मैं अपने दोस्त के यहाँ बिल्ली और डॉगी के बिखरे हुये बालों वाले नीले सोफ़े पर मस्त, पैर पसार कर बैठी हुई थी | और दो ग्लास जिन एंड टॉनिक का नशा धीरे धीरे चढ़ रहा था | उसी मदहोशी में मेरा दिल और दिमाग कुछ अनकही हसरतों की चार दीवारी के पार जाने की कोशिश कर रहा था | मेरी दोस्त मुझे फुट मसाज दे रही थी। मेरी पैरों के कसाव पर डाँट भी मिली | कुछ देर बाद हमारे बीच की ख़ामोशी को तोड़ते हुए उसने एक सवाल पूछा | "क्या लगता है? किसी दूसरे जहां में, तुम और नेहा, प्रेमी होते क्या?"
ऐसा फ़ील हुआ कि उसका सवाल एकदम जगमगाते सुंदर कॉमेट/धूमकेतु की तरह, मेरी ओर आ रहा था | ख़याल नहीं न था- इन पिछले बीस सालों में, जहां मैंने नेहा को जाना और प्यार किया है, ये सवाल मुझसे अक्सर किया गया है | ये किसी दूसरे जहां वाली बात मुझे अंदर तक छू गयी - ऐसा जहां, जहां प्यार की परिभाषा अलग हो, जहाँ प्यार को किसी दूसरे तरीक़े से जाना और जताया जाता हो। सोच कर ही दिल थरथराने लगा |
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मैं अक्सर सोचती, कि में पड़ने- फॉलिंग इन लव- का मतलब क्या है | इस प्यार को दोस्ती से अलग कैसे किया जाता है? क्या प्यार सिर्फ़ तभी होता है जब उसमें सेक्स और एक जिस्म दो जान होने का कॉकटेल हो? जो समय के साथ उस कॉकटेल में डाली हुई बर्फ सा, उस मदहोशी हो हल्का करता जाता है?
हमारे देश में दो लड़कों या दो लड़कियों का, जो दोस्त हैं, साथ में रस्ते में हाथ में हाथ डाले घूमना, आम बात है | या फ़िर मोटरसाइकिल पर एक दूसरे से चिपक कर, रास्ते में धूम मचाते हुए दिखना, कोई नयी बात नहीं है | जब कि गे अधिकारों और उनको अपनाने की बात करना, अभी भी आसान नहीं है |
मैं भी बाकी लोगों की तरह ही बड़ी हुई, जहाँ पर केवल दो ही जेंडर को मानते हैं, और वही आपकी पहचाना भी होती है | जहां खुद को समझना इस बात पर निर्भर करता है कि आप किसे और किस तरह प्यार करते हैं | दोस्ती और प्यार के बीच में जो भी अध-कच्ची सी फ़ीलिंग आती, उसे तुरंत एक नाम दे दिया जाता या फुर्ती से नकार दिया जाता |
ये आदमी और औरत के रिश्ते का दबदबा है, जिसकी आवाज़ अफवाहों और फुसफुसाहट में सुनाई देती है - “तुम एकदम पागल जैसा हरकत कर रही हो, नेहा| उससे एक हफ़्ते बिलकुल बात नहीं करने की कोशिश तो करो | देखो शायद तुमसे हो सके |” “तुम किसे ज़्यादा प्यार करती हो? मुझे या नेहा को? मुझे तो ये कोई नार्मल फ्रेंडशिप जैसी तो नहीं दिख रही |” “ देखो तो उनको, दोनों गर्लफ्रेंड बॉयफ्रेंड जैसा बर्ताव कर रहे हैं, छी |”
