डॉ. सुचित्रा दलवी, Asia Safe Abortion Partnership/ एशिया सेफ एबॉर्शन पार्टनरशिप की सह-संस्थापक और संयोजिका हैं। विकास के क्षेत्र में, उनकी दो दशकों की मेहनत, जेंडर, अधिकार और सामाजिक न्याय के क्षेत्र में रही है। वो इंडिया की पहली सर्टिफाइड कॉन्शियस अनकपलिंग (सचेत रूप में किसी सोच या इंसान से अलग होना) कोच भी हैं।
ए.ओ.आई के साथ इस एडिटेड इंटरव्यू में, डॉ. डलवी ने अपनी नई किताब 'रोडमैप टू मैनेजिंग डाइवोर्स' - प्रक्रिया की कानूनी, इमोशनल और प्रैक्टिकल बारीकियों की बात की! कॉन्शियस कपलिंग कोच होने का मतलब, और तलाक को केवल एक अंत नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत के अवसर की तरह देखने के बारे में कुछ बातचीत।
तलाक के ऊपर किताब लिखने की प्रेरणा आपको कहां से मिली, इस बारे में कुछ बताएं?
एस.डी: दरअसल मैं खुद तलाक से गुज़र रही थी और इसी जद्दोजहद में लगी थी कि आगे क्या करना है, कहाँ जाना है। और तब मुझे ये समझ आया कि तलाक़ लेने के लिए क्या करना होगा, इन बातों पे हमारे आसपास मदद लेने या जानकारी हासिल करने का कोई जरिया ही नहीं था। लेन-देन को बात कैसे हो? पांच ऐसी कौन सी चीज़ें हैं जो सबसे पहले करनी चाहिए? ऐसी कौन सी चीज़ है जो करनी ही नहीं चाहिए ? अमेरिकी सिस्टम पर तो बहुत सारी जानकारी उपलब्ध है, लेकिन इंडिया के बारे में कुछ भी नहीं। मुझे ये बात थोड़ी अजीब लगी ।
मैं ये सोच रही थी कि अगर मेरे जैसी पढ़ी-लिखी, विशेषाधिकार और जागरूकता वाली औरत इस मामले में खुद को इतना असहाय महसूस कर रही थी, तो उन सब लोगों का क्या, जिनके पास ये सब कुछ नहीं है। खासकर वो औरतें, जिनकी मदद करने वाला कोई नहीं।
तो इस किताब में तलाक के अर्थ को समझने की कोशिश की गयी है- ये एक व्यापक मार्गदर्शिका है जो इस सफर में औरतों का साथ दे सकती है।
मक़सद ये था कि डर को दूर रखा जाए। इस बात पे ज़ोर हो कि ये एक ऐसा सफर है, जिसमें हमारे जैसे कई लोग हैं । कवर का डिज़ाइन भी कुछ ऐसी ही सोच के साथ बनाया गया था, जिसमें गाड़ी चलाने वालीं, खुद की फेयरी- गॉडमदर हैं । मुझे थोड़ी बड़ी उम्र की औरत औरत को भी दिखाना था, क्योंकि वो अक्सर ऐसी किताबों के कवर पर नहीं आती हैं।
और तलाक को एक नार्मल मामले की तरह देखना भी बहुत ज़रूरी है, ताकि हम उसके बारे में बात कर सकें।
हाँ! शादी एक जगज़ाहिर नार्मल चीज़ है। और यहीं पे ये सब हो रहा है । इसी जगह असमानता पे ज़ोर दिया जा रहा है । यहीं, जन्म-जन्म के पवित्र साथ के नाम पर, गाली-गलौच और उत्पीड़न को बढ़ावा मिल रहा है।
इस सफर में तलाक कहाँ आता है? गर्भपात की तरह, तलाक भी किसी गुमनाम गली का हिस्सा है। गर्भपात मातृत्व के किरदार पर दाग लगाने वाली गुमनाम गाली है, और तलाक, शादी पर। कोई इनके बारे में बात नहीं करना चाहता।
ज़ाहिर तौर पर देखा जाए, तो सिलिकॉन वैली में 10 में से 9 बिज़नेस फ़ेल हो जाते हैं। अगर वहां ऐसा हो सकता है, तो आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि 100% शादियां सफल ही होंगी? तो मूल रूप से दो अलग-अलग लोग हैं, जिनकी परवरिश पूरी तरह से अलग-अलग लोगों द्वारा की गई है। उनको स्थायी रूप से 24/7 एक दूसरे के साथ रहना है। आप कैसे सोच सकते हो कि ये हर हमेशा काम कर जाएगा? हम इस शादी को सामान्य प्रक्रिया मानेंगे, लेकिन तलाक को नहीं?
तो हम निजी और पॉलिसी के स्तर पर भी , तलाकशुदा लोगों, खासकर औरतों, को सपोर्ट कैसे दें या उनका लालन-पालन कैसे करें?
