हाल ही में ट्रांस राइट्स बिल के विरोध के साथ - साथ लोगों ने एंटी ट्रैफिकिंग बिल का भी जमकर विरोध किया है। और इसका कारण है कि दोनों ही बिल बहुत ही कच्चे हैं, दोनों में सुधार की बहुत गुंजाइश है और दोनों ही बिल कुछ मामलों में आपस में जुड़े हुए भी हैं । ट्रांस राइट्स बिल के बारे में, आप हमारे guide to the Trans Rights Bill पर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। अब यहां मौजूद है, विस्तार से, एन्टी - ट्रैफिकिंग बिल के बारे में जानकारी । इंसानों की तस्करी के खिलाफ बिल ...यानी इस तस्करी का निवारण, ऐसी तस्करी से जनता की सुरक्षा और उनका पुनर्वास । इन मुद्दों पर बना यह बिल लोकसभा में जुलाई 2018 को पास किया गया था और ट्रांस राइट बिल की तरह ही इसको राज्यसभा में भी पेश किया जाएगा ताकि यह कानून के रूप में हमारे देश में स्थापित हो सके। लेकिन बहुत से सेक्स वर्कर्स, ट्रांस लोग, कई एक्टिविस्ट और वकील जिसमें कि सेक्स वर्कर्स का एक संघटन भी शामिल है (जिसे नेशनल नेटवर्क ऑफ सेक्स वर्कर्स के नाम से जाना जाता है), उन सभी की मांग है की पहले इस बिल में जो भी कमियां हैं उन्हें ठीक किया जाए, उसकी बाद ही इसपर आगे कार्रवाई की जाए। इस बिल में जिन- जिन भी प्वाइंट के ऊपर फिर से सोचने की ज़रुरत है वे प्वाइंट्स यह हैं -- यह बिल सेक्स वर्क के ऊपर ज्यादा ज़ोर दे रहा है जबकि इन्सानों की तस्करी सिर्फ सेक्स वर्क के लिए ही नहीं होती, घर के कामों के लिए या मज़दूरी के लिए भी होती है। इस बिल में सेक्स वर्क पर कुछ ज़्यादा ही ज़ोर दिया गया है। इस बिल की मानसिकता कुछ ऐसी है कि इसमें इस काम को यानी सेक्स वर्क को, काम करने के अधिकार के नज़रिये से नहीं देखा गया है । इस काम को, पुराने दायरे में ही देखा गया है = मजबूरी में लिया गया फैसला। कुछ लोग सेक्स वर्क अपनी मर्ज़ी से भी करते हैं। यह बिल उनमें और जिनको सेक्स वर्क ज़बरदस्ती करवाया जाता है उनमें, कोई फर्क नहीं करता, जो कि ठीक नहीं है। इसके साथ ही इस के निवारण के वही पुराने तरीके के इस्तेमाल पर बल देता है- यानी कि पहले सेक्स वर्कर्स को छुड़ाया जाए और फिर उन्हें गवर्नमेंट द्वारा पुनर्स्थापित किया जाए । वह भी बिना उन लोगों से उनकी इच्छा जाने। इसके अलावा यह बिल बंधुआ मजदूरी पर मानो गौर ही नहीं करता और जो थोड़ी बहुत बात इस बिल में जोड़ी गई है, उसमें भी इसके निवारण के लिए वही पुरानी तकनीक यानी कि छापा मारकर लोगों को छुड़ाना और फिर उन्हें गवर्नमेंट द्वारा चलाए गए शेल्टर में उनको रखे जाने की बात करना, यह नहीं कि उन्हें उस बंधवा स्तिथी से निकालकर आज़ादी दिलाए। इसके द्वारा यह समझना भी बहुत मुश्किल है कि कौन सा अपराध ज़्यादा बड़ा है कौन सा कम और सजा को लेकर भी सब कुछ उलटे पुल्टे रूप में देखता है । बिल के हिसाब से ट्रेफिकिंग यानी लोगों की भर्ती (काम के लिए), परिवहन/ ढुलाई, तबादला या लोगों को पाना होता है