डॉक्टर (अध्यापक) राजन भोंसले बंबई के एक जाने माने यौन विशेषज्ञ तथा मूत्रविज्ञानी (urologist) हैं, जो ३० साल से भी ज़्यादा काम करते आ रहे हैं। वह एक परामर्शी यौन विशेषज्ञ, बंबई के KEM अस्पताल में यौन चिकित्सा के विभाग के प्रमुख और बंबई के G S मेडिकल कॉलेज में अध्यापक हैं।
भारतीय पुरुष अपने शिश्न की लंबाई को लेकर आसक्त हैं। आपको लगता होगा कि यौन विशेषज्ञ रहने के ३० साल बाद मुझे पूछे जाने दो सबसे आम सवाल - “क्या मैं मेरे शिश्न की लंबाई बढ़ा सकता हूँ?” और “किसी महिला को संतुष्ट करने के लिए क्या मेरा शिश्न लंबा होना ज़रूरी है?” - मुझे कम सुनने में आते होंगे। काश। पुरुषों को यह बताने के बाद भी कि उनके साथी को ख़ुश करने के लिए उन्हें लंबे शिश्न की ज़रूरत नहीं, लंबाई संबंधित सवाल थमने का नाम ही नहीं लेते।
इस प्रकार के मिथकों को तोड़ना मेरे यौन विशेषज्ञ बनने के कई कारणों में से एक था। जब मैंने १९९० के दशक में मेरी MBBS की डिग्री हासिल की, तब यौन विज्ञान में कोई विशेषज्ञता नहीं थी। चिकित्सीय शिक्षा में ‘यौन विज्ञान’ नामक कोई विषय तक नहीं था। लेकिन मेरे दोस्त और उसकी पत्नी के साथ हुई घटना के कारण मैंने इस विषय का अभ्यास करने की चुनौती स्वीकार कर ली।
मेरे नवविवाहित दोस्त और उसकी पत्नी की शादी की पहली रात एक भयानक सपने से कम न थी - सुबह होते ही उसकी पत्नी उसे ‘विक्रुत’ कहकर उससे दूर भाग गई। अगर देखा जाए तो मेरे दोस्त ने कोई अजीब क्रिया नहीं की थी। उसकी पत्नी का परिवार उसे बच्चे पैदा होने की प्रक्रिया बताना पूरी तरह से भूल गया था। हाँ, एक ‘आदर्श पत्नी’ बनने से संबंधित बाक़ी सभी बातें उसे बताई थीं (जैसे ख़ाना पकाना, सफ़ाई करना, बच्चों की देखभाल करना)। और चूँकि उसने पहले कभी किसी के साथ यौन संबंध नहीं रखे थे, उसके पती ने समय निकालकर उसे संभोग के बारे में विस्तार से बताया था। इसलिए उसके पती के साथ पहली रात ने उसे भयभीत रख छोड़ा था। उन दिनों इंटरनेट की पहुँच भी कम थी और संभोग के बारे में खुले आम बातचीत भी कम थी। तो, ऐसा सोचो - आपको संभोग के बारे में कुछ नहीं पता और आपकी शादी की पहली रात आप एक ऐसे पुरुष के साथ गुज़ार रहे हो जिसे आप जानते तक नहीं। और अचानक आपको यह कहा जाता है कि संभोग करने के लिए पूरी तरह नग्न होकर उस आदमी का शिश्न अपने योनी में घुसाना ज़रूरी है। किसे क्यों अचंभा होगा कि वह डर गई। लेकिन उसके डर से किसी ने हमदर्दी नहीं जताई।
तो, मैंने यौन विज्ञान का अभ्यास सिर्फ़ इसलिए करना चाहा ताकि संभोग से संबंधित बातचीत हम और खुले आम कर सकें।
जब भी मुझे मेरे दोस्त का मामला याद आता है, मैं सोचता हूँ कैसे उसका मसला काफ़ी हद तक साधारण परामर्श, यानी काउंसेलिंग, से हल हो सकता था। जिन मामलों को लोग ‘अजीब’ समझते हैं उन में यह बात और भी अहम हो जाती है।
