मेरे दादाजी को लगता था वो बड़े मज़ाकिया हैं। जब मैं दस साल की थी, तब वो मुझसे सारा टाइम यह पूछते रहते थे कि मैं इतनी लम्बी क्यूँ हूँ। उनके हिसाब से अगर मेरी लम्बाई ऐसे ही बढ़ती रही तो मेरे लिए मेरे से लम्बा लड़का ढूंढ़ना मुश्किल हो जाएगा। अब दस साल की उम्र में मुझे लड़का ढूंढ़ने के बारे में क्या पता था , लम्बा, छोटा , कैसा भी।
मैं उनसे कहती दादा , चिंता मत करिये। मैं शादी करूंगी ही नहीं। दादा कहते ओहो , तो क्या तुम कान्वेंट ज्वाइन करने की सोच रही हो ।
यह बात तो सबको पता है कि अगर किसी मलयाली क्रिस्चियन औरत को, ज़िन्दगी भर शादी करने की चाह नहीं है, तो इसका मतलब यह समझा जाता है कि कान्वेंट को उसकी चाह है। ( मेरी दोस्त ऐक्वीनास इस बात से सहमत नहीं है। कान्वेंट में यह उसका 55 वा साल है )
वहाँ 15 साल की उम्र में, नाओमी कैम्पबेल और केट मौस को मॉडलिंग एजेंसियां पकड़ के ले जा रहीं थीं, और यहां मैं थी। 15 साल की उम्र में, मुझे कुछ नन मिलीं जिनको लगा ( गलती से ) मैं धर्म के काम के लिए एकदम फिट थी । मुझे थोड़ा दुःख हुआ। क्या मैं इतनी नीरस दिखती थी कि लोग मुझे पकड़ केकान्वेंट की सिस्टर बनाने के लिए ले जाने लगे ? किशोरावस्था में अपने साथ हुई इस प्रताड़ना को सोच के, मैं चौक जाती हूँ।
जब मैं कॉलेज के सेकंड ईयर में थी, तो मेरे एक दोस्त ने पादरी बनने के लिए कॉवेन्ट ज्वाइन कर लिया। उसने हँसते हुए मुझसे कहा कि उसका साथ देने के लिए मैं भी उसके कान्वेंट से जुड़ जाऊं। अपने इस चुटकुले पे वो ऐसे हँस रहा था जैसे हँसते हँसते मर ही जाएगा। उसे क्या पता था मुझको लेके ये चुटकुला मेरे घर में सालो से चला आ रहा है। पिछले हफ्ते उसने मुझे कॉल किया और अपनी इस नयी दोस्त के बारे में बताया। वो पिछले हफ्ते ही चालीस की हुई थी और उन्होंने अपना जन्मदिन सेमिनरी/ सिस्टर्स की शिक्षा संस्था में, चायनीज़ खाना खा के मनाया था। पार्टी उसकी तरफ से थी मेरे दोस्त ने कहा l
जब बात अनब्याही औरतों की होती है, तो लोगों को नन/ चर्च की सिस्टर्स का सबसे पहले ख्याल आता है। जब कोई बच्ची बोलती है कि उसको शादी नहीं करनी और ऐसा बोलने और सोचने का कारण उसको खुद भी नहीं पता होता, तो मज़ाक में, या कैसे भी, बस यही समझा जाता है कि अब तो यह नन ही बनने वाली है। मतलब अगर किसी आदमी से शादी नहीं हुई तो जा के गॉड से शादी कर लो ?! उफ़ यह कैसी सोच है, क्या पागलपन है ?
