लगभग 10 साल हो चुके हैं, मैंने किसी आदमी के साथ सेक्स नहीं किया है।आख़री बार मैंने अपने पति के साथ संबंध बनाये थे, जिसे मैंने तलाक दे दिया।
एक अठारह वर्षीय नवयुवती की तरह मैंने काम-सूत्र:एक प्रेम कहानी फ़िल्म देखी जो मीरा नायर द्वारा निर्देशित थी। काम- सूत्र एक ऐसी कहानी थी जो प्रेम करने की कला के बारे में बात करती है।
मैंने सोचा कि इस फिल्म को देखना मेरे लिए निषेध होगा, उसी प्रकार जैसे मुझे जैकी कोलिन्स द्वारा लिखित उपन्यास नहीं पढ़ने की चेतावनी दी गई थी, क्योंकि वह सेक्स के बारे में खुल कर बात करते हैं।
मैं एक शिक्षाविदों के परिवार से हूं और मेरे माता-पिता, दोनों प्रोफेसर थे। मेरा ध्यान केवल अध्ययन पर था: गणित, विज्ञान और - सबसे महत्वपूर्ण - नैतिक विज्ञान, आई.सी.एस.ई. बोर्ड का चरित्र निर्माण पर एक विशेष विषय। तो, मेरे माता-पिता और समाज के मानकों के अनुसार, मुझे काम-सूत्र बिल्कुल भी नहीं देखनी चाहिए थी। बल्कि, मुझे झांसी की रानी, रॉबिन हूड या जय संतोषी मां देखनी चाहिए थीं।
अठारह वर्ष की आयु में ही मुझे 'कामसूत्र' इस नाम से ही एक कतुहुल सी पैदा हो गया था, मैंने इसे देखने का फैसला किया ताकि जब मैं शादी करुं, तब मैं अच्छी तरह से प्यार कर सकूँ । फिल्म शुरू होती है माया और तारा से, एक नौकरानी और एक राजकुमारी से, जो एक दूसरी कीे सबसे अच्छी सहेलियां और साथ ही प्रतिद्वंद्वि भी थीं। एक ओर जब राजकुमारी तारा को रसा देवी द्वारा प्रेम करने की कला को पढ़ाया जाता था, जो कि वह अपने लिए उपयोग नहीं कर पाती, वहीं माया जो कि नौकरानी थी, वो उस कला को मूर्तरूप देती है/ अपने जीवन में साकार करती है।
मैं एक शास्त्रीय नर्तकी हूं, और मैं भी अपने शरीर की लय के साथ कहानियों को कहने के लिए नृत्य करती हूं। प्रत्येक गीत के साथ मेरे कदम प्यार की भाषा को समझा सकते हैं। मेरे पास कामुक नाक-नक्श हैं और मैं अपने अंग-संचालन से ही किसी को भी अपने लिए तड़पा सकती हूं। फिल्म में, माया और तारा दोनों राजा के सामने नाचती हैं और मैं दर्शकों के सामने नृत्य करती हूँ। कभी दर्शक बच्चे होते हैं, कभी वयस्क, लेकिन इससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।
राज, जो कि फिल्म में एक लंपट राजा होता है, को सेक्स की ज़रूरत होती है, फिर भी अंततः उसे माया से प्यार हो जाता है, क्योंकि उसके अंदर उसकी आत्मा के नशीले भाव झूमते हैं । माया के किरदार में मुझे अपना एक रूप दिखा ,मुझे लगा कि मैं भी उस व्यक्ति को दुलार सकती हूं और चूम सकती हूं जो मेरा पति होगा। जब हम प्यार करेंगे, तब मैं कहराउंगी,महसूस करूँगी पुरुष की उस छुअन को जिसकी ज़रूरत हर स्त्री को होती है, उस सांस को अपने अंदर तक समेट लूंगी जो मुझे एक मादक भोर में ले जा सकता है, जब-तक कि दो आत्माएं एक ना हो जाए, इतने करीब ना हो जाएं जितना कि दो आत्माएं हो सकती हैं।
