शुरू करने से पहले पाठकों के लिए ये जानना ज़रूरी है कि यहाँ 'खुलकर बाहर आने' का इस्तेमाल अपने लैंगिक अनुस्थिति का साफ साफ ज़िक्र करने के सन्दर्भ में किया गया है।
मुझे अपने बारे में बताने दीजिये, वैसे जैसे मैं जब पहली बार किसी से मिलता हूँ तो बताता हूँ। मैं एक 23 वर्षीय (अपनी पहचान काफी हद तक छुपाने वाला) समलैंगिक व्यक्ति हूँ, जो उस भारत में रहता है जो आज भी होमोसेक्सयूआलिटी के फोबिया से ग्रसित है। हाँ ये सच है कि मैं ये सब कम लोगों को बताता हूँ, और शुरू-शुरू में तो हरगिज़ नहीं बताता हूँ कि मैं समलैंगिक हूँ।
मैं अपने जीवन यापन के लिए सेक्स के बारे में लिखता हूं - मतलब कि मैं एक पत्रकार हूँ जो विभिन्न प्रकाशनों और ब्लॉगों के लिए सेक्स और यौन स्वास्थ्य से संबंधित विषयों पर लिखता है। आप जानते हैं ये कैसा होता है, हम खुद से ज्यादा किसी और के सेक्स जीवन के बारे में बात करते हैं। जब मैं लोगों को बताता हूँ कि मैं क्या काम करता हूँ, तो कुछ लोग सोचते हैं कि मैं पोर्न लिखता हूँ। कुछ लोग सोचते हैं कि मैं विकृत प्राणी हूँ। मुझे लगता है कि मिथकों और प्रतिबंधों को दूर करने और एक स्वस्थ समाज बनाने की ओर ये मेरा प्रयास है। पर कई मरतबा लोगों की सोच का कारण सेक्स को लेकर उनकी अपनी उलझनें हैं। इस पर अगर आप विषमलैंगिक यौन संबंधों के अतिरिक्त किसी भी किस्म के यौन सम्बंध का जिक्र करते हैं, तो लोगों की ये उलझनें बढ़ जातीं हैं।
ज्यादातर अन्य समलैंगिक लोगों की तरह जो खुलकर बाहर आना चाहते हैं, मैंने भी अलग-अलग लोगों को अलग-अलग समय पर अपने समलैंगिक होने की बात बताई है। सच कहूँ तो खुलकर ‘बाहर आना’, ( अपने लैंगिक अनुस्थिति का साफ साफ ज़िक्र करना) सिर्फ एक प्रक्रिया नहीं रही है, यह एक एहसास रहा है। मेरे लिए, यह एक भावना है, एक रोमांचक भावना या फिर एक रोमांचक परिवर्तन जिसके द्वारा मैंने अपने आपको अपनाया है और ऐसा करके अच्छा महसूस किया है। एक एल.जी.बी.टी.क्यू+ (LGBTQ) व्यक्ति को बाहर आने की ज़रूरत नहीं है - वे अपने जीवन को गुप्तता में जी सकते हैं और आप कभी पता भी नहीं लगा पायेंगे कि उसके चेहरे के पीछे क्या है। कई लोगों को यह समझ में भी नहीं आता है कि ये कोई बड़ी बात है, लेकिन मुझे लगता है कि यह महत्वपूर्ण है क्योंकि हर कोई सामान्य रूप से ये मानता है कि हर इंसान विषमलैंगिक होता है। मेरा मानना है कि बाहर आना और उस खतरनाक धारणा को गलत साबित करना महत्वपूर्ण है। अपने आप के लिए, अपने आत्म-आश्वासन के लिए, खुलकर बाहर आना ज़रूरी है। वो अनुभव जो मुझे हर बार खुलकर बात करने में महसूस हुआ, अनन्य था। वो ऐसा था जैसे मैंने किसी को अपना सच्चा चेहरा दिखाया हो, मेरा सम्पूर्ण व्यक्तित्व, मेरा वास्तविक जीवन और मेरी सही पहचान।
इस प्रक्रिया के दौरान मैंने दूसरों के बारे में भी बहुत कुछ सीखा। हर कोई आपकी अनुस्थिति के प्रति संवेदनशील नहीं होता है। और हर कोई उदासीन भी नहीं होता है।
एक्स गर्लफ्रेंडस (ex-girlfriends) को लगता है कि मैं उनसे छुटकारा पाने के लिए ये भूमिका रच रहा हूँ। हाय अल्लाह! झूठ क्यों बोलना! एक लड़की ने वास्तव में सोचा कि मैं उसके आसपास रहने के लिए समलैंगिक होने का नाटक कर रहा हूँ। विस्तारित परिवार ने इसे ऐसे बुख़ार के रूप में खारिज कर दिया, जो समय के साथ चला जायेगा। कुछ करीबी दोस्तों की प्रतिक्रियाएं तो पागलपन की हदें पार कर गयीं ।
