Agents of Ishq Loading...

थेरेपी ने मुझे मेरा कामुक रूप दिखाया

जब मैंने अकेले रहना शुरू किया, तो जो कुछ चीज़ें मैंने पहली बार की, उनमें से एक थी- थेरेपी। इतने टाइम फॅमिली के साथ रही थी, यानी, सौ ज़िम्मेदारियाँ । एक पैरेंट के विकलांग होने का बोझ अलग! इन सबके बीच, खुद के बारे में सोचने का टाइम ही कहां था। मेरे थेरेपिस्ट ने मुझे सेफ फील कराया और सदमे से बाहर आने में मेरी हेल्प की। मुझे खुद को बेहतर ढंग से समझने का मौका भी दिया। मैंने उसे अपने वैजाइनिस्मस (vaginismus: किसी भेदन की कोशिश पे, योनी का मुख जब खुद ब खुद संकुचित हो जा कर बंद हो जाता है, जैसे बदन में एक डर बैठ गया है ) सपोर्ट ग्रुप के बारे में भी बताया। किस तरह योनी का डाईलेशन प्रोसेस /योनी को फिर फैला पाने की प्रक्रिया जारी हुई । ये भी बताया कि इस तरह योनी को फिर से धीरे धीरे खोलना, मुझे  कितना थका देता था। थेरेपिस्ट के साथ अपने सेक्सुअल हेल्थ की बात करने में, कभी झिझक महसूस नहीं हुई। उसने हमेशा मेरे आराम का पूरा ध्यान रखा। हाल ही में, मैंने अपने थेरेपिस्ट से अपनी सेक्सुअल पहचान के बारे में बात की। अगर मैं सोचूँ कि चलो आज से मैं अपनी सेक्सुअल पहचान द्विलिंगी, या बिसेक्सुअल बतलाऊँगी, तो ये सोचने भर से ही मानो मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। वैसे तो मैं एक एडुकेटर हूँ, युवाओं को उनकी सेक्सुअलिटी को समझने और अपनाने में मदद करना ही मेरा काम है! लेकिन जब मेरी खुद की सेक्सुअलिटी की बात आती है, तो बड़ा असहाय सा महसूस होता है। अब क्योंकि मुझे वैजाइनिस्मस है, तो मुझे हमेशा इस बात का डर रहता है कि जिन लोगों के साथ मैं सेक्स करना चाहूँ, ना जाने वो मेरे बारे में क्या सोचेंगे। मुझे सही परफॉर्म करने और खुद को साबित करने का बोझ हमेशा फील होता है। जब मैं किसी मर्द के साथ हूं, तो पेनेट्रेटिव/भेदक सेक्स के बारे में सोच कर ही, हाथ-पांव जम जाते हैं। उस समय ऐसा लगता है ,जैसे उनको मैं ढोंगी लगूंगी, लगेगा कि हाथी के दांत खाने के और, और दिखाने के और हैं। और अब, जब मुझे लगता है कि शायद मेरी दिल्चसपी औरतों में भी है, तो समझ में नहीं आता है कि मैं इस जगह को अपना कह भी सकती हूँ कि नहीं ? ऐसा क्यों है ? मैं ये ही समझने की कोशिश कर रही हूँ। मेरे घर में गाली-गलौच एक आम बात है। यहां सब छुपा के, दबा के रखा जाता है। अपने पेरेंट्स से अपनी फीलिंग छुपाने के लिये, घर पे भी मास्क लगा के रहना पड़ता है। मैंने बचपन में अपने साथ हुए सेक्सुअल शोषण के बारे में  भी अपने पापा को नहीं बताया। डर था कि वो सुनकर जाने क्या बोलेंगे, क्या करेंगे। और मां को परेशान करने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता। वो तो खुद एक मार-पीट वाली शादी में फंसी थी। तो बस, मैंने मास्क में रहकर जीना शुरू कर दिया। जब पहली बार किसी के साथ रिश्ता बनाया, उस वक़्त भी मैंने वो मास्क लगा रखा था। मुझे उसके सामने ऐसा इंसान बनकर रहना पड़ा, जिसे एक खुश, शादीशुदा जिंदगी चाहिए हो। जो उसके परिवार में फिट होना  चाहती