चेन्नई में क्वीयर लोगों के बारे में एक बेहतरीन वेब-शृंखला के रचयिता से बातचीत ( AOI टिपण्णी -क्वीयर - जो लोग रूढ़ीवादी लिंग पहचान को नहीं मानते और चाहते हैं की उनका उपनाम कुछ ऐसा हो जो एल.जी.बी.टी के मायनों से आगे बढे, और कितनी ही भावनाओं और संभावनाओं को अपने आड़े ले, वो अपने आप को अक्सर क्वीयर बताना ज़्यादा पसंद करते हैं । क्वीयरनेस - क्वीयर लोगों और विचारों से संबंधित बातें ।))
पू एक सुंदर वेब-चित्र कथा है सबूर और जमील के बारे में, जोकि चेन्नई में हाउज़मेट्स हैं, और उन लोगों के बारे में भी जिनकी ज़िंदगियाँ उनसे किसी तरह से जुड़ी हैं। पू (तमिळ में फूल को 'पू' कहते हैं) प्यार, धर्म और पहचान के मुद्दों पर गौर करती है और हमें दिखाती है कि भले ही ज़िंदगी उलझी हुई हो, प्यार इस सफर को सार्थक बनाता है।
ये कॉमिक साप्ताहिक एपिसोड के रूप में इंटरनेट पे निकलती है (और अब भी चल रही है, तो जल्दी से अब तक के सारे एपिसोड्सदेख देख लें अगर आपने ऐसा नहीं किया है!)। ये ऐसे चैप्टर्ज की श्रृंखला है जो हमें साधारण और असाधारण घटनाओं से परिचित कराते हैं। एक तरफ अगर हम जमील को देखते हैं, एक भरतनाट्यम नर्तक, जो मंच पर नृत्य करते समय भावनाओं में डूबा हुआ है, या अपने प्रेमी सबूर से प्यार जता रहा है, उसको आलिंगन कर रहा है, तो दूसरी तरफ हम नूर को भी देखते हैं, एक वकील, जो अदालत में क्वीयर समुदाय के लिए जंग लड़ने की तैयारी कर रही है, या मुखिल , एक ट्रांस औरत को, अपनी जान पे एक ऐसे हमले से बचते हुए, जो तमिळ नाडू में उसको राजनैतिक ताकत मिलने से रोकने के उद्देश्य से किया गया है। लेकिन, इस सबसे बढ़कर पू एक कहानी है उन सब चीज़ों के बारे में जो प्यार को संभव बनाती हैं।
हमने बात की नबीगल-नयगम हैदर अली से, जो पू का रचयिता है - एक २०-वर्षीय नौजवान जोकि मौलिक रूप से तमिळ नाडू से है, और फिलहाल कैलिफ़ोर्निया में एनीमेशन सीख रहा है - उसके खूबसूरत और निराले काम के बारे में।
पू के ख़्याल ने किस तरह जन्म लिया?
जब मैं हाई स्कूल के सीनियर ईयर में था, मैंने एक बहुत ही दुबले किरदार की रचना की जिसकी बहुत बड़ी भवें थीं। उसका नाम मैंने जमील रखा। जैसे-जैसे मैं उसके चित्र और ज़ोर शोर से बनाने लगा, मैंने ऐसा करते हुए उसके लिए एक पूरी कहानी विकसित कर ली। पहले पू (जिसके मैं बहुत से अलग-अलग नाम रख चूका हूँ) सबूर और जमील को स्कूल के छात्रों के रूप में पेश करने वाला था, जो धीरे-धीरे एक दूसरे से प्यार करने लगते हैं लेकिन उनके परिवारों को पता लग जाता है और वो उन्हें अलग कर देते हैं - उनकी मुलाक़ात कई सालों बाद होती है, जब वो दोनों वयस्क हो चुके होते हैं, लेकिन सबूर की मौत एक हादसे में हो जाती है और जमील अपने मृत प्रेमी से सुलह करने के लिए आध्यात्मिकता का सहारा लेता है। करीब एक साल बाद मैंने उस कथानक को रद्द कर दिया क्योंकि वो बहुत ही निराशाजनक था, और उसके अगले साल मैंने फिर से कहानी को लिखने का फैसला किया - बिलकुल शुरुआत से, और पू के पहले चैप्टर को लिखना शुरू किया, जिसमें सबूर और जमील स्कूल के दोस्त ना होते हुए वयस्क हाउसमेट्स/रूममेट्स हैं।
जैसे-जैसे हम एक-एक चैप्टर पढ़ते हैं और कहानी के किरदारों के बारे में जानते हैं, हमें पता चलता है कि हर किरदार की एक पेचदार दास्तान है जो अक्सर हमारी अपेक्षाओं को चुनौती देती है। इतने किरदारों का कहानी में होना, और हर किरदार को इतने विस्तारपूर्वक ढंग से दिखाना तुम्हारे लिए ज़रूरी क्यों था?
