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चाहत, सेक्स और बॉडी साइज़

“Oh, are you wearing a sleeveless top? Have you looked at your size?”

चेतावनी: यहां बॉडी शेमिंग की बात की जाएगी* 
"ओय-होय, आज स्लीवलेस टॉप पहना है? खुद को आईने में नहीं देखा क्या?" ये सिलसिला तब शुरू हुआ, जब मैं 10 साल की थी और क्लास 4 में पढ़ती थी। एक दिन स्लीवलेस टॉप क्या पहन लिया, मानो पहाड़ ही टूट पड़ा। उस दिन मैं समझ गयी, कि मुझे अपने वज़न पर शर्म आनी चाहिए। और अपनी बॉडी  को कपड़ों में छुपाकर रखना चहिये।  हमारा समाज किसी के मोटापे का मज़ाक उड़ाने से पहले एक पल भी सोचता थोड़ी ना है! उस समाज ने ‘आदर्श वज़न’ की सुई  को बस एक नंबर पर अटका के रख दिया है। अगर तुम्हारा वज़न उससे ज़्यादा हुआ, तो बिना तुमसे पूछे, बिना तुम्हें  बताए, तुमको मोटू की केटेगरी में डाल दिया जाएगा। फिर, तुम्हारे खाने-पीने का मज़ाक उड़ाया जाएगा। और तुमसे पूछे बिना, हर वक़्त तुमको ढेर सारे वज़न कम करने के टिप भी दिए जाएंगे। तो ये सब पढ़के आपको अंदाज़ आ गया होगा कि मेरा बचपन कैसा रहा ।  मैं पैदा भी एक बहुत छोटे शहर में हुई। तो और मुश्किल। वहां मेरी साइज़ के रेडीमेड कपड़े तक नहीं मिलते थे। दुकान वाले कन्नी काटकर कहते, "ओह, सॉरी! हम 2XXL, 3XXXL साइज़ नहीं रखते!"  (आज भी रेडीमेड कपड़ों में मेरी साइज़ मिलना आसान नहीं है) । स्कूल के दिनों में, जब मैं एन.सी.सी कैडेट थी, मुझे मेरे साइज़ के शर्ट-पैंट नहीं मिलते थे। घाव पे नमक, मेरा यूनिफॉर्म लड़कों के सेक्शन से मंगाना पड़ा! मुझे उन लड़कियों से जलन होती थी, जो दुकानदार के दिखाए गए सुंदर-सुंदर कपड़ों में से अपनी पसंद की ड्रेस चुन पाती थीं। मेरे साथ तो ऐसा था, कि भाई जो फिट आये, ले लो। पसन्द आये ना आये, लेकिन कपड़े तो वही लेने पड़ते थे, जो मेरी बॉडी को छिपा सकें। उस स्लीवलेस टॉप वाले कांड के बाद, मैंने कान पकड़ लिए । लोकल टेलर से ढीला सा सलवार कमीज़ सिलवा के, दुपट्टे के साथ पहनने लगी। ताकि मेरा पेट या मेरी जांघें कहीं से भी दिखाई न दें। मुझे मेरी बॉडी का 'एक्स्ट्रा' वज़न, ढक के रखना था। यानी इस घटना के दस साल बाद ही मैंने जींस पहननी शुरू कीं!  तब ये समझ नहीं आया था पर, मेरी बॉडी को लेकर मेरे अंदर पूरी तरह से शर्म भर दी गई थी।