पेश हैं! ज़रा हटके! कुछ अजब, कुछ ग़ज़ब, एक अलग तरह के सर्वे के नतीजे ।
पैट सेन और पारोमिता वोहरा द्वारा अनुक्रमित एवं विश्लेषित।
चित्र : मधुवंती और अमेय गुट्टा द्वारा
कुछ दिन पहले अजेंट्स ऑफ इश्क़ के एक ऑनलाइन दोस्त, आनंद कृष्णा मूर्ति, की जिज्ञासा से प्रभावित हो कर हम निकल पड़े भारतीय पुरुषों से पहली बार उनके लिंग बाबत सर्वे करने...लेकिन हमने ऐसा किया क्यों ?
दरअसल! आदमियों के बारे में, सेक्स के बारे में, और उनके इस बाबत नज़रिये के बारे में बहुत कुछ बोला जाता है परंतु कुछ भी विचारा और साझा नहीं किया जाता । तो हमने सोचा कि एक सर्वेक्षण इस बातचीत को शरू करने का आसान और मज़ेदार तरीका होगा।
जिनके पास यह लिंग है,शिश्न है, वो क्या महसूस करते हैं इसके बारे में। वो कौनसी चीज़ें हैं जो उनके अपने अंग से इस रिश्ते को प्रभावित करती है या एक कदम आगे बढ़कर, यूँ कहें, क्या चीज़ें हैं जो प्रभावित करती हैं उनके यौन जीवन को - समाज? संस्कृति ? बचपन? रिश्ते ? या परिवार?
इस सर्वेक्षण का मकसद इस बातचीत को एक ऐसी जगह लेकर जाना था जहाँ बिना किसी को आँख या कुहनी मारे बात की जाये। एक जगह, जहाँ इस बातचीत को मानवीय धरातल मिले और इस अंग की क्षमता, माप और व्यवहार किसी यंत्र या मशीन की तरह स्वयं और दूसरों के आंकलन के लिए ना उपलब्ध हो। बल्कि, बात हो स्वयं का स्वयं के साथ जो रिश्ता है, उस बारे में या यौन के संदर्भ में जो स्वयं का रिश्ता है शरीर के साथ, उस बारे में।
इस सर्वेक्षण को करते समय हमने ध्यान रखा कि,
- हम इसे विस्तृत रखें और बिल्कुल भी लिंग और यौन विकल्पों के संदर्भ में निर्देशात्मक नहीं होने दें। इसलिए हम ने कोशिश की कि सीमित विकल्प ना देकर लोगोंं को जवाब देते समय हर वर्ग में कई विकल्पों को चुनने की छूट दें (मतलब यदि वे चाहे तो एक से ज्यादा लिंग और यौन प्राथमिकताओं को भी स्वयं के लिए चुन सकते हैं)।
- जवाबों में गुणवत्ता को सुनिश्चित करने हेतु लोगों को ज़बरदस्ती उपलब्ध विकल्पों में अपने जवाब फिट करने को बिल्कुल भी नहीं कहा, बल्कि उन्हें एक अलग खाली जगह दी गयी जिसमें वो सहजता से, “ विकल्पों से परे “अपने जवाब लिखकर साझा कर सकते थे।
- हर सवाल का जवाब देना भी आवश्यक नहीं रखा गया।
कुल 1023 लोगों ने इस सर्वे में भाग लिया।
लोगों ने अन्य (एक दिया गया विकल्प) में पोलीसेक्शुअल( एक से अधिक अलग लिंग के लोगों की ओर आकर्षित), बाई क्यूरियस(अलग - अलग लिंग के लोगों के लिए जिज्ञासा-वश आकर्षण), पैनसेक्सुअल ( अन्य लिंग के लोगों के प्रति खुले विचारों-वाले ), हेटेरोफ्लेक्सिबल (इटरलिंग कामी/ स्ट्रैट), समलैंगिक, होमोफ्लेक्सिबल (ज्यादातर समलेंग्गिक परंतु यदाकदा इतर लिंगकामी), ईमानदारी से नहीं पता। कई लोगोंं ने एक से अधिक विकल्पों को भी चुना, जिससे यह भी पता चला कि वे अपनी सेक्सुअलिटी को निश्चित नहीं मानते और अपनी कामुकता को कभी कुछ महसूस करते हैं, कभी कुछ।
हेटेरोसेक्शुअल+होमोसेक्शुअल: 1 होमोसेक्शुअल+बाईसेक्शुअल: 2
हेटेरोसेक्शुअल+ बाईसेक्शुअल:13 हेटेरोसेक्शुअल+बाईसेक्शुअल+असेक्शुअल:1
हेटेरोसेक्शुअल+ असेक्शुयूअल:5 हेटेरोसेक्शुअल+बाईसेक्शुअल:1
