जिस रात मैंने मदहोशी की हालत में किसी की तरफ आकर्षित होने का इकरार किया, उसी रात मेरा बलात्कार हुआ। ना, मेरा बलात्कारी और मेरा क्रश, दोनों एक नहीं थे। दोनों के साथ बिल्कुल अलग समीकरण थे। लेकिन आगे जाकर जैसे इस अंतर का कुछ मतलब ही नहीं रहा।
ये मेरे लाइफ़ में बस दूसरी बार है जब मैं आधी रात के बाद, एक ऐसे इंसान के साथ बाहर हूं, जिसपर मुझे तगड़ा क़्रश है। पिछली बार सब कुछ ज़्यादा मज़ेदार था। उस टाइम, दोनों साइड से चाहतें थीं, और एक थोड़ा बेढंगा सा, मीठा और मस्त मिलन हुआ था। आज वाले सिलसिले में, हम एक दूसरे की बांहें थामे चल रहे हैं, हंसी-मज़ाक कर रहे हैं, मुझे लगता है थोड़ा फ़्लर्ट भी कर रहे हैं। और फिर मैं उसे किस करने की कोशिश करती हूँ तो मुझे झिड़क दिया जाता है। "ये सही नहीं है," मुझे ऐसा कहा जाता है। "हम साथ काम करते हैं।" और फिर, "तुम्हें अब घर जाना चाहिए।"
मैं ये सोचना चाहती हूँ कि मैंने इस झिड़क को काफी शालीनता से लिया। क्योंकि उसके बाद भी मैं पूरी तरह से खुश हूँ। हाँ, ठीक वैसे जैसे एक नशे में नाजायज़ तरीक़े से धुत्त 21 साल की लड़की हो सकती है। वो लड़की जिसे नशे में आने वाले खतरे का बिलकुल अंदाज़ा ना हो ।
एक दूसरा सहकर्मी, जो दिखने में तो शराफ़त की मूरत है, मुझे घर छोड़ने के लिए तैयार हो जाता है। और वो सफ़र जो दरअसल आधे घंटे का है, तीन घंटे में पूरा होता है। एक हारा हुआ दिल और दूसरी तरफ से हिंसा, ये दोनों अनुभव इतने आस पास हुए कि सेक्स और चाहत के बारे में एक साथ सोच पाना ही बंद हो गया। साथ साथ सेक्स और मस्ती या सेक्स और सुख के बारे में एक साथ सोच पाना! सेक्स के ज़रिए सुख पाना, इस सोच को वापस हासिल कर पाने का स्ट्रगल, आज तक जारी है।
हालाँकि, इस कहानी का अंत सुखद है। तो इसलिए मैं उन दो से कुछ ज्यादा सालों (इनको मैं कभी कभी आकाल वाले साल भी कहती हूँ) की अंधेरी गुमनाम गलियों में नहीं जाऊंगी। ये कहना काफी रहेगा कि सेक्शुअल हमले के उस वाक़ये के बाद जो पहाड़ जैसी परेशानियां मैंने झेली, वो थीं- खुद से घृणा, डिप्रेशन, आत्महत्या की सोच, पागलपन, इमोशनल अलगाव, खुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश, शारीरिक कमज़ोरी, दर्दनाक हादसे के बाद का तनाव! सच कहूँ तो ये मैंने आधा ही बताया है। उतना ही जितना कि सामने वाले को आसानी से समझ में आ पाए।
फ़िलहाल इस पूरे मामले में मुझे जिस बात का सबसे ज्यादा अफ़सोस है, वो ये कि उन सालों में मैं कितना और किस क्वालिटी का सेक्स कर सकती थी, ये जान पाने का कोई ज़रिया ही नहीं है। किसी ना हुए अच्छे वाक़ये की कल्पना करके इस बात समझने की गुंजाइश नहीं, क्यूँकि ऐसी कोई कल्पना भी ना थी। तो फिर इस घाटे का हिसाब निकाल के अब उसे पूरा करना, सम्भव नहीं।
