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प्यार को लेके पैरानोया

After every rejection I ask, is it my disability?


सायों के पीछे से एक सवाल, हमेशा सामने आता है।  रात के दूसरे पहर,  DM में जो बातचीतें ज़ोर पकड़ती हैं, उनके पीछे से सरकता सवाल । हल्की मज़ेदार फ्लर्टिंग का ठंडी सान्त्वना में बदल जाना।  सच सामने आते ही, मन से मन का कनेक्शन खत्म हो जाना। हर बार हुई 'ना' के बाद l  बस एक ही सवाल l क्या इस सब की वजह मेरी विकलांगता है? चाहत मेरी प्रेरणा रही है, अब वो मेरे ऊपर अपनी पैनी नज़र गाड़े है। वो मेरे सारे इंस्टाग्राम स्टोरी देखती है, लेकिन मेरे बर्थडे पर मुझे ग्रीटिंग देना भूल जाती है।  मुझे मेरा गिफ्ट कब मिलेगा? फिज़िकल, इमोशनल, काल्पनिक।  कुछ भी चलेगा। पर तुमको तो कुछ भी काफी नहीं लगता, है न?  लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि मुझे एक ड्रिंक भी ऑफर नहीं करोगे ? कहा जाता है कि दूसरों का प्यार पाना हो, तो सबसे पहले खुद से प्यार करना सीखो। मुझे खुद से बहुत प्यार है। सच! मैंने तो इसे अपने सोशियल मीडिया पर भी साफ-साफ ज़ाहिर कर रखा है।  एक बार नहीं, हजारों बार लिखा है! इतनी बार दोहराया है, जैसे मुझे कोई नया धर्म मिल गया हो, नए -नए भक्त के माफिक ही इस प्यार का जाप करता हूँ। लेकिन फिर भी, उन गहरी रातो में, मुझे प्यार से चूमने वाला, कोई नहीं है।  कोई हाथ मेरे शरीर पर चलते-चलते अपना रास्ता नहीं भूलता है।  मेरे बच्चे, ये सब केमिस्ट्री का खेल है।  और तुम तो इसमें कभी अच्छे थे ही नहीं। ऑर्गेनिक केमिस्ट्री में भी फेल हो गए।  मेरे केमिकल्स ठीक हैं सर।  शायद फ़िज़िक्स में दिक्कत है।  मेरा शरीर जो एंगल बनाता है… वो शायद ज्योमेट्री के नियमों पर खरा नहीं उतरता । मुझे वो बॉक्स ढूंढना होगा, जो मेरे कंपस को संभाल सके ! मैं विकलांग हूँ और मुझे आज तक सच्चा प्यार नहीं मिला। अब इसका जो सबसे नाउम्मीद तर्क है, वो मेरे अंदर चलता है। अरे! ऐसे बहुत सारे लोग हैं जिनको प्यार नहीं मिलता। इससे विकलांगता का क्या लेना-देना! लेकिन! लेकिन, लेना- देना तो है! अंदर से यही आवाज़ आती है। और हम सब जानते हैं कि भले ही सुनने में ये कितना भी बेतुका लगे, सच यही है। वो जिस शरीर को देख भी नहीं पाते हैं, उससे प्यार कैसे करेंगे।मेरा होना भी एक प्रेरणा बनके रह गया है। उससे कोई प्यार नहीं कर सकता। क्या आपने कभी किसी के साथ सिर्फ इसलिए सेक्स किया है क्योंकि वो विकलांग होने के बावजूद जिंदा है? मेरी लव लाइफ के बारे में बातचीत करना यानि अपनी दोस्तियों को गहरी खाई की तरफ ले जाना। जहां जाकर वो दम तोड़ देती हैं। एक दिन तुमको कोई प्यार करने वाला ज़रूर मिलेगा। वाह, थैंक यू। "कोई ऐसा मिलेगा जिसके लिए सेक्स ज़रूरी नहीं होगा।" थैंक यू! "अरे, कोई न कोई जरूर मिलेगा। बस वो मेरा दोस्त, मेरी बहन, मेरे जानने वाला कोई ना हो। क्योंकि उनके साथ केमिस्ट्री सही नहीं बैठेगी। इसलिए उनको रहने दो। वाह, सच में थैंक यू! ये जो भी स्थिति है, उसका दोष मेरी विकलांगता को देकर निकल लेना तो आसान था। पर मेरे लिए तो वो भी मुमकिन नहीं। क्योंकि बाकी चीजों को लेकर भी कहाँ कॉन्फिडेंट हूँ मैं।  कभी-कभी मेरा शरीर बीमार रहता है और कभी-कभी उसके पाट-पुर्ज़े सही से काम नहीं करते । मतलब सोचो आपने एक ऐसा सामान लिया जो पूरी क्या, शायद आधी संतुष्टि की गारंटी भी ना दे।  उससे भी बेहतर एक उदाहरण है। सोचो कि आप सेक्स टॉयज से भरे एक मॉल में घूम रहे हैं और तभी आप एक डिल्डो/सेक्स टॉय उठाते हैं, जिसपे लिखा होता है- नो गारंटी। और यू.टी.