किशोर लोगों के लिए एक वर्कशॉप हुई। उसमें हमने देखा कि कैसे अपने डर और आशंकाओं से जूझते हुए, इन नौजवानों ने अपनी बात कही।
सेक्स की शिक्षा की बात करते वक़्त, हमें जवान लोगों को क्या बताना चाहिए, इस बारे में हम बहुत कुछ सोचते हैं। लेकिन वो क्या बातें करना चाहते हैं? एजेंट्स ऑफ़ इश्क़ के वर्कशॉप इस तरह बनाए जाते हैं कि हम और नौजवान, दोनों एक दूसरे से कुछ समझे और सीखें। कि वर्कशॉप कुछ यूं हो, कि उनकी असली ज़रूरतों को हम समझ सकें और उन्हें वर्कशॉप वाकई में मददगार लगे। जाड़े की शुरुआत थी, हम धारावी, मुंबई में थे और ये बातचीत जारी थी।
“प्यार के बारे में किसी से बात करना अच्छा लगता है, चूँकि हमारे माता पिता या दोस्तों के साथ हम वैसा नहीं कर सकते,” नवंबर २०१८ के एक नर्म गर्म सी दोपहर को, १५ वर्षीय मंदिरा ने हमें बताया। उसकी सहेलियां, १६ वर्षीय कुसुम और १५ वर्षीय मेघा प्लास्टिक की कुर्सियों पर रूम के कोने में उसके साथ बैठी हुईं थीं और फुसफुसा रहीं थीं ताकि उनकी आवाज़ें बाहर ना चली जाएं। वो दोनों इस बात से सहमत थीं कि यह मानना भी आसान नहीं है कि आप किसी को चाहते हैं या कि एक रिलेशनशिप में हैं। अगर आपने माँ बाप को बता दिया और वो ग़ुस्सा करके आपको सज़ा दे दें? या फ़िर अगर तुमने अपने दोस्त को बताया और फ़िर कल को तुम दोनों में झगड़ा हो गया... तुमसे बदला लेने के लिए अगर उसने तुम्हारे मम्मी डैडी से शिकायत कर दी तो? लोग ये भी तो कह सकते हैं कि इतनी छोटी उम्र में तुम प्यार और रिश्तों की बातें क्यों कर रहे हो?
मंदिरा और उसकी सहेलियां फुसफुसा रहीं थीं ताकि थोड़ी दूर पर बैठे लोग उनकी बातें ना सुन सकें, पर इसलिए भी कि नीचे की मंज़िल के एक छोटे से कोने में उनके सहभागी की (वर्कशॉप के लिए) ऑडियो रिकॉर्डिंग ठीक से हो सके। हम सब धारावी, मुंबई में स्नेहाज़ कलरबॉक्स (SNEHA’s Colourbox) में थे। वहां हम किशोरों के छोटे से ग्रूप के साथ दो दिन के पॉडकास्ट वर्कशॉप में एक साथ काम कर रहे थे। उस दिन की आख़िरी रिकॉर्डिंग चल रही थी, जहां आसमानी नीले रंग का शर्ट पहना हुआ एक लड़का मराठी में अपनी प्रेमिका के बारे में रैप ( rap) के लहज़े में
गा रहा था।
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वर्कशॉप की शुरुआत में नए लोगों को मिलने और एक दूसरे से परिचित होने की हिचकिचाहट दिखाई दी। जब प्यार हो जाने के बारे में हम शुरू में आपस में बात करने लगे, ज़्यादातर लोग बोलने से शर्मा रहे थे। कई ने ये भी कहा कि उन्होंने प्यार जैसा कुछ कभी नहीं किया था। झिझक शायद इस बात से आई होगी कि तब तक हम सब आपस में उतने घुल मिल नहीं पाए थे कि अपनी निजी बातें सबसे बांटें। या शायद मंदिरा, कुसुम और मेघा के मन में जो डर थे वो भी एक कारण हो - कि वर्कशॉप के बाद उनके दोस्त उनके राज़ न खोल दें। लेकिन, इस वर्कशॉप का मकसद ये नहीं था कि सभी सहभागी आपस में अपनी कहानियां बांटें (हालांकि अगर वो चाहते तो ऐसा भी कर सकते थे)। वर्कशॉप का मकसद तो था कि हर एक अपने अंदर की बात कहने की ताकत बना पाए, अपने आप से तो सच्ची बात कह पाए। कि हर एक अपने शब्दों में अपने अहसासों को व्यक्त कर पाए और प्यार पर आज़ाद मन से सोच पाए। अभिव्यक्ति से ताकत मिलती है, और खुली सोच से भी एक सेहतमंद, भावनात्मक शक्ति मिलती है, जो ख़ुद की आज़ादी का आधार है। उन्होंने ऐसे एक्सरसाइज़ किए जहां उन्होंने अपनी भावनाओं को स्पर्श, गंध, या किसी चित्र या आवाज़ की याददाश्त के माध्यम से वर्णित करने की कोशिश की। उन्होंने दूसरों पर भरोसा बढ़ाने के लिए भी एक्सरसाइज़ किए। जैसे जैसे वो ये करते गए वो अपने अनुभवों पर ग़ौर करने लगे। उन्हें शायद लंबे अरसे से छिपाई अपनी कहानियों पर बात करने का मन किया। वो डर कम हुआ, और शर्मिंदगी भी। आख़िरकार सबको बैठकर अपने अनुभवों के बारे में लिखना पड़ा ताकि उनके पास एक ड्राफ्ट या रूपरेखा तैयार हो। इस ड्राफ्ट को वो एक रचनात्मक तरीके से सुधार और बदल सकते थे ताकि आख़िर में उनके पास पॉडकास्ट के लिए अपनी स्क्रिप्ट तैयार हो जाए।
