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मैं  ये हूँ: वैचित्र (KINK) के दरवाज़े को खोल कर एक युवा ने कैसे खुद को पाया!

A young man who discovers his submissive nature and learns to be himself through BDSM and kink.

  विश्वस्त होने के लिए कि मैं सही ट्रेन पर ही चढ़ रहा था, मैंने अपनी टिकट चेक की। और जब ट्रेन पर चढ़ा तो अपने आप ही मुस्कुरा पड़ा। अपने कुछ करीबी दोस्तों के साथ एक अद्भुत सप्ताहांत- weekend- की यादों के साथ वापस जा रहा था। यहाँ तक ​​कि जब मैं अपने अतीत को याद करता हूँ जब मैं बहुत खुश और आश्वस्त नहीं था, तो भी मेरी ये मुस्कान गायब नहीं होती है। एक समय ऐसा था जब मैं कुछ हद तक ये मानता था कि इस दुनिया में मेरी मौजूदगी एक गलती थी। दुनिया के बारे में कुछ ऐसा था जो बहुत गलत लगता था; मैं सही वजह समझ नहीं पा रहा था, लेकिन यह मेरे दिमाग में एक छिद्र कर गया था, मुझे पागल बना रहा था। पर,  मेरे पास यही एकमात्र दुनिया थी, इसलिए इसमें फिट होने की मैंने पूरी कोशिश की। मैं अपनी जिंदगी जी रहा था, और समाज जो बातें हमें सिखाती हैं उनका अनुकरण कर रहा था, जैसे स्कूल जाना, ट्यूशन करना, भगवान की पूजा करना इत्यादि। मेरी खुद को तलाशने की यात्रा लंबी, निराशाजनक और आखिरकार फायदेमंद रही है। *** मेरी किशोरावस्था में मैंने एक ऐसी दुनिया ढूँढ निकाली जिसमें कोई सीमा नहीं थी, भेदभाव नहीं था और जिसकी यात्रा करने में ज्यादा खर्च भी नहीं हुआ - वो था इंटरनेट। मैंने अपने सभी हार्मोनल दोस्तों से सुना था कि वे पोर्न देखते हैं, और कैसे वह इतना कामुक होता है कि उसके बारे में सोच कर ही वे हस्तमैथुन कर लेते थे। मैं भी इसे आजमाना चाहता था। हालांकि ये मुझे उत्तेजित नहीं कर पाता था, लेकिन फिर भी मैं और कोशिश के लिए तैयार था। मैंने मित्रों और सहपाठियों द्वारा सुझाई गई कई कामुक फिल्में भी देखीं। लेकिन हर बार जब मैंने हस्तमैथुन करने की कोशिश की, असफल रहा। कुछ समय के लिए मुझे ऐसा लगने लगा कि मेरे साथ कुछ गड़बड़ है। लेकिन मैं अभी भी इस उम्मीद में था कि अगर मैं बस ये मान लूँ कि मैं सिर्फ एक सामान्य आदमी हूं, तो शायद सब कुछ ठीक हो जाएगा। मैं अपनी कामुकता को समझने की कोशिश करने लगा था (भले ही मैं इस बात से अनजान, मुझे नहीं पता था कि मैं क्या कर रहा  था) जब मैं 16 साल का था, तो मेरी कक्षा में एक लड़के के साथ मेरी घनिष्ठ मित्रता हुई और अंततः मैं उसके साथ सो गया। यह मेरी जिंदगी का पहला रिश्ता था। अगले 5 वर्षों में जब भी हम एक साथ सोये, मैं कभी भी शीर्ष पर नहीं होना चाहता था। मैं वास्तव में रिश्ते के निचले आधे हिस्से में संतुष्ट था; ना ही सिर्फ शारीरिक , बल्कि हर तरह से एक अधीन पार्टनर। बाद में, मैं ऐसी स्थिति की कल्पना भी करने लगा, लेकिन  एक औरत के साथ, जो मेरे ऊपर रहे और