Agents of Ishq Loading...

A Workshop Named Desire

Is there a starting point to talk about sex? Glimpses from an Agents of Ishq workshop on pleasure, sensory metaphors, memory and the body at SNEHA.

एक वर्कशॉप, जिसका नाम ही ‘काम’ है 

मैं बेंगलुरु से बॉम्बे, एजेंट ऑफ इश्क़ के लिए एक कार्यशाला (workshop) करने जा रही थी। मेरे साथ धारावी में स्थित संस्था स्नेहा (SNEHA) से जुड़े हुए युवा लोग भी थे। उद्देश्य: सेक्स के बारे में बात करते समय हम उन बातों को शेयर कर पाएं जो हम वास्तव में शेयर करना चाहते हैं। 

सेक्स को बंद दरवाज़े से बाहर निकाल कर खुली हवा और सुंदर दुनिया में लाना।  

मैं घबराई हुई थी। 

क्या सेक्स के बारे में बात करने के लिए कोई प्रारंभिक पॉइंट है? 

जिन युवा लोगों की सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि का मुझे बहुत कम ज्ञान है, उनसे सेक्स संबंधी बातों का जिक्र करना, ये बताना कि सेक्स की चर्चा में कौन से विषय लाने चाहिए, मुश्किल था। कार्यशाला की तैयारी के लिए वास्तव में खुद ही युवा बनकर सोचना और समझना पड़ा। 

क्या कोई ऐसा प्रारंभिक पॉइंट है जहाँ से हम सेक्स के बारे में सोचना आरंभ करते हैं? 

मुझे उन चमकदार हरी आंखों की याद गयी जो एजेंट ऑफ इश्क़ का मुख्यालय था - क्या मैंने उन्हें अक्सर ये कहते हुए नहीं सुना कि हम आनंद की बातें बहुत कम किया करते हैं? एक वर्कशॉप की संरचना कैसे करें जिससे कि लोग इन सब के बारे में बात कर सकें - आनंद, कामुक आनंद, वो भी एकदम खुले तरीके से। 

इस हलचल वाली बम्बई के बाज़ार के शोर ने जैसे मुझे जीवंत कर दिया। ये जो दुनिया की अलग अलग आवाज़ें हैं, जो जीवन को वापस सुचारू कर देती हैं, क्या यह कहीं से भी यौन की निरंतरता का हिस्सा हैं? या फिर क्या ये संवेदिक विचार असल यौन संबंध के लिये कुछ ज़्यादा ही नाज़ुक हैं और जहां सचमुच कोई क्रिया होती है, उससे काफी दूर हैं ?  

मैंने आनंद के बारे में सोचा, किसी दूसरे के शरीर में नहीं, बल्कि मेरे अपने शरीर में। मेरे अपने शरीर पर धूप का पड़ना, पानी में चलते हुए हरे पौधों की कोमल गुदगुदी, साबुन के कुछ सुगन्धित टुकड़े जिन्हें चखा जा सकता है। मैंने शब्दों के चिल्गोज़े खोले-, चिड़ फल (pine nuts) निकाले- 'कामुक', 'संवेदी', 'इंद्रियां', 'सेक्स।' 

मुझे एहसास हुआ कि ये वो चीजें हैं जो मुझे प्यार की नदी में गोते लगवाती हैं। मैंने कार्यशाला को कोमल भावों पर केंद्रित करने का फैसला किया: स्पर्श, आनंद, कामुक। 

कार्यशाला की सुबह, मैं रोजमर्रा की जिंदगी से कुछ सामग्री साथ ले गई: बाजार से कुछ सब्जियां, पत्ते, संतरे। मैंने जल्दी पहुँचकर अनाज की दुकान से टूथपाडर और  धारावी के पास वाले फूल बाज़ार से फूल लिये; इस तरह मैंने अपने सारे शस्त्र तैयार किए। 

कार्यशाला का दरवाजा खुला और कुछ मुस्कुरास्ते हुए, अचम्भित युवा पुरुष और महिलाएं अंदर आये। हमारी दो दिन की खुद से खुलकर मिलने और समझने की यात्रा कब खिड़की से गुज़रकर हवा हो गई, पता ही नहीं चला। 

