यह संपादित भाग माया शर्मा की किताब ‘लविंग वीमेन: बीइंग लेस्बियन इन अनप्रिवीलेज्ड इंडिया’(Loving Women: Being Lesbian in Unprivileged India) का हिस्सा है| दिल को छूने वालीं दस संवेदनशील कहानियों के ज़रिये, ये किताब उन औरतों या जिन्हें जन्म पे औरत की पहचान दी गयी है, की बात बताती है, जो इंडिया के छोटे शहरों और गाँव की, वंचित समाज की हैं, और जिन्हें दूसरी औरतों से प्रेम है l
इस भाग को यहाँ पब्लिश करने के लिए माया शर्मा और योडा प्रेस को हम प्यार भरा धन्यवाद देते हैं | आप अपनी कॉपी अमेज़न किन्डल और जगरनौट एप्प से खरीद सकते हैं|
पहले पहले विमलेश की आवाज़ ने ही मेरा ध्यान उसकी ओर खींचा था| तब मैं उससे मिली भी नहीं थी| मजदूर महिलाओं और उनके काम के बारे में एक वर्कशॉप चल रही थी| वर्कशॉप के दौरान, एक दूसरे से जान पहचान करते हुए, मेरे कानों पर उसकी आवाज़ पड़ी, ‘विमलेश पंडित|’ औरत की आवाज़ थी, पर थोड़ी भारी | फिर थोड़ा हिचक कर उसने अपनी यूनियन का नाम कहा और ये भी कि वो कहाँ से है |बता कर बैठ गयी| मैंने मन ही मन सोचा, ये जो भी है, थोड़ी शर्मीली है | उस आवाज़ की ओर नज़रें घुमाईं| उसके बाल एकदम छोटे थे| उसके गोल गोल चेहरे, थोड़े फूले हुए गालों के ऊपर भूरी आँखें चमक रही थीं | पैंट और फुल स्लीव शर्ट में एकदम किशोर उम्र का लड़का दिख रही थी|
हम दोनों को राजस्थान से ख़ास लगाव था| इस लगाव के कारण ही हमारी दोस्ती हुई| बातों बातों में उसने बताया कि वो सिंगल है और मरते दम तक आज़ाद पंछी की तरह ही रहना चाहती है| बिना किसी बंदिश के| मैं उसकी बातें और ध्यान से सुनने लगी| उसने निडर हो कर कहा, ‘मेरा हक़ है, मैं जो चाहे करूँ’| एक दिन उसका एक ख़त मिला| मैंने तुरंत उसका जवाब लिख भेजा| उसका वापस जवाब भी आया| यह सिलसिला काफी दिनों तक चलता रहा| एक दिन मैंने उससे पूछा कि क्या मैं उसकी कहानी लिख सकती हूँ|
...
यूँ तो विमलेश का उसके घर में अपना प्राइवेट कमरा था| पर सच यह है कि उसे वो निजी समय सिर्फ अपने अन्दर मिलता था, अपने बदन और मन में| मैंने गौर किया कि वो हम लोगों के साथ बैठती तो थी पर उसका मन कहीं और होता था| एक दिन, वो मुझे अपनी दोस्त मुनका से मिलाने ले गयी|
उसे वहाँ देख कर इस बात का कतई अंदाजा नहीं लगाया जा सकता था कि यह वही शर्मीली स्वभाव वाली विमलेश है| मैं घर के बनावट की तारीफ़ करने लगी| तब तक विमलेश चाय ले कर आई और मेरी बात को बीच में ही काटते हुए ताना देते हुए बोली, ‘मुनका की माँ अपना यह घर, अपने बेटों के नाम छोड़ जायेगी| भले ही इसकी सारी देखभाल मुनका करे और इसके बेटों को इसकी ख़ास परवाह न हो| क्योंकि यही रिवाज़ है, है ना? अम्मा, कभी सोचा है, तुम्हारे जाने के बाद तुम्हारी बेटी की देखभाल कौन करेगा?”
