क्या हो अगर औरतें एक दूसरे के लिए ललचायें, या एक-दूसरे के साथ प्यार में पड़ जाए? हमें ऐसी दिलबरी की बहुत सारी कहानियां सुनने को क्यों नहीं मिलती?
जी हाँ, इस महीने AOI एक रीडिंग लिस्ट के साथ LGBTQ में से L (यानी लेस्बियन) की बात करेगा। इस पूरे महीने इंडियन प्रेमिकाओं के समलैंगिक प्रेम और समलैंगिक जिंदगी की कहानियां सुनाई जाएंगी। जब हम क्वीयर लव की बात करते हैं, तो हमें मर्दों की कहानियां ज़्यादा सुनने को मिलती है। पर ढूंढने से गर भगवान तक मिल जाते हैं, तो फिर रीडिंग लिस्ट के लिए बस थोड़ी सी कोशिश चाहिए, है ना? तो ये लीजिए, हम आपके लिए लाये हैं, एक बेहतरीन लिस्ट : औरतों के बीच के लव की कहानियां, फिक्शन और नॉन-फिक्शन किताबें, जीवनी, मसाला रोमांस, निबंध ... यानि हर किस्म का लिटरेचर।
और हाँ, अगर कोई ऐसी कहानी या रचना है जो आपको लगता है कि इस लिस्ट में होनी चाहिए, पर नहीं है, तो हमें बताएं। एक कमेंट डाल दें ताकि हम उसे भी लिस्ट में शामिल कर लें। और जैसे लव और स्टोरीज़,दोनों का अंत नहीं, वैसे ही इस लिस्ट का भी कोई अंत ना हो, ये बढ़ती ही जाए।
माया शर्मा द्वारा
2006 में प्रकाशित
“इस वॉल्यूम के लेख में खतरनाक चुनौतियों के साथ-साथ छोटी, लेकिन अहम जीतों का भी जिक्र है। ये नार्थ इंडिया की दस कामकाजी क्वीयर औरतों की ज़िंदगी की कहानियां हैं। कैसे ये छुपी हुई और आधे सच आधे झूठ के माहौल से निकलकर, खुले आसमान के नीचे अपनी जगह बनाती हैं। ये किताब इस सोच को दे पलटती है कि इंडिया में समलैंगिक लोग सिर्फ शहरी होते हैं। इस सोच से भी पर्दा उठाती है कि समलैंगिक लोग सिर्फ पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित होते हैं और सिर्फ ऊपरी और मध्यम वर्ग (upper and middle class) से आते हैं।” ये किताब हमें एक अलग सच दिखाती है। ये उन दबी, सहमी और वंचित आवाज़ों को बाहर निकालने का महज़ ज़रिया नहीं है, ये किताब और आगे बढ़ती है। ये औरतों के प्यार, उनके रोमांस के पहलू, उनके फ़्लर्ट करने के अंदाज़, पहली मुलाक़ात की घबराहट, सेक्स की गर्मजोशी, छुप-छुपकर मिलने की उत्तेजना, दिल टूटने का दर्द - ऐसी तमाम बातें करती है, जो प्यार को दरअसल प्यार बनाती हैं। और इंसान को इंसान। इसे लिखने का मकसद लेस्बियन औरतों को नारीवादी आंदोलन में और खुलकर शामिल करना है। साथ ही साथ ये किताब हमें फिर याद दिलाती है कि ज़ोरदार कहानियां कितनी प्रभावशाली हो सकती हैं।
रूथ वनिता द्वारा
2020 में प्रकाशित
ये प्रेम कहानी 18 वीं शताब्दी के लखनऊ की है। यहां कवि नफीस बाई बताती हैं कि कैसे वो काशी से आई एक आकर्षक दरबारी चपला बाई से दिल हार बैठीं। चपला बाई किंग जॉर्ज द थर्ड के पचासवें जन्मदिन पर परफॉर्म करने के लिए लखनऊ आई थीं। प्यार में डूबे इस जोड़ी की असली परीक्षा तो तब शुरू हई जब चपला बाई को अपने घर वापस जाना पड़ा और बिना इंटरनेट के उस जमाने में उन दोनों को लांग डिस्टेंस (long distance) वाला रिलेशन निभाना पड़ा।
इस कहानी ने दिल की उथल पुथल को खूब पकड़ा है। ये एक ऐसे समय और ऐसी दुनिया की तस्वीर सामने लाती है जहां जेंडर के रोल थोड़े पानी जैसे तरल थे, आपको बाँध नहीं देते थे । निश्चित नियम नहीं थे। अलग-अलग जेंडर के बीच की दोस्ती भी पनपती थी।
और रोमांस! वो तो एक कवि की तरह, रस बरसाए फिरता था।
गीति थडानी द्वारा
1996 में प्रकाशित
इस किताब ने पहली बार आज की इंडिया में समलैंगिक लोगों की मौजूदगी की बात की। इस किताब ने ऐतिहासिक पहलुओं को दिखाया, और ये भी ,कि समलैंगिक समुदाय की ओर आज की सोच पर इस बीते कल का क्या प्रभाव रहा है। समलैंगिक औरतों को कोलोनियल विचारों के तहत या कमज़ोर समझा जाता था या फिर ऐसा माना जाता था कि वो खतरनाक औरतें हैं, जिनका भगशेफ (clitoris) नार्मल से ज्यादा बड़ा है और जिन्हें बांध के रखना बहुत ज़रूरी है !
