हर भारतीय प्रेम कहानी में एक क्लासिक कैरेक्टर होता है। और वो है- परिवार। कभी-कभी यह पूर्ण रूप से खलनायक होता है, कभी-कभी एक हास्य कैरेक्टर, और कभी-कभी भ्रम पैदा करने वाला किरदार। और कभी-कभी पूर्ण रूप से सहयोगी- भाग जा पूजा बेटी, भाग जा।
लेकिन जब प्रेम कहानी खत्म हो जाती है तब इस किरदार का क्या होता है? जब ब्रेक अप हो जाता है? यहाँ मैं ऐसी दो प्रेम कहानियां प्रस्तुत कर रहा हूँ, जिनमें परिवार ने अलग-अलग भूमिकाएं निभाई हैं।
कहानी 1 #
श्रेनिक बोस द्वारा
लोग कहते हैं कि लंबे समय से चल रहे किसी संबंध के समाप्त होने के तुरंत बाद नया रिश्ता बनाना उचित नहीं है। लेकिन सबा कॉलेज की सबसे सुंदर लड़की थी और मैंने कभी नहीं सोचा था कि वो मुझमें दिलचस्पी लेगी। एक दिन, बारिश में वो अपनी बस की प्रतीक्षा कर रही थी। ये देखकर कि उसके पास छतरी नहीं है, मैंने उसे अपनी छतरी पेश की। वो मुस्कुराई और बोली "साथ में खड़े रहते हैं”। और फिर उसने मुझसे बात करना शुरू किया। मुझे एहसास हुआ कि उससे बात करना कितना आसान था। इसके अलावा, उसके घने गोल-गोल कर्ल इतने सेक्सी थे कि क्या बताऊँ! जल्द ही, सबा और मैंने डेटिंग करना शुरू कर दिया।
लेकिन पिछले रिश्ते की वजह से मेरे बहुत सारे ऐसे अनसुलझे मुद्दे थे जो समय समय पर मेरे और सबा के बीच झगड़ों का कारण बन जाते थे। कभी कभी मेरे शब्द बहुत कठोर भी हो जाते थे। एक बार मैंने उसे कह दिया कि "कोई भी तुमसे प्यार नहीं करेगा क्योंकि तुम बहुत जरूरतमंद हो।" लेकिन मैं भी तो था - जरूरतमंद। हम दोनों एक-दूसरे के आदी हो गए थे और एक साथ रहने की तुलना में अलग हो जाना अधिक कष्टदायक लग रहा था। हम अपना सारा समय एक साथ बिताते थे- कॉलेज, शॉपिंग, सैर-सपाटा, सेक्स (एक दोस्त के घर में)- और ये सब हमारे दोस्तों के लिए परेशानी का कारण बन गया था। लेकिन हम एक दूसरे के लिए सीरियस हो रहे थे।
सबा वो लड़की थी जिसकी माँ उसकी सबसे अच्छी सहेली थी और जो अपनी माँ को हर बात बताती थी। हमारे रिश्ते के चार महीने हो चुके थे जब एक दिन कॉलेज कट्टे पर चाय पीते समय उसने कहा, "इस सप्ताहांत (weekend) माँ से मिलने मेरे घर आ जाओ।" मैं चौंक गया। इतनी जल्दी? लेकिन वो अटल थी। उसने भरोसा दिलाया कि उसकी माँ बहुत कूल थी। मैं उम्मीद कर रहा था कि वो सही बोल रही हो, क्योंकि मेरी माँ- जिनको मैं जान पाया हूँ, बहुत रूढ़िवादी है।
घंटा कूल! जिस दिन मैं उसकी माँ से मिला, मैंने अपने आप को बहुत छोटा महसूस किया। सबसे पहले जो चीज़ें उन्होंने मुझसे पूछीं उनमें से एक ये थी कि मैं आखिरी बार सबा को कौन से रेस्टोरेंट में ले गया था। मैंने बताया, "मद्रास कैफ़े"। माटुंगा के इस इडली-डोसा रेस्टोरेंट का नाम सुनकर उन्होंने जो नाक-भौं चढ़ाया, वो मैं कभी नहीं भूल सकता हूँ। जगह के नाम को सुनकर उसे भुलभ नहीं जाऊंगा। उन्होंने मुझे ऐसे देखा जैसे मैं उनकी चमकती हुई एशियन पेंट्स की दीवार पे लगा हुआ कोई गंदा दाग हूँ। वो मुंबई की एक अमीर महिला थी और मैं, कोलकाता के एक दुकानदार का बेटा!
