ज़िन्दगी पूरा चक्कर
ले लौटती है ये ख्याल
तब आता है जब खुद
लौट के देखती हूँ
औरतों को एक दूजे
से पहली बार सालों
बाद प्यार करते हुए
मुझे याद आता है जब
मैं पंद्रह की थी,
जानने को आतुर कि
चूमना क्या होता है
आदमियों का झट से
सम्भोग शुरू करते
ही अपना औजार
निकालना बिलकुल
नागवारा लगता यार
उसकी छाती पे थोड़ा
और टाइम बिताओ
और वो बंद करो जो
नीचे कर रहे हो, मुझे
डर था दूसरे के
अनुभव देखने के
ज़रिये जो आनंद
मुझे मिल रहा था मुझे
छोड़ के बाहर को
भागेगा एकदम ये डर
कि मैं कभी वैसे फिट
न बैठूंगी जैसी मेरी वो
बेबाग़ सहपाठी जो
फुर्ती से निडर आगे
बढ़ती थीं समय के
साथ मेरी चाहतें
बदलीं बढ़ीं गुज़री
जैसे मौसम हों पोर्न
के आसमान में वक्त
के गुजरने के रंग जैसे
मेरे बिस्तर के पीछे
बदल रहे हों मैं लेटी
हुई, अपने को सुख
देती फिर से अपने
आप को यहाँ कैसे
पाया सच
ज़िंदगी पूरा चक्कर
लेती है मुझे लगता है
आज मेरी स्क्रीन पे ये
औरतें टाइम ले रही
हैं और हालांकि अब
तक मेरा बदन प्यार
पा के सहलाया जा
चुका है
पता चल रहा है कि मैं
औरतों के उस मीठे
सम्भोग के प्रेम भरे
खेलों से कभी
बोर नहीं होती