सब मुझे बताते रहते हैं कि मेरा शरीर किस काम के लायक है l
इसका शेप, चौड़े कूल्हे और गोद, कैसे मिलकर बच्चे जनने के लिए परफेक्ट हैं l
वो मेरी छाती पर बात करते हैं | छोटी सी है, पर चलेगी |
ज़रूर मेरी योनि पर भी बातें करते होंगे (फर्क इतना कि वे उसे ‘ हाय वो!’ कह कर बुलाते हैं) कि क्या वो जवान और टाइट है और आगे जाके उसका क्या हाल होगा l
बड़े ही बोरिंग लोग हैं...
मेरे शरीर को एक किताब बना डाला
‘एक औरत को क्या होना चाहिए’ l
कुल एक पन्ने की किताब जिसमें
तीन
बुलेट
पॉइंट हैं |
ऐसी किताब जिसे कोई साल भर नहीं छूता और सुहाग रात से पहले (जल्दबाज़ी में अपने मतलब भर का) रट्टा मार लेता है !
उन्हें क्या पता |
मेरा शरीर मेरी भौं से शुरू होता है
मैं एक एक करके उन्हें ऊपर नीचे कर सकती हूँ
कभी मज़े में, तो कभी चौंक के |
मेरी भौं, मेरे माथे की शिकन के आस पास, अटपटी सी, छतरीनुमा लकीरें हैं |
जो तभी दिखती हैं जब मैं तुम पर नाराज़ होती हूँ
या तुमसे |
शायद तुमसे भी |
वो लोग मेरी आँखों का ज़िक्र नहीं करते होंगे, कि मैं कैसे बस अपनी पलकों के रस्ते
ऊपर देख लेती हूँ , यूँ
केवल अपनी पलकों से
छू सकती हूँ बिना तब तक
छुए हुए |
जबकि मेरे होंठ खुलने लगते हैं
थोड़े से ही, एक हंसी की लकीर बनने लगती है
लेकिन हमेशा थोड़ी टेढ़ी सी!
जैसे मेरी मुस्कराहट बस तुम्हारे लिए है,
लेकिन जब चाहूँ मैं उसे वापस भी ले सकती हूँ!
सोचती हूँ उन लोगों ने मेरी गर्दन के पिछले भाग के बारे में सुना होगा क्या ?
वो नाज़ुक सी लाइन जो तब दिखाई देती है जब मैं बाल उठाती हूँ
वो जगह जहाँ मेरी महक सबसे ज़्यादा असर करती है
कभी कभी, मैं धीरे से अपना हाथ उठाकर,
गर्दन पर रख
वो जगह सहलाती हूँ
यह मैं तब करती हूँ जब मेरा खुद पर यकीन कम हो जाता है ,ऐसे में क्या तुम प्लीज़ मुझे यकीन दिला सकते हो?
उन्होंने कभी सोचा है
भटकी हुई उस एक ज़ुल्फ़ पे
जिसे मैं हमेशा खुला छोड़ती हूँ
ताकि उसे कान के पीछे दबा सकूँ
तो देखा, मैं थोड़ी सिमटी, शर्मीली भी हो सकती हूँ
मैं कुछ भी हो सकती हूँ
जो भी होना चाहूँ l
उन्हें क्या पता मेरे कन्धों की ताकत के बारे में
जो हल्के से वो बदन छू गुज़रते हैं, जो मुझे अच्छे लगते हैं
जब मैं दायें कंधे के ऊपर से तुम्हें देखती हूँ, मैं तुम्हें माप रही होती हूँ |
जब मैं अपने हाथ से बायाँ कंधा हल्के हल्के सहलाती हूँ,
तुम्हारी आँखें मेरे बदन पे मेरे हाथ की ओर खिंची चली आएंगी
उस छूने के लिए परफेक्ट जगह पे, जहाँ मेरी गर्दन और कंधे आ मिलते हैं |
मेरे हाथों के बारे में सोचो |
सोचो कैसे वो तुम्हारे हाथों पे ठहरे रहते हैं,
कैसे बार बार वो हँसते हुए तुम्हारे गालों को पुचकारते हैं
कभी कभी, मैं शुक्रगुज़ार होकर तुम्हारे कन्धों को हल्के से छूती हूँ
थैंक यू, तुमने यह एहसास मुमकिन कराया
थैंक यू , तुमने मुझे सोचने का मौका दिया कि और क्या- क्या मुमकिन है !
क्या उन लोगों ने मेरी कमर के ऊपरी हिस्से पे कभी सोचा होगा,
मेरी ऊपरी जाँघों के बारे में
मेरे एड़ियों को रखने के अंदाज़ पे
जब मैं बातचीत के दौरान आगे झुकती हूँ,
अपन कोहनी को तुम्हारी से
कुल दो इंच की दूरी पर रखते हुए
बस यह जानो कि मैं तुम्हारे पास रहूँगी
तुम्हारी सुनूँगी
मुझे नोटिस करोगे
मैं तुमको नोटिस करूंगी |
मैं तुम्हें बताऊंगी
कि कभी कभी मेरा बदन एक गीत सा होता है
कल वो एक नॉन वेज कविता था
आज, नहीं पता.. बड़ी सारी संभावनाएं हैं |
इतनी सारी शायरी, इतना सारा आनंद
उन लोगों को ये सब कहाँ पता !
टीया पागलों सी, बेरोक पढ़ती रहती हैं l और किताबों के अपने जूनून को पूरा करने के लिए लिखती हैं और सम्पादन का काम भी करती हैं l अपनी ज़िंदगी की तीसरे दशक के कहीं बीचों बीच, वो प्यार और लेखनी, दोनों में अपने पक्के सुर की ओर बढ़ रही हैं l
एक फ़्लर्ट का रचा बसा बदन
कभी कभी मेरा बदन एक गीत सा होता है/कल वो एक नॉन वेज कविता था
कविता: टिया बासू
चित्र: भव्या कुमार
अनुवाद: प्राचिर कुमार
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