अक्सर लोगों को पता नहीं होता कि क्या बोलना चाहिए और क्या नहीं। कब स्पेस देनी है, कब मदद के लिए सामने आना है, कब पीछे हट जाना है, ये सब सावधानी से करना होगा । ताकि उस इंसान को लगे कि आप उनके सपोर्ट में हैं। किसी पे दया करके, उसके लिए एक पार्टी ही दे देना, ये कितने समय बाद करना चाहिए, बंदी को कितना टाईम देना चाहिए?
आप बार-बार उनसे यही कहते तो नहीं रह सकते ना, कि 'नहीं, आपको तो मज़बूत होना पड़ेगा'। क्योंकि कभी-कभी, लोगों के लिए रोना भी ज़रूरी है! मेरी किताब का पहला चैप्टर भी यही कहता है, "रो लो! अगले कुछ हफ्ते रोते हुए ही काटो ! और उसके बाद रोना धोना साइड करो!"
उनको रोने, शोक मनाने,शिकायत करने और दुखी होने का अधिकार है। आपको समझना पड़ेगा कि उनकी स्थिति वाक़ई में काफ़ी खराब है। उनके साथ गलत हुआ है, अन्याय हुआ है। दर्द मिली है, आघात हुआ है। एक रिश्ते की मौत हुई है। आप ये उम्मीद तो नहीं कर सकते हैं ना, कि लोग चुटकी बजाते ही इस सब से बाहर निकल आएं और उस ही पल, मजबूती से लाइफ का सामना करें।
साथ ही, उनको बिना किसी शर्तों के, एक सेफ स्पेस भी देना चाहिए। और हां, उनकी कही कोई भी बात को सर पे उठाकर, उनकी तरफ से हीरो बन लड़ पड़ना या लेन-देन में घुस जाना, बिल्कुल सही नहीं है। उनकी कहानी उनकी मर्ज़ी के बिना बाहर नहीं आनी चहिये, शेयर नहीं करी जानी चाहिए । बस उनके लिए वो एक सेफ स्पेस बन जाओ जहाँ पे बताई हुई उनकी बातें वहीं तक सीमित रहें ।
तलाक से गुज़र रहे लोगों के लिए एक और चीज़ की ज़रूरत होती है, वो है उनकी बात की पुष्टि, यानी उनकी बात पर पूरी तरह से भरोसा दिखाना। जैसे कि अगर ये घरेलू या नज़दीकी पार्टनर की हिंसा का मामला हो, तो कभी-कभी इंसान के लिए सिर्फ इतना सुनना काफी होता है, -"आप मुझे दिख रहें है और आपकी बात भी । मुझे पता है आपको चोट लगी है, आपके साथ अन्याय हुआ है। मुझे आपके दुःख का इल्म है।" ये लोग बस आपका सपोर्ट चाहते हैं, वो ये उम्मीद थोड़े ही कर रहे हैं कि आप सब ठीक कर देंगे।
यहां तक कि मेडिकल पेशे में भी, मेरे पास ऐसी औरतें आई हैं जो शारीरिक हिंसा की शिकार रही हैं। शुक्र है मैंने उनके बारे में लिख तो लिया, प्रमाण के तौर पे, लेकिन उनकी मदद तो तभी कर सकती थी जब वो खुद अपने हालात बदलना चाहें। उनकी। कई बार वो बोलेंगी, "पता है, आपने जिस तरह बिना कोई अवधारणा के, मेरी बात सुनी, उससे मुझे बहुत हल्का फ़ील हुआ। लगा जैसे दिल का बोझ उतर गया। आपने ये नहीं कहा कि- अरे तुमने ही कुछ ऐसा किया होगा जिससे वो नाराज़ हो गया! आप अनुमान नहीं लगा सकतीं कि मुझे कितनी बात ये सन्न पड़ा है । कोई बस ये समझ सके कि मेरे साथ अन्याय हुआ है, मेरे लिए वही बहुत है। पुलिस में शिकायत दर्ज करने, या कोई और रास्ता ढूंढने से भी ज्यादा, इस वक़्त मेरे लिए ये मायने रखता है कि कोई मेरी बात सुने और समझे!"
तो किसी के सामने अगर हम अपना नाज़ुक पहलू ला पा रहे हैं, तो इसका मतलब ये है कि कोई हमको इस चीज़ का अधिकार दे रहा है। तो आपको मैच्योरिटी की उस कगार पर पहुंचना पड़ेगा जहां आपको आपके नाज़ुक पहलू बाहर लाने का खास अधिकार मिले। इस चीज़ पे काम करना भी ज़रूरी है।
जिन बच्चों के माता-पिता तलाकशुदा होते हैं, उन्हें अक्सर ये सुनने को मिलता है- 'तुम एक टूटे हुए घर में बड़े हुए हो, इसलिए प्यार और नज़दीकी को सही से पचा पाना तुम्हारे लिए मुश्किल है।' इस तरह का जो एक पीढ़ीगत दर्द है, ट्रॉमा है, उससे हम ऐसे पार कैसे पाएँगे? एक 'टूटे हुए घर' में पला-बढ़ा बच्चा प्यार करना, नज़दीकि संबंध बनाना कैसे सीख सकता है ?
