Agents of Ishq Loading...

हम बस दुखड़ा रोने को तैयार ही थे कि हमने हॉकी स्टिक लिए एक छोटी लड़की को देखा।

एक मूवी के किरदार से अचानक सी हुई मुलाक़ात ने, लड़कियां क्या हो सकती हैं, इसको ले के हमारी सोच बदल डाली।

दिव , तुम्हें  बचपन में कौन सा पिक्चर वाला  किरदार पसंद था  ? हमारी  एक दोस्त ने हमसे दो -तीन साल पहले ऐसी ही किसी शाम को ये सवाल पूछा था ।  हम तपाक से बोलने वाले  थे  मेगामाइण्ड , लेकिन सोचने के लिए रुक गए।  

भगवान ! जो यादें और भावनाएं हम भूल चुके  थे  , वो वापिस से हमारी नसों और उँगलियों में घुलने लगी।  और अब हम  इस लेख को उसको समर्पित कर रहे  हैं।  

हमेंं  उस दिन की बात बताने दो, जब हम उससे अचानक से मिले थे  ।  

हम  सात साल के थे,  जब हम  और हमारा  परिवार थिएटर में तारा रम पम देखने गया  था ।  हमारे  लिए तो यह दुनिया की सबसे मज़ेदार चीज़ थी।  वह  टेडी बीयर और जादुई दुनिया से भरी एक मज़ेदार पारिवारिक पिक्चर लग रही थी।  हमारे  माँ बाप अंदर टिकट लेने गए थे और हम  ख़ुशी ख़ुशी थिएटर के बाहर इंतज़ार कर रहे  थे ।  मूवी जाना तो एक ऐसी चीज़ थी जो कभी कभी ही हो पाती थी, तो हमारे  दिमाग में ख़ास मनोरंजन से भरी फिल्मों के लिए जगह ही जगह इंतज़ार कर रही थी।  

हमारा रोमांचक सपना टूटा  जब हमने  माँ बाप को यह कहते हुए सुना कि उन्हें टिकट नहीं मिला, क्यूंकि मूवी हॉउसफुल थी और हम सब उसके बदले में अब  चक दे इंडिया देखेंगे।  

हमने चक दे ! के बड़े से पोस्टर के सामने खड़े हो के गहरी सास ली। हमने एक मिनट के लिए विचार किया और फिर कराह के बोला कि ' नहींsss ' ।  हमने नखरे दिखाए और कहा हम  एक सीरियस टाइप की  खेल वाली पिक्चर नहीं देखना चाहते ।  वो पोस्टर बड़ा बोरिंग दिख रहा था। हमको तो रानी मुखर्जी की वो मज़ेदार फिल्म चाहिए थी।  प्लान में यह अचानक आया बदलाव, हमेंं बिलकुल भी सही नहीं लग रहा था ।  लेकिन माँ बाप ने हमेंं समझाया।  हम लोग  वहाँ तक आये हैं, इस के लिए कीमती वक़्त और पैसा खर्च हुआ है  ।  ईसपे कोई बहस नहीं होगी, वो बोले,  ' हम बस सब  यह पिक्चर देख रहे हैं।  '

हमेंं अपनी  भावनाओं को घोटना सिखाया गया था।  तो हम  थिएटर में पैर पटकते हुए घुसे  और हाथ जोड़ के मुँह बना के बैठ गए ।  हम  तीन घंटे दुखी रहने के लिए तैयार थे ।  

लेकिन पिक्चर शुरू होने के 10 मिनट बाद ही पर्दे पे एक ऐसी एंट्री हुई, जो सात साल की उम्र में हमारी ज़िन्दगी बदलने वाली थी ।  

वो हॉकी स्टिक लिए , व्यस्त गलियों में दौड़ रही थी।  बाल उछालते हुए , और फिर कार के शीशे में उसे मार के उसको तोड़ते हुए।  ' कोमल ' उसके पिता चिल्लाये । 

"लौंडों के साथ खेलने आयी है " । " आदमी रोटी मांगेगा तो क्या देगी " उसकी माँ ने पूछा । " जे"  उसने हॉकी स्टिक उठाते हुए कहा।  

छोटी बच्ची कोमल को आश्चर्य से देख रही है, जबकि कोमल हॉकी खेल रही है।

स्क्रीन पे आते ही  उसने बेतपाक बोलना शुरू किया।  उसने अपनी जगह बनायी।  वो दबंग थी। उसको लोगो को नाराज़ करने का डर न था   ।  जो उसका था , उसके लिए वो डटी रही , चाहे वो उसका बंक बेड  हो या फील्ड में उसकी जगह.

