रावलपिंडी की अनीला ज़ेब बाबर की जवानी पर , प्यार के मामले में, हमेशा से लॉकडाउन का ताला लगा हुआ था| उसके लिए कराची विदेश था और इस्लामाबाद, उसकी आज़ादी| एक तसल्ली थी, कि हिंदी फिल्मों में जोशीले जज़्बातों की आज़ाद झलक मिल जाती थी| एक के बाद एक, इन फिल्मों के वीडियो कैसेट ने दिखाया कि सेक्सी फीलिंग्स को मोहब्बत के दुश्मनों से बचाया जा सकता है| इसलिए मीलार्ड, कोरोना प्यार भी है|
कोरोना के समय में, इश्क की तलाश में निकले आशिकों के लिए, पेश हैं कुछ हिदायतें| कोरोना के माहौल में, लव और सेक्स में धोखा कैसे न हो| मैं तुम्हारे डर को समझती हूँ| सैनीटाईज़रों और घर पर रह कर साफ़ सफाई में जुटे रहने से कहीं आपकी वो सारी सेक्सी भावनायें कहीं गायब ही न हो जाएँ? इस नई दुनिया में प्यार और चाहत के सुपरहिट फार्मूले क्या हैं? जहाँ घर से निकलते ही, कुछ दूर चलने के लिए भी प्लानिंग करनी पड़ती है| लॉकडाउन की यह बंदिश कब हटेगी? उधर लॉकडाउन पल-पल तड़पा रहा है और इधर मेरा लाखों का सावन बीता जा रहा है|
मैं थोड़ी पुरानी(ज़्यादा नहीं) ज़माने की आशिक हूँ| इसिलए ये ‘कर लो दुनिया मुट्ठी में’, की थ्योरी को पूरी तरह नहीं मानती|कहीं हम लोग इस की वजह से, प्यार में देरी के मज़े तो नहीं भूल गए? यानी बिरह की रात|
मुझे 2018 वाले एक दो तीन में 1988 के तेज़ाब वाली तड़प नहीं दिखी ( ओरिजिनल तेज़ाब फिर से देखने का समय आ गया है)|
इस लॉकडाउन से पहले हमारा काउंटडाउन कैलेंडर रहता था| जो इस इंतज़ार में हमारी मदद करता था, कि वो पल कब आएगा जब जाने कितनी रश्मि( कयामत से क़यामत तक, ‘ऐ मेरे हमसफर’ वाली) अठारह की होंगी|
यह आर्टिकल पढ़नेवाले मेरे प्यारी दोस्त, बात यह है कि सच्ची मोहब्बत की राह आसान नहीं होती- यह इश्क नहीं आसान इतना ही समझ लीजिये/ एक आग का दरिया है और डूब के जाना है| जैसा 2008 में रब ने बना दी जोड़ी फिल्म में गाना है-
हर जनम मे, रंग बदल के,
ख़्वाबों के पर्दों पे हम खिलते
हम हैं राही प्यार के, फिर मिलेंगे चलते चलते
दर्शक हमेशा फिल्मों में अन्ताक्षरी/मेडली गाने पसंद करते हैं(रब ने बना दी जोड़ी के अलावा, ओम शान्ति ओम(2007), मैंने प्यार किया(1989),मिस्टर इंडिया(1987) और लम्हे(1991) में भी ऐसे गाने रहे हैं)| डायरेक्टर कुनाल कोहली भी इसके बड़े फैन हैं- उनकी फिल्म, मुझसे दोस्ती करोगे और फ़ना मुझे याद हैं | हिंदी फिल्मों में अन्ताक्षरी सीक्वेंस बार बार दिखाई जाती है | और हम उन पुराने गानों को यूं याद भी करते रहते हैं| शायद हमें यह जानकर तसल्ली मिलती है कि केवल हमारी ही जनरेशन नहीं है जिसने इश्क से मिलने वाली, ख़ुशी और दर्द, दोनों को सहा है| हमसे पहले भी इस हसीं दर्द को सहने वाले इसके बारे में गा रहे थे |
