मिहीर सासवडकर द्वारा अनुवादित
अगर परंपरागत लैंगिक भूमिकाओं के साथ थोड़ा खेल करा जाए - उनकी गुदगुदी की जाए, उन्हें खींचकर, मोड़कर उल्टा पुल्टा किया जाए - तो फिर क्या होगा? इन सवालों के जवाब हमें बंबई में स्थित पैचवर्क्स ऑनसौंब्ल द्वारा प्रस्तुत किए दो नाटकों में मिलें। ये जवाब ऐसे शानदार अंदाज़ में पेश किए गए, कि जिसकी हम कल्पना ही नहीं कर सकते थे !
पहले नाटक ईला की प्रेरणा देवदत्त पट्टनायक की लिखित कहानी थी। ये कहानी हिंदू पुराणशास्त्र पर आधारित है। उसमें एक राजा को हर महीने, औरत बनने का श्राप मिला है। हर महीने जैसे जैसे चाँद का आकार बढ़ता और घटता है, वैसे ही उसका लिंग भी बदलता है। शुरू में उसे बड़ी तकलीफ़ होती है। पर धीरे धीरे वो अपने नए रूप को स्वीकारने लगता है। द जेंटलमन्स क्लब में मनचले राजाओं के एक गुट को दर्शाया गया है : उनकी ज़िंदगी का एक दिन । रोचक बात ये है कि वे सब औरतों के वेश में हैं। इस वेश बदल को ड्रैग कहते हैं। उनकी दुनिया में इस तरह क्वीयर पेश आना अजीब नहीं नहीं माना जाता। इस नाटक में ढेर सारे रोमांचक नाच हैं और उनके बीच में ग्रीन रूम में होने वाली मज़ेदार बातचीत भी शामिल है। इन सब से नाटक बिजली सा तेज़ और मज़ेदार बना रहता है।
यह रोमांचक नाटक जेंडर (gender) का मज़ाक मज़ाक उड़ाता है, लेकिन एक हलके, प्यारे से अंदाज़ में। देखा जाए, तो दोनों नाटक हमसे यह सवाल करते हैं कि सबकी नज़र से दूर, हम असल में कौन हैं। और जब हम अपनी असली पहचान को समझने लगते हैं तब उससे ख़ुश रहना हम कैसे सीख सकते हैं? नाटक देखकर हमारे मन में भी कई सवाल उठे। तो उन सवालों के जवाब ढूँढते हुए हमने पैचवर्क्स ऑनसौंब्ल (patchworks ensemble) के संस्थापक और एक्टर पूजा सरूप और शीना ख़ालिद से बातें की।
इन नाटकों को बनाने की प्रक्रिया कैसी थी?
पूजा: दोनों नाटकों में काफ़ी पेचीदा बातें की गई हैं, जो हमारे लिए भी नई थीं l इस तरह नाटक की रचना करते करते हम भी बहुत कुछ सीखते गए।
ईला की कल्पना देवदत्त पट्टनायक की कहानी से आई। एक्टरों को तैयार करने के लिए हमने कई सारे एक्सरसाइज़ किए। एक एक्सरसाइज़ था इम्प्रोवायज़ेशन (improvisation- यानी बिना प्लानिंग के उसी वक्त अदाकारी करना), जो उन्हें एक्टिंग में हाज़िरजवाब बनाता है। सभी एक्सरसाइज़ के ज़रिए एक्टर अपनी बॉडी को समझ रहे थे - एक एक्टर पहले औरत जैसे हाव भाव अपनाता, फिर मर्द जैसे ,और फिर वापस औरत जैसे। ऐसा करने से हम ख़ुद से सवाल करने लगते हैं - कि हम फ़लाँ फ़लाँ अदा को मर्दानी अदा ही क्यों समझते हैं। हम अक्सर मूछ को मर्द से जोड़ते हैं और मटकने को औरत से - इस परंपरागत सोच को तोड़े बिना हम आगे नहीं बढ़ सकते थे। इसलिए हमने शुरुआत उसी से की। पर हमने अक़्लमंदी शायद इसमें दिखाई कि ईला का किरदार सिर्फ़ एक एक्टर ने नहीं निभाया। सारे के सारे एक्टरों ने, चाहे वो मर्द हो या औरत, नाटक के अलग अलग मोड़ पर वह किरदार निभाया।
इस नाटक ने कई सवाल पैदा किए। पहला सवाल ये कि जैसे मर्दों से जुड़ी अदाओं के लिए मर्दानगी शब्द इस्तेमाल किया जाता है, स्त्रियों के लिए ऐसा कौन सा शब्द है? हमें कोई शब्द नहीं मिला। यदि मर्द का मर्दानगी होता है तो क्या औरत का औरतानगी होता है? स्त्रीत्व? औरतपन? औरता? ये भाषा आती कहाँ से है? ऐसा क्यों होता है कि कुछ चीज़ों के लिए शब्द हैं और कुछ के लिए नहीं?
शीना: ईला के रिहर्सल के दौरान एक ऐसा समय आया जब हम आगे बढ़ ही नहीं रहे थे। किसी को कुछ नया सूझ नहीं रहा था, मानो जैसे हम दीवार पर सर पटक रहे हों। और हमने सोचा, क्यों ना सभी मर्द औरत जैसे और सभी औरतें मर्द जैसे कपड़ें पहनें? क्यों ना औरतें किसी पुरुष किरदार का रूप लें और सभी मर्द स्त्री किरदार का? और कुछ औरतों ने शानदार पुरुष किरदार निभाए। जबकि मर्दों ने जो स्त्री किरदार निभाए, हद से ज़्यादा कामुक थे। दूसरी तरफ़ औरतों ने निभाए पुरुष किरदार रोज़मर्रा की ज़िंदगी से थे, जिनपे विश्वास किया जा सके। और यहीं से जेंटलमन्स क्लब की शुरुआत हुई।
तुम्हारे दोनों नाटक क्वीयर होने को समझने की कोशिश करते हैं, और पुरुषत्व और स्त्रीत्व की सीमाओं को आगे ढकेलते हैं। तुम्हारे मुताबिक, क्वीयर का क्या मतलब है?
शीना: पुरुष प्रधान समाज हमारी सोच को निर्धारित ढांचों में बिठाता है। जो बातें उन ढांचों में नहीं बैठती वे सब क्वीयर हैं।
पूजा: जब कोई क्वीयर शब्द कहता है तो मेरे मन में कई रंगों से बना इंद्रधनुष आता है, सिर्फ़ एक रंग नहीं, बल्कि सारे रंग। क्वीयर, ये शब्द एक विचार है जो कहता है कि किन्हीं दो विपरीतताओं के बीच एक विस्तार है l यानी जानी मानी, अपनाई हुई मान्यताओं के बाहर भी दुनिया है । बचपन में हम काग़ज़ का एक खिलौना बनाते थे, जिसके तिकोण नई नई दिशाओं में खुलते थे।यानी चाहो तो हर बार तुम एक नया रंग चुन सकते थे, नए नए पहलू खुलते रहते थे l टिप्पी-टिप्पी टैप कहकर हम पूछते थे कि तुम्हें इस बार कौन सा रंग चाहिए? क्वीयर भी कुछ ऐसा ही है: आप एक खोज में रहते हो, मेरा सच्चा रूप क्या है? मैं सबसे ज़्यादा किस रूप में ख़ुश हूँ, बावजूद इसके कि दूसरे लोग उसे मानते नहीं? मुझे सबसे ज़्यादा आरामदायक कब लगता है?
और इनका जवाब ढूँढ़ते रहना मेहनत का काम है!
ऐसा लगता है कि ईला कह रहा है कि हम सब क्वीयर हैं- हम सब में कुछ इच्छाएं हैं जोनिर्धारित लैंगिक मान्यताओं के बाहर हैं। क्या मेरा यह अनुमान सही है?
पूजा: शायद मूल रूप से हम यह कह रहे हैं कि ये हर एक की अपनी निजी खोज है, इसका कोई फार्मूला नहीं है। हम अपनी जिज्ञासा सबके साथ खुलकर बांटते हैं। हमारे काम में आपको यह बात हरदम नज़र आएगी। हमने ऐसा कभी नहीं कहा कि “सुनो सब लोग, हमें सब पता है!”। ऐसी कई चीज़ें हैं जिनके बारे में हममें कौतूहल है और उन्हें समझने की कोशिश हम अब भी कर रहें हैं।
शीना: ईला सिर्फ़ ये कह रहा है कि रंगों के इंद्रधनुष जैसे जेंडर भी फैला हुआ है, और सभी लोग उस फैलाव के अलग अलग जगहों पर हैं। आपकी जगह भी बदलते रहती है, किसी एक जगह पर आप अटके नहीं रहते। यह नाटक शायद यह कह रहा है कि हम जेंडर को स्थिर समझते हैं लेकिन उसमें काफी बहाव है, जिसकी हम बात ही नहीं करते ।
जेंडर के बारे में कठिन सवाल क्या आपने जान बूझकर हलके अंदाज़ में पूछे?