किताब के पहले कुछ चैपटर तो काफी अकैडमिक हैं। क्योंकि वो प्राचीन इंडिया के आर्ट, मिथक, कॉस्मोलॉजी और संस्कृत लेखों के ज़रिए, औरतों के बीच के अलग-अलग जुड़ाव को गहराई से देखते हैं । ये जुड़ाव सेक्सुअल भी हो सकते थे और गैर सेक्सुअल भी। किताब के दूसरे भाग में लेस्बियन भावनाओं और इच्छाओं की बात की गई है। शादी, एक साथ सुसाइड करने का प्लान, मानव अधिकार, सेक्स से परहेज़, लेस्बियन के प्रति घृणा यानी लेस्बोफ़ोबिया, परिवार... इन सब की चर्चा की गई है। रिसर्च से भरी इस किताब में इंडियन लेस्बियन के उस अनूठे प्यार की बात की गई है, जो कभी दर्द देता है, तो कभी दुनिया में सबसे जरूरी लगता है।
मंजू कपूर द्वारा
कमला दास द्वारा
1988 में प्रकाशित
मलयालम नॉवेल "चन्दना मारंगल" (जिसका मतलब है, चंदन का पेड़) शीला की कहानी है। शीला, एक अमीर परिवार की लड़की है जो कि कल्याणिकुट्टी, एक गरीब परिवार की लड़की, से किशोरावस्था से ही प्यार करती है। जब उनके परिवार वालों को ये पता चलता है, तो वे उनकी शादी मर्दों से कराने की कोशिश करते हैं। शीला की शादी के दिन, कल्याणी उसे साथ भाग जाने का सुझाव देती है। (तो क्या वो दोनों भागे? आहा! इतनी आसानी से तो हम नहीं बताने वाले!) तो यहां हम दो औरतें देखते हैं जो मेडिसिन की पढ़ाई करते-करते एक साथ बड़ी हुईं। हमें इन दोनों को देखने और उनपर सोचने का मौका मिलता है। हम पढ़ते हैं कि वो दोनों अपने प्यार और सामाजिक नियमों के बीच संतुलन बनाती रहीं। जबकि वो सामाजिक नियम उनको अलग करने की कोशिश में लगे रहे।
अच्छा चलो, हम तुम्हें इतना बता सकते हैं कि इस कहानी में समलैंगिक कामुकता का बड़ा ज़बर्दस्त वर्णन है। आखिरकार कमला दास की लिखी कहानी है। जिन्होंने 1970 में केरल को अपनी आत्मकथा 'ऐंथे कथा'- (Enthe Katha) से हड़कंप मचा दी थी। उस आत्मकथा में उन्होंने समलैंगिक सेक्स और प्यार को बहुत ही कामुक तरीके से दिखाया था । और एक राज़, उनकी कहानी के नाम के बारे में, जो उनकी नायिका कल्याणी से जुड़ा है। इस नाम में कल्याणी का शरीर चंदन के रंग का बताया गया है।
अश्विनी सुखतनकर द्वारा
1999 में प्रकाशित
ये किताब कहानियों, कविताओं, पर्सनल निबंधों और इतिहास की संग्रह है। ये भारत के अलग-अलग कोनों से लेस्बियन कहानियों को सामने लाती है। ये भूली-भटकी, बिखरी, पर हीरों सी चमकती, गिरती-उठती, कई तरह की, मुश्किल पर कीमती ज़िन्दगियों की कहानियां हैं। और उनके आस पास पनपते लेस्बियन लव की । ये अपनी तरह की पहली किताब थी जो औरतों के बीच के प्यार को हर रूप में दिखाती थी। फिर वो चाहे गड़बड़ियों से भरा हो, गुस्से से भरा हो, दर्दनाक हो, विकृत हो या कि टालमटोल में छिपा हो। हर दबी भावना को इस किताब ने उजागर कर दिया।
रूथ वनिता और सलीम किदवई द्वारा
2001 में प्रकाशित
इंडियन लिटरेचर की हिस्ट्री में 2000 सालों से लेकर अब तक जितनी भी कहानियां या लेख समलैंगिक लव को लेकर लिखे गए हैं, उन सबका संग्रह! इंडियन सबकॉन्टिनेंट (subcontinent) से निकले (लेख), कई अलग-अलग भाषाओं से ट्रांसलेट किये गए। ये लेख इस बात का प्रमाण देते हैं कि समलिंग लव ने इंडियन हिस्ट्री में एक पुख़्ता जगह बना रखी है। कई कहानियां सुनकर ये पता चलता है कि कोलोनियल कानून लागू होने से पहले समाज समलैंगिक संबंधों के प्रति इतना कठोर नहीं था। ये भेद-भाव कोलोनियल शासन के बाद बढ़ा।