मोहब्बत के दुश्मन तो हमेशा से रहे हैं| कोविड बस उस लाइन से जुड़ने वाली, नई कड़ी है| अमर, अकबर, अन्थोनी (1977) और वन्स अपॉन अ टाइम इन मुंबई दोबारा(2013) के तय्यब अली के अलावा जाती, धर्म, क्लास, ज़माना, खानदानी दुश्मनी, दो टके की नौकरी और भारत-पाकिस्तान, ये सब ही प्यार के दुश्मन रहे हैं|
आज की तारिख में, प्यार से इतनी बेरुखी क्यों ?जैसे इस गाने में- दिल चाहता है(2001) का गाना, ‘जाने क्यों लोग प्यार करते हैं”| फिर लव आज कल में, खुद को तलाशनेवाली थीम | इस बेरुखी और टॉपिक बदलने के दौर में, और सैफ अली खान या रणबीर कपूर जैसे चिकने चुपड़े फुर्तीले लाडलों को लड़कों से आदमी बनते देख देख कर, आप उस पुराने प्यार के दुश्मन वाला चैप्टर को भूल गए होगे |
मुगल-ए-आज़म को बड़ी आसानी से(जो मेरे लिए काफ़ी बोरिंग है) इश्क़ और जिन्सियत को ‘एकदम सही तरीके से’ दिखाने का ख़िताब दिया जाता है |(ये कहना आम हो गया है कि जिस तरह का बेहूदापन आजकल की फिल्मों में दिखाया जाता है, उनका मज़ाक न उड़ाना बनता है|कि ये फिल्में कभी भी सलीम, अनारकली और उस मोरपंख का मुकाबला नहीं कर पाएंगी! वगैरह |)
मेरा मानना है, कि आज की तारिख में मुग़ल ए आज़म से कुछ सीखना है, तो किसी सेक्स स्टोर से बिजली से चलने वाले पंख ले आओ| और साथ साथ ये भी सीखो कि यह फ़िल्म हमें याद दिलाती है कि हर पीढ़ी की अपनी दिक्कतें होती हैं, पर फिर भी आशिक इश्क करने की, और उससे मज़े लेने की राह ढूँढ ही निकालते हैं| (“तकदीरे बदल जाती है... इस बदलती दुनिया में मुहब्बत जिस इंसान का दामन थाम लेती है, वो इंसान नहीं बदलता और मेरा जिस्म ज़रूर ज़ख़्मी है लेकिन मेरी हिम्मत ज़ख़्मी नहीं” |
या फिर “उस कैदखाने(आज की तारीख में ये लॉकडाउन) के अँधेरे, कनीज़ की आरज़ुओं की रौशनी से कम थे..अँधेरे और बढ़ा दिए जायेंगे..आरज़ू और बढ़ जायेगी) |”
खुद के लिए इश्क़ की तलाश में निकल जाने को क्या यह काफ़ी नहीं है ? माना इस राह में डर है, पर डर के आगे ही तो मीत खड़ा है |
इश्क़ और चाहत तो सदी दर सदी से चलते आ रहे हैं| देखा जाए तो दिल से दिल और तन बदन का कनेक्शन तो उस समय से चला आ रहा है जब बिना लॉकडाउन के सोशल दूरी थी| 1949 में आई फिल्म, अंदाज़ के ‘ तू कहे अगर’ जैसे ड्राइंग रूम वाले गाने से लेकर 1963 की गुमनाम के ‘चलो एक बार फिर से’ में जहां हीरो - हीरोइन या हीरो - हीरो या हीरोइन- हीरोइन छ: फीट की दूरी से एक दूसरे को दर्द भरी नज़रों से देखते थे|
टेलीफोन पर प्यार जताने वाले गाने होते थे, जैसे सुजाता(1960) का ‘जलते हैं जिस के लिए’ | 1999 में आई संघर्ष के गाने ‘मुझे रात दिन ‘ से लेकर 1993 की फ़िल्म पहला नशा के गाने ‘तू है हसीना मैं हूँ दीवाना‘ के बारे में भी ज़रा सोचिये|