ऐसा भी होता है कि जिन लोगों के बारे में आपको लगता है कि वो इस बात को नहीं समझ पाएंगे वो आसानी से समझ जाते हैं। मैंने सोचा कि मुझे अपने माता-पिता के साथ कई बार बैठना पड़ेगा तब शायद वो समझ पायेंगे। लेकिन उनके साथ सब कुछ बहुत सरल रहा। सिर्फ एक रात डिनर के दौरान की बातचीत, और उन्होंने कहा, "हम तो पहले से ही जानते थे! हमने तुम्हें पाल-पोस कर बड़ा जो किया है!" मैं आपको बता दूँ कि हर कोई इतना भाग्यशाली नहीं होता है। मुझे लगता है कि दूसरों के सामने खुलकर बाहर आने की मेरी प्रेरणा मेरे माता-पिता से मिली सकारात्मक प्रतिक्रिया से शुरू हुई।
मुझे ज्यादा मेहनत अपने माता-पिता की बजाय अपने दोस्तों को समझाने में लगी। अजीब बात है ना? जब मैंने उन लोगों को अपने बारे में बताया जिन्हें मैं हर रात व्हाट्सएप्प पर घटिया होठों वाली या किस वाली स्माइली भेजा करता था तो वे बोले कि उन्हें समलैंगिकों (gays) से नफरत है। दरअसल हमें भी गलत व्याकरण (जैसे कि gays) से नफरत है! (हा हा)
कुछ दोस्तों ने कोशिश की कि मुझे मेरे जैसे लोगों से मिलवाएं ताकि मैं उन लोगों के साथ संबंध बना सकूँ, जबकि मैंने उन्हें ये बताया कि 'ग्राइंडर' जैसी कई तकनीकें मौजूद हैं और हुक अप (hook up) करने के लिए काफी हैं। इसलिए मुझे ऐसी किसी सहायता की ज़रूरत नहीं है। मुझे तो बस उनका स्वीकरण चाहिए था।
सबसे अच्छी प्रतिक्रिया धार्मिक मित्रों की रही है, जो मांस खाने और पश्चिमी देशों के प्रति मेरी आत्मीयता को इसका दोषी मानते हैं। ये प्यारे दोस्त रूपांतरण के समाधान भी बताते हैं जैसे कि शादी, सही चिकित्सा, पोर्न देखना, शाकाहारी खाना, ध्यान करना और अपना धर्म परिवर्तन करना।
कुछ लोग और भी आगे जाकर ये तक पूछ लेते हैं कि क्या मेरा परिवार समलैंगिक है (यह कोई धर्म नहीं है, मेरे धार्मिक मित्रों)। कुछ लोग ये पूछते हैं कि क्या मेरे भाई-बहन भी समलैंगिक पैदा हुए हैं। कुछ पूछते हैं कि क्या मुझे ऐसा होना पसंद है? और कुछ के पास केवल उनके सिर में ज्वलंत तस्वीरें होती हैं और उनके चेहरे पर आशंकित अभिव्यक्ति।
पिछले साल मेरे रूममेट ने काम में मिली एक सफलता पर अपने दोस्तों को घर में आयोजित पार्टी में आमंत्रित किया। वह एक सफल युवा उद्यमी है जिसके बारे में कई पत्रिकाओं में लेख छापा गया है और कई समाचार शो में भी वो दिखाई पड़ता है। तो, उसके ज्यादातर दोस्त भी बहुत ही आला और उद्यमी क्षेत्रों से हैं (कूल टाइप)। पीने की शुरुआत करने से पहले, मैं कमरे में पड़े टेबल को साफ़ कर रहा था और मेहमानों के साथ बातें कर रहा था, सभी पुरुष थे, और सभी विषमलिंगी। उनमें से एक (कई कंपनियों का संस्थापक) जिसे मैं पहले भी कई बार मिल चुका था और कुछ हद तक जानता था, अचानक, बिना किसी संदर्भ के, मज़ाक में बोला, "अरे! तुम समलैंगिक हो क्या?" बस वही मेरा पल था। बिना किसी झिझक के, मैंने जवाब दिया, "हाँ मैं हूँ। खुश और समलैंगिक दोनों!" यह पहली बार था जब मैं एक नए शहर में इतने सारे लोगों के बीच खुलकर बाहर आया था। मैं अपने दोस्तों के कान में फुसफुसा नहीं रहा था। मैं पूरी तरह से उजागर हो चुका था। खुलकर और ज़ोर से।
मुझे कैसा महसूस हुआ? ऐसा लगा जैसे मैंने अपना नकली उपनाम छोड़ कर सबको असली नाम बताया हो। उनका सवाल निश्चित रूप से परेशान करने और मेरे निजी जीवन में दखल देने जैसा था, लेकिन वह निश्चित रूप से पहला इंसान नहीं था जिसने ऐसा प्रश्न पूछा था। पहले भी बहुत से लोगों ने यूँ ही सोचा होगा और मुझसे मज़ाक में पूछा भी होगा, लेकिन मैंने कभी उनको कोई उत्तर नहीं दिया। उसका सीधे सीधे सवाल पूछना कुछ लोगों को अशिष्ट लगा होगा, लेकिन मुझमें इससे सशक्तिकरण और अभिमान की भावना पैदा हुई। ईमानदारी से खुलकर बाहर आने का ये क्रम मेरे लिए नया और दिलचस्प अनुभव था!
