ओमान में बॉलवुड की फिल्में देखते हुए बड़े होने की वजह से, बचपन से ही मैं एकदम रोमांटिक टाइप की बन गयी थी। असल में, मुझे लगता है, मैं अभी भी वैसी ही हूँ। क्यूट रोमांस भरी फिल्में तो मुझपे वही असर करती हैं , जैसे गर्मियाँ आइस क्रीम पे । बॉलीवुड की सच्चाई से कोसों दूर रहने वालीं, लेकिन प्यार- इश्क़ से भरपूर फिल्मों की तो मैं दीवानी थी। लेकिन जैसे जैसे मैं बड़ी हुई वैसे वैसे मुझे लगने लगा जिस तरह से मैं प्यार और रोमांस के बारे में सोचती हूँ, वैसा मेरे आस पास के लोग नहीं सोचते।
मुझे याद है , मैं 13 साल की थी और मैं , मेरी दोस्त लोग और मेरी बहनें मेरी बेस्ट फ्रेंड के घर बैठ के डेटिंग और लड़को की बातें कर रहे थे। वो लोग अपने रिश्तों में इस बारे में बात कर रहे थे कि वो किस टाइप का शारीरिक सम्बन्ध चाहते हैं, और अपने पार्टनर से उनको क्या उम्मीद है । कौन किस तरह का शारीरिक सम्बन्ध बना रहा है , वो और क्या -क्या करना चाहते हैं , और अपने रिश्ते के किस पड़ाव पे वो ' उस चीज़' को करेंगे। उसमें से आधी बातें तो मुझे समझ में ही नहीं आयीं, मुझे तो इन शब्दों का भी ठीक से ज्ञान नहीं था। एक और कारण था जिस वजह से मुझे थोड़ा अजीब लगा। सेक्स या किसी अन्य प्रकार का शारीरिक सम्बन्ध की उम्मीद या आशा तो कभी मेरी रोमांटिक लिस्ट में आया ही नहीं था । इस बारे में तो मैंने कभी सोचा ही नहीं। मुझे लगा क्या इसका मतलब यह है कि मैं एकदम नीरस या बोरिंग हूँ।
घर वापस आते समय मैंने अपनी सहेली से कहा ' मुझे ऐसा लगता है , भले ही हम सब साथ में बड़े हुए हो , लेकिन मैं तुम लोगों से शायद अलग हूँ ' ।
हमने जितनी सेक्स की बातें की , उतना ही मुझे लगने लगा के मुझ में कुछ कमी है। मेरी बहन बस हँस देती और कहती ' तुम बस वो कली हो , जो थोड़ी देर से खिलेगी '। वो कहती थी कि जब मेरा टाइम आएगा , मैं वो सब महसूस करूंगी जिसकी सब बातें कर रहे हैं।
हमारे आस पास की दुनिया तो यही कहती है कि हर प्यार में जोश भरा सेक्स होता ही है। और यह भी, कि सेक्स के बिना रोमांस तो रोमांस की समझो मौत है। मुझे याद है मैं कैसे अपनी रगों में उन सेक्स हार्मोन्स के दौड़ने का इंतज़ार करती थी, उस तरह जैसा कि मेरी बायोलॉजी की किताब और मेरे दोस्त लोग बयान करते थे। मुझे ऐसा लगता था कि बस एक दिन मैं सो के उठूंगी और वो सेक्स की आग मेरे अंदर लग जायेगी। लेकिन ऐसा कुछ कभी हुआ नहीं।
मुझे लगा मुझे अपने आप को एक रिलेशनशिप में खुद को ज़बरदस्ती धकेल देना चाहिए। अगर मेरे अंदर वो हार्मोन्स (जैसा कि सब मुझसे उम्मीद करते हैं) नहीं दौड़े, तो मैं उनको ज़बरदस्ती दौडाऊंगी। अगर मुझे सेक्स की ज़रुरत नहीं लगेगी तो मैं ज़रूरत लगने का नाटक कर लूंगी। मैं रिलेशनशिप की सीमा रेखा को खसका दूँगी , और लोगो को जीतने के लिए, मेरे बदन को ऐतबार की जो ज़रूरत है, उसको भूल जाऊँगी । मुझे लगा कि तब जा के, मुझे अलग सा महसूस होगा और और लोगों जैसी फ़ीलिंग आएगी। और मैं उस सुख का अनुभव कर पाऊँगी, जिसकी बातें किताबों और टीवी शोज में होती हैं । वरना, मुझे कौन प्यार करेगा ?