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मेरी उससे कॉलेज में मुलाक़ात हुई थी | हमउम्र होते हुए भी (पता नहीं मुझे ये बताने की ज़रुरत क्यों पड़ रही है), वो मुझसे एक साल जूनियर थी | हम दोनों इंग्लिश लिटरेचर में डिग्री कोर्स कर रहे थे | बारह साल को -एड स्कूलिंग के बाद, सिर्फ़ लड़कियों के कॉलेज में पढ़ने में एक अलग तरह की आज़ादी का एह्सास था | हमपे कोई मर्दाना नज़र नहीं थी, ये अच्छा लगा | हमने हाल ही में, एक नए तरीके का क्रेडिट सिस्टम लागू किया था | जिसमें क्रेडिट्स स्कोर करने के लिए, हमारे बड़े सारे सब्जेक्ट्स के विकल्प थे, मानो तालाब में रुब्बर की बतख तैर रही हों | मुझे रबर डक नंबर २९ मिली - बायोलॉजी | क्लास शुरू होने के दस मिनट बाद, मेरी नज़र, क्लास में एंट्री करती हुई नेहा पर गयी| छोटे बालों वाली, काली जीन्स, साइज से बड़ी चेक की शर्ट, और उसके अंदर टी शर्ट पहने | जो उसे उसके हिसाब से और छोटा और मोटा दिखा रहे थे | नाक पर गोल चश्मा, कंधे पर गिटार और चेहरे पर मस्सा |वो सबसे पहली सीट पर जा बैठी |
उसी दोपहर, मैंने उसे वेस्टर्न म्यूज़िक क्लब के ऑडिशन पर देखा | मैं पहले से ही लाइट म्यूज़िक क्लब की मेंबर थी | मद्रास में लाइट म्यूज़िक का मतलब, फ़िल्मी म्यूज़िक होता है | ये क्लासिकल कर्नाटिक या हिंदुस्तानी संगीत जैसा नहीं होता है| जो आपसे आपका अटूट फोकस माँगता है, जिसके सुर आपके आस पास, जमे हुए सीमेंट से बैठ जाते हैं | जिसमें सुर और ताल की गलती नहीं हो सकती | लाइट म्यूज़िक इसके मुकाबले, आसान होता है | इसमें अगर सुर थोड़ा डगमगा भी गया, तो चलता है |
मैंने ऑडिशन के लिए सीलिन डियोन के ‘माई हार्ट विल गो ऑन‘ चुना | जिसे अपने वॉकमैन पे सुन सुन कर, मैंने उसका कैसेट घिस दिया था | मेरा तो सिलेक्शन नहीं हुआ, पर नेहा का हो गया |
मेरे सेकंड और उसके फर्स्ट ईयर के दौरान ही, हमारी ढंग से मुलाक़ात हुई, “तुमने नेहा को गिटार बजाते और गाते नहीं सुना है? सुनो सुनो |” और बाकी दोस्तों के साथ, मैं भी ब्रेक टाइम में कैंटीन एरिया के बाहर, बड़े से बरगद के पेड़ के नीचे, उसकी संगीत की दुनिया का हिस्सा बन गयी| ये वो ही पेड़ था जिस पर, उसने मुझे बाद में, मेरा हाथ पकड़ कर चढ़ना सिखाया | तब उसकी हाथों की गर्माहट को मैंने महसूस किया था | उसने मेरी पहचान कई पॉप्यूलर वेस्टर्न बैंड और सिंगर्स से कराई: साइमन और गार फन्केल , सी.एस.एन.वाय. कैट स्टीवेंस, ब्रेड ... |
मैं थर्ड ईयर में थी और वो सेकंड, जब वो वेस्टर्न म्यूज़िक क्लब की प्रेज़ीडेंट बन गयी और बड़ी शिद्दत के बाद, मेरा भी सिलेक्शन हो ही गया | रिहर्सल करते हुए हमने कई अनगिनत घंटे साथ में उसके घर पर बिताए थे | कभी ग्रुप में और कभी अकेले | कभी रात में उसकी यहाँ रुकी भी थी | तब उसने मुझे गिटार बजाना सिखाया | रात में उसके रूम की सीलिंग पर चमकते चाँद तारों को निहारते हुए हमने अपनी दिनदगी के बारे में काफ़ी कुछ शेयर किया | एक ही चादर शेयर करने के साथ अपनी फॅमिली, दुःख, दर्द और प्यार की कहानियाँ भी शेयर की | पता ही नहीं चला, कब मैं उसकी लाइफ, घर और फॅमिली का हिस्सा बन गयी | हमें समय की कोई धुन ना थी | इसी बीच, वो मेरी गुनगुनाहट बन गयी और मैं उसकी |