अक्टूबर 2013 की एक बहुत ठंडी रात, मेरे करीबी दोस्त और मैं राजस्थान जाने वाली एक ट्रेन में सफर कर रहे थे। मैं बहुत खाली और अकेला महसूस कर रहा था। मैं कई वर्षों से अंदर ही अंदर एक दुविधा से जूझ रहा था और उसे खत्म करने का निर्णय बना चुका था। आखिरकार साहस इकट्ठा कर मैंने फैसला किया कि किसी न किसी को अपने मन की बात बताकर ही रहूँगा। इस सफर पे हम अपने महाविद्यालय से निकले थे और इसलिए सारे दोस्त एक ही बोगी में थे। मैंने अपनी सबसे अच्छी दोस्त को ट्रेन कोच के दरवाज़े पर बुलाया। मैं धैर्य के साथ उसके कंधों को पकड़ कर खड़ा था। उस लड़की को लगा कि मैं उसे प्रोपोज़ करने वाला हूँ।वह थोड़ा परेशान भी थी। जब मैंने अंततः अपनी कामुक प्राथमिकता को उसके सामने रखा, तो वह अजीब तरह से मुस्कुराई और बोली कि ठीक है, कोई बात नहीं है।
फिर, अगले ही दिन, उसने अपने प्रेमी को इसके बारे में बताया, जैसे कि यह कोई घटना थी, ना कि किसी की निजी बात। मैं बहुत नाराज़ हुआ। उसके बाद जब भी मैं उसके प्रेमी से मिला, मैंने उसे खुद को घूरते हुए पाया। अजीब सा लगता था, लेकिन मुझे ऐसे घूरने वाला वो पहला विषमलिंगी पुरुष नहीं था।
बहुत ऐसे लोग रहे हैं, आज भी हैं, कारण वासना या ईर्ष्या हो सकते हैं। पता नहीं।
उस रेलगाड़ी में, मैं कुछ अन्य करीबी गर्लफ्रेंड्स के सामने भी खुलकर बाहर आया। मेरी दोस्तों में से एक, जो मेरे 'ब्रैकेट ऑफ़ डिफरेंस' (यानी मुझ जैसे उसे भी पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया जाता था, वो भी औरों से अलग थी) में फिट होती थी (वह UAE से थी और उसका उच्चारण तदानुसार था)। वो सक्रिय रूप से ऊपरी बर्थ पे बैठकर मेरी सारी बातें सुन रही थी। समलैंगिक होना किसी व्यक्ति के मोटे या काले होने से बहुत ज्यादा अलग नहीं है। इन सबका मूल निष्कर्ष एक ही है। लोग जो भी आदर्श अपने सिर में बिठा लेते हैं, उसमें अगर कोई बात फिट ना हो तो वो शर्मनाक हो जाती है। जब मेरी बात खत्म हुई, तो वो नीचे आयी और बिना किसी प्रतिक्रिया के चली गई। क्या वह मेरे एकमात्र खास पल को नजरअंदाज कर रही थी? क्या वो अजीब महसूस कर रही थी लेकिन बेरुखी दिखाकर भरपाई करना चाहती थी।
मेरे खुलकर बाहर आने के अपने सफर की शुरुआत में (वाह! मैंने पहले ही इसे एक तीर्थ यात्रा जैसा बना दिया है) मैं आसानी से विषमलिंगी लड़कों के सामने अपनी बात बोल नहीं पाता था। यह मेरे अनम्य शरीर में बैठे 'आदमी' या 'भाई' के लिए काफी शर्मनाक था, कि वह दूसरे 'भाई' को ये सब कह सके। "मैं ऐसा कैसे कर सकता हूँ?" ये मैं सोचूँगा। "आप ऐसा कैसे कर सकते हैं?" ये वो सोचेंगे। तो जैसे-जैसे मैं अपनी समलैंगिकता को उजागर करने लगा, मैं टमब्लर (tumblr) पर ब्लॉग लिखकर उन प्यारे लोगों को बताने लगा कि वे मुझे कितने पसंद हैं। मैंने इंटरनेट पर सब शेयर किया, ऑनलाइन और ऑफ़लाइन वार्तालापों में भाग लिया और पहली बार सक्रिय रूप से उस समुदाय से मित्र बनाने