सच कहूँ तो, बच्चों को ज़्यादा आघात तब पहुंचता है जब वो एक ऐसे घर में रहते हैं जहां हमेशा गाली-गलौच होती रहती है, सब दुखी रहते हैं । एक पैरेंट के साथ शांति से रहना उनके लिए ज्यादा बेहतर है। वैसे भी ऐसा कोई डेटा नहीं है जो ये दावा करता हो कि 'टूटे हुए घर' के बच्चों पर कोई बुरा असर पड़ता है।
अधिकांश बच्चे जब किसी एक पैरेंट के पास रहते हैं, वो सिंगल पैरेंट अक्सर मां ही होती है, ना कि पिता। तलाक के अलावा इसकी कई दूसरी वज़ह भी हो सकती हैं। जैसे कभी पति द्वारा छोड़े जाने पर, कभी विधवा हो जाने पर, तो कभी शादी ही ना होने पर। तो ऐसा नहीं है कि लड़ते-झगड़ते, उत्पीड़न करते हुए माता-पिता की तुलना में, सिंगल माता या पिता द्वारा उठायी जाने वाली ये जिम्मेदारी और बड़ी है।
अगर बच्चों के आस-पास लगातार अपमान, अवहेलना, आत्मसन्देह और मानसिक प्रताड़ना का माहौल रहे, तो उनकी सामाजिक और अपनेपन वाले संबंधों की समझ और क्षमता को नुकसान पहुंचने की संभावना ज़्यादा है, अलगाव और तलाक के माहौल से ज़्यादा। असल में, ऐसी स्थिति में अलग हो जाना ही बच्चे के लिए एक बेहतर मॉडल है। माता या पिता उनको इतना तो कह सकते हैं कि , “देखो! हम अब इस प्रताड़ना को और बर्दाश्त नहीं कर सकते ," या "हमारे बीच बस दूरियाँ बड़ती जा रही थीं और ये नौबत का गयी ।"
एक टूटे हुए रिश्ते में रहना, सिर्फ इसलिए कि आपका बच्चा है, ये कोई समझदारी नहीं है। उससे बेहतर है कि ऐसी स्थिति में अलग होने को नार्मल माना जाए। कई स्टडी बताती हैं कि अगर कोई बच्चा माता-पिता के झगड़ों और एक उत्पीड़न के माहौल के बीच पला है, तो या तो वो बड़ा होकर खुद भी ऐसे दुर्व्यवहार करेगा, किसी का उत्पीड़न करेगा या अपनी ओर ऐसे बर्ताव करने वाले लोगों को आकर्षित करेगा। क्योंकि ये बच्चे अपने माता-पिता में से किसी एक के आधार पे अपने को रचते हैं ।
आपके हिसाब से ऐसा क्यों होता है?
मेरी किताब में, मैंने लगाव के बारे में बात की है। अगर आप खुद के लगाव का पैटर्न नहीं समझ पाते हैं, तो अंत में आप किसी पेचीदा से रिश्ते में ही फंस कर रह जाते हैं। मैंने ये उम्मीद तो नहीं की थी, लेकिन जितना मैंने तलाक के बारे में लिख, उतना ही ये तथ्य सामने आया कि - 'आप तलाक इसलिए ले रहे हैं क्योंकि ये रिश्ता सही नहीं चल रहा है। आपको ये समझना है कि इस रिश्ते में क्या है जो सही नहीं है, आपको वो पैटर्न समझना है, ताकि आप अगली बार बेहतर कर सको।'
और जरूरी नहीं कि आप अगली बार किसी और को ही पार्टनर बनाएं। आप खुद के भी पार्टनर बन सकते हैं, पर ये करने के लिए भी, आपको ये समझना होगा कि आपकी लगन कैसे लगती है, आप के लगाव के क्या तौर -तरीक़े और पैटर्न हैं । तो मैंने तो रिश्तों और उनके मसलों के आगे-पीछे घूमकर, अपने खुद के साथ अपना रिश्ता बेहतर किया है। और शायद सबसे जरूरी रिश्ता भी तो वही है- जो हमारा खुद के साथ होता है!
हमने कॉन्शियस अनकपलिंग (सोच समझ के अलग होने) के बारे में काफी कुछ पढ़ा और बोला है। लेकिन ज्यादातर ये पश्चिमी कॉन्सेट के आधार पर ही हुआ है, जैसे कि अभिनेत्री ग्वेनेथ पाल्ट्रो के संदर्भ में ! इंडिया में कॉन्शियस अनकपलिंग कोच बनने का मतलब क्या है? और 'नार्मल तलाक' से ये कैसे अलग होगा?