वो हमारे बिलकुल विपरीत थी।  

हमको तो  यह सिखाया गया था कि कभी बोलना नहीं है , हमेंशा बड़ों को खुश रखना है , हमेंशा मुस्कुराना है , तब भी जब गुस्सा आये या लगे हमारे  साथ कुछ गलत हुआ हो ।  हमेंशा अपनी भावनाओं को बोतल में कस के बंद कर के रखना और दूसरो की ज़रूरतों को खुद से पहले रखना।  तो कोमल को स्क्रीन पे बिंदास होना और वो जो चाहती है, उसके लिए लड़ना देख के हमेंं लगा जैसे हमें  कोई देख रहा है और क्या करना है, समझ रहा है।  

दबंग होने के साथ साथ वो सरस, चंचल , और शैतान भी थी , और क्या गज़ब सरदर्द थी जब वो अपनी विरोधी को परेशान करती थी या चुनौती देती थी।  

हमारा तो -तीन घंटे रोने का प्लान था, लेकिन हमें  तो प्यार हो गया।  

हमें  कोमल की वजह से उस पिक्चर से प्यार हुआ।  

उस दिन थिएटर में बैठे बैठे, कुछ ऐसी चिंगारी या ख़ुशी जैसी हमारे अंदर भड़की जिसको शब्दों में बयां करना मुश्किल है।  वो तुरंत ही हमारे  लिए प्रेरणा बन गयी , सालों बाद भी।  

कपड़ो को ले कर के उसकी पसंद खास बिंदास थी । 

कोमल स्कूल के लड़कों की तरह से, बटन वाले शर्ट, हूडि और ढीले  ढाले पैंट पहना करती थी ( क्या लडकियां ऐसे कपड़े पहन सकती थीं? क्या इसकी इजाज़त थी ?  )

वो साड़ी को ले कर के अपनी नापसंदी को खुल कर ज़ाहिर करती थी - जो हम समझ सकते थे।    

बड़े होते समय, मर्दाने कपड़ों तक हमारी  पहुंच नहीं थी। हमने अपनी ज़िन्दगी के कई साल 'लड़कियों' जैसे बनने के लिए मेहनत करने में गुज़ारे- ड्रेस पहनना झुमके पहनना , बाल बढ़ाना।  हमने यह सब अपने परिवार , मोहल्ले की आंटियों और उन लड़कों को खुश करने के लिए किया जिनको हम पसंद करते  थे ।  हमें  इस बात की बहुत ज़्यादा परवाह थी कि लोग हमारे बारे में क्या सोचते हैं और हमें  कैसे देखते है।  और हम खुद को वैसा बनाने के लिए धकेलते  थे  , जिस रूप में वो मुझे चाहते ।  ' मुझे तुम पसंद हो , लेकिन काश तुम अपने बाल बढ़ाती तो सुन्दर लगती' , मेरे एक्स ने मुझसे कहा।  

'तू आसा कपडे घलणार , तूझ्याशी कोणी लगणार करणार नाही ' ( अगर तुम ऐसे कपड़ें  पहनोगी तो कोई तुमसे शादी नहीं करेगा ) किसी आंटी ने कहा ।  ' तुम मुझे क्यूट लगती हो , लेकिन कुछ ज़्यादा ही लड़काना हो ' . हमें यह बार बार यह याद दिलाया जाता था कि हम में जो भी अच्छा है , वो ' लड़काना न होना है '

आज भी एक मर्दाना क्वीयर इन्सान के तौर पे भी, जो कि दूसरे मर्दाने लोगों  को पसंद करते हैं, हम  खुद को  फिर भी  औरताना बनने की कोशिश करते पाते  है ।  हमें  ऐसा लगता है हमें अपनी छाती को पसंद करना है और लड़को की तरह कम होना है, ताकि वो हमें पसंद करें।  हमें एक बार तो महसूस हो कि हमें कोई पसंद करता है।  तो हम खुद से यही कहते थे ' जो तुम हो, वो मत बनो ' 

लेकिन कोमल, वो तो बिंदास थी , उसे परवाह नहीं थी कि लोग उसके बारे में क्या सोचते हैं।  शादी करना या मर्दों को खुश करना उसके लिए महत्त्वपूर्ण नहीं था।  वो बस खेलना चाहती, वैसे, जैसे मोहल्ले के लड़को को खेलने  मिलता है।  यह चीज़ हमारे  दिल को छू  गयी।  