जब मैंने यह बात सिस्टर सेलिन को बताई, तो उनको बड़ी हँसी आयी। एक लम्बी सांस छोड़ते हुए उन्होंने देईवम्मे नन्नी कहा, यानि गॉड का शुक्र है। यूं लगा कि वो इस बात की खैर मना रही होगी, कि मैंने कान्वेंट नहीं ज्वाइन किया।
जहां तक मुझे पता है , सिस्टर सेलिन र ने 1964 में अपनी पांच सहपाठियों के साथ कान्वेंट ज्वाइन कर लिया था। 15 सहपाठियों में से 5 ने ज्वाइन किया था। हम सब आज नन है। मैंने उनसे पूछा कि वो नन क्यों बनना चाहती थी। उन्होंने कहा दसवीं क्लास के आखिरी दिन एक कैंप लगी थी और हमने वहा दाखिला ले लिया। हमें पता था कि हम नन बनने के लिए दाखिल हो रहे हैं , लेकिन यह बात भी सच है, कि हम सब बहुत छोटे थे। तो यह कहा जा सकता है , कि हमें जो भी पता था, कम ही पता था। आगे बताते हुए उन्होंने कहा, मुझे भी ऐसा लगता था कि मैं शादी करने के लिए नही बनी हूँ , पर यह बात मेरे दिमाग के किसी कोने में चुपचाप बैठी थी। ऐसा नहीं लगा कि किसी चीज़ से भागने के लिए नन बन रही थी।
सिस्टर सेलिन और बाकी की ननों से बात करने के पीछे का मेरा मकसद काफी साफ़ था - मैं उनकी ज़िन्दगियों में बस झाँकना चाहती थी। जिन मलयालम फिल्मों को देख कर मैं बड़ी हुई , उनमें नन का रोल करने वाली औरतें, साधारण लेकिन प्यारी सी होती थीं। स्क्रीन पे नन बनने वाली औरतों के चेहरे पे, एक अजीब सा दर्द दिखता था, शायद उनसे मदर मेरी जैसी सौम्यता और मातृत्व की उम्मीद की जाती थी। बच्चों की फिल्म अय्यपनतम्मा नेयाप्पम चुट्टू (2000) में, मोटी मदर सुपीरियर एक अनाथ बच्चे, मोनाप्पन, पे प्यार बरसाती है। फिल्म प्रियम ( 2000 ) में, नन अपनी बेस्ट फ्रेंड के रोमांस में उसका साथ देती है। लेकिन जिन ननों को मैं जानती हूँ , उनको लोगो की माँ बनने या उनके रोमांस में मदद करने में कोई दिलचस्पी नहीं है।
मेरी कैटकिज़म(सवाल जवाब से धार्मिक शिक्षा) की टीचर, सिस्टर बीट्रीस, अपनी सलेटी आल्टो में कुछ न कुछ करने के लिए पूरा गाँव घूमती रहती थी, और मुझे आज तक नहीं पता चला कि किस काम से। जब उन्होंने मुझे बड़े प्यार से अपने पास बुलाया तो मुझे काफी अच्छा लगा। ऐसा लगा वो मुझे फिल्मों वाली नन की तरह प्यार करेगी। लेकिन फिर पता चला के उन्होंने मुझे मेरी शॉर्ट्स की लम्बाई के बारे में लेक्चर देने के लिए अपने पास बुलाया था। आह, मेरा दिल थोड़ा टूट ही गया, समझो मेरा पहला हार्टब्रेक। फिर आयी सिस्टर ग्रेस, जिसने हमें साफ़ बता दिया था के लड़को और हमारे बीच कोई गड़बड़ हुई तो सीधा हमारे माँ - बाप से जा के शिकायत करेगी। चलो, कम से कम वो साफ़ बात तो करती थी। यही नहीं, वो जब भी मुझे संडे की सुबह वाली मॉस में मुझे सोता देखती , तुरंत अपनी लम्बी उंगलियों से मेरी पीठ पे वार करती।
अपने बचपन की ननों को मैं सिकुड़े होठों वाली सख्त औरतों के तौर पे जानती हूँ। मुझे उनके बारे में बस यही याद है। उन पिक्चर बनाने वालों की तरह , मुझे भी नहीं पता था कि नन जब संडे मॉस नहीं करतीं, तो फिर करती क्या थीं । वो सच्चाई में कैसी थीं ? यह पूछने में, डर लगता था।
कान्वेंट ज्वाइन करने की सलाह तो किसी ताने से कम नहीं लगती थी, क्यूंकि जो ननों की छवि मेरे सामने थी, उससे तो यही लगता था कि कान्वेंट की औरतों की ज़िन्दगी काफी नीरस होती है। इसलिए कान्वेंट में भेजने की धमकी, शादी को लेके विद्रोह को दबाने का थोड़ा-बहुत असरदार तरीका था ।
जब मुझे पता है कि मैं बड़ी होके उन औरतों जैसा नहीं बनना चाहती, फिर ऐसे में उन औरतों से बात करने का कोई फायदा है? मैं क्या सीखूंगी ?
