हम उसके रूममेट के बिस्तर पर लेटे हुए हैं। चेहरे आमने-सामने किए हुए, उस लम्हे की थकन में चूर। वो लंबी सांस लेकर एक ठंडी आह भरता है। उसकी आंखें उत्तेजना से भारी हैं। मैं भी उसी थकन में डूबी हुई, उसके बदन के भार को ख़ुद पर बढ़ता हुआ महसूस कर रही हूं। मैं हमारे बीच मदहोश खेल में गुज़रे पिछले आधे घंटे के बारे में सोचती हूं।
सात साल हो गए एक-दूसरे को जानते हुए। उनमें से पिछले तीन सालों से मैं उसे डूबकर चाहती रही। पिछले एक साल से वो मेरी ख़्वाहिश में दिन-रात बेचैन रहा। दो महीने पहले हमने पहली बार एक रात साथ गुज़ारी। वो रात अच्छी नहीं गुज़री थी।
मैं तय नहीं कर पा रही थी कि उस वक्त क्या महसूस करूं, सिवाय इसके कि एक सैलाब है जिसपर हम सवार हैं। इस लम्हे का मैंने बहुत लंबा इंतजार किया है।
'इस बार तो हम करेंगे न? विल यू फ़क मी दिस टाइम?' मेरे इस सवाल पर अचानक असहज हो गए अपने माशूक के बदले हुए मिजाज़ को मैं तुरंत पहचान लेती हूं। वो मुझे ध्यान से देखता है, और अफ़सोस भरी मुस्कुराहट के साथ कहता है, 'मालूम नहीं'। मैं हैरान हूं। फिर वो और ज़ोर देकर कहता है, 'नहीं, मुझे नहीं लगता।' 'ये गलत जवाब है', मैं उसके बदन से खुद को अलग कर बैठ जाती हूं। मेरी मुस्कुराहट बनावटी है, चॉक की तरह कमज़ोर।
मैं उसे उन एसएमएस के सिलसिलों की याद दिलाना चाहती हूं जो अलग-अलग शहरों में रहते हुए हम एक-दूसरे को भेजते रहे - हमारी ख़्वाहिशों की गर्मी में सराबोर वो मेसेज। मैं उसे चोरी-छुपे मिलने के हमारे इरादे की गहरी खुशी की फिर से याद दिलाना चाहती हूं। दूर न रह पाने की वो छटपटाहट। “हमें मिलना ही होगा।” “मुझे हर हाल में तुमसे मिलना है।” “उफ़्फ, मुझे बुरी तरह तु चाहिए, बस तु।” ऐसी बेचैनियों की याद दिलाना चाहती हूं। मैं कहना चाहती हूं, "हम दोनों के बीच गुज़रे उस पागल मदहोशलम्हे के बारे में तो सोचो।"
लेकिन मैं कुछ भी नहीं कहती, सिर्फ़ अपने कपड़े पहन लेती हूं। बाकी की बातचीत उबाऊ है, टूटी-फूटी सी। ऐसे घिसे-पिटे लम्हों के टुकड़ों को समेटकर नहीं रखना चाहिए। न याद करना चाहिए, और न किसी को सुनाना चाहिए। लेकिन मैं वही कर रही हूं। उन लम्हों से होकर बार-बार गुज़र रही हूं।
'देखो, हममें से किसी एक को तो ज़िम्मेदार होना होगा।'
'तुम जानती हो, मैं क्या चाहता हूं। लेकिन मैं इस तरह की नज़दीकी के लिए अभी तैयार नहीं हूं।'
'और बाकी जो हमने किया है अब तक, वो क्या था... सिर्फ़ खेल?'
'वो सेक्स-सेक्स नहीं था।'
तो फिर सेक्स-सेक्स किस तरह का होता है, मैं चिल्लाकर पूछना चाहती हूं? तो हम अभी तक कर क्या रहे थे आख़िर? अ-सेक्स, या ग़ैर-सेक्स, या अन-सेक्स? कौन से किस्म का सेक्स किस से बेहतर है, और कौन सा किस से ख़राब? मैं क्या हूं – अच्छी या ख़राब? क्या हूं आख़िर मैं?
