छोटी ही थी मैं, जब हम उत्तर प्रदेश के बहुत -छोटे -ना -माने -जाने -वाले शहर, जो कि हमारा होम-टाउन था, वहां शिफ्ट हो गए। मुम्बई की डिफेंस सर्विस वाली सरकारी नौकरी से जल्दी रिटायरमेंट लेने के बाद, मेरे पापा को यही सही लगा। मुम्बई मेट्रोपोलिस की चमक-दमक और हलचल से उठकर अचानक उत्तर प्रदेश के एक पिछड़ी सोच वाले शहर में आ जाना, हम बच्चों के लिए बड़ा कल्चरल झटका था। ऐसा लगा जैसे हम मुंबई के उस आज़ाद और आत्मविश्वास से भरे माहौल से सीधे एक ऐसी जगह आ गए थे, जहां हर बात पे रोकने-टोकने, राय बनाने वाला समाज, हमको खुलकर सांस तक नहीं लेने दे रहा था। मुझे तो पानी से निकल आयी तड़पती मछली जैसा फ़ील हुआ।
उस शहर में होली के दिन, स्कर्ट पहनकर निकलने का मतलब था, सेक्शुअल हमले को खुला न्यौता देना। मुझे ये बात पता नहीं थी। 8-10 लड़कों के एक झुंड ने पीछे से मुझपे हमला किया। शर्ट और स्कर्ट पर पड़े सिल्वर रंग के हैंडप्रिंट के साथ मैं घर पहुंची। वो दाग मेरे दबे हुए आंसुओं से सौ गुना ज्यादा चिल्ला-चिल्लाकर मेरे ऊपर हुए हमले की कहानी बयां कर रहे थे। सबकुछ काफी दर्दनाक और भयानक था। उस दिन के बाद से, मुझे ना ही सिर्फ होली से, बल्कि वो लोग जो इस त्योहार का मज़ा लेते हैं, उन सबसे भी नफ़रत हो गई है।
इस सब के बावज़ूद, उसी दौरान, ना जाने कैसे मेरे सेक्शुअल जागरूकता ने दरवाज़े पे दस्तक दी। यानी बाहर जो भी मैं झेल रही थी, वो अंदर चल रही चीजों से बिल्कुल अलग थी।
मुझे याद है कैसे छुप-छुपकर मैं घर में बड़े लोगों के पास रखी, सेक्सी, रस भरी किताबें पढ़ती थी। खासकर मां की 'मनोहर कहानियाँ' और वो उत्तेजित करने वाली तस्वीरों से भरी बंगाली मैगज़ीन्स। उनमें कुछ ऐसे विज्ञापन भी होते थे, जिसमें जाने क्या -क्या खुले आम दिखाया जाता था, मुझे तो आज तक वो समझ नहीं आए । मैंने अंकल के पास पड़ी 'द डे ऑफ द ज़ेकाल' /The Day of the Jackal और हेरोल्ड रॉबिन्स के दूसरे नॉवेल भी निपटा लिए। हां, पापा की 'द सेंशुअस वुमन' /The Sensuous Woman पे मेरी नज़र काफी साल बाद पड़ी। फिर मिल्स एंड बून्स/Mills and Boons के नॉवेल्स ने और चार चांद लगा दिए। हमारे शहर में, सेकंड हैंड किताबों रखने वाली एक छोटी सी दुकान के पास ये रोमांस नॉवल मिलती थीं । इन चटकारे, दिल को छू जाने वाली नॉवेल्स से मैं पेट भर लिया करती थी।
इन किताबों ने मेरे अंदर कई 'नापाक चाहतें' पैदा कर दीं, जिनको पूरा करने के लिए, मुझे उस पिघल देने वाली गर्मी में भी, अपने छोटे वाशरूम के अंदर जाना पड़ता था। वहां मैं अपनी रोमांस और रसभरी उत्तेजना में खो जाती थी। अपने उस टाइम के क्रश की कल्पना करके, ख़्याली पुलाव पका लेती थी, जहां वो मिल्स एंड बून्स के गुलाबी शबाबी स्टाइल में, मेरे अंदर समाता चला जाता था।