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मैंने नेहा की वजह से वापस ख़त लिखना शुरू किया | हम एक दूसरे को पूरे समय लम्बे लम्बे ख़त लिखते| उसके पास अभी भी सबसे लंबा ख़त रिकॉर्ड है | पूरे बावन पन्नों का! आगे पीछे मिला के | और हाँ, उसे पढ़ते हुए, मुझे नींद नहीं आई | मैं उसकी चिट्ठियों वाली इस जादुई दुनिया में मशगूल हो गयी थी| जहाँ कभी पोस्ट बॉक्स में, तो कभी दरवाज़े सरका के, उसके ख़त मिलते | जब मैं अपने पोस्ट ग्रैड डिप्लोमा के लिए बॉम्बे गयी थी, तो उसके हर हफ़्ते आने वाले खत ही मेरे दोस्त थे | जो मुझे उस शहर की बेदर्द असलियत को समझने में मदद करते थे | हज़ारों की भीड़ ,जो हर सुबह लोकल ट्रेन की धक्का मुक्की सहती, और मैं भी उसका हिस्सा बन गयी थी | पर फ़िर भी मैं उनसे अलग थी | क्यूंकि मेरे पास नेहा के ख़त थे | बड़े हो जाने की भयावह ज़रुरत से मेरा आसरा |
एक बार उसने चिट्ठी में लिखा - एक छोटा कब्रिस्तान भेज रही हूँ- पाँच मरे हुए मच्छर सेलो टेप से चिपके हुए थे | देख के हंसी आयी, मद्रास जैसे शहर में, हम बारिश के मौसम में काफ़ी तादाद में मच्छरों से जूझ के, कई सारों को मौत की नींद सुला देते थे | ये ख़त उन्हीं पलों की याद थी और एक तरह से देखा जाये, तो उसका मेरे लिए जो लगाव था, उसे दिखाने का नायाब तरीका - खून की बलि दे कर | हमारी दोस्ती, फ़ीलिंग्स की धुंध में घिरे प्यार एक अनाम प्यार को स्वीकार चुकी थी | ये रिश्ता, मेरी बाकी फ्रेंडशिप से अलग सा था | मैं अपने दोस्तों से कितनी भी क्लोज़ क्यों ना थी, किसी ने भी मुझसे, इतना नहीं माँगा था | क्या तुमने नए दोस्त बनाये? वो अलग हैं क्या? कैसे? एक दो लाइन लिखो न !
एक साल बाद, मैं एक दूसरे, सीरियस रिलेशनशिप में थी | और हमारे दोस्ती/प्यार के भंवर को मैंने ज़ोर लगा कर, दिमाग के किसी कोने में बंद कर दिया था | मेरी उस रिलेशनशिप में सब क्लियर था | किसी धुंध की गुंजाइश नहीं थी | मैं थी, वो था, दो लवर, एक रिलेशनशिप | मैंने नेहा को जाने दिया |(‘उसे क्या पता था कि प्यार क्या होता है, उसे तो किसी पर क्रश भी नहीं हुआ था।’) पर अच्छे से नहीं जाने दिया | ना जी ना | एक बदले के लिए तैयार कबीले के योद्धा की तरह | तलवार बाहर, कवच पहने, आँखों मे गुस्सा, और मेरे शब्द जैसे ज़हर के बारीक तीर | मेरा अटैक काफ़ी तेज़ था | फ़ोन पर झगड़े, लैंडलाइन को पटकना, जानबूझ कर उसकी तरफ़ चुप्पी रखना | पूरे ग्रुप को अजीब फ़ील कराना | हर समय बस उस पर हमले करने की सोचना | ये कंफ्यूसिंग था, क्योंकि मुझे ही नहीं पता था कि मैं किससे लड़ रही थी। अपनी खुद की नाकाबिलियत से, जो कि बिना नाम के प्यार या रिश्ते को स्वीकार नहीं पा रहा था ( ये नेहा कौन हैं, अब, जब मैं एक रेगुलर रिश्ते में बंधी हूँ)| या फ़िर या उन रिश्ते वाले दायरों को भी पूरी तरह मान न पाने से?