मैं एल.जी.बी.टी.क्यू लोगों के विभिन्न प्रकार के जीवन-अनुभवों को पेश करना चाहता था। इसमें अपने लैंगिक रुझान को दुनिया के सामने स्वीकारने की कोई एक कहानी नहीं है, ना अपने लैंगिक रुझान के कारण परिवार से ठुकराए जानी की/या अपनाये जाने की, ना लैंगिक पहचान पर धर्म की पड़ती नज़र की। मेरे लिए इन विभिन्नताओं, इन जटिलताओं और इस विस्तार की एक झलक देना ज़रूरी था। जैसे कि सबूर, अय्यंगर ब्राह्मण परिवार का एक डरा हुआ बच्चा था, अपनी पहचान को छुपाने पे मजबूर, जो आगे चलकर एक श्रद्धालु मुसलमान बन जाता है; वो इस बात का सामना करता है कि वो समलैंगिक है और काफी हद तक जेंडरफ्लूइड (एक ऐसा व्यक्ति जो अपने आप को एक निर्धारित जेंडर से परिभाषित नहीं करता) भी। जमील एक ट्रांस आदमी है (एक ऐसा व्यक्ति जो जन्म से स्त्री होता है लेकिन पुरुष लिंग पहचान को अपनाता है और सबूर की कहानी से अलग, उसका अपनी माँ के साथ बहुत ही अच्छा रिश्ता है। मुसलमान होते हुए भी, जमील इस्लाम की रस्मों को हमेशा निभाता नहीं है, हमेशा प्रार्थना नहीं करता, उपवास कभी रखता है, कभी नहीं, और शायद एक आद बार मदिरा भी पी लेता है (ये कॉमिक में अब तक दिखाया नहीं है लेकिन मैं उसका ये पहलू आगे चलकर सामने लाना चाहता हूँ)।
पू में किसी की कहानी या किरदार एक ढांचे में नहीं बैठते; हर कोई बाधाओं को, घिसे पिटे विचारों को और आम सोच को किसी तरीके से तोड़ता है, उनको पार करता है, बिलकुल असल ज़िंदगी की तरह। इन सब बातों को चाशनी मैं नहीं डुबोया गया है, ना ही हमेशा उन्हें निराशाजनक दृष्टिकोण से देखा गया है।
पू में हम आदमियों को घरेलू स्पेस में देखते हैं और उनकी निजी ज़िंदगी की हमें एक झलक मिलती है। इसकी तुलना में, औरतें हमें बाहरी दुनिया में ज़्यादा दिखती हैं। नूर, एक वकील है, और मुखिल एक राजनीतिज्ञ है; दोनों के प्रेमी हैं, सपने हैं, ख़्वाहिशें हैं, बिलकुल आम आदमियों के समान, लेकिन दोनों ही बदलाव के प्रतिनिधि भी हैं, एक ऐसे पैमाने पर जो आम पुरुषों से काफी अलग है। क्या तुम इस बारे में विस्तार से बता सकते हो?
मैं काफी ऐसे मानकों को उलटना चाहता हूँ जिनकी उम्मीद समाज असली ज़िंदगी में रखता है, जैसे कि ये कि आदमियों का शक्तिशाली जगहों में होना और औरतों का घरेलू स्पेसेज़ में होना स्वाभाविक हैi। जबकि नूर और मुखिल सामाजिक बदलाव पर केंद्रित है, जमील और सबूर अंदरूनी गहन-चिंतन और इलाज पर ज़्यादा ध्यान देते हैं, जो अक्सर हमें देखने को नहीं मिलता। नूर अंतिम चरण में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और ये सब पू की संभाविक समाप्ती से जुड़ा हुआ है, लेकिन मैं उस बारे में फिलहाल बात नहीं कर सकता!
पू का संसार प्यार की नीव पर बना है, और प्यार ही उसे आकार देता है - चाहे वो दो हाउज़मेट्स के बीच का रिश्ता हो, या तमिळ नाडू की राजनैतिक तकदीर। क्या ये उस दुनिया का प्रतिबिम्ब है जिसे तुम देखते हो, या फिर उसका, जिसकी तुम अभिलाषा रखते हो?
