हस्तमैथुन ने मेरे टूटे दिल को कैसे जोड़ा
हस्तमैथुन और अन्य दवाएँ टूटे दिल के दर्द के लिए
लेखिका: लेस्बीपटाखा
चित्र: भूमि
मैंने बीस की बड़ी हुई उम्र में हस्तमैथुन करना सीखा था| उससे पहले पैरों को एक दूसरे से रगड़ के, या किसी सतह पर अपने गुप्तांगो संग चढ़नके कुछ कुछ होता था जो मुझे अच्छा लगता था| कभी कभार मेरे खुद के साथ प्यार जताने के वक़्त कोई कमरे में आ जाता था| मेरी हरकत देख, उनको अजीब लगता था, और मुझे नम्रता से, लेकिन साफ़ साफ़ यह सब नहीं करने को कहा गया| मुझे लगने लगा कि मैं कोई गलत काम कर रही हूँ| इसलिए मैंने हस्तमैथुन करना बंद कर दिया|
वो तो जब मैंने फेमिनिज़्म के बारे में पढ़ना शुरू किया, तब मुझे एहसास हुआ की केवल लड़के ही ख़ुशियाँ मुट्ठी में बंद नहीं करते हैं| हम लड़कियों के हाथों में भी हमारी ख़ुशी की चाभी होती है| हस्तमैथुन करना एक अच्छी चीज़ हो सकती है| मैंने खुद से प्यार जताने की दुनिया में दोबारा प्रवेश किया| पर कसम से, अगर यह मास्टरशेफ़ ऑस्ट्रेलिया में वाइल्ड कार्ड एंट्री लेना जितना आसान होता, तो यह कहानी छोटी होती|
लगभग उसी समय, मुझे एहसास होने लगा कि मैं समलैंगिक या लेस्बियन हूँ| जब खुद की असलियत को जानने लगी, तो मेरे अन्दर भी कुछ कुछ वाली फीलिंग जगने लगी | पर लड़कियों के प्रति अपने दिल की धड़कन को पहचाना फिर भी आसान था, उस में कॉन्फिडेंस होना और खुद सेक्सी फ़ील करना, ये तो नामुमकिन सा लगा| तिस पे मेरा कमबख्त दिल| जो किसी से भी जुड़ जाता था और फ़िर बार बार टूट के खून के आंसू बहाने में उस्ताद निकला|
मैं अपनी नई नवेली लेस्बियन शख्सियत लेकर कॉलेज पहुंची| पर तब मुझे भी नहीं पता था कि अगले चार साल बस मेरा दिल बार बार जोर शोर से टूटेगा | हर बार| मैं भी कमाल थी: जिससे भी मिली, उससे प्यार कर बैठी| मेरे साथ की स्ट्रेट लड़की से| मेरी सबसे करीबी दोस्त से, मेरी दोस्त की दोस्त से, एक सीनियर से भी जिससे कभी बात भी नहीं की| एक बड़ी उम्र की क्वीयर महिला से और एक पत्थर दिल कवियत्री से, जो मुझे टिंडर पर मिली थी| मेरे कलमुहे दिल ने किसी को नहीं छोड़ा| मुझे भी नहीं|
प्यार अधूरा रह जाता है तो वो अपने साथ शर्म की चादर भी लाता है| मैंने उस दुनिया में कदम रखा था जहाँ अपनी पहचान और सेक्सुअलिटी को लोग दिल खोल कर अपनाते और जताते थे| एक मैं थी जिसे खुद ही नहीं पता था कि मेरे अन्दर जिस्म की भूख जगाने वाला ऐसा कुछ था भी, जिसे सेक्सी कहा जा सके | कॉंफिडेंट और सेक्सी फ़ील करना उस माहौल में काफ़ी ज़रूरी था और मेरे पास दोनों ही नहीं थे| मैंने पढ़ा देखा तो बहुत कुछ था: क्वीयर कार्यक्रमों में लोगों का स्टेज पर किस करने से लेकर लेस्बियन औरतों का स्ट्रेट औरतों से ज़्यादा चरम सुख पाने वाली रिपोर्ट...l और फ़िर मुझे पता चला कि मुझे तो अभी बहुत सीखना है| मैंने तो तब तक अपने आप, हस्तमैथुन करके, खुद से मोहब्बत करके, कभी भी कामोन्माद वाला चरम सुख का आनंद नहीं उठाया है| तो मैं बाकी उन फेमिनिस्ट और क्वीयर लोगों जैसी कैसे बन सकती हूँ जो सेक्स से शर्माती नहीं | उसे बड़े खुलकर अपनाती हैं| जहां भी सेक्स की बात आती थी, उसे बड़े चुल्लू भर पानी में डूब जाऊं |