इस शर्म का असर  मेरे आत्मसम्मान पे तो पड़ा ही,  ये साथ साथ मेरी जवान सेक्सुअल चाहतों पे भी अपना रंग छोड़ गया। प्यूबर्टी, यानि ज़वानी में पहला कदम बढ़ाते ही, मेरी बॉडी में बदलाव होने लगे। लेकिन मैंने उस तरफ ध्यान ही नहीं दिया, क्योंकि तब तक तो मैं ये मान बैठी थी, कि मेरी बॉडी दिखने में बहुत ही खराब है। उस वक़्त मुझे बस एक चीज़ चाहिए थी, कि मैं किसी भी तरह, पतली हो जाऊं। मेरी उम्र की दूसरी लड़कियां तो बिंदास लड़कों से बात किया करती थीं। कितनों के तो बॉयफ्रेंड भी थे। मैं ऐसे दिखाती, जैसे मुझे ये सारी बातें फ़ालतू लगती हैं। खुद को ही कहती- "मैं उन टाइप की लड़कियों में से नहीं हूँ, जो बॉयफ्रेंड बनाती फिरती हैं।" लेकिन सच ये था, कि मुझे भी एक बॉयफ्रेंड चाहिये था। उस टाइम मेरे अंदर क्या चल रहा था, क्या कहूँ! मुझे इस बात पर यकीन ही नहीं होता था, कि मेरे जैसी मोटी लड़की खुद कभी सेक्सुअल चाहत रख भी सकती है। किसी में ऐसी फीलिंग्स जगा पाना, वो तो मुझे नामुमकिन ही लगता था! दूसरी लड़कियों और उनके सीक्रेट डेट देखकर, मेरा भी मन होता था, कि काश कोई होता जिसके साथ मैं फोर्ट रोड जा पाऊं! कोई हो , जो स्कूल के बाहर साईकल लेकर मेरा इंतजार करे! जो छुप-छुपाकर मेरे गर्ल्स स्कूल के अंदर मेरे लिए चिट्ठियां भेजे ! लेकिन मैंने अपनी इन चाहतों को हमेशा नकारा। उल्टा ये दिखावा किया, कि जो लड़कियां ऐसी चीज़ें करती हैं, वो 'अच्छी' नहीं होतीं । उनको बुरा बोला। दूसरों की नज़रों से अपने अंदर पहले से कमी महसूस कर रही थी । अब इन लड़कियों को बुरा भला कहके,  खुद कुसूरवार होने की फीलिंग भी आने लगी । 11th क्लास में एक बार किसी ने मुझे देखकर अश्लील ईशारे किये। जी, ये सेक्सुअल हर्रासमेन्ट/ यौन उत्पीड़न था। लेकिन, पता है, एक तरफ जहां मुझे घिन आयी, वहीं दूसरी तरफ एक राहत भी मिली। चलो, किसी ने तो मुझे उस नज़र से देखा। किसी ने तो मेरे शरीर को छेड़ने लायक समझा। ( मुझे कई सालों बाद समझ आया कि मेरी इस किस्म की सोच से मुझे कितना नुसकान हुआ)। जैसे-जैसे मैं बड़ी होती गयी, शर्म का एहसास बढ़ता गया। मेरे शरीर को लेकर नेगेटिव सोच भी परेशान करती रही। इस सबने मुझे जोख़िम के रास्ते ढकेल दिया। मैंने अपनी सेफ्टी को खड्डे में डाल, कभी फिज़िकल तो कभी डिज़िटल रिस्क लेना शुरू के दिया।  फिर कॉलेज के लिए, अपने प्यारे छोटे से शहर को छोड़, थोड़े बड़े शहर आ गयी। पहली बार, फॅमिली से दूर! यानि पूरी आज़ादी! तो शहर घूमने और लड़कों से बातचीत करने का मौका कैसे छोड़ती। वैसे कॉलेज के पहले साल, अपनी बॉडी को लेकर मेरी इनसिक्योरिटी और चिढ़ की वज़ह से,  मैं एक दम चुप करके बैठी थी। फ्रेशर्स पार्टी में भी नहीं गई! मुझे लगा, मेरे जैसी मोटी लड़की के साथ भला कौन पार्टी में जाना चाहेगा। और वैसे भी, पार्टी वाली छोटे ड्रेस पहनने के लिए पतली बॉडी कहां से लाती।  