लगा। मैं अपने विषमलैंगिक पुरुष दोस्तों के साथ ब्लॉग के लिंक, अपने लेखन कौशल दिखाने के बहाने शेयर करने लगा। वे पूरी तरह से उसे अनदेखा करते थे और सीधे कामुकता वाले मुद्दों पर भिड़ने के लिए कूद पड़ते थे। जाहिर है, वही मेरा लक्ष्य होता था। कुछ अचम्भित होते थे और कुछ तो बहुत चतुर थे। कुछ अभी भी ब्लॉक्ड हैं! हा हा हा हा! विश्वास करें, दोनों ही महत्वपूर्ण थे, दोनों ही मेरे लिए एक अनुभव रहे।
मैं बोल्ड था और शुरुआत में जाहिल भी था। मुझे याद है कि एक मंत्री को एक सम्मेलन के दौरान, जहां मुझे बोलने के लिए केवल 20 सेकंड मिले थे, मैंने समलैंगिक विवाह को वैध बनाने की बात कह दी थी। जाहिर है, ये कहानी भी मेरे दोस्तों की मज़ाक सूची में जोड़ दी गई। यह और बात है। खुलकर बाहर आना विषमलैंगिक मर्दों के बारे में उन चुटकुलों पर रोक नहीं लगा सकता था जो चाय और सुट्टा वाले खोपचों में बनाये जाते हैं। हम उन कोनों में भी जाते हैं! पर हम तुम्हारे बारे में कभी बात नहीं करते! ये सब छायादार स्टाल विषमलैंगिक लोगों के इन चुटकुलों के लिए ही बने होने हैं। उन लोगों के नाप तोल, भेद भाव और अक्षमता से भरे हुए! हालांकि, अगर आप उन चुटकुलों से उदासीन रहें, उनपर कोई प्रतिक्रिया ना दें, तो कुछ फर्क ज़रूर पड़ता है।
अंत में, ऐसे अन्य समलैंगिकों के सामने अपनी बात करना, जो अब तक खुद बाहर नहीं आये हैं, एक अलग किस्म की त्रासदी है। उनमें से कुछ इतने भ्रमित होते हैं और गलत जानकारी के साथ रहते हैं कि वास्तव में मुझे यह एक मज़ाक सा लगता है। कभी-कभी मुझे लगता है कि आधिकारिक रूप से आपको स्वीकारने से पहले वो जानबूझकर आपकी परीक्षा लेते हैं। समलैंगिक समुदाय के भीतर कुछ आम लेकिन मूर्खतापूर्ण संदेह हैं,- "आपको कब महसूस हुआ? आपको पता कैसे चला? क्या आपने कभी दूसरी ओर कोशिश की है? क्या आप बस ये हैं या वो भी हैं? आप ऐसे दिखते नहीं हैं? क्या आप शादीशुदा हैं? आप शादी कब करेंगे? शादी होने के बाद क्या आप मुझसे मिलेंगे? क्या आप मुझे अपनी पत्नी से मिलवाएँगे?" यार! अपनी निराधार कल्पना को वहीं बंद करो। प्लीज...! यह ऐसी जगह जा रही है जो हमारे नियंत्रण से बाहर है।
आप इन प्रश्नों को हल करने का प्रयास कैसे करते हैं? आप बस उन्हें बताते हैं, "डार्लिंग, मैं आप के समान, उतना ही क्वीयर (queer) और अनजान हूँ। हो सकता है कि ऐसा ही रहा हूँ, या इस तरह ही पैदा हुआ था।"
उन वर्षों के दौरान, मुझे कई नाम (समलैंगिक, गुड, फग, छक्का, होमो, किन्नर, मर्द जैसी महिला, मैडम, बिल्ली, गुड़वे) दिए गए हैं। इस वजह से वास्तव में मुझे लिंग और कामुकता स्पेक्ट्रम के बारे में और जानने में मदद मिली है । और आप को याद रहे, ये शब्द उन लोगों से आए हैं जिनके बारे में मैं सोचता था कि वे मेरे नज़दीकी हैं।