बस बीते दिनों की कुछ याद आने लायक़ रवानियाँ रहीं, जिनसे आने वाले कल को उम्मीद के रंगों से रंगा जा सकता था। जैसे कि वो एक वक़्त जब मैं किसी से पूरी तरह से चिपक कर सोई थी क्योंकि पिज़्ज़ा ने आधे बिस्तर पर कब्जा कर रखा था। या वो टाइम जब सेक्स का सुख जब चढ़ने लगा था और मैं उस जोश में बिस्तर से गिर गई थी, दारू पी के सेक्स करने का नतीजा। उस नाश्ते की याद जो 'एस' ने मेरे लिए बनाया था , या 'बी' की जादूई उँगलियों की याद, जो पियानो बजाके चंचलता सीखी थीं। या फिर वो अश्लील शब्दों की फुहार जो मेरी ज़बान से दौड़ते हुए निकलती थी, जिनको सुनके गाल लाल हो जाते थे और जो केवल 'ए' ही मेरे अंदर से निकाल पाता था।
तो अब तक अगर मेरी इन बातों से ये साफ नहीं हो रहा, तो बता दूं कि मेरे दिमाग की वायरिंग हिलने और पूरी बॉडी में विस्फ़ोट होने से पहले, मुझे सेक्स से बेहद प्यार था। मुझे इस मज़ा देने और लेने के अतरंगी खूबसूरत व्यापार से सुख मिलता था। वैसे ये एक सट्टा बाजार था। यहां क्लाइमेक्स मिलने की कोई गारंटी नहीं थी, कम से कम कुछ लोगों के लिए। लेकिन फिर भी बहुत रोमांचक था। खुद को जानने समझने के कभी न खत्म होने वाले सफर जैसा।
अचानक इस हादसे के बाद, मुझे ये समझना पड़ा कि अब खुद के साथ एक नए सिरे से सेक्शुअल रिश्ता बनाना पड़ेगा। इस सब के पहले वो टाइम था जब मैं सेक्शुअल तरीके से उत्तेजित रहा करती थी, यहां तक कि कई लोगों से सेक्स करने की चाह भी रखती थी। पर अब मेरा दिल पुराने टाइप का एक बना ठना रिश्ता चाहता था। मैं एक संस्कारी, एक पार्टनर वाली सोच/मोनोगैमी की शरण चाहती थी क्यूँकि उस रिश्ते को जायज़ समझा जाता है । शायद लगता था कि इसके ज़रिए मैं अपनी शर्म की भावना से उबर जाऊँगी। हालाँकि मैं ये नहीं मानना चाहती थी कि मुझमें शर्म की फ़ीलिंग किस हद तक समा गयी थी। मैं एक पुराने टाइप के रिश्ते से ये साबित करना चाहती थी कि मैं कोई टूटी-फूटी चीज़ नहीं थी, बल्कि इस जिस्म के बाज़ार में मेरा भी कुछ दाम था। यानी उस एक रात ने मेरी सोच को पूरा ही बदल दिया था। अब मेरा एक नया चेहरा था, देखा जाए तो मैंने बड़ा घिसा पिटा, सामान्य सा रूप अपनाया था…यानी वो, जो औरत होते हुए भी औरत होने से घृणा करे।
तो अब आगे चलते हैं…इस शहर के चमक दमक वाले वीकेंड के एक चुपचाप से संडे की तरफ! मैं इस बेहद आकर्षक इंसान के सामने बैठी हूँ। और वो एकटक, एकदम इत्मीनान से, विस्मित होकर मुझे लगातार देखे जा रहा है। उसकी बेबाकी पर मैं हैरान हूं! उससे आंख भी नहीं मिला पाती हूँ। दरअसल अपनी चाहतों को कुबूल करने का कॉन्फिडेंस कुछ दिनों से रहा ही नहीं। लेकिन इस केमिस्ट्री से बच पाना जैसे मुश्किल हो। मेरे रौंगटे यूं खड़े हो गए, तन बदन में ऐसी बिजली दौड़ी, जिसका अनुभव मैं भूल चूकी थी। लेकिन इस सबसे एक बात साफ थी, मुझे पता चल गया था कि ये शाम कैसे खत्म होने वाली है। हाँ, शुरुआत कैसे होगी, ये पता नहीं था।
हमने सेक्स किया। हर तरह की नर्मी बरती, हर बंधन तोड़े। एकदम तबाही वाली वासना। लगा जैसे दो फेमिनिस्ट/नारीवादी सेक्स कर रहे हों।
