वो क्या चीज़ है जिससे लोग छिः छिः थू थू और घृणा करते हैं मगर उसे और अधिक पाने के लिए वापस उसी के पास जाते हैं ? वो किसके बारे में ये कहते हैं “मत देखो, आँखें बंद कर लो”, क्योंकि क्या पता तुम भी इसकी ओर खींचे चले जाओ ? कौन है वो ? पोर्न ( porn) है वो !
आपको ऐसा लगता है क्या कि आप पोर्न की और आकर्षित हो जाते हो, पर साथ साथ ये डर लगा रहता है कि कहीं आप कोई अस्वस्थ, नारी-विरोधी और बर्बादी से भरा हुआ काम तो नहीं कर रहे ? ऐसा मन करता है क्या कि काश, कोई डॉक्टर पोर्न होता जो इन सवालों का जवाब देकर बता देता कि कहाँ हाँ कहना है और कहाँ न?
तो बस समझिये कि कोई मिल गया । रिचा कॉल पड़ते की किताब साइबरसेक्सी (Cybersexy) पर आधारित, पोर्न पर आपके शक को दूर करने को आया है, ये लेख !
क्या इरोटिका ( erotica -यानी सेक्सी साहित्य और तस्वीरें) सुन्दर हैं और अश्लील कलाकारी या पॉर्नोग्राफ़ी (Pornography) भ्रष्ट ?
संक्षिप्त उत्तर है - बिलकुल नहीं ! वो कहते हैं न - एक इंसान जिसे अश्लील समझता है ,दूसरे को वो वही चीज़ इरोटिका/ कामुक कलाकारी लग सकती है । । इतिहास : इतिहास के मुताबिक, पोर्न या इरोटिका तब सामने आया जब यूरोप के 'पहुंचे हुए ', यानी अमीर, कुलीन लोगों ने तय किया कि सभी नंगे शरीर के चित्र और सेक्सी जीवन की दास्तानें सिर्फ़ VIP ( यानी कि बस धनवान गोरे लोगों) के लिए खास जगहों पर प्राप्त होंगी l बाकि लोगों के लिए ये सब ग़ैरक़ानूनी माना जाएगा। भारत उस समय इंग्लैंड का सबसे प्रमुख राज्य था, तो यहाँ भी पोर्नोग्राफ़ी इस ही तरह 'ख़ास' लोगों के लिए ही जायज़ थी। लेकिन पहले प्रिंटिंग प्रेस, फिर कंप्यूटर और उसके बाद इंटरनेट ने इसकी पहुँच को आसान कर दिया l पोर्न की सप्लाई बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए बढ़ती गयी। इतिहास का नतीजा : हमें तो इससे ये समझ में आया कि - ये 'ऊंचे लोगों' की पुरानी आदत है कि वो पहले किसी चीज़ की सप्लाई को एकदम कम कर देते हैं । और फिर उस चीज़ को बहुत ख़ास और स्पेशल बताते हैं। आज के युग में ये लोग क़ानून बनाने वाले और समाज के पहरेदार बन बैठे हैं। अगर उनके हिसाब से देखा जाए कि किस चीज़ की परमिशन है और किसकी नहीं, तो कम प्राप्त होने वाला, चुनिंदा लोगों को दिखने वाली सेक्सी चीज़ें = इरोटिका सस्ता, सरल और तेज़ प्रसार वाला= पोर्न। यानी इरोटिका और पोर्न का फर्क धुंधला सा है। (और ये इसलिए नहीं है कि हस्थमैथुन करने से आपकी नज़र कमज़ोर हो गयी है- ऐसा नहीं होता है !)क्या पोर्न देखकर मैं महिलाओं के खिलाफ कुछ कर रहा हूँ?
ये सही है कि मर्दों की ख़ुशी के लिए जिस तरह के पोर्न बनाये जाते हैं, वो अक्सर औरतों की चाहत पर ध्यान ही नहीं देते। लेकिन देखा जाए, तो कई इश्तेहार, वीडिओज़ और गाने भी तो हमारे नज़रिये पर काफी असर करते रहे हैं । लकी बात ये है कि पोर्न अनेक प्रकार में आता है, जिसमें से हम चुन सकते हैं कि हमें किस पोर्न को चुनना है । ऐसा पोर्न, जो औरतों को ज़्यादा मस्त लगे। देखा जाए तो, पोर्न के भी तो बहुत प्रकार हैं । इतिहास : इस सोच पर गौर करते हैं जो कहती है कि महिला + पोर्न = अत्याचार 70 के दशक में, पोर्न-विरोधी महिलावादियों( feminists) ने पोर्न को इसलिए अच्छा नहीं बतलाया था क्योंकि :- ये सिर्फ़ मर्दों की मस्ती के लिए बनता है
- ये औरतों को एक चीज़ के जैसे दिखाता है, उनकी ओर हिंसक भी होता है ।
- सेक्स अपने आप में बुरा नहीं है और उसका आनंद कोई भी वर्ण या वर्ग ले सकता है।
- ये एक बकवास सोच है कि औरतें को सेक्स करने से या देखने से मस्ती नहीं आती ।
क्या महिलाएं पोर्न (अश्लील चित्र या साहित्य) देखती हैं या वे ज़रुरत से ज़्यादा रोमांटिक क़िस्म की होती हैं ?