अमरूता पाटिल द्वारा
2008 में प्रकाशित
कहानी की शुरुआत में ही कारी और उसकी प्रेमी रूथ एक इमारत से कूदकर मरने की कोशिश करते हैं। रूथ एक सेफ्टी नेट (safety net) की सहायता से बच जाती है और विदेश भाग जाती है। कारी एक सीवर (sewer) में गिर जाती है और बंबई की धुंधली दुनिया में रहने लगती है। आगे ये हसीन किताब, कारी, उसके दोस्तों, उसके दिल के सीक्रेट और शहर के कई रहस्यों को बयान करती है। पाटिल के अंदर की
खूबसूरत आर्ट उनकी लिखावट के रसीलेपन से मेल खाती है।
इस्मत चुगताई द्वारा
1945 में प्रकाशित
ये नॉवेल रोजमर्रा की भाषा का इस्तेमाल करने वाली मध्यवर्गीय मुस्लिम औरतों के जीवन की कहानी है। सलीम किदवई बताते हैं कि चुगताई से पहले उर्दू की इस तरह की भाषा का इस्तेमाल किसी ने अपनी राइटिंग में नहीं किया था। किदवई ये भी लिखते हैं कि ये “मुस्लिम औरतों पर लिखा गया पहला अहम उर्दू नॉवेल है; ये सेक्स को औरतों के उत्पीड़न और उनके विद्रोह, दोनों रूपों में दिखाता है। इस नॉवेल में दो पीढ़ी की औरतों को दिखाया गया है।
दोनों में, जो उम्र में बड़ी हैं, वो परदे में रहती हैं,और उनकी पसंद- नापसंद सब एक दायरे के अंदर है। उनका दुनिया से संपर्क भी बहुत कम है। और जो छोटी है- शम्मन (इस कहानी की नायिका) और उसकी सहेलियां- वो इतने बंधन में नहीं रहती हैं। उनका देश आज़ादी की ओर बढ़ रहा है पर उनकी आज़ादी पर सीमाएं हैं। हालाँकि, सभी औरतों के पास एक चीज़ है, और वो है - एक-दूसरे का साथ और आपसी रिश्ते। इस नॉवेल में शम्मन के बचपन को दिखाया गया है। उसके गर्ल्स स्कूल में जो भी लड़कियां पढ़ती हैं, वो एक दूसरे की वासनाओं को अच्छी तरह समझने लगती हैं। यहां शम्मन अपनी टीचर, मिस चरण के लिए आकर्षण महसूस करती है और अपने से बड़ी औरतों के साथ शारीरिक संबंध की कल्पना करती है। फिर कहानी जैसे-जैसे बढ़ती है, शम्मन के उम्र की कई दूसरी लड़कियां उस को ही चाहने लग जाती हैं।
मीनल हजरतवाला द्वारा एडिटेड
2012 में प्रकाशित
एक सिख माँ अपने बेटे के, अपनी बेटी बन जाने के बारे में बात करती हैं। दिल्ली हाई कोर्ट अभी इस मामले पर नतीजा ले ही रहा है, जब एक जवान गे आदमी अपने दोस्तों के साथ आर्टिकल 377 पर बात करता है । दो दमदार औरतों को , जिनके शरीर पर मेहंदी से टैटू बने हैं, एक दूसरे से प्यार हो जाता है । बोर्डिंग स्कूल की लड़कियों को प्यार हो जाता है। छोटे शहर की दो लड़कियों को प्यार होता है, वो काफी प्लानिंग भी करती हैं पर शायद ट्रेन छूट जाती है। एक औरत अपने मृत पति के गे प्रेमी को गले लगाती है।
३० कहानियों के इस संग्रह में ( जिसमें कुछ अनुवादित कहानियां हैं ), कई विभिन्नताओं को आवाज़ देने की बढ़िया कोशिश है। इसमें कई कहानियां ऐसी औरतों के बारे में हैं, जो औरतों से प्रेम करती हैं।
पार्वती शर्मा द्वारा
2010 में प्रकाशित
