कभी कभी मेरे दिल में ख़याल आता है कि पहली बार वैलेंटाइन्स डे कब मनाया गया होगा? यह लोगों में पोपुलर कब हुआ? एक तरफ क्यूट कार्ड, बड़े टेडी बियर, तो दूजी तरफ संस्कृति को बचाने निकले भड़के हुए लोग l लव पे रियलिटी शोज़, साथ में मातृ-पितृ दिवस ! कभी ब्लैक डे कभी रोज़ डे... वाकई भारत में वी-डे का इतिहास काफ़ी रंगीन रहा है|
अब प्यार किसी अनजान चिड़िया का नाम नहीं l ना ही प्रेमियों का नदी किनारे मिलना | वहां, जहां कोयल कूक रहीं हो, मैना गा रही हो l आजकल, प्रेमी सी.सी.डी. में कागज़ के गुलाबी दिल वाले पंछी के नीचे दिल के तार मिलाते हैं | पर प्यार के दुश्मन भी अपनी पुश्तैनी रीत से मजबूर हैं, है न ! यानी अपने मन के मुताबिक़ प्यार करने वालों और अलग जाति-धर्म से रिलेशनशिप रखने वालों के खिलाफ़ आवाज़ उठाने पे ‘मजबूर’ l ये सब काफी न था, कि अब इस चक्की में वी-डे भी मिल गया और जैसा प्यार में होता है – वी-डे ने भारत को बदल दिया और भारत ने वी-डे को| इसके छोटे से इतिहास को परख के मुझे कुछ और पता चलेगा क्या ?
वो ग़ालिब ही था ना जिसने कहा था, यह ना थी हमारी किस्मत कि वैलेंटाइन्स कार्ड होता, पर मेरे पास भी आपके लिए शेर-ओ-शायरी है| मतलब, क्या वैलेंटाइन्स डे अलग रूप में भी मनाया जाता है? ये बहुत समय पहले शुरू हुआ क्या ? यानी इंटरनेट के पहले होता था कि नहीं ?|
1970 का दौर था ...पोल्का डोट्स, कोली ब्लाउज़, लोगों को नचाती हुई, सात समंदर पार से आयी डिस्को की धुन, प्यार का रंग हर तरफ l जहां देखो जवान लोग ही दिखते, खासकर कॉलेज जाने वाली लड़कियाँ l जेब खर्च के मुताबिक़ कैफ़े धीरे धीरे शहरों में आ रहे थे| जवां प्यार और जवां जीवनशैली- पॉप म्यूज़िक, कैसेट्स, नाच गाना और फैशन – सब का सुरूर चढ़ रहा था|
1973 – “मैं बॉबी| मुझसे दोस्ती करोगे?”
सोलह बरस की बात (याद रखिये, उस समय 16 की उम्र में आपको अपना सेक्स पार्टनर चुनने की कानूनन आज़ादी थी, समझे?) करती हुई एक नयी फ़िल्म, बॉबी, ने लोगों के दिलों में धूम मचाई हुई थी | देशभर के किशोर, राज और बॉबी की नकल करने लगे थे| बालों के क्लिप्स से लेकर साड़ियों तक, बॉबी के नाम की धूम थी|
इसे वैलेंटाइन्स डे के पूर्वज नहीं बोलेंगे तो क्या कहेंगे? भले ही उस समय इसे सही नाम से ना जाना गया हो|
ऋषि कपूर और डिंपल कपाड़िया की बॉबी सुपर डुपर हिट थी| इसने लोगों में एक युवा, स्टाइलिश, जूनून से भरे हम तुम एक कमरे में बंद हो जैसे प्यार की आग जगा दी थी|
1975 – अंजुना फ्ली मार्किट का उदघाटन हुआ
कुछ अमरीकी मस्तमौला हिप्पी, भारत भर की सैर, कभी ड्राइव करते हुए, कभी लिफ्ट लेते हुए कर रहे थे l वो गोवा आ पहुंचे(कम से कम उनका गोवा ट्रिप तो सफ़ल हुआ) | हम प्रोतिमा बेदी कह पाएं, उतनी सी देर में येर्टगार्ड ‘आठ ऊँगली वाला’ मज़मानियाँ (जी हाँ, वो बियर इनके ही नाम पर है) – ने 1975 में वैलेंटाइन्स डे के दिन अंजुना में पहला फ़्ली मार्किट लगा दिया | ये फ़्ली और फ्री प्यार वाली खुशी भारत के लोगों में फ़ैल रही थी | और हो सकता है कि वैलेंटाइन डे पे इस मार्किट के बनने से हिंदुस्तान में वैलेंटाइन डे की बात जागी हो ?|