इसी बीच, मां ने पापा को कहा कि मेरी ये नॉवेल पढ़ने वाली नई भूख, कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है। बस पापा ने अपनी ज़िम्मेदारी समझकर, मुझे उपदेश देना शुरू कर दिया। ये बार बार बताने लगे कि मिल्स एंड बून्स की ख़ूबसूरत या बारबरा कार्टलैंड की कभी न खत्म होने वाली रोमांस की दुनिया, असली दुनिया से कितनी अलग है। कुछ दबे हुए शब्दों में उन्होंने ये भी बयान किया कि मेरे जांघों के बीच का वो गहना मुझे उस लाखों में एक, यानी मेरे होने वाले पति के लिए संभाल कर रखना है। उनको क्या पता कि वो जांघों के बीच का गहना मुझे पहले ही अपने आनंद की चमक से अंधा कर चुका था । मतलब, मां भी सोचती होगी कि मेरा बेचारा टेडी बेयर सुसु की तरह क्यों महकता था। और उस वक़्त तो मैं ग्रेड 1 में ही थी। हम्म!
ये खुद के शरीर को जानना-समझना इतना आसान भी नहीं था। ऐसा लगता था कि कोई गलती कर रही हूँ। ख़ासकर क्योंकि सेक्शुअल एब्यूज़/ दुराचार की काफी घटनाएं झेल चुकी थी। देखा जाए तो जब भी सेक्शुअल लालसा जागी, साथ ही साथ एक शर्म और अपराध की घुटन भी महसूस हुई।
उस शहर में तो कई बार मैंने सेक्सुअल दुराचार का सामना किया। लेकिन शुरुआत तो मुम्बई में ही हो गई थी, जब मैं मुश्किल से प्राइमरी स्कूल वाली ऐज की रही होऊँगी । एक बार, मैं गाते-गुनगुनाते सीढ़ियों से उतरकर नीचे किराने की दुकान में टॉफ़ी लेने जा रही थी। तभी ड्राइवर अंकल से टकराई। वो अंकल कभी-कभी हम बच्चों को जीप में भरकर सोसाइटी काम्प्लेक्स में राइड कराया करते थे। मेरे पापा के सहयोगी को ऑफिस ले जाने की अपनी दिन की ड्यूटी पे लगने से पहले ।
लेकिन उस दिन उसने मेरे शरीर और मन, दोनों को चोट पहुंचाई। दूसरा हादसा तब हुआ जब मैं अपनी फैमिली के साथ ट्रेन से कहीं जा रही थी। बाथरूम से बाहर आते समय, कम्पार्टमेंट के कॉरिडोर के उस छोटे से एरिया में, एक मूंछ वाले व्यक्ति ने मुझे गलत तरीके से छुआ। मैं तब ग्रेड 7 में ही थी। और तब से ये जो रिजर्व्ड डब्बों में दिन वाले यात्री आते-जाते हैं, उनसे थोड़ा दूर ही रहती हूँ। मज़ा देने वाला सेक्स तो मानो एक बहुत दूर का ख़्वाब था। इतना धुँधला, कि मैं उसकी साफ़ साफ़ कल्पना भी नहीं कर पाती थी ।
लेकिन, हर चीज़ की एक हद होती है। मेरे जैसी डरपोक ने भी एक दिन सोच लिया कि चुपचाप सहने का टाइम अब गया। भीड़ भरे बाज़ार में जब एक गुस्ताख़ बंदे ने मुझे यहाँ वहाँ हाथ लगाया, मैंने मुड़कर उसका पीछा किया और उसके पिछवाड़े पे जोर से दे मारा। लेकिन वो इतने सभ्य क़िस्म के कपड़े पहना था, कि आस-पास खड़े लोगों को लगा कि उनको तो उस भले इंसान को मेरी ‘बेबुनियाद’ मार से बचाना चाहिए!