अधिकतर लोग का जवाब था कि वे अपने लिंग के साथ बहुत सहज संबंध रखते हैं। कुछ ही लोगों ने एक से अधिक विकल्पों को चुना, जिससे उनके लिंग के साथ उनके रिश्ते को बदलता हुआ महसूस किया जा सकता है। कुछ और जवाब जो मिले- उलझा हुआ, अटपटा , मौन, अतिसंवेदनशील, और कशमकश में।
कई बार- जैसे, रोज़ -80 %
कभी कभार- जैसे महीने में एक बार- 16.5 %
कभी नहीं- और 3.5%
जिन्होंने "कभी नहीं" कहा था, उन में 5 महिलायें थीं।
हमारे देश में यौन के संदर्भ में सांस्कृतिक बदलाव आया है, अब हम इसे सेक्स क्रांति कहे या नहीं , यह विवादनीय हैं। फिर भी, हम यह देख सकते हैं कि एक ऐसी जगह है (अजेंट्स ऑफ इश्क़),जहाँ खुलकर इस विषय पर बात की जा सकती है, अपनी पहचान को बताए बिना। तब भी, कितने ही प्रतिशत लोगोंं ने कहा कि वे कभी कभार ही अपने लिंग को देखते हैं, जिससे यह पता चलता है कि वे अपने शरीर की कामुकता को लेकर कितने असहज हैं!
भारत में आमतौर पर छोटी उम्र में बच्चे यूँही नग्न घूमते हैं -परंतु किशोरावस्था के बाद ,”ग़ैर यौन संबंधित” ऐसे अवसर नहीं बन पाते। जबकि और दूसरे देशों में लड़के एक दूसरे के सामने - विद्यालयों की व्यायामशालाओं, लॉकर रूमो में और आम गुसलखानों में नग्न होते हैं।
जितने भी लोगों ने इस सर्वेक्षण में हिस्सा लिया उन में से केवल 1% लोगों को ही अपने लिंग के आकार या उसके स्वास्थ्य के विषय में कभी बढ़ा-चढ़ाकर बात करने की ज़रूरत महसूस हुई ।
इस सवाल के संदर्भ में कुछ लोगों ने लॉर्ड वोल्डेमॉर्ट और तंत्र का नाम लिया।
वहीं 4 आदमियों को लगता है कि उनके ऊपर किसी प्रकार का, कोई विचार हावी नहीं है, और उनका शिश्न परफेक्ट है।
कुछ चुनिंदा लोगोंं ने बताया की बचपन में पोर्न देखने से उनके विचारों पर काफी असर हुआ, किंतु जैसे-जैसे वे बड़े हुए, संबंधों ने उन्हें कई चीज़ों का ज्ञान कराया और उनके इन विचारों में खूब परिवर्तन आये जिससे अपने लिंग के साथ उनकी सहजता बढ़ती गयी।
"अन्य" के अंतर्गत 4 लोगों ने लिखा कि वे अभी तक कुँवारे हैं, और इस अनुभव से अछूते हैं, लोगोंं को कुछ भी महसूस नहीं हुआ है(12) या उनको इस स्तिथि में बहुत कामुकता का अनुभव हुआ तथा वे अति संवेदनशील हो गए।
इस सवाल पर 59 % लोगों ने बताया कि- उन्हें अपने साथी से हमेशा सकारात्मक और अच्छी प्रतिक्रियायें भावनात्मक कारणों से मिली हैं और केवल 24% का कहना था कि इस तारीफ़ का कारण उनके लिंग का आकार या लंबाई आदि था।
यहाँ गुणवत्तापूर्ण जवाबों को ध्यान से पढ़ने पर यह बात भी पता चली कि, जिन भी लोगोंं ने अपने साथी से अपने लिंग के प्रति सकारात्मक भावना महसूस की, उनके साथी से उनका यौन संबंध बहुत सहज एवं मिलनसार है और उनकी आपसी समझ दो सह प्रेम के खिलाड़ियों सी है। प्रतिक्रियाएँ भावनाओं से पूर्ण, संववादात्मक, मस्ती-भरी और स्नेही हैं।
दूसरी ओर, जितनी भी दृढ़ नकारात्मक प्रतिक्रियाएँ साथियों से मिलीं, वे शारीरिक कारणों से अधिक मिलीं (74%)। केवल 20% लोगोंं को ही ऐसी नकारात्मक प्रतिक्रियायें भावनात्मक कारणों से मिली।
इस सवाल को मिले जवाबों ने हमें बहुत आश्वस्त किया और हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि - शायद जो हमने प्रश्न 4 में पूछा था, यह उसका सकारात्मक पहलू था-कि किशोरावस्था में ऐसे बहुत कम अवसर होते हैं जब किशोरवस्य बालक या लड़के
