट की घोषणा: "फ्लाइट XXX जो (शहर) जाने वाली है, उसकी बोर्डिंग अब शुरू होगी।..... सीट नंबर वाले यात्री...

व्हाट्सएप;  23 दिसंबर - 27 दिसंबर, रात 8 बजे।

मैं:

वो:

टैंजेरिन, वही नारंगी रंग।

अंतिम सार

यह मेरी कहानी है। हमारी नहीं। उसकी भी नहीं।

बायो : नैम एक नॉन-बाइनरी (किसी एक जेंडर की पहचान नहीं रखने वाली) क्वीयर वकील हैं। वो एक अकादमिक हैं और एक बिल्ली की पैरेंट भी । कानून की दुनिया के बाहर, वो अकेलेपन, नज़दीकियों और क्वीयर होने के बारे में सोचती, पढ़ती और लिखती हैं।

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