जैसे-जैसे टाइम बीता, मैं और एहतियात बरतने लगी। बैगी कपड़े, नाक पे कसा चश्मा- एक कड़क स्कूल टीचर की तरह। जो लोग लापरवाह होकर फ़्लर्ट करते थे या कि लड़कों से दोस्ती बनाए रखते थे, उनके बारे में मैंने अपनी कड़क राय बनानी शुरु कर दी। मुझे लड़कों पर बिल्कुल भरोसा नहीं था। इसलिए, मैंने खुद को समझा लिया कि ना मैं सुंदर हूँ और ना ही स्मार्ट। मेरे बारे में कुछ भी दिलचस्प या मज़ेदार भी नहीं। तो कोई लड़का भला मुझपे ध्यान क्यों देगा।
वो भी लाइफ का एकदम कंफ्यूसिंग मोड़ था। एक तरफ तो मैं अपने बदन को लेकर काफी सचेत थी। मुझे उसमें सब गड़बड़ ही लगता था। एक तो मैं लंबी थी, कंधे चौड़े थे, और ब्रेस्ट इतने छोटे थे कि लड़की की तरह कोई मुझे देखे भी तो कैसे। और वहीं दूसरी तरफ, जब भी घर से बाहर निकलती थी, लगभग हर बार घटिया तरह से छेड़ी जाती थी। मुझमें सुंदरता और आकर्षण था या नहीं? या क्या मेरे अंदर कोई ऐसा बुरा एक्स-फैक्टर था जो ये लोगों को हिंट देता था कि इसको आसानी से छेड़ा जा सकता है?
इस सबके बावज़ूद, ना जाने कैसे, मैं दिल से फिर भी एक बेवकूफ रोमांटिक लड़की थी। मुझे तब भी यकीन था कि एक दिन मेरी शादी होगी और फिर मुझे प्यार होगा, या फिर मैं प्यार करना सीख जाऊंगी।
अगर मैं याद करूँ कि शुरू शुरू में, शादी को लेकर मेरे मन में क्या कल्पना थी, तो पापा की वो सलाह याद आती है कि अपनी जांघों के बीच छुपा गहना अपने होने वाले पति के लिए संभाल कर रखूं। जब मेरी सबसे करीबी दोस्त ने ये 'प्यारी चिट्ठी' देखी, तो इस बोल्ड और खरी सलाह को पढ़के उसको तो धक्का ही लग गया। मुझे लगता है कि लाइफ में आगे जाकर पापा जरूर मुझे शादी और असली जिंदगी के बारे में और समझाते। लेकिन समुद्र की एक भयानक दुर्घटना में उनकी मौत हो गई। और, मेरे पास रहे केवल गहने को बचाने वाली वो सलाह, उन छेड़-छाड़ की यादों और पढ़ी हुई उन रस भरी किताबों के अंदर छिपी कामुकता ।
इनमें से किसी ने भी मुझे शादी के बाद की फिज़िकल सच्चाइयों के बारे में आगाह नहीं किया था। मुझे सच का पता कहीं नहीं चला - ना ही उन चोरी-छिपे पढ़ी किताबों से, ना ही रिप्रोडक्टिव सिस्टम की बायोलॉजी क्लास से और ना ही दबे छिपे अपने उत्तेजित डोबर्मन की एनाटोमी की स्टडी से- । सेक्स दर्दनाक भी हो सकता है, इस सच का पता मुझे मेरे हनीमून पे चला।