कॉन्शियस अनकपलिंग दरअसल इमोशनल आज़ादी और रिहाई पाने के बारे में है। किसी भी तरफ से देखा जाए तो तलाक एक तरह की मौत ही तो है- एक रिश्ते की मौत, एक इंसान के साथ देखे गए भविष्य की मौत। लेकिन तलाक से गुजर रहे लोगों को रोने या शोक मनाने की ज़रूरत है, ऐसा कोई नहीं समझता है। कोई नहीं मानता कि उनको भी दु:ख के पांच लेवल- यानी गुस्सा, इनकार, सौदेबाजी, डिप्रेशन और हालात से समझौते करने के इस जद्दोजहत से गुज़रने की ज़रूरत है।
मुझे कैथरीन वुडवर्ड थॉमस के बारे में पता चला, जो 'कॉन्शियस अनकपलिंग' नाम की बेस्ट-सेलर किताब की राइटर हैं। उनकी इस किताब के आधार पर ही ये यूनिवर्सल प्रोग्राम तैयार किया गया है। उस वक़्त जब मैं क़रीबी रिश्ते में, लेन देन और अलग होने को समझने की कोशिश में जुटी हुई थी, मुझे पता चला कि वो लोगों को डिवोर्स कोच, या यूं कहो कि कॉन्शियस अनकपलिंग कोच बनने की ट्रेनिंग दे रहे थे। मैंने भी उस प्रोग्राम में एडमिशन ले लिया, क्योंकि मैं सचमुच लोगों तक पहुंचना चाहती थी। देखा जाए तो तलाक में, कानूनी या पैसे सम्बंधी पहलुओं के अलावा, रिश्तों के बहुत सारे इमोशनल मुद्दे भी होते हैं। खासकर औरतों के लिए, क्योंकि वो पहले से ही कई दमनकारी रूप रेखाओं के बीच काम कर रही होती हैं।
जब कोई, खासकर की औरतें, तलाक से गुजर रही होती हैं, तो वो परेशान सी- कई और लड़ाईयां लड़ रही होती हैं। वो खुद से सवाल करती हैं, "क्या मैं आर्थिक रूप से सेफ या व्यवस्थित हूँ? क्या मेरे पति कभी मुझे मारने की कोशिश करेंगे? क्या मेरे बच्चे मेरे साथ रहे पाएंगे, या कि मेरे पति के साथ? और अगर पति किसी और से शादी कर लेगा तो फिर मेरे बच्चों को कौन पालेगा? जब मैंने पूरी लाइफ एक शादीशुदा औरत की तरह निकाल दी, तो अब मेरी पहचान क्या है? ऊपर से मेरे माता-पिता भी मेरा साथ नहीं दे रहे हैं। उल्टा कह रहे हैं, "एडजस्ट कर लो, वगैरह।" तो इन सब के बीच में, आप खुद को कैसे ढूंढ पाओगे? इन रिश्तों की पहचान से निज़ाद कैसे पाओगे। अपनी अलग पहचान कैसे बनाओगे?
ऐसे हालातों में और भी ज़रूरी है कि आप अलग होते वक़्त सचेत रहें। इस प्रोग्राम की जो सबसे ज़बर्दश्त बात है, वो ये कि आप सचेत रूप से किसी से भी अलग हो सकते हैं। फिर चाहे वो आपके टॉक्सिक माता-पिता हो, या एक नाचती हुई पिशाचिनी की तरह आपकी बहन। या ऑफिस का सहकर्मी जो आपको गैसलाइट (चालू बातों से, हमारा ख़ुद पे से विश्वास कम करना ) कर रहा हो। तो हाँ, ये तकनीक सचमुच आपके बारे में है।
ये किसी कपल काउंसलिंग जैसा नहीं है। यहां अगर दूसरे इंसान का इस सबसे कोई लेना-देना नहीं भी हो, तब भी आप सचेत रूप से उस टॉक्सिक रिश्ते से अलग हो सकते हैं। और अपनी खुद की इमोशनल आज़ादी भी पा सकते हैं। कॉन्शियस अनकपलिंग का एक दूसरा बहुत ही अहम रोल ये है कि ये आपको अपने खुद के पिछले नकारात्मक पैटर्न से भी अलग होने में मदद करता है।
जब आप पैदा होते हैं, तभी से आप पर एक पहचान थोप दी जाती है। आपका नाम, आपकी जाति, आपका धर्म। और अगर आप औरत हैं, फिर तो आपके पास कई दूसरी कंडीशनिंग भी हैं - "इस तरह बैठो, इस तरह बात करो, ऐसा व्यवहार करो, शादी तुम्हारी लाइफ का सबसे अच्छा दिन है, मां बनना तुम्हारी सबसे महान उपलब्धि है, और ना जाने क्या-क्या।"
और फिर अचानक एक दिन आप ऐसी जगह पहुंच जाते हो जहां आपने वो सब कुछ किया होता है, जो आपको बताया गया था, लेकिन फिर भी शायद आपके नाम पे एक पैसा नहीं है। आपके ऊपर मौत का साया मंडरा रहा है और आपके बच्चे भी आपसे दूर किए जा रहे हैं।