पूजा: हाँ, चूँकि लोग हमेशा रोना धोना या सनसनी कहानियां पसंद करते हैं। जैसे जब जेंटलमन्स क्लब पर मुलाक़ात होती है तब लोग जानना चाहते हैं कि नाटक में पहने बंधक निकालने पर कोई दाग़ छूट जाते हैं क्या? पर हमारा अंदाज़ अलग है, हमें जश्न भरा अंदाज़ पसंद है, हम ऐसे अंडर में ड्रामा करने जाते हैं।
लोग दिनभर इतनी सारी चीज़ें सुनते और देखते हैं कि ऊब जाना उनके लिए बहुत आसान है। तो उन्हें हमारी बातें बताने का मज़ेदार तरीका ढूंढना ज़रूरी है। चुनौती यह है कि हम उनसे विचारपूर्वक बातचीत कैसे करें?
और मुद्दे अपने आप ही सामने आएँगे। उन्हें ज़बरदस्ती उगलवाने की ज़रुरत नहीं। पर इसका ये मतलब हरगिज़ नहीं कि हम लोगों के अनुभवों को नज़रअंदाज़ करें।
इन नाटकों ने जेंडर और सेक्श्यूआलिटी (sexuality) की तुम्हारी अपनी समझ को कैसे बदला?
शीना: इन नाटकों ने मेरी ख़ुद की खोज को भी आसान कर दिया है। मैं जान गई हूँ कि आस पास के वातावरण से सीखने के लिए बहुत कुछ है,अपने बारे में ही बहुत कुछ। समाज लोगों पर उनके लिंग पर आधारित तौर तरीके और आकांक्षाएं फिक्स करता है। इस सीमित सोच को भी हमें बदलना है। मुझे तो ऐसा लगता है कि में चाँद हूँ, जो हर वक्त बदलता रहता है!
पूजा: मेरे ख़्याल से इन मुद्दों पर अब हम पहले से कई ज़्यादा जानकार बन गए हैं। अब हम जानते हैं कैसे कभी कभार लोग जेंडर और सेक्श्यूआलिटी को एक जैसा समझ बैठते हैं। ये नाटक बनाने के दौरान कई एक्टरों को जेंडर और जेंडर संबंधित अनुभवों को बारीकी से समझने का अवसर मिला।
ड्रैग में पेश आने वाले राजाओं का किरदार निभाने के लिए तुम्हें कैसी मानसिक तैयारी करनी पड़ी? चूँकि जेंटलमन्स क्लब में आप मर्दों के किरदार निभाने के साथ साथ, आप ऐसी औरतें का किरदार भी निभाती हैं, जो मर्दों के रोल कर रहीं हैं।
शीना: ड्रैग में आप उत्तेजित स्थिति में होते हो। हमने ये नहीं सोचा, हम्म, किसी मर्द के अंदर क्या चल रहा है। हमने इस बात पर ध्यान दिया कि मर्दानगी कैसे रंग लेती है?
पूजा: ...आपको क्या दिखता है?...
शीना: … स्टेज पर आपक्या कर रहे हो? हमने शारीरिक रूप से मर्दों के बदन धारण किए। बस उसके बाद में हम सिर्फ़ उसका मज़ा लेते गए।
आपके अंदाज़ में लोग ड्रैग शो क्यों देखते हैं?
पूजा: २००५ में मैं फ़्रांस गई थी, एक घूमते फिरते (travelling) नाटक कंपनी के वर्कशॉप के लिए। दुनिया भर के लोग वहां थे। वहां इटली की एक लड़की का बर्थडे था। उसने कहा कि उसे तोहफ़े के रूप में एक आदमी चाहिए था। तो उसे सरप्राइज़ देने के लिए सभी औरतों ने मर्दों का वेश पहना। बड़ा मज़ा आया उस रात, मैं इतनी क़ातिल दिख रही थी, और दूसरी सभी औरतें भी। ख़ुद को मर्दों के वेश में देखना बड़ा अच्छा लग रहा था मुझे। मेरे ख़्याल से दर्शकों के साथ भी यही होता है - मानो जैसे उनके दिमाग़ में संभावना का कोई दरवाज़ा खुल जाता है, कि शायद मैं भी ऐसा कुछ कर सकता हूँ। एक नई सोच के लिए मन में जगह बनती है।
शीना: मैंने कही एक बहुत अच्छा वाक्य पढ़ा: ड्रैग एक उत्सव है - पुरुषत्व का उत्सव और स्त्रीत्व का उत्सव। नाटकों के ज़रिए हम ये भी समझ गए कि पुरुषत्व और स्त्रीत्व पर किसी एक व्यक्ति का हक़ नहीं है।
एक आज़ादी का अहसास होता है। इतनी... ख़ुशी ! देखकर हौसला बढ़ता है और उत्साह भी, हमारा और लोगों का भी!