है, उनके साथ रहना चाहती  है। खुद को ऐसा परिवार देना चाहती है जो उसके पास कभी से नहीं था। लेकिन आख़िरकार उसने फैमिली के दबाव में आकर रिश्ता खत्म कर दिया। वो भी एक दर्दनाक तरीके से। मैंने चाहे कितने भी मुखौटे पहन लिए हों, रिश्ते बचाने के लिए वो काफी नहीं थे। अपने आखिरी ईमेल में, उसने लिखा था-  मुझे उम्मीद है , मुझे भी ऐसा कोई मिल जाये जिसके साथ मैं घर बसा सकूं। और मैंने जवाब में कुछ ऐसा लिखा था, कि मैं उसी से शादी करूंगी जिससे मुझे प्यार होगा।  जब मैं और मेरा ये एक्स, उसके परिवार को मना रहे थे (कि वो हमें अपना लें), तो मुझे उसको खोने के डर के साथ, एक और फिक्र थी। उस वक़्त अपने परिवार और सारे चचेरे भाई बहनों में, मैं एकलौती लड़की थी, जो शादी का रास्ता चुन रही थी।  जब मैंने अपने एक दोस्त को ये बताया कि मेरा मन शादी की बात नहीं मानता, तो उसने कहा कि शायद ऐसा इसलिए था क्योंकि मेरे आस पास शादी के अच्छे  उदाहरण नहीं  थे।  मुझे नहीं लगता कि सिर्फ यही एक वज़ह है।  मुझे तो बस एक ऐसा साथी चाहिए, जो मुझसे तहे दिल से प्यार करे, मेरी परवाह करे और मुझे समझ सके।  मुझे प्यार चाहिए।  ऐसा साथी नहीं, जो रिश्ते के लेबल पे ज़ोर दे, जिसके लिए प्यार काफी न हो।   अब जबकि मैं पिछले कुछ टाइम से अकेले रह रही हूं, इस चुप्पी ने मुझे उन मुखौटों से बाहर आने का मौका दिया है।  मेरी जवानी के शुरुआती दिनों और बचपन की एक याद है जो अंदर दबी पड़ी है। कभी वो उभरकर उपर आती है,  कभी डूबी रहती है, और कभी तो पत्थरों से टकराकर बिखर जाती है।  मुझे याद है, कैसे मैं अपनी एक चचेरी बहन के गले लगी थी, उसे किस किया था और हां, हम चिपटे लिपटे भी थे। मुझे ये भी याद है कि खेल खेल में, कैसे मैं अपने पड़ोसी की बेटी और एक दूसरी चचेरी बहन के वल्वा (vulva- योनिमुख)  को टेस्ट करने के लिए डॉक्टर का सेट इस्तेमाल करती थी। मेरे मन में सवाल थे, हैरानी थी । और सच कहूँ तो  मुझे अट्रैक्शन फील होता था। वो मेरे अंदर जो जवान लड़की बड़ी हो रही थी, उसे जेंडर लेबल समझ नहीं आते थे। वो जानती थी कि शादी और प्यार सिर्फ मर्द और औरत के बीच होता है। टी.वी. पर, मूवी में भी सिर्फ औरत और मर्द एक दूसरे के प्यार में पड़ते हैं। अब मैं इन कजिन भाई-बहनों से या तो फैमिली डिनर पे मिलती हूँ या फिर कभी दो साल में एक बार। हम कभी उन पुरानी बातों का ज़िक्र नहीं करते हैं। मानो वो हम नहीं, कोई और थे शायद। आज मैं सिंगल हूं और वो सभी शादीशुदा हैं। इमोशनली तो हम बिल्कुल भी जुड़े हुए नही हैं। मैं मेरे ख्यालों में महिलाओं के बदन को निहारती हूँ, उनके ब्रैस्ट को सहलाती हूं। कभी कभी अकेले में मुझे बहुत असहाय सा फील होता है। मैं खुद से सवाल करती हूँ। जैसे कि क्या मैं वो औरत हूँ जो दूसरी औरतों के साथ सेक्स करना चाहती है?