लिंग के साथ मुझसे संभोग करे। सिर्फ इतना सोचने भर से मुझे असीम आनंद मिलता था और मेरी जनेन्द्री जाग कर एकदम तन जाती थीं, जागृत हो उठती थीं। मैं अभी भी हस्तमैथुन की कला नहीं सीख पाया था। उन दिनों मैं बीडीएसएम (BDSM- ऐसी सेक्सुअल प्रक्रिया जिसमें एक पार्टनर गुलाम और दूसरा मालिक होता है) से बिल्कुल अनजान था। जब मैं 18 साल का हुआ, तब मेरी दोस्ती एक लड़की से हुई। मुझे पहली बार ये एहसास हुआ कि एक लड़के और एक लड़की के जीवन में कितना अंतर है। मैं एक लड़की के लिए प्यार और देखभाल की भावनाओं से अनजान और वंचित था। अगर मैं अब उसके लिए अपनी भावनाओं को परिभाषित करने की कोशिश करता हूँ तो ये समझ पाता हूँ कि वो प्यार था, लेकिन उस समय मैं ये मान नहीं पाया था।  मैं सिर्फ इतना जानता था कि जिस दिन वो मेरे साथ रहती थी, मैं बहुत खुश रहता था। कई मायनों में वह मेरे लिए ही बनी थी क्योंकि मैं कल्पना भी नहीं कर पाता था कि मेरा जीवन कैसा होता, अगर मैं उससे नहीं मिला होता। जब हम बात किया करते थे, तो कई बार ऐसा होता था जब उसने मुझे कुछ ऐसा कहने या करने पे मजबूर किया जो मैं वास्तव में नहीं करना चाहता था, या करने का साहस नहीं रखता था। जैसे कि एक बार मुझे एक लड़की पसंद आई थी लेकिन मुझे  उसे ये बताने की हिम्मत नहीं थी। उसने मुझे प्रोत्साहित किया कि मैं उस लड़की से बात करूँ। उसके ऐसा कहने से मुझमें जैसे साहस सा गया और मैंने उस लड़की से बात की। फिर एक बार, जब मैं निराश हो गया था और मुझे मेरी निराशा से खींच निकालने के लिए उसने शर्त रखी कि अगर मैं जल्दी सामान्य नहीं हुआ, वह मेरे साथ सारे संबंध तोड़ देगी फिर से मुझे एक असीम ऊर्जा का अनुभव हुआ था। उसका ऐसे बात करना मुझे भावनात्मक रूप से उत्तेजित करता था और कामोत्तेजित भी। इतना अधिक कि मैंने (उद्देश्यपूर्ण लेकिन गुप्त तरीके से) कोशिश की कि मैं उसके सामने असहाय या शर्मनाक परिस्थितियों में बना रहूँ। उसका मेरे ऊपर हावी होना मुझे उत्तेजित करता था। शायद उसे मेरी भावनाओं के बारे में पता नहीं था। आखिर काफी समय तक मैं भी तो यही मानता था कि मैं उसके लिए एक भाई वाली भावनाएँ रखता हूँ। जब हम थोड़े बड़े हुए, और वह अन्य लोगों में दिलचस्पी लेने लगी, तो मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। लेकिन मैंने कोई सवाल नहीं किया। मैं अपने इस रिश्ते से मिलने वाले (एड्रिनैलिन), जोश दिलाने वाले रस का आदी हो चुका था।   