मैंने एक एक कर के, सिस्टर्स से बात कर के, यह समझने की कोशिश की, कि अगर दशकों पहले, मुझे इनकी तरह सिस्टर बनना होता, तो मेरी ज़िन्दगी कैसी होती। पहले मैंने सिस्टर एक्विनास से बात की। फिर सिस्टर सेलिन से। फिर सिस्टर विमला और बाकियों से। और अब मैं दो स्कूल टीचरों को जानती हूँ , एक डॉक्टर को, एक नर्स को , एक सोशल वर्कर को , चाय के ठेके / चाय कड़े की मालकिन को और एक ऐसी औरत को, जो किसी से प्यार करती थी।
सेलिन सिस्टर खुद एक रिटायर्ड ज़ूलॉजी प्रोफेस्सर है और इस साल वो 74 की हुईं है। लेकिन वो बोलती है उनको लगता है वो अभी भी 60 की ही है। क्या मेरी आवाज़ से तुमको लगता है ,मैं बूढी हूँ।? थोड़ा तो घबराई मैं लेकिन बाद में मैंने खुद को संभालते हुए कहा नहीं तो , अरे बिलकुल नहीं। मैं उनको फ़ोन पे मुस्कुराते हुए सुन सकती थी। लोग तो मुझे ऐसा ही बोलते है वाह मुझे तो इस औरत से अभी से प्यार हो गया था।
बात करते करते, सेलिन सिस्टर मुझे बीच में टोक के कहती लेकिन तुमको तो मेरे बारे में यह पहले से पता होगा न , वह अपने टीचिंग करियर और उन लोगो के बारे में बात कर रही थी जिनको वो कॉलेज में पढ़ा चुंकीं हैं। लेकिन सच तो यह है कि मुझे सेलिन सिस्टर की उस टीचर वाली ज़िन्दगी के बारे में बहुत कम पता था। यह पता था कि वह हमारे परिवार में कोई मर जाता था, तो अंतिम संस्कार के समय वह अक्सर दिखती थी। शादियों में उतना नहीं आती थी। मुझे यह पता था कि उनको बातें करना पसंद था , लेकिन मुझसे ज़्यादा नहीं करती थी। मैं उनको एक नन के तौर पे जानती थी , और उनकी उस पहचान के बारे में भी, मुझे कुछ ज़्यादा नहीं पता था।
कुछ समय बाद, मैंने सत्तर साल की सिस्टर एक्विनास को फ़ोन लगाया और उनसे पूछा कि उनको ऐसा कब लगने लगा कि वह अब बूढी होने लगी है। उन्होंने थोड़े मज़ाकियाँ ढंग से मुझसे कहा मैं तो अपने आप को बूढा नहीं मानती , लेकिन अगर तुम कह रही हो तो मैं बूढी होंगी हीं।
यह सुन के मुझे थोड़ा अजीब लगा और मैंने तुरंत बात पलट दी और उनसे उनकी पिछली ज़िन्दगी के बारे में बात करने लगी। लेकिन तब भी वो अपने बारे में ठीक से बता नहीं पा रही थीं। जब मैंने उनसे उनके नन बनने के पीछे उनकी प्रेरणा के बारे में पूछा, तो उन्होंने ने मुझसे कहा क्या जानना चाहती हो ? यही कि मैं शादी नहीं करना चाहती थी इसलिए नन बनी ? यही जानना चाहती हो न ?