मुझे दुख भी हुआ, गुस्सा भी आया, कि किसी ने इस दर्द के बारे में पहले क्यों नहीं बताया। लेकिन उन दिनों तो करीबी रिश्तेदार और यहां तक कि डॉक्टर भी वैजिनिस्मस (पेनेट्रेशन के समय योनी की मांशपेशियों का टाइट हो जाना) और डिस्पेर्यूनिया (पेनेट्रेशन होने से शारीरिक या मानसिक वज़ह से दर्द महसूस होना) जैसे कई ज़रूरी मुद्दों पर चुप्पी साधे रहते थे।
शुक्र है, मेरा हनीमून पूरी तरह से बेकार नहीं गया। मेरा पति ने भी पहले कभी सेक्स नहीं किया था। किसी की अच्छी सलाह पर उसने मुझे कोक में जिन मिलाकर पिला दिया। उससे मैं थोड़ा रिलैक्स तो हुई। लेकिन हां, पूरी रात बड़बड़ाती रही, बकवास करती रही। बोलना भले ही आसान हो गया था लेकिन वो टाइट मांसपेशियां तब भी नरम ना पड़ी।
बहुत टाइम बाद मुझे मेरे ठंडे पड़ जाने की वज़ह पता चली। मेरे साथ हुए सेक्शुअल असाल्ट, अपमान, और ऐसी कई चीजों का बोझ इतना ज्यादा हो चुका था कि मैं इस जगह आ पहुंची थी। ये लिखते हुए भी आंखों में आंसू आ रहे हैं। याद आ रहा है ,मेरे पति का कोमल दिल, जिसने कभी मुझे सेक्स के लिए मजबूर नहीं किया। मेरी सारी सेक्शुअल सनक को प्यार से झेला, सहानुभूति दिखाई। मेरा ये उलझनों भरा सफर ना जाने कितनी सदियों से चलता चला आ रहा है। और ये सब यहां लिखकर मैं इस बोझ को उतारने की कोशिश कर रही हूँ।
हनीमून पे हुआ ये सब जैसे काफी नहीं था- मेरी शादीशुदा जिंदगी की सही शुरुआत में एक और अड़चन आ गयी। मेरा भला चाहने वाली मेरी माँ ने सोचा, कि शादी की विधियों के दौरान, मैं माहवारी की परेशानियों से बच सकूं, तो बेहतर होगा। इसलिये वो मेरे लिये कुछ दवाईयां लाई, जिससे मेरे पीरियड्स की तारीख़ आगे बढ़ सके। इस दवाई ने मेरे पीरियड्स के पूरे साईकल को ही बिगाड़ दिया। मुझे चक्कर भी आने लगे थे। इसी बीच मेरे मॉडर्न सोच वाले गर्ल्स कॉलेज के कुछ दोस्तों ने मुझे एक नए प्रोडक्ट के बारे में बताया। जो थी 'टुडे' पेसरी (वो टेबलेट जो वैज़ाईना में डालने से घुल जाती थी और सेक्स में प्रोटेक्शन का दावा करती है)।
तो ये माना जाता था, कि अगर आपकी दूसरी प्रोटेक्शन फेल हो जाये या काम ना आये, तो ये नुस्ख़ा आपको अनचाही 'दुर्घटनाओं' यानी गर्भ से बचा लेगा। .
उस वक़्त 'टुडे' इंडियन मार्केट में नया-नया आया था और सिर्फ मेल ऑर्डर के जरिए ही उपलब्ध था। मुझे तो लगता है कि मैं उनके पहले कुछ ग्राहकों में से ही एक थी।
उस पेसरी को इस्तेमाल करके मैंने आग में पैर डाल लिए थे। तो जब तक मैं हिमाचल के एक दूरदराज़ शहर, जहां मेरे पति की पोस्टिंग थी, पहुंची, मेरे प्राइवेट अंगों में परेशानियां शुरू हो चुकी थीं। पहले तो मैं चुप रही। मुझे लगा ये सब मेरे रूटीन में हुई गड़बड़ और सफ़र के दौरान हुई परेशानियों की वज़ह से हुआ है। मुझे ये भी लगा कि शायद सिंथेटिक्स से मुझे रिएक्शन हो… शायद हमारे द्वारा इस्तेमाल किए गए कंडोम के रबर से।
मेरे पति के मुझे घर लाने के दो दिन बाद ही, वो फील्ड ड्यूटी के लिये चले गये। अगले पन्द्रह दिन, मैं एक अनजान वातावरण में बिल्कुल अकेली थी। जहाँ मैं केवल अपनी मकानमालकिन और जो ग्राउंड फ्लोर में रहने वाली पड़ोसी को जानती थी। जब मुझे पहली बार UTI(यूरिनरी ट्रैक इंफेक्शन- पेशाब की नली में संक्रमण ) हुआ था, तो ऐसा लगा था जैसे दर्द के मारे मेरी मौत ही हो जानी थी। मुझे समझ नहीं आया कि मैं अपना असहनीय दर्द की दास्तान कैसे और किस के साथ बाँटू। मेरे पति के लौटने पर हम दोनों ने एक भाड़े के स्कूटर लिया। जिसका हर पुर्जा हिलता था। दो घन्टे की उबड़ खाबड़ रोड पर दर्द भरा सफर तय करते हुए, हम जिले की एकमात्र लेडी डॉक्टर के पास पहुँचे। वहाँ पहुँच के पता चला, घर पर पूजा होने के कारण वो बिना बताए छुट्टी पर थी।
फिर भी हम करीब दो घन्टे तक उसके वापस आने का इंतज़ार करते रहे। उसके बाद वापस लौटकर हम उस दूर पहाड़ी गांव के एकमात्र मर्द डॉक्टर को दिखाने के लिए गए। वो बस स्टैंड के पास बैठता था। क्लिनिक के नाम पर एक टिन शेड था। कभी भी जाओ, करीब बीस मरीज़ों की लाइन मिलती थी । पर क्या जादू था उसकी दवाई में, उसकी दवा लेते ही मेरा दर्द उड़न छू हो गया। वो सीधा सादा दिखने वाला डॉक्टर, मेरे लिए फ़रिश्ता साबित हुआ ।
कुछ महीने बाद मैं अपने भाई की शादी के लिये मायके गयी। वहॉं मेरी कई सहेलियों ने भी 'टुडे' पेसरी(गर्भ निरोधक की गोली जो योनि के अंदर डाली जाती है ) के दर्द भरे अनुभव के बारे में बताया। तब से मैंने निर्णय लिया कि मैं शादी करने जा रही औरतों को सेक्स से पहले जननांगों की सफ़ाई के बारे में जागरूक कराऊंगी। मैंने ऐसा किया भी । योनि द्वारा लिये जाने वाले गर्भनिरोधक के बारे में भी बताया। और साथ ही UTI के बारे में भी आगाह किया, कि उसके लक्षण को कैसे पहचानें और क्या करें ।
सच बोलूं तो शादी के मामले में, मैं बस अपनी माँ की दी हुई सलाह पे चलना चाह रही थी :