कॉन्शियस अनकपलिंग/ सचेत होके अलग होना आपको ये पता लगाने में मदद करती है कि आपकी कंडीशनिंग (माहौल या परिवेश) ने ही आपको कुछ ऐसे चॉइस करने को मज़बूर किया जो शायद आज आपको गलत लगें। उस वक़्त आपको लगा कि आप सही कर रहे हो। इसी तरह तो आप सीखते हो ना कि आगे जाकर कैसे कुछ चॉइस बदल लेने से आपकी जिंदगी का पहिया भी कुछ अलग दिशा में जायेगा।
कैथरीन ने अपने काम के माध्यम से कहा है, 'अपने अतीत से पहचान बना के रखें। हम अतीत को नकारना या उसे दबाना नहीं चाहते हैं। लेकिन हाँ, आपने तब कुछ ऐसे फैसले लिए जो उस वक़्त आपको सबसे सही लगे।"
खुद को दोष देने की बज़ाय माफ करो। आपने जो किया वो उस वक़्त की आपकी जो समझ थी, उस हिसाब से किया। आज आप चीज़ें बेहतर समझते हो। आपकी सोच बदली है, आप रिश्तों में पावर और अधिकार के अंतर को देख पाते हो। टॉक्सिक रिश्तों पर मंडराते लाल झंडे पहचान पाते हो। धीरे-धीरे, लेन-देन की बेहतर बातचीत करना भी सीख जाते हो।
सचेत होके अलग होना, अपने खुद के विस्तार के बारे में है। हमें खुद अपनी पिछली सौदेबाज़ी, योग्यता, क्षमताएं, कंडीशनिंग... सबसे कैसे अलग होना है। यही तो असल की रिहाई है।
काम आठ हफ़्तों में बाँटा गया है। इसमें बहुत लगन, मेहतन, कसरत लगती है। ये कोई एक रात का काम नहीं है।
तो ये करने के लिए कितने क़दम लेने पड़ते हैं ?
इसमें सात कदम होते है। लेकिन हर कदम को पार करने में समय लगता है क्यूंकि हर एक में काफ़ी पढ़ना पड़ता है , कुछ एक्सर्सायज़ पूरी करनी होती हैं , और खुद पे काफ़ी काम करना होता है। सचेत हो के अलग होना/कॉन्शियस अनकपलिंग, कोई थेरेपी या काउंसेलिंग नहीं है , यह कोचिंग है, इसको सीखना पड़ता । और इसको कोचिंग इसलिए बोला जाता है, क्यूँकि आपके पास कोई इंसान परेशानी से जूझने की अपनी क़ाबिलियत लेके आता है और आप उसको परेशानी का बेहतर सामना कर पाने , विस्तृत रूप से कर पाने की ट्रेनिंग देते हैं । औसतन 8 -10 हफ्ते लगते हैं, उस जगह पहुंचने के लिए और मैं ऐसे कई लोगो को जानती हूँ जिन्होंने यह किया है। और फिर कुछ महीनों बाद वो वापिस भी आये, क्यूंकि अब वो और गहराई में जाना चाहते थे।
क्या आप प्यार और नज़दीकियों के सन्दर्भ में सचेत हो के अलग होने के बारे में कुछ बता बता सकतीं है ?
कैथरीन अपनी किताब में कहती हैं ' प्यार बेशक बिना किसी शर्त के किया जाता है। यह सही है कि सच्चे प्यार में कोई शर्त नहीं होती। लेकिन रिश्तों में अभी भी शर्त होती है। क्यूंकि मैं तुमसे प्यार करती हूँ, इसका मतलब यह कतई नहीं कि तुम मुझे प्रताड़ित कर सकते हो और मैं करने दूँगी। एक दूसरे के लिए इज़्ज़त होनी चाहिए , और बराबरी का लेन-देन का रिश्ता होना चाहिए। तुमसे प्यार करती हूँ लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं सब चीज़ें बर्दाश्त करूंगी।' इस बात में बहुत दम है।
एक चीज़ और जो मैंने सीखी, वो यह है कि किसी को माफ़ करने का यह मतलब नहीं है कि आप उससे फिर से सम्बन्ध बना लें। आप किसी को यह कह के माफ़ कर सकतें हैं कि "तुम्हे नहीं पता कि तुम क्या कर रहे हो , तुम अभी जज़्बाती तौर परिपक्व नहीं हो , और न ही खुद का विकास कर पाए हो। तो तुमने अतीत में मेरे साथ जो भी किया, उसके लिए मैं तुम्हे माफ़ करती हूँ, ठीक उसी तरह, जैसे मैं खुद को अतीत में गलत चुनाव के लिए माफ़ करती हूँ। लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि जो तुमने किया वो सही था और मैं तुम्हे फिर से वैसा करने दूँगी" ।
डिवोर्स के कई पहलू होते हैं , लेकिन अगर कोई अपनी शादी से दूर हटना चाहता है, और आप उनको कुछ सलाह दे रहे हो , तो वो क्या सलाह होगी ?