‘बेटा, यह तो बेटों का ही हक होता है,’ अम्मा ने बेहिचक जवाब दिया|
विमलेश ने दृढ़ निश्चय से कहा ,‘फिर मुनका मेरे साथ मेरे घर में रहेगी| उसके भाई उसे अपने साथ रखें या ना रखें|’ | सभी को सर छुपाने के लिए जगह की ज़रुरत है|’
ओह! मुनका और विमलेश किस तरह हंसती खेलती थीं| किस तरह वो एक दूसरे की टांग खींचती थी| मैं देख कर हैरान थी कि जिस प्यार को यह समाज गलत और गंदा समझता है, उसका वो किस तरह खुल्लम खुल्ला इज़हार करती थीं| मैं सोचने लगी कि शायद मुनका सही में विमलेश की स्पेशल दोस्त है| मुनका के घर से वापस आते वक्त, मैंने विमलेश को वो सब बताया जो मैंने उसके बारे में नोटिस किया था| कि वो वहाँ कितना अलग बर्ताव कर रही थी, कितने आराम से हंसी मज़ाक कर रही थी|
‘हाँ, मैं उसके साथ एक अलग ही विमलेश होती हूँ| वो स्पेशल है| मैं उससे कुछ भी बोल सकती हूँ| पर मेरी अपनी ज़िन्दगी बिल्कुल खाली बेरंग सी है...’
‘क्या मतलब?’
हम मेन रोड तक पहुँच चुके थे| मुझे विमलेश जैसी सशक्त इरादों वाली औरत के मुंह से यह बात सुन कर खराब लगा| उसने हाथ दिखाकर एक ऑटो रोका और मुझसे कहा, ‘आपके जाने का वक्त हो गया है, जब दुबारा मिलेंगे, तो और बातें करेंगे|”
इस तरह अचानक हमारी बातचीत के बीच में ही रुक जाने से मेरे अन्दर चल रही अनगिनत सवालों की गाड़ी को ब्रेक लग गया था| विमलेश के बारे में और जानने की एक अजीब सी ललक थी मेरे अन्दर| इस इमोशन को अपने अन्दर रख पाना मुश्किल था| मैं इसे समझ नहीं पा रही थी| और इस दुविधा भरे माहौल में उसे छोड़ कर नहीं जाना चाहती थी| पर उसके हाव भाव से ज़ाहिर था कि वो इसके बारे में और बात नहीं करना चाहती थी|
ऑटो में बैठते वक्त मैंने उससे कहा, ‘लिखना ज़रूर|’
‘हाँ, बिल्कुल| तुम भी लिखना|’
आने वाले महीनों में मैंने विमलेश को ख़त लिखा| जवाब में उसने अपने बारे में बताते हुए लिखा और सवाल भी किया, ‘मैं तुमसे एक बात पूछना चाहती हूँ| तुम मेरे बारे में इतना सब जानती हो| क्या तुम अपने बारे में भी मुझे बताओगी? मुझे भी यह जानने का पूरा हक है|”
विमलेश की बेबाक सीधी बात करने के अंदाज़ ने मुझे काफी प्रभावित किया| वो हमारे रिश्ते में बराबरी चाहती थी| उसने मेरे सामने अपना दिल खोल कर रख दिया था| अपने परिवार से भी मुझे मिलवाया| मैंने जवाब में उसे लिख भेजा कि मुझे उससे अपने बारे में बात करने में ख़ुशी हो होगी|
* * *
अगली मुलाक़ात अकेले विमलेश से ही हुई| घर से निकल कर, हम तालाब के किनारे चलते चलते, आम के बगीचे में पहुँचे| पत्तियों के बीच से आँख मिचौली करती हुई धूप घने छाँव को चीरती हुयी, धरती को रौशन कर रही थी| हम बैठने ही वाले थे कि विमलेश ने कहा, ‘उस तरफ तेजाजी महाराज का मंदिर है| उस तरफ पीठ कर के मत बैठो|’
हम दूसरी तरफ घूम कर बैठ गए| एक पत्थर की मेहराब पर, फन उठाये फुंफकारते साँप की एक बेमिसाल मूर्ति थी| उस पत्थर के सांप की गेंडुलिया के बीचों बीच एक राजसी मूंछों वाले, पगड़ी बांधे हुए, गर्व से भरे, घोड़े पर बैठे हुए तेजाजी महाराज की मूरत थी|
उस मूर्ति को देखते हुए मैंने कहा , ‘साँप हमारी सेक्स और सेक्सुअल इच्छाओं को दर्शाता है| पर यह केवल आदमी औरतों के बीच की इच्छाओं को दर्शाता है| यह बात सब पर लागू नहीं होती है|’
‘हाँ, यह ना ही मेरा सच है और ना ही तुम्हारा|’
मैंने हामी भरते हुए उससे पूछा, ‘तुम्हारा सच क्या है? तुम्हें कोई पसंद है? मुनका?’