यादों को छेड़ती हुई संरचनाएं 

पहले दिन प्रतिभागियों ने एक दूसरे की आंखों पर पट्टी बांधी, और कार्यशाला की फर्श पर आराम किया। हम, सहजकर्ताओं(facilitators) ने उनके रोजमर्रा में उपयोग की जाने वाली सामग्रियों को कार्यशाला के फर्श पर बिखेर दिया - तेल की बोतलें, नारंगी, अनाज, टूथपाउडर। एक अभ्यास ऐसा था जहां आपको एक सामान उठाना था और आंखों पर पट्टी बांधे हुए ही उसका विवरण देना था, वो भी बिना उसका नाम बताए।

आंखों पर पट्टी बांधे सभी प्रतियोगी इकट्ठा हुए, वस्तुओं को छुआ, सूंघा, चखा। अगर उन्होंने उस वस्तु को पहचान भी लिया (जो कि हमेशा नहीं होता था), तो भी उन्होंने संगति के माध्यम से उसका वर्णन करने की कोशिश की, कुछ इस तरह जैसे कि वे पहली बार उस वस्तु को अनुभव कर रहें हों। 

विवरण पहले आकार और बनावट के रूप में सामने आये, और फिर कभी कभी, बनावट ने किसी याद को भी छेड़ डाला। 

मेरा पसंदीदा तो संतरे का छिलका था। एक युवा व्यक्ति को, आँखें बंद किये हुए, उंगलियाँ उस चिकनी त्वचा, रौंगटे और छिलकों के धागों पर घुमाते हुये, अपनी दादी माँ के हाथों की पकड़ याद आयी। उसे फिर से वो हाथ छूने की इच्छा हुई।  

मिली-जुली खुशबुएँ थीं। किसी चीज़ में एक लड़की के केश की महक, किसी तेल के साथ मिश्रित उसकी अपनी ही गंध। इस याद से एक और बात याद आयी, बचपन में डोरेमोन देखने वाला पल, क्योंकि माँ उस ही समय बहनों के बालों में तेल लगाने बैठ जातीं थीं। और किसी के लिए, बहन के नहाकर निकलने पर आने वाली फूलों की खुशबू। 

संवेदक स्मृतियां एक बहाव में आईं। और क्योंकि ये सब बीती हुई यादें थीं, इसलिए उनके बाहर आने के बाद उन पलों को खो देने का भी तीखा आभास हुआ।   

 क्या दिल टूटने पर कोई आवाज़ होती है? 

जैसे-जैसे हम विभिन्न रूपकों की सहायता से 'रोमांस' की तरफ जा रहे थे, मैंने पूछा कि क्या दिल टूटने की कोई आवाज़ होती है। 

ज्यादातर सब चुप थे, कुछ दृढ़ रूप से सहमत और कुछ अग्रसर रूप से। और फिर यूँ हुआ कि बहुत सारों ने टूटे रिश्तों के रास्ते अपनी पुरानी कामुक यादों को ताजा किया।  

परिदृश्य खुलने शुरू हुए। धूल से भरे बड़े मैदान, उन मैदानों से आगे बढ़ने वाले रास्ते, जहां आप अपने दोस्तों के साथ स्कूल से लौटती लड़कियों के झुंड की राह ताकते थे; रेलवे स्टेशन के बाहर, सार्वजनिक पार्क, दो लोगों से भर गए कमरे, कंप्यूटर टेबल, खाली बिल्डिंग की रेलिंग। कुछ बूंदा-बांदी हुई, कंप्यूटर माउस शरीर से निकलती बिजलियों के साक्षी बने। आपने किसी की आँखों में देखा, उसे छेड़ा, उसके द्वारा छेड़े गए, बहुत हँसे। 

जब लंबी कहानियों का खुलासा शुरू हुआ, वो दुनिया मेरी कल्पनाओं से भी ज्यादा समृद्ध निकली। अधिक अराजक, एक परिचित सी अत्याधुनिकता के साथ, और जहाँ ऐसा दर्द था जो मेरी सोच से अधिक भयानक था। 

सीधे-सीधे ये कहना कि ये "धारावी के बारे में" था, बिल्कुल ही असत्य होगा, शायद लघुकारक भी (reductive) यह वर्कशॉप धारावी में थी और पूरी दुनिया में भी। कार्यशाला के दौरान जो एक वास्तविक बात सीखने को मिली वो ये थी कि हम हर चीज़ को जानने और समझने से बचने के लिए उनके सटीक से नाम रख देते हैं। लेकिन कभी-कभी आंखों पर पट्टी बांधना अच्छा होता है।

जैसे-जैसे यादें बाहर निकली, परिणामस्वरूप असंतोष  की भावना आई। अगर इन यादों के बारे में कुछ किया ही नहीं जा सकता तो हम इतनी गहराई में जा ही क्यों रहे थे? 