अपने पार्टनर को संतुष्ट न करने की वजह से मेरा रिश्ता टूट गया था। जबकि जितना मैं कर सकती थी , उससे कहीं ज़्यादा मैंने किया था । मैंने खुद को इतना धकेला , मुझे लगा बस मैं टूट के बिखर जाऊँगी। एक दूसरी रिलेशनशिप में मेरा यौन शोषण हुआ तो मैंने अपने आप को समझा लिया कि मुझे जो भी प्यार करेगा , इसी तरह से करेगा। मुझे लगा अगर मैं खुद के साथ थोड़ी और ज़बरदस्ती करूंगी , थोड़ा और ज़ोर से कराहूंगी , थोड़ी और सफाई से झूठ बोलूंगी , तो मुझे थोड़ा अलग महसूस होगा। आखिर प्यार पाने का मामला था, और मुझे आख़िरकार वो सब महसूस होना ही चाहिए था। लेकिन सच ये था कि मुझे खुद पे सिर्फ घिन आती थी , और खुद से नफरत का बोझ उठाते -उठाते ऐसा लगता था मानो पेट में मरोड़े पड़ रही हों।
जब मैंने खुद के साथ कड़ा होने की बजाय खुद को प्यार और दया से समझने की कोशिश की, तो मेरी भेंट ' डेमी -सेक्शुअल ' शब्द से हुई। ( डेमी -सेक्शुअल ': जिसको सेक्स की फ़ीलिंग धीरे धीरे तब आती है, जब वो अपने पार्ट्नर के बहुत क़रीब हो, उससे उसे एमोशनल कनेक्शन हो और उसपे पूरा ऐतबार हो ) ।जो उस समय मेरा पार्टनर था उसने तो बोल दिया यह सब एकदम बकवास है। ऐसे किसी चीज़ को नाम देने का क्या मतलब है ? हर किसी को अपने शारीरिक संबंधों में इमोशंस तो चाहिए ही, शारीरिक सम्बन्ध बनाने का मतलब ही यही होता है। एक और शख्स था , जो कि मुझे पसंद करता था , वो बोलता था कि रोमांटिक आकर्षण और यौन आकर्षण का फर्क बस मेरे दिमाग का फितूर है। उसने कहा कि सबको लगभग ऐसा ही लगता है और मैं एकदम नार्मल हूँ। मैं सोचती थी अगर ऐसा ही है, तो लोग हुक अप और वन -नाईट - स्टैंड/ एक- रात -साथ ( मतलब सेक्स के लिए बस थोड़ी देर के लिए साथ होना ) जैसी चीज़ें, कैसे करते है। लेकिन उस समय मैं 19 साल की थी और मुझे लगा कि शायद मेरे पास इतनी अकल नहीं । मैंने अपने सवाल अपने तक ही सीमित रखे और खुद को धकेलती रही।
यह सारी बातें बस मुझे लोगों से और दूर ले जाती रहीं, और मुझे और अकेला करती रहीं । मैं सारी रात जगती और सोचती मेरे अंदर यह जो समस्या है, उसका आखिर हल क्या है। सारे सवाल बस एक ही जवाब पे आ के ख़तम होते कि बस ' और कोशिश करो '। इस एक- रात -साथ वाली दुनिया में प्यार बिना सेक्स तो मिल सकता था, लेकिन सेक्स बिना प्यार नहीं।
जब मैं 6 साल की थी तो शाहरुख़ खान यानी रोमांस के बादशाह से शादी करना चाहती थी। मेरे आस पास जो भी लोग थे, वो भी करना चाहते थे। जैसा रोमांस वो दिखाते थे अपनी फिल्मों में, वैसा तो कहीं और कहाँ दिखा, उनकी दुकान पे लाइन थी । लेकिन मैं उनसे शादी चक -दे इंडिया देखने के बाद करना चाहती थी जहाँ उनकी तरफ से कोई भी रोमांस नहीं था।
13 साल की उम्र में, 90 के दशक की उनकी एक- के- बाद -एक , जितनी रोमांटिक फिल्में मैं देख सकती थी , मैंने देखी। मैं बहुत बेकरारी से यह चाहती थी कि मुझे भी कोई ऐसे ही देखे जैसे शाहरुख़ स्क्रीन पे अपनी हीरोइनों को देखते थे। उनका रोमांस मुझे समझ आता था और अच्छा लगता था , भले ही वो असल दुनिया से दूर , बॉलीवुड की एक मसाला फिल्म का होता था। वो अपनी पार्टनर्स की ओर देखते और बाँहें फैलाते और मैं अपनी सीट पे ही पिघल जाती।
मुझे उनसे इतना ज़्यादा प्यार हो गया कि जब DDLJ दोबारा रिलीज़ हुई, तो मैं अपने माँ- बाप को साथ घसीटकर थिएटर में उस पिक्चर को देखने गयी। मेरे पापा के हिसाब से शाहरुख का सरसों के खेत में ऐसे खड़ा होना, बेफ़कूफी के सिवा और कुछ नहीं है । लेकिन मेरे लिए वो कुछ और ही था। मुझे उस पिक्चर के सारे गाने एकदम रट गए थे। और मेरे लिए ,शाहरुख का ' तुझे देखा तो... ' गाना, कुछ और नहीं, बस प्यार था।
