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सेक्स की कल्पना, सेक्स की तस्वीर

क्या हम एक लम्हे के लिए ये कल्पना करें कि जो लोग संभोग कर रहे हैं, वे सभी ढेर सारे प्यार और सुकून के साथ कर रहे हैं?

जवानी की दहलीज़ पर कदम रखते ही हम एक अजब सी दुनिया से रूबरू हुए - ऐसी दुनिया जिसमें लड़कों और लड़कियों को एक-दूसरे से बिल्कुल अलग-अलग रखा जाता था। उन्हें घुलने-मिलने की आज़ादी नहीं थी। मुझे याद है कि ऐसे में अपनी बेताब सेक्सुएलिटी की कशमकश साथ लिए हम जैसे कई जवान लड़के फ़िल्में देखने जाते| और फिर बाद में सड़क के किनारे खड़े होकर आती-जाती लड़कियों को ताड़ा करते। अक्सर हम आपस में कमेंट करते कि हर लड़की में क्या अच्छा है और क्या नहीं। अपनी पसंद और इच्छाओं पर हम हमेशा एक-दूसरे की सहमति चाहते थे। एक दिन हम ऐसे ही खड़े थे, कि हमारे ग्रुप के एक लड़के ने किसी लड़की को देखा| शायद वो उसे पसंद नहीं आई। उसने अचानक चिल्ला कर कहा, “दिल चाहता है ऊपर से तेरा चहेरा ढकून और बस तेरी नीचे से लूंगा!” शुक्र है लड़की थोड़ी दूर थी और उसे ये बात सुनाई नहीं दी। लेकिन हम बाकियों को ज़बर्दस्त झटका लगा। उस लड़के की अभिव्यक्ति में इस कदर नफ़रत और हिंसा थी| वो न सिर्फ़ किसी को चोट पहुंचाना चाहता था बल्कि उसका वजूद तक मिटा देना चाहता था। मुझे लगा कि किसी ने मेरे पेट में ज़ोर से मुक्का मारा है। मैं आज तक उस लम्हे को नहीं भूला| इतने सालों बाद, अब मुझे अहसास होता है, कि उस रोज़, मैं पहली बार, चौदह साल के आम लड़कों के दिमाग़ में मौजूद, रेप कल्चर की जड़ों से रूबरू हुआ था। मैं एक विज़ुअल आर्टिस्ट हूँ और पॉर्नोग्राफी और इरॉटिका के बीच के अंतर को समझने में गहरी दिलचस्पी लेता हूँ। हम ये आसानी से मान सकते हैं कि जहां इरॉटिक आर्ट और कलाऊं का आनंद सदियों से दुनिया की अलग-अलग संस्कृतियों में उठाया जाता रहा है, वहीं, पॉर्नोग्राफी का ज़िक्र अक्सर हमारे आधुनिक औद्योगिक-पूंजीवादी संस्कृति के संदर्भ में पाया जाता है। मुमकिन है कि इसका रिश्ता ख़ूबसूरती, इच्छा और सेक्सुएलिटी की तेज़ी से बदलती हुई परिभाषाओं से हो। अब नारी सौंदर्य धर्म, आध्यात्मिकता और कलात्मक अभिव्यक्ति के एक व्यापक सांस्कृतिक संदर्भ से नहीं, बल्कि अरबों-खरबों रुपए की फ़ैशन, ब्यूटी और एन्टरटेनमेंट इंडस्ट्री से परिभाषित होता है। मेरे 14 साल के उस दोस्त की तरह ये इंडस्ट्री भी अपनी व्यावसायिक ज़रूरत के हिसाब से लोगों के शरीर को उघाड़ करे, उस पर सिर्फ़ हिस्सों और विभागों में नज़र डालके उसका इस्तेमाल करने में दिलचस्पी रखती है। मुख्यधारा के लिहाज़ से पोर्नोग्राफी के साथ मुझे निजी तौर पे, दिक्कत ये है कि ये हमारी त्वरित इच्छाओं और जिज्ञासाओं को शांत करने की तीव्र चाहत का सिर्फ़ एक ज़रिया भर होता है। हम पॉर्न प्रोडक्शन से जुड़े उस पहलू को नहीं समझते जहाँ शरीर और इंसान की एक वस्तु, एक प्रॉडक्ट