इस किताब की हर कहानी इतनी कमाल की है, कि इस बात पर हमें बिलकुल सरप्राइज नहीं कि इस किताब को इतनी तारीफ और इतने खिताब मिले। और भी मिलने चाहियें ! एक कहानी में एक आदमी बिस्तर बनाने का दीवाना बन जाता है। दूसरी में इस्मत चुगतई की लिहाफ कहानी को नया रुख दिया गया है। एक कहानी में एक हाउसवाइफ का किरदार है जो बगल वाले घर से आती सेक्स की आवाज़ों से परेशान हो गयी है । कहीं और एक उपन्यास का लेखक है, जो अपने भावी पब्लिशर कोमारने ही वाला है! इस किताब की हर कहानी में खेल की मस्ती है, एक दयालु दिल है और बड़े सारे मज़े हैं।
काव्य कदमे नगरकट्टे द्वारा, 2017,
खिताब जीतने वाली जवान कन्नड़ कवी, काव्य कदमे, का ये पहला उपन्यास है। ये अस्मा और अनुषा की कहानी है। दोनों अलग अलग बैकग्राउंड से हैं, और एक दूसरे की ओर खींची चली आती हैं । कदमे का कहना है कि जूलियन बार्नेस की सेंस ऑफ़ ऐन एंडिंग और मोहनस्वामी पढ़कर उसे ये किताब लिखने की प्रेरणा मिली । इस किताब को उसकी खूबसूरत लेखन और सरल सच्ची जवान हेरोइनेस के लिए सराहा गया है l
इस्मत चुगताई द्वारा
1942 में प्रकाशित
शुरुआत में ही बेगम जान कराह रही हैं "आह ! कंधे के थोड़े नीचे.. सही- आह- क्या लुत्फ़ आ रहा है .." । कामुक साँसों के बीच वो अपनी तसल्ली बयान कर रही थी । "थोड़े और आगे " बेगम जान बोलीं, हालांकि उनके अपने हाथ वहां तक पहुँच सकते थे । पर वो चाहती थीं कि मैं उन्हें वहां छूवूँ । मुझे अपने पर बड़ा गर्व हो रहा था । ”(अंग्रेज़ी से अनुवादित)
एक लघु कथा, जिसके छपने पे उसकी लेखक को बड़ा कुछ सुनना पड़ा .. लाहौर के कोर्ट में एक अश्लीलता के केस में जवाबदेही करनी पड़ी । ये कहानी बहुत प्रकट रूप से सेक्स नहीं दर्शाती। ये कहानी दरअसल छुवे जाने पर जो कामुक सुख मिलता है ,उसके बारे में है। यानी कि छूना-छुआ जाना कितना पावरफुल होता है। ये एक किशोरी के बारे में है, जो बेगम जान नामक एक गज़ब की औरत की चमक से चौंधिया गयी है। शादी के बाद बेगम जान की ज़िंदगी बेकार सी चल रही है , उनका पति गे है, वो बेगम की सेक्सुअल ज़रूरतों पर कोईं ध्यान नहीं देता।
वो अपनी मालिश वाली रब्बू से पूरी दिन अपनी मालिश कराती रहती है, उससे अपना बदन नहलवाती है या खुजली कराती है। दिन भर और ठण्ड भरी रातों में भी। एक दिन रब्बू बिज़ी होती है, तो वो जवान लड़की बेगम जान की मालिश करती है, और करते करते, अपने अंदर फीलिंग्स के उमड़ते नये समंदर का सामना करती है ।जिनके बारे में उसे तब तक कुछ पता ही नहीं था।
मीनू और श्रुति द्वारा एडिटेड
1942 में प्रकाशित
ये किताब साबित करती है कि कामुक लेख किस तरह हर एक को शामिल कर सकते हैं और कितने बहुमुखी हो सकते हैं । साथ- साथ बहुत अच्छे तरीके से ये दिखाती है, कि कैसे इरॉटिक राइटिंग सिर्फ बदन को
उत्तेजित नहीं करती, बल्कि वो भावनाओं के बवंडर जगा सकती है। फिर चाहे कहानी उन दो औरतों की हो जो एक दूसरे को पानी के नीचे तैरते देखती हैं और फिर एक साथ शावर में नहाती हैं। या फिर दो मर्दों की, जो एक पौराणिक कहानी के पात्र हैं। दोनों नए शादीशुदा दम्पति का भेष धरे रहते हैं लेकिन देवताओं के छल में फंस जाते हैं। या फिर ट्रांस मर्दों की कहानी जो बिना बात किये एक दूसरे के शरीर की सीमाओं का लेखा-जोखा करते हैं। ये एक ऐसी कहानी है जो नेक्रोफिलिया का विषय भी छूती है (जिसमें मरे हुए शिथिल शरीर के साथ सेक्सुअल होने की इच्छा होती है)। तो अलग-अलग लोगों की अलग-अलग पसंद! एक कहानी वो भी है जिसमें बस में किसी के उसपे बदतमीज़ी से हाथ मारने पर भी कोई उत्तेजित हो जाता है । तो ये किताब कई तरह की जुबानों को आवाज़ देती है। फिर वो उत्तेजना हो, दिल की बीमारी हो, दिल में ऐंठन हो या फिर थोड़ी-बहुत घटिया भावनाएं भी।