इसी दौरान मुझे पहली बार महसूस हुआ कि मैं अधीन/वश्य  स्वभाव का हूँ। हालांकि ये सरल सी घटना थी , लेकिन मेरे दिल में इसकी एक बहुत खास जगह है। मैं अपने भाई, उसके दोस्त और मित्र की बहन के साथ 'डम्ब शेरदेस' ( जब संकेतों द्वारा, बिना कुछ कहे, अपने टीम मेंबर को किसी पिक्चर के नाम को बूझने में मदद करनी होती है dumb charades) खेल रहा था। मैं और उसकी बहन एक टीम में थे और भाई और उसका दोस्त दूसरी टीम में। खेल में जो पहली फिल्म मुझे मिली वह थी 'जोरू का गुलाम' मैंने गोविंदा की तरह अभिनय करने की कोशिश की, और पहचाने हुए इशारों और भावों के ज़रिए कोशिश की कि मेरी पार्टनर फ़िल्म का नाम बूझ जाए। अपने पार्टनर के साथ पहचाने हुए  इशारे इस्तेमाल करने की भी कोशिश की। अचानक मेरी अंतरात्मा मुझसे कुछ बोल पड़ी। मैंने मेरी पार्टनर से फर्श से उठने और एक कुर्सी पर बैठने के लिए कहा। वह घबरा गई, लेकिन उसने वही किया जो मैंने कहा था। फिर, मैंने अपनी आँखों को बंद किया, सितारों के बारे में सोचा और कल्पना की कि वह मेरी प्रेमिका थी... फिर मैं उसके सामने घुटने टेक कर बैठ गया। दूसरों को संभवतः ये जीतने के लिए किया गया एक गंभीर प्रयास लगा होगा। वे अनुमान भी नहीं लगा सकते थे कि उस समय का मेरा वो उत्कृष्ट अनुभव कैसा था! एड्रिनैलिन, तेज़ धड़कन और मेरी आँखों से बहते खुशी के आँसू, सब यही बोल रहे थे कि- "मैं ऐसा ही बनाया गया हूँ।। मैं जो हूँ बस यही हूँ। और यही होना चाहता हूँ। " ये पंक्तियाँ मेरे सिर से मेरे दिल तक गईं और वहाँ, छप गईं। मुझे नहीं पता कि मुझे ऐसा महसूस क्यों हुआ या यह समझने के लिए इस पल तक क्यों रुकना पड़ा। लेकिन एक बार जब बात समझ में गयी, फिर पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा। मैंने अपनी बारी के बाद एक ब्रेक लिया और बालकनी में गया। मेरा दिल काफी दूर, रात के काले आसमान में जैसे उड़ रहा था। आखिरकार मैंने खुद को पहचान लिया था। ***   एक दिन मैं Literotica.com से रूबरू हुआ, जहाँ लेखक कई श्रेणियों और शैलियों में कामुक कहानियां पोस्ट करते हैं। बी.डी. एस.एम श्रेणी में, मैंने एक लेखक द्वारा लिखित कहानी पर क्लिक किया जो खुद को रीता (नाम बदल दिया गया है) के नाम से प्रस्तुत कर रही थी। यह मेरे जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। रीता की कहानी ने कई नई संभावनाएं खोलीं। कहानी एक ऐसे युगल के बारे में थी जो एक 24/7 के लिए एक अधीन महिला चाहते थे। कहानी इतनी खूबसूरत और सुगम तरीके से लिखी गई थी, कि एक नौसिखिया भी पारस्परिक और अपारिस्परिक बी.डी. एस.एम के रिश्ते के बीच के अंतर को समझ सकता था। मैंने उसकी सारी कहानियों को एक-एक करके पढ़ा। क्या वास्तव में ऐसे लोग होते थे जो आत्मसमर्पण करना चाहते थे? या यह केवल एक उपन्यास तक सीमित रहने वाली कल्पना थी? मैं तो हमेशा सोचता था कि जो लोग अपनी इच्छा के छीने जाने से आनंद अनुभव करते हैं, या जो दूसरों द्वारा दिए गए शारीरिक चोट पसंद करते हैं, वे एक ही जगह मिल सकते हैं और वो है- पागलखाना। मैंने रीता की कहानियों को फिर से पढ़ा और प्रत्येक के नीचे प्रशंसा की एक पंक्ति लिख दी। जल्द ही, उसने मेरी प्रशंसा के लिए धन्यवाद लिखकर जवाब दिया। यह वैचित्र