मैं मानती हूँ मैं नन बस इसलिए बनी, क्यूंकि यह गॉड की मर्ज़ी थी , और उन्होंने मुझे बुलाया था। अगर मैं सिर्फ शादी से बचने के लिए नन बनना चाहती, तो शायद चर्च में इतने दिन तक टीकी नहीं रहती। आजकल की लड़किया कॉंफिडेंट है। ऐसी कई औरतें है , जो न कभी चर्च ज्वाइन करती है , न ही कभी शादी करती है। उनके पास इन दोनों के लिए ही टाइम नहीं रहता। हो सकता है , वो खुश हों। हो सकता है, वो खुश न भी हों। क्या पता, मैं तो बस अपनी ही बात कर सकती हूँ।
केरला या कहीं और भी , ' सिस्टर ' शब्द का इस्तेमाल कई जगहों और कई तरीकों से किया जाता है। हॉस्पिटल में सिस्टर नर्सों को कहा जाता है, जो देख भाल करतीं है। और चर्चों में सिस्टर वो नन होतीं है जो आपको देखती है कि आप सही राह पे है या नहीं। और फिर ' सिस्टर' का मतलब बहन भी तो होता है। । शायद ''सिस्टर' शब्द ही ऐसा है, जो अपनेपन और देखभाल करने की भावना से भरा है। यही कारण था कि मुझे लगा कि औरतें नन बनी हैं, वो ममता की मूरत होंगी। या हमारे लिए बस औरतों को भागों में बांटना आसान है - शादीशुदा या कुंवारी , देखभाल करने वाली या देखभाल न करने वाली।
जैसे जैसे इन सारी नन्स ने अपनी बात की, मैंने देखा कैसे वो समाज के कसे हुए मातृत्व के बंधनों से आसानी से बाहर निकल गयीं l वैसा मातृत्व, जिसकी हर औरत से उम्मीद रखी जाती है, भला उसने बच्चा जना हो या नहीं l
सिस्टर सेलिन पहले टीचर है और बाकी सब, बाद में। तुम्हे विश्वाश नहीं होगा, लेकिन जब मैं अपने क्लासरूम के पोडियम पे चढ़ती हूँ , तो ऐसा लगता है मुझे किसी आत्मा ने अपने वश में कर लिया है। क्लासरूम के बाहर वो ( स्टूडेंट) मेरे दोस्त है। क्लासरूम के अंदर वो मेरे कोई बहुत बड़े प्रशंसक नहीं है और न ही मैं कोई उनकी प्रशंसक हूँ।
जब मैं उनसे उनकी नन वाली ज़िन्दगी के बारे में बात करना चाहती थी, तो वो वापस मुझे क्लासरूम वाली बात पे ले जाती थी। इस बात पे मुझे एक अपने कॉलेज का एक वाक्या याद आया, जब मेरी दोस्त ने हमारी एक टीचर से कहा वो तो हम सब की माँ जैसी है। टीचर को यह बात बुरी लगी और उस फ्रेंड की ओर देख के कहा ' छी ;
हमारी बातचीत के दौरान सिस्टर एक्विनास अक्सर अपने दोस्तों का ज़िक्र करती है - मंडली के अंदर और बाहर, दोनों के दोस्तों का। हम साथ में सफर करते है। वो मेरे साथ पूरा देश घूम चुके हैं। और मुझे ऐसा लगता है ,जितना भी मैंने सफर किया है ,वो किसी वरदान से कम नहीं है। वो मेरे काम का हिस्सा है। वो आगे बताती है , मुझे एक उम्रदार नन होना पसंद है। मेरे लिए यह गर्व की बात है। एक उम्रदार नन होने का मतलब है ,ज़्यादा इज़्ज़त और मुझे इस बात से कोई नाराज़गी नहीं है। अपने पुराने दोस्तों की उनके पास बड़ी मीठी यादें है। कई तो उनके कान्वेंट में जाने के बाद भी उनसे मिलने आते रहे।
कुछ खास नहीं बदला है। उनको अपना परिवार देखना है। मुझे अपना काम देखना है। लेकिन हमारी बचपन की यादें एक ऐसी कड़ी है जो हमें जोड़ के रखती है।
सारी ननें एक दूसरे से अलग थीं। लेकिन सब की सब, ' अनब्याही औरत ' नाम के इस भयानक जीव का नाम सुन के थोड़ा खीज जाती थीं। सिस्टर एक्विनास ने मुझसे कहा था कि आजकल की लड़किया काफी कॉंफिडेंट है तो मैंने उनसे पूछ लिया कि क्या वो जवानी में कॉंफिडेंट नहीं थी ? अपना घर छोड़ के कान्वेंट ज्वाइन करने के लिए कॉन्फिडेंस की ज़रुरत तो थी न। आज भी है। लेकिन एक अनब्याही महिला होना आसान नहीं है। इसका भुगतान देना होता है। अपने परिवार को और समाज , दोनों को। सच कहूँ तो यह एक कठिन लड़ाई है। और मेरा मकसद सिर्फ 'अनब्याही ' रहना नहीं था।
कोई भी कहानी उनके अनब्याही होने के इर्द गिर्द नहीं घूमती थी। वह अपने विचारो और नज़रियों को ले के बहुत दृढ़ थी । हाँ हम अनब्याही है। हम कुंवारी है। तो ? और मैं भी सोचने लगी। तो ? तो क्या हुआ ?