ये कोई सदियों पुराना गुस्सा लग रहा था | एक वो प्यार है जो कुछ नहीं माँगता, हर हाल में बरकरार रहता है | मेरा प्यार इससे बिलकुल अलग था |
ऐसा लग रहा था कि मेरे में कोई शैतान आ बसा था जो कि देखना चाह रहा था कि नेहा प्यार की हद में कहाँ तक जायेगी और मैं कितना गुस्सा करूंगी | और क्या हम इस तूफ़ान से उबर पाएंगे ?| दोस्ती के लिए अक्सर मानते हैं न, कि उससे निकला भी जा सकता है - आखिर आपने बहुत ज़्यादा कुछ दांव पे भी नहीं लगाया होता, और कई सारे घिसे पिटे कारण दिए जाते हैं इसके ख़त्म होने के, लोग दोस्ती पे बड़ी सारी टिपण्णी करते हैं - चीज़ें और लोग बदल जाते हैं , लोग अपने आप अलग राह पकड़ लेते हैं, जब लाइफ आ धमकती है न, तो दोस्ती संभालना मुश्किल हो जाता है, हमने जहाँ छोड़ा था ,वहीँ से शुरू किया - नाकि उस आशिक की तरह, जो हक से माफ़ी मांगता है - अगर तुम मुझे प्यार करते हो, तो मुझे माफ़ करोगे |
मेरे और नेहा के बीच एक बड़ी सी खाई थी, और हम दोनों, दूर दो पहाड़ के छोर पर खड़े हुए थे | जहाँ से मैं नेहा को मेरे पास आने के लिए, पुल बनाने की कोशिश करते हुए देखती | एक तरफ, जहाँ ये देख कर राहत होती कि वो इस बढ़ती दूरी को भीमिटाने की पूरी कोशिश कर रही है | दूसरी तरफ़, खुद को उसके बनाते हुए पुल को जलाने से रोक भी नहीं पाती |
कई सालों बाद, जब मेरा तलाक और उसकी शादी हो चुके थे, हमने कई बार इसके बारे में बात की | और मैंने कई बार उसके मेरे साथ रहनिभाते रहने का कारण पूछा | उसका जवाब बड़ा सिम्पल सा होता, “क्योंकि आई लव यू |” उसकी माफ़ी ने मुझे खुद को खुद से वापस मिलवा दिया |
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हमारी मुलाक़ात के तुरंत बाद, हम बेसंट नगर बीच पर अपने पहले टर्टल वाक पर गए | जहां चांदनी रात के नीचे, टर्टल की सुरक्षा करने वालों का छोटा सा दल उन कछुओं के घोंसलों की शिकारियों से रक्षा करता है | नेहा अपने साथ उसका गिटार भी लाई थी | और जब भी हम आराम करते वो अपना संगीत बजाती | चार घंटे बाद जब हम मछली पालने के जहाज़ के पास पहुँचे, हम सबने रेत पर ही चादर बिछाई और सो गए | और सुबह की सुनहरे सूर्योदय के साथ, हमें एक और चीज़ के दर्शन हुए| लोगों के नंगे कूल्हे, जो समुद्र किनारे, अपना पेट खाली कर रहे थे |
उस सुबह, समुद्री हवा के प्रभाव से हमारा मन अभी भी झूम रहा था, हमने वापस घर जाने की सोची | छः किलोमीटर दूर | साढ़े छह: बजे एक टपरी पर कुछ अजीबोगरीब चाय के कप्स में चाय पीने के बाद, हमने चलना शुरू किया | वक़्त सड़क पर ट्रैफिक भी कम था| आधे घंटे बाद, हम घर के नज़दीक कहीं से भी नहीं थे | और ट्रैफिक हमारे आजू बाजू से सरपट जा रहा था | मुझे याद नहीं कि की हम क्या बात कर रहे थे, मद्रास की चिलचिलाती धूप में बारी बारी गिटार का बोझ उठाते, हम अपने घर के करीब पहुंचे| मुझे याद है, वहाँ एक बुरी तरह से झुका हुआ पेड़ था | उस पेड़ का तना मानो लगभग सड़क को छूने ही वाला था पर उसकी टहनियाँ उसको वापस आसमान की और ले गयी| हमने उस पेड़ को लिड/Lyd नाम दिया | और वो हमारी दोस्ती की निशानी बन गया | हम में झगड़ा होता तो हम उसके पास जाते ,और जब हमें दिन भर के काम के बीच मिलना होता, तो हम वहीँ मिलते | पर उस वक़्त जब हम पहली बार मिले ,तो हम दोनों शांत थे | उस पल हम दोनों ने अपने अंदर, एक दूसरे को अपनाने की फ़ीलिंग,अंदर से उठते महसूस की | अपने उन अनाम रिश्ते को जगह देने की कोशिश | कि हम दोनों एक दूसरे को गहराई से समझते हैं ,पर हम प्रेमी नहीं है | हमें उस पेड़ पर अपने नाम जड़ने की ज़रुरत भी नहीं थी |
