हमारी दुनिया में एक शाब्दिक और संकेतिक रूप है, बिना उसे सताए, दूसरे के रूझान को समझने के लिए| उस तरीके को फ्लर्टिंग या इश्क़ बाज़ी कहते हैं, और अमरीका में घर बसाने के बाद मैं ये समझी हूँ कि अमरीकी लोग इसमें अक्षम हैं हमारी दुनिया में |
बिना परेशान किए फ्लर्ट करना तब पनपता है जब कामुकता किसी संस्कृति में हवा सी ओत प्रोत हो बहती है, जब हर इंसान को कामुक इच्छा रखने और जगाने वाले के सन्दर्भ में समझा जाता है, पर एक ऐसी कामुकता का मालिक जो दूसरों को अपने उपस्तिथी और अपने शरीर में दाखिला अपनी इच्छा, अपनी मर्ज़ी, या अपनी झक के भी अनुसार देता है हो |
ऐसा परिवेश हो तो इष्कबाज़ी मज़ेदार होती है| हँसी खेल सी| तिगड़म और घुमावदार| सीधी सादी नहीं| शब्द और भावनाएँ थमते हैं, बहते हैं, डूबते - लौटते हैं| करीबियन में, और प्रवासी भारतीय करीबियन में, जहाँ की मेरी पैदाइशी है, वहाँ, उपनिवेशी अँग्रेज़ों की अँग्रेज़ी, बागानों की हिन्दुस्तानी, छिपी सी योरूबा भाषा, विजयी स्पॅनिश और फ्रेंच भाषा , इन सब के मिलन में एक मज़ेदार अँग्रेज़ी पनपती खिलती है, जिसके सुर और मज़ाक हमारी जान में जान डालते हैं |
करिबीयन, लॅटिन अमरीकी संस्कृिती के लोग और भूमध्यसागर संस्कृिती के लोगों से बात करने में अक्सर मज़ा आता है, हँसी छूटती है, आपसी खुशामदी और तर्क वितर्क का एक मज़ेदार सिलसिला चलता है, ओछेपन और तुच्छ अपमान की कोई जगह नहीं होती और मज़ा होता है हँसी होती है | सहमती होती है | आदर होता है | सबसे बड़ी बात, मन उदार, दिलदार होता है | प्यार के दोनों सिपाही उस नोक झोंक और इश्क बाज़ी के उस मैदान को जब छोड़ते हैं, तो अपने आप को पहले से और ख़ास, खूबसूरत और बढ़िया महसूस करते हुए | हवा शब्दों के खेल, कुछ समय के लिए बड़े आत्मसम्मान की भावना से मिलता आराम, और उस फेरोमों नामक रसायन से भर सी जाती है, जिससे कई पशु और कीड़े एक दूसरे को आकर्षित करते हैं |
ऐसी नोंक झोंक की परीकल्पना करो जो किसी एक सीधे से अंजाम या उपभोग्य अन्त की ओर ना प्रवृत हो |
हाँ, एक अंत सेक्स या रोमांस हो सकता है, पर इससे बड़ा अंत है उस खेल में मज़े आना, फिर वो मुँह ज़बानी मज़ा हो, या कोई और ( रिश्ता बनाना तो लक्ष्य ही नहीं, इस प्रारंभिक स्तर पर तो ब्लिकुल नहीं) | प्रेम की ओर बढ़ती ये यात्रा ही उपलब्धी है, और वाकई दोनों कार्यकुशल तर्क वितरकियों को एक दूसरे से इस दौरान थोड़ा बहुत प्यार हो ही जाता है, भला वो एक दूसरे को कभी वापस देखें ही नहीं |
जैसे जैसे तर्क वितर्क का ये मज़ेदार सिलसिला खुलता जाता है, दोनो प्रेमियों को समय भी मिलता है, और जगह भी, अपनी पसंद के बारे में सोचने का, आगे क्या करना है, उसपर निर्णय लेने का | और हर एक जो भी निर्णय लेता है, वो बिल्कुल खुला, स्वच्छन्दता से लिया गया निर्णय होता है | करीबेअन के हम निवासी कभी जल्दी में नहीं होते,हालांकि इससे हमारा नुकसान भी हो सकता है, क्योंकि हम कहीं पर भी समय पर नहीं पहुँचते, अपनी शादियों पर भी और ख़ास तौर से नहीं |
