१७ दिसंबर, २०१८ को लोक सभा में ट्रांसजेंडर पर्सन्स (प्रोटेक्शन ऑफ़ राइट्स) बिल २०१६ [Transgender Persons (Protection of Rights) Bill 2016/ ट्रांसजेंडर पर्सन्स (अधिकारों की सुरक्षा) बिल २०१६] पास किया गया। इस बिल का पहला ढांचा करीब तीन साल पहले मिनिस्ट्री ऑफ़ सोशल जस्टिस एंड एम्पावरमेंट (Ministry of Social Justice and Empowerment/ सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय) ने तैयार किया था। उस समय कई ट्रांस लोगों और एक्टिविस्ट ने इस बिल को लेकर कई गंभीर मुद्दे उठाये। उनका कहना था कि ये बिल ट्रांस लोगों के अधिकारों की सुरक्षा करने के बजाय उनके ख़िलाफ़ किए गए भेदभाव का समर्थन कर रहा है। शुरू से अब तक बिल को सत्ताईस बार संशोधित किया गया है, पर एक्टिविस्ट का कहना है कि यह बिल अब भी ट्रांस लोगों के साथ भेदभाव करता है। वे ऐसा क्यों कह रहे हैं? “ट्रांसजेंडर” किनको कहा जा सकता है, इस बात पर ही मतभेद इस बिल के मुताबिक ट्रांसजेंडर “ऐसा शख़्स है जिसके जन्म के समय उसे एक जेंडर पहचान दी गई थी, पर आज की तारीख़ में उसकी अपनी जेंडर पहचान अलग है। इसमें कई लोग शामिल हैं - ट्रांस-मर्द या ट्रांस-औरत (ये कोई मायने नहीं रखता कि उस शख़्स ने सेक्स चेंज सर्जरी या हॉर्मोन थेरपी या लेज़र थेरपी या ऐसी कोई अन्य थेरपी की है या नहीं), ऐसा शख़्स जिसमें मध्यलिंगी भिन्नताएं हैं या जो लिंग क्वीर है और ऐसे लोग भी जिनकी सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान किन्नर, हिजड़ा, अरवनी या जोगता है।” WHO और वर्ल्ड प्रोफेशनल एसोसिएशन फ़ॉर ट्रांसजेंडर हेल्थ (World Professional Association for Transgender Health/ ट्रांसजेंडर स्वास्थ्य के लिए वर्ल्ड प्रोफेशनल एसोसिएशन) जैसी जानी मानी संस्थाएं भी जीवविज्ञानिक/ biological मापदंड को लिंग पहचान का आधार नहीं मानतीं। कई लोग इसलिए मानते हैं कि जीवविज्ञान/ biology को आधार मानने के बजाये, इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि उस इंसान की अपनी जेंडर पहचान उस पहचान से अलग है, जो उसे पैदा होने पर, उसके लिंग के आधार पर उसे दी गई थी। हो सकता है कि हर मध्यलिंगी इंसान अपने जेंडर को ख़ुद निर्धारित करने का इच्छुक हो। तो फ़िर उन्हें चुनने का मौका देना चाहिए। उसके बजाय, उन सब पर ट्रांसजेंडर पहचान को थोप देना, ग़लत होगा। सेक्स, लिंग और रुझान के बीच के फ़र्क आप यहाँ जान सकते हैं। मध्यलिंग क्या है, उसपर और जानकारी आपको यहाँ मिलेगी। सबूत की आवश्यकता बिल के मुताबिक जिला मजिस्ट्रेट का दिया हुआ सर्टिफिकेट पेश करना ज़रूरी है। वो सर्टिफिकेट ये घोषित करेगा कि आप ट्रांस हो। ये सर्टिफिकेट हासिल करने के लिए आपको ५ लोगों की डिस्ट्रिक्ट स्क्रीनिंग कमिटी (जिला जांच कमिटी) के सामने पेश आना होगा, जिनमें शामिल होंगे: एक चीफ़ मेडिकल ऑफ़िसर (मुख्य चिकित्सा अधिकारी), एक डिस्ट्रिक्ट सोशल वेलफेयर ऑफ़िसर (जिला समाज कल्याण अधिकारी), एक मनोवैज्ञानिक या एक मनश्चिकित्सक, ट्रांसजेंडर समाज का एक प्रतिनिधि और एक सरकारी अधिकारी। ये सब इस बात पर जो निर्णय लेंगे वही माना जाएगा। अगर कोई ट्रांस शख़्स ख़ुद को मर्द या औरत कहलाना चाहता है, उसे पहले तो इस कमिटी को साबित करना होगा कि उसने अपने जननांग को उचित रूप से बदलने के लिए सर्जरी की है। कमिटी ने लिए निर्णय से अगर आप असहमत हो और उसे बदलना चाहो तो उसके लिए फ़िलहाल कोई तरीका नहीं है। लेकिन २०१४ में, सुप्रीम कोर्ट ने यह फ़ैसला सुनाया कि ट्रांस लोगों को यह अधिकार है कि वे ख़ुद तय कर सकते हैं कि क्या वे ख़ुद को मर्द, औरत या तीसरे लिंग का समझते हैं। यह