वी टी नंदकुमार द्वारा
1974 में प्रकाशित
वी टी नंदकुमार की लिखी नॉवेल "टू गर्ल्स" को पहली दफा चित्रकारथिका वीकली में सीरियल की तरह छापा गया। ये गिरिजा की कहानी है, जो एक स्कूल गर्ल है, मगर अपने पड़ोस में रह रहे एक लड़के की तरह मजबूत होना और दिखना चाहती है। इसी प्रोसेस में एक लड़की को किस भी कर लेती है। और फिर स्कूल में नई आई, खूबसूरत लड़की,कोकिला के प्यार में पड़ जाती है।
नॉवेल के दूसरे एडिशन के परिचय में तो नंदकुमार एक अलग किस्म की दलील भी दे डालते हैं: “समलैंगिकता - जिसका मतलब है औरतों के बीच का प्रेम संबंध - अब सब जगह दिखाई देती है। मेरी राय में ये प्रेम, ये जुनून केरल की उन युवा औरतों के बीच जरूर फैलेगा, जो स्वभाव से बहुत ही अधिक संवेदनशील हैं। ऐसे रिश्तों में कुछ स्वस्थ और पॉजिटिव संभावनाएं भी जगती हैं, इसलिए एक तरह से ये जरुरी भी हैं। [...] तो अंत में मैं बस प्रार्थना करूँगा कि समलैंगिकता का विकास हो।"
हिमांजली सरकार द्वारा
2014 में प्रकाशित
“मुस्कान स्कूल नहीं आयी थी।
उन सबको इस बात से मन ही मन राहत मिल रही थी।”
इस नॉवेल की शुरुआत ही इस तरह होती है। मुस्कान के स्कूल ना आने से उसके दोस्त, चैन की सांस लेने लगे थे। लेकिन फिर वो अचानक डर जाते हैं जब उनको ये पता चलता है कि उसने सूइसाइड करने की कोशिश की, और ICU में है।
जब आप किसी ग्रुप में फिट नहीं हो पाते हैं, तो कैसा लगता है? जैसे आप बाहर खड़े होकर देख सकते हैं कि सब आपके बिना कितने खुश हैं, पार्टी कर रहे हैं? मुस्कान के दोस्तों द्वारा बताई गई इस कहानी में, हम मुस्कान की टीनेज जिंदगी की हर निराशा को उसके साथ महसूस करते हैं। उनकी दुनिया सिर्फ इस बात से नहीं हिली थी कि मुस्कान को लड़कियां पसंद हैं: उन लड़कियों को अपने आप से भी कुछ मुश्किल सवाल पूछने थे। मुस्कान को एक्सेप्ट करते-करते उन्हें खुद को भी पहचानना था।
एंड्रयू स्केलिंग द्वारा अनुवादित
2014 में प्रकाशित
अमारु, 800 AD का एक रहस्यवादी राइटर था। उसने समलैंगिक और विषमलैंगिक, दोनों तरह के लव पर बहुत लज़ीज कविताएं लिखीं । कभी उसकी कविताएँ औरतों के बीच के लव की खुशी को जाहिर करती हैं, तो कभी हेट्रो लव में अक्सर दिए जाने वाले आधे -कच्चे प्यार पर गुस्सा होती हैं ।
उसकी कविताएँ प्रेम में डूबी तो होती हैं, पर साथ में चुलबुली हैं। उसके लिखने का भी काफी खुला तरीका है। यानि यूं समझो कि वो बातें जो लोग सेक्स के दौरान अपने मन में सोचते होंगे, उसे कोई ज़ोर-ज़ोर से बयान करने लगे तो कैसा हो! उसकी कविताएं मानो पूरा दृश्य आंखों के सामने ले आती हैं। जैसे कि ये नीचे वाली कविता, जिसमें दो औरतें सेक्स में बिज़ी हैं-
मेरे स्तन को सहलाओ
अपनी उंगलियों से,
वो छोटे हैं
और तुमने उनपर बिल्कुल ध्यान न दिया।
बहुत हुआ!