करीबियन, त्रिनिदाद, गुयाना और जमैका के अपनी लैंगिक, पारस्परिक और उपनिवेशन के कारण और उसके बाद की गंभीर समस्यायें भी हैं: आक्रामक घरेलू हिंसा और आत्महत्या इनमें शामिल हैं| आर्थिक रूप से हम निर्धन हैं | फिर भी औरतों के पास एक स्वच्छन्दता है, वो खुद ये तय कर सकती हैं, कि उन्हें कब, अपनी इच्छानुसार कामुक होना है और कब नहीं, कब कामुक संकेत देते हुए, सड़क पर कार्निवल के वक्त सोका, चट्नी और डांस हॉल रेगे पर खुल कर नाचना है, और अगले दिन मंदिर, गिरजाघर या मस्जिद पर लौट भी आना है, विकासशील देशों की आंटीयों की खरी खोटी सुनने को भी, पर बिना ख़ौफ़ के | पर अब मैं मी टू # MeToo के अमरीका में रहती हूँ, मुक्तिदाता ट्रंप की ईस्वी में, जब कोई भी मज़े नहीं ले रहा है | हमारे वो प्रिय लीडर और आका हर रोज़ अपनी पत्नी, अपने कर्मों और अपने बीते कुकार्मों की रोज़ मिलती वीडियो फुटेज के ज़रिए घोषणा करते हैं, कि औरतें बस एक बदन होती हैं: या पॉर्न स्टार या ब्यूटी क़्वीन या विदेशी दुल्हन जिनपर वो अपनी घटिया और छिछोरी सेक्स क्रिया करता है |
हर रोज़ किसी नये पब्लिक हस्ती के सेक्स संबंधी दुराचार का भांडा फोड़ होता है | फिर भी जब अज़ीज़ अंसारी को दोषी ठहराया गया, तो हम सब हिल गये थे | अमरीकी सपने को हासिल करने में सफल आप्रवासी, और तो और, एक जाना माना व्यक्ति जिसकी जड़ें भारत से जुड़ी हैं, ऊपर से जाना माना टाइप का मुस्लिम आदमी- भला ही उसकी शूकर माँस खाने की आदत कुख्यात रही है और उसका अज्ञेयवाद भी |
अज़ीज़ के केस ने औरतों के बीच कुछ ऐसा विभाजन कर दिया जो और किसी सेक्स संबंधी दुर्गाचार केस ने नहीं किया था: उस जवान औरत के विकल्पों और उसका अज़ीज़ के चंगुल से निकल भागने के पल का चुनाव, और किस हद तक अज़ीज़ ने उसपर ज़ोर डाला था या नहीं: उस लड़की पर अपनी ख़्याती बड़ाने की इच्छा के आरोप लगाए गये | सबको पाठ पढ़ाया गया, सब थक कर वहाँ से निकले | गोरे उदार पंथी, और गोरे स्त्रीवादी जिन्होंने अज़ीज़ के सॉफ सुथरे बहु जातीयता युक्त शो के मज़े लिए थे,( जिसमें वो अक्सर गोरी लड़कियों से रोमांस कर अपना उनकी ओर तरजीह प्रकट करता था), अब उसकी पक्की प्रतिरक्षक साबित हुईं | उन्होनें बड़े जतन किए ये ना बोलने की कि आम ऐसे आरोपियों से अलग, अज़ीज़ गोरा नहीं था, ब्राऊन था, और नाम मात्र मुसलमान भी| इस राजनीतिक दौर में उसका यून खुलासा करना ख़तरनाक समझा गया| असंगत रूप से यूँ समझा गया कि ये भी तो हो सकता था, कि इसके कारण उसे वापस अपने माँ- बाप के पास तमिल नाड भेज दिया जाए, हालांकि वो अमरीकी नागरिक था जिसकी पैदाइशी भी अमरीकी थी |
इस तरह अज़ीज़ ने अपने आप को विदेशी और मुसलमान, उन्हीं दायरों में अंकित पाया जो वो नहीं चाह रहा था | अज़ीज़ की अमरीका में रोमांस बहुत क्लेश भरा होता है, और बड़े दाँव लगाने पड़ते हैं | सबके अहम बड़े जलती चोट खा जाते हैं, और निष्क्रिय और क्रियाशील, दोनों किस्म की आक्रामकता मौजूद रहती है | कोई मस्ती भरा नाच नहीं होता| कोई खेल नहीं होता | रूखी, विमुख, अक्सर दारू पी कर करी हुई पहल से अगर रोमांस नहीं पनपता तो फिर नाखुश ना होकर, रोष ना दिखा कर, बल्कि मुस्कुराकर आगे बढ़ना तो वहाँ नामुमकिन है | अगर, अमरीका में, एक उचित, अव्यवसायी सन्दर्भ में, एक औरत मज़ाक करती है या एक करीबीयन इंसान जैसे फ्लर्ट करने की कोशिश करती है, तो वो, जिसकी ओर वो ये मज़ेदार क्रिया संबोधित करती है, एक दम से मान लेता है कि ये उसको सेक्स करने का न्योता दे रही है, या फिर उस औरत को अकेला बतियाते छोड़ सा दिया जाएगा, और वो जिसे वो संबोधित कर रही थी, वो अपनी दारू का एक घूंठ पीकर कमरे में इर्द गिर्द नज़र दौड़ाने लगेगा या लगेगी, ऐसे किसी की तालाश में जो अपने बदन के तत्पर टटोले जाने के प्रती और अनुगामी हो | वो लुत्फ़ जिसे समय दिया जाए, मिलना मुश्किल है | अपने अंतरराष्ट्रीय ख़्याति के ही अनुसार, अमरीकी लोग बहुत बतियाते हैं- लेकिन अपने ही बारे में, और वो दूसरे की सुनते भी नहीं | फ्लर्ट करना वास्तव में बातचीत की निपुणता है, और उसका एक