से ज़्यादा कोई अहमियत नहीं होती। शरीर भी फंक्शनल टुकड़ों में बंट जाता है - सेक्स करते गुप्तांगों के क्लोज़-अप, नज़दीक से लिए गए उनके वीडियो या तस्वीरों से पॉर्न की पहचान सिर्फ इसलिए बन गई है क्योंकि पॉर्न सेक्स के बड़े संदर्भ, ज़िन्दगी के बाकी सभी पहलुओं को नज़रअंदाज़ करता है। आख़िर सेक्स शरीर के हर हिस्से से प्यार जताने का ज़रिया भी है और जिस्मों का प्यार, भरोसे और ज़िन्दगी के साथ रिश्ते की अभिव्यक्ति भी है। दूसरी ओर इरॉटिका हमें दूसरी दिशा में ले जाता है। मेरे लिए इरॉटिसिज़्म का मयना सिर्फ शरीर से ही नहीं, शरीर की छहों इंद्रियों और यहां तक कि रूह से भी जुड़ा है। मिसाल के तौर पर, एक अंधेरे कमरे में जला दी गई रौशनी की अंतरंग आंच, कोई ख़ास ख़ुशबू, चाचियों-मौसियों की सुनाईं कहानियां का लहज़ा, पसीने का स्वाद, पानी का रंग, रेडियो पर चलता कोई पुराने गीत की लहर, कोई रेशमी छुअन... हर वो चीज़ जो कुछ ख़ास इशारे करती है, जिसमें कई और तजुर्बे भी घुले-मिले होते हैं, जिसमें कल्पनाएं और कहानियां शुमार होती हैं, कई किस्म के किरदार होते हैं, ख़्वाहिशों से तर-बतर ख़्याल होते हैं। इरॉटिक आर्ट हमारी ख़्वाहिशों के चरमोत्कर्ष और भावुकता के बीच का पुल है। इरॉटिक आर्ट सिर्फ़ इंसान के जिस्मों और सेक्स के ज़रिए जिस्मानी संबंधों की ही अभिव्यक्ति नहीं है। इरॉटिक आर्ट हमारे दौर के व्यावसायिक और औद्योगिक सेक्सुएलिटी के सवालों को भी कड़ी चुनौती देता है। इरॉटिका सदियों से चली आ रही ख़ामोशी की उस संस्कृति पर भी सवाल उठाता है जो हमारे भीतर नफ़रतज़दा ख़्यालों और उन ख़्यालों की हिंसक अभिव्यक्ति को जन्म देते हैं। मेरे लिए मेरी ये तस्वीरें मेरी अपनी ही कल्पनाओं को एक आवाज़ देने का ज़रिया है। मेरे लिए यहीं से बदलाव की शुरुआत होती है। हम कुछ भी रचे, इससे पहले उसकी कल्पना करनी होती है। तो क्या हम एक लम्हे के लिए ये कल्पना करें कि जो लोग संभोग कर रहे हैं, वे सभी ढेर सारे प्यार और सुकून के साथ कर रहे हैं? ठीक वैसे ही जैसे जॉन लेनन और लेनन की तरह कई और दीवाने लोगों ने सोचा था, जिसकी कल्पना की थी… इमॅजिन ऑल थे पीपल / मेकिंग लोवे इन पीस.

When Little Bear and Goldilocks grew upWhen Little Bear and Goldilocks grew up

 

PunjabanPunjaban

 

She came in through the bathroom windowShe came in through the bathroom window

 

Feast of Fire (Chettinad chicken, Khichchdi and Thambo Shingju)Feast of Fire (Chettinad chicken, Khichchdi and Thambo Shingju)

Orijit Sen is an Indian graphic artist, designer and co-founder of People Tree. His works include the graphic novel, River Of Stones, and he has worked with various projects such as the PAO Collective, A Place in Punjab and Mapping Mapusa Market.
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