अठारह साल की उम्र में मैं अपने आदमी की बाहों में रहना चाहती थी, जो मेरी गर्दन को चूमे, मेरे लोलकियों को छुए। मैं चाहती थी कि वो मेरे स्तनों पर प्यार सेे काटने के निशान छोड़े, मेरे नाखून उसकी पीठ को नोचें, जैसा कि मैंने कहा “प्रेम” करे। मैं वो प्रेमीका बनना चाहती थी जिसे कोई भी प्यार करना चाहे। लेकिन मैं यह सब एक शादी में चाहती थी, अपने पति के साथ।
मैंने सोचा कि मैं एक साड़ी में खुद को ढ़कूंगी और एक दुल्हन की तरह दिखूंगी, मेरे माथे पर एक लाल बिंदी होगी, मेरे मखमली बाल के जूड़े में फूल गूथे हुए होंगे । उस रात वो आएगा, मेरी ठोड़ी को उठायेगा; अपनी बाहों में मेरे काँपते शरीर को लपेट लेगा। मुझे लगता था, मैं अपने प्रेमी जय कुमार की माया थी, जिसके हाथ मेरे गालों को सहलाएंगेे, वो मेरे होंठों से अपने होठों को स्पर्श करेगा, मुझे उन सभी आसनों में लेकर जाएगा जो कि पुस्तक में समझाए और मूवी में दिखाये गये हैं। वो मुझे पूरी तरह से जीत लेगा और मुझे अपनी पहली रात के लिए तैयार हमारी मंज़िल, हमारे बिस्तर पर ले जाएगा। वो मेरेे ब्लाउज़् को खोल देगा, मेरी टांगों पर उसके हाथ, मेरी पीठ उसी अपेक्षा में झुकी हुई जिस में माया की झुकी थी, जब जय कुमार ने उसके स्तनों को छुआ था, क्योंकि वो अच्छी तरह जानती थी कि उसकी उंगलियां अब कहाँ पहुंचेंगी। मेरा सिर तकिया में रगड़ खायेगा, और मेरे होंठों से पहली कहराहट निकलेगी।
फिर, जब मैं बाइस साल की थी, मेरी शादी हो गयी।
मैंने अपने पति से कामसूत्र को मेरे साथ देखने को कहा। उन्होंने कहा कि उनके पास इसके लिए कोई समय नहीं है, लेकिन उनके पास उनके दोस्तों के लिए समय था और उनकेे साथ वोे फिल्में भी देखने गए थे। वो कई बार ब्लू फिल्मेंं घर भी लेकर आये थे और मुझे उनके साथ पोर्न देखने को कहा था। किन्तु मुझे कभी नहीं लगा कि मैं माया हूँ और वो जय कुमार- बल्कि,मुझे एहसास होता था राजा की उस रखैल जैसा जिसके साथ वह मैथुन तो करता था, लेकिन प्रेम नहीं। मैं कामसूत्र को फिर से देखना चाहती थी, मैं उसे सिखाना चाहती थी कि कैसे एक औरत से प्यार करना चाहिए। मैं पोर्न फिल्में देखना नहीं चाहती थी क्योंकि मुझे पता था कि वे संभोग के बारे में बात करती थीं, जबकि मैं केवल प्रेम चाहती थी। मेरे पति को लगाता था कि वह बहुत बौद्धिक है और वे सेक्स के नाम पर इस तरह की मूर्खता की सराहना नहीं करता।
आज मेरी शादी की पहली रात को मुड़कर देखूं, तो कोई सेक्स कभी था ही नहीं । रिसेप्शन के दौरान मैं सीढ़ियों से फिसल गयी थी और मेरे पैरों में चोट आ गयी थी। मेरे पैरों में दर्द था, लेकिन उसने उसपे कोई ध्यान नहीं दिया और फिर सोने के लिए चला गया । पहली रात ही मुझे समझ आ गया था कि वह अभिमानी था। मुझे ऐसा पहले भी लगा था जब हमने मिलना- जुलना शुरू किया था, लेकिन तब मैं शादी करने की जल्दबाज़ी में थी और मैंने उसकी अपमानजनक प्रकृति को नजरअंदाज कर दिया। अगले दिन मेरी दोस्त ने यह पूछा कि मेरी पहली रात कैसे रही? मैंने कामसूत्र से दृश्यों के आधार पर बातें बना कर बता दीं, तब मेरे पति ने मुझसे फोन छीना और मुझे ज़ोर से चांटा मारा था।