मेरी माँ ने तेज़ धार वाली बेरहम कैंची मेरी नानी के बालों में चलाई और फिर पूरा फर्श बालों के गुच्छों से भर गया। अमम्मा/नानी के चेहरे पे बेपरवाही थी।
पार्किंसन ( एक ऐसी बीमारी जिसमें हाथ या पैर से दिमाग तक पहुंचाने वाली नसें या तंत्रिका काम करने में असमर्थ हो जाती हैं ) ने उनकी सेहत को तोड़ के रख दिया था। ज़िन्दगी भर दूसरो का ख्याल रखने वाली अमम्मा, अब खुद का ही ख्याल नहीं रख पा रही थी। उनकी बीमारी का पते लगते ही पहला काम तो यह किया गया कि उनके लम्बे बालों को छोटा कर दिया गया, जिससे संभालने में आसानी हो। और फिर इसी के साथ अमम्मा के लहराते घुंघराले बालों को फैशनेबल बाब कट दे दिया गया या कहो, देने की कोशिश की गयी।
अमम्मा के बालों को कटता देख मुझे उनका लम्बा चौड़ा लेकिन फिर भी सरल बालों को संभालने की रोज़ का रूटीन याद आया। उन्होंने एक रस्म ही बना डाली थी, पर कोई इसपे कोई ख़ास ग़ौर नहीं करता था । इसके बारे में न किसी ने कोई बात की, न उन्होनें कभी किसी को बताया। फिर भी बचपन में, कोट्टयम में अपने नाना नानी के घर कई गर्मियों की छुट्टियां बिताते वक़्त, मुझमें, उनके बालों को लेके उनके तरीक़ों की जिज्ञासा, जगी रही ।
भूने हुए प्याज और घर के पिछवाड़े उगे गुड़हल की पत्तियों को पीस कर खूब सारे नारियल के तेल में मिला के अमम्मा अपना खुद का तेल बनाती थी। अपनी उँगलियों को तेज़ी से अपने घुंगराले काले बालों के बीच ले जाती और जड़ों की मालिश करती और अपने बालों को इस तेल में एकदम लबा लब डुबो लेतीं। वो रोज़ सुबह नहाने से पहले, कोई अधूरा गीत गुनगुनाते हुए, ऐसा करती । उनका ये हर रोज़, नियमित रूप से करना, तय था ।
अब जब हवा में यूँ ही ताकते हुए, अमम्मा अपने लम्बे काले घुंगराले बालों को कटवा रही थी, मुझे ये ख़याल आया कि मेरी यादों की वो औरत अगर इस सीन को देखती, तो वो क्या करती।
अमम्मा के बालों की एक अपनी ज़िन्दगी थी। उनके बाल सिर्फ़ बाल नहीं, बल्कि एक वफादार हमराज़ थे। सत्तर साल तक उनके बालों ने ही उनके जीवन के हर पल को गुज़रते देखा था। अमम्मा ने अपने बालों को कभी नहीं काटा लेकिन वो खुद ब खुद झड़ते चले गए मानो जैसे अमम्मा के छिपे हुए राजों का बोझ, अब उठा न पा रहे हों।
जैसे जैसे अमम्मा की उम्र बढ़ती गयी, वैसे वैसे उनके घने घुंघराले बाल गिरते चले गए। उनको डर लगता था कि कहीं यह बाल झड़ने की बीमारी, वो अपनी बेटियों को विरासत में न दे दें। इसलिए वो पहले से ही भृंगराज के पत्तों से बना तेल अपनी बेटियों के सर पे नियमित रूप से लगाने लगीं। यह सारी तेल बनाने की विधि, मेरी माँ को याद है। यह तो एक विरासत है, जो सदियों से उस घर की औरतें एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को दियें जा रहीं हैं।
अमम्मा कभी भी अपनी महानता या अपने जीवन के अनुभवों के बारे में बात नहीं करती थीं, जैसा कि उस उम्र के लोग अक्सर करते है। वो काफी शर्मीले और शांत स्वभाव की थीं , जिस वजह से उनको काफी परेशानी भी हुई। उन्होनें कभी यह भी नहीं चाहा ,के लोग उनको चाहें। उन्होंने अपनी पूरी ज़िन्दगी दूसरों की सेवा में ही गुज़ार दी , पहले अपने परिवार की एकलौती बेटी बन के , फिर माँ बन के , और फिर बाद में नानी बन के। अपनी इस बीमारी से पहले तक उन्होंने ये सारी सेवा एकदम चुप -चाप की और इस बात की गवाह अगर कोई है , तो वो हैं उनकी हथेली के पीछे की काली पड़ चुकी नसें ।
शायद यह मेरा खुद का असंयम है, जिसकी वजह से मुझे यह लगता है कि वो अपनी कठिन दिनचर्या से ज़िन्दगी के कुछ पल अपने लिए चुराती होंगी। ऐसे पल जहा सिर्फ़ वो और उनके बाल अपनी गुप्त दोस्ती के मज़े लूटते होंगे। दोनों के बीच में अकेलेपन में एक गहरा रिश्ता बनता होगा। खुशबूदार तेलों और सर की मालिश के बीच, दोनों ने अपनी ही एक आध्यात्मिक दुनिया बसा ली होगी।
