'अगर वो अक्सर अपनी एक्स (ex- पूर्वप्रेमी) की बातें करने लगता है, बताता है कि वो कितनी अजीब है, तो इसका मतलब है, कि वो अभी उस रिश्ते को भूला नहीं पाया है।' मैंने इंस्टाग्राम पर ऐसा ही कुछ पढ़ा और फिर सोचने लगी कि मेरा पार्टनर अपने एक्स की चर्चा कितनी बार करता है। ज्यादा नहीं! बल्कि उससे ज्यादा तो मैं अपने एक्स की बातें करती रहती हूँ। पर मुझे पता है कि मैं अपने एक्स को पूरी तरह से भुला चुकी हूं।
मेरे पार्टनर और मेरे बीच हमारे पूर्वप्रेमियों को लेकर पूरी ईमानदारी से बातचीत होती है। जैसे कि, किन वजहों से उनके साथ हमारा रिश्ता चल नहीं पाया। हम दोनों सालों से एक दूसरे के बेस्ट फ्रेंड्स रहे हैं। डेटिंग करना तो हमने लगभग दो साल पहले ही शुरू किया है। जब हम दोस्त थे, तो कई बार रोमांटिक सिलसिले में अपनी पसंद-नापसंद के बारे में बात करते थे। और तब जो हमारे पार्टनर थे, उनके बारे में भी काफी खुलकर और विस्तार में बात होती थी। तो फिर एक्स संबंधी मुश्किल भावनाओं की चर्चा को इंटरनेट पे सावधानी की लाल झंडी/red flag क्यों दिखाई जाती है? मुझे अभी भी लगता है कि मेरा एक्स एक बढ़िया आदमी था,पर मेरा पार्टनर अपनी एक्स की याद से उखड़ा उखड़ा रहता है। और ये सब अक्सर इस बात से जुड़ा होता है कि रिश्ते के टूटते समय हमारे एक्स ने हमारे साथ कैसा व्यवहार किया था ।
समय के साथ, हमने एक दूसरे से अपने दोस्तों, रिश्तों, हुकअप्स (hookup), काम- सभी के बारे में खुलकर बात की है। ठीक वैसे, जैसे आमतौर पर बेस्ट फ्रेंड्स करते हैं। अगर मैं टॉक्सिक संबंध वाली लाल झंडी पे तिलमिला जाती, तो फिर ये सब चर्चाएं और इनकी वजह से रिश्तों में आई नज़दीकियां कहां जातीं!
जो लोग बिना किसी तर्क के और ढोंग का चोला ओढ़कर रिश्तों पर नैतिक निर्णय लेते हैं, मुझे उनकी सोच से दिक्कत है । वे मेरे रिश्तों की वास्तविकताओं से वाकिफ नहीं हैं। मुझे उन औरतों के लिए बुरा भी लगता है जो ऐसी बातों को अपने रिश्तों का आधार बनाती हैं। मुझे अपने को महसूस होती उस राहत पे भी शक है, जो तब मिलती है जब कोई औरत बताती है कि उसका रिश्ता कितना वैशीला थाl वो राहत इस बात की होती है कि चलो, मेरे रिश्ते में ऐसा ज़हर बिलकुल भी नहीं हैं। यानी इस तरह से हम ये सोचने लगते हैं कि हम एकदम ठीक ठाक हैं और वो सब बेचारी, बड़े फटेहाल हैं, एकदम टॉक्सिक रिश्तों में बंधी हैं । सच कहूँ तो आजकल टॉक्सिक/वैशीला शब्द का इस्तेमाल बहुत ही लापरवाही से किया जा रहा है। कभी लोग, तो कभी व्यवहार तो कभी संबंधों के लिए, लोग बड़ी लापरवाही से यही शब्द उछालते रहते हैं।
एक और उदाहरण-, 'अगर आपका पार्टनर अपने रिश्ते को गुप्त रखने के लिए काफी कोशिशें करता है, तो आपको इस रिश्ते को खत्म कर देना चाहिए।'
वैसे मैं एवरेज टाइप A, महत्वाकांक्षी, इमोशनल टाइप हूं। मैंने अपने स्कूल के दिनों में और बाद में यूनिवर्सिटी में भी ये महसूस किया है कि कभी-कभी मैं क्या कर रही हूँ, कैसे जी रही हूँ, इसपे बड़ी पैनी नज़र रखी जा रही है। (या शायद मैं खुद ही अपने आप को इतना महत्वपूर्ण मानती हूँ कि लगता है जैसे सब मेरे ही खिलाफ षड्यंत्र रच रहे हैं।)। जब मैंने पहली बार यूनिवर्सिटी में डेटिंग शुरू की, तो मेरे मन में कुछ शंकाएं थीं। और वो मेरे कुछ दोस्तों की बातों की वजह से थीं। वो मुझसे पूछा करते थे, कि क्या सच में मैं X को डेट कर रही थी (जो कि सच था)। और फिर वो बोलतीं, कि उन्हें यकीन नहीं हो रहा था क्योंकि X मेरे टाइप का नहीं था। (लो बताओ, मुझे तो पता भी नहीं था कि मेरा कोई टाइप है)। मेरी महिला मित्र मंडली, जिनसे मैं उतनी करीब नहीं थी जितना कि X के, मुझे बढ़ा चढ़ा कर कहतीं, कि मेरे मुकाबले में
