किच किच किच।
लगातार खुजली करने से मेरी जांघों के अंदर की ओर बॅन्ड़ बज गयी थी। सितंबर २०१५ की बात है, मैं छुट्टी से लौटी थी और इस खुजली को लेकर घर आयी थी।
मुम्बई में लोग समय-समय पर कोई न कोई चीज़ खुजलाते हैं - ट्रेनों में बने पकड़ने वाले खंबों को, पसीने से भरे बालों को, बालों से ज़्यादा पसीनेदार गर्दनों को, एक दूसरे की पीठ को ( मुहावरे के सही मायनों में भी)। मैंने सोचा यह खुजली सिर्फ़ मुम्बई लौटने का नतीजा था। हर दिन, मैं १४ घंटों के लिए काम करके दो नौकरीयाँ संभाल रही थी। तो, पसीने का मतलब जिंदगी, और जिंदगी का मतलब पसीना रहा था। लेकिन एक हफ़्ता गुज़र गया और मैं अब भी खुजला रही थी। इस बार, खुजलाना अपने संग एक अजीब लाली लेके आया था।
मुझे शक था कि मुझे यू.टी.आय (यूरिनरी ट्रॅक्ट इन्फ़ेक्शन)/मूत्र पथ में संक्रमण हुआ था और मैं हर दिन एक मछली से ज़्यादा पानी पीने लगी। लेकिन कमबख्त खुजली बंद होने का नाम ही नहीं ले रही थी और मेरी योनि के आसपास एक खतरनाक सी लाली विकसित हो गयी थी। उस समय मैं अपने तब के पार्टनर के साथ लैंगिक रूप से सक्रिय थी और इसलिए मुझे एक ज़ाहिर से विकल्प का ड़र लगने लगा - क्या मुझे एक एस.टी.आय (सेक्षुअली ट्रांस्मिटिड़ इन्फ़ेकशन) हुआ था?
अगर मुझे अपने सर पे छत बनाए रखनी थी, तो मेरे माता-पिता, जो दोनों ही ड़ॉक्टर थे, उनसे बात करना मुनासिब नहीं था। उनका डॉक्टर होना या ना होना मायने नहीं रखता था, वह मेरे माता-पिता थे और सेक्स अब तक हमारे घर में एक हैरान और परेशान करने वाला मुद्दा था। दूसरी बाधा थी एक ऐसा डॉक्टर ढ़ूँढ़ना जिसे मेरे माता-पिता नहीं जानते थे। मेरे प्यारे पड़ोस के डॉक्टर अंकल की झूठी सहानुभूति - "हाय मेरी गुड्डू, तुझे क्या हुआ वहाँ" - सुनने के बाद मुझे घर आकर चुभते हुए सन्नाटों का सामना करना पड़ता।
मैं बेचैन थी। खुजली और लाली के साथ दर्द भी होने लगा था - ऐसा दर्द जिसका मैंने अपने जीवन में पहले कभी अनुभव नहीं किया था। मैं अपने दोस्त की मम्मी के पास मदद के लिए गयी। वह एक जानी-मानी गायनेकॉलजिस्ट/प्रसूतिशास्री थीं। उनके दवाखाने में प्रवेश करने के बाद, मैं अपने भयानक दर्द के सहित, एक साँप जैसी लंबी लाईन में खड़ी हो गयी और अपनी बारी का इंतज़ार करने लगी। डॉक्टर कुशल थीं, पर बहुत व्यस्त थीं। उन्होंने बस एक बार मेरी योनि की तरफ़ देखा और मुझे एच.एस.वी २ (हर्पीज़ सिमप्लेक्स वायरस) का निदान दे दिया। अपनी ड़ाईगनोसिस पे यकीन होने की वजह से उन्होंने मुझे किसी भी तरह का टेस्ट लेने के लिए नहीं कहा। अब सोचती हूँ तो मुझे लगता है कि यह बहुत बड़ी भूल थी। पर इस पर हम बाद में चर्चा करेंगे।
आमतौर पर एच.एस.वी २ अस्वच्छता और अच्छी नीजी आदतों की कमी से जुड़ा होता है। या फ़िर मुझे तो ऐसा ही लगा था। शर्मिंदगी धीरे-धीरे मेरी तरफ़ अपना रास्ता बनाने लगी। यह बीमारी होने से मुझे बहुत अपमान महसूस हो रहा था।
अगले १०-१४ दिन के लिए मैं इंटेंसिव इलाज पा रही थी। दवाईयों से मेरा दर्द तो कम नहीं हुआ लेकिन रोग पे रोक लगाने में वह असरदार रहीं। धीरे - धीरे, लाली कम होने लगी।