लेकिन फिर भी बड़ों की इज़्ज़त करनी चाहिए, और यही सोचकर मैंने उनके पसंदीदा लेखक के बारे में उनसे चर्चा करने की कोशिश की। लेकिन मुझे केवल समान संकेत ही मिले।
उस दिन के एक सप्ताह बाद, सबा की माँ ने बहुत नाटक शुरू कर दिया। सबा को मेरे साथ फिल्में देखना बहुत पसंद था। एक रविवार को, आंटी ने चक्कर आने का नाटक किया ताकि सबा को घर पर रुकना पड़े। अगले शनिवार, उन्होंने सबा को मेरे साथ एक दोस्त की पार्टी में जाने से रोक दिया। कभी बुखार, तो कभी पीठ दर्द। मुझे गुस्सा आ रहा था लेकिन अपनी प्रेमिका की माँ के खिलाफ मैं क्या बोल सकता था? सबा उनकी एकमात्र संतान थी, जिसने अपने पिता को खो दिया था। वह अपनी माँ से बहुत जुड़ी हुई थी।
लेकिन तीन हफ्तों के इस नौटंकी के बाद, सबा को एहसास हुआ कि कुछ गड़बड़ है। उसने आंटी से अच्छी तरह से बात करने की कोशिश की, लेकिन उनके लगातार ये बड़बड़ाने से कि "वह लड़का तुम्हारे लिए ठीक नहीं है", वो काफी नाराज़ हो गई। और सबा मेरे लिए लड़ पड़ी।
सबा की माँ के खिलाफ लड़ाई हमें और करीब ले आयी। हम मेरी पूर्व प्रेमिका को लेकर कम लड़ने लगे और वास्तव में सभ्य तरीके से डिनर करने लगे। कई हफ्ते गुस्से और झगड़े से दूर रहे। हमारी सांझी दुश्मन, आंटी नंबर वन, हमारे संबंध को निखारने में मदद कर रही थी।
एक दिन जब मैं उसे चूम रहा था, उसने अचानक ही बीच में रुक कर अपनी माँ के बारे में बात करना शुरू कर दिया। कौन सेक्स के बीच में अपनी माँ की बात करता है यार? मुझे इस बात का दुख हुआ कि सबा का दृढ़ संकल्प मेरे प्यार के लिए कम और अपनी माँ से जीतने के लिए ज्यादा था।
उसके दो हफ्ते बाद, सबा की माँ ने मुझे फोन करके कहा कि सबा मुझसे ब्रेकअप करना चाहती है। मैंने उनका विश्वास नहीं किया। मुझे यकीन था कि ये आंटी के नाटकों में से एक और था। मैंने ऑटो लिया और सीधा सबा के घर गया। आंटी गुस्से में थीं और सबा आँसू में। आंटी ने उसका मोबाइल भी छीन लिया था।
लेकिन शायद आंटी को सबा के दर्द का कुछ एहसास हुआ, इसलिए उन्होंने ज्यादा नौटंकी नहीं की और मुझे भी घृणा की नज़र से देखना बंद किया।
हमारे "माँ वाले मुद्दों" को हल करने के एक हफ्ते बाद, सबा और मैंने वापस लड़ाई करना शुरू कर दिया। उसी बस स्टॉप पर जहाँ मैंने पहली बार उससे बात की थी, वहीं काफी बड़ी लड़ाई हुई। अगले दिन, उसने मुझसे कह दिया, "मेरे लिए ये सब अब ठीक नहीं चल रहा है।"
एक तरह से मैं इस स्थिति के लिए तैयार था, फिर भी शॉक लगा। मैंने उससे विनती की, मिन्नतें की, लेकिन उसका चेहरा पत्थर हो गया था। अचानक मुझे लगा कि एक बर्फ की तलवार ने मेरा सीना छलनी कर दिया हो।