यह हमें उस समय की याद दिलाता है जब हमारे  इलाके के लड़कों ने हमें  उनके साथ खेलने नहीं  दिया था क्यूंकि हम लड़की थे ।  अगर दिया भी तो हम कच्चा लिम्बु थे ।  हमें  लगता था गोलकीपर बनना तो बड़े गर्व की बात है , फिर हमने देखा कि वो तो इंहोने हमें  गेम से बाहर रखने के लिए किया।  और यह लोग हमें कभी बॉल पास नहीं करते थे।  न ही हमारा स्कूल लड़कियों को स्पोर्ट्स की इजाज़त देता था।  

हमने कोमल जैसा प्यारा किरदार न ही कभी असल ज़िन्दगी में देखा और न ही परदे पे देखा।  ऐसा बिलकुल भी  नहीं लगा कि उसको प्यार करना मुश्किल था।  वो बस एक टॉप स्कोर करने वाली लड़की नहीं थी, बल्कि बेहद हॉट , प्यारी और ऐसी खूबियों वाली थी, जो हम चाहते थे कि  हम में हो।  हमें  अच्छा लगा जब वो अपने अहम् को किनारे रख के, फिल्म के अंत में प्रीती को बॉल पास करती है।  इससे यह दिखता है कि वो टीम की कितनी परवाह करती है और उस गोल की भी, जो उससे बड़ा है।  इससे दिखता है वो कितनी अच्छी दोस्त हो सकती है , उसकी भी जिसको वो अपना विरोधी मानती हो।  ( हम  कल्पना करते हैं कि कोमल और प्रीती एक दूसरे से प्यार करते हैं , 'दुश्मनी से इश्क़ ' वाला प्यार।  हम  बहुत बुरी तरह से चाहते हैं  कि कोई प्रीती और कोमल की प्रेम कहानी पे अलग से सेरीज़ बनाये ) 

हम अपनी पहचान के साथ जूझते  रहे और हमें यह बात जानने में कई साल लग गए कि भले ही हमारा जनम एक औरत के रूप में हुआ है लेकिन हैं हम मर्दाना, ट्रांसमैस्क/transmasc।  ऐसे में एक ऐसे  किरदार का होना, जो हमसे  मेल खता था , जो इंडियन था , जिसका रंग हमारी तरह सावला था , और हमारी तरह छोटे शहर से था , इस चीज़ ने हमें यह बात जानने में मदद की कि हमारे जैसे और लोग भी होते हैं।  कोमल को ले कर के हमारी दीवानगी हमें कभी समझ नहीं आयी , लेकिन अब सब कुछ साफ़ दिखता है।  

कोमल ने हमारे मर्दानेपन को बाहर लाने का रास्ता दिखाया।  खासतौर पे उस समय, जब बड़ा होते समय हमारे आस पास मर्दाने लोग नहीं थे ।  

सालों तक हम उसके लिए पागल रहे ।  जब भी हमें कोमल ( चित्राशी  रावत ) की फोटो अखबारों में दिखती, हम  उसको काट के अपने अलमारी या कॉपी में चिपका लेते ।  हम लकड़ी और बोतल की ढक्कन से हॉकी खेलना का नाटक भी करते ।  हम  गे लोगो के कभी न खतम होने वाले कशमकश में पड़ गए   थे  'हम उसके जैसा बनना चाहते हैं  या उसका रोमांटिक साथ चाहते  हैं  ? 

आज भी , जब कि वो अदाकारा काफी औरतों जैसी है , हम  छुप छुप के चक दे इंडिया देखते  हैं  ।  

कोमल !काश तुम असली होती।  हम दोस्त होते।  तुम हमें  हॉकी खेलना सिखाती , हम बाहर जा के खेलते।हम, हम दोनों को आम के पेड़ पे चढ़ते हुए कल्पना करते  हैं ।  तुम बेबाक हो के ऊपर चढ़ जाती , और हम  भीगी बिल्ली बन के तुम्हारी ताकत और बहादुरी को सलाम करते  और नीचे आम पकड़ने के लिए तैयार रहते ।  

कोमल एक पेड़ की शाखा पर बैठी है और नीचे बैठे छोटे व्यक्ति की ओर आम फेंक रही है। वह शख्स आम को पकड़ने की कोशिश में खुशी से हाथ हिला रहा है।

दिव रोडेरिक्स  को अपने कॉमिक्स  ,चित्रकारी और पांच घंटे लंबे वौइस् नोट्स के ज़रिये कहानियाँ  कहना पसंद है 

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