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जब मैं एक साल बॉम्बे में थी, तब नेहा मुझे सरप्राइज देते हुए, पांच दिन के लिए बॉम्बे आई| वो मेरे कॉलेज कैंपस के प्लेग्राउंड पर मेरे क्लासेज ख़त्म होने का इंतज़ार करती | हम बस और ट्रेन लेकर, बॉम्बे दर्शन को नहीं जाते थे | बल्कि उन रास्तों की तफ़री करते, जहाँ से मैं रोज़ गुज़रती थी | जब वो जा रही थी, तो मैं उसे छोड़ने स्टेशन आई थी | हमने एक दूसरे को गले लगाया, नार्मल से थोड़ा ज़्यादा | आस पास के ऑटो वालों ने सीटीबाज़ी की | शायद हम प्रेमी ही थे | उन्होंने जो देखा, वो एक बाहरी शारीरिक एक्ट था| पर हम दोनों ने जो अंदर फ़ील किया, वो और गहरा था | हमने जो महसूस किया, उसमें वो सहजता थी जो हमारी चुप्पियों का हिस्सा रही थी और रहेगी | हमारे दो बदन उस सहजता को धरे हुए, एक साथ खड़े थे |
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नेहा के यहां, कालेज के बाद, कई दोपहर काटते समय हम दोनों ने एक सीक्रेट दुनिया ईजाद की थी, जिसका नाम हमें बॉब/Bob रखा | जहाँ हम जब चाहते, जा सकते थे | हमने उसको कोई आकार नहीं दिया था | कभी चित्र बनाते, तो अमीबा के आकार में | पर इक्कीस साल बाद सोचती हूँ, कि क्योंकि वो अमीबा के शेप जैसा था ,इसलिए वो बदल और बढ़ सकता था |
“तुम मेरी बहन हो या दोस्त हो या मेरी ‘डी’?” नेहा की बेटी ने मेरी बेटी से खेलते समय पूछा | दोनों हम उम्र हैं| मेरी बेटी नेहा से ढाई महीने छोटी है | तमिल में दो महिला दोस्तों के बातचीत में आखिर में डी का इस्तेमाल होता है | जैसे अंग्रेजी दोस्त लोग आखिर में ब्रो/Bro! का इस्तेमाल करते हैं, वैसे ही| पर मेरी जटिल उस भाषा जैसे ही मेरे लिए भी इसका इस्तेमाल करना बड़ा पेचीदा है | उस शब्द में वो गहराई और परतें हैं, जिन्होंने मेरी भाषा को जन्मा है | हिंदी के दोस्ती और यारी के बीच का शब्द | दो आसमानों के बीच का शब्द | एक वो आसमान, जहां हर शब्द के मायने हो, दूसरा वो, जो कई अनाम जज़्बातों के भंवर से भरा हो | मेरी बेटी ने हँसते हुए जवाब दिया, ‘ आई एम् योर डी/मैं तुम्हारी डी हूँ,’ और फ़िर उसी पल मुझे एहसास हुआ, कि नेहा भी मेरे लिए वही है | मेरी डी | वो दो शब्द जो दोस्ती और प्यार पर सवार, निर्भय योद्धा हैं |जो कमर पे हाथ रखे, पैरों को मज़बूती से फैलाकर, दुनिया की नज़रों में नज़र मिला कर, दुनिया को उसकी अपनी घृणा से रिहा करें | उन दो शब्दों ने हमारे रिश्ते को बिना कोई नाम दिए, अपनी कोख में बचा कर रखा | इन दो शब्दों को किसी और दुनिया की ज़रुरत नहीं थी | क्यों हो ? वो तो खुद ही नयी दुनिया को जन्म दे सकते थे|
प्रवीना शिवराम एक स्वतंत्र लेखिका हैं, जो मद्रास में रहती हैं| आप उनके लिखे हुए लेख praveenashivaram.com पर पढ़ सकते हैं|
मैं तुम्हारी डी हूँ
क्या प्यार और दोस्ती अलग हैं?
लेखन: प्रवीना शिवराम
चित्र: रिश्ता लोइटोंगबाम
अनुवादक: प्राचिर
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