मैं दस साल की थी जब एक दिन हमारी गोदरेज अलमारी के सबसे ऊपरी खाने पर, माँ की खुशबूदार साड़ियों के बीच मुझे नैंसी फ्राइडे की किताब- "माई सीक्रेट गार्डेन' मिली। उनकी कामुक, उत्तेजित करने वाली राइटिंग ने मुझे हिला कर रख दिया। फिर क्या! नैन्सी फ्राइडे उसी वक़्त से मेरी सीक्रेट देवी बन गई।
मुझे तो इसका अंदाजा भी नहीं था कि लोग सेक्स कपड़े उतारकर करते हैं। उनकी किताब से ही ये बात मुझे पता चली। मैंने तो बस बॉलीवुड फिल्मों में उत्तेजना से भरे कुछ सीन देखे हैं- जिसमें सेक्स के नाम पर बॉडी को दूसरे की बॉडी से रगड़ना, पेट पे किस करना या जांघों को सहलाना दिखाते हैं।
नैन्सी फ्राइडे ने मुझे अलग चीज़ें सिखाई। तो बस, अगले कुछ महीने, छुपकर वो किताब अलमारी से निकालना और सेक्स के रसीले रूप का आनंद लेना - मेरा रूटीन बन गया था। मुझे ये भी पता चल गया कि मैं अपनी धड़कती हुई जाँघों, अपने मुँह, अपने कान और यहाँ तक कि अपने घने काले लंबे बालों का इस्तेमाल करके भी आनंद उठा सकती हूँ। मुझे इस रोमांच और गुदगुदी से ऐसा सुरूर छाया कि मैं अपनी कल्पनाओं को, कार्टून जैसे सरल चित्रों में, पेपर पे उतारने लगी।
एक दिन पापा ने ये डूडल देख लिए, और हंगामा मच गया। जिस दिन पापा ने ये चित्र खोज निकाले, वो दिन नर्क था। मेरे दराज़ और अलमारियों की जाँच की गई, और उस किताब को ज़ब्त कर लिया गया। उसके बाद वो किताब मुझे कभी दिखी ही नहीं।
लेकिन नैन्सी फ्राइडे ने जो खुशियां मुझ पर बरसाई थीं, वो सब मेरे ज़हन में रह गयीं। रात को मैं अपने दिमाग को टटोलती, और किताब में जो कुछ पढ़ा था, उसे याद करने की कोशिश करती। मुझे याद आती थी कुछ ऐसी बातें - जैसे कि कैसे एक रेशमी दुपट्टे को अपने और अपने पार्टनर के जाँघों के बीच रखकर उत्तेजना पैदा की जा सकती थी। कैसे अपने लंबे बालों के साथ भी खेल खेला जा सकता है। कैसे जब आप एड़ी पर बैठे हो, तो आपका पार्टनर आपके स्तनों को पीछे से हथेली में भरकर, आपके कानों को प्यार से चाट सकता है। शायद मेरा किशोर मन उस समय यही सब समझ पाया था। लेकिन सही मायने में ये मेरी सेक्शुअल खोज़ की बस एक शुरुआत थी। सिर्फ अपनी योनी में उंगली डालने की उस सनसनाहट वाली फीलिंग से मैं काफी मस्त हो जाती थी। मैं एक्टिव रूप से हस्तमैथुन करने लगी थी। और मेरा दौड़ता हुआ दिमाग़ मुझे ऐसे सेक्सी कल्पनाओं में डुबाता जिनमें कभी तीन या शायद पाँच लोग साथ सेक्स में शामिल हों !