1979 – आर्चीज़ नाम की दुकान का आगमन हुआ
अनिल मूलचंदानी के पिताजी की साड़ी की दुकान थी l अमरीका से लौटे एक ग्राहक ने उन्हें दो पॉप स्टार वाले पोस्टर दिए | अनिल ने कुछ सोच के उन पोस्टरों को कमला नगर की दुकान पे दरवाज़े पे लगा दिया | उन पोस्टर पर ‘इम्पोर्टेड’ का ठप्पा था| और राह गुज़रने वालों, ग्राहकों, बड़े सारे लोगों की नज़र उन पर जाती थी| उनमें ज़्यादातर पास वाली दिल्ली यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स थे| जिन्होंने पूछना शुरू किया कि उनको ऐसा पोस्टर कहाँ से मिल सकता है |
अनिल मूलचंदानी ने मौके पे चौका मार दिया और रोमांस और मूवी के पोस्टर्स प्रिंट कर के अपनी साड़ी की दुकान में से बेचना शुरू किया| वो इनको पोस्टल ऑर्डर से भी बेचते थे| सफलता की इस सीढ़ी को चढ़ते हुए,, 1979 में आर्चीज़ ग्रीटिंग्स और गिफ्ट्स का जन्म हुआ| इसका नाम आर्चीज़ नाम की कॉमिक्स से मेल खाता था| जिनमें जवान अमेरिकी की डेट्स पर जाने वाली और आइसक्रीम के ऊपर मिलने जुलने की संस्कृति दिखाई देती है| निरुलाज़, जो आर्चीज़ के खुलने से दो साल पहले चालू हुआ था, संडे को संडे(आइसक्रीम) खाने के बहाने, डेट पर दिल की बात करने की मशहूर जगह बन गया |
1980 – ग्रीटिंग कार्ड का जन्म हुआ
आर्चीज़ ने पोस्टरों को, हाथ में आने वाले कार्ड के साइज़ में प्रिंट करके, गिफ्ट करने वाले कार्ड्स के रूप में बेचना शुरू किया| पोस्टर सीरीज़ के नाम से l ये कार्ड्स मिक्की माउस, डोनाल्ड डक जैसे मज़ेदार डिज़नी किरदारों के ज़रिये, प्यार का पैगाम और दिल की बात बताने में मदद करते थे| ये दिलों में और बाज़ार में आग की तरह फ़ैल चुके थे| अंग्रेजी में कहते हैं कि “आई लव यू” l उफ्फ्! अपने जज्बातों को बयान करने का मस्ती भरा लहज़ा, वो भी अंग्रेजी में, यानी भारत के पॉप कल्चर में प्रवेश कर चुका था|
1970 के दशक के आखिरी सालों से लेकर 1980 के शुरुआती सालों तक – रोज़ डे
असली तारीख का तो पता नहीं, पर लोगों की यादों को टटोलने पे, हमें पता चला कि इसकी शुरुआत एल्फिन्सटोन कॉलेज में हुई थी| बम्बई के कॉलेजों की हवा में(या फ़िर मशहूर कहानियों के अनुसार), गुलाबों की खुशबू पाई जा सकती थी| और कुछ इस ही तरह, रोज़ डे को मनाने का चलन शुरू हुआ| जहां स्टूडेंट्स एक दूसरे से अपने प्यार का इज़हार दिल से करने के लिए, एक दूसरे को रोज़ देते थे|
ज़ाहिर है, ऊपर ऊपर से ये एक बदलाव की निशानी थी| प्यार के प्रति प्यारा रवैया| पर इसमें हमेशा एक छोटा सा फ़र्क था:
“युवा लड़कियों में से, जिसको सबसे ज़्यादा गुलाब मिलते थे, वो रोज़ क्वीन कहलाती थी| कोई रोज़ किंग नहीं बनता था| क्योंकि लड़कियों/औरतों द्वारा किसी लड़के को रोज़ देना नामुमकिन सी बात थी| एल.जी.बी.टी.क्यू. को तो छोड़ ही दो|” – सोनोरा झा, ५२ वर्षीय
कुछ लोगों के मुताबिक़, इसकी शुरुआत रोटरी क्लब के लिए पैसा जोड़ने के लिए हुई थी | ये सोचके कि गुलाब से कमाई गयी रकम, किसी मदद करने वाली योजना को जायेगी| औरों का कहना है कि यह प्यार और दोस्ती का जश्न मनाने के मकसद से शुरू किया गया| जो भी हो, आने वाले सालों में, रोज़ डे एक परंपरा तो बन ही गया, साथ साथ वैलेंटाइन वीक का एक महत्वपूर्ण दिन भी |
जाड़ा ना सही, पर कुछ तो आ रहा है | उदारीकरण/liberalisation | ‘ऑफर’ का मतलब अब सिर्फ शादी या जॉब के ऑफर नहीं | म्यूजिक टीवी, सोची समझी मार्केटिंग, विज्ञापन, ब्रांड्स और कई अन्य तरीकों से, वैलेंटाइन-डे भारत के त्यौहार बाज़ार में जगह बनाने का तरीका बन गया| अब तो इससे मार्किट में भी त्यौहार का माहौल बन जाता है| मार्केटिंग की भाषा हिंगलिश होती है, जो सबको भाती है | यह देसी और विदेशी का ऐसा संगम कराती है, जो नया भी होता है और लोगों को ज़्यादा समझ में भी आता है|
1985- वैलेंटाइन कार्ड से वैलेंटाइन विज्ञापन तक
अपनी पहली वैलेंटाइन्स डे योजना के अंतर्गत, अपने प्यार भरे सन्देश वाले कार्ड्स की सफलता को और बढ़ाते हुए, आर्चीज़ ने मार्किट को नयी पेशकश दी – वैलेंटाइन्स कार्ड| पहली दफा भारत के बड़े अखबारों में वैलेंटाइन्स डे का विज्ञापन छपा |
1991 – चलो बाज़ार चलो, उदारीकरण आया है
आर्थिक उदारीकरण ने अन्तराष्ट्रीय देखने, सुनने और पढ़ने की चीज़ों के लिए भारत के दरवाज़े खोल दिए | निजी चैनलों की शुरुआत, अन्तराष्ट्रीय सॅटॅलाइट प्रसारण, युवा मैगज़ीन, रेडियो चैनल पर अन्तराष्ट्रीय संगीत का बजाना, इन सब ने उस समय के कल्चर का दिल खोल कर स्वागत किया|
फरवरी 1991- इस बिजली की रफ़्तार के बढ़ने वाले वैलेंटाइन मार्केट को और बढ़ाने के लिए, फरवरी की शुरुआत में टी.वी.(स्टार चैनल) पर आर्चीज़ का पहला विज्ञापन आया| (उस समय एक ही चैनल था, स्टार | )
1992- वैलेंटाइन्स डे पर एम.टी.वी. का स्पेशल
भारत में एम.टी.वी. का आगमन स्टार टीवी के साथ हुआ था| उन्होंने साथ में अपना पहला वैलेंटाइन्स डे इवेंट आयोजित किया- एक प्रेम पत्र लिखने की प्रतियोगिता| आखिर कबूतर से भेजी हुई प्यार की चिट्ठी, ख़ास शुद्ध देशी ही तो है |
1994- फूल खिले हैं गुलशन गुलशन
फ़ूलों के फलते फूलते बाज़ार में फर्न्स एन पेटल्स का आगमन हुआ| 2002 में उन्होंने अपनी पहली वेबसाइट लांच की| जिस पर आर्डर करने पर वो फूल किसी भी समय पहुँचा सकते थे| आखिर, दिल तो फूल ही है |
1997 – अब आई फ़िल्मी बहार
