अब जबकि ज़्यादा से ज़्यादा औरतें अपने ऊपर गुज़री उत्पीड़न और सेक्सुअल हमलों की कहानियाँ लेकर खुलके सामने आ रही हैं, कभी कभी आप कुछ शब्दों के प्रयोग से सरप्राइज़ हो जाते होंगे - कि आखिर इसका सही मतलब क्या है, पर किसी से पूछने से झिझकते भी होंगे ? यहाँ पेश है ऐसी ही कुछ शब्दों और टर्म्स की बुनियादी लिस्ट जिन्हें आप पढ़ते आये हैं | यहां आप उनके मतलब भी ठीक से समझ सकते है। सेक्सुअल/यौन उत्पीड़न ( sexual harassment) किसको कहते हैं ? भारत में, काम करने की जगह पर होने वाली परिस्थति को सेक्सुअल उत्पीड़न माना जाता है अगर नीचे दी गयी कोई भी एक या उससे ज़्यादा बात हो रही हों: -शारीरिक संपर्क/ या ऐसे सम्बन्ध का प्रस्ताव -सेक्स सम्बन्धी एहसानों की मांग करना -बातों बातों में सेक्स को लेकर खरे खोटे मज़ाक करना , दो मुँही बातें करना जो वास्तव में सेक्स के बारे में हैं -किसी को पॉर्न (सेक्स सम्बन्धी उत्तेजक लेख या चित्र) दिखाना -बातचीत के ज़रिये या बिना बातचीत किये कोई ऐसा रवैया, जो दूसरे के लिए अनचाहा हो, और सेक्स सम्बन्धी हो पुलिस से संपर्क करके, इस से कानूनी तरीके से जूझा जा सकता है, या फिर क़ानून के अलावा और तरीके भी हैं । आप ख़ास यौन उत्पीड़न की शिकायतों पर एक्शन लेने के लिए बनाई समिति के पास भी जा सकते हैं - ये काम की जगह पर, या संस्थानों पर, या फिर ज़िला अनुशाशन द्वारा बनाई गयी होती हैं । कार्यस्थल (काम करने की जगह) किसको माना जाता है ? एक कार्यस्थल एक निजी( private -प्राइवेट ) या सार्वजनिक ( public- पब्लिक) संगठन हो सकता है, एक घर हो सकता है, एक छोटा या बड़ा ऑफिस हो सकता है और ये डेफिनिशन अनियोजित क्षेत्र ( unorganised sector) के कर्मचारियों पर भी लागू हो सकता है। ये किसी ऐसी जगह पर भी लागू हो सकता है जहां आपको काम पर भेजा जाए और कंपनी की ओर से और काम पर जाने के लिए मिली गाड़ी या यातायात पर भी । सेक्सुअल हमला क्या होता है ? लैंगिक/सेक्सुअल हमला ( sexual assault) यानी बिना सहमति से होने वाले, अधिक आक्रमणशील/aggresive, शारीरिक संपर्क । छेड़खानी/ उत्पीड़न और बलात्कार दोनों इसके दायरे में आते हैं, और इनसे मिलते जुलते सारे दुर्व्यवहार । सेक्सुअल परेशानियों से निपटने को बनाई गई कमिटी से इसकी शिक़ायत की जा सकती है । इस बारे में पुलिस से भी सम्पर्क किया जा सकता है -आरोपों को इंडियन पीनल कोड (आय.पी.सी) के ज़रिये लागू किया जा सकता है । इसके तहत दी गयी सज़ा और भारी होती है। # मी टू (Me Too) क्या है ? मी टू आंदोलन कोई एक दशक पहले एक अमेरिकन एक्टिविस्ट तराना बुर्क द्वारा शुरू किया गया था, श्याम-वर्ण की उन युवा स्त्रियों की सहायता करने के लिए, जो सेक्सुअल हिंसा से बच निकलीं थीं। 