तभी एक हवा का झोंका आया और आम की पत्तियों को झुलाते हुए निकल गया| उसी पल विमलेश ने खुलासा किया, ‘नहीं, कोई और है जिसे मैं पसंद करती हूँ| वो दूसरे शहर में रहती है| मुनका उसके बारे में जानती है| फैक्ट्री की सभी औरतों को भी पता है|’ उसे बोलने में कोई हिचकिचाहट नहीं हुई! और हमें कितना समय लग गया ये सरल सवाल पूछने में|
‘मुझे कुछ फ़र्क नहीं पड़ता, लोग मेरे बारे में क्या सोचते हैं| फैक्ट्री में किसी की मेरे मुँह पर कुछ बोलने की हिम्मत नहीं होती| सबको अपनी मर्ज़ी से ज़िन्दगी जीने का हक है| जो खाना है खाओ, जो पहनना है पहनो| मैं हमेशा से आदमी वाले कपड़े ही पहनना पसंद करती थी| और मैं शुरू से ही औरतों की तरफ आकर्षित थी| इसके बारे में मैंने ज़्यादा नहीं सोचा, कि मैं ऐसी क्यों हूँ| हर चीज़ का जवाब मिलना ज़रूरी नहीं होता| तुम पूछती हो कि क्या मैंने 'लेस्बियन' शब्द सुना है? नहीं सुना | मैं खुद को एक मर्द ही मानती हूँ| जिसे औरत पसंद है| लोग औरतों और मर्दों को इस तरह अलग अलग भागों में क्यों बाँटते हैं? हम सब इंसान हैं| केवल शरीर अलग हैं| है ना?’
मैंने उसकी बात का जवाब देते हुए कहा, ‘शरीर ही तो हम लोगों को आदमी और औरत में फ़र्क बताता है|’
‘अच्छा? तो यह बताओ, क्या हमारे औरत और मर्द होने की पहचान सिर्फ हमारे शरीर से होती है? जब हम छोटे होते हैं, तब हम में ज़्यादा फ़र्क नहीं होता है| मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगा था जब बढ़ती उम्र के साथ मेरे शरीर में भी बदलाव होने शुरू हो गए थे| अजीब सा लगा था | और तो और, किसी ने भी मुझे इस शारीरिक बदलाव के बारे में कुछ बताया तक नहीं| अब इन बदलाव के कारण मैं जीना तो नहीं छोड़ सकती थी| मुझे इनके साथ समझौता करना था| अगर मेरे बस में होता, तो जिस तरह मैंने मर्दों के कपड़े पहनने का फैसला लिया था, वैसे ही मैं अपना शरीर भी मर्दाना चुनती| मैं तो कहती ही हूँ की मैं मर्द हूँ| यह मेरी चॉइस है| भले ही हमारे और मर्दों के शरीर अलग अलग हों| पर हम जो चाहें वो हो सकते हैं, और जो चाहे वो कर सकते हैं|
‘मैं ऐसी कई औरतों को जानती हूँ, जिन्हें औरत में दिलचस्पी होती है| पर इस आकर्षण का एहसास मुझे खुद तब हुआ जब मैंने मेरी कजिन बेबी की शादी में ज्योति को पहली बार देखा|’
‘शादी के लिए हम सपरिवार, अलीगढ़ गए थे| वहाँ रिश्तेदारों की भीड़, ढोल ताशे, संगीत, मेहँदी, कपड़े, मेक अप और स्वादिष्ट खानों के साथ जश्न का माहौल था| मैं सीढ़ी के नीचे खड़ी थी जब मेरी नज़र ज्योति पर पड़ी| भले ही मैं उसे पहली बार देख रही थी ,पर उसे देखते ही लगा कि हमारा रिश्ता जन्मों का है| “क्या तुम बेबी को ढूँढ रही हो? वो ऊपर है|” इतना बोला ही था कि वो हम लोगों के बीच से होते हुए ऊपर की तरफ भागी| जाते जाते सुनाती गयी, ‘इन शहर वालों को कोई तमीज़ नहीं होती है|’