और अगर मैं ये हूँ, तो मैं क्या कहलाऊंगी, मेरी सेक्सुअल पहचान क्या कहलाएगी। क्या मैं बाई सेक्सुअल हूँ ? या ऐसी औरत जो अपनी सेक्सुअलिटी पे सवाल उठा रही है? मै उन लेबल्स को मानती ही नहीं । मुझे ये डर है कि अगर मैंने किसी एक लेबल को अपनाया, तो मुझे उसमें बांध दिया जाएगा। मुझे ये लेबल काफी भारी लगते हैं। मुझे लगता है कि मुझे क्वीयर होने के उन तय तरीकों को समझना पड़ेगा। क्योंकि अगर मैंने ऐसा नहीं किया, मुझे कम क्वीयर  समझा जाएगा। मैं इससे डरती हूँ। ये सब सोच के मैं डर जाती हूँ और अपने इन क्वीयर अनुभावों को भूल जाने की कोशिश करने लगती हूँ ।  मैंने खुद को कई बार समझाया कि ये बस बचपन का एक हादसा था। बच्चों की तो आदत होती है, सब कुछ जानने समझने की। कि आज भी जब मेरी नज़र और औरतों पे जाती है,  तो उस नज़र में बस उन जैसे बनने की चाह छिपी है। एक औरत दूसरी औरत की तारीफ़ नहीं कर सकती क्या? इसमें क्या बुराई है! हाँ कभी-कभी औरतों को लेकर मेरे कुछ ऐसे-वैसे कुछ ख़्वाब रहते हैं, लेकिन इसका मतलब  बस ये है, कि मैं अब किसी मर्द के साथ रिश्ता बनाने के लिए तैयार हूं। कई बार तो मैं खुद को ही डांट देती हूं, "अरे! सिर्फ इसलिए क्योंकि तुम्हारे कई क्वीयर दोस्त हैं और तुम एल.जी.बी.टी.क्यू + (LGBTQIA+) के बारे में बहुत सारी पोस्ट शेयर करती हो और क्वीयर स्टूडेंट को सपोर्ट करती हो, इसका मतलब ये थोड़े ही है कि तुम भी क्वीयर हो। ये तुम्हारी दुनिया नहीं है और ना ही तुम उस कम्युनिटी का हिस्सा हो। तुम खुद को आज तक अच्छी तरह ढूंढ नहीं पाई, किसी और औरत को क्या ढूँढोगी। तुमसे नहीं होगा। दूसरों की फीलिंग्स के साथ मत खेलो। क्वीयर होना बहुत लोगों के लाइफ की सच्चाई है, उसकी इज़्ज़त करो।" लेकिन फिर मेरा दूसरा चेहरा सामने आ जाता है। वो चेहरा जिसे मेरी सेक्सुअलिटी के बारे में कोई शक-शुबा नहीं। वो वाली 'मैं", मुझे याद दिलाती है, कि कैसे कुछ महीने पहले जब मैं एक फीमेल दोस्त के साथ चिपककर टी.वी. शो देख रही थी, तो उसकी तरफ सेक्सुअल तरीके से खिंची चली जा रही थी। तन-बदन में वैसी ही आग लगी थी, जैसी किसी मर्द के लिए लगती है। उस टाइम हर तर्क-वितर्क को दबाकर, उससे सेक्स करने की चाह ऊपर उभर रही थी।मेरी चाहत के आगे मेरी सोच कुछ न थी।  कुछ देर बाद जब हम सब सोने गए, तो मेरे अंदर की आवाज़ ने उस चाह को दबा दिया।  आवाज़ ने मुझे वापस याद दिलाया, "तुम 2 साल से सेक्सुअल चीजों में एक्टिव नहीं हो, इसलिए उछल रही हो। तो बस जाओ, और सो जाओ।" पता नहीं अगर बचपन से ही मुझे खुद पर, अपनी काबिलियत पर और अपनी सेक्सुअल चाहतों पर यकीन होता, तो आज मैं क्या होती। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरा खुद पे भरोसा ना करना मेरी सेक्सुअल लाइफ पे भी असर करेगा। मुझे पता है, आज मुझे किसी तरह का मास्क लगाने की ज़रूरत नहीं है। मैं वो, सहमी हुई सी नहीं हूँ, जो पहले हुआ करती थी। भले ही अपनी सेक्सुअल चाहतों को समझने से डरती हूँ, लेकिन खुद के साथ का जो ये सफ़र है, काफी रोमांचक है।  लेकिन फिर यही आवाज़ ये भी याद दिलाती है, कि मेरा वैजाइनिस्मस का इलाज़ चल रहा है।  मुझसे कहती है- शायद तुमको लगता है कि उन मर्दों के साथ दोस्ती बढाना मुश्किल है जो सिस/cis भी हैं और विषमलैंगिक भी। तुमको लगता है कि उनके साथ तुम्हारी जमेगी नहीं और इसलिए तुम औरतों को चुनती हो। लेकिन ये तुम्हारी दुनिया नहीं है। यहाँ घुसने की कोशिश मत करो - इन लोगों का साथ दो,  इनकी दुनिया में घुसपैठ मत करो । उफ! मैं उलझ गई हूं।  