2017 में जब एक प्रभावशाली अमेरिकन फ़िल्म निर्माता हार्वे वेंस्टीन के ख़िलाफ़ सेक्सुअल हमले के ढेरों इलज़ाम लगाए गए थे, तब महिलओं ने इसे एक हैशटैग (#) की तरह इस्तेमाल करना शुरू किया जो पूरे मीडिया में फैल गया। ये शायद इसलिए भी इतना प्रसिद्द हो गया क्योंकि इसने उन्हें, जो इसकी शिकार थीं, एक दूसरे का साथ देने की संभावना खाई दिखाई, उन्हें ये बताते हुए कि वो अकेली नहीं हैं । साथ ही इसने औरतों का हौसला बढ़ाया कि वो खुलकर सामने आएँ और न्याय की मांग करें, या फिर कम से कम अपनी दास्तान दुनिया को खुल कर सुना पाएं। बहुतों का कहना है कि सेक्सुअल परेशानी के इल्ज़ामों की गहन जाँच- पड़ताल और उसके नतीजों ने औरतों को ये एहसास दिलाने में मदद की कि अब उनकी कहानियों को गंभीरता से लिया जाएगा, जो कि अक्सर नहीं होता आया है। मी टू एक महत्वपूर्ण आंदोलन की तरह उभर गया है, न सिर्फ़ हॉलीवुड में बल्कि पूरी दुनिया में, इस बात का पर्दाफ़ाश करते हुए कि कैसे ताक़तवर मर्द अपनी पोज़िशन का ग़लत इस्तेमाल करते हुए औरतों का फ़ायदा उठाते हैं और ये भी बताते हुए कि कितने बड़े पैमाने पर सेक्सुअल छेड़छाड़ और हमले अपने समाज में क़ायम हैं। मी टू ने एक अच्छे कार्यस्थल यानि काम करने की जगह के बर्ताव से लेकर एक बुरी डेट (Bad Date) के बीच की बहुत सी बातों पर बातचीत चालू की है। लोशा (LoSha) क्या है ? अमेरिका में # मी टू के क़दम से क़दम मिलाते हुए, भारतीय “ शिक्षा की दुनिया में सेक्सुअल/यौन उत्पीड़न करने वालों की “ लिस्ट ” आई, या सरल शब्दों में कहिये तो, दी लिस्ट | ये 2017 में एक वकील राया सरकार द्वारा रची गई थी। औरतें इस लिस्ट में उनपे उत्पीड़न करने वालों की जानकारी जोड़ सकती थीं, जिससे एक इनफॉर्मल (informal) तरीक़े से दूसरी औरतों को एक चेतावनी मिले कि वो अपने इर्द-गिर्द इन मर्दों से सावधान रहें | कुछ लोगों ने ऐसी लिस्ट का विरोध किया, ये शिक़ायत करते हुए कि इसने “उचित प्रक्रिया” ( due process के नियम) को तोड़ा है (इसपर नीचे और ज़्यादा जानकारी है ) - वे बेचैन थे कि औरतों द्वारा आरोप गुमनाम रूप से लगाए जा सकते थे बग़ैर कोई सुबूत तलाशे। बाकि सभी ख़ुश थे कि ऐसी एक लिस्ट का अस्तित्व तो सामने आया, जो औरतों को उन्हें परेशान करने वालों के बारे में कहने का अवसर देती है, उन्हें किसी सीधे प्रतिघात से बचाते हुए | विशाखा के मार्गदर्शन (guidelines) क्या हैं ? ये, ऐसे मामलों में क्या किया जाए, बताती हुई एक मार्गदर्शक कार्यविधि (यानी ये साफ़ साफ़ बताती है कि क्या प्रोसीजर फॉलो करना होगा और किस तरह से) है, जिसकी स्थापना 1997 में सेक्सुअल/यौन उत्पीड़न से निपटने के लिए की गयी थी। अब इसकी जगह एक नए क़ानून ने ले ली है। विशाखा मार्गदर्शन उस केस के बाद रची गयी जिसमें राजस्थान की एक सरकारी सेविका भंवरी देवी शामिल थी | उसके गांव की एक प्रभावशाली जाति के सदस्यों ने उसका बलात्कार किया था, वो इसलिए कि भंवरी देवी ने अपने कार्य क्षेत्र में बाल विवाह को रोकने की कोशिश की थी। इसके बाद, डॉक्टर, पुलिस और न्यायपालिका उसके साथ बहुत बुरी तरह पेश आये और राजस्थान हाई कोर्ट ने उन बलात्कारियों को बाइज़्ज़त बरी ही कर दिया | और तब महिलाओं के कई समूह एकजुट हुए और उन्होंने कोर्ट में एक पेटीशन दाख़िल किया, इस बात के आधार पर कि भंवरी देवी पर वो हमला तब हुआ था जब वो काम