प्यार का त्यौहार बॉलीवुड, कौलीवुड और टोलीवुड तक फ़ैल चुका था| शाहरुख खान को किंग ऑफ़ रोमांस ऐसे ही नहीं कहते हैं| माधुरी दीक्षित के साथ ‘दिल तो पागल है, 1998 में कुछ कुछ होता है (नीलम शो की मदद से), कल हो ना हो और कई सारी दूसरी फ़िल्मों ने वैलेंटाइन्स डे को SRK की फिल्मों का अभिन्न अंग बना दिया| शाहरुख ने किया तो हमने भी करना है|
1999 – कदालर दिनम(तमिल में प्यार का दिन या समझो, वैलेंटाइन्स डे ) l ये तमिल की उन पहली फिल्मों में है जिस में वैलेंटाइन डे पर ख़ास ध्यान दिया गया| फ़िल्म के आखिर में(चेतावनी! एंडिंग बताने जा रहे हैं ) बड़े ड्रामे के बाद राजा और रोजा की शादी, वैलेंटाइन्स डे के दिन हो जाती है|
इक्कीसवीं सदी आई| कुछ लोगों की भविष्यवाणी थी कि सन 2000 में इन्टरनेट का बंटाधार हो जाएगा l ऐसा तो नहीं हुआ l पर उससे पहले के दशक की नयी अर्थव्यवस्था और संस्कृति से जो बदलाव आये थे, वो अब बिजली की स्पीड से आगे बढ़ने लगे l हमारी दुनिया बदलने लगी |
1997-2000 – मार्केट की धूम
वैलेंटाइन्स डे का जश्न अब कई शहरों में मनाया जाने लगा था! खासतौर पर बॉम्बे जैसे बढ़े शहर में| वाय.टू.के. के गढ़ में| कई रेस्टोरेंट जैसे कॉपर चिमनी, सी.सी.डी., बरिस्टा, मिर्च मसाला, मोंजिनिस, बड़े ब्रांड्स ने वैलेंटाइन्स डे पर लोगों को साथ लाने वाले इवेंट शुरू किये |
2000 – मार्केटिंग और लाइफस्टाइल के लिए मशहूर बॉम्बे टाइम्स ने 14 फरवरी को, अपने अखबार में एक हैडलाइन डाला ‘रीमेम्बर, क्यूपिड राइम्स विथ स्टुपिड’ (मोटे तौर पे: ‘याद रखिये, कामदेव और बदनाम देव एक सिक्के के दो पहलू हैं’), पर इससे प्यार में पड़ने वालों को कोई फ़र्क नहीं पड़ा|
चौपाटी बीच में एक बड़ा विशाल सा वैलेंटाइन्स डे कार्ड लगाया गया| जिस पर प्रेमी जोड़े आ कर साइन कर सकते थे, पत्र लिख सकते थे और फ़ोटो ले सकते थे|
बी.बी.सी. ने लिखा, “एक टीवी चैनल प्रसिद्ध टाइटैनिक जहाज़ के आकार का बड़ा सा सेट ले कर शहर के कई कॉलेजों में जा रहा है| युवा प्रेमी जोड़े उस पर खड़े होकर फ़िल्म के स्टार केट विंसलेट और लियोनार्डो डी कैप्रियो जैसा रोमांटिक पोज़ कर सकते हैं|”
चैनल वी ने चैनल वी क्रश नाम का शो चालू किया| जिसमें वो लवर्स को उनकी कहानियाँ भेजने को कहते थे| और फ़िर वो उनके प्यार का या जश्न मनाते, या कामदेव बनके, उनको साथ लाने में मदद करते| यह शो 2000 से लेकर 2005 तक चला था|
युवा और कई और जो युवा नहीं थे, बड़े सारे देसी लोगों ने वैलेंटाइन्स डे को अपना लिया था| लेकिन ये बात हर एक को रास न आयी | कई राजनैतिक पार्टियों ने इस पे, पश्चिम सभ्यता का हिन्दुस्तानी संस्कृति को बिगाड़ने का आरोप लगाया| उनके मुताबिक़ इसके चक्कर में माँ दा लाडला और लाडली, दोनों बिगड़ गए थे| हमेशा की तरह जहाँ प्यार की बात हुई, वहाँ जात, धर्म, कंट्रोल और बदलाव की बात छिड़ गयी| और वैलेंटाइन्स डे ने इन पार्टियों को ‘परम्परा’ और सामाज पर अपना दबदबा, वापस स्थापित करने का मौका दे दिया|
