“मैं दावे के साथ यह नहीं कह सकता कि हर औरत अपनी बॉडी में वही खूबसूरती देख पाती है जो उन्हें देख मुझे नज़र आती हैं ।”
मुझे विमन बॉडी हैरान, परेशान और लुभाती है । मेरे भीतर जिगयासा पैदा करती है । मुझे अच्छा लगता है फीमेल बॉडी को अब्ज़र्व करना । अक्सर तो किसी के व्यवहार से ही अट्रॅक्षन होता है – पर उसके व्यवहार के आधार पर नहीं जाऊँ, तो उसकी बॉडी के कर्व्स, आँखों का ठहराव और लंबे बाल में मुझे खूबसूरती दिखाई देती है । मोटी, गोल-मटोल लड़कियों के प्रति कुछ अंजाना सा लगाव अनुभव करता हूँ ।
मेरे लिए यह कहना मुश्किल है कि मैं अपने पेंटिंग्स के थ्रू क्या कहना चाहता हूँ । ज़्यादातर ड्रॉयिंग्स मेरे इमेजिनेशन से या मेमरी से आते हैं और किसी, किसी के लिए मैं नॉर्मली नेट से रेफरेन्स लेता हूँ । कभी ड्रॉयिंग का मूड किया तो बस काम शुरू कर दिया । कभी बहुत सारे दिन बर्बाद कर चुका हूँ, तो ड्रॉयिंग कर लूँ जैसी मूड के साथ भी काम करता हूँ ।
मेरे लाइफ में जो लड़कियाँ हैं, जिन्हें मैं जानता हूँ, वो अपने बॉडी इमेज को लेकर बहुत इनडिपेंडेंट ख़याल रखती हैं । जो ड्रॉयिंग्स के साथ आइडेंटिफाइ कर पाते हैं उन्हें बुरा नहीं लगता बल्कि अच्छा लगता है । कभी-कबार जो नयी पेंटिंग्स हैं, उनके इमेज फ़ेसबुक पे लगता हूँ तो ज़ाहिर है कि वो लड़कियाँ जिनसे मैं बहुत इंप्रेस्ड हूँ वो देखती होंगी, चाहे अनचाहे । पर हो सकता है कि मेरा दायरा बहुत छोटा है । मैं दावे के साथ यह नहीं कह सकता कि हर औरत अपनी बॉडी में वही खूबसूरती देख पाती है जो उन्हें देख मुझे नज़र आती है ।
“मोटी, गोल-मटोल लड़कियों के प्रति कुछ अंजाना सा लगाव अनुभव करता हूँ ।”
मुझे लगता है कि हर इंसान को खूबसूरत चीज़ पहली नज़र में खूबसूरत ही दिखती है । वो उस ब्यूटी से प्रभावित हो जाता है । लेकिन फिर लोगों की जो रिप्रेस्ड मेमरी है, या अनुभव हैं, वो काम करने लगता है…और यहीं से सब गड़बड़ हो जाता है । समाज विमन बॉडी को किसी तिजोरी या कोई गुप्त, छुपा हुआ धन की तरह देखती है और बिहेव करती हैं ... ये इस सोसाइटी की प्राब्लम है जिसके शिकार हम सब हैं, किसी ना किसी रूप में...
अगर वही ना कहूँ जो कहना है, तो शर्म महसूस करता हूँ कि झूठा हो गया, बाकी तो बहुत बेशर्म हूँ...