यह बात कि मैं द्विलिंगी था, मुझे तब पता चली जब मैं संगीत कार्यक्रमों के एक लंबे दौरे पर था। हमारी टोली के एक आदमी के साथ मेरा थोड़े समय के लिए रिश्ता रहा। कुछ साल पहले ही मैं ३० साल का हुआ था। मुझे शुरू में यह समझ ना आया कि मैं उसकी ओर आकर्षित था और ना ही मैं यह पहचान सका कि वह रिश्ता जज़्बाती है या रूमानी या कामुक। वह शरू हुआ एक सुरक्षित, आरामदेह परिस्थिति में, एक अनपेक्षित लगाव और एक ख़ास आत्मीयता के साथ, भले ही वह आत्मीयता कुछ अंजानी सी क्यों ना थी। उस आदमी में करुणा, बुद्धि और समझ है। कमरे देने की योजना कुछ ऐसी रही, कि हम रूम मेट्स रहे, हर उस शहर में जहां हमने दौरा किया। हमारे कमरे में बीती चंद सुबह मुझे याद हैं जब मैं लैपटॉप पर काम ख़त्म करता रहता और वह बिस्तर पर बैठे ध्यान कर रहा होता। हमारा सहवास और भाईचारा दोनों सरल थे। उसकी उपस्थिति मुझे स्थिरता दिलाती। मैं उससे ज़्यादा बहिर्मुखी था। कुछ रातें , मैं हमारे अभिनेता और अन्य सहकर्मियों के साथ रंगरलियाँ मनाकर लौटता और उसे क़िताब पढ़ते हुए बिस्तर में पाता। हम बातचीत के बाद दिन का ख़ात्मा करते और अपने बिस्तरों पर सो जाते। वह विचारशील, सचेत और दिलचस्प था। उसकी संगत में मुझे लगता मैं भी ख़ास हूँ, अपनी पूर्व पत्नी से अलग होने के बाद के अंतराल में मैं यह अहसास भूल चुका था। हम दोनों में एक मित्रता पनपी। और शायद तीसरे शहर पहुँचने तक, हमारे बिस्तर एक हो चुके थे।
मुझे तब पता चला कि मैं मर्दों के साथ संभोग कर सकता था।
अब वह कहानी सुनाता हूँ, तो सुनने वाले को लग सकता है कि वह बात बड़े तर्कसंगत रूप से हुई। सच कहूँ तो वैसे नहीं था। सिर्फ यह कि उस अहसास में बह जाना काफ़ी आसान रहा। कोई ऐसे बड़े सवाल नहीं खड़े हुए कि ऐसा करने से मुझे अपने बारे में क्या सोचना चाहिए, या दूसरों को, यह भी नहीं कि ऐसा करने से मैं अब क्या बन गया हूँ या मेरी पहचान कैसे बदल गई है। जिस टोली के साथ हम काम करते हुए शहर शहर घूम रहे थे, उसने भी हमें छूट दी कि हम खुलेआम अपनी भावनाओं को और जो कुछ हो रहा है, उसपर अपना आश्चर्य, ख़ुशी और उत्तेजनाएं व्यक्त कर सकें। हमारे घर से दूर रहना भी हमारे काम आया। लेकिन, जिस उत्सुकता के साथ हमारे इर्द गिर्द सभी लोगों ने हमारे इस करनी को साहसिक मानकर सराहा, उसका भी मैं अब आभारी हूँ। उस समय, सब कुछ हर पल एक अजूबे जैसे था, जो चुटकुलों, हंसी मज़ाक और नए रिवाज़ो से भरा हुआ था, ना ख़त्म होने वाले आपसी मनोरंजन के साथ।
शायद, जब संभोग हुआ तब मैं और जवान होता, तो मुझे निश्चित रूप से पता चल जाता कि मैं मर्दों की ओर कामुक रूप से आकर्षित हूँ, लेकिन ऐसा हुआ ही नहीं। जैसी औरतों के साथ थी वैसी मेरी मर्दों के साथ गहरी दोस्ती थी, और तब तक, वह उस ही गहरी दोस्ती के दायरे में रही थी। किसी मर्द के साथ कुछ करने की मुझे कामुक उत्सुकता कभी नहीं थी। या शायद वैसा मौका ही नहीं पैदा हुआ।
