मैं मोटी हूँ, और कितनी खूबसूरत
मोटा होना क्यों चाहत और आकर्षण की परीक्षा लेता है ?
लेखन : अरित्री दत्ता
चित्रण : पारुल दांग
अनुवाद : प्राचीर कमर
मैं 16 साल की थी जब मेरे बॉयफ्रेंड ने मुझसे इसलिए ब्रेक अप किया क्यूंकि मैं मोटी थी| फिर मैंने पतले होने की जंग छेड़ दी| जो आज भी मेरी लाइफ का एक बड़ा लक्ष्य है (और कई जानी अनजानी औरतों का भी)| कितना खाना है और कितना पसीना बहाना है- बस इन्हीं दोनों के बीच ताल मेल बैठाने में ज़िन्दगी की गाड़ी चल रही है| किसी ने भी मुझसे ये नहीं कहा कि इन बातों पे ज़्यादा ध्यान देने की ज़रुरत नहीं है| मुझे सेक्स अच्छा लगता है और मुझे हरगिज़ नहीं लगता कि अपनी इस चाहत के लिए मुझे किसी से माफी मांगने की ज़रुरत है | पर समाज में मेरे जैसे मोटे लोगों के लिए सेक्स के बारे में सोचना, तौबा तौबा है, ‘ना बा ना’| यही माना जाता है कि मोटे बदन को, और इसलिए हम जैसे मोटे बदन वालों को, कोई पसंद नहीं कर सकता| तो ऐसे में सेक्स को पसंद करना, जो कि मेरे लिए स्वाभाविक है, ख़ास मुश्किल बनता जाता है l प्यार तो दूर की बात है| मुझे तो यह समझ नहीं आता कि मुझे किस बात का ज़्यादा बुरा मानना चाहिए - मुझे लगता है कि मर्द मेरे साथ इसलिए सेक्स करते हैं क्योंकि उनको मोटे लड़कियों का शौक होता है या फ़िर वो ‘इतना बड़ा दिल’ रखते हैं कि मेरे साथ सेक्स करके पुण्य कमाना चाहते हैं| मैं जानबूझ कर ‘मर्द’ शब्द का इस्तेमाल कर रही हूँ, क्योंकि वही होते हैं जिनकी नज़र में सुन्दर का मतलब, पतली होना होता है l जिन बातों से ही मैं पतली होने के पीछे पड़ी रहती हूँ |
स्कूल टाइम में मेरे हमेशा बॉयफ्रेंड रहे थे| यह तब की बात है, जब मुझे पता नहीं था कि मेरा दिल लड़के और लड़कियों, दोनों के लिए धक-धक करता है| जिन मर्दों को मैंने डेट किया, उनमें से लगभग सबने मेरी बॉडी को लेके मुझे दुःख दिया| कभी मेरे पेट का यूं अजीब तरीके से ज़िक्र करके, कभी मेरे बम पे स्ट्रेच मार्क का| और वो अजीब सी हिंसक भाषा का इस्तेमाल करते थे l उनकी बात सुनकर मुझे लगता था कि कुछ भी करने से पहले, मुझे उनसे सॉरी बोलना चाहिये कि मैं ऎसी क्यों हूँ | मैं कॉलेज में एक लड़के को डेट करती थी| जब भी मैं चाहती कि सेक्स के दौरान मैं उसके ऊपर वाली पोज़िशन लूं, तो वो जोर से हँस देता था| उसे वो मज़ाक लगता था| क्योंकि किसी भी 'नार्मल' बंदे के लिए, एक मोटी लड़की का, सेक्स करते समय सविता भाभी जैसे कंट्रोलिंग होना, मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था (सॉरी डॉन)|
इसलिए हमेशा आसमान ऊपर, मैं उसके नीचे और मेरे ऊपर वो| तब भी वो मेरी आँखों में आखें डाल के नहीं देखता था| और ना ही मुझे अपनी बाहों में लेता था| ऐसा बर्ताव करता था मानो कि इससे ज़्यादा माँग करना मेरी साइज़ की लड़की के लिए गुनाह है| ओरगैज्म(चरम सुख) की जगह मुझे सलाह मिलती थी| “काले रंग की लेडीज़ इनरवेयर पहनो ना, पतली दिखोगी “इस किस्म की बातें | प्यार और सपोर्ट की जगह ‘तुम्हारी तोंद देखने लगता