जितनी भी कहानियां हमने सुनीं, वो या तो किसी की ओर बहुत आकर्षित होने के बारे में थीं, या फ़िर जवान लोगों के प्यार के बारे में। लेकिन साथ साथ और कई बातें कहानियों में समाईं थीं - वो कठिनाइयां जो टीनेजर को झेलनी पड़ती हैं, स्कूल के साथ प्यार को भी वक़्त देना, उत्पीड़न या अत्याचार भरे रिश्तों से दूर भागना, मज़ेदार रिश्ते शुरू करना, अपनी जाति और दर्जे के बाहर के किसी से प्यार करना, माँ बाप का अपने बच्चे के प्यार के बारे में जानने पर ग़ुस्सा और मार पीट, या फ़िर माँ बाप का ऐसे रिश्तों का समर्थन करना। और सबसे ज़्यादा, जवान लोगों का ख़ुद से आर्थिक ज़िम्मेदारियों का संभालना। हमें एक मौका मिला था बचपन से बड़े होने तक की उनकी महत्त्वपूर्ण घड़ियों और घटनाओं की कहानियां सुनने का। उन घटनाओं से उनकी इच्छाओं का पता चल रहा था और ये भी कि वो अपने लिए क्या सपने देखते हैं। इन कहानियों को ढालने में हम उनकी मदद कर रहे थे। और इस सब के होते कराते, हमने देखा कि दो दिनों में, अपनी बात सोचते कहते, वो एक दूसरे की ओर भी और नम्र हो गए थे। एक दूसरे की कहानियां उन्हें शायद पहले से पता ना हों। लेकिन सारे एक्सरसाइज़ करते हुए, एक एक करके रिकॉर्डिंग करते हुए, उन्हें ये तो समझ आया था कि किसी को चाहने में या चाहे जाने में, वो अकेले नहीं थे।
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“सब कुछ लिखने में मुझे सबसे ज़्यादा मज़ा आया,” वर्कशॉप ख़त्म होने के बाद मेघा ने कहा। इससे हम चौंक गए, चूँकि एक दिन पहले वही काम उसे बहुत उबाऊ पेश आया था - जैसे किसी ने होमवर्क दिया हो जो उसे ज़बरदस्ती करना पड़ रहा था। लेकिन एक बार जो उसने लिखना शुरू किया, जुट कर शब्दों को ढूंढकर अपनी कहानी सुनाने में उसे मज़ा आने लगा। और वो ख़ुश थी कि ये राज़ उसे अपने अंदर दबाकर नहीं रखने पड़ रहे थे। मेघा और दूसरे सहभागियों ने हमें सुंदर कहानियां बताईं - कुछ कहानियों में प्यार जाने पहचाने तौर तरीकों से जताया गया, जिनमें एक ‘प्रोपोज़’ करता है और दूसरे को फ़ूल या चॉकलेट गिफ्ट करता है। कुछ कहानियों में लोगों ने अपना प्यार जताया ही नहीं था, जैसे पिज़्ज़ा शॉप में काम करने वाला वो लड़का जो शॉप में आने वाली एक लड़की पर मोहित था। दूसरी कहानी में एक लड़की ने हिम्मत करके अपने पसंद के लड़के से अपना प्यार जता दिया था। अब वो उसके जवाब का वेट कर रही थी।
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“पॉडकास्ट कब सुनने मिलेंगे?” सबको जानना था। वो इस बात से गदगद थीं कि उनकी कहानियां कला का रूप लेकर सबको सुनने मिलेंगी। “मैं मेरी माँ को लिंक भेजूंगी,” मंदिरा ने खिलखिलाते हुए कहा। “पर फ़िर उन्हें पता चल जाएगा!” चौंकती हुईं, आँखें फाड़कर उसकी सहेलियों ने कहा। मंदिरा ने कंधे झाड़ें। कहानियां नाम के बिना बताईं जा रहीं थीं, इसलिए उनमें से उसकी कहानी कौनसी है वो उसकी माँ ठीक से बता नहीं पाएगी। ऐसा लग रहा था कि वो चाहती थी कि उसकी माँ को पता चले उसकी ज़िंदगी में क्या हो रहा था, और शायद ये एक ज़रिया था उसके बारे में बातचीत शुरू करने का। उसने इस बात को स्वीकारा था कि वो एक लड़के को चाहती थी। उसे लगता था कि वैसा करना कुछ ग़लत नहीं था, और शायद ये बात दुनिया को बताने के लिए उसमें और आत्मविश्वास आ गया था।