की (KINK) दुनिया की ओर खुलने वाला मेरा सबसे पहला दरवाजा था। पहले हमारी बातचीत पूरी तरह से एक लेखक और प्रशंसक जैसी थी, लेकिन बाद में हम निजी ईमेल का आदान-प्रदान करने लगे। जिस दिन से उस खेल (dumb charades) के दौरान मुझे अपने वश्य  प्रकृति का एहसास हुआ था, तबसे मैं किसी से इसकी चर्चा करने में डर रहा था। दुनिया के दूसरे हिस्से में बैठे एक लेखक के साथ बात करना और अपने सवालों का जवाब ढूंढना सबसे सुरक्षित तरीका लग रहा था। वह अच्छी थी, धैर्ययुक्त और जानकार। बाद में मैंने साहस कर उससे अपने मन के सारे प्रश्न भी पूछ डाले। उसने उत्तर नए प्रश्नों के रूप में दिए। उन नए सवालों ने मुझे सोचने के लिए प्रेरित किया और उसके अपने पति/मास्टर के साथ 24/7 बी.डी.एस.एम जीवन शैली की एक झलक भी दी। बी.डी.एस.एम अब एक गहरे, नीले सागर की तरह लग रहा था। मैं वास्तव में उसके जैसा दोस्त पाकर धन्य था। **** "क्या आप अपने बर्थ पर वापस जा सकते हैं?" मध्यम आयु वाले आदमी ने फिर से मुझे मेरी यादों से बाहर खींचा और बताया कि उसे नींद रही थी। मैं अपने बर्थ पर चढ़कर लेट गया। मैं करवट लेकर लेटा था, फिर अचानक ही सिकुड़ कर पीठ के बल सो गया। वो मीठा दर्द मुझे मेरी जादुई सप्ताहांत की प्यारी याद दिला रहा था। मैं उन दागों को देखने के लिए और इंतजार नहीं कर सकता था। मुझे तब वो समय याद आया जब मुझे इस भावना का पता नहीं था और यह सब मेरे लिये बहुत अजीब था। एक दिन मिस रिटा और मैंने सोचा कि एक ऑनलाइन लैंगिक खेल (DOM-SUB जिसमें एक पार्टनर प्रबल होता है और दूसरा विनम्र)-खेल सत्र- मजेदार हो सकता है। उसने मुझे खेल शुरू करने से पहले  बहुत सारे प्रश्न भेजे - मैं कैसा दिखता था, पावर प्ले से मैं क्या उम्मीद रखता था। मुझे कई शब्द गूगल (Google) करने पड़े- जैसे कि ".टी.के"( Over The Knee- घुटनों पर) और "कोलार्ड" (Collared- पट्टा पहने हुए) फिर उसके प्रश्नों का ईमानदारी से उत्तर दे पाया। चूंकि वह एक लेखिका थी और मैं एक महत्वाकांक्षी लेखक, ये खेल जल्द ही हमें पूरी तरह से एक अलग दुनिया में ले गया जहाँ कोई सीमा नहीं थी और जहाँ हमारे सभी सपने सच हो रहे थे। ऐसे खेल में कुछ चीजें थीं जो मुझे पसंद थीं और कुछ जो नापसंद थीं, लेकिन हर परिदृश्य ने मुझे कुछ नया सिखाया। मैं लगातार कामना करता था कि काश यह दुनिया वास्तविक होती। मिस रीटा ने मुझे एक किंकी (KINKY) सोसिअल नेटवर्क से अवगत कराया। जब मैं उसमें शामिल हुआ तो वहाँ पर उप-पुरुषों (जिन्हें वश्य होने की इच्छा हो) की संख्या में हो रही बढ़ोतरी को देखकर अचंभित था। गिनती से ऊपर की संख्या थी। मुझे साइट के अंदर एक भारतीय समूह मिला और मैंने ये महसूस किया कि यहाँ मुझे लेकर कोई धारणा नहीं बनाई जाएगी और ना ही मुझे अजीब समझा जाएगा। यह महसूस करना मेरे लिए एक ख़ज़ाने से कम नहीं था, जहाँ मैं अपने दिल के भीतर बंद किए गए रहस्यों के बड़े बॉक्स को खोल सकता था, जिसे मैंने तब तक सिर्फ मिस रीटा के साथ ही बाँटा  था। जब मैंने समूह के ऑनलाइन बोर्ड पर चल रही चर्चाओं को अच्छी तरह पढ़ा, तो मुझे एहसास हुआ कि मुझे वास्तविक जीवन में बी.