अब सोचती हूँ तो मैं हमेशा अपने उस समय के पार्टनर की शुक्रगुज़ार रहूँगी कि उसने इस मुश्किल समय में मेरा साथ नहीं छोड़ा। वह एक रूढ़ीवादी परिवार से था और शुरुआत में मेरी बीमारी की खबर उसके गले नहीं उतरी थी। वह भी मेरी ही तरह बहुत ड़रा हुआ था और इस रोग के स्रोत को समझने की कोशिश कर रहा था। फ़िर भी, जब मैं ड़ॉक्टर से जांच करवाने जाती, वह मेरे साथ आता और पूरे समय मेरे पास बैठता।
इस बात को लगभग २ साल हो गये हैं। इस अनुभव से ध्यान में रखने वाली दो चीज़ें हैं:
१. जब मैं ड़ॉक्टर के क्लिनिक/दवाखाने से निकली, तो मुझे बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था कि मुझे यह बीमारी कैसे हुई थी।
२. मुझे कोई सलाह या जानकारी नहीं मिली। बस दवाई , और दवाई के बाद और दवाई।
मुझे क्यों नहीं पता था कि मुझे हर्पीज़ कैसे हुआ था? मेरी पिछ्ली सेक्शुअल क्रिया और इस बीमारी होने के बीच एक महत्वपूर्ण अंतराल रहा था। मुम्बई आने के पाँच महिने पहले, मुझे अपने एक सफ़र में कोई मिला था और हमने हुक-अप (यानि बिना किसी बंधन का सेक्शुअल संबंध) किया था। पर हम निरोध का हमेशा ध्यान रखते थे और मुझे एस.टी.आय को लेकर उसके इतिहास पे शक करने की कोई वजह नहीं थी। मेरे उस समय के पार्टनर के साथ भी ऐसा ही था। एस.टी.आय जाँचने के लिए उसके सभी टेस्ट नेगेटिव/नकारात्मक निकले थे।
दूसरा फ़ॅक्टर और भी परेशान कर देने वाला था। सुनिए। मैं आपको वह बताना चाहती हूँ जो उन्होंने मुझे कभी नहीं बताया। अगर आपको एच.एस.वी (१ या २) के साथ डाईगनोज़ किया गया है, तो सलाहकारी/काऊंसिलिंग आपके इलाज का हिस्सा होनी चाहिए।
एच.एस.वी बहुत ही दर्दनाक बीमारी है। मेरे दर्द का एक प्रमुख कारण मेरी अपनी मानसिक स्थिति थी। एक अच्छा ड़ॉक्टर आपको सलाह देकर इस मुश्किल वक्त में आपकी सहायता करेगा। सिर्फ़ यही नही, सलाहकारी सत्र के दौरान कुछ एस.टी.आय के होने वाले दीर्घकालिक परिणामों पे भी आपकी समझ बनायी जाएगी। बिना किसी काऊंसिलिंग के, मुझे इस सच्चाई का सामना करने में कठिनाई हुई कि एच.एस.वी २ की वायरस का स्ट्रेन हमेशा आपके शरीर में रहता है। हम यहाँ एक पूरा जीवन इस छोटे लेकिन विस्फ़ोटक रहस्य के साथ बिताने की बात कर रहे हैं। मैं इससे शर्मिंदा नहीं थी, लेकिन फ़िर भी हर पार्टनर से इस पर बातचीत करना कुछ अजीब हो जाता है - क्योंकि किसी भी सेक्षुअल/लैंगिक क्रिया से पहले उन्हें जानकारी देना मेरी ज़िम्मेदारी है।
मुझे इस बीमारी के बारे में अधिक जानकारी हमारे पुराने यार, यानी इंटरनेट पर मिली। एक अच्छा ड़ॉक्टर, सलाह देकर आपको इस परिस्थिति को संभालने में आपकी मदद करेगा (और यह संभाली जा सकती है)। इंटरनेट पर निदान ढूँढना खतरनाक हो सकता है, लेकिन मेरे मामले में, इसके फ़ायदे थे।