शारीरिक या योन शोषण के लिए या दास- प्रथा या शरीर के अंगों को ज़बरदस्ती हटाने के लिए, चाहे डराकर या बहला- फुसलाकर हटाना, अपहरण कर, धोखे से, ज़ोर आजमाइश से, या प्रलोभन देकर । लेकिन बिल इन सब को बराबर नही मानता। यह बिल कुछ खास तरह की ट्रैफिकिंग को अति गंभीर ट्रैफिकिंग मानता है और उनके लिए ज़्यादा गंभीर सजा का प्रावधान भी रखता है। ‘अति गंभीर’ में वह ट्रैफिकिंग शामिल है जहां पर लोगों की तस्करी, भीख मांगने के लिए या ज़बरदस्ती मजूरी कराने के लिए, बच्चे पैदा कराने के लिए या केमिकल्स और हारमोंस द्वारा लोगों को जल्द वयस्क बनाने के लिए की जाती है । इस तरह की ट्रैफिकिंग के लिए 10 साल की सजा या उम्रकैद इसके साथ ही ₹100000 के जुर्माने का भी प्रावधान है। और यदि कोई व्यक्ति इस जुर्म को दूसरी बार करता है या बार - बार करता है, तो उसे उम्र कैद के साथ - साथ ₹200000 जुर्माना भरवाने का प्रावधान भी है । यानी कि यह बिल किसी को ज़बरदस्ती भीख मंगवाने और योन संबंधी थेरेपी को यौन शोषण, किसी से ज़बरदस्ती गुलामी करवाने और जबरदस्ती किसी के अंग हटाए जाने जैसे कामों से भी ज़्यादा गंभीर/घिनोना मानता है। यह ख़तरनाक़ है यह बिल पुलिस को बहुत ज़्यादा निगरानी रखने और जांच करने का अधिकार दे देता है, इसके साथ ही आरोपी की अग्रिम जमानत ( anticipatory bail ) और निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार को भी सीमित कर देता है। कई लोगों ने इसलिए इसकी तुलना उन बेरहम कानूनों से की है जो आतंकवाद के खिलाफ बनाये गए हैं । इसके साथ ही उसकी कुछ धाराएं इतनी कच्ची हैं, जिनकी वजह से कई मासूम लोग जो लोगों की तस्करी में शामिल ही ना हों, इसमें बुरी तरह फंस भी सकते हैं। जैसे कि बिल यह भी कहता है कि यदि किसी व्यक्ति के वाहन का या घर का उपयोग, उसके जाने या अनजाने में , अगर किसी ट्रैफिकिंग के लिए हुआ है, या उसके द्वारा जानबूझकर या अनजाने में ही ऐसे फोटोग्राफ्स या वीडियोस डिसटीब्यूट हो गए हैं जिसकी वजह से लोगों की “तस्करी को शायद बढ़ावा मिल रहा है” तो वह भी गैर-कानूनी है। अब इस तरह के नासाफ और धुंधले प्रोविजंस की वजह से कई मासूम लोग अनजाने में इसकी चपेट में आ सकते हैं । बिल यह भी मानता है कि यदि पीड़ित औरत, बच्चा या कोई ऐसा व्यक्ति है जो शारीरिक या मानसिक रुप से अपंग है, (यहां पर यह भी गौर करने वाली बात है कि इस लिस्ट में बालिग आदमी और ट्रांस लोग शामिल नहीं किये गए हैं) जिसपर इलज़ाम लगाया गया है, दोषी ही होगा। यानी कि ज़िम्मेदारी सरकार की होनी चाहिए कि वह यह साबित करें की ऐसी घटना हुई है । उलटा ये अभियुक्त की ज़िम्मेदारी हो गई है कि वह स्वयं को निर्दोष साबित करें । यानी कि सरकार की ज़िम्मेदारी सरकार की ना रहकर, जिसपर आरोप लगाया गया है, उसकी ज़िम्मेदारी हो गयी है, जो बहुत ही बेतुकी बात है । की रूपरेखा कुछ ऐसी है कि तस्करी के पीड़ितों को भी सज़ा मिलती है। भले ही