कुछ सवाल जो खुद से पूछने हैं वो यूँ हैं ' क्या यह रिश्ता ठीक उसी तरह से मुझे संतुष्ट कर रहा है जिस तरह से मैंने कल्पना की थी, या आगे कर सकती हूँ ? ? क्या मैं भ्रम में जी रही हूँ और खुद को प्रताड़ित होने दे रही हूँ ?
तो मेरी सलाह यह होगी कि पहले खुद को जानो। खुद की तलाश करो। ये समझो कि आप अपनी कौन सी पहचान के साथ, आगे बढ़ना चाहेंगे ? अपने लिए कौन सी चॉस बना रहे हैं, जो कि बहुत ही जायज़ है ?
जो औरतें प्रताड़ना और हिंसा भरे रिश्तों में रहती हैं , वो यह सोच के रुक जाती हैं, कि उस परस्तिथि को छोड़ने का अंजाम क्या होगा। हमें ऐसी व्यवस्था बनानी पड़ेगी जिसमें हम उनको ऐसे रिश्तें छोड़ने के लिए सशक्त कर सकें। लेकिन शुरुआत के लिए , सवाल यह नहीं है कि ' मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है ' बल्कि ' मैं आगे इसका क्या करूँ' ।
और याद रहे , हर किसी के पास बस ऐसे छोड़ के चले जाने की सुविधा और क्षमता नहीं होती। लेकिन छोटे छोटे बदलाव मायने रखते हैं। तो अगर आपका सबसे बड़ा डर पैसे की चिंता है, तो अपना खुद का बैंक का खाता खोलने का तरीक़ा खोजिये। अपना पैसा अलग रखिये, ताकि छोड़ते समय पैसों की व्यवस्था हो । अगर आप खुद ये सुरक्षित रूप से नहीं कर सकतीं , तो अपने किसी दोस्त को बोलिये, आपके लिए खाता खोलने के लिए । ऐसा खाता जहाँ आप हर महीने पैसा रख सकें। ऐसे लोगो से बात करिये जिनके बारे में आपको भरोसा है कि वो आपका साथ देंगे।
अगर छोटे बच्चे शामिल हैं , तो हमेशा दिक्कत रहती है। इसका कोई सीधा जवाब नहीं है। लेकिन खुद को जानो और किसी तरह से, पैसों को ले के, अपने को सुरक्षित बनाओ। मैंने देखा है कि कामकाजी औरतें अच्छा ख़ासा पैसा कमाने के बावजूद भी घर के पैसों और खर्चों का हिसाब नहीं रखतीं। यह पहलू हमेशा मर्दों पे छोड़ दिया जाता है। तो ऐसा ना करो, पैसे को लेकर बातों को समझने की कोशिश करो।
क्या कोई ऐसा क़ानून है जिसके बारे में पता होना चाहिए ?
सुप्रीम कोर्ट का बयान है कि छोड़ी गयी आश्रित औरत का ऐलीमोनी के तौर पे अपने पति की कुल आमदनी का 25 प्रतिशत हिस्से पे अधिकार है। अगर पत्नी पढ़ी -लिखी है और कमाने लायक है, तो यह हिस्सा और भी कम हो सकता है। यह बात तो एकदम साफ़ है कि औरत जो घर में बिना पैसों के काम करती है, उसकी कोई कीमत नहीं लगाई जा रही है। तो इस बात का सामना करना पड़ेगा, क्यूँकि फ़िलहाल ऐसा ही हो रहा है ।
औरतों को मैं कहूँगी कि सोशियल मीडिया पे कुछ भी पोस्ट या शेयर करने से पहले सोचें और सचेत रहे। क्यूँकि अगर पति चाहे तो कुछ भी, कैसे भी कर के, ऐलीमोनी कम या एकदम मना करवा सकता है। उसका वकील कोई भी ऐसे ही फोटो को उठा के गलत इस्तेमाल कर सकता है, उसको ले के बात का बतंगड़ बना सकता है , ख़ास तौर पे जब तलाक आपसी सलाह के बाद नहीं, बल्कि ज़बरदस्ती लड़ के लिया गया हो।
और महत्वपूर्ण बात यह है कि प्री-नपशयाल एग्रीमेंट ( शादी से पहले, पति-पत्नी द्वारा बनाया गया एग्रीमेंट, जिसमें लिखा गया हो कि अगर तलाक हुआ, तो प्रॉपर्टी और पैसा कैसे बाँटा जाएगा ) इंडिया में मान्य नहीं है। मुझे लगता है इसका शादी को लेके क़ानून सुधारने के आंदोलन के लिए ये एक बड़ा मुद्दा है ।
और क्या सुधार लाना चाहेंगी आप शादी के इस क़ानून में ? और क्या कदम लेने की ज़रुरत है ?
