कभी प्यार हमें, कभी हम प्यार को रास ना आये।
"तुम ठीक तो हो ना?" उसने अपने को मुझ से अलग करते हुए पूछा ।
"सॉरी! एक और फ्लैशबैक।" मैंने आह भरी ।
मैं उसे अब किस भी न कर पाई । घुटन सी महसूस हो रही थी।
"कोई बात नहीं!" उसकी हताश सी आवाज़ सुनाई पड़ी ।
ये सब मेरे लिए नया नहीं था। ऐसी निराश आवाज़ों की आदत पड़ गयी थी । एक और सही! वैसे भी, मैं अब कुछ समझ चुकी थी। कैज़ुअल (Casual) सेक्स में किसी तरह का कमिटमेंट नहीं होता है। ये सेक्सुअल मेल मिलाप तक ही सीमित रहता है। चरमसुख प्राप्त, तो मीटिंग समाप्त!
लेकिन प्यार! उसे तो कमिटमेंट चाहिए। और कमिटमेंट से मुझे घबराहट होती है। मैंने किसी पे भरोसा किया, उससे प्यार भी हुआ। पर हमारे बीच, पुरानी यादों की एक दीवार थी। यौन शोषण और चालबाज़ी का शिकार होने की । वैसे मुझे पता है कि जो हुआ, उसको रेप/ बलात्कार कहते हैं। पर वो शब्द बहुत भारी लगता है। क्या प्यार ने मुझे अपना शिकार बना दिया?
मैं खुद को समझाती हूं, "मुझे उसकी वजह से खुद को नहीं बदलना चाहिए । वो तो बहुत अच्छा था, प्यारा था। जिसने ये किया, वो कोई और ही था।" दिमागी खलल! दांव-पेंच! गलती किसकी थी? इस सवाल की गेंद को मैं कभी इधर, कभी उधर उछालते हुए, ये सोचती, कि आखिर प्यार कब और कैसे खो गया , कब बदल गया। "सारी गलती इस गंदी सोच रखने वाले पुरुष प्रधानसमाज की है। अगर ये दुनिया अलग होती... शायद वो अलग होता... तो मैं सेफ रहती। मुझे प्यार मिलता।"
कभी ये ख़याल आता, कभी वो, मन तितर बितर हो जाता । अगर मैं उसको कुसूरवार मान लूं, तो मुझको चैन नहीं। अपने को दिलासा देने के लिए मुझे उसकी साइड लेनी होगी । पर न वो दिलासा मिलता, न चैन । वो कहते हैं ना, प्यार अंधा होता है। तो बताओ, कोई आपका रेप करे और आप उसे बचाते फिरो- ये प्यार होता है? क्या मैं बस नाम की फेमिनिस्ट/नारीवादी थी? 'मुझे ऐसे आदमी का बचाव कभी नहीं करना चाहिए।' लो, फिर वही, खुद की खुद से लड़ाई। ये सब मेरे साथ सचमुच हुआ भी था क्या? क्या मेरे मन के घाव असली थे?
ये साफ़ साफ़ समझ पाना मुश्किल है कि ये क्यों हुआ। और ऐसा पहले भी तो हुआ था। एक दूसरे लड़के के साथ! जिसे मैं भाई मानती थी। लो, अब मेरे फ्लैशबैक में एक नया चेहरा शामिल है।
मैं, जो प्यार के हर रूप-हर रंग पे पे विश्वास करती हूँ, कई पार्टनर्स पे मेरा भरोसा टूटा है । फिर चाहे वो 11 साल पहले वाले चचेरे भाई की वजह से हो, या एक साल पहले वाला पार्टनर की वजह से। एक धोखा दूसरे धोखे में मिल जाता है।
तो आखिर में, मैं अपने एक दूसरे प्रेमी से जा मिली। जो कि एक अच्छा दोस्त भी है । उसने मुझे इन भावनाओं से जूझते देखा। फिर कहा, "मुझे पता है तुम दुखी हो। पानी सर के ऊपर चला गया । पर ऐसा कुछ भयंकर भी भी नहीं हुआ है। तुम्हारी एक शिकायत रहती थी न, कि तुम्हारी लाइफ में सेक्स की कमी है। खैर वो छोड़ो। मैं ये नहीं कह रहा कि उसने जो किया, सही किया। पर ये भी सच है कि वो मेरा दोस्त है और वो हमेशा मेरे लिए खड़ा रहा है। मैं उसे छोड़ दूं, ये मुश्किल है।"
एक और धोखा! क्योंकि वो जिस दोस्त को छोड़ रहा था, वो कोई और नहीं- मैं थी। खुद मैं !