जैसे हम एक अभ्यास से दूसरे अभ्यास की तरफ चलते थे, अपने आप को हँसते हुए पाते थे। हम एक साथ कहानियों का सेवन कर रहे थे और, कुछ कथाकारों की भावना के साथ तो दर्दनाक कहानियां भी बाहर आईं।  कुछ लोगों को राहत मिली कि दर्द के अनुभव सबके हिस्से में आये हैं और वो अकेले नहीं हैं। लेकिन कभी-कभी ये सब इतना सुलझा हुआ भी नहीं रहता था - एक पल तो आप हमें अपनी ही किसी कहानी से हँसाते हैं, लेकिन दूसरे पल आप महसूस करते हैं कि आप अभी भी हंसने के लिए तैयार नहीं हैं, वो चीज़ें अभी भी आपको परेशान करतीं हैं। 

कभी-कभी, आनंद का वर्णन कई रंग के धागों में लिपटा हुआ होता था: 

वो आत्मविश्वास जो कि एक "हाँ" के कहने के साथ आता था। 

लिंग (gender) की भूमिकाओं को एक दूसरे की बाहों में आकर, परखना, खोजना - समझना। 

भूमिकाओं की अदल-बदल में, कुछ हमारे भीतर होता स्थानांतरण। 

एक सार्वजनिक स्थान पर 'शालीनता' से परे पागल प्रेम के गर्मजोशी से भरे चुम्बन (किस) की कहानी।

ऐसी आंखें जो माता-पिता की शर्म और पीड़ा को झेलकर भी जगी हुई हैं।  

प्यार से एक शरीर बनाना 

मुझे उत्सुकता है: शरीर को सामग्री के साथ सावधानी से बनाना, शरीर को प्यार करने का एक तरीका हो सकता है, फिर चाहे आप किसी प्रकार के शरीर की इच्छा रखते हों? 

दूसरे दिन, युवा प्रतिभागियों ने दो समूहों में रंगोली पाउडर का उपयोग करते हुए, और हमारे साथ जो कुछ भी सामान पिछले अभ्यास से बचे थे जैसे कि टूथपेडडर, अनाज, फूलों की पंखुडियां, लंच में इस्तेमाल नहीं किये गए प्लास्टिक के चम्मच और मार्कर, ...उन सबसे रंगोली बनाई। एक रंगोली महिला शरीर की थी, और दूसरा पुरुष शरीर का। 

जल्द ही, बाइबिल के सोलोमन के कामुक गीत समान दो शरीर कार्यशाला के फर्श पर थे। लड़की के बाल फूल की कलियों और पंखुड़ी से बने थे, टूथपेस्ट की सफेद आंखें और हरी रंगोली पाउडर की जांघ जो चिकनी फर्श वाली टाइल्स पर सिरहन पैदा कर रही थी। उसके स्तन अनाज से बनाये गए थे, निपल्स क्रिमसन पंखुड़ी से और उसका घेरा उज्ज्वल पीली रंगोली से। एक सफेद कली उसके पेट के निचले भाग पर पड़ी थी, एक आनंद के बिंदु को इंगित करती हुई। 

फर्श पर बने लड़के के ऊपरी धड़ पर फर्श की चमक को अनाज के दानों से बनी चादर से सजा रखा था, मानो आपको उसे छूने के लिए बुलाया जा रहा हो। उसके बाल गेंदे की पंखुड़ी से बने थे और डोले-शोले प्लास्टिक के चम्मचों को साथ जोड़कर। मुझे ये जानने की जिज्ञासा हुई कि सबसे पहले क्या बना होगा? गेंदे का टेस्टिकल्स या डाबर अमला केश तेल की हरी बोतल का लिंग, जो उनके बीच बसा हुआ है, और खड़ा है... 