‘शादी के दौरान हम दोनों एक दूसरे से टकराते रहे| जब वो नज़रों के सामने होती थी तो मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं होता था| और जब नहीं होती थी तो मेरा कुछ भी करने का दिल नहीं करता था| बेबी मुझे यह कह कर चिढ़ाती थी कि मुझे प्यार हो गया है| ज्योति को देख, मेरे अन्दर कुछ कुछ होता था| हम दोनों एक दूसरे से प्यार करने लगे थे| वो अलीगढ़ में ही रहती थी और मैं अजमेर में| हम दोनों एक दूसरे को ख़त लिखते थे| बेबी की शादी के एक साल बाद उसकी भी शादी हो गयी| कुछ समय तक हम मिलते रहे|
उसके पति को हमारा मिलना बिल्कुल पसंद नहीं था| एक दिन हम लोग उसके बिस्तर पर बैठे हँसी मज़ाक कर रहे थे कि अचानक उसके पति ने उसे एक ज़ोरदार थप्पड़ जड़ दिया| मुझे गुस्सा तो बहुत आया पर कर भी क्या सकती थी| मैंने उससे मिलना बंद कर दिया| उसे ख़त लिखना भी बंद कर दिया| मैं जिसे प्यार करती हूँ वो मेरी वजह से कोई दुःख क्यों उठाये | मेरा प्यार हमेशा कुर्बानी माँगता है| हम दोनों के बीच कुछ नहीं हुआ था| हम एक दूसरे को चाहते थे| एक दूसरे के हाथ में हाथ डालना, गले मिलना| बैठ कर बातें करना| बस हमारा रिश्ता यहीं तक था| हम एक दूसरे के बहुत करीब थे|
‘ मैं आज तक पूरी तरह से छूई नहीं गयी हूँl कभी कभी लगता है मैंने ब्रह्म्चार्य की कसम ले लूंगी या बैरागी बन जाऊंगी| सभी मोह माया से दूर| ’
‘क्या यह मुमकिन है?’
‘मैं और क्या कर सकती हूँ?’
‘यह लड़की कौन है, जिसका तुमने ज़िक्र किया था?’
‘कनक भरतपुर के स्कूल में बच्चों को पढ़ाती है| आजकल मुझसे खफ़ा सी है| मैं भरतपुर किसी काम से गयी थी, पर उससे मिले बिना ही वापस चली आई| अभी वो अपने एम.ए. के एग्ज़ैम की तैयारी कर रही है| हम लोग साथ में उससे मिल सकते हैं|
कनक के घर जाते समय विमलेश पैंट की पॉकेट में हाथ डाल कर चल रही थी| उसके चलने के अंदाज़ में गज़ब का आत्मविश्वास झलक रहा था| रस्ते में किसी से कनक के घर का पता पूछने पर पता चला कि वो किराए के मकान में रहती है| उसके पिता का कहना है कि ‘खुद के घर होने का क्या मतलब, जब मेरी बेटियाँ शादी के बाद अपने घर चली जायेंगी| उसकी देखभाल कौन करेगा|’
‘क्या तुमको लगता है कि कनक शादी करेगी?’
‘हमारे रिश्ते के लिए कनक के पिता को मनाना मुशकिल है| वो कई रिश्तों को ना बोल चुकी है| वो कहती है कि उसे शादी नहीं करनी है|’
‘क्या तुम्हारे माता-पिता, भाई बहन तुम्हारा एक औरत के साथ उस घर में रहने पर राज़ी होंगे?’
‘समाज के सामने वो भले ही एतराज करें| पर घर के अन्दर वो मेरी चॉइस मान लेंगे|’
‘तुमको यकीन है?’
‘वो जानते हैं कि मैं आम औरतों जैसी नहीं हूँ| पर मैंने आज तक कनक से नहीं पूछा है कि वो क्या चाहती है| हम एक दूसरे को चाहते हैं पर आज तक एक दूसरे के करीब नहीं आये हैं|’
‘ अब तक एक दूसरे को छुआ भी नहीं है? पर जिससे हम प्यार करते हैं हम हमेशा उसको छूना भी तो चाहते हैं, न| यह जानते हुए कि शायद वो भी वही चाहते हैं| क्या तुमने कनक को अपनी इच्छा बताई है?’