मुझे लगता है कि असल ज़िंदगी में प्यार और नफरत के फैसले ही दुनिया को गोल घुमाते हैं। जहां प्यार की बदौलत धैर्यवान और संवेदनशील फैसले लिए जाते हैं, वहीं नफरत अविवेकी और हानिकारक फैसलों को जन्म देती है।
पू में किरदारों के विरोधी काफी हद तक नफरत के रोगी हैं; जैसे कि सबूर का परिवार बहुत इस्लामॉफ़ोबिक (इस्लाम के खिलाफ होना, उसे नापसंद करना) और होमोफोबिक (समलैंगिकता की ओर एक नकारात्मक राय रखने वाले) हैं, दोनों ही किस्म की नफरत उनके बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य और सुख को हानि पहुंचाते हैं। जमील का खुद के प्रति द्वेष उसके और सबूर के रिश्ते में करीब करीब दरार डाल देता है, और जब भी ये मुद्दा तह तक आता है, उसकी खुशियों पे भी ग्रहण डाल देता है। मुखिल की राजनैतिक उन्नति को जो लोग चुनौती देते हैं, वो ऐसे समाज की परछाई है जो इस बात को नहीं स्वीकारता कि मुखिल एक कामयाब ट्रांस औरत है। नूर की लड़ाई है होमोफोबिआ के खिलाफ जोकि भारतीय क़ानून के द्वारा समर्थन पाकर, एक व्यवस्थित शोषण का रूप ले चुका है। संवेदनशीलता की कमी ही वो चीज़ है जो एल.जी.बी.टी समुदाय के खिलाफ इस शोषण को बनाये रखती है।
दूसरी ओर, कहानी के किरदार खुद प्रेमी हैं - और उनका प्यार सिर्फ एक दूसरे के लिए सीमित नहीं है। सबूर को अपने धर्म से प्यार है, जमील को अपनी कला से, नूर और मुखिल इन्साफ के विचार से प्यार करते हैं। उनके कई संघर्षों का यही इलाज बन जाता है और उनको आगे जाने का साहस देता है।
मैं चाहता हूँ कि पू के ज़रिये लोग जितने असंवेदनशील और द्वेषपूर्ण हैं, उससे ज़्यादा विनम्र, दयालू और प्रेममय बनना सीख पाएं। जबकि मैं असली दुनिया से प्रेरणा लेता हूँ, मैं चाहता हूँ की पू के बहुत से सकारात्मक उदाहरणों को लोग अपनी असल ज़िंदगी में अपनाएं।
पू प्रेमियों की कहानियां सुनाती है, और उनके प्यार को दर्शाने के लिए कला का सहारा लेती है। जबकि जमील और सबूर दोनों कलाकार हैं, वेबकॉमिक में उनका प्यार ना सिर्फ तुम्हारे द्वारा बनाये गए चित्रों से, लेकिन गानों के अल्फ़ाज़ों से, उर्दू साहित्य से, तमिळ कविताओं से, वास्तुकला के उल्लेखों और कई जगहों से इकट्ठे किये गए टुकड़ों से उभर कर आता है। क्या तुम ये कहोगे कि पू उतनी ही कला के बारे में है जितनी कि प्यार के बारे में?
मेरे मुताबिक़, एक अच्छी कहानी में कला का होना अनिवार्य है। बिना उसकी सुंदरता के, उन छोटे-छोटे अलंकारों के, गद्य में छुपे पद्य के, विवरण, सन्दर्भ, और रिश्तों, और महत्वपूर्ण ठहराव और गहन-चिंतन के पलों की निजी परख के, कहानी महज़ एक सारांश बनकर रह जाती है।
धर्म के साथ तुम्हारे अपने सफर ने पू में इस्लाम की प्रस्तुति को किस तरह प्रभावित किया?