मिसाल के तौर पर, मेरा एक मरीज़ था जो पॉराफ़िलिआ (paraphilia) से पीड़ित था, एक ऐसी अवस्था जिसमें कोई शख़्स असामान्य चीज़, व्यवहार और लोगों के बारे में ख़्वाब देखता है। यह मरीज़ सिर्फ़ पुरुषों के नक़ली बालों की विग की ओर आकर्षित था। उसके घर में रखे ऐसी विग को देखकर वह हस्तमैथुन करता था। मैं जानता हूँ, यह बहुत अजीब बात है। लेकिन १० से १२ साल की उम्र में वह अपने अंकल के बहुत क़रीब था जो उसके साथ रहने आए थे। उसके काम करने वाले माता पिता के लिए यह बहुत सुविधाजनक था। उसके अंकल उसे बहुत ध्यान देते। उसका विश्वास हासिल करने के बाद वे उसकी हाज़िरी में उस पर हस्तमैथुन करने लगे । इस पूरी घटना के बारे में उसे सिर्फ़ उसके अंकल की विग याद है। जैसे वह बड़ा हुआ, उसने संभोग को हमेशा विग के साथ जोड़ा और इस बात ने उसके मन में ठोस जगह बना ली। उसके मन में कामुकता को बालों की टोपी-विग- से अलग करने की मदद करने के लिए मुझे बहुत समय लगा। मैंने ऐसा इसलिए नहीं किया चूँकि उसकी वैसी सोच ‘विक्रुत’ थी, बल्कि इसलिए कि इस सोच से संबंधित उसके मन में लज्जा की भावनाएँ थीं। किसी मरीज़ को कामोत्तेजित करने वाली वस्तु (फेटिश) चाहे जितनी ही अजीब हो, उससे कोई आपत्ति नहीं जब तक उसका उस मरीज़ पर मानसिक असर या उसके इर्द गिर्द लोगों पर असर नहीं होता। अगर मैंने यह समझने के बजाय कि उसे वह फेटिश हुई, उसे ‘ठीक’ करने की कोशिश की होती, तो फिर वह ख़तरनाक बात होती।
इस मरीज़ को सलाह से बहुत मदद मिली, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि चिकित्सीय मदद उससे कम महत्त्वपूर्ण है। पिछले १० सालों में, चिकित्सा में ग़ज़ब की तरक़्क़ी हुई है - वायाग्रा और दूसरे कामुक उत्तेजकों से बहुत फ़र्क़ आया है। लेकिन मेरे यौन विशेषज्ञ के कार्यकाल में, यौन चिकित्सा में नई तरक़्क़ी होने के पहले, सलाह ही एकमात्र दवाई थी।
लेकिन इसका असर जहाँ अच्छा हो सकता है, वहीं बुरा भी हो सकता है । मेरे कार्यकाल के शुरू के दिनों में, सलाह देने के कुछ सेशन के बाद मैं बड़ी आसानी से किसी मरीज़ की परिस्थिति में मानसिक रूप से उलझ जाता था। एक समय मेरी एक मरीज़ थी जिसके पिता ने उसके साथ यौन दुर्व्यवहार किया था और इस कारण वह किसी के साथ यौन संबंध नहीं रख पाती थी। जब मैंने समझा कि उसे कितना गहरा घाव पहुँचा था इस जानकारी का मुझ पर बहुत मानसिक प्रभाव हुआ। मुझे ग़ुस्सा आया। और इस वजह से मैं कैसे काम करता था, उस पर भी असर हुआ। यौन दुर्व्यवहार और यौन संबंध से जुड़े हुए कलंक के कारण उसका मेरे पास सलाह के लिए आना भी एक बहुत बड़ी बात थी। वह दूसरे लोगों के साथ मामूली यौन संबंध रखना चाहती थी लेकिन उसके क्षतिज/ ट्रॉमेटिक अनुभव उसे ऐसा करने से रोक रहे थे। उस कलंक के कारण उसे यूँ लगने लगा कि ख़ुद के साथ यौन दुर्व्यवहार होने के बाद संभोग के बारे में सोचना भी ग़लत था।