‘वो जानती है|’
कनक के घर का दरवाज़ा खुला था| अपने बड़े से आँगन में लम्बी, पतली और गोरी-चिट्टी कनक, पॉलिएस्टर सलवार कमीज़ में पेड़ के पास खड़ी हुई थी| कन्धों पर दुप्पटा सलीके से डाला हुआ था| वो विमलेश की ही उम्र की लग रही थी| लम्बी, कमर के नीचे तक की चोटी, उसके गले के घुमाव के साथ झूम रही थी| जैसे ही उसने विमलेश को देखा, उसके मुँह से ख़ुशी के मारे चीख ही निकल गयी| विमलेश का चेहरा खिल उठा| कनक ने झूठ मूठ का गुस्सा करते हुए कहा, ‘मुझे तुमसे कोई बात नहीं करनी| तुम पिछली बार मुझसे मिलने क्यों नहीं आई|’ मेरी वहां मौजूदगी से जैसे उसे कोई फर्क नहीं पड़ा|
कनक चाय लेने किचन में गयी| लौट कर आई तो ट्रे में दो कप थे, तीन नहीं | यह देख मैंने पूछा, ’कौन चाय नहीं पी रहा है? विमलेश, तुम?’ | जवाब में विमलेश ने कहा, ‘ और कप की ज़रुरत नहीं है| हमारे लिए एक ही कप चाय काफी है| मुझे ज़्यादा चाय नहीं चाहिए|’ चाय की कुछ चुस्की लेने के बाद उसने कप कनक की ओर बढ़ा दिया| कनक ने दिल खुश कर देने वाली बड़ी वाली चुस्की ली|
‘चलो ऊपर छत पर चलते हैं| छत की सीढियाँ चढ़ते वक़्त विमलेश ने कहा, ‘हमारी फ़ोटो खींचने के लिए अपना कैमरा ले कर आना| इसके पास मेरी फ़ोटो है, पर मेरे पास इसकी एक भी नहीं है| ‘
जब तक मैं कैमरे की लेंस अडजस्ट कर रही थी, तब तक वो दोनों रेलिंग के सहारे, एक दूसरे के पास सट कर खड़े होकर पोज़ देने की कोशिश कर रहे थे| दोनों के चेहरे पर मुस्कान थी| विमलेश ने कनक के कंधे पर हाथ रखा तो कनक ने उसे तुरंत झटक दिया| विमलेश ने मेरी ओर देखते हुए कहा, ‘देखा?क्या पूछा था तुमने मुझसे थोड़ी देर पहले? कुछ करने की इजाज़त है क्या मुझे?’
कनक ने चुपचाप अपना हाथ विमलेश के हाथ में दे कर कहा, ‘अब लो हमारी फ़ोटो|’
मैंने कैमरे का फोकस अडजस्ट करते हुए कनक से पूछा, ‘तुम विमलेश और अपने रिश्ते को क्या नाम दोगी?’ मैंने इधर फ़ोटो खींची और उधर उसका बेझिझक जवाब आया, ‘लव अफेयर l मैं उससे प्यार करती हूँ|’ उन दोनों को अकेला छोड़, मैं छत के दूसरे कोने में चली गयी|
दोपहर की धूप अब हमारे सर पर चढ़ आई थी| एक दूसरे की आँखों में देखना मुश्किल हो चला था| विमलेश ने नीचे जाते वक्त कहा, ‘जब तक हम अपनी दिल की बात एक दूसरे को नहीं बतायेंगे, तब तक ऐसे ही छतों पर, एक दूसरी की आँखों में, सपनों में, कभी इस शहर तो कभी उस शहर में, इन प्यार भरे पलों के सहारे ही ज़िन्दगी काटनी पड़ेगी|’
कुछ महीने बाद विमलेश यूनियन के काम के चलते शहर आई| उससे मिल कर लगा कि वो पहले से ज़्यादा खुश लग रही थी| उसने मेरे बारे में पूछा| कुछ देर अपनी राम कहानी बताने के बाद मैंने उसके और कनक के बारे में पूछा, ‘तुम दोनों की कहानी आगे बढ़ी या नहीं?’