शुरुआत में जो रिश्ते बने वे सब औरतों के साथ थे। और जब मैं किसी रिश्ते में था, तो मेरा मन उसी में लगा रहा। २० साल के पूरे दशक में मैं सिर्फ़ एक औरत के साथ रिश्ते में रहा और २९ साल की उम्र में हमने शादी की। डेढ़ साल के अंदर, हमारी शादी टूट गई, लेकिन इसका ताल्लुक़ मेरे कामुक रुझान के साथ बिलकुल नहीं था। असल में, किसी मर्द के साथ मेरा पहला रिश्ता मेरी पत्नी से अलग होने के शायद ४ या ५ साल बाद हुआ। अब मैं ४०/४५ साल का हूँ, भारत के एक बड़े शहर में रहता हूँ और एक रचनात्मक क्षेत्र में काम करता हूँ। अब मेरा एक आदमी के साथ रिश्ता है जिसके साथ मैं सहवास भी कर रहा हूँ।
मैंने अपनी कामुकता को कैसे पाया
मैंने माना कि किसी मर्द के साथ मेरे पहले अनुभव के बाद मेरा कामुक रुझान बदल गया है। मैंने सोचा चलो अब गे बन गए हैं। और जब मैं खुलेआम ‘गे’/ समलैंगिक बना, मेरे पुराने दोस्त और साथी उत्सुक थे। तो, वह पूरा समय कह रहे थे, ‘चलो, अब आतिश गे है। वह किस मर्द के साथ है?’ इत्यादि इत्यादि।
किसी मर्द के साथ मेरे दूसरे रिश्ते के बाद मैं एक ऑस्ट्रेलियाई कलाकार से मिला - एक महिला - और हम प्रेमी बने। मैंने समझा, कि चलो ठीक है, मैं अब भी औरतों की ओर आकर्षित हूँ। मैं ख़ुद को द्विलिंगी नहीं समझता था। मुझे नहीं लगता उस समय वह शब्द बहुत प्रचलित था। मैं किसी द्विलिंगी शख़्स से मिला भी नहीं था।
वह घटना होने तक, ३० से ३५ साल की उम्र में, मेरे रिश्ते, मेरी कल्पना को जो जब भाता, उसका परिणाम होते थे। किसी दूसरी बात के लिए जगह नहीं बचती। वह ऐसी स्थिति नहीं थी जहां मेरे एंटेन्ने सक्रिय थे और मैं सभी लोगों से मिलने वाले इशारों और वाइब्स को प्रत्युत्तर दे रहा था। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से मैं उस क़िस्म का व्यक्ति था जो किसी स्थिति के शुरू होने पर, उसके अंदर रहकर सोचता। तो, जब मर्दों की ओर के आकर्षण का काल शुरू हुआ, तो एक तरह से वह मेरी ज़िंदगी पर हावी हो गया। इसलिए जब मैं उस ऑस्ट्रेलियाई औरत की ओर आकर्षित हुआ, जो आगे चलकर मेरी प्रेमिका भी बनी, मैं फ़िर से चकित रह गया।
मेरी मर्दानगी पर उसका कैसे असर हुआ
मर्दानगी और उसके मुख़ालिफ़ ऐसा कुछ जो उतना मरदाना नहीं है, इस बात का भान मुझे तब हुआ जब मैंने अपने अंदर के इस दूसरे पहलू को ढूंढ़ निकाला। मर्दानगी के इस प्रश्न पर मैं विचार सिर्फ़ तब करने लगा जब मैं एक प्रकार से ‘गे’ बन गया।
और यह सब मेरी ज़िंदगी में इतनी देरी से हुआ कि इन सब बातों का मेरे स्व पर किसी महत्त्वपूर्ण तरीके से असर नहीं हुआ। इसका मतलब यह नहीं कि मैं चिंतित नहीं था या कि यह बातें मेरी चर्चाओं का हिस्सा ना रहीं, पर यह सब एक सतही रूप से ही मुझ पर असर कर पाया। मुझे याद है, शुरू में मेरा एक दोस्त यह हठ करता था कि दूसरे मर्दों की ओर मेरी चाह दर्शाने के लिए मैं और रंगीन कपड़े पहनूँ। मुझे हरदम सफ़ेद कपड़े अच्छे लगे हैं, कभी कभार मैं काले कपड़े पहनता हूँ, लेकिन मेरी अलमारी में बहुत रंगीन कपड़े रखना मुझे पसंद नहीं। लेकिन यह बात सच है कि मर्दों के साथ समय गुज़ारने से मैं कसरत पर और ध्यान देने लगा हूँ। मैंने यह जाना है कि गे मर्द दूसरे मर्दों की तुलना में शरीर पर कहीं ज़्यादा ध्यान देते हैं और मैं मेरे दिखावे पर और ध्यान देने लगा हूँ।
तरफदारी से ज़्यादा स्वीकृति थी