ये संभावना भी तो है कि शायद सेलिन सिस्टर, कान्वेंट ज्वाइन नहीं करती। वह कहती है मेरे सारे दोस्त जा रहे थे, तो मैं भी चली गयी। एकदम स्कूल की तरह तो था। बस फर्क यह था, कि बाकी विषयों की तरह हमें नन बनने की भी पढ़ाई करनी पढ़ती थी। शुरूआती महीने में तो घर की बड़ी याद आयी और रात भर रोई भी। घर से भाई - बहन और माँ -बाप मिलने आते थे ,कभी कभी। मैं कभी भी कट्टर भक्त नहीं थी। नियमित रूप से मॉस में जाने वाली लड़की तो मैं कभी थी ही नहीं। मुझे मेरी भक्ति के लिए कोई नहीं जानता था, लेकिन आखिर में अगर कोई नन बना तो वो मैं थी।
वो आगे बोलती है उनको अपना नन वाला काम पसंद है क्यूंकि यह उनकी पढ़ाने वाली जॉब का ही एक रूप है । कुछ लोगो को यह दिखाई नहीं देता लेकिन मुझे इस उम्र में भी अपना जॉब करने में मज़ा आता है। मैं सत्तर से ऊपर हूँ , लेकिन खुद को हमेशा व्यस्त रखती हूँ। मैं सिलाई -कढ़ाई करती हूँ, और मुझे बागवानी करना भी पसंद है। मैं अभी भी पढ़ाती हूँ और मेरे पास काफी ज़िम्मेदारियाँ भी है। और एक बात बताऊँ ? मैं अपने जीवन में कुछ भी बदलना नहीं चाहूँगी
सिस्टर एक्विनास के लिए भी उनका नन वाले काम और सोशल वर्क वाले काम में ज़्यादा फर्क नहीं था। बल्कि धार्मिक काम से उनके प्रोफेशन को और मदद ही मिली। एक अमीर घर में पैदा हुई सिस्टर एक्विनास आगे हँसते हुए बताती है मैं अमीरों को और अमीर नहीं बनाना चाहती थी लेकिन प्लीज मेरे बारे में ऐसे मत लिखना जैसे मैं कोई कम्युनिस्ट नन हूँ। यह तो बड़ी घिसी पीटी कहानी है। वो आगे बताती है , मैं नन इसलिए बनी क्यूंकि मुझे सच में अंदर से आवाज़ आयी' l
सिस्टर सेलिन मोहन लाल की फैन है। जब मैं हॉस्टल में नन थी तो मैं हर संडे उन बच्चों को पिक्चर दिखाने ले जाती थी , उन्होंने कहा। और मोहन लाल की तो कोई पिक्चर हम नहीं छोड़ते थे। बाद में मैंने सत्तर साल की सिस्टर एक्विनास को ममुटी और मोहन लाल के बीच किसी एक को चुनने बोला । कोई नहीं। उन्होंने बोला। मेरा हीरो तो सथ्यन है। और प्रेम नज़ीर ? मैंने उनसे पूछा। कुछ देर सोच के उन्होंने कहा नहीं। वो नहीं। वो तो बस चलते चलते गाना ही गाता रहता था।
मलयालम में नन को कन्यासत्री बोलते है। अगर इसको अंग्रेजी में अनुवाद करें तो मतलब होगा ' जो अब तक छुई न गयी हो, मतलब वर्जिन औरत, जो कि सुनने में काफी खराब लगता है। ब्रह्मचर्य की तो बात उठाने में भी डर लगता है मुझे। लेकिन किसी तरह मोहन लाल और सथ्यन की बात करते करते, मैंने उनसे उनकी यौन इच्छा और किशोरावस्था की फैंटसी की बात उठा ही दी।