‘हाँ, आगे तो बढ़ी| इस बार जब मैं भरतपुर गयी और उससे मिली, तो हमने एक दूसरे को चूमा और गले भी लगाया| यह हमारे लिए पहली बार था| यह सब बहुत जल्दी हुआ, हम दोनों को शर्म भी आ रही थी| बस इससे ज़्यादा हमने ना कुछ बोला ना कुछ किया| मुझे लगा कि मेरा सर ही फट जाएगा| मैं वहाँ से उठ कर आ गयी| मेरा बदन काँप रहा था| बाद में हमने फ़ोन पर बात भी की| मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था|हम घर पर खाना खा रहे थे l खाना खाते वक़्त उसने अपने हाथों से मुझे बर्फी तोड़ कर खिलाई| पता नहीं कैसे , पर वो मेरे जीजाजी के घर अपने आप ही मुझसे मिलने आ गयी | जब मैंने उसे बताया कि "मैं अकेले उस कमरे में सो रही हूँ ", तो वो मेरे साथ चली आयी| हम एक दूसरे के अगल बगल लेटे सारी रात बातें करते रहे| उसने कहा, “आने वाले समय की चिंता मत करो| तुमको पढ़ने की ज़रूरत नहीं है| मैंने तेरे हिस्से की भी पढ़ाई कर ली है| तेरे साथ भागने को भी रेडी हूँ|” चौदह फरवरी को उसने मुझे वैलेंटाइन कार्ड भी भेजा....
मुझे नहीं पता आगे क्या होने वाला है| पर जब उसको अगली बार मिलूंगी तो पक्का पूछूंगी कि वो हमारे बारे में क्या सोच रही है| क्या चाहती है|’
तीन महीने बाद विमलेश का ख़त आया| उसमें कनक की सगाई के बारे में लिखा था| यह खबर मिलने के बाद विमलेश कनक से मिलने तो गयी, पर कनक ने मना कर दिया| वो विमलेश के फ़ोन का भी जवाब नहीं दे रही थी| ‘अगर वो मुझसे एक बार बात भी करती तो मैं ज़रूर उसकी स्थिति को समझती| उस पर मेरा इतना हक तो बनता है | हमारे रिश्ते के खातिर| हमारी दोस्ती की खातिर|’
मैं विमलेश को क्या बोल सकती थी, जिससे उसका दर्द कम हो सके? उसकी सारी उम्मीदें टूट गयी थी| मैंने उसे भरोसा दिलाने के लिए कहा कि हो सकता है कि कनक को शादी के लिए फ़ोर्स किया गया हो| वैसे भी वो शादी को काफ़ी समय से टाल रही थी| मैंने उसे सलाह दी कि उन दोनों को एक दूसरे से अपनी दिल की बात साफ़ साफ़ बोलने का अब समय आ गया है | मैंने उसे कनक को ख़त लिखने को कहा| उसे भरोसा दिलाया कि हम उसके साथ हैं| जवाब में विमलेश ने लिख कर भेजा कि उसने कनक को दो बार लिखा पर कोई जवाब नहीं आया| ‘मेरी जिंदगी बेकार है, कुछ नहीं है मेरे पास, ना जॉब, ना पैसा| मेरा मर जाना ही बेहतर है| मैं तुमसे भी नाराज़ हूँ| तुमने कहा था कि तुम आओगी पर तुम नहीं आई| मुझे पता चला कि तुमने कॉल किया था| इस उम्मीद में बैठी थी कि तुम फिरसे कॉल करोगी lमैं तुमसे बात करना चाहती हूँ| ’
हम दोनों कुछ दिन बाद भरतपुर में मिले| कनक जहां काम करती थी, मैंने उस स्कूल में फोन किया| विमलेश चुपचाप मेरे बाजू में खड़ी थी| कनक ने निराशा भरी आवाज़ में मुझसे विमलेश को साथ लाने को कहा, ‘मुझे उससे मिलना है|’