मेरी नानी मेरी अमम्मा बनने से पहले कैसी थी, यह तो मेरे लिए सोच पाना भी मुश्किल था। वो तो उस ज़माने की भी नहीं थीं जहाँ फोटो खिंचवाना आम बात हो। उनकी एक ही ब्लैक एंड वाइट फोटो है , जिसमे वो शान से फूलों वाली साड़ी पहने खड़ीं हैं। उनके बाल एक ढीली चोटी में पीछे बंधे हुए हैं । मुझे तो याद नहीं कि वो कभी मेरे सामने इस तरह से शान से खड़ी हुई हों ।
अमम्मा उस ज़माने की है जहां यह माना जाता था कि जितनी लम्बी आपकी चोटी होगी, आप उतने ही खूबसूरत होंगे। यह वही खूबसूरती है जिसके मेरे नाना जी कायल हुए थे। लोगो को लगता था, अमम्मा एक्ट्रेस शीला की तरह दिखती हैं। लेकिन माँ को लगता था अमम्मा की ख़ूबसूरती एकदम अलग ही थी।
माँ अक्सर कहा करती थीं कि अमम्मा के काले दिलकश बाल, उनके सबसे कीमती गहने थे। खुद को ले कर वो भले ही बेपरवाह हो गयीं थीं , लेकिन तब भी अपने बालो में बिना भूले रोज़ सुबह तेल लगाती और उन्हें धोती। मेरे ख्याल से, अमम्मा के बालों की ख़ूबसूरती और उन बालों के साथ अमम्मा का रिश्ता ही है, जो इस साधारण और शर्मीली औरत को ख़ास बनाता है।
अगर उनके बाल राज़ खोल सकते, तो बताते कि कैसे उन्होंने किचन के एक कोने में ,खाने के साथ जादूभरी एक अलग ही दुनिया बसा ली थी। वो यह भी बताते कि उनको पत्ते खेलने में कितना मज़ा आता था और उन्होंने अपने नाती -पोतियों को रम्मी के सारे गुर सीखा दिए थे। और वो यह भी बताते कि वो सुई धागे के साथ कितनी माहिर थीं और कितनी बारीकी से उस पुरानी सिलाई मशीन को चलाती थीं, जो अब मेरे माँ के कबाड़खाने में कहीं जंग खा रहा है। उनके बाल यह कहते नहीं थकते कि कैसे एक लड़की रोज़ सुबह चोटी बना के उसमे मैचिंग रिबन लगा के, अपने कान्वेंट स्कूल जाया करती, और कैसे उसकी नानी रोज़ उनके घुंघराले घने बाल सुलझाया करती। मेरी माँ भी अक्सर यह कहानी दोहराती है, कि कैसे जब उनकी शादी तय हुई थी, मेरे नाना जी उनकी एक झलक देखने, उनके कॉलेज के बाहर आया करते, जहाँ वो दावनी साड़ी पहनी और लम्बी चोटी बांधे निकलतीं थीं। उनके बाल वो सब कहते जो उनके बारे में अक्सर नहीं कहा जाता है। जैसे रेडियो में बजने वाला लोक गीत, जिसको रेडियो के साथ सुर से सुर मिला के अमम्मा गाया करती थी। कैसे उन्होनें किसी को यह पता नहीं लगने दिया था कि उनको कैडबरी चॉकलेट कितना पसंद था। और कैसे उनको अखबार के साथ निकलने वाली साप्ताहिक पत्रिका का इंतज़ार रहता था। उनके बाल इस बात की कितनी सराहना करते कि कैसे बखूबी उन्होनें दो पीढ़ीयों की ज़िम्मेदारी निभायी थी और हमारे परिवार को साथ जोड़े रखा। और उन बालो को इस दास्ताँ का गवाह बनने का फक्र भी होता।
अगर मेरी नानी के बाल बोल पाते , तो वह न काटे जाने की भीख मांगते।
तेज़धार ब्लेड की मार सहते , जैसे एक के बाद एक बालों के गुच्छे ज़मीन पे गिरे , मैंने उनमें एक ऐसी कहानी देखी जो उन्होंने किसी को नहीं सुनाई थी। जो हो रहा था अमम्मा ने उसको बस होने दिया। पर इस ज़्यादती को मैं कभी भूल नहीं सकता। हमेशा दूसरों के बारे में सोचने वाली अमम्मा के अज़ीज़ बालो की इस तरह से कुर्बानी मांगना ! वक़्त ने उनपे बहुत ही गहरा सितम किया था।
अब मैं अपने घर का खाना और बढ़िया मौसम छोड़ के, दिल्ली में रहता हूँ। और इसलिए मेरा अमम्मा से ज़्यादा मिलना नहीं हो पाता है। जब मैं बाल बढ़ा के छह महीने बाद घर वापिस गया, तो मेरा स्वागत हर तरह के सवालों से हुआ। किसी ने कहा मेरा वजन घट गया है , किसी ने मेरी लम्बी फ्लाइट के बारे में पुछा , यहाँ तक कि दिल्ली की राजनीति के बारे में भी बात हुई।
लेकिन मेरी नानी ने बस मेरे दोनों हाथ पकड़ के अपने पास बुलाया , और अपने दोनों हाथों से मुस्कुराते हुए मेरे बालों को सहलाया। पांच साल की उम्र में , मैं कभी ऐसा सोच भी नहीं सकता था कि कभी ऐसा भी दिन आएगा जब मेरे बाल अमम्मा के बालों से लम्बे होंगे।