मुझे नहीं पता कि हस्तमैथुन कैसे करते हैं| खुद को मज़ा देना मुझे आता ही नहीं है| बड़े होते हुए मुझे कभी ऐसा कुछ लगा ही नहीं| किसी ने बताया भी नहीं| हमारे छोटे से शहर में, हमारी छोटी मोटी क्रांति, सिगरेट खरीदने और उसे छिपकर फूंकने भर की होती थी| खुद के उस स्पेशल भाग को छूना- मुझे तो ऐसी कोई ज़रूरत ही कभी महसूस नहीं हुई|
मेरा कभी पॉर्न देखने का भी मन नहीं हुआ| लेकिन मुझे उन आदमियों ने पॉर्न दिखाया जिन्हें किशोरों को, नंगे-पुंगे लोगों को एक-दूसरे के साथ अजीब-ओ-गरीब हरकतें करते हुए दिखाने में जाने क्यूँ, बहुत मज़ा आता था ! मतलब भाई, कम से कम एक बार हमसे पूछो तो! एक बंदे ने तो मुझे लूडो खेलने घर बुलाया था| तो बिल्कुल धोखा हुआ ये तो! बताओ हम लूडो खेल सकते थे, लेकिन बेवकूफ़ मुझे पॉर्न दिखाने लगा! जब दूसरे बंदे ने दिखाया, तो कम से कम उसने सच बोलके दिखाया| उसने बताया कि उसने बड़ी ही मेहनत से, एक ब्लू फिल्म की सीडी निकलवाई है, जो मुझे उसके साथ देखनी चाहिए| मैंने शुरु से अंत तक सब देखा| चूम्मा-चाटी, चूसना, मारना, पेलना, पसीना, थूक और वीर्य | हम तो बाबा डर गए एकदम और अगले ही दिन मुझे पीरियड्स आ गए|
जिन सहेलियों को पहले से माहवारी आ रही थी और जो खून बहा रहीं थीं, उनसे मुझे काफी जानकारी पहले से ही मिली हुई थी| लेकिन मेरी मम्मी ने बस पैंटी में पैड डाला और थमा दिया| सच्ची मम्मी? तुमको नहीं लगता थोड़ा कम जानकारी दे रही हो? लेकिन मैं उनकी गलती नहीं निकालती| हां, वो पॉर्न दिखाने की गलती निकालती हूँ- मुझे तो मानो झटका ही लग गया था, एक मासूम बच्ची, जो इतना डर गई कि तुरंत योनि से खून बहने लगा| मतलब मुझे तो उस टाइम ऐसा ही लगा|
खैर, मेरा मूठ मारने का मन तब हुआ जब मैंने अपने दोस्तों को बात करते सुना कि उन्हें कितना मज़ा आता है| मज़े को लेकर मेरे मन में इतनी उत्सुकता नहीं थी, जितनी ये जानने को, कि आखिर ये है क्या बला! और इस बात की भी उत्सुकता थी, कि कुछ लोग ऐसा क्यों बोलते हैं कि अगर तुम खुद को मज़ा दे सको, तो तुम्हें किसी आदमी की ज़रूरत नहीं| Lol । तो मतलब मूठ मारने का महान उद्देश्य आत्म मुक्ति हुआ, नहीं?
इसमें कोई शक नहीं, कि जब दोस्त लोग आपस में औरगैज़म पाने के बारे में बात करते थे, या बताते थे कि वो कैसे खुद को मज़ा देते हैं ,तो मुझे बहुत मज़ा आता था | कोई बर्फ़ चाटकर उसके कोनों के नुकीलेपन को हटाती और ठंडी बर्फ़ अपने भीतर डाल लेती| एक ने पूछा कि कैसा लगता है तो उसकी दोस्त ने कहा कि वो हस्तमैथुन करने में, उसकी मदद कर देगी| किसी को थूक से नशा चढ़ता था तो किसी को अपना औजार चूसता आदमी देखकर मज़ा आता था| जिसकी जैसी मर्ज़ी, है ना?
लेकिन मुझे कुछ महसूस न हुआ| मतलब ये समझ लो कि पॉर्न चलता रहे, तो भी मैं सो जाऊँ| बोरिंग!