समूह में लड़के और लड़कियां दोनो थे। दोनों ने बहुत प्यार से शरीर के प्रत्येक विवरण पर काम किया था। समूह प्रतिस्पर्धी थे। लड़के की रंगोली के सिर पर बने एक बुलबुले में एक सुंदर ग्राफिक कल्पना भी दी गई थी, जहां एक नग्न जोड़ा आलिंगन में था। हम सभी आनंद के साथ हँस रहे थे।

इन सब के बावजूद, विवरण में फिर भी एक झिझक थी। लड़की के रंगोली से बने पैरों के बीच का क्षेत्र योनि का था, लेकिन वह बहुत ही मूल रूप से बना रखा था, उसका कोई विवरण नहीं किया गया था। 

क्यों, मैंने पूछा। अन्य विवरण के बारे में क्या? हम शरीर के उस भाग के बारे में क्या जानते हैं, हमें क्या याद है? कुछ लड़कों के चेहरे पर एक सुखद लेकिन झिझक से भरी मुस्कुराहट थी। क्या ये उन्हें देने दखल जैसा लगा। या ये कि ऐसे मौके पर उनका होना भर भी दखल है? कम से कम बाल तो बनाते, मैंने पूछा? शर्मिंदगी की कुछ हँसी सुनाई दी। यह विवरण, लड़की के जघन बाल, किसी तरह से उन्हें उन गुप्त अंगों की भी तुलना में अधिक निजी लग रहे थे। 

चुप रहने वाली लड़कियों में से एक, जो अक्सर एक कहानी कहते-कहते रुक जाया करती थी या दर्शकों की प्रतिक्रिया के आधार पर कहानी बदल देती थी, उठी और अपने एक साथी के साथ बहुत ही चतुराई से पाउडर छींट कर फटाफट बाल बना दिये। हम भगशेफ (clitoris) तक पहुंच नहीं पाए। जैसे सहभागी अनिश्चित महसूस कर रहे थे, मैं भी कर रही थी। 

हम इसे नाम क्या देंगे। और एक नाम की कमी के कारण कार्यशाला के फर्श पर, भगशेफ खोकर रह गया। 

कार्यशाला के माध्यम से कई सवाल पैदा हुए। 

तो सेक्स क्या है? हम इससे स्वयं के लिए क्या कर सकते हैं? क्या यह हमारे जीवन को चमकाता है या हमारे जीवन का केंद्र बिंदु है? इसके विवरण के लिए कौन सी क्रिया है।क्या केवल वही जो सेक्स करने से संबंधित हैं? यौन होने का मतलब क्या है? क्या ये  हम में अराजकता पैदा करता है? अराजकता कब सम्पन्न भाव है और कब एक छोटी बातचीत के लिए भूखा स्वर।  

सिर्फ अलग होने के लिए, असाधारण महसूस करने के लिए, बदनाम होने के लिए, प्रेम में पड़ने के लिए नहीं लेकिन अनुभव, भावनाओं, दोस्ती, पसंद और संशय के लिए भी। या फिर संवेदक भावनाओं का उफान जहां हम अपने सेक्सुअल रूप से रूबरू हो पायें। 

हमने पहले दिन का एक अच्छा हिस्सा नामों को छोड़कर, वस्तुओं को पुनर्प्राप्त करने और उनके साथ हमारे रिश्तों को समझने में बिताया। 

हमने दूसरा दिन वस्तुओं को नाम देने में और उनको अधिक विस्तार और स्पष्टता से देखने में बिताया। 

हमने पहला दिन अपने अनुभवों को संवेदक यादों के माध्यम से गिनते हुए बिताया। 

हमने सौंदर्य और ज्ञान का निर्माण करने के लिए दूसरे दिन अपने हाथों का उपयोग किया और अपनी कहानियां बनाने के लिए उन अनुभवों का इस्तेमाल किया। इनमें से कुछ ऑडियो पॉडकास्ट भी निकले जो आपको एजेंट ऑफ इश्क़ पे सुने जा सकते हैं।    

हंसा थापलियाल, बेंगलुरु में स्थित, एक फ़िल्म निर्माता हैं। ये कहानी कहने वाले सभी तरीकों की पुनः खोज में रुचि रखतीं हैं।   
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