लेकिन फिर कुछ दोस्त बने। उन्होंने कॉलेज लाइफ को एन्जॉय करना सिखाया। उन दोस्तों के कहने पर ही, जीन्स पहनने की हिम्मत आयी। अब उनको कहां पता था कि मेरे बॉडी और मेरी पुरानी दुश्मनी थी । कि मैं और मेरी बॉडी एक दूसरे से बहुत नफ़रत करते थे। उनको अंदाज़ा भी नहीं था कि उनकी छोटी-छोटी बातों से मुझे कितनी सारी हिम्मत मिलती थी। कभी वो मुझे कॉलेज के किसी इवेंट के लिए बुलाते, तो कभी किसी प्रोग्राम में शामिल कर लेते थे। इससे मेरा कॉन्फिडेन्स बढ़ने लगा था। हाँ, सब कुछ तो नहीं बदला था। ऐसे भी कुछ लोग थे, जो मुझे इसलिए ढेर सारी सलाहें देते रहते थे क्यूंकि उनको लगता था कि वो मेरा अच्छा चाहते थे ! कहते, अपनी इस बॉडी को छिपा के रखो ! "रंग-बिरंगे कपड़े मत पहनो। ब्लैक पहनो! वो तुम्हारी बॉडी शेप को अच्छे से छुपा देगा।"  “कट स्लीव्स मत पहनो! 3/4 बांह वाले कुर्ते पहनो। इससे मोटी बांह छिपेंगी”! उफ! बॉडी शेमिंग वाले जोक्स और कमेंट तब भी मेरा पीछा कर रहे थे। खैर, कॉलेज के दूसरे साल, मैंने पहली बार छोटी ड्रेस पहनी! और एक लड़के ने मेरी तारीफ़ भी की! वो लड़का मेरा सीक्रेट क्रश था! पहली बार ऐसा हुआ था, कि जिसे मैं पसन्द करती थी, उसने मेरे बॉडी और मेरे लुक की तारीफ़ की थी। इससे पहले तो बस बुरे कमेंट ही मिले थे। क्लास 10 में  मुझे एक लड़के पर क्रश था। जब उसे पता चला, तो चुपके से आकर मुझे बोला- 'पहले खुद को आईने में तो देख लो!' और अब देखो! कॉलेज के दूसरे साल में, मैं जिसे पसन्द करती थी, वो मेरी तारीफों के पुल बांध रहा था! पहली बार, मैंने खुद को एक ऐसे इंसान की आँखों से देखा, जिसे मैं सुंदर और हॉट लगती थी।  हाँ, ये डर मन से अभी तक गया नहीं था कि कोई मुझे जज करेगा, छोड़ देगा । लेकिन ये डर शायद थोड़ा कम हो गया था। कॉलेज के ही एक दूसरे लड़के ने एक बार मुझे कहा था' "अगर तुम थोड़ी पतली हो जाओ, तो बहुत सुंदर दिखोगी।"  उसका कमेंट कितना रूड और दिल दुखाने वाला था, मैं उसे कह भी नहीं पाई। उस समय तो मुझे यही लगता था कि मोटे लोगों को बुरे कमेंट की आदत डाल लेनी चाहिए। सामने वाले की कोई गलती नहीं है। अरे! वो मेरे साथ है, यही उसका सबसे बड़ा एहसान है। ऐसे में, अगर वो दो-चार भद्दे बॉडी शेमिंग वाले कमेंट कर भी दे, तो चलता है। उसे दिल पे लेने की ज़रूरत नहीं है! कॉलेज के तीसरे साल में, मेरा एक रोमान्टिक अफेयर शुरू हुआ था। मेरे पार्टनर ने मुझे धोखा दिया, मुझसे झूठ बोला और सेक्सटिंग (चैट पे सेक्स वाली बातें) करने के लिए मज़बूर भी किया। लेकिन मैं फिर भी उसकी तरफ़दारी करती रही और उसके साथ टिकी भी रही। पता है क्यों? क्योंकि उस टाइम मेरे लिए ये सबसे ज़रूरी था कि कोई मेरी तरफ आकर्षित था। मैंने उससे और फिर उस जैसे और लड़कों से सिर्फ इस लिए हुक अप किया क्यूंकि मैं उन्हें सेक्सुअली उत्तेजित कर पा रही थी और उन्हें जम के मज़े दे पा रही थी। वो मेरे साथ सेक्स सुख /ओर्गास्म पाते थे । मैं इन लड़कों की तरफ बिल्कुल आकर्षित नहीं थी। ना ही उनके साथ सेक्स में मुझे कोई मज़ा आ रहा था। और इमोशनल हेल्प तो भूल ही जाओ। बल्कि मैं तो खुद के या अपने मज़े के बारे में सोच भी नहीं रही थी।  इतना ही काफी था कि वो मेरी तरफ आकर्षित थे। और ये देखकर, मेरी खुद से नफ़रत थोड़ी कम हो गई थी। जैसे एक गारेंटी मिल गयी थी, कि मेरी बॉडी भी किसी मर्द को उत्तेजित करने लायक था। कि मैं भी सेक्सुअल हो सकती थी। इन हुक-अप  इन हुकअप्पस के दौरान मैं अक्सर कुछ अंधाधुंध कर जाती, अपना ख़याल नहीं रखती । कोई मर्द मुझे पाने की चाह रखता था, जैसे ये ही मेरे लिए काफी था।    "मैं तुमको वज़न कम करने के लिए थोड़े ही बोल रहा। लेकिन तुमको अपनी हेल्थ का ध्यान तो रखना चाहिए।" मेरे लास्ट पार्टनर ने ये कहा था।  ज़वानी के शुरुआती दिनों से अब तक, मेरे बॉडी और मेरे बीच की नफ़रत कम ज़रूर हुई है, पर खत्म नहीं। पुराने ज़ख्मों के निशान अभी भी बाकी हैं। इसलिए आज भी मैं कभी कभी बॉडी शेमिंग वाले कमेंट, हेल्थ टिप्स मान के सह लेती हूँ। मुझे पता है, कि जो मेरे लास्ट पार्टनर ने कहा, वो बॉडी शेमिंग वाली बात थी । पर मैंने उसे जाने दिया।  आज भी मैं वो रंग नहीं पहनती, जिनमें मेरी बॉडी अच्छे से छुप ना पाए। आज मुझे मेरी बॉडी पर यकीन तो है, पर वो ‘बल्ले बल्ले !सब चंगा सी!!’ वाली फीलिंग अभी तक नहीं आयी। मेरे लिए ये एक लंबा सफर रहा है। पुरानी सोच, और मर्दों के लगाए तानों को पीछे छोड़ने का सफर । दो साल पहले तक मुझे लगता था कि जिसकी बॉडी ‘रेगुलर’ नहीं है , उनका मज़ाक बनना नार्मल सा है। ये सोच कितनी गलत थी, इसका एहसास मुझे एक दूसरी लड़की ने कराया। वो मेरी दोस्त थी। बला की खूबसूरत! लेकिन फिर भी बॉडी शेमिंग की शिकार! उसने बताया, कैसे उसका भी मज़ाक उड़ाया जाता था। तब जाकर मेरी आँख खुली। मेरी समझ में आ गया कि ये सब तो एक पितृसत्तात्मक (patriarchal) पैटर्न का हिस्सा था। ऐसा नहीं है कि अब मैं अपनी बॉडी के साथ पूरी तरह से कम्फ़र्टेबल हूँ। या मुझे उसपर पूरा कॉन्फिडेंस है। लेकिन अब मैं सिर्फ हेल्थी रिस्क लेती हूँ। जैसे कि एक फोटोग्राफर की न्यूड (बिना कपड़ों के) मॉडल बनना। वो बदन और बदलाव पे एक सीरीज़ कर रहा था। उसके साथ काम करते वक़्त, मैं देखना चाहती थी कि मेरी बॉडी के वो हिस्से आखिर कैसे दिखते हैं, जिनसे मुझे नफरत करना सिखाया गया था। जैसे  'एक्स्ट्रा' चर्बी वाली मेरी पीठ! मैं कैमरे पर अपने बूब्स (breast) भी देखना चाहती थी। ये शूट बड़े ही नेचुरल तरीके से होता चला गया, सहज । मैंने उसका हर पल एन्जॉय किया। मैं वहां हर चीज़ का हिस्सा थी। फ़ोटो लेते समय, फिर उनको देखकर, जांचकर, आगे की फ़ोटो की प्लानिंग करते समय! इस शूट ने मुझे खुद पर कंट्रोल करना सिखाया। मैं कैमरे में कैसी दिखूं, ये जैसे मेरे ही ऊपर था। खुद पर यक़ीन सा होने लगा। अगर मुझे फैमिली का डर नहीं होता और मेरे दोस्त मुझे ग़लत नहीं समझते, तो मैं कई और ऐसे  शूट करती। सेक्स के टाइम आज भी उस पोज़िशन से डरती हूँ जिसमें मैं ऊपर रहूं। कहीं मेरे पार्टनर का ध्यान मेरे वज़न पे ना चला जाए... हमेशा यही डर लगा रहता है। चलो ये सब एक तरफ! मज़े की बात तो ये है, कि अब मैं ये कह सकती हूँ कि इस दौरान मैंने होश उड़ाने वाले सेक्स का लुत्फ़ उठाया है । और मज़े के नाम पे धब्बा टाइप का, बोरिंग सेक्स भी झेला है। तो जब ये दोनों बातें हुई हैं, तो ये तो साफ़ है कि सेक्स के सुख में, मेरे वज़न का कोई भी रोल नहीं है।  कच्ची उम्र में जो चीज़ें हमें बताई -सिखाई जाती हैं, उनका हमारी सोच पे गहरा असर पड़ता है। मुझे भी अपने बदन को लेके उस सारी फूहड़ सोच को पीछे छोड़ने में, कई साल लगे हैं। अब मैं जान गई हूं, कि आपका सेक्सुअल आकर्षण या सेक्सुअल मज़ा, आपके बदन के शेप या साइज़ पे निर्भर नहीं करता है। लव, लस्ट और सेक्स, हर साइज़ में मिलते हैं। मेरा बॉडी मेरी पर्सनालिटी का एक हिस्सा है। "मैं" केवल मेरा बदन नहीं, ना ही उस बदन पे शर्म करने की कोई ज़रुरत है । मैं अभी भी अपने बदन के बारे में नई नई चीज़ें जान रही हूँ। लॉकडाउन के टाइम, मैंने अपने छोटे से कमरे में, अलग-अलग टाइप से अपना न्यूड फोटोशूट किया। और पाया, कि मुझे मेरे बूब्स बहुत पसंद हैं (ब्रा के साथ और उसके बिना भी)। मेरे टैटू (tattoo) एकदम हॉट हैं। और मेरे इयर-रिंग (earring), क्या मस्त सेक्सी।! ये पूरा सफर, मेरे लिए बहुत लंबा रहा। सबसे पहले जब मैं एक बच्ची थी, जिसे सिखाया गया था, कि उसे अपना बदन छिपाने की जरूरत है। फिर एक कच्ची उम्र की टीनएजर, जो सेक्सुअल तरह से परेशान किया जाना, सह लेती थी। ये सोचके कि इस तरह ही सही, पर उसे कोई अपना तो रहा था। और आज, मैं प्राउड होकर ये कह सकती हूँ कि मैं इस सबसे बहुत आगे बड़ चुकी हूं। आज, अगर मैं अपने टीनेजर वाले रूप से फिरसे मिल सकती, तो बड़े प्यार और यकीन से उससे कहती कि- "तुम जानती हो, तुम वो हो जो पानी में आग लगा सकती है।"   एस. एक रिसर्चर है, लेकिन उसने एक दूसरा करियर ऑप्शन भी सोच रखा है- मॉडल बनने और न्यूड फोटोशूट करने का। जब रिसर्च या राइटिंग में जुटी नहीं होती, तब ख़याली घरों को सजाने के सपने देखती है । और इंस्टाग्राम पे म्यूजिकल स्टोरी डालती है।     *बॉडी शेमिंग, यानि आपके बॉडी की साइज़, आपके वज़न, स्किन के रंग, आपकी ड्रेस, मेकअप... आपकी पर्सनालिटी का किसी भी रूप में मज़ाक उड़ाया जाए, और उस वज़ह से आप नीचा महसूस करें

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