अपना मुंह सटाओ
अभी के अभी, वहाँ।
ओह ! तुम भी ना!
इतनी देर क्यों की? '
अपनी मदमस्त चीखें दबा रही हो जैसे
वो अपनी सखी की जुल्फों में ...
संध्या मूलचंदानी द्वारा अनुवादित और संपादित
2006 में प्रकाशित, मूल रूप से संस्कृत
ये उस जानी-मानी किताब का एक महत्वपूर्ण अनुवाद है। यहां खासकर औरतों पर ध्यान दिया गया है और पहली बार मिस्टर वात्स्यायन की औरतों को ख़ास दी गयी सेक्सुअल सलाहों को छान बीन कर पेश किया गया है । राइटर का कहना है, "मॉडर्न सोसाइटी की बात करें तो इस किताब का सबसे जरूरी सबक ये है कि अगर कोई भी काम करने लायक है- ये सेक्स भी हो सकता है- तो उसे बढ़िया से करना चाहिए । और हां, ये भी, कि खुशी किसी एक जेंडर तक ही सीमित नहीं होती।" एक समीक्षक (reviewer) ने इस उम्दा किताब के बारे में कुछ यूं कहा: “जो लोग थ्योरी (theory) के पीछे नहीं भागते, उनके लिए इस किताब में काफी प्रैक्टिकल मशवरे हैं। जैसे कि, भले ही आप सभी 64 सेक्सुअल पोज़िशन्स ना ट्राय करें, लेकिन अपने पाँव के नाखूनों को साफ़ और महकते ज़रूर रखियेगा।” आखिरकर, इस किताब की बदनाम सेक्सुअल पोजीशन वाली बातें बस एक चैप्टर में आती हैं, जबकि इस किताब के कुल सात चैप्टर हैं ! बाकी किताब में ये बताया गया है कि ज़िंदगी का लुत्फ़ कैसे लिया जाए। ये किताब इस बात पे ज़ोर देती है कि कैसे बिजली के बिल की चिंता करने से ज़्यादा जरूरी है, सेक्स में बिजली सा करेंट पैदा करना।
नवनीथा मोक्किल द्वारा
2019 में प्रकाशित
केरल, जहां 'किस ऑफ लव' मुहिम(campaign) चली, जहां पोलिटिकल विरोध और प्रतिरोध काफी गतिशील है, वहां भी सेक्सुअल आइडेंटिटी और अधिकार जैसे सब्जेक्ट पर जोर-शोर से सवाल उठे। इस किताब ने मलयालम फिल्मों, लिटरेचर, पब्लिक जगहों, पॉपुलर मीडिया और बात-चीत में सेक्स वर्कर्स और लेस्बियन सेक्सुअलिटी की इमेज को टटोला गया है। किताब में कुछ फिल्मों की बातें की गई हैं, जैसे कि द वांडरिंग बर्ड नेवर क्राइज़ ( The Wandering Bird Never Cries) - जिसमें दो युवा औरतें एक साथ भाग जाती हैं, और दूसरी, फिल्म संचरराम (Sancharram) की बात की है । इसमें कुछ प्रोजेक्ट्स की भी बात की गई है जैसे कि सेक्स वर्कर और एक्टिविस्ट नलिनी जमीला की आत्मकथा और स्वीट मारिया मॉन्यूमेंट की (ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट के मर्डर पर उसकी याद में ये अनोखा स्मारक बनाया गया)। 1990 के बाद हुए ग्लोबलाइजेशन के मद्देनजर, ये किताब क्वीयर होने के मुद्दे को दम देती है और उसपे विवादों को विस्तार और हवा देती है।
लविंग वुमेन : बींग लेस्बियन इन अनप्रिविलेजड इंडिया
(Loving Women: Being Lesbian In Unprivileged India)
मेमोरी ऑफ लाइट
(Memory of Light)
सखियानी- लेस्बियन डीज़ायर इन एनसीयंट एंड मॉडर्न इंडिया
(Sakhiyani - Lesbian Desire in Ancient and Modern India)
अ मैरिड वुमन
(A Married Woman)
2002 में प्रकाशित