पर थी। भंवरी देवी के संघर्ष का नतीजा था कि विशाखा मार्गदर्शन लिखा गया, जिसका लक्ष्य औरतों के लिए एक सुरक्षित काम के वातावरण की रचना करना था। पोश (Posh) किसे कहते हैं ? सेक्सुअल/यौन उत्पीड़न की रोकथाम का क़ानून (Prevention Of Sexual Harassment Act), या और भी सही मायनों में, औरतों के कार्यस्थल पर सेक्सुअल/यौन उत्पीड़न (की रोकथाम, मनाही और उस स्थिति में सुधार लाना, जवाबदार होना) का क़ानून जो 2013 से लागू हुआ और इसने पहले से चले आ रहे सेक्सुअल/यौन उत्पीड़न पर विशाखा मार्गदर्शन की जगह ले ली | विशाखा के मार्गदर्शन को आगे बढाते हुए, उन्होंने “ कार्यस्थल ” के मायने को और ठोस और विस्तृत बनाया, (अनियोजित सेक्टर को भी इसमें शामिल करते हुए), कर्मचारी कौन कहलायेगा, इस बात को भी विस्तृत किया(पार्ट-टाइम काम करने वाले, प्रशिक्षण पाने वाले या घरेलू काम करने वाले, अब सभी को इसका हक़ है)। और साथ साथ ये बात भी साफ़ कही कि एक कंपनी की अपने कर्मचारियों के प्रति क्या-क्या ज़िम्मेदारियाँ होती हैं | POSH (पॉश) एक अंदरूनी व्यवस्था की स्थापना के लिए भी नियम बनाता है जो ऐसे हमले के इल्ज़ामों की जांच करे। पाॅश इस कार्यवाही के लिए एक नियमित समय तय करता है, और ये भी निर्धारित करता है कि मुक़द्दमों को कैसे जल्द से जल्द, संवेदनशील ढंग से तय किया जाए...कम से कम सिद्धांत तो यही है। अगर कोई औरत भारतीय दंड संहिता (IPC) या किसी और क़ानून के तहत कोई शिक़ायत दर्ज करती है, तो उसके नियोजकों/एम्प्लौयर्स से ये उम्मीद रखी जाती है कि वो उसका सहयोग करेंगे। पॉश के अंतर्गत हरेक अपराध असंज्ञेय (non-cognisable) है, जिसका मतलब है कि कोई पुलिस अधिकारी बिना वारंट के गिरफ़्तारी नहीं कर सकता और बिना कोर्ट के आदेश के कोई भी जाँच शुरू नहीं कर सकता | आई.सी.सी. (ICC) क्या है ? पॉश (Posh) के अंतर्गत, अगर कोई औरत इन तरीकों से सेक्सुअली परेशान की जाती है, तो वो अपनी शिक़ायत कम्पनी के (या संस्थान के) आतंरिक शिक़ायत समिति (Internal Complaint Committee - I.C.C.) से कर सकती हे। I.C.C. को फिर केस की तहक़ीक़ात करनी ही होती है। I.C.C. - इस कमिटी का एक हेड/ प्रेसाईडिंग ऑफिसर होना चाहिए, जो कि कम्पनी के किसी ऊंचे पोस्ट पर काम करती हुई कोई औरत होनी चाहिए। अगर कम्पनी या संस्थान के पास अपनी किसी भी शाखा में ऐसी कोई सीनियर महिला ऑफिसर नहीं है, जिसे समिति की अध्यक्षता करने को लाया जा सके, तो उन्हें फिर बाहर से ऐसी किसी महिला ऑफ़िसर को नियुक्त करना होगा। समिति के पास कम से कम दो सदस्य होने चाहियें जो कि औरतों के हित में काफ़ी समय से काम कर रही हों, जिन्हें सामाजिक कार्यों का अनुभव हो या क़ानूनी समझ हो, और एक सदस्य एक एन.जी.ओ. (N.G.O.) से भी होना चाहिए जो महिलाओं के कल्याण के लिए काम करता हो या जो सेक्सुअल परेशानियों से जुड़े मुद्दों और बहसों से हिला-मिला हो। आई.सी.