2001 – वी फ़ोर वायोलेन्स
1996 से ही शिव सेना और बजरंग दल वैलेंटाइन्स डे पर हमला करते आ रहे थे|
12 फरवरी को बाल ठाकरे ने खुल्लमखुल्ला शिव सेना के ‘सामना’ अखबार में वैलेंटाइन्स डे मनाने की बात करते हुए कहा, “इस शर्मनाक त्यौहार को हमारे देस के युवा पिछले दस साल से मनाए आ रहे हैं, पर यह हमारी भारतीय संस्कृति के बिल्कुल खिलाफ़ है|”
वैलेंटाइन्स डे के दिन कार्यकर्ताओं ने दिल्ली के विम्पी नाम के पोपुलुर फ़ास्ट फ़ूड पर हमला किया| वहाँ कपल्स वैलेंटाइन्स डे मना रहे थे| उन कार्यकर्ताओं ने पेड़ पौधे, क्राकरी और फर्नीचर तोड़े| रेस्टोरेंट बंद हुआ और सभी प्रेमी जोड़े अपनी जान और इज्ज़त बचा कर भाग गए| कार्ड और गिफ्ट्स बेचने वाली दुकानों(खासतौर पर आर्चीज़) पर बॉम्बे, पुणे, बरेली, भोपाल और बनारस जैसे शहरों पर हमले होने लगे|
बनारस में वैलेंटाइन्स डे मनाना एक शर्मनाक हरकत है, इसका सन्देश देने के लिए विरोधी कार्यकर्ताओं ने वैलेंटाइन्स डे मना रहे युवाओं के बाल काट दिए और मुँह काला कर दिया|
2002 – जब प्यार किया तो मोरल पुलिस से डरना क्या?
आर्चीज़ ने शिव सेना के ख़िलाफ़, उसकी दूकान पे गए साल हमले को लेके केस दर्ज किया| जोकि खारिज हो गया | लेकिन कई अखबार और युवा प्रशंसक खुलकर आर्चीज़ और वैलेंटाइन्स डे के समर्थन में आगे आये|
उन हमलों के बावजूद युवा प्रेमियों में वैलेंटाइन्स डे के लिए उत्साह कम नहीं हुआ| क्या लोगों को आज़ादी का केवल आधा ही स्वाद चखने को बोलोगे? वैलेंटाइन्स डे के कार्ड अब हर भाषा में बिकते हैं| और वैलेंटाइन्स डे सही में एक त्यौहार के रूप में बदल चुका है| जैसे डांडिया, जो देसी प्यार का पर्व है | अब तो वैलेंटाइन्स डे सात दिन में फ़ैल चुका है- रोज़ डे, प्रोपोज़ डे, चॉकलेट डे, टेडी डे, प्रॉमिस डे, किस डे, हग डे, और आखिर में वैलेंटाइन्स डे| एक तरीके से इस बदलती दुनिया में वैलेंटाइन्स डे कई भावनाओं को एक साथ जताने का एक ज़रिया बन गया | जिसको मार्केट की मदद तो है, पर जो केवल मार्किट तक सीमित नहीं है |
2008- पर्सनल अब पोलिटिकल है – द इंडियन लवर्स पार्टी
एक पुराने मेकअप आर्टिस्ट कुमार श्री श्री, ने चेन्नई के मरीना बीच पर हुई हिंसा के ख़िलाफ़ द इंडियन लवर्स पार्टी ILP (भारतीय प्रेमियों की पार्टी) का गठन किया| वो ‘प्यार की राजनीति’ फ़ैलाना चाहता है|” तब से हर साल आई.एल.पी. के “लवर्स’ बीचों पर प्रेमी जोड़ो को चॉकलेट्स देते हैं और पार्टी का प्रचार करते हैं|
जनवरी 24 2009 – श्री राम सेने ने मंगलोर के पब पर हमला किया
24 जनवरी को श्री राम सेने ने मंगलोर के पब में मौजूद आदमी और औरतों पर हमला किया| उनके अनुसार, औरतों का पब्स में मर्दों के साथ मिलना जुलना भारतीय संस्कृति के ख़िलाफ़ है| श्री राम सेने के संस्थापक, प्रमोद मुथालिक ने इस हमले की प्रशंसा करते हुए कहा,”जिसने भी यह किया है, बहुत अच्छा काम किया है| लड़कियों का पब जाना कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा| इसलिए सेना के मेम्बेर्स ने बिल्कुल सही किया|”
14 फरवरी 2009 - पिंक चड्डी अभियान
इस सब के जवाब में फेसबुक पर एक ग्रुप बनाया गया जिसका नाम था 'कंसोर्टियम ऑफ पब-गोइंग, लूज एंड फॉरवर्ड वीमेन’ (यानी पब जाने वाली बेशरम, आज़ाद खयालों वाली औरतों की टोली )। लगे रहो मुन्ना भाई से प्रेरित होकर, इस ग्रुप के लोगों ने "बेशरम औरतों" की एकजुटता दिखाने के लिए, सभी को मुथालिक (नेता जी) को गुलाबी अंडरवियर भेजने के लिए कहा। इस शांतिपूर्ण पर मज़ेदार किस्म के विरोध को, पिंक चड्ढी अभियान का नाम दिया गया। और मुथालिक को वैलेंटाइन्स डे के दिन 5000 जोड़े गुलाबी अंडरवियर गिफ्ट में मिले। क्योंकि प्यार जैसे, “ चड्डियाँ हमेशा- हमेशा के लिए हैं !"
2009 - अलविदा 377 (भाग 1)
दिल्ली हाईकोर्ट ने 2009 में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। चीफ जस्टिस ने कहा - "जहां तक धारा 377, एडल्ट- चाहे वो समलैंगिक हो या विषमलैंगिक, के बीच सहमति से बने सेक्सुअल संबंध को अपराध मानती है, वो धारा असंविधानिक है l " पहली बार धारा 377 पर इस तरह चाकू चलाया गया।
2010 - गे (gay) के लिए ग्रीटिंग
भारत में बढ़ते LGBTQ समुदाय के समर्थन में, आर्चीज़ ने पहली बार तीन "गे ग्रीटिंग कार्ड" मार्केट में डाले।
2011 - वैलेंटाइन्स वाला कृष्ण मंदिर
आर. जगन्नाथ, कृष्ण के बड़े भक्त हैं। उनके लिए कृष्ण प्रेम के भगवान हैं। तो उन्होंने उनके नाम से, बड़ी ही ख़ूबसूरती से, शोलिंघुर में, वेलेंटाइन कृष्णा मंदिर बनाने का फैसला किया। जो प्यार के शारीरिक और आध्यात्मिक, भारतीय और पश्चिमी परंपराओं को एक साथ लाता है l इसमें भगवान कृष्ण की एक मूर्ति है, जिसमें एक बछड़ा उनके पैरों को प्यार से चाट रहा है। लोग इसे छू सकते हैं और इस तरह भगवान के साथ अपनी नज़दीकी दिखा सकते हैं। जबकि दक्षिण भारत के कई दूसरे मंदिरों में भगवान को छूने से परहेज़ है।
“वेलेंटाइन कृष्णा प्रेम के प्रतीक है। उनका प्रेम तो अनंत है, सबके लिए है। वो सबको और सब उन्हें प्यार करते हैं। उनकी 16008 पत्नियां थीं। उनके लिए तो हर दिन वैलेंटाइन्स डे था। ”
2001 - बड़े ब्रांड्स का वी-डे
प्लैटिनम इंडिया ने इंडिया के सबसे खास वैलेंटाइन्स डे वाले बिग ब्रांड अभियान की फंडिंग की। - "क्योंकि असली प्यार शुरू तो होता है, पर कभी खत्म नहीं होता।" और फिर जल्द ही, दूसरे बड़े बजट वाले ज्वेलरी ब्रांड ने भी अपना सपोर्ट दिखाया। तनिष्क, टाइटन, जी.आर.टी, क्वार्ट्ज इंडिया ... ! आप कह सकते हैं कि मार्केट वैलेंटाइन्स डे की पॉपुलैरिटी बढ़ा रहा है। पर आपको नहीं लगता कि सच दरअसल इसका उल्टा है?