ये कहानी 1970 वाली दिल्ली की है। ये एक सपनों में खोई हुई पर आज्ञाकारी लड़की, आस्था ,की कहानी है। वो अपनी अरेंज्ड मैरिज में पहले तो आधे मन से घुसी, पर बाद में उसमें ही रम गई। बच्चों के साथ अपनी शादीशुदा जिंदगी का लुत्फ उठाती आस्था, कुछ सालों बाद कला और रंगमंच को लेकर अपने रुझान को समय देने लगती है। वहां उसे अपने थिएटर के सहयोगी की विधवा, पिप्पी मिलती है। संकोच से भरी, लेकिन उत्तेजना से भी भरपूर आस्था, पिप्पी के लिए अपनी फीलिंग्स में खुद को बह जाने देती है। उसे पता चलता है कि ये केवल एक सेक्स का रिश्ता नहीं है। पिप्पी के साथ,आस्था को फाइनली कोई ऐसा मिलता है जो वास्तव में उसे जानना चाहता है, ना कि बस उसे अपना बनाना चाहता है।चन्दना मारंगल (Chandana Marangal) - मलयालम

मोर देन एन आइडेंटिटी- हाऊ आई रीयलाइसड माय स्ट्रगल वास विथ बीइंग सेक्सुअल, नॉट होमोसेक्सयूएल
(More Than An Identity: How I Realised My Struggle Was With Being Sexual, Not Homosexual) देबस्मिता दास द्वारा ‘... जब आप क्वीयर होते हैं, तो आपकी कहानी हमेशा उस पल से शुरू होती है जब आप ये जान जाते हैं कि आप गे हैं।’ देबस्मिता का ये खुशमिज़ाज़ पर्सनल निबंध इसी लाइन से शुरू होता है। एक गज़ब की ईमानदारी के साथ वो दर्द भरी सच्चाइयों को बयां करती है, अपने गहरे संदेहों की बात करती है। उन बातों को बयान करती है , जिन्हें वो अक्सर अपनी खुली जुबान और कूल पर्सनालिटी वाली पोलिटिकल इमेज के पीछे छुपा कर रखती है। उसे प्यार की ज़रुरत है, वो अपनी ये सच्चाई ज़ाहिर करने की कोशिश में है । उसे महसूस होता है कि जीवन की गहराईयों को बयां करने के लिए पोलिटिकल भाषा और पोलिटिकल पहचान के दायरों पर भी पे भी सवाल करने होंगे। ये आखिर कैसे बताया जाए कि जीवन में इमोशन, सोच, सामाजिक और पोलिटिकल पहलू साथ में बुने हुए होते हैं, एक दूसरे से जुड़े होते हैं ।फेसिंग द मिरर: लेस्बियन राइटिंग फ्रॉम इंडिया
(Facing The Mirror: Lesbian Writing From India)एवरी नवरात्रि फाल्गुनी मेड मी फील दैट क्वीयर इज़ एकदम कूल
(Every Navratri Falguni Made Me Feel That Queer Is Ekdum Cool) सोनल ज्ञानी द्वारा ये एक क्वीयर क्रश के लिए महसूस किये गए आभार और प्यार की कहानी है। वो क्रश जिसने आपको ये एहसास दिलाया कि आपका क्वीयर होना खुद में ही कितना कूल और रोमांचक है। म्यूजिक और डांस वीडियो के साथ साथ, ये एक मिसाल देने लायक रोमांस की कहानी है । इस मसालेदार और बहुत ही पॉपुलर लेख में, गियानी ये मानती हैं कि डांडिया क्वीन फाल्गुनी पाठक ने अपने म्यूजिक वीडियो के माध्यम से क्वीयर भावनाओं को बढ़िया बयां किया है। इन वीडियोस में फाल्गुनी बड़ी ही सहजता से हीरो को साइड कर देती हैं और पूरा ध्यान अपने उपर कर लेती हैं, जिससे हीरोइन उनके साथ ही सपने देखने लगती हैं। तो अगर दुनिया फाल्गुनी से प्यार कर सकती है तो हम अपनी क्वीयर पहचान से क्यों नहीं प्यार कर सकते हैं। हमारी मानो, ये लेख पढ़ते हुए आप मुस्कुराते रहेंगे।सेम सेक्स लव इन इंडिया- रीडिंग्स फ्रॉम लिटरेचर एंड हिस्ट्री
(Same-Sex Love In India- Readings From Literature and History)
कारी - इंग्लिश

टेढ़ी लकीर - उर्दू

आउट! स्टोरीज फ्रॉम द न्यू क्वीयर इण्डिया
(Out! Stories From The New Queer India)
द डेड कैमेल एन्ड अदर स्टोरीज़ ऑफ़ लव
(The Dead Camel And Other Stories Of Love)
पुनरापी - कन्नड़
लिहाफ - उर्दू (अंग्रेज़ी में अनुवादित)

क्लोज़, टू क्लोज़ ट्रेंक्यूबार बुक ऑफ क्वीयर इरोटिका
(Close, Too Close Tranquebar Book of Queer Erotica)
रन्डू पेनकुटिक्कल (Randu Penkuttikal) - मलयालम

टॉकिंग ऑफ मुस्कान
(Talking of Muskaan)

प्रतीक्षा - हिंदी
राजेन्द्र यादव द्वारा 1962 में प्रकाशित “जब से हर्ष आया है, लगता है कि नंदा पागल हो गई है। उसके पांव ज़मीन पे ही नहीं हैं। जैसे हवा में तैर रही है, समय से भी आगे। उसे तो याद भी नहीं कि उसकी जिंदगी में गीता नाम की भी कोई लड़की है .... कितनी जल्दी रंग बदला है इस लड़की ने! एक मिनट भी नहीं लगा!" रूथ वनिता ने इस नॉवेल का इंग्लिश ट्रांसलेशन किया था, ये उनके शब्दों का अनुवाद है। तो पीछे की कहानी यूं है: गीता नमा के साथ रहती है। नंदा का एक बॉयफ्रेंड है - हर्ष, जो कि उसके साथ रहने आता है। इससे गीता नाराज़ हो जाती है। उसे चिढ़ होती है कि उसे उन दोनों की देखभाल करनी पड़ रही है। भले ही चिढ़ की असली वज़ह ये थी कि वो दोनों एक साथ सोते थे। तो बस वो हर्ष के जाने का इंतजार करती रहती है। उस स्टाइलिश कपड़े और सुंदर चेहरे वाली नंदा के लिए इस तरह की भावनाओं का मतलब क्या है? इस नॉवेल 'प्रतीक्षा' में लेस्बियन रिश्ते के इन पात्रों को बहुत ही खुले, कोमल और विस्तृत तरीके से दर्शाया गया है।मित्राची गोष्ठ - मराठी
विजय तेंदुलकर द्वारा 1974 में प्रकाशित ‘मित्रा की कहानी’, जो कि एक मराठी प्ले है, पहली बार 1981 में मंच पर दिखी। रोहिणी हट्टंगड़ी इसमें मुख्य भूमिका निभा रही थीं। इस कहानी में तीन कॉलेज छात्र - मित्रा, बापू और नमा की जिंदगी को दिखाया गया था। मित्रा और नमा को एक प्ले में काम करने के दौरान एक दूसरे से प्यार हो जाता है। मित्रा का दोस्त बापू दोनों औरतों को अपने कमरे में मिलने, एक दूसरे के नज़दीक आने के मौके देता है। लेकिन चीजें इतनी आसान नहीं होती हैं। नमा का एक झगड़ालू प्रेमी होता है। तो नमा के, मित्रा और उस झगड़ालू प्रेमी, दोनों के साथ शारीरिक संबंध रहते हैं । फिर एक लोकल न्यूज़पेपर इन दोनों औरतों के प्रेम की कहानी छाप देता है। और कहानी एक दर्दनाक मोड़ लेती है। खीज इससे होती है कि ऑडियंस को उन दो औरतों के प्यार की कहानी बापू के मुंह से सुननी पड़ती है। जबकि बापू मर्द है। और मित्रा के लिए तो इस कहानी का अंत बहुत ही बुरा होता है। वो नैतिक सीख देने के भेष में जैसे दकियानूसी 'मनोहर' कहानियां होती हैं न !! जिसमें समाज के रीति रिवाज़ों और दायरों के बाहर रहने का प्रयास करने वालों को दंड मिलता है । लेकिन मित्राची गोष्ठ को एक महत्वपूर्ण कहानी माना जाता है क्योंकि तेंदुलकर इंडिया के सबसे प्रसिद्ध नाटककारों में से एक थे। और इस नाटक को मुख्यधारा (mainstream) में शामिल किया गया, जिसने समलैंगिकता के सब्जेक्ट को महत्त्व दिलाया।अमरू शतक- संस्कृत लव कविता

कामसूत्र फ़ॉर वीमेन
(Kamasutra for Women)
अनरुली फिगर्स: क्वीयरनेस, सेक्स वर्क एंड द पॉलिटिक्स ऑफ सेक्सुअलिटी इन केरल
(Unruly Figures: Queerness, Sex Work and Politics Of Sexuality In Kerala)