हूँ, इस चक्कर में अपना 'काम' नहीं फिनिश कर पाता ’ जैसी बातें| बस मेरे शरीर को जज करते थे| इससे यह तो पक्का हो गया कि मर्द ही ये तय करते हैं और इस बात के जज भी होते हैं, कि लोग किसको चाहते हैं | खुद को क्या पसंद है, उससे कोई लेना देना नहीं रहता था, पर दूसरे लोगों को क्या पसंद है, वो ज़्यादा इम्पोर्टेन्ट है | इस दौरान ऐसी बातों ने मेरे दिमाग में घर कर लिया था| और मैं तन मन और धन से, मर्दों की नज़र में चाहत के दिए जलाने के लिए, उनकी हाँ में हाँ मिलाती चली गयी| सच्चाई का सामना करने के बजाए, खुद से झूठ बोलना आसान था| कई मर्दों ने मेरे साथ सेक्स किया और उन्हें इस मेहनत के लिए शाबाशी भी मिलनी चाहिए थी, क्यों? भले ही मेरे जिस्म की भूख पूरी हुई हो या न हो| इतने सालों में मुझे इस बात का एहसास ही नहीं हुआ कि मेरे अन्दर भी आग है जिसे बुझाना कोई आसान काम नहीं है| लगता था कि सेक्स और मज़ा, वो भी मेरे लिए? गलत दरवाज़े पर दस्तक दे रहे हो भाई| ऐसा लगा था कि जिंदगी की यही रीत है, मोटे लोगों सेक्स एन्जॉय नहीं कर सकते|
मुझे याद है, कॉलेज में एक बहुत ही बुरे (सेक्स के) एक्सपीरियंस के बाद, मैं अपने बदन को बड़ी तीखी नज़र से देखने लगी थीl उसके हर हिस्से को जज करती रहती थी| किस लिए? क्योंकि एक मर्द ने मुझे नापसंद किया था l यानी अब एक आदमी की नज़र ये डिसाइड कर रही थी कि मैं चर्म सुख पाने के लायक भी हूँ या नहीं| कुछ महीनों पहले, मैं एक डेटिंग एप्प कु पे, बढ़िया प्यार किये जाने को तलाश रही थी |और बड़े सारे महान हस्तियों से मुलाक़ात हुई जो केवल पोर्न को अपना एकमात्र सेक्स गाइड मान के चलते थे | औरत की ख़ुशी से उनका कोई लेना देना नहीं है| बड़ी शरीर वाली औरतों की तो बात ही छोड़ो| औरतों की बात को छोड़ो, उनके सामने जो इंसान है, उसे सुख देने में रत्ती भर इंटरेस्ट नहीं था उन्हें|
औरतों को डेट करने के बाद मेरे लिए काफ़ी चीज़ें बदल गयी| जब तक औरतों को डेट करना शुरू नहीं किया था, तब तक मेरी सेक्स लाइफ में मौज कम और मातम ज़्यादा था| मुझे गलत ना समझना| मेरे कहने का यह मतलब नहीं था कि हम औरतों का लाइफ में एक ही लक्ष्य होता है| मर्द हम मोटे शरीर वालों के खिलाफ जो गलत, गुस्सैल और हीन बर्ताव करते हैं, उसकी बुरी यादों को मिटाना हम औरतों का काम नहीं है| मेरे कहने का यह भी मतलब नहीं है कि विषमलैंगिकता और जेंडर से जुड़े रूढ़ीवाद से बचना का अकेला तरीका ये है कि हम अपना सेक्स को लेके रुझान ही बदल दें, और समलैंगिक हो जाएँ |
मैं बस इतना कहना चाहती हूँ कि औरतें मेरी बेईज्ज़ती नहीं करती हैं| मैं जैसी हूँ, मैं उन्हें वैसे ही पसंद आती हूँ| पहली बार जब मैंने किसी औरत के सामने अपने सारे कपड़े उतारे थे तो मुझे शर्म नहीं महसूस हुई थी| मेरे बड़े बम्स और झूलते स्तनों को देखकर उसने नज़रें नहीं फ़ेरी थीं| उसके हाथों ने मेरे शरीर को उस मद मस्त तरीके से छुआ, जिसका मेरा शरीर हकदार था| उसे मेरे शरीर से बिलकुल भी घिन नहीं लगी l यकीन नहीं होता है, न? चार साल