आख़िरकार मैंने ख़ुद को गे या नहीं या द्विलिंगी कहना बंद कर दिया। अगर कोई मुझे पूछता, तो मैं सिर्फ़ यह कहता कि मैं एक मर्द या एक औरत के साथ हूँ। मेरे तजुर्बे में गे मर्द द्विलिंगी लोगों को बड़ी शंका की नज़रों से देखते हैं। सामाजिक रूप से, विषमलिंगकामी दुनिया में पेश आना मेरे लिए और आसान रहा है। जिस क़िस्म का पक्षपात मुझे झेलना पड़ा है वह गे लोगों की ओर से आया है और सबसे ज़्यादा स्वीकृति और कोमलता मुझे मेरे विषमलिंगकामी मित्रों से मिली है।
एक समय, मैंने एक लड़के के साथ रिश्ता शुरू किया और हम दोनों के एक परस्पर मित्र ने उसे चेतावनी दी, “तुम्हें पता है ना, आतिश कभी यूं होता है तो कभी त्यों, तो बस होशियार रहना।” जबकि उसके मन में मेरे उस समय के साथी की भलाई रही होगी, उस समय मैं हमारी ज़िंदगी के इस नए मोड़ की घोषणा पर ऐसी प्रतिक्रिया देने से चिढ़ गया था।
मेरे ख़्याल से लोगों को यह छुपाई हुई वास्तविकता बतानी कि मैं विषमलैंगिक ही नहीं, पर साथ साथ समलैंगिक भी हूँ इससे संबंधित सोच मैंने सिर्फ़ उन फिल्मों के ज़रिये की या उन लोगों के ज़रिये की जिन्हें मैं मेरे दूसरे बॉयफ्रेंड के कारण मिला, जो एक एक्टिविस्ट था। इस विश्व में अपनी जगह क्या है- इसकी समझ के लिए अपनी कामुकता कितनी महत्तवपूर्ण बन सकती है इस बात को समझने के लिए उस समय मैंने बहुत सीख पाई। उन दिनों हमारे पास ऐसी बातों के इज़हार के लिए शब्द ही नहीं थे। मुझे यह बात समझ में आई कि अपनी द्विलैंगिकता का सामना करने के वृत्तांत में मैं भाग्यवान रहा हूँ।
जब वह बातें हो रही थीं, हम सफ़र कर रहे थे, हम भारत के बाहर थे। इस संगीत कार्यक्रम की पूरी टोली के साथ हम एक छोटे से बुदबुदे में थे, विदेश के अलग देशों के कुछ शहरों का दौरा करते हुए। हमें प्यार और स्वीकृति भरकर मिले, और साथ साथ उस समूह ने हमारा मज़ाक भी उड़ाया और हमारे बारे में जिज्ञासा भी थी, लेकिन कभी हमारी अवहेलना नहीं हुई। तो, एक तरह से, जैसे जब बच्चों को बहुत प्यार दिया जाता है, वे बड़े होकर साहसी प्रौढ़ बन जाते हैं, उसी तरह, मुझे लगता है कि अगर मेरे इर्द गिर्द के लोग विचित्र रूप से पेश आए होते, तो शायद इस परिस्थिति को मैं भी अलग तरीके से देखता। लेकिन मैं शुक्रगुज़ार हूँ कि मुझे कोई कठिन तमाशों से गुज़रना नहीं पड़ा। मुझे पता चला कि समाज की मुख्य विचारधाराओं से अलग कामुकता होना कैसा होता है, लेकिन उस कारण मैं किसी तरह से परेशान नहीं हुआ।
मर्दों और औरतों के साथ रिश्तों के परिचालन फ़र्क है
अगर कोई फ़र्क है, तो वह है रिश्तों के विकसन में। मैं एक ऐसे विश्व में पला बढ़ा जहां मर्दों और औरतों को लेकर और उन्होंने कैसा बर्ताव करना चाहिए उसके बारे में नियम रहे हैं और मैंने २० से ३० साल इन नियमों को एक दूसरे के कारण बदलते हुए देखा है। अधिकतर लोगों के लिए, चाहे वह ख़ुद को गे, विषमलिंगकामी या द्विलिंगी कहलाते हैं, मुझे लगता है वही नियम उनके रिश्तों में भी देखे जाते हैं। परिचालन में कुछ फ़र्क हो सकते हैं, लेकिन किसी व्यक्ति के साथ रिश्ता बनाना, मैं व्यक्तिगत रूप से, व्यावसायिक तौर पर और आध्यात्मिक रूप से किस स्थिति में रहा हूँ, उस पर निर्भर रहा है।