हालांकि, मेरे कई गहरे हस्तमैथुन वाले सेशन में मुझे ओर्गास्म नहीं हुआ। शायद इसलिए क्योंकि तब तक मुझे उस मायावी जगह - बोले तो जी-स्पॉट या भगशेफ - के इलाके का पूरा आईडिया नहीं था।
17 साल की उम्र में मैंने पहली बार एक लड़के को किस किया। हालाँकि मेरे स्कूल के एक सीनियर के साथ मेरी शारीरिक रूप से नज़दीकियां थीं, और हमने उसके बेडरूम में कई खूबसूरत दोपहरें साथ बिताईं थी, एक-दूसरे के शरीर को चूमते और सहलाते हुए! लेकिन हमने कभी भेदक सेक्स (पेनिट्रेशन) नहीं किया। उस लड़के को इश्कबाज़ माना जाता था, और मेरी बेस्ट फ्रेंड के साथ उसका अफेयर भी रह चुका था। मुझे लगा मैं उस पर भरोसा नहीं कर सकती थी, और इसलिए 'अगला कदम' बढाने के लिए तैयार नहीं थी।
फिर, मैं एक गर्ल्स कॉलेज चली गयी। इसलिए, लड़कों से मिलने की ज़्यादा गुंजाइश ही नहीं थी।
बाद में जब मैंने जॉब करना शुरू किया, तो सारी एनर्जी अपने काम में लगा दी। मुझे दो आदमी पसंद आये थे, लेकिन उन दोनों की गर्लफ्रैंड थी। इसलिए फिर वही हुआ। मैं उन दोनों में से किसी के साथ भी नज़दीकियां बढ़ाने के लिए तैयार नहीं थी। ऐसी कई मुलाक़ातें हुईं, जिनमें मेरे अंदर की आग दहकी। लेकिन मैं सतर्क रही। मुझे हमेशा यही लगा कि कोई मर्द मुझे इस्तेमाल करके ना छोड़ दे। हमें बताया गया था कि मर्द अक्सर ऐसा करते हैं। मुझे उस दर्द से बचना था।
खैर, आख़िरकार, जब मैं 24 साल की हुई, तो मुझे मेरे पहले ओर्गास्म का सुख मिला। खुद से, खुद के साथ।
पर ये सेक्सी लेख पढ़के नहीं, बल्कि पाओलो कोएल्हो की नॉवेल '11 मिनट' पढ़ने के कुछ टाइम बाद ही हुआ। 15 साल की उम्र में, मारिया - उस कहानी की नायिका - ने एक सुनहरी दोपहर को ओर्गास्म की खोज की। यानि पहली बार ओर्गास्म का सुख महसूस किया। उस वक़्त घर पर कोई नहीं था। वो कहती है:
“ओर्गासम!
वो कुछ ऐसा था जैसे वो स्वर्ग की तरफ उड़ती जा रही थी। और फिर धीरे-धीरे पैराशूटिंग करते नीचे धरती पर आ गई। शरीर पसीने से भीग गया था। लेकिन उसे एक पूरेपन का एहसास हो रहा था। तृप्त, स्फूर्ति से भरी! अगर सेक्स भी ऐसा होता है, तो वाह, क्या कहना! उन कामुक मैगज़ीन्स जैसे नहीं, जिनमें सब आनंद की बात करते हैं, लेकिन उनके चहरे देखो तो लगता है उन्हें दर्द हो रहा है। और हां, सेक्स में ऐसे मर्द की भी क्या ज़रूरत, जो औरत का शरीर तो पसन्द करता हो, लेकिन उसकी भावनाओं के लिए उसके पास टाइम ना हो। वो खुद भी तो आनंद पा सकती है। तो बस, उसने एक बार और कोशिश की। इस बार एक फेमस मूवी स्टार की कल्पना करते हुए, कि वो उसको छू रहा था। और एक बार फिर वो स्वर्ग की सैर कर आई। फिर पैरशूट से उतरी। जैसे ही वो वापस तीसरी बार उतरने वाली थी, उसकी माँ घर आ गई।”
इसे पढ़ने के बाद, मुझे लगा जैसे वहां जो भी लिखा था, वो तो सेक्स की किसी और ही दुनिया के बारे में था। मैं तो उस दुनिया को जानती ही नहीं थी। उस समय तक, मुझे यही लगता था कि मीडिया और फिल्मों में सेक्स बस एक मैकेनिकल तरीके से दिखाया जाता था। औरतों को उसमें एक चीज़ की तरह पेश किया जाता था। मुझे वो ओर्गास्म खुद से महसूस करना था। मैं बेचैन थी, लेकिन समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर ये होगा कैसे!
फिर, मुझे याद आया कि घर में एक पुरानी मसाज करने वाली मशीन पड़ी हुई थी। एक फ़ैमिली-फ्रेंड विदेश से गिफ़्ट लाए थे। उसकी कई सारी फिटिंग्स में से एक थी, जो पीनिस की तरह दिखती थी। और अब जाकर मुझे समझ में आया कि क्यों! मैंने इसे स्टोरेज से बाहर निकाला, ‘पीनिस’ की फिटिंग को सेट किया, प्लग में लगाया और नीचे लेट गई।
कुछ ही सेकंड के अंदर, मैं मारिया की तरह स्वर्ग जा पहुंची। बंद आंखों के अंदर मानो इंद्रधनुष तैर रहे थे। मैं ज़मीन पर बैठी, उस आनंद से चिल्ला रही थी। तब से, वो मसाजर मेरा सबसे अच्छा दोस्त बन गया। मैंने उसे बिस्तर के नीचे छिपा दिया था। मैं उसे रात में चुपके से निकालती, प्लग लगाती, और एक ही बार में, सीधे स्वर्ग पहुंच जाती।
हाँ, लेकिन एक बार, जब काम के लिए बाहर जाना पड़ा, तब कहीं जाकर मैंने खुद को रिलैक्स करके, अपने हाथों का इस्तेमाल करना सीखा। उस वक़्त मैं मिल्स एंड बून्स की एक नॉवेल पढ़ रही थी। मैं खुद को वो किताब वाला सुख देना चाहती थी। इस बात से तो मैं एकदम ख़ुश हो गयी कि सिर्फ़ अपने हाथों का इस्तेमाल कर, मैं आनंद की इतनी ऊंचाइयों तक पहुंच सकती थी। ऐसा लग रहा था जैसे मेरी बॉडी का एक हिस्सा दूसरे हिस्से से बात कर रहा हो। इतना नेचुरल!