हम किसी चीज़ के लिए नहीं लड़े थे। ये सारा समय जो हमने साथ बिताया, सब व्यर्थ था। हमने व्यर्थ ही आँसू बहाए थे। मुझे बहुत रोना आ रहा था। उसी का हाथ पकड़कर, उसके कंधे पर सर रखकर रोते हुए मैं दयनीय सा महसूस कर रहा था। वो भी अजीब तरह से मेरी पीठ थपथपा रही थी। मुझे लगा कि वो चाहती थी कि मैं वहाँ से चल जाऊँ। लड़खड़ाते हुए, मैं उसके घर और उसकी जिंदगी से दूर चला गया। आंटी एक कोने में छुपकर मुझे जाते हुए देख रही थी। एकदम आत्मसंतुष्ट लग रही थी। पहली बार अपनी ज़िंदगी में मैं अपने से बड़े व्यक्ति को थप्पड़ मारना चाहता था।
लेकिन कभी-कभी मुझे लगता है कि सबा भी उसकी माँ की तरह ही थी। उसे जीतना पसंद था, चाहे कीमत जो भी हो। आंटी के विरोध ने हमारे रिश्ते में ग्लू का काम किया था। उसने ही हमको साथ रखा था। और जब ये विरोध खत्म हुआ, तो हम अस्थिर हो गए। उस सारे झगड़ा-झगड़ी में, हम प्यार को भूल ही गए थे।
मैं डिस्पोजेबल महसूस करने लगा था। सिगरेट पीने लगा था, आने आप को अकेला कर लिया था। मैं अपने सभी दोस्तों से, 'माँ-बाप' से ठीक से बात नहीं करता था। ये माता-पिता को बस सब कुछ बर्बाद करने आता था। इस दौरान मैंने बहुत सारे अच्छे दोस्त खो दिए। महीनों तक रोया, काम से छुट्टी ले ली। मैं उन सभी जगहों पर जाना नहीं चाहता था जहां मैं और सब गए थे, लेकिन फिर उन्हीं सब जगहों पे जाता था - मरीन ड्राइव, बांद्रा का किला, मद्रास कैफे। यह एकमात्र तरीका था जिससे मैं फिर से उसके करीब महसूस कर सकता था।
तीन महीनों के बाद, मुझे एहसास हुआ कि मैं बहुत खराब दिख रहा था, कारण नींद का अभाव और ढेर सारे सिगरेट। मुझे ये भी एहसास हुआ कि मैं अपनी माँ को कितना दुख पहुंचा रहा था, जो मुझे ऐसी हालत में डिनर टेबल पर देखकर रो पड़ी। बस उसी दिन मैन अपने आप को सुधारने का निश्चय किया। मैंने खुद को सिगरेट पीना बंद करने की चुनौती दी और करीबी दोस्तों से माफी मांगी। कुछ महीनों के बाद, सब बेहतर होने लगा। मेरे एक दोस्त की दिवाली पार्टी में, उसकी मां ने मेरे कपड़े के बारे में मुझे दो चार सुझाव दे डाले। उसने मुझे घबराकर देखा क्योंकि मम्मी लोग का टॉपिक मेरे लिए ज़रा भावपूर्ण था। लेकिन मैं सिर्फ मुस्कुराया।
यही वह दिन था जिस दिन मैंने अपनी दोनों समस्याओं का समाधान किया। सिगरेट सम्बंधित और उस माँ के हस्तक्षेप वाले भूत से संबंधित। माता-पिता आपको तभी नियंत्रित करते हैं जब आप उन्हें करने देते हैं। लेकिन अंत में तो मेरा दिल तोड़ना सबा का निर्णय था। मैं सिर्फ इतना चाहता था कि वह अपनी माँ का बहाना ना कर मुझे पहले ही छोड़ देती। कम से कम, मैं इस 'मेरे पास एक सुपर फ्रिक (freak) माँ है' के ड्रामे से तो बच जाता।
लेकिन चालो, कोई नहीं।
शरेनिक दिल्ली में रहने वाले एक सॉफ्टवेयर डेवलपर है। वह अपना अधिकांश समय लाइब्रेरी में बिताते हैं।
कहानी # 2
आरती पाटील द्वारा
