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सीन ज़ोन* की आशिकी

मैसेज की स्माइली के पीछे, जैसे वो खुद मुस्कुरा रहा था।

*सीन ज़ोन ( जब अगला टेक्स्ट मैसेज पढ़े पर जवाब न दे ) व्हाट्सएप की एक कमाल बात है। इसने मुझे उन लोगों से जोड़ा है, जिनसे मैं मिलती तो थी, पर कभी बात नहीं कर पाई थी।   जैसे, मेरा एक नार्मल सा दोस्त, मैसेज पे बात करते-करते, कब मेरा बेस्ट फ्रेंड बन गया, पता ही नहीं चला। उसका पहला मैसेज मेरे बर्थडे के अगले ही दिन आया था। शुभकामनाओं के साथ उसने लेट मैसेज करने के लिए माफी भी मांगी थी। इधर संडे की धूप मेरे तेल लगे बालों को सहला रही थी और उधर उसका मैसेज देखते ही पेट में मानो मडोड़ सी पड़ने लगी। घुटनों में सनसनाहट होने लगी। वो कुछ अलग ही किस्म की सुबह थी । मेरी भूख भी मानो मर गयी। वो हुआ जो आजतक नहीं हुआ था । यानी संडे के दिन, मैं सुबह-सुबह नहा के तैयार थी।   मैंने गीज़र चालू कर, उसका मैसेज एक बार और पढ़ा। मैसेज की स्माइली के पीछे, जैसे वो खुद मुस्कुरा रहा था। उन्हीं मेटल के ब्रेसिज़ लगे दांतों के पीछे से, अपनी लंबी उंगलियों से बालों को समेटते हुए।  मैं फ़टाफ़ट नहाई और फिर डोसा इतनी जल्दी खत्म किया कि याद ही नहीं रहा, कि खाया भी या नहीं।  मुझे बस इतना याद है, कि मैं अपने ग्रे कलर वाले ट्रैक पैंट में, आलती पालती मारे बैठी थी। बालों को तौलिये में लपेट रखा था।  हम नॉर्मल चीज़ों के बारे में चैट कर रहे थे। अचानक उसकी डिस्प्ले पिक्चर देखी। लगा कि पहले वाली फ़ोटो बेहतर थी। क्या इस बीच उसके साथ कुछ हो गया था ? उस दिन जैसे किताब खोलकर बैठना मुश्किल हो गया था। सारे शब्द आंखों के आगे नाच रहे थे। खैर, हार मानकर मैं अपने एक दोस्त से मिलने चली गयी। पर क्या फ़ायदा! वहां भी पूरा टाइम नज़र मोबाइल पे गड़ी थी, कि कहीं उसका मैसेज तो नहीं आया। बोलो, भला ये क्या कहलायेगा ? उसने मुझे हमारे शहर के कई नए कैफे के बारे में बताया। इस पूरी चैट के दौरान, मैंने एक बात नोटिस की। उसकी एक आदत थी: जैसे ही वो कोई मैसेज भेजता, उसके तुरंत बाद, चैट से ग़ायब हो जाता। पता नहीं क्यों! शायद मैं उसकी उस आदत की भी कायल थी । मैं भी मैसेज देखते ही झट से रिप्लाई नहीं करती थी। भले ही दिल और दिमाग़ ज़वाब के साथ तैयार रहते थे। थोड़ा टाइम लगाती थी। क्या रिप्लाई करूं सोचती थी। टाइप करते समय जैसे-जैसे शब्द सामने आते थे, उंगलियां कांपने लगती थीं ।  मैं ही चैट शुरू करती थी। लेकिन फिर वही इंटरव्यू जैसे सवाल-ज़वाब, वही बातें! मैं कुछ पूछती, वो ज़वाब देता। वो कभी सवाल नहीं करता। सब बोरिंग होने लगा था। फिर मैंने सोचा कि कहीं वो मुझसे चिढ़ तो नहीं जाता होगा ? बार बार मेरे सवाल देख के, कहीं उसकी माथे पे शिकन और आंखें छोटी तो नहीं हो जाती होंगी । वैसा ही चेहरा, जो मैंने जूनियर्स के साथ फ़ुटबाल हारने के बाद, उसे बनाते हुए देखा था। मैंने मैसेज करना बंद कर दिया, और अपनी लाइफ में बिज़ी हो गयी।  तो मैंने अपने इस ऑनलाइन दोस्त को भूलने की कोशिश की।  