कनक के घर जाते वक्त विमलेश ने कहा, ‘प्लीज़ मुझे वहाँ चाय नाश्ता करने को मत कहना|’ मुझे याद आया विमलेश ने मुझ से कहा था कि वो केवल उनके साथ ही कुछ खा पाती है जिनके साथ उसकी थोड़ी ट्यूनिंग है| यह उसका अपना गुस्सा और दर्द दिखाने का तरीका था|
कनक की फैमिली एक बड़े, ज़्यादा कमरों वाले घर में शिफ्ट हो गयी थी| हमारे वहाँ पहुँचते ही कनक पीछे से आई और उसने विमलेश को अपनी बाहों में ले लिया| और अपना चेहरा उसकी छाती में छुपा दिया| वो विमलेश को छोड़ ही नहीं रही थी| वो गले मिलना दो दोस्तों के गले मिलने से कहीं गहरा था| मेरे साथ वहाँ मौजूद बाकी लोग इस को नज़रअंदाज़ करने की बहुत कोशिश कर रहे थे | कनक की माँ ने मुझे आगे चलने का इशारा किया|
मैंने खुद से सवाल किया, ‘कनक यह शादी क्यों कर रही है?” रूम में घुसते ही मुझे एक नए टीवी का बॉक्स दिखा| दहेज़ की पहली किश्त| कनक की माँ ने टीवी पर मेरी नज़र देखी, बोलीं ‘कुछ अभी खरीदा है, कुछ बाद में खरीदेंगे| आपको शादी में आना ही है|”
मैंने विमलेश, कनक और उनके जैसे अनगिनत लोगों के बारे में सोचा जिनके शुरू से ही पाँव दो नाव में होते हैं| कनक को विमलेश से प्यार था पर परिवार की इज्ज़त के लिए उसने अपने प्यार की कुर्बानी दे दी| लोगों की नज़र में वो एक ‘अच्छी’ औरत साबित हो चुकी थी| इस शादी के लिए हाँ कर, उसने रोज़ रोज़ की जान का डर और ताने सुनने से भी खुद को आज़ाद कर लिया था|अगर वो विमलेश के साथ जिंदगी बिताने का फैसला लेती तो उसको रोज़ ये सब सहना होता, और बहुत खतरे भी सहने होते |
कुछ मिनटों बाद विमलेश बड़े रूम में दाखिल हुई| उसको देख कर मुझे लगा कि कुछ ज़्यादा ही रिलैक्स बनी हुई है l
चेहरा भी शांत|
‘कनक कहाँ है?’
‘वो आ रही है|’
कनक की माँ चाय बनाने को चली गयी| विमलेश ने मुझसे कहा, ‘ हमें कोई चाय नहीं पीनी| चलते हैं|’
इतने में कनक ने रूम में आ कर कहा, ‘थोड़ी देर में चली जाना|’ वो और पतली हो गयी थी और उसका रंग उतरा हुआ दिख रहा था| हम दोनों ने एक दूसरे का हालचाल पूछा| वो किसी तरह अपने आँसूं छिपाने की कोशिश कर रही थी| चाय आने पर विमलेश ने अपना कप खिड़की के किनारे रखा| और इधर उधर की बातें करने लगी| कनक ने मेरी ओर उम्मीद भरी नज़रों से देखा कि शायद मेरे कहने पर विमलेश चाय पीयेगी| मैंने उसे इशारे में ही समझा दिया कि विमलेश चाय को हाथ भी नहीं लगाएगी|
राज मुझे उस उस लड़के के बारे में बताने लगा जिससे कनक की शादी होने वाली थी | यह सुन कर विमलेश और कनक दोनों ही उठकर बाहर बालकनी की तरफ चली गयीं| चाय पीते पीते मुझे उनकी खुसफुसाहट सुनाई दे रही थी|
थोड़ी देर बाद विमलेश वापस रूम में आई और मुझसे पूछा, ‘चाय पी ली हो तो चलें?’