सिस्टर एक्विनास ने कहा वो झूठ नहीं बोलेंगी। मैं कॉन्फेशन में भी गयी। अगर उससे कुछ नहीं होता था तो मैं खूब रोती थी। कभी कभी जब मेरी भावनाएं नहीं संभाली जाती थीं ,तो मैं चैपल में जा के , जी भर के रोती थी। ऐसा कर के मुझे हल्का महसूस होता था। सिस्टर सेलिन कहती है यह बिलकुल नार्मल है। आख़िरकर हम भी इंसान ही हैं। लेकिन असल बात यह है मैं इस कठिनाई से उभर पायी। वह आगे बताती है कि मदर मेरी उनकी सुख दुःख की साथी है। सिस्टर एक्विनास कॉवेन्ट ज्वाइन करने से पहले, अपनी माँ के साथ हुई बात चीत को याद करतीं है। मेरी माँ मुझसे हमारे चर्च के बाहर खड़ी मदर मेरी की मूर्ती के पास ले गयी और कहा मुझे अब उनके-यानी अपनी माँ के- सहारे नहीं रहना चाहिए। मुझे उनकी जगह मदर मेरी को दे देनी चाहिए। और मैंने ऐसा ही किया।
सिस्टर एक्विनास इस बात पे ज़ोर डालती है ,कि अगर वो कॉवेन्ट में टिकी, तो इसकी वजह उनकी सीनियर ननें ही हैं। कान्वेंट में हम सब साथी हैं, चाहे बूढ़े या जवान। सिस्टर सेलिन आगे बताती है। हम सब अपने कामों में व्यस्त हैं। जितना लोगो को लगता है उससे कहीं ज़्यादा। साथ काम करते करते ,कभी दोस्ती हो जाती थी। लेकिन सबको ये पता था के ये लम्बी दोस्ती नहीं है। जितनी भी है, ठीक है।
सिस्टर विमला ने कान्वेंट में ज़्यादा दोस्त नहीं बनाये । 52 की उम्र में खराब व्यव्हार के कारण उन्होंने कान्वेंट छोड़ दिया। मेरे लिए ऐसे कठोर , निर्दयी और जलन भरे माहौल में रहना मुश्किल हो रहा था। उनके पास लड़ने के लिए ठीक ठाक पेंशन था और साथ में एक वकील भी, जो उनकी लड़ाई में उनका साथ देने को तैयार था। पहली बार जब उन्होनें कान्वेंट छोड़ने की कोशिश की, तो उनके साथियों ने उनको बहला फुसला के रोक लिया। दूसरी बार उनको, मानसिक रूप से बीमार घोषित कर दिया गया। आखिर में , जब सब ने मुँह फेर लिया तो मेरी माँ ने मेरा साथ दिया। लेकिन जब चीज़ें और बिगड़ गयी तो गयीं, तो अम्मा से भी दूरियां बढ़ने लगीं। “
यह तो पता ही था कि लोगो की प्रताड़ना झेलनी पड़ेगी और किसी को यह याद दिलाने की भी ज़रुरत नहीं थी। बहुत सारे वाद- विवाद और अनेकों मुश्किलें झेलने के बाद, मैं इस फैसले पे आयी। वहां से निकलना आसान नहीं था और अब भी नहीं है, लेकिन मुझे कोई यह नहीं कह सकता कि मैंने कोई गलती की। मैं एक लेक्चरार थी और मेरे पास मेरे जॉब की कमाई थी। मैं ऐसी कई औरतों को जानती हूँ, जो कॉवेन्ट छोड़ना चाहती हैं, लेकिन न तो उनके साथ कोई परिवार का सदस्य है ,और न ही कोई कमाई का जरिया।
हालांकि वो अब नन नहीं , लेकिन लोग अभी भी उनको सिस्टर विमला के नाम से ही जानते हैं। लोग अक्सर भूल जाते हैं कि मैंने कान्वेंट छोड़ दिया है , मैं उनके सामने चूड़ीदार और साड़ी पहन के घूमती हूँ, तब भी ! यहाँ तक कि मेरी वकील भी। जिस दिन मेरा कोर्ट का सारा काम खत्म हुआ , मेरी वकील ने अपनी कार में बैठते हुए कहा ' बाए सिस्टर विमला ' l तो मैं जिससे भी मिलती हूँ, उनको सिस्टर विमला ही बुलाने को बोलती हूँ। मुझे ऐसे ही पसंद है।