सी. (I.C.C.) के टोटल सदस्यों में कम से कम आधी औरतें होनी चाहिए | क्या हरेक कार्यस्थल को आईसीसी (I.C.C.) रखने की ज़रुरत है ? क़ानून के मुताबिक, अगर किसी कम्पनी में दस से ज़्यादा काम करने वाले हों, तो उस कम्पनी को I.C.C. रखना पड़ेगा। अगर कम्पनी ने POSH के ये नियम नहीं माने, तो कम्पनी को सबसे पहले ₹ 50,000 का जुर्माना भरना पड़ेगा। बार बार ये ना करने पर परिणाम और भी सीरियस होंगे, जिसमें शामिल है बड़ा फाइन और यहाँ तक कि कंपनी के लाइसेंस का रद्द होना | आई.सी.सी. से कोई शिक़ायत करने के बाद क्या होता है ? घटना होने के तीन महीनों के भीतर शिक़ायत दर्ज की जानी चाहिए (अगर आई.सी.सी. को लगे कि इसकी ज़रूरत है, तो वो इस टाईम पीरियड को और तीन महीने, यानी छ: महीने तक बड़ा सकता है। अब इन्क्वायरी ज़रूरी है । अगर शिकायतकर्ता चाहती/चाहता है, कि एक सेटल्मेंट/समझौता कर देना चाहिए, तो फिर जिसपर आरोप लगा है, उसके साथ सेटल्मेंट किया जा सकता है - लेकिन इसमें पैसों का लेन- देन शामिल नहीं हो सकता | उदहारण के लिए, शिक़ायत करने वाली प्रतिवादी से ग़लत हरक़त को क़ुबूल करने और माफ़ी मांगने को कह सकती है | अगर एक बार समझौता हो गया, तो फिर तब तक और इन्क्वारी (enquiry )नहीं होगी जबतक कि जिसपर आरोप लगा था, वो समझौते की शर्तों का पालन करने में चूक नहीं जाता | किसी इन्क्वारी/inquiry के कार्यक्रम में, दोनों पक्षों को सुना और रिकॉर्ड किया जाएगा, और केस करने वाले और जिसपर केस लगा है, दोनों को आई.सी.सी. के जाँच-पड़ताल की एक कॉपी दी जाएगी और उन्हें अपनी बात रखने का मौक़ा दिया जाएगा | आई.सी.सी. के पास ये पावर है कि वो किसी को भी, सम्मन ( summon- गवाही के लिए बुला भेजना) जारी करके अपने सामने बुला सकता है और उससे शपथ दिलाकर उसे जाॅच सकता है। ऐसे में उस व्यक्ति को आना ही पड़ेगा। कोई भी इन्क्वारी/inquiry 90 दिनों के भीतर पूरी हो जानी चाहिए, और आई.सी.सी. की रिपोर्ट को दोनों पक्षों सहित कंपनी के मालिक तक 10 दिनों के अंदर पहुँचाई जानी चाहिए | अगर प्रतिवादी क़ुसूरवार पाया गया, तो आई.सी.सी. उसके ख़िलाफ़ discipline/अनुशासन सम्बन्धी कारवाही और/या दंड की सलाह दे सकती है | क्या हो यदि आपके कार्यस्थल पर आई.सी.सी.(ICC) नहीं है तो ? यदि आपका संगठन/कंपनी आई.सी.सी. नहीं रखता हो तो आप उसे इसको क़ानूनन स्थापित करने को कह सकते हैं, और उन्हें ये करना होगा, फाइन से बचने के लिए | लेकिन अगर आपकी कंपनी में 10 से कम कर्मचारी हैं, तो आपको स्थानीय शिक़ायत समिति (Local Complaint Commitee - L.C.C.) से सम्पर्क करना होगा, जो हर ज़िले में मौजूद होनी चाहिए | ज़िला प्रशासन आपको इसके पास ले जा सकता है - ज़िला अधिकारी ही इस कमिटी को बनाने के इंचार्ज होते हैं। आपकी कंपनी के पास आई. सी. सी. है, मगर आपकी शिक़ायत आपके नौकरी देनेवाले के ही विरुद्ध हो तो क्या होगा ? ऐसी स्थिति में आपको पूरा अधिकार है कि आप स्थानीय शिकायत कमिटी (L.C.C.) के पास कम्प्लेनट दर्ज़ कर सकते हैं। लोगों के “उचित प्रक्रिया”/ड्यू प्रोसेस (Due Process) कहने का क्या मतलब होता है ? ड्यू प्रोसेस/ “उचित प्रक्रिया” ( due process के नियम) एक तरह की दफ़्तरी कारवाही