2017 में, पोर्नहब (Pornhub) के वेबसाइट पर 30% औरतों ने लॉग इन किया था ! घिसी पीटी सोच कहती है कि औरतों को न तो सेक्स की चाहत होती है और ना ही खयाल आता है । पर, सच तो ये है कि महिलाएँ हर प्रकार का पोर्न देखती हैं - स्ट्रेट (Straight0 यानि विपरीत लिंगकामी, समलैंगिक, रोमांटिक और विचित्र, आप नाम तो लीजिये। आप ये सोच सकते हैं कि औरतें सिर्फ़ हमारे नयनसुख के लिए होती हैं पर सही मायने में नयनसुख (और दूसरे अंगों का सुख) औरतों के लिए भी होता है। . अरे नहीं ! क्या मुझे पोर्न की लत लग गयी है ? शायद नहीं। क्या हम कभी भी डर कर ये कहते हैं कि, “अरे नहीं, क्या मैं रेडियो का आदी हो गया हूँ ? अरे नहीं, क्या मुझे कैंडी क्रश की लत-सी लग गयी है ?” चूँकि पोर्न = सेक्स होता है, इसलिए ज़्यादातर लोग सोचते हैं कि थोड़ा-सा भी बहुत ज़्यादा हो जाता है। आप बहुत ज़्यादा देखने की सिचुएशन से गुज़र सकते हैं, लेकिन इसमें ऐसा कुछ नहीं है जो किसी के रोज़ाना जीवन में सब कुछ तीतर-बितर कर दे। हम गुमनाम होकर पोर्न देख सकते हैं, ये हमें काफी आसानी से मिल सकता है, सस्ता भी होता है । लेकिन लत लग जाने के डर की वजह असल में वो शर्म है जो पोर्न और सेक्स से जुडी है । . क्या पोर्न पर निर्भर रहना, रियल ज़िंदगी के सेक्स को मुश्क़िल बना देता है ? कुछ लोगों का ख्याल है कि ऐसा होता है। पर अगर हम सेक्स को लेकर और मस्त हो पाएं तो ये सारी मुश्किलें पार हो जाती हैं।मैं घर में पोर्न बनाना चाहता हूँ। क्या मैं क़ानूनी मुसीबत में पड़ जाऊंगा ?
भारत में निजी रूप से पोर्न देखना क़ानूनन जायज़ है, पर बनाना नहीं। फिर भी, अगर आप बिना उसे प्रसारित या शेयर करते हुए सिर्फ अपने निजी इस्तेमाल के लिए घर पे बनाते हैं, तो ये जायज़ है अगर :- आप अपने पोर्न में खुद एक्टिंग करें ( और दर्शक भी केवल आप हों)
- आप आप किसी दूसरे के साथ पोर्न में दिख सकते हैं, लेकिन उसकी मर्ज़ी के साथ (और देखने वाले भी आप लोग ही हों जो उसमें एक्टिंग कर रहे हैं), और आपका उस पोर्न को आगे शेयर करने का कोई इरादा न हो l
बच्चों का पोर्न की खोज करने में कौन-कौन से खतरे शामिल हैं ?
ऐसे उदाहरण हैं, कि जब 13 से 19 के बीच के teenage बच्चे सेक्सुअल सामग्री से खेलते/ उसे साझा करते हुए पकडे गए, तो उनपर पोक्सो (POCSO) एक्ट जैसे क़ानूनों के तहत चार्ज लगाए गए हैं.. हालांकि ये क़ानून इन बच्चों के बचाव के लिए बनाये गए थे ! क़ानून इन दोनों को अश्लील अपराध की नज़र से देखता है :- किसी को सेक्स करते वक्त के वीडिओज़ अपलोड करने को मजबूर करना।
क्या पोर्न आपको सेक्स के बारे में ग़लत चीज़ें नहीं सिखाता ?