हो चुके हैं मुझे खुद को मेरी असलियत अपनाते हुए, अपनी सेक्सुअलिटी के मज़े लेते हुए | और इस बात का भी एहसास हुआ कि वो जो मर्दों की नज़र ने मेरे मोटापे पे ताने कसे थे, एक औरत के साथ सेक्स करते वक्त, उन वाहियात तानों की कोई जगह नहीं | लम्बे समय तक मैं किसी भी औरत के साथ हमबिस्तर नहीं हुई थी| मेरा मन तो बहुत करता था, पर मेरे पुराने रिलेशनशिप के तानों ने मेरे अन्दर एक बात घर कर दी थी- मुझे मोक्ष प्राप्ति वाले सेक्स का अनुभव तभी होगा जब मैं साइज़ 6 से साइज़ जीरो हो जाऊँगी| क्योंकि लोगों को पतले लोग पसंद आते हैं| ऐसे कई मौके आये l मेरी उस समय वाली गर्लफ्रेंड के साथ मैंने लगभग सेक्स कर ही लिया था| पर ‘क्या मेरा शरीर इस प्यार के लायक है’ वाली सोच हर बार रोक देती थी| फ़िर जब मैंने पहली बार किसी औरत के साथ सेक्स किया, तो लगा कि मेरा शरीर बाकी लोगों की तरह ही, नार्मल है| ओर्गास्म(चरम सुख) क्या होता है? उस समाज की बेड़ियों से आज़ाद होने की फ़ीलिंग, जो हर कदम हमें यह एहसास दिलाती है कि हम प्यार के लायक हैं ही नहीं| उसने मुझे बाहों में लेकर मुझे कहा कि मेरा शरीर खूबसूरत है| उसने किस ख़ूबसूरती और मदहोशी से मेरे बदन को छुआ... | कभी कभी बस एक टच ही काफ़ी होता है|
आखिर में मैं, बस एक ही सवाल करना चाहती हूँ: औरतजात के दायरे में जी रहे हर किसी को आज़ादी का स्कोप है कि नहीं ? हाल में ‘औरतजात’ शब्द हम औरतों को एक साथ कम जोड़ता है, उलटा अलग अलग हालातों में महिलाओं को एक ही नज़र से देखने का तरीका बन चुका है| मैं एक बाईसेक्सुअल हूँ, मोटी हूँ, औरत हूँ| औरत होना, मोटा होना, बाईसेक्सुअल होना, जैसे हमारे समाज में ये तीन फासले हैं, जो हमें सेक्स के सुख से दूर रखते हैं| ना जाने कितनी बार हमें खुद को याद दिलाना पड़ता है कि रोमांस, सेक्स, सच्चाई और खुद को आंकने में, हमारा शरीर हम पर हावी नहीं होना चाहिए| इन लगातार कोशिशों से बहुत गहरी थकान होने लगती है l ये याद रखना कि हम सब मिलकर एक नयी दुनिया रच सकते हैं, जहां हम भी शामिल हों, जहां हम सब कुछ झेलते हुए ज़िंदगी न बिताएं | जिन लोगों का दिल अपने शरीर पर कसे हुए तानों से झुलस चुका है, उनके लिए ‘फैट लिबरेशन’ और ‘बॉडी पोसीटीवीटी’ बस शब्द मात्र ही रहेंगे| तब तक खोखले शब्द रहेंगे, जब तक लोग वाकई में मिलके ये बातें सुनें, समझें, अमल न करें lजब तक लोग हम बड़े दिलवाले और बड़े शरीर वालों के खिलाफ़ रूढ़िवादी घटिया सोच को बेडरूम से बाहर न रखें| और ध्यान से, साथ में सुन और समझ कर इस सोच को मिटाने पर काम न करें|
और उनके लिए, जिनके साथ मैंने यह सफ़र शुरू किया है, जिनके साथ मैंने अपने शरीर के उन सुख देने वाली जगहों का अनुभव किया, मेरा शरीर एक नयी धुन पर झूमता है|
अरित्री दत्ता मुंबई की एक विज्ञापन कम्पनी में काम करती हैं और कविताओं का शौक रखती हैं| काम से छुट्टी मिलती है तो खाना बनाना, पढ़ना और अपनी माँ के साथ समय बिताती हैं| और ज़ालिम दुनिया और उसके तरीकों के बारे में सोचती हैं|
Score:
0/