और कलंक/लांछन ही मेरा मूल अभिशाप रहा है। पुरुषों में सबसे आम यौन समस्या - शीघ्रपतन - इस कलंक की भावना से प्रभावित है। मेरा एक मरीज़ उसके शीघ्रपतन की समस्या के बारे में बात करने में शर्माता था, चूँकि उसे लगता कि अगर वह किसी औरत को संतुष्ट नहीं कर सकता तो वह ‘असली मर्द’ नहीं था। इस प्रकार का सामाजिक अनुकूलन संभोग करते समय उत्कंठा भी पैदा कर सकता है, जैसे मेरे मरीज़ के साथ हुआ।
अगर शीघ्रपतन जैसी मामूली समस्या पर कलंक/लांछन का इतना बड़ा प्रभाव है, तो सोचिए कि यौन संचारित रोगों से पीड़ित लोगों पर उसका क्या असर होगा। नियमित संभोग करने वाले पुरुष ख़ुद का परीक्षण कराना टाल देते हैं इस डर से कि उन्हें पता चलेगा कि उन्हें यौन संचारित रोग है या नहीं। मेरे एक मरीज़ को यौन संचारित रोग इसलिए हुआ चूँकि उसकी जांघों पर चकत्ते होने के बावजूद उसने ख़ुद का परीक्षण नहीं करवाया। उसे बहुत दर्द होने के बाद ही वह मुझे मिलने आया, उसके सार्वत्रिक चिकित्सक/ जनरल प्रैक्टिशनर (general practitioner) की सलाह पर। कुछ परीक्षण करने के बाद हमें पता चला कि वह महीनों से प्रमेह/ गोनोरहीआ से पीड़ित था, उसके बारे में कुछ किए बिना।
यौन संचारित रोगों के मामलों में और भी संवेदनशील होना ज़रूरी है, चूँकि मरीज़ उन रोगों का ख़ुद पर बहुत ज़्यादा असर होने देते हैं। वही संवेदनशीलता विपरीतलिंगी/ ट्रांसजेंडर लोगों का उपचार करते समय दिखानी चाहिए। पिछले साल, एक विपरीतलिंगी/ ट्रांसजेंडर मरीज़ ख़ुद को औरत समझने के बाद मुझे मिली। उसे लगा कि वह दूसरी औरतों की ओर आकर्षित होगी चूँकि उसका मानना था कि ‘विपरीतलिंगी लोग समलैंगिक ही होते हैं’। इसका उस पर मानसिक असर हुआ। वह एक LGBTQ के अधिकारों की सक्रिय प्रतिभागी है और मुझे आश्चर्य हुआ कि उसने कितनी आसानी से यह झूठी बात मान ली थी। मुझे उसे समझाना पड़ा कि कैसे विपरीतलिंगी होना और समलैंगिक होना दोनो एक से नहीं हैं। लैंगिक-रुझान का मतलब है कैसे कोई जैविक रूप से सोचता है, जबकि लिंग वह होता है जिसकी ओर कोई मनोवैज्ञानिक दृष्टि से आत्मीयता महसूस करता है।
सभी लिंगों को देखा जाए, तो एक बात मेरे ध्यान में आयी कि कैसे किसी औरत की काम वासना को मर्द की वासना से कम महत्त्व दिया जाता है। भारत के गाँव में मेरे काम से, और खासकर गुवाहाटी के आस पास के गावों के मेरे पिछले दौरे से मुझे इस बात पर बहुत जानकारी मिली कि पुरुष यौन संबंध को किस नज़रिए से देखते हैं। मैंने भारत भर के गाँवों में यौन जागरूकता के शिविर चलाए हैं और जो बात बहुत साफ़ दिखाई देती है वह यह कि जन्म देने की ज़िम्मेदारी ज़्यादातर औरतों पर डाली जाती है। पुरुष मेरी सलाह लेने से इसलिए झिझकते थे कि उन्हें यह नहीं जानना था कि संभवतः वह बॉँझ हैं। उसके बजाय वह अपनी पत्नियों को भेजते थे। औरतों पर बच्चे पैदा करने का पूरा भार डाल देना, यह बात शहरों में भी बहुत आम है। मर्दानगी की समस्या बहुत कड़ी है।