X कुछ भी नहीं था। इस चापलूसी से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ा। कोई मुझे मेरे डेटिंग पे मापे, ये मुझे पसंद नहीं। और मैं नहीं चाहती कि चाहे वो रिश्तों में स्तर की बात हो या ओहदे की, मुझे मेरे पार्टनर से, या उसकी मेरे से, तुलना की जाए।
मैंने उसके साथ अपने रिश्ते को छुपाने की हर कोशिश की थी। पर वो इसलिए नहीं कि मुझे उसके साथ रहने में शर्म आ रही थी, सिर्फ इसलिए क्योंकि मैं हमारे रिश्ते पर दूसरों की बिना माँगी राय नहीं चाहती थी। मैंने अपने करीबी दोस्तों को भी कहा था कि वो भी किसी को ना बताएं। मेरे बहुत खास ही ऐसे कुछ दोस्त हैं जो मेरे अभी के रिश्ते के बारे में जानते हैं। मुझे और मेरे पार्टनर को इससे कोई दिक्कत नहीं है, उल्टा आराम है कि दूसरों की टिप्पणियां नहीं सुननी पड़ती है। और उसे पूरी आज़ादी है अगर वो हमारे रिश्ते के बारे में किसी को बताना चाहे। वो तो मैं हूँ जो ये चीज़ें प्राइवेट रखना पसंद करती
हूं, और वो मेरे फैसले का सम्मान करता है। इंटरनेट को ज़रूर लगेगा कि ये रिश्ता टॉक्सिक है, क्योंकि लिस्ट बनाने के इस तरीके में सब कुछ या काला या सफ़ेद होता है, बीच की बातों की जगह ही नहीं रहती।
'टॉक्सिसिटी’ यानी ज़हरीलेपन के आसपास, सन्दर्भ को भुला के, एक जरूरत से ज्यादा सरल थ्योरी बना दी गई है। ऐसे में किसी को नजदीक से समझने में जो मुश्किलें आती हैं, वो उठाने को कोई तैयार ही नहीं है। लोग जो करते हैं, या किसी के किये पे जो प्रतिक्रिया करते हैं, उसकी बड़ी सारी वजहें हो सकती हैं। हर रिश्ते की अपनी वजहें होती हैं, उस रिश्ते में बंधे लोगों की अपनी वजहें होती हैं, आपसी समझौते होते हैं। हर रिश्ते में कुछ शर्तें मौजूद होती हैं। और ये समझने में कुछ समय लगता है कि जो लोग इस रिश्ते हैं बंधे हैं, उन्हें वो शर्तें जायज़ लगती हैं या नाजायज़।
मैं ठन्डे दिमाग से सोचूं ,तो मुझे लगता है कि किसी की ज़िंदगी पे ये फैसले और ऐलानों का इतना शोर है, कि इनसे मुंह फेरना मुश्किल है। जब मैं किसी के साथ एक रोमांटिक रिश्ते में होती हूँ, तो इस बाहरी दुनिया के मानकों के अनुसार अपने रिश्तों और व्यवहार को परख कर, मैं अजीब महसूस करती हूँ। हां, अजीब तो मैं वैसे भी कई बार महसूस करती हूँ, पर यहां ऐसा लगता है, जैसे सबसे कट सी गई हूं। और फिर कभी-कभी दूसरे अनुमान लगाने लग जाती हूँ, कुछ कहने करने से झिझकने लगती हूँ, अपनी हर बात पे सवाल करती हूँ। जब मैं खुद को एक नारीवादी/फेमिनिस्ट के रूप में देखती हूँ, तो मुझे लगता है कि किसी भी तरह के टॉक्सिक व्यवहार या रिश्ते को सामने लाना मेरी भी ज़िम्मेदारी है। अगर मैं ऐसा नहीं कर रही हूँ, तो ये मेरी अंतरात्मा और आत्म विशवास, दोनों को बहुत घायल कर देने वाली बात होगी। अगर इंटरनेट मुझे बता रहा है कि कुछ गलत है, और इस तरह की पोस्ट पे दूसरे लोग कमेंट कर रहे हैं कि उन्होंने भी कुछ गलत हो रहा है, इस बात पे सही टाइम पर शोर न मचाने की गलती की, तो क्या मैं सिर्फ इसलिए चुप बैठी हूँ क्योंकि अपने या अपने पार्टनर के लिए बहाने ढूंढ रही हूँ?