मैं कान्वेंट में होने वाली राजनीति के बारे में हमेशा से जानती थी। मैंने अपनी पढाई ननों द्वारा चलाये गए कॉलेज से ही की थी। मुझे सब पता था , वो जलन भरा माहौल , एक दूसरे को लगातार नीचा दिखाने की कोशिश। और औरत और मर्द के लिए हमेशा से ही अलग अलग नियम रहे है। इन सब के बावजूद उन्होंने नन बनने का फैसला लिया क्यूंकि उनको उनको पता था गॉड उनको रास्ता दिखा रहे है। अब मैं न चर्च जाती हूँ , न रोजरी बोलती हूँ और न ही कंफेस करती हूँ। अपनी धार्मिक आस्था छोड़, मैं आगे निकल आयी हूँ लेकिन आध्यात्मिक अभी भी हूँ। मैं भले ही आज चर्च के खिलाफ बोल रही हूँ , लेकिन आज भी मैं सिर्फ गॉड के आगे ही झुकती हूँ।
मेरे शहर में एक आदमी ने चर्च ज्वाइन किया, बाद में वापस ग्रहस्ती में लौट आया। उसके परिवार ने उसका बाहें खोल के उसका स्वागत किया। मेरे पिता जी ने अपनी जवानी में सेमिनारी ज्वाइन की थी,लेकिन उनको वहां से भगा दिया गया क्यूंकि वो कम्यूनियन की वाइन पीते पकड़े गए थे। आज वो अपनी इस हरकत का बड़े गर्व से ज़िक्र करते हैं। मेरी परिवार की औरतों को अंदर से तो सिस्टर विमला के लिए सहानुभूति है , मेरी माँ भी रसोई के अंदर, उनकी बात सहानुभूति के साथ करती है । लेकिन घर से बाहर उनको कोई उल्टा सीधा बोलने से पीछे नहीं हटता।
सिस्टर विमला बोलती है वो कान्वेंट से ' बच' के निकल आयी। वो अपने कान्वेंट छोड़ने की बात इसी तरह करती है। आज वो अपने पेंशन के पैसे से खरीदे गए फ्लैट में अकेले रहती है। कान्वेंट छोड़ने के बाद की वो पहली रात सबसे डरावनी होती है। वो मुझे बताती है। बस ऐसा लगता है ,वापस चले जाओ। इसलिए मैं औरतों से हमेशा कहती हूँ कि अगर कोई रहने की जगह ढूंढ रहा है तो मेरा घर उनके लिए हमेशा खुला है। सिस्टर विमला ने कभी शादी नहीं की l लेकिन लिली कुट्टी , जो पहले सिस्टर ऐलिस के नाम से जानी जाती थी , की कहानी अलग है।
लिली कुट्टी को कॉवेन्ट के बाहर का रास्ता प्यार ने दिखाया। लिली कुट्टी रबर प्लांटेशन में काम करने वाले एक आदमी के साथ भाग गयी। उस आदमी को चर्च ने ही नौकरी दी थी। उन दोनों के कभी वापिस मुड़ के नहीं देखा। आज वो दोनों मेरे शहर में एक मशहूर चाय का ठेका चलाते है। मेरी एक दूर की रिश्तेदार , ग्लेडिस आंटी, को भी नन बनने के बाद ही प्यार हुआ। 42 साल की उम्र में इटली में नर्स के तौर पर काम करने वाली ग्लेडिस आंटी को उनसे उम्र में बड़ा एक मरीज़ मिला। उस आदमी ने जल्दी ही ग्लेडिस आंटी को प्यार का मरीज़ बना दिया। नन की ज़िन्दगी छोड़ आंटी उनके साथ नए रास्ते पे चल दी।
घर में लोग ठहाके लगा के बोलते है ' ग्लेडिस आंटी ने तो क्या मस्त जैकपोट मारा ' . उनका प्रेमी मरने से पहले काफी पैसा छोड़ गया उनके लिए। उन पैसों को वो कभी कभी, इटली से केरेला आ के, अपने परिवार पे खुले दिल से खर्च करती है।