पहले तो प्री-नपशयाल एग्रीमेंट पे ज़ोर देना चाहिए और इसको वैध बनाना चाहिए। जो कि थोड़ा जटिल है क्यूंकि हमारे यहाँकई शादियों का आधार धर्म, समाज और संस्कृति के सन्दर्भ में होता है ।
और फिर यह अपनी जात के बाहर शादी करने/न करने की जो बात होती है वो तो पूरी तरह से ख़तम हो जानी चाहिए। इस देश के नागरिक होने के तौर पे, हम सब बराबर है। और जब हमको अपना धर्म चुनने का अधिकार है तो जिस धर्म में हम पैदा हुए हैं, उस धर्म से बाहर शादी करने का अधिकार क्यों नहीं है ?’
तीसरी चीज़, पैसों को ले के, बराबरी की कुछ समझ होनी चाहिये। अगर कोई ऐसी सम्पति है, जो दोनों की है, तो फिर यह सिर्फ ' हस्बैंड की सैलरी ' वाला मामला नहीं है। एक एक पार्टनर की, घर के बाहर कमाने की क्षमता है, जबकि दूसरा, घर में रह के, बिना पैसों के बहुत सारी देखभाल और सेवा कर रहा है। तो इस चीज़ को पैसों में नापने का कोई तरीका होना चाहिए।
अपनी हिंसक शादी को छोड़ने की चाह रखने वाली औरतों के लिए हमें और ज़्यादा हेल्पलाइन और सपोर्ट सेंटर की ज़रुरत है। जब मैं अपना रिसर्च कर रही थी, तो ऐसे चार या पांच हेल्पलाइन ही मेरी नज़र में आए। और उनसे भी कोई जवाब मिलने या कोई मदद मिलने की ख़ास उम्मीद नहीं थी।
जब तक समाज में औरतों के लिए सुरक्षित होम्ज़/घर या सपोर्ट सेंटर नहीं हैं, तब तक औरतों के पास अक्सर कोई ठिकाना नहीं होता।
पुलिस स्टेशन में और संसाधनों की ज़रुरत है। ज़रूरी नहीं है कि महिला अफसर ही हो। जो भी हों, समझदार ऑफिसर्स होने चाहिए, जो FIR ढंग दर्ज करें, और यह न बोलें कि ' आपके घर का मामला है, देख लो ' ।
हमें घरेलु हिंसा और दहेज़ को ले के हो रहीं मौतों पे ध्यान देने की ज़रुरत है। यह सारे मुद्दे आपस में जुड़े हुए हैं। शादी बस इस पूरी उलझी हुई पहेली के एक टुकड़े पे लगा हुआ लेबल है । आप किसी लड़की की इतनी छोटी उम्र में शादी क्यों कर रहे हैं, ऐसी उम्र में जब उसके पास कोई पढाई लिखाई और अपने रोज़गार की क्षमता नहीं है, ताकि वो अपने हक़ के लिए बात चीत कर पाए ? और ऊपर से, आप उसको उस शादी से, इज़्ज़त और पैसे की आज़ादी और किसी सहायता के साथ, निकलने भी नहीं देते।
हमें तलाक शुदा माँ -बाप के बच्चों के लिए भी काउंसलिंग सेंटर चाहिए।
मेरे ख्याल से इस चीज़ को कई दृष्टिकोणों से देखने की ज़रुरत है। और एक बात। हिन्दू मैरिज एक्ट में एक खंड है जो की, काफी परेशान करने वाला है। इसके हिसाब से औरत को अपनी पति से समझौता करने या भुगतान ( संपत्ति या पैसो को ले कर ) पाने के लिए ' पवित्र ' रहना पड़ेगा। उस भाषा को बदलने की ज़रुरत है।
और फिर दूसरी शादी को ले के बातें है। उदारहण के लिए, विरासत में मिली सम्पति का क्या होता है? क्या 1955 में बना क़ानून सच में आज की हक़ीक़त के लिए उपयुक्त है ? क्या आज औरतों की ज़िंदगी को सच्चाइयों को समझने और सुलझाने के लिए, उस क़ानून की पूरी तरह से मरम्मत और बदलाव करने की ज़रुरत है ?
मैं अक्सर सुनती हूँ, शादी पवित्र है , संस्कार है , पावन है। लेकिन क्या उस शादी में रहने वाली औरत पवित्र और पावन मानी जाती है ?
पिछले दो दशकों में इण्डिया में तलाक़ दर दुगुना हो गया है। लेकिन बढ़ते हुए तलाक़ दर को अब औरतों की क़ुर्बानी का आधार न बनाया जाए । शादी और मातापन को तो हमनें औरतों की क़ुरबानी देने का बहाना बना ही लिया है । इसकी जगह, औरतों को बेहतर तरीके से तैयार किया जाये।
एक और चीज़ । मैं एक कांफ्रेंस में थी। वहाँ मैंने एक परचा उठाया जो शादी में बराबरी के बारे में था। और फिर मुझे एकदम से ध्यान आया कि जो लोग अभी शादी शुदा हैं, उनके लिए तो कोई बराबरी नहीं है। तो हम LGBTQIA+( क्वीयर समुदाय) को किस चीज़ में धकेल रहे हैं ? असल में हम किस चीज़ की मांग कर रहे है ? क्यूंकि .. मान लीजिये अगर दो मर्द आपस में शादी करते है तो वो पति -पत्नी तो नहीं होंगे। वो तो एक दूसरे के जीवनसाथी हुए या पति- पति हुए। अभी का क़ानून उनपे कैसे लागू होगा ?