तो ये रही एक और बात जो अक्सर कही जाती है, जो सलाह देने वालों में बड़ी लोकप्रिय है: अगर वो आपके पीछे नहीं पड़ रहा है, तो उसे टेक्स्ट मत करो। तो दरअसल आपको ऐसा पार्टनर मिलना चाहिए जो आपके लिए फूल लाये, पहले रिंग पे ही आपका फ़ोन उठा ले और आपको मैसेज भेजता रहे जब तक आप जवाब ना दें। इस सब के बीच वो जगह कहां है, वो स्पेस जो हमें तब चाहिए होती है जब हम बात ना करना चाहें। बेवकूफी भरी नसीहतें ! मानो ज़िंदगी बस किसी रोमांटिक मूवी के मेन सीन से बनी हुई है। किसी भी रिश्ते को सही गलत का स्पष्ट लेबल दे देना, रिश्तों के विस्तृत, भिन्न रूपों को नकार ही देता है l शायद वो रिश्ता हर कोई सरलता से समझ न पाए l पर इस तरह के लेबल, किसी भी रिश्ते की आजादी, उनकी रचनात्मक संभावनाओं को सीमीत कर देते हैं।
मानो कि उसे मैसेज किये एक दिन बीत चुका है| अब या तो मैं इन्टरनेट लव गुरु की बात मान लूँ और उसे धोखेबाज़ घोषित कर दूँ या फ़िर इस असलियत पे गौर करूँ कि मैंने भी तो उसे मेसेज नहीं भेजा है| क्या मैं अभी भी बहाने बना रही हूँ? मानो कि मैंने एक बार डीसाइड कर लिया कि मैं उसको मेसेज नहीं करूंगी और फिर मैं अपनी ही बात से मुकर जाऊं? और अगर उस ही दिन उसने कोई प्यारा सा गाना भेज दिया तो अपना गुस्सा थूक दूँ और एक प्यारा सा जवाब भेजूँ? या फिर उसे भीष्म प्रतिज्ञा मान के, अपनी बात पे अड़ी रहूँ? ये सोच के कि हाल फिलहाल में मैंने यूं ही बहुत सारी बातें छोड़ी हैं| जो बाद में मुझे चुभी हैं| और जब हम किसी बात पे सहमत नहीं होते, तो वो दबाया हुआ गुस्सा धम्म से बाहर निकल आता है| क्या मैं इसे ओवररिएक्शन कह सकती हूँ? जो मेरे अन्दर हो रहे उथल-पुथल को बाहर लाता है? हम दोनों लम्बे अरसे से नहीं मिले हैं| हालांकि हम पहले भी लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप में रहे हैं| पर पहली बार एक दूसरे को बिना देखे हुए इतना लंबा समय बिताया है|
कभी कभी मेरा दिल उसकी बाहों की गर्मी और अपनापन महसूस करता है| इतने सालों का अपनापन | सोचती हूँ कि क्या वो वाकई बिज़ी है या आज जनाब का बात करने का मूड नहीं है| या फिर मैं अपने से कहती हूँ कि ये पैटर्न ढूंढना बंद करो, यह सी.आई.डी.गिरी छोड़ कर इस बात पर ध्यान दो कि हम दोनों ही काफ़ी व्यस्त रहते हैं| फ़िर भी दिलो जान से इस रिश्ते को निभाने की कोशिश कर रहे हैं| सब रिलेशनशिप का अपना ही एक पैटर्न होता है न? अपना ही एक लॉजिक? क्या इन बर्तावों को हम फैक्ट्री से निकलने वाले सामान के जैसा क्वालिटी चेक कर सकते हैं?