इसके अलावा फूलों और फलों से भी काफी मज़ा किया गया है| (जीतेन्द्र की फिल्मों में आम का मतलब, केवल खाने वाले आम से नहीं होता था|) और खूबसूरत पाजेब पहने पैरों से टेबल के नीचे अपने आशिक के पैरों को सहलाना| बिना पंखों के भी एक सेक्सी दुनिया होती है|
हाल में मैंने पाया कि मैं अक्सर "हमारे टाइम में " ये कहकर अपनी बात शुरू करती हूँ l ये नोटिस करते ही मुझे लगने लगा कि अब बहुत जल्दी लोग मुझे सीरियसली लेना बंद कर देंगे| लेकिन यह भी सही है कि हमारे टाइम में, हमारा बचपन ज़्यादातर फ़िल्में देखने में बीता| जिसमें बदले, खून खराबे और बरबादी की कहानियों के घने बादलों के बीच हम इश्क़ की रौशनी ढूंढ लेते थे|
और मैं उन फिल्मों से अब भी बहुत जुडी हुई हूँ | चाहे कुछ भी हो जाए, मैं मेरे गुस्से से भरे और सुलगते बदन वाले ‘एंग्री यंग मैन’ को कभी नकारना न चाहूंगी| जो समाज, घर बार, मज़हब, इंडस्ट्री की नींव को हिलाने के साथ हमारे अन्दर मौजूद बेशुमार चाहत की डोर को अपने गानों से छेड़ता था|(1982) के ‘जाने कैसे कब कहाँ ‘ से लेकर, सत्ते पर सत्ते (1982) के ‘दिलबर मेरे कब तक मुझे ऐसे ही तड़पाओगे’ तक, या फिर नमक हलाल(1982) के ‘आज रपट जाएँ’ में उसका बारिश से ना उठने की ज़िद | याराना(1981) की सीधी दिल पर वार करने वाली ‘छूकर मेरे मन को ‘जैसे गानों तक| ‘कभी कभी मेरे दिल में’ और ‘मैं और मेरी तन्हाई’ जैसे गानों की मदद से कभी कभी(1976) का वो दिलकश आवाज़ वाले शायर | और सिलसिला में हम औरतों को जादूगर की तरह अपनी जाल में फांस कर, लक्ष्मण रेखा को फांद देने के लिए उकसाने वाले को मैं नहीं छोड़ने वाली|
‘सब का साथ सबका विकास’ को सेक्सी बनाया, तीनों खान के मौसम ने, जो एंग्री यंग मान के काफी बाद, दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे(1995) के बाद के समय में जलवाफरोश हुए | उससे पहले आयी 1988 की क़यामत से कयामत तक | वो फिल्म तब आयी जब अपन भी बचपन की दहलीज़ को पार करते लोगों में थे | ज़िन्दगी छूरे की नोक पर बीत रही थी| वहीँ आस पड़ोस में यह अफवाह भी थी, कि मोहल्ले के सारे हमसे बड़े भाई बहन लोग, क़यामत से क़यामत तक वाला खंज़र अपने प्यार को गिफ्ट करने की सोच रहे थे| (फ़िल्म देखोगे तो समझ जाओगे- वो कैलेंडर और खंजर के लिए अच्छा साल था) | क़यामत से कयामत तक वो पहली फ़िल्म थी जो इस्लामाबाद में वीडियो पर दुबारा रिलीज़ हुई थी| इस पार्ट 2 वाले रिलीज़ में दोनों किसिंग सीन थे| वीडियो पार्लर वाले और सभी पायरेसी वीडियो वालों ने घबराकर पहले रिलीज़ में वो सीन डिलीट कर दिए थे| टकटकी बांधे, हमने पार्ट टू वाला वर्शन देखा और फिर खुशी खुशी अपने घर चले गए|