वेब एम.डी ( यानी इंटरनेट पे डाक्टर)ने मेरे ख़ौफ़ को हवा ज़रूर दी, लेकिन इस जानकारी तक मेरी पहुँच बनाने के लिए मैं वाकई वेब एम.डी की एहसानमंद हूँ। नहीं तो, मुझे कभी नहीं मालूम पड़ता कि यह बीमारी अपने साथ क्या-क्या लाती है। ऐसा ना होता, तो मैं कभी और काऊंसिलिंग(सलाहकारी) के लिए नहीं गयी होती और इस बीमारी से ग्रस्त दूसरे लोगों की कहानियाँ नहीं जान पाती। और मैं यह कभी नहीं जान पाती कि अगर बीमारी के समय सूजन और लाली के वह भयानक दृष्य सामान्य/नॉर्मल थे या नहीं। ड़ॉक्टर ने मुझे कभी इस भद्देपन के लिए तैयार नहीं किया था - मुझे इंटरनेट पर देख के जानना पड़ा कि यह सब कभी जाने वाला भी था या नहीं।
इस बीमारी से ग्रस्त लोगों के लिए मेरा सुझाव है कि उन्हें इंटरनेट पर अपनी रीसर्च के बारे में अपने चिकित्सक से बात करनी चाहिए। मेरे मामले में, एक ज़्यादा जानकार मरीज़ होने की वजह से मैं सीमित समय में अपने ड़ॉक्टर से सही सवाल पूछ सकती थी।
ड़ाईग्नोसिस/निदान के बाद के दो हफ़्तों ने मुझे भावनात्मक रूप से एकदम निचोड़ दिया। ज़ाहिर है, मैं घर नहीं जा सकती थी - मुझे यकीन था कि मेरे माता-पिता को पता लग जाएगा कि कोई गड़बड़ है।
मुझे अपने दिन मेरे पार्टनर के ऑफ़िस में और अपने दोस्तों के घरों में गुज़ारने पड़े। दर्द सहित। और ऊपर से नींद नहीं आती थी। और क्या मैं दर्द के बारे में बात कर चुकी हूँ? अगर मैंने इस दर्द का विवरण स्पष्टता से नहीं किया है, तो मैं आपको बता दूँ, कि दर्द एस.टी.आय भरे जीवन का सिर्फ़ इकलौता अंग है। यह दर्द ही इस बीमारी की शक्कर है, और यही उसका मिर्च मसाला।
अपने रोग का रहस्यमयी स्रोत ढ़ूँढ़ने के प्रयास में, मैंने सबसे चापलूसी वाला काम किया। मैंने अपने कुछ एक्स बाय फ्रेंड्स को फ़ोन लगाया। नसीब से मैंने कुछ ऐसे लोगों को डेट करने का चुनाव किया था जिन्होंने बहुत समझदारी और सहानुभूति के साथ जवाब दिया। मेरे एस.टी.आय इतिहास के सभी भूत अच्छे नंबरों से पास हुए। मेरी बीमारी का स्रोत अभी तक एक रहस्य था। लेकिन उन्हें फ़ोन करने के परिणाम स्वरूप, मैं खुद को उन सब के साथ सेक्स करने के लिए कोसने और शर्मिंदा महसूस करने में जुट गयी। शादी में मिलने वाली खोचड़ आंटी की तरह अपने लैंगिक चुनावों पे अपने आप से इस तरह तीखे सवाल उठाना मुझे बिल्कुल पसंद नहीं आया।
जिस समय मैं अपने रोग से निवारण पाकर आगे बढ़ रही थी, उसी समय मुझे सेकेन्डरी तकलीफ़ें होने लगीं - यीस्ट और फंगल संक्रमण। अब तक, मेरा दिमाग खराब हो चुका था। बस, अब मैं नयी योनि खरीदने के लिए तैयार थी।लेकिन ये कैसे किया जाए, यह मुझे किसी ने नहीं बताया।
इलाज के कुछ महिनों बाद, जब हर्पीज़ का घमासान आक्रमण कुछ कम हुआ, मैं एक त्वचा विशेषज्ञ के पास गयी। उन्होंने मुझे बताया कि जिस समय मैं उनसे मिली इस बात का पर्याप्त सबूत नहीं नज़र आ रहा था कि मुझे वाकई में हर्पिज़ ही हुई थी। उनका शक इस बात से पैदा हुआ कि मुझे फ़िर से यह रोग नहीं हुआ था, जबकि ऐसा होना एच.एस.वी २ मरीज़ों में सामान्य था। उन्होंने बताया कि कुछ हर्पीज़ वायरस बचपन में ही हो सकती थीं और वह शरीर में रहकर तब एक्टीवेट होती थी जब आप लैंगिक रूप से सक्रिय हो जाते हैं। मेरी गायनकॉलोजिस्ट ने मुझे इस बारे में नहीं बताया था। कुछ भी नहीं, शून्य!