किसी भी वक़्त, जब भी रिश्ते में तकलीफ़ देने वाली बातें होती हैं, मैं इस रिश्ते के बारे में सोचने लग जाती हूँ| मैं उसे इतने सालों से जानती हूँ कि मुझे उस पर पूरा विश्वास होना चाहिए | पर इस विशवास की वजह मैं अक्सर उसकी उन बातों को भी अनदेखी कर देती हूँ जो मुझे जाने अनजाने तकलीफ़ देती हैं|
मैं ज़रुरत से ज़्यादा सोचती हूँ| यूं सोच सोच के, अपने को परेशान कर कर के, अक्सर मुझे अपने बारे में कुछ ख़ास पता नहीं चलता | मेरी सबसे बुरी आदत है , यह सोचना कि मेरे साथ सबसे बुरा क्या हो सकता है| जो इस बात का पक्का सबूत है कि मुझे घंटा पता है कि मेरी लाइफ में वाकई क्या हो रहा है| यह समाज द्वारा बनाये गए रिश्ते के जो रूल्स हैं, वो हम दोनों को एक दायरों में बाँध देते हैं | हम या अच्छे या बुरे बन जाते हैं| ना कि बीच के उन लोगों के जैसे जिनमें बुराई के साथ अच्छाई भी होती है| जो एक दूसरे को समझते हैं| ये रूल्स वाले दायरे ऐसी जगह की गुंजाइश नहीं रखते जहां रिश्ते में जुड़े हुए दो लोग एक स्वाभाविक तरीके से अपनी बात कह सकें, अपने हक़ मांग सकें, अपना प्यार पा सकें| इसकी जगह मुझसे कहा जाता है कि रिश्तों के इन रूल्स को कभी न भूलो l ये रूल्स उन नाज़ुक, बेचैन जज़्बातों को भूल जाते हैं तो करीबी रिश्तों का हिस्सा होते हैं l
मुझे खुद नहीं पता मैं क्या लिख रही हूँ| पर मुझे लगता है यह ‘एजेंट ऑफ़ इश्क’ की तारीफ़ में लिखा जा रहा है| क्योंकि यह उन बातों पर गौर करने की कोशिश है जिनको ट्विटर और इन्स्टाग्राम की वो लाल झंडियां छिपा देती हैं |
मैं मानती हूँ कि करीबी रिश्तों में गलत बर्ताव की बात करना बहुत ज़रूरी होता है| क्योंकि इन रिश्तों में हम अपना दिल खोल कर सामने रख देते हैं| और अक्सर हम ध्यान नहीं देते कि कि कब हमारे प्यार का फ़ायदा उठाया जा रहा है| औरतों के लिए यह बात ख़ास सच होती है| क्योंकि हमें यूं ही बढ़ा किया गया है, कि जब हमसे कोई बुरा बर्ताव भी करे, तो हम उसकी सफाई भी खुद दे दें| हम इस ही तरह, अपने पार्टनर की गलतियों पर पर्दा डालने की कोशिश करते हैं| मैं मानती हूँ कि यह चेतावनियाँ, हमें सही रस्ते पर ला सकती हैं| अब तक तो किस्मत ने मेरा साथ दिया है| मैं मेरे रिश्ते को एक हेल्थी रिलेशनशिप मानती हूँ पर आस पास रिलेशनशिप को लेकर नीगेटिविटी की इतनी बातें सुनी हैं कि मुझे अपने रिलेशनशिप पर पूरा भरोसा कभी नहीं हो पायेगा | टॉक्सिक / ज़हरीले रिश्तों पे बातें इस हद तक छिड़ी हैं कि ये डर मेरे अंदर भी बैठ गया है कि मेरे रिश्ते का कोई पहलू टॉक्सिक तो नहीं है ?