जब भी मैं किसी को पसंद करती थी, मुझे दिल टूटने की ज़ोरदार फ़ीलिंग साथ में फ़्री ऑफर की तरह आ जाती थी| यह वो वाली फ़ीलिंग थी जिसमें आपका सामने वाले को चाहने का एहसास तेज़ी से मायूसी में बदल जाता था क्योंकि इकतरफ़ा प्यार जो होता था| फ़िर तो रात भर बालकनी में अपनी सेक्स और लव लाइफ दोनों के ऊपर आँसू बहाना चालू रहता| इस दर्द ने कमबख्त काफ़ी समय तक प्यार और चाहत के ख्यालों का रायता बना कर रखा था|
बार बार दिल टूटने के लम्बे सिलसिले से मैंने दुनिया की सबसे बेहतरीन चीज़ (बेशक हस्तमैथुन के बाद) के बारे में जाना - काउंसलिंग l काउंसलर के ऑफिस में मैंने वो जगह पाई जहां मैं अपनी लव, सेक्स और (धोखा) से जुड़ी परेशानियों को खुल कर ज़ाहिर कर सकती थी| टूटे दिल के साथ जीना वैसे ही बड़ा मुश्किल होता था| अब मेरे पास एक जगह थी जहां मैं इस मुश्किल का हल ढूँढने की कोशिश कर सकती थी| इसने मुझे खुद को समझने का मौका दिया| और इससे मुझे मेरी सेक्सुअल साइड को भी समझने का मौका मिला|
पहले मुझे समझ नहीं आता था कि इकतरफ़ा चाहत ना पूरी होने पर बहने वाले मेरे आँसूं दरअसल किसी और चीज़ के लिए थे| कि वो मेरे जिस्म की भूख ना पूरा पूरा न हो पाने पे भी गिर रहे थे| मुझे लगता था कि मैं प्यार में बहुत जल्दी पड़ जाती हूँ| किसी का ध्यान आकर्षित करना, उनको चाहना, उनकी फंतासी करना - इन सबको मैंने प्यार और चाहत का नाम दे दिया था| पर समय के साथ मुझे एहसास हुआ कि इन सब मुरझाये दिल वाले दिनों के पीछे अक्सर एक शुरुआती कारण था - जिस्म की भूख, यानी सेक्सी फीलिंग की तड़प|
हस्तमैथुन न करने से, मेरे पास इन भावनाओं को काबू में लाने का कोई ज़रिया नहीं था| तो यह टूटे दिल के बाकी इमोशंस के साथ मिलकर मुझे दुखों के गड्ढे में धकेल देते थे| मैं मानती हूँ कि प्यार को, आकर्षण और उत्तेजना से इतनी आसानी से अलग पहचाना नहीं जा सकता| पर इस कंफ्यूजन की वजह से मैं ये भूल ही गयी थी कि इस सारे मसले में मेरे हॉर्मोन भी अपना रोल अदा कर रहे थे l मैं उनकी तरफ ध्यान ही नहीं दे रही थी l
अब पीछे देखती हूँ तो खुद की सेक्सुअल ज़रूरतों को समझना थोड़ा मुश्किल था| वो भी तब, जब कोई मुझे नहीं चाहता था| और किसी के लिए फैंटसी करना मेरे लिए ‘ना बाबा ना’ जैसा था| मैंने कई बार हस्तमैथुन किया| यह सोचकर कि इससे मेरे दिलोदिमाग को आराम मिलेगा| पर उससे मेरी भूख शांत ना हुई| हस्तमैथुन करने में काफ़ी वक्त लगता और मैं बीच में ही थक जाती l,| किसी की चाहत ना होने से, मुझे किसी की फंटासी करने पे, खुद पे और शर्म आती थी l मेरी नाकामी मुझे सेक्सी फ़ील करने से रोक रही थी|
मुझे फ़िर से एक महिला काफ़ी पसंद आने लगी थी| तब मैंने अच्छे से हस्तमैथुन करना सीखा| पर इस कहानी में ट्विस्ट था | मेरा यह प्यार अधूरा नहीं था| उसे भी मैं पसंद थी| उसी ने मुझे पहली बार उस तरह छुआ था| हमने एक बदनाम गार्डन के पेड़ के नीचे मेक आउट भी किया| पर जिस दिन हम दोनों हम बिस्तर हुए और मेरा खाता खुला, उसके अगले ही दिन उसने मुझे टाटा बाय बाय कर दिया |