अगर हम शादी में बराबरी की बात कर रहे हैं, तो पहले शादी को ठीक करा जाए। नहीं तो यह जेल-भरो आंदोलन जैसा है। हम जेल में बैठे हैं और LGBTQIA+ को कह रहे है , 'आओ आओ ,तुम भी आ जाओ' ।
मेरे लिए यह शादी में सुधार की धारणा गंभीर और अति आवश्यक है। क्यूंकि जब औरतें शादी से बाहर निकलने का सोचती हैं, तो उनका यह सबसे बड़ा डर होता है। आप दुःख को किसी एक दायरे में नहीं बाँध सकते। किसी के लिए इसका मतलब उदासीन होना हो सकता है , तो किसी के लिए अकेलापन। कोई किसी रिश्ते में बिना प्यार के रहा, तो किसी का जीवन, रोज़ प्रताड़ना और उत्पीड़न सह के, खतरे में पड़ा हुआ है। और हमें यह बात भी पता है कि व्यस्क औरतों की मौत का एक सबसे बड़ा कारण, उनके करीबी पार्टनर द्वारा की गया हिंसा होती है।
शादी अक्सर औरतों के लिए गरीबी के द्वार खोल देती है। ऐसा इस लिए, क्यूंकि या तो वो पार्ट-टाइम जॉब करेगी या बाहर फुल -टाइम जॉब करने के बाद भी घर में बिना पैसों के काम करेगी। तो समय का अभाव, यानी एक क़िस्म की गरीबी है , फिर भावनात्मक रिश्तों में दिक्कतें हैं। तलाक के बारे में बात करना तो शादी का क़ानून सुधारने की पहल में एक छोटा सा हिस्सा है।
मैंने शादी की एक बहुत ही खूबसूरत परिभाषा कहीं पढ़ी थी ' शादी अपने बेस्ट फ्रेंड के साथ रोज़ाना रात में रुकने जैसा होता है ' । यह आदर्श है। लेकिन फिर हम सच्चाई की तरफ देखते है। आप अपनी जात की पहचान को और सशक्त बनाते हैं , आप अभी भी दहेज़ दे रहे है , जब औरत दहेज़ न लाये तो उसे आप पीटते है या उसका रेप करते है। आप उसे मार डालते हैं। उसे रोज़ गाली देते हैं या प्रताड़ित करते है। आप उसे इज़्ज़त से, पैसो की आज़ादी और सम्मान के साथ जाने भी नहीं देते।
हम कई बार शादी में सुधार लाने की कानूनन कोशिश कर चुके हैं। हमने बाल विवाह रोका, हम विधवाओं की दूसरी शादी का क़ानून ले के आए। ठीक है, पर हम अभी बहुत कुछ कर सकते हैं !
हम अक्सर ' ऐमिकेबल डिवोर्स' (शांतिशील तलाक) के बारे में सुनते हैं। क्या इस नाम की कोई चीज़ होती भी है?
मेरे ख्याल से जब 'ऐमिकेबल'/ दोस्ताना/शांति वाला तलाक़ इसलिए बोला जाता है अगर तलाक़ लेते टाइम कोई ज़हरीलापन न दिखे , कोई पब्लिक ड्रामा नहीं हो , प्रॉपर्टी या बच्चों को ले के कोई झड़गा न हो। उदाहरण के लिए, एक तरह से कह सकते है बिल गेट्स और मेलिंडा गेट्स का तलाक़ शांतिशील था ? एक दिन वो शादी-शुदा थे। अगले दिन पता चला तलाक़ हो गया और प्रॉपर्टी का बटवारा हो गया। उनके बच्चे जगह जगह जा के खुलासे भरा इंटरव्यू नहीं दे रहे थे।
तो मेरे ख्याल से ऐमिकेबल का मतलब है, जहाँ पब्लिक ड्रामा न हो । लेकिन कौन जाने के कपल सच में ऐसा महसूस करते हैं या नहीं। हो सकता इसको शांतिशील बनाने के लिए किसी एक पार्टनर ने भयंकर रूप से समझौता किया हो। कहते हैं ना, कि पर्फ़ेक्ट मर्डर वो होता है जो एकदम सफाई से छुपाया जाता है। ठीक उसी तरह से हम ऐमिकेबल डिवोर्स के बारे में सिर्फ इस लिए नहीं सुनते क्यूंकि वो ऐमिकेबल है।