तस्करी के पीड़ितों के साथ ज़ोर आजमाइश से गैरकानूनी काम कराये गए हों, लेकिन उन्हें उन जुर्मों का दोषी तभी नहीं माना जाएगा जब उनके ऊपर कोई बहुत बड़ा इल्जाम हो जिसकी सजा कम से कम 10 साल हो । वो भी तभी, जब वो पीड़ित खुद ये साबित कर पाए कि उसके काम को ना करने की स्तिथि में उसकी जान का जोखिम या उसे गंभीर चोटे पहुंचने की सिचुएशन हो सकती थी । इस तरह के प्रावधान के बाद किसी के भी लिए खुद को सही साबित करना बहुत मुश्किल हो जाता है खासकर जब उसके ऊपर कोई छोटा-मोटा सा ही इल्जाम हो । यह पहले वाले कानूनों के साथ तालमेल में नहीं है पहले भी इंसानों की तस्करी से सम्बंधित कई कानून रहे हैं, जैसे कि बंधुआ मजदूरी का कानून ( Bonded Labour Act), अनैतिक तस्करी( से बचाव) कानून Immoral Traffic (Prevention) Act, नाबालिक न्याय कानून (Juvenile Justice Act), इसके साथ ही इंडियन पीनल कोड के कई अलग-अलग सेक्शन । इस बिल से यह अपेक्षा थी कि ये पुराने सभी कानून के तालमेल में होगा और बहुत ही डिटेल्ड या व्यापक होगा । पर यह बिल ऐसा बिल्कुल भी नहीं कर रहा और पुराने कानूनों के लय में भी नहीं है। इसके साथ ही इसको पढ़कर तो यह लगता है कि इसको व्यवस्था में ला पाना मुश्किल होगा। लोगों की तस्करी के बिल और ट्रांस राइट बिल में क्या संबंध है ? यह है कि ट्रैफिकिंग बिल ट्रांस लोगों के ऐसे कुछ कामों पर संदेह करता है, जो उनके जीवन यापन के लिए ज़रूरी हो सकते हैं। यह बिल कई जगह पर उनके कई अधिकारों का भी हनन करता है । हमारा समाज ट्रांसलोगों को पढ़ने का और काम करने का कोई मौका देता ही नहीं है । ऐसे में यह कानून उनके ऊपर बहुत निर्दयी है। वैसे भी ट्रांस राइट बिल भिखमंगी को कानूनन अपराध मानता है और anti-trafficking बिल तो इससे भी एक कदम जाता है और इसको एक गंभीर अपराध मान, इसके लिए सजा और जुर्माने का भी प्रावधान रखता है। जबकि ऐसे कई ट्रांसलोग हैं जो भीख- मंगी और ऐसे कई कामों में जबरदस्ती लिप्त किए जाते हैं या हो जाते हैं क्योंकि उनके पास पैसा कमाने का और कोई तरीका है ही नहीं । बहुत से ट्रांस लोग सेक्स वर्क का भी कार्य करते हैं । तो यानी उन्हें भी आम लोगो की तरह नैतिक आधार पर ज़बरदस्ती सेक्स वर्क से निकालकर नई जगह पर स्थापित कर दिया जाएगा । चूंकि यह प्रावधान सिसजेण्डर लोगों के लिए है, के लिये है और ट्रांस के लिए अलग से कुछ नहीं कहता तो उनके लिए भी फिर यही प्रावधान लागू होगा। यह बिल केमिकल्स और हारमोंस द्वारा जल्द परिपक्वता लाने वाली चिकित्सा को अपराध मानता है । लेकिन ये बिल ये फर्क नहीं देखता कि कुछ लोग अपनी मर्ज़ी से यौन और लिंग संबंधी चिकित्सा कराते हैं... यानि ऐसे में तो इसे अपराध नहीं मानना चाहिए । यह सभी चिकित्साए ट्रांस लोगों का हक़ है और उनके लिए और उनकी आइडेंटिटी के लिए भी बहुत जरूरी हैं। इस वजह से ट्रांस लोग और एक्टिविस्ट Trans Rights Bill और anti-trafficking बिल दोनों का