को कहते हैं - चाहे वो पुलिस और क़ानूनी व्यवस्था के ज़रिए हो या फिर किसी संस्थान (इंस्टीटूशन) के मैनेजमेंट या जिला अनुशासन को ऑफिशल शिक़ायत के ज़रिये हो। ये सताए हुए व्यक्ति को एक शिक़ायत करने का मौक़ा देता है, और साथ ही इलज़ाम लगे व्यक्ति को जवाब देने का अवसर भी देता है। किसी क़ानूनी केस में, ये आरोपित इंसान को अपने ऊपर लगे इल्ज़ामों का जवाब देने, सुबूत पेश करने और अपने लिए वक़ील की मांग करने की अनुमति देता है। ये सब स्वाभाविक न्याय के नियम हैं ( principles of natural justice) और भारतीय संविधान के आर्टिकल 14 और 21 के तहत सुरक्षित हैं। इन नियमों के उल्लंघन से ये हो सकता है कि कानून पूरे केस को ही बुरा ठहरा सकता है। बहुतों के लिए, Due Process का पालन करने में ये परेशानी है कि समाज का रवैया कुछ ऐसा है कि लोग औरतों की सेक्सुअल उत्पीड़न और हमले की शिकायतों को शक की नज़र से देखते हैं । ऐसे में Due Process के ज़रिये सब कुछ करने से औरतों को पब्लिक के ताने सुनने पड़ सकते हैं, संवेदनहीन या बद्तमीज़ अफसरों का सामना करना पड़ सकता है, और एक बहुत धीमी गति से चलने वाली क़ानून व्यवस्था का सामना करना पड़ता है, जो कभी कभी किसी काम नहीं आती, और जहां पीड़ित को इन्साफ मिलने की कोई गारंटी नहीं। इस प्रक्रिया से उनका सदमा और बढ़ सकता है। क्या हो अगर कोई आपके कार्यस्थल पर आपसे खुलकर पूछ बैठे तो ? इसका कोई सीधा-सच्चा जवाब नहीं है, लेकिन ये कुछ ज़रूरी सवालों के बारे में सोचने में मदद करता है। क्या जिसने आपसे खुलकर पूछा, आपके बराबर या आपसे ऊपर की पोस्ट पर आपके साथ काम करता है ? और अगर आप इसमें दिलचस्पी नहीं रखतीं, तो ऐसा कहने से कहीं आपके करियर पर कोई बुरा असर तो नहीं पड़ रहा ? या अगर आपने इसे बिलकुल साफ़ कर दिया है कि आप इसमें कोई रुचि नहीं रखतीं, तो क्या वो इंसान पीछे हट गया ? अगर आपके साथ काम करने वाला कोई सहकर्मी आपसे खुल्लमखुल्ला पूछता है और आप भी उसमें दिलचस्पी रखती हैं, तो शायद ये ऑफिस रोमांस का कोई नुस्ख़ा बन जाए | अगर आप इसमें रुचि नहीं दिखाती हैं और वो भी अपने क़दम पीछे खींच लेते हैं, तो हो सकता है आप दोनों कोशिश करके अपना पुराना सरल माहौल वापस बना पाएं, अपना काम जारी रखें, फिर से ऐसे सह कर्मी बन जाएँ जो एक दूसरे की इज़्ज़त करते हों | इस बारे में ज़्यादा जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें | लेकिन अगर वो आपकी ‘ना’ को आपका जवाब नहीं मानता, उग्र हो जाता है, या फिर आपसे ऊपर की पोस्ट का पावर रखते हुए आपसे खुलकर पूछता है और उसको नहीं कहना शायद किसी ऑब्वियस (obvious) या नॉट ऑब्वियस ( not obvious) तरीके से इस बात को असर करता है कि वो काम की जगह पर आपके साथ कैसा सुलूक करता है, तब ये ऑफिस-रोमांस का मामला बिलकुल नहीं । बल्कि सेक्सुअल उत्पीड़न और पेशेवर दुर्व्यवहार का केस बन जाता है । क्या हो अगर आप किसी ऐसे के साथ डेट पर जाएँ जो आपका सहकर्मी तो नहीं पर आपकी ही इंडस्ट्री में काम करता हो और वो डेट असहज, या आक्रामक हो