हमारे टाइम पर हमने मार काट वाली लव स्टोरी ( यानी अपने आप में दो विरोधात्मक भाव ) जम कर देखीं और वो माजरा हजम भी कर गए | और 1993 में डर: एक बेरहम लव स्टोरी और 1995 में दुश्मनी: एक बेरहम लव स्टोरी भी देख डाली|
और मैं ये कैसे भूल सकती हूँ कि लव 86 देखने के बाद मैं अपने अपने एक भाई और अपने आप को इस फिल्म के हीरो हीरोइन इमेजिन करती थी |(ओह गोविंदा! कैसे तुम्हें हर एक मिस किस करना चाहती थी|) बाघी, आशिक ,सपनों की दास्तान, हीरो(1983) और आशिकी(1990) जो समाज के सभी ठेकेदारों और क्रूर रखवालों के खिलाफ थीं| दीवारें फांदना, स्टेज पर जी खोलकर नाचना, बारिश और जैकेट्स से भरी ये फिल्में| फूल और कांटे(1991) के गाने ‘धीरे धीरे प्यार को बढ़ाना है, हद से गुज़र जाना है’ जैसे गाने|
आजकल ये बात छिड़ती है, कि ऐसी कौन सी फिल्में हैं जिन्हें हम अपने पेरेंट्स के साथ बैठकर, सेक्स से जुड़ी हर बात खुलेआम कर सकते हैं, अपने दिल का हाल उनसे बाँट सकते हैं ? तो मैं कहती हूँ, वो फिल्में हैं कहाँ ? पर फिलहाल ऐसे कुछ फिल्मों के नाम पेश कर ही देती हूँ: कुछ जो बेहतरीन हैं, कुछ अच्छी और कुछ तौबा करने लायक| बधाई हो(2018), वीरे दी वेडिंग(2018), शुभ मंगल ज़्यादा सावधान(2020), दृष्टि(1990), माया मेमसाहब(1993) देखिये| और तो और, आप पिंक(2016), मनमर्ज़ियाँ(2018) और लिपस्टिक अंडर माय बुरखा(2016) भी देखिये| फिर आपस में बातें करें कि क्या आपको पसंद आया और क्या नागवारा लगा| या कि उस फिल्म ने कुछ सही दिखाया भी, या नहीं| उन बड़े बुज़ुर्गों से उन ‘साफ़ सुथरी प्यार वाली फिल्मों के बारे में भी पूछिए, जो वो आपको देखने को बोलते हैं| उनसे पूछिए ‘साफ़ लव’ का क्या मतलब होता है| सुनिए और सुनाइये|
मेरा खुद का मन, दो अलग दुनिया के बीच झूलता रहता है| तो फिर किसी एक फिल्म को चुनना मेरे लिए थोड़ा कठिन है| एक तरफ है कादर खान और गोविंदा वाली चटकदार, भड़कीली सिल्क साटिन के रंगों की दुनिया , जो क्लाइमेट चेंज के बारे में अपने अंदाज़ में बात करती है :
कितना सताये है मौसम बेदर्दी
ऐसे में कैसे सहें हम जुदाई
बाहों में लेके ओढ़ा दो रजाई
तरसाये बैठी रतिया जाड़ा लगे, सरकाये लियो तकिया
सरकाये लियो खटिया जाड़ा लगे
जाड़े में बलमा प्यारा लगे (राजा बाबू, 1994)
और दूसरी तरफ है हिंदी सिनेमा की तीसरी सदी की महिला योद्धा का थोड़ा गंभीर अंदाज़, जो खुद से प्यार करने को बढ़ावा देती है, तब, जब आपका पिया घर से जा चुका होता है|
तेरे बिना भी कभी तुझसे मचल लेती हूँ
करवट बदलती हूँ तो सपना बदल लेती हूँ
तेरे बिना भी कभी तुझसे मचल लेती हूँ
करवट बदलती हूँ तो सपना बदल लेती हूँ
तेरा ख्याल आये तो बलखा के पल जाता है
पानी की चादर टेल टन मेरा जल जाता है
हाँ वहीँ, बस वहीँ..