ही विरोध कर रहे हैं - यह दोनों ही बिल ना तो उनके शरीर को समझ सकते हैं , ना ही उनके शरीर की बनावट को समझ सकते हैं और ना ही उन सामाजिक परेशानियों को समझ सकते हैं जिनकी वजह से उन्हें काम नहीं मिलता । हमें बेहतर बिल किस तरह मिल सकता है? हम शुरुआत कर सकते हैं - सांसदों पर दबाव बनाकर कि वो सेक्स वर्कर्स और ट्रांस लोगों से बात करके उनकी परेशानियां और उनकी ज़रूरतों को समझें । वैसे anti-trafficking बिल को पीड़ितोंके लिए ही बनाया गया है, पर फिर भी इस बिल के लिए इन कमजोर तबके के लोगों से कोई बातचीत नहीं की गई है और ना ही उनके लिए नहीं कुछ सोचा गया है । 2005 से 2017 के बीच हुए एक शोध में 243 औरतों ने बताया कि उन्हें रेड मार कर निकाला गया है और सरकारी सुधार गृह में रखवाया गया है परंतु , वे अपनी मर्जी से सेक्स वर्क में गई थी और ये 'बचाव' उनकी मर्ज़ी के बिलकुल खिलाफ था । औरतें वहां से निकलना नहीं चाहतीं थीं । हमें सांसदों से आग्रह करना चाहिए कि वह अभी हो रहे रिसर्च एवं दिए जा रहे सुझावों पर भी ध्यान दें । सुप्रीम कोर्ट ने 2011 में एक पैनल बिठाया था ताकि तस्करी और और सेक्स वर्कर्स के विस्थापन संबंधी विषयों पर ध्यान दिया जाए । ( कई सालों के शोध और मशवरों के बाद, पैनल के सुझाव कुछ इस प्रकार थे: पैनल ने सेक्स वर्क को संस्थागत ( institutionalise) करने की बात नहीं कही । पर उसने कहा कि सेक्स वर्कर्स को समुदाय के अनुसार, पुनर्वासित ( rehabilitate) किया जाए, यानि उनकी बिरादरी और आपसी रिश्तों को ध्यान में रखते हुए उन्हें पुनर्वासित किया जाए । पहले से बने हुए कानून जैसे कि Immoral Traffic (Prevention) Act (अनैतिक तस्करी रोकने के लिए कानून) पर फिर काम करने के लिये कहा गया ताकि क़ानून अपनी मर्जी से सेक्स वर्क करने में और जबरदस्ती सेक्स वर्कमें लगवाए जाने के बीच के फ़र्क़ को समझे और उस फर्क के आधार पर अपने फैसले सुनाये । बिल को बनाते समय इन मशवरों पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया गया जबकि ध्यान देना चाहिए था । क्या आप अपना विरोध इस कानून के खिलाफ रजिस्टर करवाना चाहेंगे यदि हां तो आप नीचे दी गयी चीज़ें कर सकते हैं -
- अब इस बिल को राज्यसभा में पास किया जाना है ताकि यह कानून बन सके। तो अभी हमारे पास समय है और हम ऐसा होने से रोक सकते हैं। बस, आप को अपने क्षेत्र के एम. पी. को लेटर लिखकर पूरी बात रखनी है और बिल पर फिर से विचार करने की रिक्वेस्ट करनी है , इस लिंक के द्वारा link।
- आप अपने क्षेत्र में या शहर में जो भी प्रोटेस्ट हो रहे हैं उनके जरिए बेहतर कानून के लिए प्रोटेस्ट/विरोध कर सकते हैं
अपनी जानकारी बढ़ाएं - बिल पर अलग-अलग विचार, दृष्टिकोण और समीक्षाएं इन लिंक द्वारा जाने, here, here और here. - यह भी जाने कि किस प्रकार लोगों की तस्करी को रोकने के तरीके अक्सर सेक्स वर्कर्स की सुरक्षा नहीं कर पाता है - यहां पढ़ें -here.