छह सरल सुझाव जिनसे माँ-बाप अपने बच्चों की मेंटल हेल्थ पे ध्यान दे सकते हैं
बच्चों के मानसिक स्वस्थ्य के लिए बड़ों को थोड़ी मदद !
लेख : उत्कर्षा जग्गा
अनुवाद: मिहीर सासवडकर
चित्र: देबस्मिता दास
इटरनेट पर आपको ऐसे ढ़ेर सारी कहावतें मिलेंगी जो बच्चों की परवरिश, और माँ बाप बनने की खुशी का बखान करती हैं। लेकिन ये भूल जाती हैं कि बच्चों की परवरिश के साथ डर और घबराहटवाला मामला भी होता है। आख़िर हर माँ-बाप इस बात से चिंतित रहता है कि क्या वह अपने बच्चे की ‘सही’ परवरिश कर रहा है या नहीं। आजकल, स्कूल और कॉलेज में और कॉलेज के बाद भी, कॉम्पिटिशन बढ़ गया है। बच्चों को बिना किसी रोक के टी वी और सोशल मीडिया देखने मिलता है। इसकी वजह से उनपर ‘कूल’ होने के बाहरी दबाव आ जाते हैं। 'नार्मल' की भी एक नयी मुश्किल सी परिभाषा उनके दिमाग में बैठ जाती है । अगर आपका बच्चा है, तो आपने बड़ी चिंता के साथ समाज में बच्चों की बिगड़ती मेंटल हेल्थ के बारे में पढ़ा होगा। शायद इस बात की चिंता होगी कि आप अपने बच्चे की मेंटल हेल्थ को और मज़बूत कैसी बना सकते हो और उसपर समय समय पे ध्यान कैसे दिया जाए ।
बच्चों की परवरिश से जुड़ी चुनौतियों का सामना करने के लिए यह रहे छह सरल सुझाव।
चिंता करना स्वाभाविक है (और आपके बच्चे में आ रहे बदलाव भी, उतने ही स्वाभाविक!)
यह समझना ज़रूरी है कि जैसे बच्चे बड़े होते जाते हैं, वैसे वो बातें भी बदलती जाती हैं जो उन्हें तनाव देती हैं । के. जी. (KG) क्लास में, टीचर से स्टार स्टिकर ना मिलने ने उन्हें उदास बनाया होगा, तो मिडिल स्कूल में बच्चों के किसी ग्रूप से ठुकराये जाने ने। और रही बात कॉलेज की, तो कॉलेज के दिनों में दिल का टूटना तो आम बात है। ध्यान में रखिए कि क्या आपका बच्चा इनमें से किस तनाव से गुज़र रहा है, और फिर उसके मूड को समझने की कोशिश कीजिए। आपका चिंता करना जायज़ है। लेकिन इतनी चिंता भी मत करना कि उससे आपका या आपके बच्चे का दम घुटने लगे। थोड़ी संवेदनशीलता, थोड़ी आइस-क्रीम और प्यार से गले मिलने से आपके बच्चे का मूड हल्का हो सकता है।
आपके बच्चे को एक स्वतंत्र, स्वावलंबी इंसान के रूप में देखिए ( ऐसा बनने में उसकी मदद कीजिए)
यह समझना ज़रूरी है कि आपका बच्चा निस्सहाय नहीं, बल्कि ऐसा इंसान है जो अलग अनुभवों से गुज़रेगा और उनकी वजह से वो दूसरों से अलग, एक निराला इंसान बनेगा। इसलिए जब वो अपने शरीर की कथित खामियों या अपनी पढ़ाई, लैंगिकता, लिंग और दोस्तों के बारे में बात करता है, तब ध्यान देकर सुनिए। उसकी भावनाओं को समझने की कोशिश कीजिए। उसे यह समझने में मदद कीजिए कि हर बात के अलग पहलू होते हैं। और यह दोहराना ना भूलें कि समाज उसके बारे में कुछ भी कहे, पर सच यही रहेगा कि वो स्पेशल है । माँ बाप की हैसियत से जब आप अपने बच्चे को हर तरह से एक्सेप्ट करते हैं, उसकी सराहना करते हैं, तो वो अपने बारे में पोसिटीवेली सोचना सीखेगा । जब आप उसे स्वीकार करोगे तो उसका ख़ुद को स्वीकार करना और आसान होगा। वो अपने सन्दर्भ और अपने बारे में , अच्छा सोच के, आत्म विशवास के साथ, दुनिया में कदम रखेगा l
अपने बच्चों को दूसरों पर भरोसा करना और उनके साथ अपने नातों में रिश्तों में सीमाएं बाँधना सिखाईये