एक आदर्श बहु बन कर रहना, एक संस्कारी बहु जो किसी को शिकायत का मौका ना दे ताकि मेरी विधवा माँ की परवरिश पर कोई उँगली ना उठा पाये। एक आम इंडियन शादी में लड़की को क्या चाहिये- एक अच्छे इज़्ज़तदार घर का लड़का हो, जो अच्छा कमाता हो और लड़की की सारी बेसिक ज़रूरतों को पूरा कर सके। लड़की को बस अपनी ज़िन्दगी अपने पति के हिसाब से जीने की आदत डाल लेनी चाहिये। और उसके हर हुक्म को सर आँखो पर रखना चाहिए ।
सच कहूँ, मुझे कभी इससे ज़्यादा पाने की कोई उम्मीद ना थी, ना ही मुझे लगता था कि मैं इसके लायक हूँ ।
सेक्स और सैटिस्फैक्शन, शादी शुदा औरतों के लिये मायने नहीं रखते थे। मेरे पति ने वो सब ट्राई किया जो वो उसने एडल्ट किताबों से सीखा था। पर याद नहीं कि उसके साथ सेक्स करते हुए, मुझे कभी भी सेक्सी मस्ती वाली फ़ीलिंग आयी ।
एक बार जब मैं एक आदर्श बीवी की तरह अपने बिस्तर पे लेटे पति से प्यार करने की कोशिश में जुटी हुई थी, मेरी नज़र उस के चहरे पे पड़ी। वो टकटकी बांधे दीवार पर लगे कैलेंडर को देख रहा था । तब मुझे समझ आया कि वो उस कैलेंडर में छपी लड़की को देखकर फंतासी कर रहा था। मुझे बहुत दुख हुआ, गुस्सा आया, झटका भी लगा। पर सबसे ज़्यादा मुझे अंदर से कमज़ोर होने का अहसास हुआ । मैं हर हाल में उस लकड़ी नुमा मिनी स्कर्ट वाली कैलेंडर गर्ल से सुंदर थी। और तो और, वो तो यूँ ही एक बर्तन वाले दुकान के कैलेंडर पे चढ़ी हुई थी। जबकि मेरे पति के साथ उस समय, बिस्तर पर मैं थी। पर उसका ध्यान मुझ पर होने की बजाये, उस लड़की पर था।
मुझे धक्कालगा । मैंने सोचा: आदमियों को उत्तेजित होने के लिये, उनसे प्यार करने वाली औरत की ज़रूरत नहीं । उनका घोड़ा तो किसी भी चीज़ को देखकर किसी भी टाइम हिनहिनाने लगता है। दोस्त, रिश्तेदार, पड़ोसी, फ़िल्म स्टार या पोर्न स्टार, कोई भी। अब जा कर मुझे ‘तंबू में बम्बू ‘का मतलब समझ आया(स्कूल में हम ये कहकर खी -खी करते थे )। अब लगा कि ये सेक्स की सही परिभाषा है । लगा कि सेक्स में प्यार की कोई जगह ना थी ।
इतना समय बीत गया था, हमारी शादी को, मैंने एक बार भी, अपने पति के साथ चरम सुख का अनुभव नहीं किया था।
हाँ, एक बार याद है जब मैंने ओर्गासम का स्वाद चखा था। तब तक मैं दो बच्चों की माँ बन चुकी थी। मैं एक खटारा एम्बेसडर कार में बैठ कर हिल स्टेशन जा रही थी। थकी हुई थी और अपने ससुराल वालों पर भयंकर ग़ुस्सा थी । वो पांच लोग की टोली, हमारे छोटे से फ्लैट में छुट्टियाँ मनाने आ धमकी थी । मेरा दूध पीटा बच्चा उन दिनों मेरी छाती ही नहीं छोड़ता था, मैं बहुत थकी हुई थी। पर उनको उम्मीद थी कि उनकी खातिरदारी में कोई कमी ना हो। बस इसी गुस्से के बीच, मेरा ध्यान बेहूदे से कैब ड्राइवर पर गया। और मैं उसके बारे में फंतासी करने लगी। और एक ज़बरदस्त ओर्गासम का सुख मिला । हालाँकि किसी को मेरे इस ‘जुर्म’ का पता नहीं चला। पर मुझे ख़ुद बहुत घिन हुई। प्यार और सेक्स सही में एक नहीं होते हैं।