"मुझे सेफ नहीं महसूस होता है । अगर तुम उसका साथ दोगे तो, उसने मेरे साथ जो बुरा किया, मैं तुमको उससे अलग न देख पाऊंगी । तुम्हें हम दोनों में से किसी एक को चुनना होगा। हम में से कोई एक ही तुम्हारा दोस्त बना रह सकता है।" मैंने फैसला सुना दिया।
“मुझे सोचने के लिए टाइम दो। आखिर वो भी मेरा दोस्त है।"
"तुम्हें मैं चाहिए या वो जिसने मेरा बुरी तरह इस्तेमाल किया ?" मैंने फिर पूछा।
"मुझे बस कुछ दिन चाहिए।"
कॉल ऐसे खत्म हुआ। और अब कुछ दिन से ज्यादा हो चुके हैं।
अतीत के इस साये को याद करके, किसी अनजान आदमी को निराश करने का मेरा कोई इरादा नहीं था। खासकर उस अजनबी को, जिसे इस सब की कोई परवाह नहीं। पल दो पल का साथ, पल दो पल के याराने। इसके बीच कुछ बेफिक्र किस। उस आदमी को ये जानने की ज़रुरत नहीं है, कि मैं कैसे किसी सुख की सीमा पे पहुँचते ही, पीछे हट जाती हूँ । और मैं यहां सेक्सुअल सुख की बात नहीं कर रही हूँ ।
मुझे हमेशा ये डर रहता है कि ना जाने कब ये शरारत के पल कुछ अलग ही मोड़ ले लें। कब ये मुझे प्यार से ना छूकर, धर दबोचें। मेरे अंदर, आपबीती को लेके शर्मिंदगी है, कुसूरवार होने की फीलिंग है। मैं इसे बाहर ज़ाहिर नहीं करना चाहती। इसलिए, मैं इस अजनबी को जाने दूंगी। और उसकी निराशा भरी आहों को अपने अकेलेपन का हिस्सा बना लूंगी।
तो अगर प्यार गुलाब है, तो ये रहा मेरा गोभी का फूल। ना कोई लाल पंखुरी, ना वो कांटे, जो गुलाब को पकड़ के रखने को तड़पती उँगलियों से खून बहा दें। प्यारे गुलाब, मैं तुमको भी छोड़ दूंगी, ज़मीन पे गिरने के लिए। काँटों के साथ।
लाली देखन मैं चली, मैं भी हो गई लाल? खून से लथपथ हाथ लिए एक लड़की। मैं आगे के लिए अच्छा सोचूं, ये मुमकिन नहीं। दरअसल मैं आशावादी किस्म की हूँ ही नहीं। लेकिन हां, अगर आप वो हैं जिनमें कल को मुझे दिलचस्पी हो सकती है, तो शायद आप इस बात पर हंस दें कि, "आपने मुझे रंगे हाथों पकड़ लिया है।"
जी हाँ। बस ऐसे ही चल रहा है।
सागरिका कानून की पढ़ाई करने वाली एक अंडर-ग्रेजुएट स्टूडेंट है। उसे कानून, कविताएं, लिटरेचर और आर्ट का शौक है। अभी , इस घड़ी, शायद वो किसी ना किसी को साम्यवाद/कम्युनिज़्म के बारे में लेक्चर दे रही होगी।
प्यार गुलाब सा होता है ? मेरा गुलाब - गोभी है !
दूध का जला छांछ भी फूंक-फूंक कर पीता है। ऐसे में फिर से किसी पर भरोसा करना, आसान नहीं।
लेख - सागरिका
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