मेरे ख्याल से ' गोल्ड डिगर ' ( ऐसे लोग जो सिर्फ पैसों के लिए शादी करते है ) के लिए मलयालम में कोई शब्द नहीं है। लेकिन मेरे आस पास के लोग इस बात का बतंगड़ बनाने में तुले हुए हैं कि कैसे ग्लेडिस आंटी को एक गोरा साहिब मिल गया।
बचपन में जब मैं लोगों को बोलती थी कि मुझे शादी नहीं करनी है, तो मुझे नहीं पता था एक अनब्याही औरत होने का क्या मतलब होता है। पर अब लगता है कि जो बड़े बूढ़े मेरे सिस्टर बनने वाला मज़ाक करते रहते थे, वो बड़े अज्ञानी थे, उनको मेरे बारे में तो बहुत कम पता था, इन सिस्टर्स की ज़िंदगी के बारे में तो और भी कम पता था l
कान्वेंट में रहने वाली हर नन की ज़िंदगी अलग थी, और उस ही तरह, कान्वेंट को छोड़ने वाली हर औरत की ज़िंदगी भी एक दूसरे से अलग थी - इन सबको एक ही चश्मे से देखना, नज़र की कमज़ोरी थी ।
सिस्टर सेलिन मुझे बताती है वो मेरे से बात करते करते, अपने बगीचे में लगे गुलाबों को निहार रहीं है। ' हो सकता है यह मेरे रिटायरमेंट के बाद का शौक है , मैं बढ़ा चढ़ा के बात नहीं कर रही हूँ , लेकिन तुम्हे इन गुलाबों को एक बार तो देखने ही चाहिए। वो आगे बोलती है अब तो हम एक दूसरे को जानते है। इसी तरह कभी कॉल कर लेना , हम बात करेंगे। अब हम दोस्त है। उन्होंने मुझे आश्वासन दिया।
सन् 2000 में, चिदंबरम द्वारा बनाई गयी फिल्म जानेमन में ,अपने पिता के अंतिम संस्कार के समय एक आदमी अपनी बहन पे, माँ के गुज़र जाने के बाद सब कुछ छोड़ के, चर्च भाग जाने का इलज़ाम लगाता है। बहन चुप चाप सब सुनती है, लेकिन माफ़ी नहीं मांगती। बाद में पता चलता है, कि उसके पिता ने मरने से पहले अपनी जायदाद का एक हिस्सा उसके नाम भी कर रखा है ताकि कभी उसका मन कॉवेन्ट छोड़ के नयी ज़िन्दगी की शुरआत करने का करे, तो वो आसानी से ऐसा कर सके। एक औरत कई ज़िंदगियाँ जी सकती है और ऐसा कहीं नहीं लिखा के ज़िन्दगी भर बस एक पहचान के साथ जीना है।
इसी फिल्म ने मुझे ननों से बात करने की प्रेरणा दी। मैं उम्रदर ननों के बारे में लिखना चाहती थी लेकिन मुझे जो कहानी मिली, वो उन औरतों की थी, जिन्होंने अपनी निजी ज़िन्दगी बहुत ही सफल और संपन्न तरीके से जी, शायद बाकियों से कहीं ज़्यादा। नन बनने से पहले उनकी ज़िंदगियाँ संपन्न अनुभवों से भरपूर थीं। और नन बनने के बाद भी और रिटायर होने क बाद भी। यह सोचना के बस वो सलेटी , सफ़ेद या भूरे लिबास में बेढब ज़िंदगियाँ जीने वाली प्राणी है , बहुत बड़ी बेफ़कूफी है।
नन होते हुए सिस्टर सेलिन बोलती है 'नन बनना तो बस ज़िन्दगी जीने का एक तरीका है। बस यही है। चलो कोई और बात करो अब। “
निकिता थॉमस अभी भी किसी ऐसे व्यक्ति की तलाश कर रही है जो उसे और अधिक लिखने के लिए धमका सके। उन्हें महिलाओं की एक लंबी सूची पसंद है। उसका ब्लॉग,
अगर वह किसी दिन आता है, तो उसका नाम फाइंडिंग फ्रैनी होगा। और उस पर जादुई रूप से लेखन हो जाएगा।