रोहन और मैं एक ही स्कूल में पढ़े, एक ही कॉलेज गए और हमारे दोस्त भी एक ही गुट के थे। हम दोनों ही थोड़े आर्टिस्ट टाइप, अच्छे दोस्त थे, आप समझ सकते हैं।? हम हमेशा से एक दूसरे के दोस्त भी थे और एक दूसरे को प्यार भी करते थे। जैसे जाने तू या जाने ना में इमरान खान और जेनेलिया डिसूजा। मेरी बहन उसकी दोस्त थी, मेरी नानी, आई और बाबा सब उससे प्यार करते थे। हम एक साथ ही बड़े हुए थे, इसलिए कोई दिक्कत वाली बात ही नहीं थी।
लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात ये थी कि रोहन की माँ मुझसे बहुत प्यार करतीं थीं। रोहन बहुत छोटा था जब उसके पिता चल बसे। आंटी ने उसे अकेले ही पाला। मैंने हमेशा इस चीज़ की प्रशंसा की। हर बार जब मैं रोहन के घर जाती थी, वह हमें चाय- पकोड़े लिए बिना जाने नहीं देतीं थीं। वो मेरी नायिका और मेरी एगोनी आंट (agony aunt) दोनों थीं।। मेरे दोस्त अपने प्रेमी के माता-पिता के साथ इस तरह का रिश्ता कभी नहीं रख पाए, मैं इस मामले में लकी थी।
मुझे याद है (19 साल की उम्र में), जब पहली बार जब मैंने रोहन के साथ यौन संबंध बनाया तो आंटी घर पर नहीं थी। हम अपने जुनून के एहम मोड़ पर थे जब हमें मुख्य द्वार के लॉक क्लिक होने की आवाज़ सुनाई दी। बेवकूफ रोहन ने दरवाजा अंदर से बंद ही नहीं किया था। मैं उसके कमरे में थी, बिना कपड़ों के, जबकि वो तुरंत कपड़े डालकर अपनी माँ से बात करने चला गया। एक मिनट की चुप्पी और फिर मैंने एक धीमी फुसफुसाहट सुनी "तुम लोग सावधानी तो बरत रहे हो ना?" और फिर वो वहाँ से चलीं गईं। कोई इतना कूल कैसे हो सकता है!
2013 में, हमने अपने घरों में शादी की बात करनी शुरू कर दी। ये रोहन का ही आईडिया था। उसने कहा कि हम अपने माता-पिता से इसके बारे में बात करेंगे, सगाई करेंगे और साल भर में शादी कर लेंगे। हम दोनों 26 साल के हो चुके थे। उसने मुझे कभी प्रोपोज़ भी नहीं किया था। लेकिन उसकी यही बात मुझे पसंद थी। प्रतिबद्धता (committment) उसके लिए कोई बड़ी बात नहीं थी, कोई दिखावा नहीं, बस पूरा सहयोग।
सामान्य परिस्थितियों में, लड़का शादी की बात करता है। लेकिन यहाँ मैं आंटी से बात करने वाली थी। मैं उनके घर गई, उनके लिए चाय बनाई और पूछा, "चाची, क्या आप चाहेंगे कि मैं हमेशा आपके साथ रहूँ?" वो उत्साहित हो उठीं। हमारे परिवार तैयारी में लग गए।
मुझे कहँ पता था कि अभी रायता फैलना बांकी था।
मुझे याद है कि रोहन उस समय अपने कैरियर में बहुत अच्छा नहीं कर रहा था और काफी मूडी हो गया था। वह अपने स्नातकोत्तर के लिए आर्ट स्कूल नहीं जा पाया था। उसे नौकरी भी नहीं मिल रही थी। जब भी मैंने रोहन से इस बारे में बात करने की कोशिश की, उसने मुझे रोक दिया। मुझे एहसास हुआ कि वह ईर्ष्याधीन (jealous) था। (मैं आर्ट स्कूल में थी + फ्रीलांस से पैसे भी कमा रही थी). इसलिए मैंने इसपे कभी बात नहीं की।