डी.एस.एम के बारे में कुछ भी नहीं पता था। मैं एक मूक लेकिन उत्सुक प्रेक्षक था। जब मैंने पहली बार कई भारतीय शहरों में हो रही बैठकों के बारे में पढ़ा, तो मैं बहुत उत्सुक हुआ। हालांकि उन चर्चाओं में ये नहीं प्रकट किया गया था कि वास्तव में इन बैठकों में होता क्या है। और मुझे अपने शहर में एक भी नहीं मिल सकी थी, इसलिए मैंने डर को हावी हो जाने दिया। मेरी सबसे बड़ी आशंका ये थी कि क्या असली जीवन में इन विचित्रमार्गियों (Kinksters) से मिलना सुरक्षित होगा? एक दिन मैंने एक ऐसे व्यक्ति द्वारा समूह पर एक पोस्ट देखा जो बी.डी.एस.एम दुनिया में एक संरक्षक की तलाश में था। मैंने उसकी खोज के लिए उसे शुभकामना दी। उसने एक निजी संदेश के माध्यम से मुझे धन्यवाद दिया। उसका नाम अशोक था (नाम बदल दिया गया है) मुझे पता चला कि उसने कोलकाता में हुई कुछ बैठकों में भाग लिया था। एक दिन जब मैं काम पर था तब अशोक ने मुझे एक संदेश भेजा कि वह अगले दिन मेरे शहर के पास ही रहा था और अगर मैं चाहूँ तो हम मिल सकते हैं। मैं बहुत घबरा गया। मुझे समझ नहीं रहा था कि क्या मैं एक ऐसे आदमी को, जिसे मैं सिर्फ किंकी वेबसाइट से जानता था, वास्तविक ज़िंदगी में मिलना चाहूँगा (मैं ये भूल रहा था कि मैं भी तो उसके लिए उसी तरह से एक अंजान किंकस्टर था!) फिर मुझे वास्तविक दुनिया में पहली बार एक नए व्यक्ति से मिलने पर दिए गए सुझावों और निर्देशों का एक लिंक मिला। मैंने उसे पढ़ा और सारे निर्देशों का पालन करने का निर्णय लिया। मैंने अशोक को फोन किया तो उसने मुझे एक होटल में आने के लिए कहा। लेकिन मैंने इनकार कर दिया क्योंकि निर्देशों के अनुसार एक नए व्यक्ति से हमेशा सार्वजनिक जगह पर मिलना चाहिए। मैंने अपने होटल के पास के एकओवर ब्रिज’ का सुझाव दिया। हालांकि आज मैं अपने 'सार्वजनिक स्थान' के इस सुझाव पर हँसता हूँ, लेकिन उस समय वास्तव में मैं घबराया हुआ था। अशोक एक शांत और जानकार व्यक्ति था, मीठी ज़ुबान वाला। मैंने उससे कई प्रश्न पूछे और उसे अपने एक आदमी के साथ बने रिश्ते की के बारे में भी बताया, वो बात जो मैंने आज तक किसी को नहीं बताई थी। वह मेरी बातों से विचलित नहीं हुआ,  समझदार इंसान था। उसने मेरे अपने अधीन वश्य  होने की प्रकृति को स्वीकारने की हिम्मत की सराहना की। उसने कहा कि वह किंकी (Kinky) जीवन शैली में नया था लेकिन वो ऐसे कई लोगों को जानता था जो अनुभवी थे। मैंने उससे बैठकों के बारे में पूछा और उसने बताया कि वो बैठक 'नियमित' दोस्तों के समूह के साथ कॉफी के लिए मिलने से अलग नहीं