और फिर, वही पुरानी कहानी। एक तरफ तो सेक्स ने सब कुछ बदल दिया और दूसरी तरफ मानो कुछ भी नहीं। सुबह अभी भी जल्दी हुआ करेगी, हमारे जंगली दहकते बदन की झलक पाने की चाहत लिए। लेकिन देख पाएगी बस कुछ आलस से भरे किस। बिछड़ने की कगार पर दम तोड़ती कोशिश। अलविदा तो कहना होगा। इससे पहले कि ज़ुबान से वादे उछले, उम्मीदें सीने में उमड़ेंगी और दम तोड़ देंगी।
लेकिन, इस बार, जब हमारे मस्ती में डूबने पर सूरज उगता है, मुझे एक बार फिर एहसास हो जाता है कि बदन से जुड़ी चाहतें क्या होती हैं, कैसी होती हैं। मैं जान जाऊंगी कि मेरी गर्दन की नसों में, मेरे पैर की उंगलियों की मालिश में, मेरा सुख छुपा है। अजब सी बात है, जैसे इस चंद घंटों की घटना ने मुझे नया रूप दे दिया हो।
या, शायद, ऐसा नहीं था। शायद, वो कुछ घंटे जो मैंने बिताए, वो किसी थेरेपिस्ट केआर्डर पर बिताए। आईने से घूरता नग्न शरीर शायद किसी खेल का पात्र था। शायद उस बदन के हर घुमाव को नापने में, उस पेट की हर उठती-गिरती लपेट में, उन एक दूसरे से मेल ना खाते ब्रेस्ट में, जाँघों के गहरे रंग में, कूल्हों पर खिंचाव के निशान में, यानि कि बार-बार किये उस बदन के मोआइने में, मैंने अपने बदन में वापस बस पाने के लिए एक रास्ता बनाया । अपने क़रीब आयी । ये नज़दीकी प्यार में बदल सकती है। मुझे लगता है कि सेक्स टॉयज के साथ मेरे कई व्यर्थ, निराशाजनक और आख़िर में मज़ेदार प्रयोग के प्रति भी मैं एहसानमंद हूं। दरअसल हर उस चीज़ के प्रति जिससे मुझे आनंद मिला।
सेक्स लाइफ़ में अपने दूसरे प्रवेश के लिए, मैं अपने पार्ट्नर को श्रेय नहीं देती हूँ। हालांकि मुझे उससे सेक्स करके सुख मिला, और एक बार से ज़्यादा। हाँ, मैं उसको इस बात का श्रेय ज़रूर देती हूँ कि उसकी वजह से मुझे सेक्स के अनुभवों के विस्तृत सागर पे फ़ोकस मिला, और केवल सेक्स के प्रदर्शन पर फ़ोकस करना बंद हुआ । और सबसे खास बात, मैं उनकी उस गहरी, दिल तक पहुंचने वाली, उदार नज़र की आभारी हूँ। आज उसी नज़र से मैं खुद को देखना सीख रही हूँ।
द लोनली सिटी - एडवेंचर्स इन द आर्ट ऑफ़ बीइंग अलोन (The Lonely City: Adventures in the Art of Being Alone) में निबंधकार ओलिविया लैंग लिखती हैं, "यही तो सेक्स से जुड़ा सपना है, है ना?"
"यानि आपका बदन ही आपको आपके बदन के पिंजरे से बाहर निकालेगा। आख़िरकर उस बदन को चाहा जाएगा, और उसकी अतरंगी बोली समझी जाएगी ।" मेरे लिए ये रिहाई हर मर्ज़ की दवा जैसी थी। मैं अभी भी वादे निभाने वाले सेक्शुअल रिश्तों की चाह नहीं रखती। और हालांकि मेरा वो दूसरा ख़ुद से घृणा करने वाला चेहरा अब धूंधला पड़ गया है, मुझे अब भी मेरे बदन पर पड़े उन गहरे निशानों से प्यार नहीं हुआ है। लेकिन खुशी है कि ये निशान किसी घाव के भरने का अंदेशा भी हैं। और आज मैं उन लकीरों का सम्मान करती हूँ, जो उन्होंने मेरे बदन पर छोड़ी हैं।
सुवंशकृति राजनीति विज्ञान और सांस्कृतिक अध्ययन का अध्ययन करती हैं। वह साहित्य और राजनीति के प्रतिच्छेदन में रुचि रखती हैं, विशेष रूप से पहचान, बहुसंस्कृतिवाद और उदार अधिकारों के प्रश्न।