शीना: एक दफ़े हम द जेंटलमन्स क्लब के लगातार दो शो कर रहे थे - ठीक मुंबई प्राइड के दिन। इसलिए प्राइड ख़त्म होने के बाद कई लोगों ने हमारा दूसरा शो देखा। शो हाउज़ फ़ुल्ल था लेकिन साउंड इतना अच्छा नहीं था। हमें लगा कि शो इतना अच्छा नहीं गया था और मैं नाख़ुश थी। मैं मेरी बहन को कह रही थी कैसे मुझे लगा कि पहला शो दूसरे से बेहतर हुआ था। और मेरी बहन ने मुझे चुप कराया और बोला कि ज़रा नज़र घुमा के देखो। दर्शकों में एक लाजवाब आदमी था, शायद २२ या २३ का होगा वो, हाई हील्स पहने, शॉर्ट ड्रेस में, सिर पर एक बड़ी विग, और बढ़िया मेक अप में। उसके जैसे कपड़े पहने हुए बहुत सारे लोग वहां थे और सभी इतने ख़ुश दिख रहे थे! मेरी बहन बोली, देख इस शो ने क्या माहौल बनाया है! यही इसकी अहमियत है - उसका मज़ा ले, उसकी क़दर कर और उसे ध्यान में रख।
जब आप ये किरदार निभा रही हो, तब ड्रैग आप पर क्या असर करता है?
शीना: जो मैंने पहले कहा। आज़ाद महसूस करती हूँ। इतना मज़ेदार। और कितना...
पूजा: … ताज्जुब भी होता है ...
शीना: हाँ, वाकई में। और उससे कई ज़्यादा असर कर जाता है। हम शायद वाकई में ख़ुशक़िस्मत हैं कि हमारे काम के बारे में हम ख़ुद से हरदम सवाल पूछ सकते हैं, वो क्या मोड़ ले रहा है इत्यादि। और ये शो हमें वो मौका देता है।
ड्रैग से हम सब क्या सीख सकते हैं?
शीना: कि पुरुषत्व और स्त्रीत्व क्या हैं, ये तय करना हमारे हाथों में है! आप उनके साथ खेल सकते हो, प्रयोग कर सकते हो। रोज़मर्रा की ज़िंदगी में हम सब ये करते भी हैं। उसके नियम निर्धारित नहीं हैं!
पुरुषत्व और स्त्रीत्व क्या हैं ये तय करना हमारे हाथों में है! - पैचवर्क्स ऑनसौंब्ल के साथ एक मुलाक़ात
A conversation with theatre artists Puja Sarup and Sheena Khalid on how they used the form to expand the ideas of gender and sexuality.
Score:
0/
Related posts
How To Smell And Taste Good Down There
Partner going down on your buffet? Tips for a yummy garnish!…
हम बस दुखड़ा रोने को तैयार ही थे कि हमने हॉकी स्टिक लिए एक छोटी लड़की को देखा।
एक मूवी के किरदार से अ…
मैंने खुशी-खुशी अपना दिल उनको दिया, लेकिन उनको चाहिए थे बच्चे और एक देसी बहू
स्थायी बीमारी में डेटि…
दुनिया की ऐसी जगहें जहाँ पब्लिक में सेक्स करना क़ानूनन जायज़ है ।
आज है #WorldTorismDay! जाने दुनिय…
If Life is Box Full of Chocolate Boys!
#HappyChocolateDay to the men who smile, are vulnerable, and…
What is Fellatio? The AOI Sex Glossary
Is it ice-cream ka flavour, like pistachio? Well, it does ha…
Sorry Thank You Tata Bye Bye - A Music Video About Age of Marriage In Collaboration With Oxfam India
Ammuma’s Haircut and Her Romantic Past
If Ammuma's hair was one to divulge, what would it reveal ab…
It Was ‘Twilight’. I Woke Up Bisexual.
How one can stumble upon one's (bi)sexuality with the help o…
To All the Boys I Couldn't Love Before
What fleeting connections with many interesting men tell you…
Tell Me Tarot, Will He Ever Come Back?
After Manjari is ghosted, all search for closure leads to he…
How My Girlfriend's Abortion Made Me A Better Man: A Comic
M's story about a life-changing incident.
Do You Know How to Give Women Orgasms?
This app will teach you how and we got some Agents to try it…
The AOI Queer Reading List: Desi Languages Version
Queer readings from non-English Indian languages.
What Makes Your Sexual Confidence Go Up and Down
Sexual confidence is like a Snakes and Ladders Game
KISS MEIN KITNA HAI DUM: 19 KISS POEMS
Kisses that go from sweet to saucy, tender to raunchy, misch…
Savita Bhabhi and I: A True Love Story
Here is something you should know about me. I wrote three st…
How Posing in the Nude Changed My Life
A young gay man who hates being touched, is awkward about ha…