एक दूसरे को नग्न देख पाते हैं इसलिए ऐसी क्रूरताएँ हमारे समाज में बहुत कम अवसर पाती हैं।
जिनके साथ कभी ऐसा हुआ भी है तो उन में से 40% अब सहज हो गए हैं या समय के साथ और सहज हो रहे हैं। माना, एक समय उनका आत्मविश्वास बहुत हिल गया था पर अब ऐसा नहीं है।
कइयों ने कहा कि वे पहले अपने लिंग से घृणा करने लगे थे परंतु अब धीरे-धीरे वे उससे बहुत स्नेही संबंध रखना सीख रहे हैं या रख रहे हैं।
24% वे लोग जिनके साथ ऐसा हुआ है वे उससे उबर पाना या उससे भूल पाना बहुत मुश्किल पा रहे हैं।
लेकिन सबसे आश्चर्यचकित करनेवाली बात यह थी कि इस सवाल का जवाब 36% लोगोंं ने नहीं दिया। जिससे यह साफ़ पता चलता है कि यह विषय अब भी कितना संवेदनशील है।
इस सवाल में लोगों से पूछा गया कि क्या वे अपने लिंग को किसी नाम से बुलाते हैं?क्या उन्होंने उसे कोई प्यारा सा नाम दिया है या उसे कभी किसी जानवर या निर्जीव वस्तु से जोड़कर देखते हैं??
इन सभी सवालों के जवाब को मिलाकर यह पता चला कि 50%लोगों ने अपने लिंग को कोई भी नाम नहीं दिया है। और 50% जिन लोगों ने नाम दिए भी तो उन में से भी 60% लोगोंं ने आपने लिंग को, लिंग का ही कोई और भाषा -जैसे कि अंग्रेज़ी- में जो नाम हैं वही नाम दिए हैं जैसे - डिक, पिकर, कॉक, आदि।
एक और बात भी गौर करने लायक है कि जब लोगोंं से उनके लिंग के लिए कोई नाम रखने के बारे में पूछा गया तब 82% लोगों ने कहा कि,"मैं ऐसा क्यों करूँगा? नहीं।"
और जिन भी लोगोंं ने जवाब हाँ में दिया था उन्होंने आमतौर पर प्यार से बुलाये जानेवाले किसी नाम को, या खास अपने लिए रखे गए किसी नाम को ही उपयोग करने के बारे में बताया। सर्वेक्षण में शामिल हुए लोगों में से केवल 20% ही अपने लिंग के लिए कोई प्यार-भरा नाम उपयोग करते हैं।
ज्यादातर वे नाम जिससे वे छोटे आकार की चीज़ों या लोगोंं को बुलाते हैं वे इस्तेमाल किये जाते हैं।
कई लोग थल सेना की शब्दावली या वे नाम जिससे उन्हें बुलाया जाता है या जिन नामों से वे बहुत सहज हैं, उनका भी उपयोग करते हैं।
कई लिंग से मेल खाती (आकर में ) चीज़ों के नाम भी देते हैं- जैसे फल, सब्ज़ियाँ, और जानवर।
कुछ ने निर्जीव वस्तुओं के नाम भी दिए हुए हैं।
इस सर्वेक्षण में यह अलग से पूछा गया था कि," क्या वे अपने लिंग को किसी निर्जीव वस्तु के नाम से भी बुलाते हैं", और यह देखने में आया कि शायद आदमियों को अपने लिंग को किसी निर्जीव वस्तु का नाम देने में सहज नहीं लगता हैं।यदि उन्होंने ऐसा किया भी, तो उन्होंने किसी औद्योगिक-यंत्र या औज़ार के नाम दिए।उन में से कई- बहुत आक्रामक हैं,- जैसे जैकहैमर। कइयों ने विचार से परे नाम दिए हैं, जैसे- दूरभाष।
केवल 6% लोग ही ऐसे थे जिन्होंने खुद का बनाया कोई काल्पनिक,मज़ेदार, बेमतलब नाम उसे दिया- या अपने लिंग का नाम किसी जाने -माने व्यक्ति के नाम पर दिया ।
भारतीय पुरुष क्या महसूस करते हैं अपने लिंग बारे में।- भारत के एक असाधारण सर्वेक्षण के नतीजे।
पैट सेन और पारोमिता वोहरा द्वारा अनुक्रमित विश्लेषित
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