बड़ा हिस्सा है, ध्यान से दूसरे की बात का सुनना | इसके बजाए पुरुष डेटिंग गुरु ( जिनमें अज़ीज़ भी शामिल है)[1] और 2015 में लोकप्रिय समाजशास्त्र शैली में उनके द्वारा लिखी गयी डेटिंग पर सलाह देती हुई किताब, मॉडर्न रोमांस: एक जाँच, आदमियों को प्रेशर डालने के लिएहर तरह की ग़ैरज़रूरी चालें, शोषक सी चालें चलने की सलाह देती है, ख़ासकर भावनाओं से खिलवाड़ करती हुई वो पुरानी चाल, उल्टे हाथ की तारीफ, जो तथाकथित रूप से औरत के आत्मसम्मान को यूँ डगमगा देती है, कि वो कामुक प्रस्तावों को और आसानी से मान लेती है | और अगर तुम औरत हो और डेटिंग अप्स पर हो, तो फिर तो भगवान ही मालिक है |
अमरीका में रोमांस पूंजीवादी होता है, मौकों का फायेदा उठाने वाला |अमरीकी लोग तारीफ करने में बेहद कंजूस हैं, और वो तारीफ ही तो है जो इष्कबाज़ी की नींव होती है, तारीफें करना और सुनना, थोड़ी बहुत खुशामदी ही सही, अमरीकी को बहुत भारी लगता है | रूमानी नोक झोंक भी इस हिसाब करने की आदत से ओत प्रोत होती है, जैसे उनसे कुछ छीन लिया जा रहा है, और यूँ लगता है कि जितना मिला है, उस ही मात्रा में लौटाया जाए, किसी तरह नाप तोल कर |
न्यू यार्क टाईम्ज़ ने हाल में सूचित किया कि जवान लोगों में, यानि जिन्हें मिल्लेनियल्स कह सकते हैं ( जिन्होंने 21स्वी शताब्दी के प्रारंभिक सालों में जवानी हासिल की), उनमें से एक तिहाई के अनुसार अगर एक आदमी एक औरत के नाक नक्शे की तारीफ करे, तो इसे वो उत्पीड़न मानते हैं | ये तब होता है जब तारीफ करना भी एक लेन देन की प्रक्रिया बन जाता है, जिससे देने वाले और लेने वाले, दोनों को शर्म आ जाती है, और दोनों इससे बाध्य हो जाते हैं; और जब एक संस्कृति में, क्या कामुक है और क्या नहीं, का बड़ा सख़्त वर्गीकरण होता है, वहाँ लोगों को तारीफ़ के मायने नहीं समझ में आते | कि एक तरफ, किसी को, बिना किसी अलंकार या शालीनता के, उनके बदन के बारे में कुछ बता देना, और फिर किसी के पहनावे, उसकी कोशिश, उसकी पर्सनालिटी के अलग खूबसूरत पहलुओं की तारीफ करना, दोनों अलग बातें हैं |
मेरे पास कोई असाधारण करीबीयन समुद्र से निकलता कोई चमकता सा उपाय नहीं है, जो रोमांस के अंतर्गत उत्पीड़न की इस संस्कृति को, बिन सहमति के कामुक आदान प्रदान, और लोगों का डर, अस्वीकृति का बड़ा सा डर, इन सबको सुलझा सके | पर करीबियन संस्कृति ये न्योता भी देती है : दरियादिल हो | कुछ कहने से पहले सुनो | और नोंक झोंक करो | और दो | कम माँगे रखो | समय बनाओ, वक्त लगाओ, खेलने में, निर्णय लेने में | लुत्फ़ आएगा, और लुत्फ़ कई किस्म के होते हैं, हर एक सेक्स से जुड़ा नहीं होता | जहाँ तक मेरा सवाल है, मैं करीबीयन से अपने निर्वासन और असंतोष के ये मेरे लंबे अमरीकी जाड़े से अपने को बचाने के लिए ये घोषणा करती हूँ , कि मैं यहाँ पर हूँ आपकी त्तारीफें सुनने, आपकी तारीफें करने, एक व्यावसायिक सन्दर्भ के बाहर | लड़का / लड़की / इंसान, आप इतने समझदार हो, इतने खूबसूरत, और मैं भी |
आलिया ख़ान पढ़ाती हैं, लिखती हैं, मज़ेदार क़िस्से सुनाती हैं, मेक अप की पारखी हैं, और बड़े और छोटे सारे जंतुओं से प्यार करती हैं, अमरीकी मध्य पस्चिम में रहती हैं, और कई महाद्वीपों और शहरों में सपने देखती हैं |
अंजाम से आज़ाद इश्क़बाज़ी क्यों ज़रूरी है
ऐसी नोंक झोंक की परीकल्पना करो जो किसी एक सीधे से अंजाम या उपभोग्य अन्त की ओर ना प्रवृत हो |
लेखन : आलिया ख़ान
चित्रण : रम्या कनिबरण तेला
अनुवाद: हंसा थपलियाल
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