इस कारण एक आम मिथक बनता है जो मुझे लगातार तोड़ना पड़ता है, वह यह कि सिर्फ़ पुरुष ही यौन विशेषज्ञ की सलाह ले सकते हैं चूँकि औरतें स्त्रीरोग विशेषज्ञों के पास जाती हैं। मेरे पास महिलाओं से ज़्यादा पुरुष आते हैं, लेकिन महिलाओं को केवल स्त्रीरोग विशेषज्ञों के पास जाने के लिए प्रोत्साहन देना, यह ग़लत होगा। अगर एक विषमलिंगी जोड़ा बच्चा पैदा करने की कोशिश में है और वह महिला स्त्रीरोग विशेषज्ञ से मिलती है, तो उसे ढेर सारे परीक्षण करने के लिए कहा जाता है, उसे यह कहे बिना कि उसे अपने साथी के साथ उसके उपजाऊपन के बारे में बात करनी चाहिए। अनुपजाऊता के मामलों में मेरी स्त्री मरीज़ो को मेरा पहला प्रश्न होता है - “क्या आपके जोड़ीदार ने उसके वीर्य का परीक्षण किया है?” स्त्रीरोग विशेषज्ञ सिर्फ़ किसी औरत की शारीरिक और यौन ज़िंदगी में दैहिक समस्याओं के आधार पर नुस्ख़े लिखेगी। पर एक यौन विशेषज्ञ औरतों की कई सारी समस्याओं पर पूर्णतावादी दृष्टि डाल सकता /सकती है।
लेकिन संपूर्ण रूप से किसी मुद्दे पर दृष्टि डालना मनोवैज्ञानिक समस्याओं तक सीमित नहीं है। उस में लोगों ने ग़लत तरीके से किए हुए ख़ुद के रोगनिदान के दुष्प्रभाव का निवारण भी शामिल है। जैसे वह लोग जो WebMD पर लॉग ऑन करते हैं और उन्हें लगता है कि उन्हें कोई यौन संचारित रोग हुआ है या वह गर्भवती हैं और कठोर उपाय लेते हैं? हाँ, मुझे मिलने ऐसे कई मरीज़ आए हैं। टिंडर जैसे डेटिंग ऍप के आने के बाद, संभोग और रोमांचक तो हुआ ही है, और आग्रहपूर्ण भी। लेकिन लोग जानकारी के लिए इंटरनेट पर बहुत निर्भर हैं। इंटरनेट एक छूरी जैसा है - अगर उसका बराबर से इस्तेमाल किया जाए तो वह बड़ी काम की चीज़ है। लेकिन स्वयं का रोगनिदान करना, ख़ासकर संभोग से जुड़ी समस्याओं के लिए, ख़तरनाक हो सकता है। और सिर्फ़ नौजवान ही नहीं, मेरे कई प्रौढ़ मरीज़ भी ख़ुद का ग़लत रोगनिदान करते हैं। यह इसलिए कि वह यौन संबंधी समस्याओं से जुड़े कलंक से डरते हैं, इतना कि वह डॉक्टर से भी नहीं मिलते।
आजकल डॉक्टर की सलाह लेना और आसान हुआ है। लेकिन कलंक के डर से और एक ऐसी संस्कृति के होने से जो संकट आने पर ही निदान ढूँढती है, संभोग करने वाले लोग अब भी यौन विशेषज्ञों की सलाह नहीं लेते, ऐसी सलाह जो उन्हें अपने शरीर और यौन ज़िंदगी के बारे में जानकार निर्णय लेने में मदद कर सकती है। कई तजुर्बेदार लोगों के भी संभोग के बारे में मूल प्रश्न होते हैं। बंबई में रहने वाले एक जोड़ी ने मेरी सलाह मांगी चूँकि कई बार संभोग करने के बाद भी वह कामोन्माद नहीं महसूस कर पा रहे थे। यह बात तो निश्चित नहीं कि प्रवेशक संभोग के ज़रिये कामोन्माद होना ही है। लेकिन यह बात भी सामने आयी कि प्रवेशक संभोग कैसा होता है यह उन्हें पता नहीं था। उन्हें यह नहीं पता था कि मूत्रमार्ग का छेद (जहां से औरत पेशाब करती है) योनि (वह छेद जो प्रवेशक संभोग में इस्तेमाल किया जाता है) से अलग होता है। उन्हें लगा कि योनी एक बड़ी, बहु उद्देशीय छेद होती है। वह आदमी मूत्रमार्ग के छेद में प्रवेश करने की कोशिश कर रहा था, जिससे उस औरत को बहुत दर्द हुआ और दोनों को बिलकुल भी मज़ा नहीं आया।