‘हाँ, चलो|’
हमारे जाने के वक्त कनक मिलने भी नहीं आई| मुझे जैसे ही लगा कि हम दोनों अकेले हैं, मैंने विमलेश से पूछा कि कनक ने क्या कहा|
‘उसने कहा कि अगर मैं मार्च में, उसकी सगाई से पहले आ कर उसको अपनी दिल की बात कहती तो कुछ हो सकता था| उसने कहा कि हम औरतों की कौन सुनता है| “मेरे माँ बाप ने लड़के के घर वालों को हाँ बोल दिया था| अगर मैं ना बोलती...उनके खिलाफ जाकर कोई भी कदम उठाना हमारे लिए काम नहीं आता|” ‘यह कहा कनक ने|’
विमलेश मुझे जो चिट्ठियां लिखती, उनमें वो अपना गुस्सा और यूं दगा दिए जाने पर अपना दर्द शेयर करती थी | उसने कसम ली कि वो कनक से दुबारा बात नहीं करेगी | लेकिन कनक की शादी के कुछ महीनों बाद हम मिले तो उसने बताया कि कनक ने उसे फोन किया था| ‘मैं क्या करूँ? दुनिया में बड़ी सारी औरतें हैं , पर मेरा दिल सिर्फ उसे ही चाहता है| मुझे उससे कभी बात नहीं करनी थी| मैं उससे बहुत गुस्सा हूँ| फिर भी उससे बात कर ही ली| मैं क्या कर सकती थी? उसने अपने पति को हमारे बारे में सब कुछ बता दिया| यह भी कि वो मुझसे प्यार करती है|’
‘उसके पति ने मुझे घर आने को कहा है| पर मुझे ना ही उससे मिलने में दिलचस्पी है और ना ही उसके बारे में कुछ जानने में | शादी से पहले कनक हमारे प्यार का ढिंढोरा पीटते नहीं थकती थी| पर आखिर में खुद ही हाथ धर के बैठ गयी| क्या कर सकती हूँ मैं? मैंने यह बात किसी को नहीं बताई पर तुम्हें बता रही हूँ| मैं उसे मिस करती हूँ|’ अपने दर्द को छुपाने की कोशिश करते हुए विमलेश ने नज़रे बचाते हुए कहा, ‘काश वो अभी मेरे साथ होती, यहाँ, मेरे बगल में | जानती हूँ अब इसका कोई मतलब नहीं बनता, पर तब भी....’
‘फिर मैंने वो किया जो आजतक नहीं किया था| मैं दरगाह गयी और वहाँ खुदा के सामने अपना सर झुकाकर कनक के साथ की दुआ माँगी |उसका यूं साथ छोड़ने से पहले दुनिया कितनी खुशनुमा थी| और अब तो ज़िन्दगी पर से ही विश्वास उठ गया है| मेरे रोम रोम में उसका ख्याल बसा है| मैं ये दर्द दिन भर सहती हूँ|
‘हम ऐसे ही किसी को भी प्यार नहीं कर सकते| अगर हमें पता चल जाए कि हम किसी से किस वजह से प्यार करते थे, तो फिरसे प्यार करना थोड़ा आसान हो जाए ..| कनक से पहले भी कई औरतें आईं जो मुझे प्यार करती थीं| पर मैं उनमें से किसी के साथ वो प्यार नहीं कर पाई|’
‘कुछ महीने पहले ही मेरी मुलाक़ात एक औरत से हुई| मैं जोधपुर अपनी बहन के घर गयी थी| वो मेरी बहन के घर के ऊपर रहती है| उसने सीधा बोल दिया कि वो मुझसे प्यार करती है| वो शादीशुदा है और उसको एक बच्चा भी है| जिस रात मैं सोने के लिए छत पर गयी थी, वो भी वहाँ थी| उसने पास आकर कहा कि वो मुझे दिलों जान से चाहती है| मेरी कुछ समझ में ही नहीं आया कि मैं क्या जवाब दूँ|’
‘फिर बारिश होने लगी| मेरे लिए बिना कुछ बोले वहाँ से निकल जाने का सही मौक़ा था |’
“तुम भीग जाओगी|”
चारपाई समेटते हुए, मैंने उससे कहा |
* * *
उस बारिश को बीते हुए दो साल हो चुके थे| सर उठाओ तो एक नीले रुमाल सा आसमान दिखता जो बड़े नीले विस्तार पे खुल जाता था |
विमलेश की की दुकान की खिड़की से सामने वाले कुम्हार का घरबार नज़र आता था | एक दिन उस खिड़की से, विमलेश की मुलाक़ात कुम्हार के घर की नरम रौशनी में मौजूद दो आँखों से हुईं| उन आँखों की मालकिन पाट के पीछे गीली मिट्टी में खड़ी, अपने पिता को बर्तन बनाने में मदद कर रही थी | मिट्टी गूंद कर तैयार कर रही थी| उन आँखों में वही तड़प थी जो विमलेश की आँखों मे चमक रही थी| ये नज़रें मिली, किसी सवाल के जवाब जैसे |
दुनिया में बड़ी सारी औरतें हैं , पर मेरा दिल सिर्फ एक पर आया है
एक संपादित भाग माया शर्मा की किताब ‘लविंग वीमेन : बीइंग लेस्बियन इन अनप्रिवीलेज्ड इंडिया’ से।
चित्र: विद्या गोपाल द्वारा
अनुवाद: प्राचीर कुमार
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