लेकिन मुझे अपने हाथों का इस्तेमाल खुद को खुश करने के लिए तभी करना पसंद था, जब पूरी बाज़ी मेरी हो । मुझे याद है, एक बार मेरे मंगेतर और मैंने फोन पर सेक्स करने की कोशिश की। वो मुझे बता रहा था कि मैं किस तरह अपनी योनि को छूकर खुद को खुश करूं। लेकिन ये पूरी तरह से फ्लॉप हुआ। शायद इसलिए कि मुझे ये गवारा ही नहीं था कि मुझे कोई मर्द ये बताए कि ख़ुद के सुख देने वाले अंगों के साथ मुझे क्या करना चाहिए! ना, ये मुझसे हज़म न हुआ। उसने तो मेरी इस 'नाकामी' का सारा इल्ज़ाम मेरे वाइब्रेटर, और उसके साथ मैं जो हरकतें करती थी, उसको दे दिया। मेरी प्यारी निर्दोष मशीन!
हालांकि मैंने फिर भी अपने उसी मंगेतर से शादी कर ली। मुझे पता था कि हमारी अच्छी नहीं जमने वाली, लेकिन शादी के लिए बहुत सामाजिक दबाव था। और जब मैंने उसके साथ 'असली' सेक्स किया, तब भी सब कुछ इतना अच्छा ना था। ये 'असली' सेक्स मुझे बेहद दर्दनाक लगा। मुझे लगता है कि मैं उस वक़्त मुझे वैजिनिसमस (vaginismus- योनि का संकुचित होना) था। उस वजह से मेरे योनि की मांसपेशियां सेक्स के दौरान सुख पाने के लिए रिलैक्स नहीं कर पाई।
हमारी शादी ज़्यादा दिन चल नहीं पाई। एक साल के अंदर ही हम अलग हो गए। और मैं आगे की पढ़ाई करने के लिए यूरोप चली गयी।
और फिर फ्रांस में मैं एक आदमी से मिली। वो आकर्षक था, उम्र में मुझसे काफी बड़ा! उस समय वो अपने पार्टनर से अलग होने के दौर से गुज़र रहा था। हमारी तुरंत ही जम गई। मुझे नहीं पता कि इसकी वजह फ्रांस की हवा थी, उस इंसान के बात करने का तरीका या कुछ और! जिस दिन हम पहली बार मिले, उसी दिन हमने सेक्स किया। और उसके बाद हम महीनों तक सेक्स करते रहे।
लाइफ में पहली बार मुझे ऐसा लगा कि सेक्स नज़दीकियों से भरा था। और, मुझे होश उड़ाने वाले कई ओर्गास्म एक साथ हुए।
मैंने कभी किसी दूसरे मर्द के साथ ऐसा फील नहीं किया था। वैसे तो इसके बाद भी मैंने कई रिश्ते बनाए, लेकिन वैसी नज़दीकी, वो एक बार में कई ओर्गास्म का होना, फिर कभी न मिला।
लेकिन शुक्र है कि पिछले कुछ सालों में, मैंने खुद से ओर्गास्म का सुख पाना सीख लिया है। जी-स्पॉट, लेबिया, योनी और भगशेफ के बारे में काफी कुछ पढ़ने के बाद, मैंने उस सारी जानकारी को खुद को जानने, समझने और आनंद दिलाने में इस्तेमाल किया है। आज, मैं गर्व से कह सकती हूं कि किसी तन्हा अकेली रात (या दिन) में मैं खुद को जन्नत तक और उसके आगे तक भी ले जा सकती हूँ।
बायो
मीमॉ एक किताबी कीड़ा है और एक भाषा की क़ायल। दस देश घूमने के बाद उसे पता चला कि आनंद का असली रहस्य तो खुद के ही भीतर है।