जैसे साल बीतते गए, मैं अपनी शादी में सेक्स को स्पेशल गिफ़्ट की तरह इस्तेमाल करने लगी, ये एक क़िस्म का कंट्रोल ही था। ये तो नहीं बता सकती कि कब शुरु हुआ पर ये तब हुआ जब मैं घरेलू काम काज और अपनी दो लाडली बेटियों के पीछे दौड़ते भागते, बुरी तरह से थक चुकी थी। मुझे हर वक़्त लगता कि मर्द प्रधान समाज की कठोर आखें, हर वक़्त मुझे जज करती रहती थीं । तब मैंने ये पाया कि सेक्स ही मेरा अकेला हथियार है: उसके लिये ना बोलना, या उसके किसी रूप को मना कर देना, मेरे हाथों में था। अपने आप पे कॉन्फ़िडेन्स बहुत धीरे धीरे आया, ये बहुत मुश्किल सफ़र था, पर धीरे धीरे मैं अपने रिश्ते में अपने आप को और अपनी बात को, और जगह दिलाने लगी थी ।
मैं अपनी बेटियों को लेकर हद से ज़्यादा प्रोटेक्टिव रही। मैं नहीं चाहती थी कि जो बुरे अनुभव मैंने सहे, वो भी उससे गुज़रें। इसीलिए मैं उन्हें अच्छे टच और बुरे टच के बारे में ख़ूब बताती। पर मुझे अब ये चिंता होती है कि कहीं मैंने उनके ज़हन में, किसी पे विश्वास करना और शारीरिक सुख पाना- ऐसी बातों के लिए जगह ही नहीं छोड़ी हो ? मैं अक्सर इस बारे में सोचती हूँ कि क्या मेरी वजह से ही उनमें से किसी का भी कोई भी रिलेशनशिप, लम्बा नहीं चला?'
ज़िन्दगी में भले ही हमें निराशाओं का सामना करना पड़े, पर अगर उन निराशाओं का सामना करने के लिये कोई साथी होना बहुत अहम है । शारीरिक सुख से भले ही हमें आत्मसुख ना मिले पर छोटे छोटे आनंद के पल तो मिलते हैं, जो बड़ी ताक़त भी देते हैं । बढ़ती कमर और पेट, कम नींद, थकान और कम सेक्स ड्राइव होने के बावजूद, अपन नियमित रूप से, सेक्स का थोड़ा आनंद लेके, अपना संतुलन बनाए रखते हैं । ताकि दिमाग का दही ना हो जाये। और हाँ, इस सब में अगर बॉडी मसाज भी मिल जाये, तो क्या बात है। यानी आगे जाके पता चलता है कि हो सकता है कि अमर प्रेम कहानी में ज़रूरी नहीं कि राजकुमार अपनी राजकुमारी के साथ घोड़े पे सवार होके, ढलते सूरज और नारंगी आसमान की तरफ़ बढ़ गया हो । ज़्यादा सम्भावना ऐसी होगी कि दोनों ही नदी किनारे पेड़ की छांव तले, पानी की लहरों की आवाज़ सुनते हुए, सो गए। और झील के कमल की मदहोश करने वाली ख़ुशबू उनपे छा गयी ।आहा ! कहानी का ऐसा अंत कलेजे को बड़ी ठंडक देगा ।
मैं चाहती हूँ कि मेरी बेटियों की ज़िंदगी मुझ जैसी ना हो। कोई परी कथा ना सही ,पर एक ऐसी ज़िन्दगी हो जहाँ उनकी रोमांटिक और सेक्शुअल हसरतें पूरी हों, उनको और गहरा साथ मिले ।
बायो:
बहुत तेज़ रंग वाली तो नहीं, पर एक कॉंफिडेंट, मुँहफट तितली बन कर उड़ने से पहले, मिडास ने काफ़ी समय ककून / कच्चे रेशम के कोवे में बिताया। अब वो चाहती हैं कि इस तितली के रूप में वो लोगों के जीवन को छू के, उसपे थोड़ी सुनहरी किरणें बरसाएँ। आख़िर उसके नाम का अर्थ भी वही है, कि जिसके छूने से, सब कुछ सोना बन जाता है ।
अनुवाद: नेहा, प्राचिर कुमार