सैकड़ों इलाजों, ढ़ेर सारी दवाईयों और सलाहकारी के बाद, मैं एक ऐसी जगह पहुँच गयी थी जहाँ, मेरी वायरस से जुड़े इतिहास को संभालना और उसकी बुनियाद पर अपने लैंगिक और मानसिक जीवन को रचना, मैंने सीख लिया था। मेरे शारीरिक स्वास्थ को ठीक रखने के लिए मुझे अपनी आदतों पे बारीकी से निगरानी रखनी पड़ी और नियमित रूप से चेक-अप करवाने पड़े। मानसिक रूप से मैंने ठान ली थी कि मैं अपने जीवन की बागडोर इस बीमारी के हाथों में तो हर्गिस नहीं सौपूँगी। आज, मैं बड़ी आसानी से इस बारे में अपने करीबी दोस्तों से बात कर पाती हूँ, क्योंकि मैं यह मानती हूँ कि यह बीमारी मुझे परिभाषित नहीं करती।
जहाँ तक इससे जुड़े कलंक की बात है, तो उसका श्रेय हमारी सामाजिक कंडीशनिंग को जाता है। एस.टी.आय को हलके में नहीं लेना चाहिए। लेकिन इनसे बचने के ड़र से हम अपने आप को इनके बार में शिक्षित करने से भी वंचित कर देते हैं। सेक्स से दूर रहना या उसके बारे में अज्ञात रहना बहुत ही बेकार सलाह है। अंधकार में रहने से किसीका भला नहीं है । हॉलीवुड़ की ना सुनें। सेक्स से संबंधित जानकारी हासिल करें और अपने शरीर को जानें। अंधकार से रोश्नी में आएँ।
एच-एस.वी २ ने स्वास्थ्य और स्वच्छता से जुड़े मेरे नज़रिए को बदल दिया, और मेरे जीवन जीने के तरीके को भी। कंडोम सुरक्षा की गॅरंटी नहीं देते, लेकिन जब आपने असुरक्षित होने का परिणाम भुगता हो, तो आप हर तरीके से सुरक्षित रहने की कोशिश करेंगे- चाहे उनमें से कुछ तरीके पूरी तरह से आपका बचाव ना कर पाएँ।
इस बात पर विश्वास करना बहुत आसान है कि एस.टी.आय सिर्फ़ केशुअल ड़ेटिंग या अनेक लैंगिक पार्टनर होने से फ़ैलते हैं। जहाँ संख्या का इसमें कुछ हाथ हो सकता है, कृप्या ध्यान रखें कि एक वक्त पर एक ही पार्टनर के साथ संबंध बनाने वाले लोग भी एस.टी.आय का शिकार हो सकते हैं। मैं इसी का एक उदाहरण हूँ।
मैं आकर्षक हूँ, प्यार की हकदार हूँ और सेक्सी हूँ। मैं जिम्मेदार भी हूँ। एक साथ यह सब कैसे हुआ जाए, यह इतनी मुश्किलों से सीखने का इंतज़ार ना करें।
त्रिश्या एक लेखिका हैं। वह अपना समय तानशाही के खिलाफ़ अपनी आवाज़ उठाने और रेड़-वेल्वेट केक्स के खिलाफ़ आंदोलन करने के बीच बाँटती हैं। उन्हें ‘बेक’ (अम्रीकी संगीतकार) के प्रति एक अस्वस्थ् लगाव है।
एस.टी.आय से मुझे शर्मिंदगी महसूस हुई, पर मैं जानती हूँ कि मैं आकर्षक, बेहद प्यारी और सेक्स-की-हद-से-ज़्यादा योग्य हूँ।
Getting an STI is surrounded by shame and shaming, even at times, by doctors.
त्रिश्या घोष द्वारा
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