बच्चो को ये ज़ाहिर कर पाना कि आप उनकी बहुत परवाह करते हो, बहुत ज़रूरी है । लेकिन इस बहाने लगातार उनकी ज़िंदगी में दखलंदाज़ी करना भी सही नहीं होगा। उन्हें यह समझाना ज़रूरी है कि आप उनकी मदद करने के लिए हमेशा तैयार हो, बिना उनकी आलोचना किए। लेकिन उन्हें ख़ुद अपनी भावनाओं को समझने भी मौका और दीजिए। ऐसा करने से पे शायद वो और आसानी से अपनी किसी तकलीफ़ के बारे में आपसे बात करेंगे। सबसे महत्त्वपूर्ण बात है, आपके बच्चों को ये याद दिलाना कि आप उनपर भरोसा करते हो कि वे अपने फ़ैसले ख़ुद ले सकते हैं और उन फ़ैसलों से सीख सकते हैं। यह बात भी दोहरानी ज़रूरी है कि कुछ गड़बड़ होने पे वे आपकी मदद लेने ज़रूर आ सकते हैं। आपके इस रवैय्ये की वजह से आपके बच्चों को जीवनभर दूसरों पर भरोसा करने और उनके साथ उनके नातों में उचित सीमाएँ बनाए रखने में मदद मिलेगी।
बच्चों के सामने आपके अपने बर्ताव के बारे में सचेत रहिए (छोटी छोटी बातें मायने रखती हैं)
याद रखिए कि कभी कभी बिना सोचे समझे बच्चों के सामने की गयी मामूली सी हरकतें भी उनके मेंटल हेल्थ पर असर कर सकती हैं। उदाहरण के तौर पर, यदि आप बच्चों के सामने अपने साथी के साथ लड़ते हो, तो आपके बच्चों का दर्द सकता है। और अगर आप उनकी भावनाओं को नकारते हो (चाहे वो ख़ुशी, दुःख, ग़ुस्सा या डर हो) तो उन्हें लग सकता है कि उनकी भावनाएँ ग़लत हैं और वे उन्हें व्यक्त करना कम कर देंगे। माँ-बाप होने के नाते यह बहुत महत्त्वपूर्ण है कि आप अपने बच्चों के अनुभवों को स्वीकारें और उन्हें मान्य करें। उन्हें यह बताना ना भूलें कि आप उनकी बातों पर विश्वास करते हैं। इसका बहुत फ़ायदा होता है।
जैसे -जब आपके बच्चे दुनिया में खोज करें, आप भी उनका साथ दीजिए (और उन्हें पहल करने दीजिये, राह दिखाने दीजिए)
जब आप आपके बच्चों के साथ बात करते हो, तब उनकी जिज्ञासा की प्रशंसा कीजिए और उनके बारे में जानने के लिए उनसे सवाल कीजिए। उनके साथ ऐसे बात कीजिए जैसे वे जानते हैं उनकी दुनिया में क्या चल रहा है। अपनी बातचीत में उनकी राय और बातों को महत्त्व दीजिए। और बच्चों से बात करने के बाद, आप ज़िंदगी को एक नए हलके अंदाज़ में देखने लगते हैं। जो बड़े होने पर, ज़िम्मेदारियों निभाने और रोज़मर्रा की ज़िंदगी काटने में हम खो देते हैं। उनकी कहानियाँ सुनते वक़्त, अपनी कल्पना पे थोड़ा ज़ोर दीजिये और उनका साथ दीजिये, । इससे उन्हें अपनी निराली सोच बनाने में मदद मिलेगी। ये याद रखिये कि हम में से कोई भी दुनिया भर के ज्ञान का भण्डार नहीं है।
थेरपिस्ट की मदद लो (बावजूद इसके कि आप अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे हो)
अपने बच्चों के बदलते बर्ताव के बारे में सचेत रहिए - नींद में बदलाव, खाना खाने के तरीकों में बदलाव, बात करने में बदलाव, भावनाएँ व्यक्त करने में फर्क (ग़ुस्सा दिखाना, रोना, इत्यादि) और दूसरों के साथ, समाज में, उनके घुलने मिलने या दूर हटने में कुछ बहुत बदला हुआ दिखे तो । उनके बदलते बर्ताव को उनके ‘हॉर्मोन’, उनकी बढ़ती उम्र या उनके ‘वातावरण में बदलाव’ - यह वजहें देकर टाल मत देना। कभी कभार, या तो प्यूबर्टी/ puberty के कारण या दूसरी वजहों के कारण भी, होनेवाला इमोशनल दर्द और तकलीफ होते हैं l उन्हें अपनी फीलिंग्स को समझने और स्वीकार करने में परेशानी हो सकती है l उनपर गहरा असर हो सकता है, मन ही मन, एक गहरा घाव पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में उनका समर्थन करना और डॉक्टर या थेरपिस्ट की मदद लेना, ज़रूरी हो सकता है। कुछ माता-पिताओं को लग सकता है कि डॉक्टर की मदद लेना उनमें कमी होने का संकेत है। लेकिन इसका ये मतलब बिलकुल नहीं है। उल्टा इसका मतलब ये है, कि आपका अपने बच्चों की भावनाओं पर ध्यान है और आप उनकी तरक्की के लिए जो ज़रूरी है वो करने के लिए तैयार हो।
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