लेकिन फिर एक दिन उसका मैसेज आया। मैं एक मिनट तक बस मैसेज को देखती रही। उफ़! मैंने उसे कितना मिस किया था । मैंने रजाई गर्दन  तक खींची और सिर को तकिए पे टिकाकर, फोन को आंखों के बिल्कुल क़रीब रखा। फिर टाइप करना शुरू किया। भेजने से पहले, मैसेज दोबारा पढ़ा। और जब भेजा तो देखा कि इस बार उसने झट से पढ़ भी लिया। पहले की तरह वक़्त नहीं लिया, सीन ज़ोन नहीं किया । मेरी तो दीवाली हो गई। तन बदन में पटाखे फूटने लगे। मानो कमरे के पंखे की आवाज़ भी सुनाई नहीं दे रही थी। उस शाम तो यूं लगा जैसे उसके पास और कोई काम नहीं था। छोटी-बड़ी, हर तरह की बातें कर रहा था। अपनी बेवकूफियां बता, उन पर हंस भी रहा था। मेरे से लंबे तो उसके मैसेज आ रहे थे। मैं भी अपने बाल कान के पीछे कर, उसकी सारी बातें ध्यान से पढ़ रही थी।  लेकिन, आख़िरकार जब मैं उससे मिली, तो लगा उड़ते उड़ते अचानक ज़मीन पे गिर पड़ी । मेरे ख़यालों वाला लड़का, या यूं कहूँ कि डिस्प्ले पिक्चर वाला लड़का, बड़ा हो चुका था। बिना ब्रेसिज़ के उसकी शक़्ल अजीब ही लग रही थी। उसके दांत सुपारी कुतर रहे थे। मेरी आँखों में आँखें गाड़ रहा था, मानो मेरी आँखों में घुसकर बात करना चाह रहा हो। मैं नज़रें चुराने लगी । टेबल पर उसके और दोस्त भी थे। पर उन सबके बीच भी, इस लड़के को मेरे खाने की चिंता थी, वो ये भी जानना चाह रहा था कि मैं उस दौरान क्या- क्या कर रही थी । अब यही वो हालात हैं ना, जहां हमको खुद को समझाना होता है कि- दिल यहीं रुक जा ज़रा!  मैं उसकी बातों पे बस सिर हिलाती रही, जबकि मेरा ध्यान कमरे के दूसरे टेबलों पर था। वैसे जब मोटी लड़की खाना कम खाये तो, डाइट पे चुटकुले शुरू जो जाते हैं । आसपास की टेबल पे बैठे कुछ अंकल-आंटी, हमारी मेज पर रखी बोतलों पर, मुझपर, और सब लड़कों पर पैनी नज़र डाल रहे थे। यूं लगा कि  X को मेरा वहां होना पसंद नहीं था, ना ही मुझे उसका वहां होना। लेकिन क्योंकि हम एक ही सोफे पर बैठे थे, तो बात करनी पड़ी। "मैं बिज़नेस में वापस आ गया हूं .." उसने कहा। और फिर स्टॉक और शेयर की बातों का सिलसिला शुरू हो गया। मुझे उसमें कोई इंटरेस्ट नहीं था, लेकिन बीच-बीच में सिर हिला देती थी,  मुस्कुरा देती थी। ना जाने क्यों! बिल आते ही मैं निकल गयी। मुझे बस घर जाना था। उन सबको (उसको?) मिलने का सारा फ़ितूर हवा हो चुका था।  फिर भी, जब देर शाम उसका मैसेज आया, तो दिल में फिर से खलबली हुई। उसने मेरा हाल पूछा क्योंकि मिलने के दौरान मैं उसे अनकम्फ़र्टेबल लगी थी।  "हमने बस बिज़नेस वग़ैरा की बात की तो मुझे लगा कि शायद तुम .."।  बस उसका इतना ही कहना था कि दिल की धड़कन नार्मल रफ़्तार पे वापस आ गयी। मुझे उसे समझाना पड़ा (क्या ये सचमुच ज़रूरी था) कि मैंने इकोनॉमिक्स की क्लास में शेयर्स के बारे में सब पढ़ा है। वो लोग क्या बात कर रहे थे, वो समझना कुछ मुश्किल नहीं था। बल्कि उनकी गालियां भी मुझे समझ आ रही थीं। तो उसका ये कहना कि बिज़नेस की बातें मेरे पल्ले नहीं पड़ी होंगी, वो औरतों को लेकर उसकी दक़ियानूसी सोच दिखाती है। पता नहीं, शायद मैंने ये सब इसलिए कहा, क्यूंकि ये माना जाता है कि आर्ट्स की स्टूडेंट इकोनॉमिक्स के बारे में कुछ नहीं जानती होगी, बस शेक्सपियर को जानती होगी।  मेरे प्रोफेसर वी.जे. कहते हैं कि एक बार अलग हो गए, तो एक ही चारा बचता है, कि आगे बढ़ो। तो मैंने एक कदम पीछे लिया। और चैट ही बंद कर दिया।    पूर्वी की दिली ख़्वाईश है कि अयान मुखर्जी उसकी लाइफ को डायरेक्ट करे।जब वो किसी पहाड़ी ट्रेक या के-ड्रामा के लीड एक्टर का सपना नहीं देख रही होती है, तब कुछ लिखती है और एक सीक्रेट लाइफ जीती है।
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