फिर उसने अगले तीन दिनों तक मुझसे बात नहीं की। हमारे हनीमून पर, वो उग्र हुआ जब होटल के रिसेप्शन पर मैंने मैनेजर से कहा कि वो हमें एक नव-विवाहित जोड़े के लिए उपयुक्त कमरा दें। तब फिर से, उसने मुझसे बात करना बंद कर दिया और तीन दिन मुझे सजा देने के बाद, मेरे साथ यौन संबंध बनाने की कोशिश की लेकिन वह कोशिश एक दुर्घटना समान रही थी।
मैं सेक्स के बारे में कभी उससे बात नहीं कर सकती थी। हम ग्यारह वर्षों तक शादी में रहे, लेकिन केवल कागज़ों पर । मैंने उसके साथ पांच साल बिताए और मेरा जीवन एक नर्क था। मैंने एक बार नहीं दो बार आत्महत्या करने का प्रयास किया। उसने मुझे गर्भवती कर दिया, मैं एक जवान औरत थी, और अन्य पुरूष मुझे वासना-भरी नज़रों से देखतेे थे। लेकिन मुझे लगता था जैसे मुझे एक पायदान के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा था, ना की एक महिला की तरह जिसे प्यार का अधिकार हो। हालांकि हमारी शादी एक प्रेम विवाह था, लेकिन मैंने उसे माया की तरह छोड़ दिया - दूर चली आयी, हजारों कोस दूर, ताकि वह मुझ कभी ना ढूंढ सके।
मैंने कामसूत्र फिर से देखी, लेकिन इस बार एक एकल महिला के रूप में जिसे प्यार की ज़रूरत है और वह चाहती है कि कोई उसे प्यार करे। सेक्स चोट से ग्रस्त आत्माओं को आपस में जोड़ता है, एक ऐसे व्यक्ति में
प्रेम प्रज्वलित कर सकता है जिसे दशकों से प्यार नहीं मिला हो। यह उन चोटों और घावों के लिए बाम है जो अभी-तक ठीक नहीं हुए हैं। यह प्रेम की शक्ति के साथ, संबंध मजबूत रख सकता हैं, क्योंकि मैं कहती हूं कि सेक्स के बिना प्यार अधूरा है।
मैं अभी भी अपने जय कुमार को खोजती हूं, मैं उसका सपना देखती हूं, मैं एक ऐसे घर का सपना देखती हूं जहां हम प्यार करते हैं, जहां वो पूरे जोश के साथ मुझे चूमता है, जहां वो मुझे एक स्त्री के रूप में मुझे पूरी तरह से प्यार करेगा। लेकिन अब यह सिर्फ एक सपना है, वास्तविकता नहीं।
वास्तविक जीवन में, मैं अकेली ही कामसूत्र देखती हूँ और मैं रसा देवी हूं, जो अपने नृत्य, अपनी मुद्राओं, अपनी भावनाओं के माध्यम से प्यार करने की कला को सिखा सकती है। मैं अब रसा देवी हूं , माया नहीं।
रिमली भट्टाचार्य को मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त है और वे एम.बी.ए. हैं, आपूर्ति चेन प्रबंधन ( supply change management) में । उनका लेखन कई पत्रिकाओं, इंजीनियरिंग संबंधी पत्रिकाओं, ब्लॉग, टाइम्स ऑफ इंडिया, और एन्थोलॉजी बुक ऑफ़ लाइट में छपा है। वह एक प्रशिक्षित कथक और ओडिसी नर्तकी भी हैं और मुंबई में उनका बेस है।
मैंने फ़िल्म काम-सूत्र जैसी सुहाग रात का सपना देखा था। मेरा वास्तविक अनुभव ऐसा बिल्कुल नहीं था।
लगभग 10 साल हो चुके हैं, मैंने किसी आदमी के साथ सेक्स नहीं किया है।
लेखन : रिमली भट्टाचार्य
चित्रण : तेजश्री इंगले
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