मैंने अपनी गांड़ में उंगली डालने की कोशिश की| अपने निप्प्लस चूसने चाहे| अपनी योनि में कुछ नहीं तो भी, तीन -तीन उंगलियाँ डालने की कोशिश की| एक बार मैंने एक ‘मैरिड मैन लूकिंग फ़ॉर यंग गर्ल’ नाम के यूज़रनेम वाले बंदे से एक वेबसाइट पर चैटिंग की| वो किसी जवान लड़की से बात करते हुए मूठ मारना चाहता था| लेकिन जब उसे समझ आया कि मेरा ऐसा कोई ईरादा नहीं है, तो वो आराम से बात करने लगा और बोला कि बीस की उमर में ज़िंदगी जितनी मुश्किल लगती है, 30 के बाद उतनी ही आसान होने लगती है| तुम्हारी बात सच निकले, ‘मैरिड मैन लूकिंग फ़ॉर यंग गर्ल’|
बहुत लंबे टाइम तक तो मुझे लगता था कि मूत्रमार्ग (उरेथ्रा) ही टिटनी यानी जादुई मटर है| लेकिन भला हो अचानक ऑनलाइन आई ढेर सारी जानकारी का, जो औरतों के सेक्सी मज़े से जुड़ी थी , और जो मीम्स, स्टैंड-अप वगैरा के रूप में ख़ुद- ब- ख़ुद स्क्रोल करते समय मेरे फ़ोन पे दिख जाती थी ( और मैं तो बेमक़सद बहुत स्क्रोल करती थी )। ये सब देख पढ़ के, अपने जादुई मटर की खोज का ख़याल, मेरे दिल-ओ-दिमाग में फ़िक्स हो गया | अब, मुझे इसे पाना ही था| (हलाकी अब मुझे इस मटर के घर का पता चल गया है, फिर भी हमारी कोई ख़ास दोस्ती नहीं हुई है |)
तो औरगैज़म पाने वाला काम, लंबे समय से अटका पड़ा है| तैरना सीखना, स्कूटी चलने के डर से निकलना, बिकनी पहनाना जैसे कामों की तरह, और भी पता नहीं क्या क्या | इसका सबसे खास कारण तो ये हो सकता है, कि मेरे पास कभी भी मेरी अपनी, प्राइवेट जगह नहीं रही| और अपनी तमाम कोशिशों में, मुझे ये समझ आया, कि बाथरूम के फ़र्श पर बैठने से तो कुछ नहें होने वाला|
वैसे कभी -कभी मेरे पास अपनी खुद की, प्राइवेट जगह होती थी| जैसे जब मैं किसी बड़े होटल में रूकती- एक बार एक यूथ ट्रेनिंग में, और दूसरी बार किसी की शादी में| उन कमरों के लम्बे शीशे में, मुझे हमेशा अपनी नंगी तस्वीरें लेने और उनको निहारने का मन करता| मैं वही करती । इन कमरों में बाथटब भी होते थे| तो मेरे भीतर के फ़ोटोग्राफ़र, मॉडल और ‘चित्रकला’ प्रशंसक की तो मौज थी, लेकिन इस चक्कर में, मैं अपना पुराना, ख़ुद को ओरगाज़म दिलाने का काम भूल जाती थी|
तो बाद में मैंने तय किया, कि अपने शहर से दूर, किसी होटल में कोई कमरा लिया जाए और बीयर या वाइन या सिगरेट पीते हुए, हस्त मैथुन किया जाए। मेरी इस फंतासी में एक सिल्क का कपड़ा भी है जो मेरे पास नहीं है। वैसे ये प्लैन अभी तक लागू नहीं हुआ है।
कुछ महीनों पहले एक रिश्तेदार के गुज़र जाने की वजह से, मेरे मम्मी पापा को बाहर गाँव जाना पड़ा। मैं घर में अकेली थी, मेरे पास खुद का टाइम था, और लगातार ओटीटी पे कुछ ना कुछ देखे जा रही थी। मुझे फिर एहसास हुआ, कि मेरे पास मन मुताबिक काम करने का टाइम था। मुझे लगा कि ख़ुद को औरगैज़म दिलाने के काम का समय आ गया है।
बहुत मुश्किल नहीं था। मैंने शुरू से शुरू किया और अपनी क्वीयर इच्छाओं को ध्यान में रखते हुए, सबसे पहले लेस्बियन पॉर्न ढूंढना शुरू किया। मैं जहां तक पहुंच सकती थी वहां तक खुद को छुआ और चूमा। मैं एकदम गीली हो गई थी और कुछ अलग सा महसूस हो रहा था, गर्मी छा रही थी और मस्ती भी। मैंने अपना फोन फेंक दिया (क्योंकि पॉर्न बोरिंग होता है, बस बात खत्म!) और मेरे दो हो सकने वाले आशिकों के साथ थ्रीसम (तीन लोग का सेक्स का खेल) का सपना देखने लगी: दोनों गजब के सुंदर, एक फेम्म बाईसेक्शुअल और दूसरा सिसजेंडर हेट्रोसेक्शुअल आदमी, जिसने एक बार एक आदमी का चुम्मा लिया था ,लेकिन फिर भी उसे अपने स्ट्रेट होने का पूरा भरोसा था।
मैं सोच रही थी कि क्या आखिर 26 की उम्र में मैंने औरगैज़म पा लिया था ? लेकिन फिर मैं अपने सपने वाले आशिकों से बोर हो गई। मैंने सोचा कि अगर मैं खुद को मज़ा देते हुए देखूं तो शायद, अपने काम पर ध्यान दे सकूं। आपको मेरे अंदर के फोटोग्राफर, मॉडल और "चित्रकला" प्रशंसक याद हैं, ना?
और फिर मुझे दिखा मेरे हाथ और बिस्तर पर खून। मुझे समझ आया कि जिसे मैं औरगैज़म समझ बैठी थी, वो तो असल में माहवारी का खून था!
मैं नहाई, सारी बत्तियां बुझाईं, बिस्तर बदला और सो गई।
वैसे - अभी तक मुझे औरगैज़म नहीं आया। या फिर मैंने अब परवाह करना ही छोड़ दिया है।