औरतों के साथ और असल, खरा हो पाना संभव रहा है, अपने असुरक्षित, वेदनीय रूप को सामने रख पाना, जो कुछ औरतों को आकर्षक भी लगा है। मर्दों के साथ, मुझे लगा है कि किसी मर्द की ओर प्रेम जताने के लिए मुझे और ‘मरदाना’ पेश आना पड़ता है। जबकि मेरे खुलेपन के कारण, चाहे मैं जिस किसी के साथ रहा हूँ, मुझे चाहत मिली है, किसी मर्द के साथ अतिसंवेदनशीलता कई बार कमज़ोरी समझी गई है। मर्दों को वह बात ख़ुद में या दूसरों में पसंद नहीं। चाहे हम जिस किसी के भी साथ संभोग क्यों ना करें, जिन लैंगिक ढांचों के इर्द गिर्द हम पले बढ़े हैं हम शायद वही निभाते हैं। इस बारे में मैं कहूंगा कि मेरी लैंगिकता ने मुझे ज़िंदगी को उसकी नज़र से देखने की मदद करने से ज़्यादा ख़ुद के बारे में आत्मविश्लेषण करने की मदद की है।
कुछ गे मर्द जिनके साथ मैं रहा हूँ वह अपनी मर्दानगी के बारे में या मर्दानगी की उनकी कथित धारणा में उनकी जगह क्या है, इसके बारे में बहुत सचेत रहे हैं। वह जितना अपेक्षित था उससे कम तरल रहे हैं।
औरतों के संग, मुझे लगता है, मैं फ़ौरन परवरिश करने के किरदार में मज़बूरन चला जाता हूँ, कभी कभार मेरी अपनी ज़रूरतों को नज़रअंदाज़ करते हुए, जिस कारण बाद में रिश्ते में कठिनाई पैदा होती है। मेरे ख़ुद के तजुर्बे में, मेरे ख़्याल से यह कहना बराबर होगा, कि किसी औरत के साथ रहना, मुझमें उस शख़्स की देखभाल करने की चाहत जगाता है। यह बात दूसरे शख़्स का दम घोंट सकती है, और मैं ढीठ पेश आ सकता हूँ। लेकिन जब मैं औरतों के साथ रहा हूँ तब ऐसा कुछ करना जिससे उन्हें अच्छा लगे, यह करने की चाह मेरी पहली प्रतिक्रिया रही है।
मर्दों के मामले में, बात कई मोड़ ले सकती है, जो दूसरा मर्द कौन है, आप दोनों में रिश्ता कैसा है, और आप रूमानी स्थिति में कैसे पेश आते हो, इन सब पर निर्भर है। मर्दों के संग मेरा आत्मविश्वास कम होता है। यह शायद उस असमंजस से आता है कि मुझे किसी मर्द की संगत में आख़िर कैसे बनके रहना चाहिए। यह बात मुझे बराबर से समझ नहीं आई है। अगर बात बनती है या ऐसे लगता है कि बनेगी, तो मैं शुक्रगुज़ार हो जाता हूँ। चलो, सब अच्छा चल रहा है, किसी तरह हम दोनों की ऊर्जाएं संतुलित हैं, और बात बन रही है। लेकिन मैं जब किसी औरत के साथ रहता हूँ, मुझे लगता है कि मुझे पता है कि मैं क्या कर रहा हूँ, मुझे क्या करना है और उस प्रकार दूसरे शख़्स को भी मुझे जानना और आसान हो जाता है। उनको यह समझ पाना और आसान हो जाता है कि उन्हें मेरी संगत पसंद है या नहीं, और उस स्थिति में क्या बदलना चाहिए।
मज़ा दोनों के साथ है लेकिन मर्दों के साथ का संभोग अक्सर तरल नहीं होता