हमारे डिनर खामोशी में होने लगे। अगर मैं साथ हूँ तो वह हमारे दोस्तों के साथ भी कहीं नहीं जाता था।एक रात मैं उसे खाने पर ले गई, लेकिन पूरे टाइम उसने कुछ भी नहीं कहा। और एक दिन तो आफिस की एक बात लेकर जब मैं रोने लगी तो आप विश्वास नहीं करेंगे - उसने एक शब्द भी नहीं बोला।
मुझे पता था कि कुछ तो गलत था।। एक दिन, उसने मुझे अपने पसंदीदा रेस्तरां में बुलाया और बताया कि वह ब्रेक लेना चाहता था। वह इतना सयाना था कि मुझे उस रेस्तरां में ले गया था जहां मैं सबको जानती थी और कोई तमाशा नहीं कर सकती थी। लेकिन मैं उसकी बात समझ नहीं पाई। आप आजीवन दोस्ती से कैसे "ब्रेक" ले सकते हैं।
मेरी माँ को भूल गए क्या? मैं उनसे हर तीन हफ्ते में एक बार जरुर मिलती थी। एक दिन जब मैं उनसे मिलने गई तो अनुशा को रोहन के साथ मेरे बिस्तर पर साथ बैठे देखा। मैंने 10 साल उस बेड पे कब्ज़ा करके रखा था। अचानक, मुझे वो चुड़ैल जैसी दिखने लगी।मैंने लगभग दोनों को थप्पर लगा ही दिया होता कि तभी आंटी ने मुझे वापस पकड़ लिया। उन्हें वास्तव में मुझे खींच कर शारीरिक रूप से रोकना पड़ा। मुझे उनपर भी गुस्सा आया। मैंने उनसे कहा "आप उसे मेरे बिस्तर पर कैसे बैठने सकते हो ? आपने ऐसा होने कैसे दिया। लेकिन मुझे उनकी आँखें देखकर पता चल गया कि उनके पास कोई विकल्प नहीं था। कुछ भी हो, रोहन उनका बेटा था। मैं कभी उसकी जगह नहीं ले सकती थी। ये भ्रम कि मैं भी रोहन जितनी ही महत्वपूर्ण थी, टूट गया। उस दिन में पूरी तरह से बिखर गई।
छह महीने बाद, अनुशा और रोहन की शादी हो गई। मैंने एक दोस्त से सुना कि शादी के दिन आंटी वास्तव में दुखी थीं। मैंने उनको फोन नहीं किया। हालांकि वो उस दिन भी मेरा हाल चाल जानना चाहतीं थीं। मेरे इस सारे दर्द में कहीं, मुझे अनुशा के लिए भी बुरा लगा। उसके लिए ये मानना आसान नहीं रहा होगा कि आंटी और मैं इतने करीब थे। यदि मैं उसकी जगह पे होती तो मुझे बहुत बुरा लगता- अपने पति की माँ से स्नेह की इच्छा रखना स्वाभाविक है। जहां तक रोहन की बात है, तो मैंने जानने की कोशिश भी नहीं की कि उसने ये सब कैसे संभाला। वह कम से कम इतना परिपक्व था कि ऑन्टी और मेरे रिश्ते में हस्तक्षेप नहीं करता था, उसे पता था कि ये मेरे लिए क्या मायने रखता था।
उनकी शादी के बाद, मैं उनके घर नहीं गई। वहां जाना ठीक नहीं होता। रोहन को खोना एक बात थी, लेकिन मेरी गुरु, नायिका और दूसरी माँ को खोने का दर्द कुछ और ही था। अगर मेरे परिवार ने मुझे पाला-पोसा तो आंटी में मुझे जीना सीखाया। रोहन को शायद एक बेहतर पार्टनर मिला, लेकिन हम दोनों अपने पार्टनर से दूर हो गए।
आरती एक कलाकार है और उन्हें अपने नाम के दोहरे अर्थ को पसंद करतीं हैं।
कहानी घर घर की ? देसी ब्रेकअप, परिवार समेत
हर भारतीय प्रेम कहानी में एक क्लासिक कैरेक्टर होता है। और वो है- परिवार।
चित्रण: देबस्मिता दास
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