2012 - मिरिंडा कोल्ड ड्रिंक ब्रांड ने हैशटैग #breathless के माध्यम से अपने पहले वैलेंटाइन्स डे वाले 'ट्वीट-मॉब’ (tweet-mob) को पॉपुलर बनाया। ये हैशटैग, हर वैलेंटाइन्स डे पे, ट्विटर पर ट्रेंड करता है। जाने-माने लोग अपने प्रेमियों को #breathless टैग करके मैसेज भेजते हैं।
2012 - विपक्ष की एक नयी कोशिश - पेरेंट्स वरशिप डे
वैलेंटाइन डे इतना पॉप्यूलर होने लगा तो विपक्ष ने भी नयी चाल साधी l आसाराम बापू ने यूपी के अखिलेश यादव को एक सलाह दी। 14 फरवरी को मातृ पितृ पूजन दिवस (पैरेंट वरशिप डे) मनाने का विचार रखा। उम्मीद ये थी कि बच्चे अगर अपने पेरेंट्स को उस दिन स्कूल या कॉलेज लेकर जाएंगे, तो युवाओं को वेलेंटाइनस डे मनाने का मौका ही नहीं मिलेगा। चंडीगढ़ में तो 2015 से ही ये नियम अनिवार्य हो गया है। पर ये देर से आयी, दूर से आयी सोच ज़्यादा नहीं पनप पायी ।
2013 - ऑनलाइन डेटिंग पर राइट स्वाइपिंग
टिंडर एप्प इंडिया आता है। बढ़ती ऑनलाइन डेटिंग कल्चर और वर्चुअल इश्क को एक नई आवाज़ देता है। उसके यूजर अगले दो सालों में बहुत बढ़ते हैं। और 2016 तक आते-आते, टिंडर अपना एक अच्छा मार्केट बना लेता है।
2014 - चलो, दुनिया पे लाली लगा दें
साबरमती, अहमदाबाद के तट पर कपल्स वैलेंटाइन्स डे मनाते हैं, और बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद (VHP) के कार्यकर्ता उनपर सड़े हुए टमाटर फेंकते हैं।
मरीना बीच पर, ILP ( इंडियन लवर्स पार्टी) के चुनाव चिन्ह के बगल में - स्ट्राबेरी आइसक्रीम का एक ग्लास - बनाया गया है। पार्टी का नारा है, "दुनिया भर के प्रेमी, आओ, साथ हो लो" (Lovers of the world, unite)। ये स्लोगन गुलाबी पोस्टर पर लिखे गए। बड़े सारे वैलेंटाइन प्रेमी इवेंट आयोजित किये गए । इस ही साल, श्री श्री संसदीय/पार्लियामेंट्री चुनावों के लिए खड़े हुए (और हार गए)।
2015 - विपक्ष के कामों पे स्टूडेंट प्रोटेस्ट छिड़ा
“पब्लिक/सार्वजनिक जगहों पर वैलेंटाइन्स डे मनाते हुए कपल्स को एक दूसरे से शादी करनी पड़ेगी। जो कपल्स हिंदू नहीं होंगे उनको शादी से पहले हिंदू धर्म में परिवर्तित कर दिया जाएगा," - हिंदू महासभा ने ऐसा घोषित किया। यानी अब ये पर्दा भी नहीं रहा कि वो पश्चिमी सभ्यता का विरोध कर रहे हैं।
JNU और DU के स्टूडेंट्स ने इसके खिलाफ एक्टिव स्टैंड लिया। वो लोग मंदिर मार्ग, नई दिल्ली, पे स्तिथ हिंदू महासभा कार्यालय की ओर बढ़ रहे थे । सबने शादी वाले कपड़े पहने हुए थे और पूरा बैंड-बाजा भी साथ ले गए थे। 220 स्टूडेंट्स, जो हिंदू महासभा कार्यालय की ओर मार्च कर रहे थे, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। दरअसल उन्होंने उस प्रोटेस्ट की कानूनन तरीके से परमिशन नहीं ली थी।
2016 - ‘फूल फ़ॉर लव’/प्यार में हर किस्म के 'फूल' बने