देखा जाए तो मर्दों और औरतों के साथ का संभोग बहुत अलग है, लेकिन संवेदना में फ़र्क शब्दों में बयान करना मुश्किल है। दोनों मज़ेदार हैं। मर्दों के साथ, संभोग शायद और अनौपचारिक है। वह इलाक़ा और जाना पहचाना है। उस घटना को कम महत्त्व दिया जाता है। बहुत कम बार होता है कि मर्दों के संभोग के किरदार तरल हो जाते हों। लेकिन, जबकि आपको लगता होगा कि चूँकि दोनों मर्द का शारीरिक रूप से घनिष्ट परिचय है, इसलिए दोनों किरदारों को एक सामान क्रियाशीलता प्रदान होगी, ऐसा बिलकुल नहीं है। किरदार अक्सर स्पष्ट रूप से परिभाषित होते हैं। लेकिन जब ऐसा नहीं होता, तब तो तजुर्बे में और मज़ा आता है। औरतों के साथ, पहले से निर्धारित सोच होती है, लेकिन उसके भीतर बहुत सारी संभावनाएं भी खुली होती हैं। पहले से निर्धारित सोच अक्सर ‘फूल और माली’ वाली होती है। मैं पाता हूँ कि क़रीब क़रीब हर बार मैं माली का किरदार निभाता हूँ। जब मैंने एक मर्द के साथ संभोग किया तब मुझे पहली बार यह बात पता चली। अचानक मैं फूल बन गया था। मुझे यह बहुत पसंद आया।
मैं जिसके साथ हूँ और उस समय हम दोनों में ऊर्जा कैसी है, उसके अनुसार मैं अक्सर अपने को बदला हुआ पाता हूँ। जब मैं मेरे अधिकार कम जताता हूँ, तो उस बात से कुछ मर्द नाखुश रहें हैं। मर्दों ने कम, औरतों ने मेरे नुक़्स के साथ मुझे ज़्यादा आकर्षक पाया है।
किसी एक वक़्त पर एक शख़्स के साथ रिश्ते में रहने का मुझे पर्याय नहीं मिला है
अगर आप द्विलिंगी हो, तो लोग समझते हैं कि आप एक से ज़्यादा लोगों के साथ रिश्ता निभा रहे होंगे। द्विलिंगी होते हुए अगर आप एक समय पर बस एक शख़्स के साथ रिश्ते में हो, यानि मोनोगैमस हो, तो आपको उसका बखान करना पड़ता है। क्योंकि आग्रही ना होते हुए भी लोग आपकी ओर पहल करेंगे। किसी शख़्स की गर्लफ्रेंड या पत्नी पर लाइन मारना सही नहीं समझा जाता लेकिन किसी के बॉयफ्रेंड पर वैसे करना अब भी अलग नज़र से समझा जाता है।
वैचारिक रूप से, किसी एक समय पर बस एक शख़्स के साथ रिश्ते में रहना, मुझे यह अपने ऊपर लादी हुई बात लगती है। इसके बावजूद, मुझे लंबे अरसों तक एक शख़्स के संग रहने का तजुर्बा है। जबकि साधारण तौर पर, मुझे लगता है कि अच्छा होगा अगर मनुष्य एक ऐसी व्यवस्था ढूंढ़ निकालें जो उन्हें एक समय एक शख़्स के साथ रहने के ढांचे से मुक्त कर डालें, पर मैं यह भी मानता हूँ कि मैं अब तक वह व्यवस्था ढूंढ़ नहीं पाया हूँ। इसलिए, किसी एक समय अनेक लोगों के प्रति आकर्षित होने के बावजूद, मैं एक ही शख़्स के साथ रहता हूँ।
आपको क्या ज़रुरत है वह मुख्यतः कारण बनता है दूसरे लोगों से संबंध बनाने का। तो, मेरे लिए क़रीब क़रीब हर बार बात इस बारे में रही है कि अलग अलग समय पर मेरी कौनसी ज़रूरतें पूरी हुई हैं। आख़िरकार, मेरे लिए, सामने वाला शख़्स और वह मुझमें क्या भावना जगाता है, यह मायने रखता है। और फ़िर आता है वह दुर्लभ मौका जब वह दूसरा शख़्स आपकी कल्पनाशक्ति को पूरी तरह से छू लेता है। फ़िर बात उनके बारे में बन जाती है और यह भावना मुझे जहाँकहीं ले जाती है, मैं ख़ुशी ख़ुशी जाता हूँ।
आतिश बसु कभी कभार प्रदर्शन कलाओं में रूचि रखते हैं और भारत के एक महानगर में रचनात्मक क्षेत्र में काम करते हैं।
मैं मर्दों के साथ भी संभोग कर सकता हूँ, यह मुझे ३० साल की उम्र के बाद ही पता चला
देखा जाए तो मर्दों और औरतों के साथ का संभोग बहुत अलग है, लेकिन संवेदना में फ़र्क शब्दों में बयान करना मुश्किल है।
लेखन : आतिश बसु
चित्रण: अखिला कृष्णन
अनुवाद: मिहीर सासवडकर
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