'मैं 34 साल का हूं', वो अपनी पथरीली आवाज़ में कहता है। जैसे किसी ने उसके माथे पर पत्थर की लकीर खींच दी हो। 'मैं 34 का हूं और अगली रिलेशनशिप सोच-समझ कर करना चाहता हूं क्योंकि मुझे लॉन्ग-टर्म रिलेशनशिप चाहिए।'
मैं कैसा महसूस कर रही हूं? मुझे नहीं मालूम। बुखार में तपती हुई? थकी हुई? डरी हुई। कुछ-कुछ वैसी ही, जैसा आप कुछ ग़लत या लाज़िमी होने से पहले की चिंता के दौरान महसूस करते हैं।
'तो क्या मैं तुम्हारे एक्सपेरिमेंट् समें से एक थी?' मैं पूछती हूं।
'यूं ही समझ लो।’
ये इतना आसान नहीं हो सका। मैं एकदम हैरान हूं। मुझे कुछ नहीं सूझ रहा। वो प्यार, वो गर्मी, वो आशिक, वो एक-दूसरे को ख़ुश करने की चाहत – सब ख़त्म हो गया है। मैं चीख कर पूछना चाहती हूं कि मेरा क्या? मैं बहुत कुछ कहनाभी चाहती हूं। जैसे कि:
"तुम ये चाहते हो न कि एक अच्छी सी लड़की मिल जाए, एक समझदार प्रैक्टिकल लड़की जो तेज़-तर्रार भी हो, और जिसके बाल सीधे और चमकीले हों। जो 9 से 7 की नौकरी करती हो और जो तुम्हें हर रोज़ जिम जाने के लिए कहती हो। तुम दोनों को एक बेटा होगा। तुम उस बेटे को ट्यूशन पढ़ने भेजोगे। कभी वो खाना बनाएगी, कभी तुम खाना बनाओगे। तुम कभी बहुत ख़ुश तो नहीं रहोगे, लेकिन संतुष्ट ज़रूर रहोगे। कुछ दिनों तक सेक्स ठीक-ठाक रहेगा। वैसे वो तुम्हारे अजीब से रवैये, तुम्हारे भारीपन से... तुम जिस तरह अपने हाथों को उसकी गर्दन और उसके पेट पर ले जाओगे, उसके तरीके से थोड़ी परेशानी महसूस करेगी वो। तुम अक्सर उसके सपने देखोगे। वो तुम्हें कमज़ोर महसूस कराएगी। फिर तुम आंखों के नीचे से होकर उसके चेहरे पर उतरती लकीरों को देख कर खुद से कहोगे, अच्छा हुआ कि मैंने इस लड़की का इंतज़ार किया। मैं सही था। तुम दोनों अपने बेटे को बड़ा होते हुए और फिर एक दिन तुम दोनों को छोड़ कर जाते हुए देखोगे, साथ-साथ। तुम उसकी ख़ातिर टीवी देखोगे। उसको खुश करने के लिए उसके फेवरिट शो रिकॉर्ड भी करोगे। वो तुम्हें प्यार करेगी, लेकिन किसी बेचारगी के बग़ैर। इसका तुम्हें थोड़ा दर्द होगा, थोड़ी तड़प होगी। इक्का-दुक्का छोटे-मोटे अफ़ेयर भी होंगे, ग़ैर-ज़रूरी, लेकिन थोड़ी सी तकलीफ़ देने वाले। जैसे तुम्हारे वजूद से सूईयों और कांटों की तरह होकर गुज़रते हों। जो भी हो, तुम कभी ख़ुद को उससे नफ़रत करने की इजाज़त नहीं दोगे।"
लेकिन मैं इसमें से कुछ भी नहीं कहती। मुमकिन है किये बहुत ज़्यादा हो, सच नहो, या बहुत ज़्यादा सच भी हो। इसको कह देने से हो सकता है कि ऐसा ही कुछ असल ज़िन्दगी में हो भी जाए, लेकिन इस ख़्याल से ही मुझे डर लगता है। उसके लिए एक ऐसे भविष्य की गुंजाईश से डर लगता है जिसमें मैं हूं ही नहीं। एक ऐसादरवाज़ा जिस के बाहर खड़ी हूं मैं। उस दरवाज़े को देख तो सकती हूं, लेकिन भीतर नहीं आ सकती।
दरवाज़े के दोनों ओर मैं और वो – दो पार्ट-टाईम प्रेमी खड़े हैं, एक अंतहीन प्रेम की ख़्वाहिश में एक-दूसरे से उलझते हुए। फिर भीएक-दूसरे से बहुत दूर।
अजीब होता है वो अहसास, जब आपको इस बात का पक्का यकीन होता है कि आपको प्यार हो गया है। अजीब होती है वो स्थिति जब आपको मालूम चलता है कि आपको कोई प्यार नहीं करता।
अजीब है कि सेक्स के इतने सारे मतलब हैं, और कोई उनके बारे में बात नहीं करता।
उसकी सफ़ाई में मैं कुछ भी ख़ास नहीं कहती। कुछ भी नहीं होता। वो दौर भी गुज़र जाता है। मैं उसे दुबारा नहीं देखती।
वो ज़िद करता है कि मैं घर तक के लिए टैक्सी ले लूं। वो टैक्सी के लिए पैसे देने की कोशिश करता है, मैं मना कर देती हूं। वो मेरे गाल पर एक बोसा रख देता है – हड़बड़ी से भरा हुआ, एक भाई की तरह, हमदर्दी वाला बोसा। वो बोसा मेरे कानों में अगले कई दिनों तक गूंजता रहता है, जैसे कह रहा हो, "बस इतनी सी थी बात।"
Alia works at a library by the sea.