AOI, एक फिल्म बनाते हैं, 'फूल फॉर लव' l ये फिल्म रोज डे पे रूइआ कॉलेज की हवा का मज़ा देती है । इसमें स्टूडेंट्स बताते हैं कि कैसे हर सेलिब्रेशन में LGBTQ को शामिल किया जाता है। वो लोग तो लव की और भी कई परिभाषाओं और भावनाओं को शामिल करने में जुटे हुए हैं- जैसे कि क्रश, प्फ्रेंडली, बिना सेक्स के प्यार, ईर्ष्या, तरह-तरह के रिश्ते और बहुत कुछ। प्यार भी अब सिंगल नहीं, और रुइया कॉलेज दुनिया को यह दिखाता है।
फिल्म देखने के लिए इस लिंक पर जाएं: https://agentsofishq.com/phoolz-for-love-a-video/
और इस सबके बीच, शिवसेना 14 फरवरी को ’ब्लैक डे’ का नाम देने का फैसला करती है। भगत सिंह और दो दूसरे स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति शोक व्यक्त करने के लिए! उन सबको 14 फरवरी 1931 को ही मौत की सज़ा मिली थी। लेकिन ये जानकारी भी थोड़ी झूठी ही निकली, क्यूंकि पता चला कि उनको 23 मार्च को फांसी हुई थी l
2017 - लव कोई 'छी' वाली चीज नहीं है
MTV इंडिया की पहली एंटी-होमोफोबिक* फिल्म "लव कैन नॉट बी छी" (love can not be chhee) वैलेंटाइन्स डे 2017 के दिन ही रिलीज की गई।
*(होमोफोबिक- जिन्हें समलैंगिकता का खौफ्फ़ है और जो उसकी ओर अपनी नफरत बयान करते हैं )
2018 - “हम इस सेलिब्रेशन का विरोध नहीं करते हैं। कुछ ऐसे लोग हैं जो अपनी ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए ऐसी बातें करते हैं। लेकिन ये पार्टी की लाइन बिल्कुल नहीं है,"। अपनी पुरानी दलीलों से पूरी 180 डिग्री वाली पलटी मारकर शिव-सेना, एक ऐतिहासिक स्टेटमेंट देती है।
2020 - शाहीन बाग में महिलाओं ने नागरिकता कानून के विरोध में एक शांतिपूर्ण धरना किया। वैलेंटाइन्स डे पर शाहीन बाग में कई पोस्टर लगाए गए। उनमें प्रधान मंत्री मोदी को "प्रेम का त्योहार, एक साथ मनाने" का आमंत्रण दिया गया।
2021- प्यार हमें किस मोड़ पे ले आया
गुंडागर्दी रोकने के लिए और वैलेंटाइन डे प्रेमियों को राजनीतिक पार्टियों के अटैक से बचाने के लिए, मुम्बई पुलिस को ख़ास निर्देश दिए गए l उन्हें कहा गया कि वो और सावधान होके कॉलेज के कैंपस और वैलेंटाइन डे मनाती हुई दुकानों के आस पास एक्स्ट्रा निगरानी रखें l
आपने वो गाना तो सुना ही होगा- प्यार किया नहीं जाता, हो जाता है । साथ-साथ वो प्यार, अपना डे भी ढूंढ निकालता है । वैलेंटाइन्स डे ने इंडियनस को अलग-अलग तरह के लव ज़ाहिर करने का एक तरीका दिया है। वो तरीके, जो पहले से ही हमारे जीवन और संस्कृति का एक हिस्सा रहे हैं। फिर चाहे वो थोडा स्ट्रेट वाला प्यार हो या थोड़ा क्वीयर वाला। थोड़ा फ्रेंडली वाला या ढेर सारा परिवार वाला। एक सीक्रेट मिक्सचर, नाम है, इश्क वाला लव!
टेडी बेयर और पिंक चड्डी पे सवार - वैलेंटाइन कैसे बना देसी त्यौहार!
वी-डे ने भारत को, और भारत ने वी-डे को कैसे बदल दिया?
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