बिल इस अधिकार का और निजी बात को निजी रखना यानी प्राइवेसी के अधिकार का उल्लंघन करता है। इस बिल के अनुसार, उस ट्रांस व्यक्ति की जांच की जाएगी, ये सिद्ध करने के लिए कि वो ट्रांस है - तो ऐसी जांच तो आक्रामक ही कहलाएगी। इस बिल का कानूनी सुरक्षा ना दे पाना बिल के मुताबिक, जो ट्रांस शख़्स भीख मांगते हुए पाए जाते हैं उन्हें गिरफ़्तार कर ६ महीनों से लेकर २ साल तक के लिए जेल में डाला जा सकता है। ट्रांस लोगों पर वार करने और उनका रेप करने की सज़ाएं उतनी कठोर नहीं हैं जितनी औरतों पर किए गए वही अपराधों पर दी जाती हैं (भारत में, रेप, किसी का चोरी छिपे पीछा करना और यौन उत्पीड़न करना: इनके ख़िलाफ़ जो क़ानून हैं, वो सब लिंगों को एक नज़र से नहीं देखते । ये कानून तभी लागू होते हैं जब औरतों के खिलाफ ये अत्याचार किये जाते हैं । यानी अगर और लिंग के लोगों पर ये अत्याचार किये जाएँ, तो वे उस गंभीरता से कानूनन अपराध नहीं माने जाते ।) किसी ट्रांस शख़्स की ज़िंदगी और उसकी सुरक्षा को ख़तरे में डालने के लिए, या उसका रेप करने के लिए, कोई अपराधी जेल में ज़्यादा से ज़्यादा दो साल की सज़ा काटकर और फाइन भरकर रिहा हो सकता है। लेकिन, किसी औरत का रेप करने से ७ साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सज़ा हो सकती है। इससे ऐसे लगता है कि ट्रांस लोगों की ज़िंदगी और सुरक्षा कम मूल्यवान है, और ये बिल उन्हें कानून के अंतर्गत समान अधिकारों से वंचित करता है। इसमें आरक्षण ना होना २०१४ में, सुप्रीम कोर्ट ने राज्य और केंद्र सरकारों से कहा कि शिक्षा और सरकारी नौकरी के क्षेत्रों में ट्रांस लोगों को आरक्षण मिलना चाहिए। राजनैतिक क्षेत्र में आरक्षण के साथ साथ ट्रांस एक्टिविस्ट की ये एक महत्त्वपूर्ण मांग रही है। लेकिन इस ट्रांस बिल में आरक्षण का कोई ज़िक्र नहीं है - एक तरफ़ वो शिक्षण और रोज़गार के कोई भी अवसर सुनिश्चित नहीं कर रहा और दूसरी ओर भीख मांगकर रोज़ी रोटी कमाने के कोशिशों को वह गैरकानूनी मान रहा है। इससे बेहतर बिल की संभावना फ़िलहाल, लोक सभा में ट्रांसजेंडर लोगों के अधिकारों पर और एक बिल पास होना बाकी है - Rights of Transgender Persons Bill, 2014/ राइट्स ऑफ़ ट्रांसजेंडर पर्सन्स बिल, २०१४, जिसे तमिळ नाडु की MP तिरुचि सिवा ने प्रस्तावित किया था। कई मायनों में तिरुचि सिवा का बिल बेहतर माना जाता है, पर चूँकि उसके जैसा दूसरा बिल पास हो चुका है, संभावना है कि ये बिल पास नहीं होगा। (इन दो बिल के बारे में जानकारी और संसदीय प्रक्रिया में से उनके सफ़र के बारे में जानकारी आपको यहाँ मिलेगी।) अब जब आप इस नए बिल को लेकर समस्याएं समझने लगे हो, तो क्या आप इसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना चाहेंगे? आप ये सब कर सकते हो: १. अब इस बिल को एक्ट बनने के पहले इसे राज्य सभा में पास होना ज़रूरी है। तो इसे एक्ट बनने से रोकना अब भी मुमकिन है। संसद के सदस्यों (MP) को आप इस लिंक के ज़रिये ख़त लिख सकते हो, यह समझाते हुए कि इस बिल पर पुनर्विचार करना क्यों ज़रूरी है। २. २६ दिसंबर, २०१८ को मुंबई के आज़ाद मैदान में और २८ दिसंबर, २०१८ को दिल्ली के जंतर मंतर में बिल के ख़िलाफ़ आवाज़ें उठाईं गईं। ऐसी मीटिंग के लिए चौकन्ना रहना और इनमें शामिल होकर आपका समर्थन दिखाना। और जानकारी प्राप्त करना
- ट्रांस लोगों की प्रतिक्रियाओं और बिल के ख़िलाफ़ हुए विरोध की जानकारी आपको यहाँ मिलेगी।
- लॉयर्स कलेक्टिव की बिल की आलोचना आप यहाँ पढ़ सकते हो।
बिल पर विस्तृत जानकारी, उसमें किए गए संशोधन और उस पर आलोचनाओं की जानकारी पाने के लिए यहाँ और यहाँ जाएं।