क्या एक्शन फ़िल्में ताक़त के बारे में आपको ग़लत चीज़ें सिखाता है ? क्या हास्य, रोमांटिक फ़िल्में हमें प्यार-मोहब्बत को हूबहू दिखाते हैं ? नहीं ना ? बॉलीवुड की तरह पोर्न भी बढ़ा-चढ़ा कर कई बातें बताता है - मनोरंजन वगैरह के लिए - और आपको सेक्स के बारे में कुछ गड़बड़ जानकारी भी दे सकता है । अगर सेक्स की जानकारी का ये अकेला ज़रिया है, तो पोर्न हमें ग़लत जानकारी दे सकता है। पर स्कूल का सेक्स-एजुकेशन अक्सर कई चीज़ें बताता नहीं, या सीधी-सादी बात को थोड़ा ख़याली पुलाओ बना कर समझाता है l जवान और जानकारी को तरसते लोगों के लिए पोर्न सीधे तरीक़े से सेक्स की प्रक्रिया तो समझा ही देता है। क्या हिंसक पोर्न देखना मुझे एक उग्र प्रेमी बना देगा ? हमारी कुछ कल्पनाएं होती हैं जिन्हें हम मीडिया और कला के ज़रिये व्यक्त करते हैं l इसका मतलब ये नहीं हुआ कि हमारी कल्पना और हम जो करते हैं, एक से हों । कई अध्ययन बताते हैं कि लोग जो देखते हैं और जो करते हैं, दोनों एक से नहीं होते । पर अगर हम एक जैसे बहुत सारे शो देखें, या एक सी खबर या गेम शोज़, तो हमारे नज़रिये पर असर होगा l और हमारे नज़रिये का असर हम जो करते हैं, उसपर होगा l जातिवाद, औरतों का दमन करना, इस तरह की सोच हमारी ज़िंदगी का हिस्सा बन सकती हैं l ऐसी गलतफहमी अक्सर होती है : अक्सर ऐसा सेक्स जो दिखने में हिंसक हो, को BDSM, या किंक से जोड़ा जाता है । पर सच तो ये है कि जो लोग किंक समुदाय में शामिल हैं, वो मर्ज़ी पर बहुत ज़ोर देते हैं l इस सन्दर्भ में, जो सेक्स की क्रिया दिखने में हिंसक लगे, अक्सर मर्ज़ी और सहमति को बहुत ध्यान में रखकर ही की गयी होती है, आपस में एक दूसरे की बात समझकर l हो सकता है कि पोर्न इस पहलू को साफ़ साफ़ दिखाए ही नहीं l मुझे पोर्न पसंद है पर पोर्न, शरीर कैसा होना चाहिए, इस बात को लेकर बहुत अस्वस्थ मानकों को बढावा देता है। इसके बारे में क्या किया जाए ? आपने सही कहा। पोर्न के जो चित्र मुख्यधारा में भरे हुए हैं, उनमें शरीर के भिन्न रूप दिखते ही नहीं l ये विशाल छातियों, भरे और बड़े लिंगों और असंभव कमर की साइज को बढ़ावा देता है। अलग प्रकार के शरीरों से इन तस्वीरों को बदलना, एक सफ़र है, जिसमें हम सब शामिल हैं - कभी ये करने के लिए हम खुद अपनी नंगी सेल्फी लेते हैं, कभी कभी गुप्त पहचान के साथ भरोसेमंद मंच पर ऑनलाइन पोस्ट कर डालते हैं। कभी हम फ़िल्में, वीडिओज़, गाने सर्च करते हैं - जैसे लिज़्ज़ा का “स्कूज़ मी (Scuse Me - While I Feel Myself)” या अइय्या का “अगा बाई हल्ला मचाए” या रानी मुखर्जी को मस्ती करते देखते हैं, अपनी भरी हुई तोंद के साथ।लेकिन आख़िरकार, पोर्न को क़ानूनन मान्यता नहीं मिल सकती न ? क्या ये नुक़सानदेह नहीं होगा ?
अगर पोर्न को वैद्य बनाया गया, तो इससे ये फायदा होगा कि किसी भी इंडस्ट्री पर जो रूल्स लागू होते हैं, वो यहां भी लागू होंगे । साथ ही, ये अलग अलग तरह के और समझदार पोर्न को बढ़ावा देगा।- मर्ज़ी को लेकर कई बातें भी तब एंट्री लेंगी l और बिना मर्ज़ी के काम लेने पर आवाज़ उठाना और संभव होगा ।