थी। और वास्तव में, अशोक से मुलाकात के एक महीने बाद ही मुझे अपनी पहली सामूहिक बैठक में भाग लेने के लिए कोलकाता जाने का मौका मिला। उन बैठकों में, एक ही टेबल पर अन्य लोगों को देखकर जो किंक (Kink) के बारे में आजादी और उत्साह से ऐसे बात कर रहे थे मानो वो क्रिकेट की चर्चा कर रहें हों, मुझे अचम्भा हुआ। किंकी (Kinky) जीवन शैली के प्रति उनके दृष्टिकोण और उत्साह को देख कर मैं बहुत खुश था। बैठकों में मैंने सीखा कि पुरुष अधीन हो सकते हैं, महिलाएं प्रभावशाली हो सकती हैं, और कुछ दोनों भी हो सकते हैं। किंकी होना कोई बीमारी नहीं है और ही मानसिक अस्थिरता और ही एक अनुचित बचपन का नतीजा। यह केवल कुछ लोगों की अपनी पसंद है और दूसरों के लिए जीवन का एक तरीका, और कुछ के लिए यह उनकी निजी रिश्ते और जिंदगी में मसाला लाने का नया तरीका। मैंने समय-समय पर बात सुनी और अपनी बात भी रखी। जीवन में पहली बार मुझे ऐसा लगा जैसे मैं अपने लिए कुछ कर रहा था। अधिक जानने की इच्छा मुझे समूह में वापस ले आती थी। बाद में, मैं कोलकता में होने वाले बैठकों के आयोजन में सहयोग देने लगा। अपने शहर से कोलकता आना-जाना, और जितना भी मैं कर सकता था। मैंने कुछ अद्भुत दोस्त बनाये और आखिरकार उन लोगों से मिला जो मेरे जैसे थे, मुझे पहचानते थे और मुझसे प्यार करते थे। मुझे उनके सामने कोई ढोंग करने की ज़रूरत नहीं थी। ऐसे लोगों को ढूंढना बहुत मुश्किल रहा था।    *** मुझे याद नहीं कब मैं इस झूलती-झुलाती  ट्रेन में सो गया। आँखें खोलता हूँ और सोचता हूँ। मेरे बीते कल का स्वरूपशायद ही मुझे अब पहचान सके। मैंने ये सीखा है कि प्राकृतिक रूप से वश्य प्रकृति के होने का मतलब यह नहीं है कि मुझे रोज़मर्रा की जिंदगी में भी ऐसा ही होना पड़ेगा। मैं अपने काम में आक्रामक हो सकता हूँ, घर पर सकारात्मक हो सकता हूँ, और अपने दोस्तों के साथ ऊँचे स्वर में बात कर सकता हूँ। मैं एक 'सामान्य जीवन' जीता हूँ। मेरे चारों ओर के अधिकांश लोगों को पता भी नहीं है कि मेरा जीवन असल में कितना असाधारण है! मैं अपनी कहानी को एक पसंदीदा उद्धरण के साथ समाप्त करता हूँ, " बात सिर्फ इतनी उतनी नहीं है कि आप क्या हैं, उससे महत्वपूर्ण यह है कि आप उसे कैसे जीते हैं।" केविन, एक 29 वर्षीय व्यक्ति हैं जो अपनी पहचान विनम्र/वश्य होने से करते हैं। वह 2008 में अपने वश्य प्रकृति के बारे में जागरुक हुए थे और उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह ' किंकी कलेक्टिव' (The KINKY Collective) के सदस्य है जो कि भारतीय समुदाय में किंकी को एक मित्रवत शब्द बनाने के लिए अपने दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं। आयंगबे मन्नन एक चित्रकार हैं। अधिक जानकारी के लिए, उनकी वेबसाइट www.ayangbe.com देखें।
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