आई. होने का चांस। कोई भी समझदार औरत ऐसा सामान क्यों खरीदेगी । सच कहूं तो मैं खुद ना खरीदूं ऐसी चीज़। भले मैं खुद से बहुत प्यार करता हूँ। मेरी जान, इस ही का नाम कैपिटलिज़्म है । लेकिन एक चलते-फिरते पाट पुर्जे वाले शरीर के आगे भी तो कुछ होता है ना।? जैसे कि आनंद। नज़दीकियां! ये सब भी तो हैं। बेशक! पर कभी ऐसा कोई पार्टनर मिला है जिसको हर बार सेक्स से पहले नज़दीकी और अंतरंगता का मतलब समझाना पड़े? सोचो, ये कितना बोरिंग होगा । बात शुरू करने से पहले ही उबासी आ जायेगी। हाँ, अगर दोनों लोग एक ही चीज़ चाहते हैं, तो मज़े की कोई सीमा नहीं। लेकिन सबसे पहले तो ये ज़रूरी है कि वो आपकी बॉडी के साथ कम्फ़र्टेबल हों। और इसके लिए उनको आपके आस पास रहना पड़ेगा, है ना? और आस पास वो तभी रहेंगे जब वो आपको अपने बराबर का समझेंगे।  वैसे तो अपनी लाइफ में अक्सर अपने को कई रोल अदा करते हुए पाता था। फिर ये जाना कि मुझे अधीन(submissive- रिश्ते में एक ऐसा रोल निभाना, जिसमें पार्टनर की हर बात को आज्ञा समझ के उसका पालन करना होगा) होने का भी हुनर नहीं है। जैसे ही कोई मेरे साथ नज़दीकी बढ़ाता है, मेरे अंदर प्यार की भूख जाग जाती है। कोई फिजिकल होता नहीं कि मैं उससे इमोशनल कनेक्शन बनाने लगता हूँ। सीधा आर या पार। बीच में कुछ देखता ही नहीं हूँ। या तो सब कुछ चाहिए या फिर कुछ भी नहीं। शायद ये, मेरे हालातों से मेरा समझौता है।  मैं अक्सर खुद को ये कहकर सांत्वना देता हूं कि इमोशनल तरीके से मैं बहुत आकर्षक हूँ। स्ट्रेट, गे, मर्द, औरत, कुंवारे, शादीशुदा- हर तरह के लोग, मुझसे राय-मशवरा करते हैं। देखा जाए तो ये कई विकलांग लोगों के साथ नहीं होता ?  हम लोग कम, और सेफ स्पेस ज़्यादा माने जाते हैं ? फीजिकली सक्षम लोगों को, ऐसे सेफ माहौल चाहिए, जहां उन्हें अपने घाव भरने का मौका मिले l जहां पैसे भी खर्च न हो, बस कुछ दिन रहने को मिल जाये। किसी फर्नीचर की भी ज़रूरत ना हो। जो ज़रुरत आने पे बदला जा सके। इससे दर्द होता है। जब आपको अपने होने पे ही शर्मिंदा किया जाता है, तो अंदर एक कड़वाहट आ ही जाती है। विकलांग लोगों को कई तरह से शर्मिंदा किया जा सकता है। उनसे मुँह फेर के, उनका बहिष्करण करके । उनको अपने से अलग, सीमाबन्द करके। अपनी सफाइयां देके ! ये जो वजह बताकर अपने किये को सही साबित करने की कोशिश करते हैं, सबसे ज्यादा दर्द वही पहुंचाते हैं। क्योंकि हम उनकी बात को दिल पे लेकर, उसके बारे में सोचने लग जाते हैं। वो मुझसे दोस्ती क्यों करेंगे? वो मुझसे प्यार क्यों करेंगे? वो मेरे होने या ना होने की परवाह क्यों करेंगे? पिछले कुछ साल में मैंने सब के साथ समझौता कर लिया है।  कोई मुझे पसंद नहीं करता।  मैं समझता हूं।  कोई मुझसे प्यार नहीं करता।  मैं समझता हूं।  कोई अब मुझसे दोस्ती नहीं करना चाहता।  मैं समझता हूं।  कोई मुझे इमोशनल तरीके से इस्तेमाल करना चाहता है।  मैं समझता हूं।  किसी को मेरी परवाह नहीं है।  मैं समझता हूं। सबको समझना भी अंदर की एक लड़ाई ही है। इस समझौते वाली शांति में एक द्वंद छुपा होता है। उसके अंदर एक हिंसा है। ऐसी हिंसा, जिससे खून नहीं बहता, न  घाव दिखते हैं। लेकिन ये आपकी आत्मा को इस हद तक खा जाती है कि आप खुद से प्यार करने का दिखावा करते हैं, आप उम्मीद रखने का दिखावा करते हैं, आप दिखावा करते हैं कि सब कुछ ठीक है। पर और किया भी क्या जा सकता है? टूट जाएं? दुनियां के सामने रो दें? और उनको वही सवाल पूछें, जिसका जवाब वो कभी नहीं देंगे - क्या इस सब की वजह मेरी विकलांगता है?   अभिषेक अनिक्का एक लेखक, कवि और विकलांगों के अधिकार के लिए लड़ने वाले कार्यकर्ता हैं।  उन्होंने औरत और जेंडर के ऊपर एम.फिल की है और विलंब करने में तो पी.एच.डी की है।
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