इस वाले हार्टब्रेक से मुझे बहुत ज़्यादा दर्द हुआ| क्योंकि मुझे लगा था कि यही मेरी लव स्टोरी है | पर यह तो शुरू होते ही खत्म हो गयी| पर इसने मेरे अन्दर एक आग लगा दी थी| वो मेरे दिलो दिमाग पर इस कदर छाई थी कि दिल टूटने के गम में भी मुझे और कुछ कुछ भी होता रहा| निराशा तो थी, पर खुद को अनसेक्सी फ़ील करने का शर्म का जो पर्दा था,वो धीरे धीरे हट रहा था| सेक्स किया तो जाना कि मैं भी सेक्स के लिए तैयार हूँ| सेक्स करने की और चरम सुख पाने की फ़ीलिंग एक बार महसूस करने के बाद मुझे लम्बे समय तक वो फ़ीलिंग दुबारा महसूस करने का फ्रस्ट्रेशन तो था ही| इस बार, जब मुझे प्राइवेट सिंगल रूम मिला, तो मैंने दिल खोल कर, खुद से ही प्यार जताना शुरू किया| उस औरत पे और खुद पे मेरा गुस्सा, मुझे ये हसीं तोहफा दे गए !
खुद के साथ सेक्स करना शुरू किया, तो अपने शरीर के बारे में और जाना | उस महिला को भूल पाना तो मुश्किल था| ये सब करते हुए उसके लिए मेरी फीलिंग्स गायब तो नहीं हुईं, वो भी वहीं रहीं l पर जैसे जैसे मैं खुद को संतुष्ट करने में माहिर होती गयी वैसे वैसे मैं ”‘मुझे उसकी और उसके बदन की बहुत याद आती है “ वाली फीलिंग्स से दूरी जाती गयी| और अब मैं बिस्तर पर बैठे, आसमान की सैर कर रही थी|(समझे ना मैं क्या बोल रही हूँ)| और फ़िर एक दिन अपने शरीर के साथ मज़े करते हुए मेरी प्यार वाली घंटी बज उठी| मेरा शरीर मेरे हाथों की बात सुन रहा था| और फ़िर मैंने वो महसूस किया जिसका मुझे इंतज़ार था| चरम सुख/orgasm ! पर जानते हो उससे भी बेहतर एहसास क्या होता है? इसके बाद वाली संतुष्टि का| खुद के अन्दर एक कॉन्फिडेंस होने का| अपने बारे में कुछ नया जानने का| अब मैं एक रोंदू लड़की नहीं रही जिसका बात बात पर दिल टूट जाता था| उस पल में सारे नकारात्मक ख्याल हवा हो गए थे| और हाँ, उस पल ये भी लगा’ कि उस लड़की को कह दूँ की यह गलियाँ और चौबारा, यहाँ आना ना दुबारा| मैं खुद की लिए काफ़ी हूँ| ‘
यह मेरा सबसे दर्द भरा ब्रेकअप था| पर अब मैं अपनी फीलिंग्स को समझ सकती थी| किसी को चाहना ,पर वो तो तुम्हें ना चाहे - मैं इस एहसास से भी जूझना, और अपने आप को संभालना सीख रही थी| सेक्स की चाह होने पे अब मेरे जज़्बात पागलों से भड़क नहीं जाते थे| जब भी मुझे लगता था कि कोई न कोई चाहिए प्यार करने वाली, मैं निराश होने के बजाए खुद की ख़ुशी खुद के हाथों में लेती थी| इससे मेरा मानसिक स्वास्थ भी ऐसे मुश्किल दिनों में संभला रहा| दिल टूटा था, हौसला नहीं| मुझे खुद यकीन नहीं हो रहा था कि जो दिन मैं रो रो कर बिताती थी उन्हीं दिनों मैं अच्छा भी महसूस करती हूँ| खुद को अच्छा महसूस कराने वाले तरीके ने वाकई मेरे लिए दवा का काम किया|