साँसों पे रखा हुआ तेरे हाथों का सपना अभी है वहीं
रात का नशा अभी आँख से गया नहीं
रात का नशा अभी आँख से गया नहीं
(अशोक,2001)
मेरी सहेलियों के लिए मेरा सिर्फ ये मशवरा है, कि खुद को किसी एक ढाँचे में मत फिट करो| अपनी चॉइस का इस्तेमाल करो| सुरक्षित रहो और बुद्धू भी, सेक्सी रहो और संस्कारी भी| नब्बे की दशक वाली लिपस्टिक और सस्ते मेक अप से पुते हुए चूमने लायक चेहरे को मौक़ा तो दो|
अब आपको रईस(2017) की बात याद दिलायें कि ‘अम्मी जान कोई धंधा छोटा नहीं होता और धंधे से बड़ा कोई धर्म नहीं होता’| मनी रत्नम की रोजा(1992) में तौलिये में लिपटे हुए अरविन्द स्वामी की मदमस्त आँखों से मधु के कंधो से टपकते हुए पानी की धार को देखना | उनकी ही एक और फिल्म बॉम्बे(1995) में मनीषा कोइराला के गीले बालों को अरविन्द स्वामी की नज़रों से देखना |उसी जोश ए जवानी से जिससे डेविड धवन की फिल्मों में गोविंदा अपने नीचले होंठ दबाता था|
अपनी सेक्सी ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए, जब जी चाहे नया रूप ले लो, जानी|
कोरोना के पहले भी प्यार के दुश्मन थे, और हिंदी फिल्मों में गुप्त ज्ञान!
कोरोना के दौर में हिंदी फिल्मों से दूरी और मजबूरी की कला प्राप्त करें !
पेश है कोरोना प्यार है रिटर्न्स... अनीला ज़ेब बाबर की कलम से
Score:
0/
Related posts
How To Smell And Taste Good Down There
Partner going down on your buffet? Tips for a yummy garnish!…
हम बस दुखड़ा रोने को तैयार ही थे कि हमने हॉकी स्टिक लिए एक छोटी लड़की को देखा।
एक मूवी के किरदार से अ…
मैंने खुशी-खुशी अपना दिल उनको दिया, लेकिन उनको चाहिए थे बच्चे और एक देसी बहू
स्थायी बीमारी में डेटि…
दुनिया की ऐसी जगहें जहाँ पब्लिक में सेक्स करना क़ानूनन जायज़ है ।
आज है #WorldTorismDay! जाने दुनिय…
If Life is Box Full of Chocolate Boys!
#HappyChocolateDay to the men who smile, are vulnerable, and…
What is Fellatio? The AOI Sex Glossary
Is it ice-cream ka flavour, like pistachio? Well, it does ha…
Sorry Thank You Tata Bye Bye - A Music Video About Age of Marriage In Collaboration With Oxfam India
Ammuma’s Haircut and Her Romantic Past
If Ammuma's hair was one to divulge, what would it reveal ab…
It Was ‘Twilight’. I Woke Up Bisexual.
How one can stumble upon one's (bi)sexuality with the help o…
To All the Boys I Couldn't Love Before
What fleeting connections with many interesting men tell you…
Tell Me Tarot, Will He Ever Come Back?
After Manjari is ghosted, all search for closure leads to he…
How My Girlfriend's Abortion Made Me A Better Man: A Comic
M's story about a life-changing incident.
Do You Know How to Give Women Orgasms?
This app will teach you how and we got some Agents to try it…
The AOI Queer Reading List: Desi Languages Version
Queer readings from non-English Indian languages.
What Makes Your Sexual Confidence Go Up and Down
Sexual confidence is like a Snakes and Ladders Game
KISS MEIN KITNA HAI DUM: 19 KISS POEMS
Kisses that go from sweet to saucy, tender to raunchy, misch…
Savita Bhabhi and I: A True Love Story
Here is something you should know about me. I wrote three st…
How Posing in the Nude Changed My Life
A young gay man who hates being touched, is awkward about ha…