मेरे अंदर की दो आवाजें, और उनके बीच चल रही लड़ाई का असर, दूसरी चीजों पर भी हो रहा था। जो आवाज़ औरतों के लिए मेरी उभरती सेक्सुअल चाहतों को ख़ारिज कर रही थी, वो मेरे काम को भी नुकसान पहुंचा रही थी। मानो कह रही हो, कि मैं किसी लायक़ नहीं हूँ, ना काम के, न प्यार के। मेरे थेरेपिस्ट ने इन आवाज़ों से बातचीत करने में मेरी मदद की। न कि बस ये सोचते रहना कि इन आवाज़ों का मतलब क्या है। मुझे मन में उठ रहे सवालों पर ध्यान देना चाहिए। जैसे कि "किसी औरत को डेट के लिए कैसे पूछूं? किसी आदमी को डेट के लिए पूछने से पहले तो मैं मोम सी पिघल जाती हूँ। ये सब अपने पेरेंट्स को कैसे समझाऊंगी?” "लेकिन मेरे अंदर की जो कोमल आवाज़ है, वो कहती है कि मेरी चाहतें सही हैं। और अब जबकि मेरे पास टाइम है, स्पेस है, मुझे अपने मुखौटे हटा देने चाहिए। पेरेंट्स के बीच रेफ़री बनते-बनते और अच्छी गर्लफ्रैंड बनने का नाटक करते-करते, कभी खुद के लिए टाइम नहीं मिला। लेकिन अब जब मिला है तो अपनी चाहतों को खुलकर सांस लेने देना चाहिए।  मैंने अपने कुछ दोस्तों के साथ ये सब शेयर किया और उनको ये भी समझाया कि किस तरह मैं उनके सामने वो नहीं बन पा रही थी जो मैं थी। उन्होंने मुझे सपोर्ट किया। सच कहूं तो ऐसा लगा जैसे मैंने कोई घोषणा की हो।  जब मैं उनको ये सब बता रही थी, तो उनके चेहरे भी पढ़ रही थी। कहीं उनको मेरे इस चेहरे से ऐतराज़ तो नहीं! कहीं वो बस ऊपर से तो सपोर्ट नहीं कर रहे और अंदर ही अंदर मुझे धोखेबाज समझ रहे हों? क्या मैं सच में धोखेबाज़ हूँ? एक टाइम था जब अपने को  छुपाना और मास्क पहनना ज़रुरी था। उस वक़्त उसने अपना रोल निभाया। लेकिन आज जब मुझे फिजिकल बीमारियां हैं, जाने-अनजाने कितने सारे दर्द हैं, अस्थमा के भी लक्षण हैं... तो मुझे लगता है मेरा शरीर अब तक तो इन सारी दिक्कतों को झेल रहा था। लेकिन अब जब सारे मुखौटे उतर गए हैं, मेरे बदन को इन सारे मर्ज़ और दर्द को झेलना पड़ रहा है। वैसे मैं यक़ीन के साथ नहीं कह सकती  कि औरतों  को लेकर मेरी जो हसरतें हैं, मैं  उनको पूरा करूंगी या नहीं। अपने आप को समझाया है कि एक बार में एक ही कदम बढ़ाना ठीक है। जैसे वैजाइनिस्मस से निजाद पाने का कोई बना बनाया मॉडल न था - उस ही तरह, मेरे क्वीयर पहचान का सफर जाने कहाँ कहाँ जाएगा, किसी बने बनाये नक़्शे पे तो नहीं चलेगा  । जब मेरे थेरेपिस्ट ने मुझसे पूछा कि अपने बाय-सेक्सुअल  होने पर या एक क्वीयर औरत का लेबल लगाने पर, मुझे कैसा लगता है, तो मैंने बताया कि उससे मुझे एक पुरापन महसूस होता है। मुझे वहां तक पहुंचना है और इसलिए मैं उसी तरफ़ बढ़ रही हूँ।    तारा एक एडुकेटर है। उसे यंग लोगों से बातें करना, उनको बड़े होते देखना पसन्द है।  काम के अलावा, उसे लंबी सैर पर जाना, पौधों का ध्यान रखना, किताबें पढ़ना और आर्ट की सराहना करना पसंद है।
Score: 0/
Follow us: