जब आप किसी के साथ डेट पर जाएं या किसी के साथ संबंध में हों, तो कुछ ना करने की इच्छा होने पर, 'नहीं' कहना आसान होना चाहिए। है ना?
लेकिन हम सभी जानते हैं कि असल में, ये मुश्किल होता है। ना कहने के बाद, या तो आप अजीब महसूस करने लगते हैं, या फिक्र करने लगते हैं। कभी आपको राहत महसूस होती है तो कभी आप खुद को दोषी मानने लग जाते हैं। कभी-कभी आप वाकई बड़े तीखे और असंवेदनशील हो जाते हैं। और इस कोशिश में कि ऐसे ना हों, अपनी बात साफ-साफ बयान ही नहीं करते!
ऊपर से हमारे यहां डेटिंग को लेकर कुछ ऐसा माहौल बना है जिसमें हर वक़्त कूल(cool) रहना होता है, हर बात के लिए तैयार। और अगर हम ऐसा नहीं करते हैं तो हमें दकियानूसी समझा जाता है। ऐसे में हम सचमुच क्या चाहते हैं, उसके बारे में ईमानदारी से बात कर पाना मुश्किल हो जाता है।
हाँ, ये मुश्किल हो सकता है, लेकिन हमें इसका हल निकालना पड़ेगा। समय आ चुका है, जब हम इन चीजों के बारे में ज्यादा और खुलकर बात करें। यहां हम कुछ ऐसी परिस्थितियों की चर्चा करते हैं जिनमें शायद आपको “ना” कहने की इच्छा हो। और इस पर भी कि ऐसे हालात में “ना” कैसे कहा जाए।
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याद रखें, सहमति/कंसेंट K3G मूवी के अमिताभ बच्चन की तरह नहीं है - कि "कह दिया तो बस कह दिया" । मतलब, ये कोई पत्थर की लकीर नहीं है जिसे बदला ना जा सके। बल्कि, ये ऐसी चीज है जो कहीं भी, कभी भी, बदली जा सकती है। अलग-अलग रोमांटिक स्थितियों में या सेक्स के अलग-अलग पड़ाव पे। जैसे- पहल करने से लेकर सम्भोग क्रिया के बीच में, वन-नाईट-स्टैंड या नो-स्ट्रिंग्स-अटैच्ड ( no strings attached) या लॉन्ग-टर्म रिलेशनशिप्स में, कहीं भी। अगर मज़ा करना है, तो मर्ज़ी का होना ज़रूरी है। मर्ज़ी तो मिनिमम है! जिस समय हमें महसूस हो, ठीक उसी समय ‘ना’ बोल पाना, ये भी एक हुनर है, जो हमें सीखना चाहिए। और एक बात और: जैसे हम चाहते हैं कि जब हम 'ना' करें तो सामने वाला हमारी भावनाओं का सम्मान करे , ठीक वैसे ही हमें भी दूसरों की 'ना' को सुनना और मानना चाहिए।

- जब आप बिल्कुल दिलचस्पी नहीं रखते हैं

- जब आप समीकरण (equation) बदलना नहीं चाहते हैं

- जब आपको दिलचस्पी है, लेकिन आप तैयार नहीं हैं

- जब आप प्यार के मूड में 'ना' हों

- जब आप किसी वज़ह से असहज हैं