मेरी पैदाइश एक हिंदू परिवार में हुई थी लेकिन मैंने सबूर की तरह इस्लाम को अपनाया। मेरे माता-पिता काफी हद तक विचारधारा और राजनीति में दक्षिणपंथी हिंदू हैं और उन्होंने मुझे मुसलमानों के खिलाफ गलत और अनुचित बातों और विचारों के माहौल में बड़ा किया। जब मैंने उन्हें ये संकेत दिया कि मैंने इस्लाम को अपना लिया था, घर पे मेरे साथ काफी शारीरिक और भावनात्मक रूप से शोषण हुआ। ये तब जाकर बंद हुआ जब मैंने फिर से हिन्दू होने का नाटक शुरू किया। जबकि मुसलमान परिवारों से मुसलमान लोग अपने खिलाफ पक्षपात को सुधारने के लिए इस्लामॉफ़ोबिआ का मज़ाक उड़ाते हैं, मुझे अब भी इस बात से असहजता महसूस होती है क्योंकि ना सिर्फ बाहर के लोगों ने, लेकिन मेरे अपने परिवार ने इतनी गंभीरता से मेरे खिलाफ इसका इस्तेमाल किया था। कॉमिक में एक चैप्टर है जो इस बात को दर्शाता है - जब जमील चंचलता से एक टकसाली (स्टीरियोटाइप) किरदार का चित्रण करता है और सबूर इसपर एक चौंकी हुई प्रतिक्रिया देता है - लेकिन हास्य का सहारा लेकर।
पू में, इस्लाम के व्यवस्थित रूप को नहीं दिखाया गया है, कहानी में उसका रुझान सूफिज़्म की ओर ज़्यादा दिखता है जिनकी हदें खुद सबूर निर्धारित करता है। सबूर को एक सच्चे मुसलमान के रूप में दिखाया गया है, मतलब वो धर्म के पाँचों आधारों पर खरा उतरता है। लेकिन वो किसी मायने में एक रूढ़ीवादी मुसलमान नहीं है, मतलब वो मुसलमान समुदाय द्वारा बनाये गए इस्लाम के ढाँचे में नहीं बैठता, जहां एक कड़ी लिंग पहचान द्विवर्ण से जुड़े नियम हैं
और जहां सिर्फ औरत-पुरुष के बीच रिश्तों को धर्म का अहम हिस्सा माना जाता है। इस्लाम के साथ मेरे अपने रिश्ते की ये परछाई है। हालांकि मैं जितना हो सके इस्लाम को अमल करता हूँ, मेरी ट्रांस पौरुष पहचान को अक्सर मुसलमान लोग इस्लाम के लिए अनुचित समझते हैं। पू की रचना एक हद तक व्यवस्थित धर्म से जुड़ी मेरी अपनी कुंठा की उपज थी, जहां सबसे उम्मीद की जाती है कि वो भगवान की ओर जानेवाले रस्ते को सामान्य तरह से ढूंढें, चाहे वो व्यवस्थित ग्रंथों पर आधारित हिंदुत्व की बात हो, जिससे मैं बचपन में जुड़ा था, या फिर आगे चलकर व्यवस्थित इस्लाम की। पू में मेरा उद्देश्य ये भी दर्शाना था कि अलग-अलग एल.जी.बी.टी पहचान किसी की व्यक्तिगत आध्यातिमकता और भगवान की ओर जानेवाले रस्ते के लिए अनुचित/बेमेल नहीं होतीं, और हाँ, धार्मिक एल.जी.बी.टी लोगों को दिखाने के लिए, क्योंकि हम अक्सर उनके प्रतिनिधित्व नहीं देखते।
तुम प्यार को कैसे परिभाषित करते हो? और तुम्हारी ज़िन्दगी में प्यार के क्या मायने रहे हैं?
मैं सोचता हूँ कि प्यार इसलिए खूबसूरत है क्योंकि इसे परिभाषित नहीं किया जा सकता। मेरे लिए, प्यार वो ताकत है जो सीमाओं को पार करती है, क्योंकि सच्चा प्यार लोगों से कुछ भी करवा सकता है और सभी बाधाओं को तोड़ सकता है। मेरे जीवन में, प्यार सहारे के रूप में मेरे दोस्तों और साथियों से, दोस्ती के रूप में मेरी बहन के साथ मेरे रिश्ते से और तो और, हाल ही मेरे जीवन में एक अनअपेक्षित प्रेमी से आया है! जब भी मुझे लगता है कि मैं कुछ हासिल नहीं कर सकता हूँ, तो ये प्यार ही वो चीज़ है जो मुझे आगे बढ़ने का आश्वासन देता है।
अब तुमने ७० चैपटर्ज पूरे कर लिए हैं, हफ्ते दर हफ्ते तुम्हें प्रेरणा और नए विचार कहाँ से मिलते हैं?
हर चैप्टर असल में वही है जो मैं उस दिन महसूस कर रहा हूँ। हाँ, मेरे दिमाग में कहानी के अंत का एक ढीला ढांचा है लेकिन बीच में जो कुछ भी होता है वो बिलकुल तत्क्षण (स्पॉनटेनिअस)।
तुम्हारे लिए, पू पर काम करने के बारे में सबसे बढ़िया चीज़ क्या है?
मुझे अपने किरदारों को जीवित होते हुए देखना बेहद पसंद है और दूसरों को मेरे किरदारों में दिलचस्पी लेते हुए देखना भी बहुत पसंद है!
देखिये मर्ज़ी मज़ा और मजबूरी पे हमारा नया हिट वीडियो
पू की दुनिया के अंदर - प्यार के बारे में एक खूबसूरत चित्र कथा
Puu is a webcomic about Saboor and Jameel, two housemates in Chennai, and other people whose lives intersect with theirs.
चित्र नबीगल-नयगम हैदर अली द्वारा
अनुवाद - तन्वी मिश्रा
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