हमारे समाज में इतनी विविधता है कि समानता के अंतर से प्रेम करने वाले (यानि क्वीयर, तरल या समलैंगिक साथी) एक साथ आने की आवश्यकता महसूस करते हैं। तभी एक समुदाय बनता है, है ना? आप एक दूसरे के साथ सुरक्षित, परिचित, सामाजिक महसूस करते हैं क्योंकि वे आपको स्थान देते हैं और आपके विकल्पों को समझते हैं, उनका सम्मान करते हैं। मुझे लगता है ये आपको समझ आएगा यदि आप एल.जी.बी.टी हैं या फिर विषमलैंगिक हैं लेकिन कुछ निजी विकल्पों में क्वीयर (queer) हैं।
मैंने यह भी सीख लिया है कि लोग हमेशा सत्ता के लिए जुटे हुए हैं, और आप के बारे में हमेशा कोई ऐसी चीज की तलाश कर रहे होते हैं, जहाँ वो आपको पकड़ लें। मेरे मामले में, यह मेरी कामुक प्राथमिकता है। इससे पहले, जब भी मुझे किसी ने फेग (होमोसेक्सुल) बोला, मेरा दिल टूटा। अब जब भी कोई ऐसा कुछ कहता है, तो मेरा दिल गर्व से फूल जाता है। दुनिया यूँ ही रहती है, यदि बदली ना जाये। लेकिन मायने ये रखता है कि आप इसे कैसे देखते हैं।
बचपन में, मैं विषमलैंगिक लोगों और मेरे बीच के अंतर को लेकर बहुत शर्मिंदा महसूस किया करता था। मैं इनकार में बड़ा हुआ। परिवार और दोस्तों द्वारा मुझे 'नरम' होने के लिए लगातार क्षीण महसूस कराया जाता था। बड़े होने पर मुझे ये एहसास हुआ कि अपनी सच्चाई से इनकार करना सिर्फ समलैंगिक की आदत नहीं होती है। विशमलैंगिकता में भी इनकार है। लड़के जो किसी के खुलकर बाहर आने पर चमकती आँखों से मुस्कुराते हैं, सी.आई.एस-पुरुष (सिस जेंडर- यानि जो अपनी पहचान अपनी पैदाइशी लिंग से रखते हैं), जिनके कुछ अंग उस वक़्त फूले जाते हैं (कृपया मुझसे मत पूछें कौन सा अंग) जब वो खुले विचार वाले समलैंगिक पुरुष के पास होते हैं; प्रेमी लड़के जो लड़कियों से लड़ते हैं और ईर्ष्यापूर्ण समलैंगिक जो अपने ऊपर विश्वास नहीं रखते हैं। एक तरह से अपनी कामुक प्राथमिकता को सहजता से अपनाना हर एक व्यक्ति के लिए खुलकर बाहर आने जैसा है।
खुलकर बाहर आना आसान नहीं है, ना उसके लिए जो अपना खुलासा कर रहा है और ना ही दूसरे के लिए जिसके सामने वो खुलासा कर रहा है। खासकर इसलिए क्योंकि हम अज्ञानता और मिथकों के बीच रह रहे हैं, जहाँ समलैंगिकता को असामान्य, गलत और मानसिक विकार की तरह देखा जाता है। यह चुनौतीपूर्ण है, भावनाओं की पराकाष्ठा है, और यह आपको अपने आसपास की दुनिया के बारे में भी थोड़ा बहुत सिखाती है। यह ड्रग द्वारा चित्त पे पड़ने वाले प्रभाव जैसा नशीला है। ठीक है, उतना बुरा भी नहीं है, लेकिन कुछ हद तक उसी जैसा है। मैं खुलकर बाहर आने का प्रयास कर रहा हूँ, धीरे धीरे , एक समय पर एक घटना के साथ। आशा है कि आपके लिए भी, जितना भी आप खुद को पहचान पाएँ, उस ‘अपने आप’ को स्वीकार करना, उसका आनंद लेना, उसे संभालना और आगे बढ़ना, आसान हो।
खुलकर बाहर आने की एक हजार एक कहानियां
ज्यादातर अन्य समलैंगिक लोगों की तरह जो खुलकर बाहर आना चाहते हैं, मैंने भी अलग-अलग लोगों को अलग-अलग समय पर अपने समलैंगिक होने की बात बताई
लेखक: रोशन कोंकने
चित्र: देबस्मिता दास
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