गई हो, या आपकी सहमती को अनदेखा कर दिया हो तो ? आप जिस के साथ डेट पर गयीं , उसको काम देने वाले उसके अफसरों से उसकी शिक़ायत करने का करने की सोच सकती हैं। ऐसा करने से शायद वे इस कम्प्लेनट को I.C.C. की तरफ़ बढ़ा दें। राष्ट्रीय महिला आयोग या राज्य महिला आयोग से की गई शिक़ायत भी शायद किसी तरह का समाधान कर सकेंगीं। IPC के अंडर, घटना के अनुसार स्टॉकिंग (जिसमें साइबर स्टॉकिंग भी शामिल है) या उत्पीड़न या हमले का क़ानूनी समाधान ढूँढा जा सकता है । क्या हो अगर लम्बे समय तक चलने वाला आपका लिव-इन रिश्ता गाली-गलौज भरा,उत्पीड़क और हमले भरा हो जाए, लेकिन आप शादीशुदा न हों ? अगर आप किसी लिव-इन रिश्ते में हैं, तो आप घरेलू हिंसा क़ानून (Domestic Violence Act) के अंडर सुरक्षित हैं। अगर नहीं, तो भी IPC की वो धाराएँ (Sections) जो शारीरिक उत्पीड़न, स्टॉकिंग, परेशान किया जाना और सेक्सुअल हमले से सम्बन्ध रखती हैं, लागू होंगी। राष्ट्रीय महिला आयोग या राज्य महिला आयोग भी मदद कर सकते हैं। अगर मैंने सेक्सुअल परेशानी का सामना किया हो, तो मैं क्या एक्शन ले सकती हूँ ? अगर आप अपनी कंपनी की ICC से संपर्क करना चाहती हैं, तो ये रही, कार्यस्थल पर होनेवाली सेक्सुअल परेशानी और उससे कैसे लड़ा जाए, इसकी कुछ और जानकारी : https://www.newslaundry.com/2018/10/12/faq-sexual-harassment-workplace सरकार के पास अपना ख़ुद का वेब पोर्टल है जिसपर कार्यस्थल की सेक्सुअल परेशानी की शिक़ायत दर्ज की जा सकती है। http://www.shebox.nic.in/. यहाँ पर जमा की गई शिक़ायतों को शिक़ायत करने वाले की कंपनी के ICC को भेज दिया जाएगा। अगर आप क़ानूनी रास्ता अपनाने की सोच रही हैं, तो कुछ सीन यहाँ बताए गए हैं : https://indianexpress.com/article/explained/sexual-harassment-law-when-where-it-holds-against-whom-5398193/ राष्ट्रीय महिला आयोग के पास अपना एक पोर्टल है जिसपर स्टॉकिंग (पीछे पड़ना) के ख़िलाफ़ शिक़ायत की जा सकती है : http://ncw.nic.in/onlinecomplaintsv2/frmPubRegistration.aspx साइबर स्टॉकिंग और ऑनलाइन परेशानी की ज़्यादा जानकारी और इस बारे में किससे शिक़ायत की जाए, उसके लिए यहाँ जाएँ : https://blog.ipleaders.in/cyber-stalking/ I Will Go Out - इस आंदोलन ने जनता के ज़रिए (Crowdsourced) पेशेवर लोगों की एक ऐसी लिस्ट बनाई है, जो मुफ़्त में मदद करते हैं, चाहे वो क़ानूनी सेवा हो, या स्वास्थ की देखभाल हो या फिर दिमाग़ी स्वास्थ में मदद या विचार-विमर्श। https://docs.google.com/spreadsheets/d/1OJcqLT7k9eIGi3oTy9ZAJYr6uTUXPfUeElzVumGUyL0/edit#gid=1192261522. (अगर आप भी इसी तरह अपनी सेवाएँ देना चाहते हैं, तो यहाँ साइन - अप करें)
अगर आप पूरी तरह नहीं जानते कि पॉश (Posh), लोशा (LoSha), आईसीसी (ICC) और ऐसी ही दूसरे टर्म्स का पूरा मतलब क्या है, तो ये आपके लिए है।
Some common terms being used in the #MeToo conversation, explained.
अनुवाद: रोहित शुक्ल
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