ऐसी आम मान्यता भी है कि औरतें सिर्फ़ योनी के संभोग से कामोन्माद महसूस करती हैं या यह भी कि औरतें आसानी से कामोन्माद महसूस करती हैं। यह सच नहीं। इस जोड़ी की तरह, कई मरीज़ इस बात से उलझा जाते हैं कि कैसे योनी के संभोग से औरतें कामोन्माद महसूस नहीं करतीं। आम जनता में इस बात की जागरूकता की कमी है कि यौन सुख किन विभिन्न तरीकों से पाया जा सकता है - योनी के संभोग के अलावा उत्तेजना के अलग प्रकार जिनसे हम कामोन्माद महसूस कर सकते हैं। (यहाँ भी, कोई औरत कामोन्माद महसूस करेगी यह निश्चित नहीं। कुछ मर्दों को यह समझाना कठिन हो जाता है कि कामोन्माद महसूस करने के लिए व्यक्तिपरक, निरंतर प्रयत्न करने होते हैं। ऐसा नहीं कि किसी आदमी ने बटन दबाया और पूफ - कामोन्माद हुआ!)
लोग मुझे ऐसे सवाल मेरे काम के बाहर भी पूछते हैं, और इन सवालों का जवाब न देना कठिन हो जाता है। जवाब देने के लिए मैं प्रेरित होता हूँ लेकिन कुछ देर बाद मैं ख़ुद को रोकता हूँ। यह काम मेरी रोज़ी रोटी है। क्या ऐसा सोचना ग़लत है कि और गहरे सवालों के जवाबों के लिए मुझे पैसे मिलने चाहिए?
चूँकि गहरी बातें आमने सामने ही की जा सकती हैं। इंटरनेट और मीडिया के प्रभाव के बावजूद, जोड़े, और ख़ासकर पुरुष, बच्चों के बुनियादी यौन शिक्षण पर ध्यान नहीं देते। माता पिता अपने बच्चों को कभी बिठाकर समझाते नहीं कि यौवन में उनके शरीर में क्या बदलाव आते हैं, इसलिए नौजवान बड़े होकर यौन संबंध और कामुकता के बारे में बातों के अनजान होते हैं। इस कारण जब वह संभोग करने लगते हैं, तब वह अपने दोस्तों की (या पॉर्न की) सहायता लेते हैं, जिनके पास, उन्हीं की तरह, अचूक जानकारी नहीं होती।
अध्यापक के रूप में, मैं जवान लोगों के साथ लगातार बात करते रहता हूँ। आज कल के नौजवानों के पास जानकारी तो बहुत होती है, लेकिन मार्गदर्शन के बिना यह जानकारी मिलना उन्हें गड़बड़ा कर लोगों से अलग कर सकती है। ख़ासकर अगर वह जो भावुक और लैंगिक रूप से महसूस कर रहें हैं कि वह किसी पारंपरिक ढाँचे में नहीं बैठ रहे। तो इसलिए यह मेरा उत्तरदायित्व बनता है उन्हें सही जानकारी देने के साथ साथ उन्हें उनका लैंगिक दृष्टिकोण सुधारने में मदद करूँ - ताकि वह ख़ुद को बेहतर नज़रों से देख सकें।
मैं चाहता था कि लोग संभोग से संबंधित बातें खुलकर कर सकें, सो मैं यौन विशेषज्ञ बन गया
Stigma has been my prime nemesis.
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