मुझे यह भी समझ आने लगा कि कई बार, ऐसे दिन जब मेरा दिल बिलकुल तहस नहस हो जाता, वो मेरे पीरियड्स शुरू होने के आस पास आते थे| जब ऐसे बुरे दिन धीरे धीरे कम होना शुरू हुए( और इसके लिए मेरी तरफ के काउंसलिंग की दुनिया को एक बड़ी सी झप्पी), मुझे मेरे मूड्स और पीरियड्स के बीच का रिश्ता समझ में आने लगा| जिसकी वजह से मैं अपने इमोशंस को बेहतर तरीके से समझ सकती थी| और अच्छे दिनों का क्या? उन दिनों का, जब मेरी जवानी मेरी भी नहीं सुनती थी.. तब मैं और मेरी तन्हाई और मेरे हाथ मुझे चाँद तारों की सैर कराते थे| एक बार मैं कई दिनों तक एक क्वीयर प्रधान फ़िल्म के पीछे दीवानी हो गयी थी| इतनी रोमांटिक थी कि जितनी बार देखती, रो पड़ती| अभी मैं सोच ही रही थी कि ऐसा क्या है इस फ़िल्म में कि लो, पीरियड्स चालू हो गए और मुझे मेरा जवाब मिल गया| कभी कभी पी.एम्.एस.(पीरियड्स के शुरू होने से कुछ दिन पहले दिखने वाले लक्षण) भी मज़ेदार हो सकते है|
मेरे हार्मोनल पीरियड्स, मेरे हवस से भरे दिन, मेरे मूड्स, मेरे हस्तमैथुन और मेरी पीरियड्स साइकल/ ऋतू चक्र के बीच तालमेल( जी हाँ, मेरी जिस्म की भूख ऋतू चक्र के कुछ ख़ास दिनों पर बढ़ जाती है) बैठाने से मेरी रोज़मर्रा की लाइफ आसान हो गयी | यह तालमेल मेरे मानसिक स्वास्थ को स्वस्थ रखने के लिए काफ़ी मदद करता है| और मेरे बुरे दौर से निकल कर आज मैं जो हूँ वहाँ पहुंचाने में भी काफ़ी मददगार साबित हुआ है|
प्यार, चाहत और शर्म, यह सब दिमाग का खेल होते हैं| पर मैं जानती हूँ कि मेरा अजीबोगरीब होर्मोन्स से भरा शरीर भी इसमें शामिल है| जैसे आर्ट थेरेपिस्ट नेहा भट ने एजेंट्स ऑफ़ इश्क के साथ इन्स्टाग्राम लाइव में कहा था, कि वो दिमाग को सिर्फ दिमाग के रूप में ही नहीं देखती हैं, वो उसे योनि, हाथ, स्वाद, और छूअन के रूप में भी देखती हैं| जब दिलो दिमाग और शरीर में तालमेल बैठ जाए और वो तीनों एक हो जाएँ, तो क्या चीज़ कहाँ से इफ़ेक्ट करने वाली है, यह समझना आसान हो जाता है|
काउंसलिंग ने मुझे खुद की बात को सुनना और समझना सिखाया| मेरे ख्यालों का मेरे ऊपर क्या असर होता है, यह जानना सिखाया| अपने मानसिक स्वास्थ के लिए मदद मांगने से मुझे अपने ख्यालों से बात करना सिखाया l मेरी चाहतों को समझना सिखाया l हस्तमैथुन ने मेरे शरीर को उसकी चाहत को दर्शाना सिखाया| ‘जिस्म तड़प रहा है ?सेक्सी फीलिंग आ रही है ?’ समझ लो खुद से प्यार करने का टाइम आया है|’ वो भी बिना कोई शर्म महसूस किये| अगर यह बात मैं खुद को नहीं समझा पाती, तो मैं कभी खुश नहीं हो पाती| भले ही मुझे चाँद और मेरे पीरियड्स के बीच का साइंस ना पता हो, पर इतना जानती हूँ की मेरे अन्दर क्या है| प्यार, चाहत, होर्मोन्स और मेरा दिमाग जो एक दूसरे से जुड़े हुए हैं| जैसे वो नग्न औरतें जो चांदनी रोशनी में हाथ जोड़कर नाच रही हैं|
सामाजिक मुद्दों पर काम करने वाली मिस लेस्बीपटाखा गहन रूप से समलैंगिक हैं और और उतनी ही गहराई से, लोगों के बीच असहज महसूस करती हैं l बिना किसी धारणा के सेक्स के बारे में खुल कर बात होनी चाहिए, क्योंकि सबको मज़ा ऐसे ही नहीं आता l
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