अगर आप किसी भारतीय को अभी ही सड़क पर पकड़ लें, चाहे शहरों में, गाँवों में या 5 स्टार के भेंट-कक्षों और सम्मेलनों की बैठकों में, और उनसे पूछें कि वे गर्भपात के बारे में क्या सोचते हैं? तो पूरी संभावना है कि आपको बताया जाएगा कि यह एक भयानक चीज़ है क्योंकि लड़कियाँ मारी जा रही हैं।
एक डॉक्टर और एक महिला के रूप में, मैं यह नहीं बता सकती कि मैं कितना ज़रूरी समझती हूँ कि यह सोच बदले । और सचमुच यह बात होनी चाहिए कि ये दोनों इतने अलग-अलग मुद्दे क्यों हैं और क्यों महिलाओं को हमेशा अपने शरीर और जीवन को नियंत्रित करने के लिए सुरक्षित गर्भपात का अधिकार होना चाहिए।
एक असामान्य सेक्स अनुपात दो चीजों पर निर्भर करता है - जब हम जन्म के समय के अनुपात को देखते हैं तब - लड़कों की तुलना में लड़कियाँ कम हैं - और 6 साल से कम उम्र के लड़कों से तुलना करें तब भी लड़कियाँ ही कम हैं। मुख्य योगदान करने वाले कारणों में से एक है बेटों/लड़कों को प्राथमिकता। लोग यह पता लगाने की कोशिश करते हैं कि उनके पास गर्भावस्था में जो भूण है, वह लड़के का है या लड़की का और फिर लड़के को रखने का चयन होता है। एक और स्तर पर भी, जब लड़की की पैदाइश होती है, तब अक्सर उसे परिवार द्वारा सही ढंग से खिलाया- पिलाया नहीं जाता है, उसका प्रतिरक्षण नहीं करवाया जाता है या उसे बीमार होने पर उचित स्वास्थ्य सेवा भी नहीं दी जाती, इसलिए 6 साल की उम्र के लड़कों की तुलना में 6 साल की उम्र की लड़कियाँ ज़्यादा मरती हैं।
और फिर भी लोग इस लिंग पूर्वाग्रह को गर्भपात के साथ जोड़ते हैं। महिला/लड़की शिशु-हत्या - लड़की के पैदा होने के बाद उसको ख़त्म करने की परंपरा भारत में सदियों पुरानी है और अभी भी कई जगहों पर जारी है। नई प्रौद्योगिकियों के आगमन का अर्थ है कि लोग गर्भ में लड़की को समाप्त कर देने का विकल्प चुन रहे हैं बजाय कि लड़की के जन्म लेने के बाद उसे मारने का ।
पर दूसरी ओर , वास्तविकता यह है की 90% से ज़्यादा गर्भपात अनियोजित और अवांछनीय गर्भधारण की वजह से होते हैं और इसके और भी कई “अन्य”कारण हैं। बलात्कार, स्थिर रिश्ते की कमी, गर्भनिरोधक के बारे में जानकारी की कमी, गर्भनिरोधक की अनुपलब्धता, प्रभावी गर्भनिरोधक की अनुपलब्धता, वैवाहिक बलात्कार, साथी का गर्भनिरोधक ना उपयोग करना, हिंसा, ज़ोर ज़बर्दस्ती, भ्रूण विकृति, महिला का बीमार स्वास्थ्य, आर्थिक कारण, इत्यादि ।
यदि गर्भपात और कन्या भूण हत्या के बीच कोई संबंध है तो वह है: दोनों का मुख्य कारण लिंगभेद से जुड़ा है।
यौन संबंध दोनों, यानी पुरुषों और महिलाओं के बीच होता है लेकिन केवल महिलाओं को ही गर्भवती होने का ख़तरा होता है। कारण चाहे कोई भी हो -जैसे गर्भनिरोधक के बारे में जानकारी नहीं होना, गर्भनिरोधक का उपलब्ध ना होना, उपयोग नहीं करना, या यदि सेक्स करने के लिए बाध्य किये गए हो- कुछ भी हो लेकिन परिणाम महिला ही भोगती है। एक ऐसे वातावरण में जब भारत में लड़कियों को बाल- विवाह के लिए मजबूर किया जाता है, बलात्कार और हिंसा की घटनाएँ बहुत अधिक होती हैं, वैवाहिक बलात्कार को मान्यता ही नहीं दी जाती है, गर्भ निरोधकों की उपलब्धता नहीं है या उनकी विफलता की स्तिथी हो सकती है, महिलाओं के पास गर्भावस्था को आगे ना लेकर जाने का विकल्प होना ही चाहिए। नहीं तो उनको शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आर्थिक सभी तरह से बहुत नुकसान पहुँचता है। कई महिलाओं को विवाह के बाद सेक्स के लिए ना कहने का विकल्प नहीं मिलता है। और शायद ही किसी भी महिला को ये विकल्प मिलता है कि वे अपनी पसंद के गर्भ-निरोधक के मसले पर अपनी बात ज़ाहिर करें या इनका इस्तेमाल करनेे को ही कह सकें। ख़ैर ऐसा तब होता है, सिर्फ शुरुआती तौर पर सही, जब कोई ये तो जानता हो कि गर्भ-निरोधक नाम की भी कोई चीज़ है: आख़िर हम वहाँ रहते हैं जहाँ की संस्कृति में सेक्स के बारे में खुले तौर पर चर्चा नहीं होती है और सेक्स की शिक्षा के तो विचार पर ही लोगों के मुँह सूज जाते हैं।
सम्यक, पुणे में स्थित एक ग़ैर सरकारी संगठन है जो गर्भपात पर सूचना और सेवाओं की मांग करने वाली महिलाओं की सहायता के लिए एक टेलीफ़ोन हॉटलाइन चलाता है। (इस लेख/टुकड़े के अंत में संपर्क जानकारी दी गयी है- ए.ओ.आई.)