अब, जब मुझे अपने मास्टर्स ख़त्म होने के बाद की चिंता सता रही है, साथ साथ, मैं अपनी विभिन्न प्रकार की क्वीयर पहचान की गुत्थी सुलझाने में भी लगी हूँ, मैंने फिर से शाहरुख़ की फिल्में देखनी शुरू कर दी हैं ।
मेरा ADHD ( Attention deficit hyperactivity disorder- जब ध्यान एक जगह रखना बहुत मुश्किल होता है, मानसिक दिक़्क़त बन जाता है ) वाला दिमाग पूरी तरह से उनका दीवाना हो चुका है और मैं फिर से रोमांस के बादशाह की दुनिया में गुम हो चुकी हूँ। कुछ चीज़े अब बहुत बकवास लगती है , लेकिन अभी भी मैं ख़ुशी ख़ुशी DDLJ देखती हूँ , उसमें डूब के । मैं कभी ख़ुशी कभी गम का पूरा वो नाटक झेल जाती हूँ , सिर्फ शाहरुख के काजोल को देखने के तरीके की वजह से। मैं वापिस से 13 साल की हो जाती हूँ और बैठ के सोचने लगती हूँ कि मुझे भी कभी कोई ऐसे देखे।
अपनी दीवानगी के चलते , मुझे अभी पता चला के शाहरुख़ ने अपनी फिल्मों में ' नो किसिंग ' कॉन्ट्रैक्ट साइन किया था। यानी उनकी फिल्मों में कोई किसिंग सीन न हो ,ऐसा कॉन्ट्रैक्ट। मेरे दिमाग ने इस बात पे कुछ ज़्यादा ही गौर कर लिया, और बहुत कुछ सोचने लगी ।
मेरे ख्याल से उनके रोमांस में सेक्स की कोई ख़ास जगह नहीं थी। मुझे बस उनकी वो गहरी निगाहें , रोमांटिक डायलॉग और हाँ , उनका अपनी प्रेमिका के लिए वो बाँहें फैलाना याद है। उनकी फ़िल्मों में वो नज़दीकियाँ होती था और प्यार से छूने वाला प्यार होता था, जो बैडरूम की ओर नहीं जाता था।
सेक्स से दूर रहनी वाली एसेक्शुअल ( जिसको सेक्स में कोई रूचि न हो ) होते हुए , मैं अक्सर छू के अपना प्यार जताती हूँ। मैं गर्दन और माथे पे चूमने वाले पार्टनर्स के सपने देखती हूँ। मेरे यह सपने कहीं भी सेक्स को नहीं दर्शाते हैं। उनमें नज़दीकियाँ है , कामुकता है , और बिना कुछ कहे 'I love you' बोलने के तरीके है। शाहरुख स्क्रीन पे अपनी पार्टनर को माथे पे किस करते थे और मेरे पेट में तितलियाँ उड़ती थी।
बिना सेक्स पे ज़ोर डाले, शाहरुख़ का रोमांस मेरे स्क्रीन पे कामुकता दर्शाता था। अचानक से सब कुछ समझ में आने लगा। शाहरुख ही वो एकलौते एक्टर थे जो मुझ जैसी एसेक्शुअल को रोमांस के सपने दिखा सकते थे। जब मैं जानती भी नहीं थी कि जो मेरे साथ हो रहा था, उसका क्या नाम है, तब से उनके रोमांस को देख के, कभी खुद को अधूरा या टूटा हुआ नहीं पाया। उनकी फिल्म में देख के कभी यह नहीं लगा कि मेरे माथे पे लिखा है ' अभी प्रोग्राम लोड ही हो रहा है '।
यह उन रोम- कॉम फिल्मों के बिलकुल विपरीत था जिनके रोमांटिक सीन्स देख के मुझे लगता था कि हो क्या रहा है। कि ऐसा क्या था जो कि सबको पता था, बस मुझे नहीं।
मुझे लगता है, शायद लोगों को ऐसा कुछ पता है जो मुझे नहीं पता है, और जो मुझे शायद कभी पता भी नहीं चलेगा। लेकिन अब मुझे जानना भी नहीं है। मैं अपने सपनों को ऐसे पार्टनर के लिए बचा के रखूंगी जो अपनी बाँहें फैला के सरसों के खेत में खड़ा हो के मेरे लिए ' तुझे देखा तो यह जाना सनम ' गाएगा और फिर सब सही हो जाएगा।
अब्राह्मिका ने अभी अभी वर्क एंड आर्गेनाईजेशनअल साइकोलॉजी में मास्टर्स किया है। मेन्टल हेल्थ पे वो खुल के बात करती हैं और चाहती है कि लोगो के काम करने की जगह, सहानुभूति से भरी हो।