ये जो रिश्तों में क्या सही और क्या गलत वाले रूल्ज़ हैं, जब ये लकीर के फ़कीर बन जाते हैं, तब, मेरी मदद करने के बजाये, खुद अपने रिश्ते की बारीकियों को समझ पाने का मेरा कॉन्फिडेंस कम कर देते हैं l मैं अपने बारे में ही ऊट पटांग सोचने लगती हूँ l औरतों को बड़ी आसानी से ‘यातना की शिकार’ या उत्पीड़ित, लेबल किया जाता है | इस तरह की सोच औरतों के प्यार करने या ना करने की ताकत, रहने, छोड़ने की ताकत, मुश्किलों का सामना करने की ताकत, और उनकी सोचने की क्षमता पर ध्यान नहीं देती| उनसे उनका उत्तरदायित्व छीन लेती है, उन्हें अपनी गलतियां कबूल कर पाने के आड़े आती है | कभी कभी मुझे लगता है कि मुझे एक हानिकारक रिलेशनशिप में होने से ज़्यादा एक बेचारी कहलाये जाने से डर लगता है, जिसके साथ कितना गलत हुआ है| ये पोस्ट् औरतों का ज़िक्र ऐसे ही तो करते हैं l
यह बातें अक्सर मुझे कंफ्यूज करती हैं|
रिलेशनशिप के इस बाज़ार में जहाँ सलाहकारों की सलाह हर समय चाइना के माल जैसी बिना किसी गारंटी के मिलती है ,वहाँ एजेंट्स ऑफ़ इश्क जैसी वेबसाइट्स खरी बात कह जाता है l एक शीतल सरोवर जैसे, राहत देता है | अक्सर और वेबसाइट a.किसी चीज़ की वजह क्या है, और b.अलग थलग बातें एक साथ कैसे जुडी हुई हैं, इन दो मुद्दों को कंफ्यूज कर देते हैं l इस बात से मुझे पैटर्न्स की बात याद आयी | क्योंकि पैटर्न ही हमें एक ओर हमारे परेशानियों का कारण बता सकता है और दूसरी ओर, कौन सी बातें एक दूसरे पे असर कर रही हैं, ये भी समझा सकता है l
मुझे पैटर्न ढूंढना अच्छा नहीं लगता है| इसका एक कारण है| मैं मेरे साथ हुआ हर बुरा अनुभव एक जर्नल में लिखती हूँ| लिखने से मुझे शान्ति मिलती है| ख़ुशी ज़ाहिर करने के लिए मैं या फट्टू किस्म के मैसेज भेजती हूँ या किसी से बात करने को कॉल करती हूँ| पर जब दुःख का साया मेरे ऊपर मंडराता है तो मैं एक किशोर बन जाती हूँ| जो हेवी मेटल रॉक गाने सुनता है| उन गानों की हर लाइन जैसे उसी की दिल की बात कहती है| उसके दर्द को समझती है| हालांकि उन गानों के बोल के में जो दुःख बयान किये जाते हैं, वो मेरे दुःख से कहीं बड़े और भयंकर होते हैं !
इसलिए मैं तभी लिखती हूँ जब मैं गुस्सा होती हूँ| या फिर मेरे पार्टनर ने मुझे अपनी हरकतों से दुःख पहुँचाया होता है| क्यूंकि लिखने से मैं थोड़ी शांत हो जाती हूँ l अब अगर कोई मेरा जर्नल पढ़े, तो उसे एक ही किस्म का पैटर्न दिखेगा, है न ! मैं खुद अपना ये जर्नल तभी खोलती हूँ जब मेरा दिल दुःख और निराशा से भरा होता है| जब मेरी सोचने की शक्ति कमज़ोर पडी होती है l बस अपने पिछले दुखों के बारे में पढ़कर, अपनी निराशा का जायज़ होने की तसल्ली मिल जाती है l
इस सब से मुझे खुद पर ही संदेह होता है| जोकि गलत नहीं है| लोग अक्सर कहते हैं कि एक नैतिक समझदारी की नींव अपने से सवाल करने पे पड़ती है | पर मैं जो सुनती या पढ़ती हूँ, उसकी वजह से खुद से कुछ ज़्यादा ही सवाल करने लगती हूँ | मुझे लगने लगता है कि मैं गर्ल बॉस/girl boss (अपने शर्तों पर अपनी जिंदगी जीने वाली लड़की) हूँ ही नहींl लोग बोलते हैं की गर्लबॉस टाइप लडकियाँ थोड़ी नकचढ़ी होती हैं| पर हम औरतें गर्लबॉस कहलाना पसंद करेंगी| अपने पार्टनर से किसी उत्पीड़न सहने से तो बेहतर है|
तो मुझे ऐसे समय में लगने लगता है कि मुझे अपने अंदर से ये दब्बू होने के पैटर्न्स को ढूंढ कर बाहर फेंकना चाहिए l ऐसा न किया तो मैं अपनी औरत कौम के साथ नाइंसाफ़ी कर रही हूँ| उस आदमी को अलविदा कहना ज़रूरी है| कि मुझे बिना अपने से सवाल किये, उस आदमी को अपनी लाइफ से निकाल देना चाहिए l उसको फिरसे कभी भी टेक्स्ट नहीं करना चाहिए l मैं और अच्छा मीत ढूंढ सकती हूँ l मुझे मेरे आदर्श पर खरा उतरने वाला, परफेक्ट आदमी ही ढूंढना चाहिए !!!आदि आदि...