पिछले कुछ महीनों की उनकी कुछ कॉल्स की कहानियाँ नीचे दी गई हैं:
“क” 17 साल की थी, पुणे शहर में अपनी माँ के साथ एक घरेलू कार्यकर्ता के रूप में काम करती थी। वह 20 वर्ष का लड़का था, जिसने कहा था कि वह उससे शादी करेगा और उस लड़के ने उसे संभोग करने के लिए मजबूर किया। अगले माह उसे महीना नहीं हुआ, लेकिन अपने अनियमित मासिक चक्र के कारण उसने इस पर ध्यान नहीं दिया। आख़िरकार तीन महीने बाद उसने अपनी माँ को बताया और माँ उसे अस्पताल ले गयी। जहाँ उन्हें पता चला कि वह गर्भवती है। उसकी उम्र के कारण, डॉक्टर ने उन्हें बताया कि लड़की पुलिस में गर्भपात की रिपोर्ट करने के लिए बाध्य है। उन्होंने इंकार कर दिया और तब उन्हें मर्जी हॉटलाइन नंबर दिया गया। जब तक वह एक रेफरल अस्पताल तक पहुँचने में कामयाब होते, जो गर्भ गिराने के लिए सहमत हो, वो 18 सप्ताह की गर्भवती हो चुकी थी।
“ख” एक 18 वर्षीय इंजीनियरिंग की छात्रा थी और उसका अपने ही एक सहपाठी् से प्रेम-संबंध था। एक माह धर्म नहीं होने पर उसे पता चला कि वह गर्भवती है। तब उसने कुछ घरेलू उपचार किये। लेकिन जब उसे एहसास हुआ कि वे काम नहीं कर रहे थे तो उसने मर्जी हॉटलाइन को फोन किया । उन्होंने उसे एक स्थानीय अस्पताल भेजा। वह डॉक्टर से चिकित्सा गर्भपात की गोलियाँ हासिल करने में कामयाब रही, लेकिन उसे 9,000/- रुपये का भुगतान करना पड़ा। (जबकि गोलियाँ 500/-रुपये से कम लागत की थीं।)
“सी” 27 साल की है और एक पारिवारिक विवाद के कारण गर्भपात कराना चाहती थी। लेकिन जब तक वह मर्जी हॉटलाइन से संपर्क कर पाती, तब तक उसने 20 हफ्ते की गर्भावस्था पूरी कर ली थी और संदर्भित अस्पताल उसकी मदद करने में असमर्थ था।
इसलिए स्पष्ट रूप से, पूरे देश में कई लड़कियों और महिलाओं को अवांछित गर्भधारण का ख़तरा है और एक सुरक्षित विकल्प की आवश्यकता है जो उन्हें गर्भवती होने पर इस गर्भावस्था को जारी ना रखने में मदद कर सके। कानून कुछ शर्तों के तहत इसकी अनुमति देता है और आदर्श रूप से तो एक औरत के पास इसका अधिकार होना ही चाहिए।
किसी भी तरह से, गर्भपात को लिंग अनुपात से जोड़ना एक ग़लत सवाल पूछना है।
कोई फर्क नहीं पड़ता है कि हम कितना दिखावटी प्रेम बेटी बचाना को देते है, लड़कियों को लड़कों के बराबर नहीं आंका जाता। यहाँ तक कि शहरी, शिक्षित परिवारों में भी, अब भी कुछ लोग शादी करने के बाद अपनी बेटियों के घर का पानी भी नहीं पीते हैं। यहाँ तक कि अगर लड़की काम करती है और शादी के बाद भी कमाई करती है, तो इसकी संभावना बहुत कम है कि उसे उसके कमाए धन का इस्तेमाल करने की आज़ादी होगी और यह संभावना भी नहीं है कि वह अपनी कमाई से अपने बुजुर्ग माता-पिता को सहारा दे सके। जब तक लोगों की नज़रों में लड़कियाँ लड़कों के बराबर नहीं होंगी, लोग उन्हें नहीं चुनेंगे । हमें इसकी रोकथाम के लिए लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
दूसरी ओर, जब तक महिला और पुरुष यौन संबंध बनाएंगे, महिलाओं को गर्भ-निरोधक का उपयोग करके अपनी प्रजनन क्षमता और अपने जीवन को नियंत्रित करने की आवश्यकता रहेगी ही, और गर्भनिरोधक इस्तेमाल नहीं किये जा सकने पर या असफल हो जाने पर एक सुरक्षित गर्भपात के विकल्प की।
जिस कारण से कन्या भूण हत्या होती है, उसी कारण से गर्भवती महिलाओं को गर्भपात करने का अधिकार नहीं दिया जाता है - यह वास्तव में इतनी स्पष्ट बात है, इसलिए हम सभी को बदलना होगा।
सुचित्रा दल्वी एक स्त्री रोग विशेषज्ञा हैं, जो लिंग और अधिकारों के मुद्दों के लिए जुनूनी हैं, खासकर महिलाओं के स्वास्थ्य पर उनके प्रभाव के संदर्भ में।
मर्जी इंडिया हॉटलाइन: +9075764763 (सोमवार से शुक्रवार, सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे)
अब समय है कि हम गर्भपात को ख़राब लिंग अनुपात ( सेक्स रेश्यो) से जोड़कर देखना बन्द करें
यदि गर्भपात और कन्या भूण हत्या के बीच कोई संबंध है तो वह है: दोनों का मुख्य कारण लिंगभेद से जुड़ा है।
लेखन: सुचित्रा दल्वी
चित्रण - देबस्मिता दासगुप्ता
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