तो टॉक्सिक रिश्तों पे लिखे गए ये सारे लेख मुझे और भी अकेला छोड़ जाते हैं l यूं लगने लगता है कि संवेदनशील आदमी से रिश्ता बनाना संभव ही नहीं l (आआआअह) हो सकता है इन दयालु टाइप मर्द की संख्या ही कम होती है| और मैं शायद अभी काफ़ी जवान और बेवकूफ़ हूँ, इसलिए इस बात को समझ नहीं पा रही हूँ | तो अब मैं इस मझधार में हूँ कि मैं गर्लबॉस बन कर अपने पार्टनर को टाटा बोल दूँ या फिर उसी के साथ जीवन बिता दूँ, क्योंकि इस प्रजाति के बहुत कम मर्द बाकी हैं | मुझे नहीं मालूम कि अगर मैंने इन दोनों में कोई भी फैसला लिया, तो उसका आधार क्या होगा ? खुद की बात पर खरे उतरने के लिए ? अपनी रिलेशनशिप को अपनी दिमागी उधेड़बुन को शांत करने का ज़रिया बनाने के लिए ? और या फ़िर उन मापदंडों पे खरी उतरने के लिए, जिनके आधार पे लोग अच्छे और बुरे रिश्ते का फर्क बताते हैं ?
एजेंट्स ऑफ़ इश्क रिलेशनशिप से जुड़ी सुन्दर सरल बात करता है, जो लोगों के खुद के अनुभवों और सीखों से आती हैं| मैं यह नहीं कहूँगी कि मुझे तब भी कंफ्यूज़न नहीं होता है| पर AOI में छापे लेखों की सच्चाई और लोगों के वास्तविक अनुभव, मुझे तसल्ली देते हैं और मुझे खुद के लिए सोचने का समय भी | मेरे कंफ्यूज़न मेरे हैं | और उन्हें मैं अपने तरीके से हैंडल करूंगी | खुद से, अपने पार्टनर से, जिंदगी के फैसलों से, अपनी सोच से सवाल करना ज़रूरी है| एजेंट्स ऑफ़ इश्क एक साथी है जो मुझे मेरे हिसाब से, से, मेरी रफ़्तार के अनुसार सोचने देता है| जब बाकी दुनिया मेरी कमज़ोरियों पर जोर देती है वो AOI मुझे उन कमज़ोरियों में ताकत ढूँढने में मदद करता है|
मैं उम्मीद करती हूँ कि इन सभी रिलेशनशिप में मैं कभी अपना वजूद ना खोऊँ | इमोशनल, थोड़ी कंफ्यूज और अपने दिल की सुनने वाली बनी रहूँ | बाहरी समाज की ताकत/दूरदर्शिता/बुद्धिमानी के मापदंड पर खरा उतरने के लिए ना जीऊँ | इस डर के साये में न जिऊँ, कि मुझे हर हाल में टॉक्सिसिटी के बचना है | प्यार और फेमिनिज्म जो बातें सिखा सकती हैं, मैं उम्मीद करती हूँ कि वही बातें अपने रिश्तों से भी सीखूं - कि जो हम हैं, वैसा ही दुनिया को भी दिखाने की कोशिश करें r| अपने ऊपर विशवास रखें | और इस बात पर भी, कि इस दुनिया में पाने को बहुत कुछ है, जो सुन्दर है lपिक्चर अभी बाकी है|
लक्ष्मी लॉ की स्टूडेंट हैं | जो वो करना चाहती थीं वो चीज़ें अब संभव लगने लगी हैं | आगे जाकर वो क्रिएटिव राइटिंग का कोर्स करना चाहती हैं| कहानियाँ लिखना चाहती हैं| और लोगों से वो बातें करना चाहती हैं जो उन्हें सोचने पर मजबूर कर दे|( एक प्यार भरे तरीके से)
"अगर तुम्हारा पार्टनर <यह> करता है, तो लड़कियों, तुम्हें उसे छोड़ देना चाहिए।"
ये टॉक्सिक-वोक्सिक चर्चाएँ मेरी सोच में ज़हर घोल रही थी |
लेख: लक्ष्मी
अनुवाद: प्राचिर और नेहा
चित्रण: नंदिता रतन
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